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पर्यावरण प्रदूषण: नियंत्रण के उपाय पर निबंध

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प्रदूषण पर निबंध | Essay on Pollution in Hindi

प्रदूषण पर निबंध, essay on pollution in hindi

Hindi Essay and Paragraph Writing – Pollution (प्रदूषण)

प्रदूषण पर निबंध – इस लेख में प्रदूषण का अर्थ, प्रदूषण के स्रोत, प्रदूषण के परिणाम, प्रदूषण को रोकने के उपाय के बारे में जानेंगे | जब वायु, जल, मृदा आदि में अवांछनीय तत्व मिलकर उसे इस हद तक गंदा कर देते है, कि स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालने लगे तो उसे प्रदूषण कहते हैं। प्रदूषण हमारे जीवन के उन प्रमुख विषयों में से एक है, जो इस समय हमारी पृथ्वी को व्यापक स्तर पर नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है। अक्सर स्टूडेंट्स से असाइनमेंट के तौर या परीक्षाओं में प्रदूषण पर निबंध पूछ लिया जाता है। इस पोस्ट में प्रदूषण  पर कक्षा 1 से 12 के स्टूडेंट्स के लिए 100, 150, 200, 250, 350, और 1500 शब्दों में अनुच्छेद और निबंध दिए गए हैं।

  • प्रदूषण पर 10 लाइन
  • प्रदूषण पर अनुच्छेद 1, 2, 3 के छात्रों के लिए 100 शब्दों में
  • प्रदूषण पर अनुच्छेद 4 और 5 के छात्रों के लिए 150 शब्दों में
  • प्रदूषण पर अनुच्छेद 9, 10, 11, 12 के छात्रों के लिए 250 से 300 शब्दों में
  • Also See: World Environment Day Slogans, Quotes, and Sayings

प्रदूषण पर 10 लाइन 10 lines on Pollution in Hindi

  • वर्तमान समय में प्रदूषण एक गंभीर समस्या है जो हर किसी के जीवन पर प्रभाव डाल रहा है।
  • प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ है- वातावरण में किसी तत्व का असंतुलित मात्रा में विद्यमान होना। 
  • प्रदूषण बढ़ने के मुख्य कारण लगातार वनों की कटाई और बढ़ती हुई जनसंख्या है। 
  • वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण, ये सभी प्रदूषण के विविध रूप हैं।
  • इन प्रदूषणों के कारण ही जलीय जीव-जंतु, पशु-पक्षी और वन्य जीव विलुप्त हो रहे हैं और लोगों को विभिन्न गंभीर प्रकार की बीमारियां हो रही है।
  • इन प्रदूषणों से नदी-झील, सागर-महासागर, पर्वत भी प्रभावित हो रहे हैं।
  • बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग का एक कारण प्रदूषण भी है।
  • प्रदूषण की समस्या केवल एक देश का नही है बल्कि पूरे विश्व की समस्या है।
  • भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण हर साल विश्व स्तर पर लगभग 7 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु होती है, जिनमें से तकरीबन 4 मिलियन लोगों की मौत घरेलू वायु प्रदूषण के कारण होती है।
  • भारत में हर साल 2 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। 

Short Essay on Pollution in Hindi प्रदूषण पर अनुच्छेद 100, 150, 200, 250 से 350 शब्दों में

प्रदूषण पर निबंध/अनुच्छेद – प्रदूषण, जिसे पर्यावरण प्रदूषण भी कहा जाता है, एक प्रकार का हानिकारक पदार्थ है जो हवा, पानी, धूल-मिट्टी आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य को नुकसान पहुंचाता है बल्कि जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी नुकसान पहुंचाता है। आज, इसके परिणामस्वरूप, पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणियों का अस्तित्व खतरे में है।

प्रदूषण पर अनुच्छेद कक्षा 1, 2, 3 के छात्रों के लिए 100 शब्दों में

प्रदूषण आज के समय में एक बहुत ही गंभीर समस्या है और इससे हर किसी का जीवन प्रभावित हो रहा है। प्रदूषण बढ़ने का प्राथमिक कारण निरंतर वनों की कटाई और बढ़ती जनसंख्या है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण, इसके मुख्य प्रकार है। वायु, जल, भूमि में प्रदूषण हानिकारक तत्वों के मिलने से फैलता है और जबकि ध्वनि प्रदूषण, वाहन, रेडियो, टीवी, स्पीकर के ध्वनि से उत्पन्न होता है। इन प्रदूषणों के बढ़ने से लोगों को विभिन्न गंभीर प्रकार की बीमारियां हो रही है, और बहुत से जीव-जंतु, पशु-पक्षी मर रहे हैं। इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने बेहतर भविष्य सुरक्षित करने के लिए प्रदूषण से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करें।

प्रदूषण पर अनुच्छेद कक्षा 4, 5 के छात्रों के लिए 150 शब्दों में

प्रदूषण एक हानिकारक पदार्थ है जो हवा, पानी और धूल जैसे कई विभिन्न माध्यमों से मनुष्यों, जानवरों, पौधों और पर्यावरण को धीरे-धीरे खराब और नुकसान पहुंचा रहा है। आज प्रदूषण के कारण ही प्राणियों की जान खतरे में है। इसी कारण बहुत से जीव-जंतु, पशु-पक्षी और वन्य प्राणी विलुप्त हो गए हैं। ये प्रदूषण तब होता है जब प्रकृति के विभिन्न भागों में असंतुलन होता है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण इसके विभिन्न प्रकार हैं। वाहनों और कारखानों से निकलने वाली हानिकारक गैस वायु प्रदूषण का कारण बन रही है, जिसके परिणामस्वरूप मनुष्यों और जानवरों को श्वसन संबंधी बीमारियाँ हो रही हैं। जल प्रदूषण कारखानों, उद्योगों और सीवरेज से निकलने वाले कचरे को सीधे नदियों में छोड़े जाने के कारण होता है। भूमि प्रदूषण उर्वरकों, कीटनाशकों और अन्य कार्बनिक यौगिकों के उपयोग से होता है। रेडियो, टीवी, स्पीकर आदि द्वारा उत्पन्न ध्वनि, ध्वनि प्रदूषण के कारण है जो की सुनने की समस्या का कारण बन रही हैं। आज प्रदूषण को रोकने और स्वस्थ वातावरण प्राप्त करने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों की बहुत आवश्यकता है।

प्रदूषण पर अनुच्छेद कक्षा 6, 7, 8 के छात्रों के लिए 200 शब्दों में

प्रदूषण वर्तमान में एक गंभीर समस्या बन चुका है। यह समस्या  सिर्फ एक देश की नहीं बल्कि पूरे विश्व की समस्या है। जिसकी चपेट में धरती पर रहने वाले सभी जीव जंतु और अन्य निर्जीव पदार्थ भी आ गए है। इसका दुष्प्रभाव चारों ओर दिख रहा है। प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ है कि प्रकृति में संतुलन न होना, जीवन के लिए सभी जरूरी चीजों का दूषित हो जाना। जैसे- शुद्ध हवा न मिलना, शुद्ध जल न मिलना, शुद्ध भोजन व वातावरण न मिलना। प्रदूषण के मुख्य चार प्रकार है- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण । इनमें से वायु प्रदूषण को सबसे खतरनाक प्रदूषण माना जाता है। इस प्रदूषण का मुख्य कारण कारखानों, उद्योगों और वाहनों से निकलने वाला धुआं है। इन स्रोतों से निकलने वाले हानिकारक धुएं से इंसान और जानवरों में फेफड़ों के कैंसर सहित अन्य सांस की बीमारियां होती हैं। जल प्रदूषण तब होता है जब कारखानों, उद्योगों और सीवरेज से निकलने वाले हानिकारक कचरे सीधे तौर पर नदियों, झीलों और महासागरों के पानी में बहा दिया जाता है और यह प्रदूषण जलीय जीवों को काफी नुकसान पहुंचाता है और मनुष्यों को स्वच्छ पानी तक पहुंच से वंचित कर देता है। भूमि प्रदूषण उर्वरकों, कीटनाशकों और अन्य कार्बनिक पदार्थों के अत्यधिक उपयोग के कारण होता है, जिससे खेती की गई फसलें प्रदूषित हो जाती हैं। नतीजतन, इन दूषित फसलों के सेवन से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। ध्वनि प्रदूषण भारी मशीनरी, वाहन, रेडियो, टीवी, स्पीकर आदि द्वारा उत्पन्न ध्वनि से होती  है जो की सुनने की समस्या और कभी कभी बहरेपन का कारण बनती हैं। इन प्रदूषण के लिए मनुष्य जिम्मेदार है क्योंकि मनुष्य अपने लाभ के लिए दिन रात प्रकृति को हानि पहुंचा रहा है। इसलिए मनुष्य को ही प्रदूषण के रोकथाम के लिए प्रयास करने चाहिए।

प्रदूषण पर अनुच्छेद कक्षा 9, 10, 11, 12 के छात्रों के लिए 300 शब्दों में

प्रदूषण से तात्पर्य पर्यावरण में किसी भी पदार्थ की असंतुलित मात्रा में उपस्थिति से है। यह वैज्ञानिक प्रगति का एक नकारात्मक परिणाम है, जिससे स्वास्थ्य समस्याएं और प्राणियों की अकाल मृत्यु का आधार बन रही है। प्रदूषण प्रकृति के विभिन्न घटकों का संतुलन बिगड़ने से होता है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण– ये सभी प्रदूषण के विविध रूप हैं। नदी-नाले, सागर-महासागर, पर्वत और ओज़ोन परत भी इसी प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं। अत्यधिक वनों का कटाव, आधुनिकीकरण की समस्या और शहरीकरण, बढ़ती जनसंख्या की समस्या आदि वायु प्रदूषण बढ़ने के सबसे बड़े कारण हैं। प्रकृति के अधिकतम शोषण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। ऋतु चक्र में बदलाव आ गया है और शुद्ध वायु का मिलना कठिन होता जा रहा है। बड़े-बड़े कारखानों से निकलने वाला धुआं वायु को प्रदूषित कर रहा है और शहरों और महानगरों से निकलने वाला कचरा साफ पानी के स्रोतों को प्रदूषित कर रहा है। इसके अतिरिक्त, कारखाने गंदा पानी नदियों में छोड़ रहे हैं, जिससे जल प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।  यातायात के आधुनिक साधन जहां एक तरफ वायु प्रदूषण बढ़ा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ रहा है, आकाश में उड़ते हवाई जहाज, तेज रफ्तार वाले जेट विमान, दिन-रात बजते हुए लाउडस्पीकरों से जो ध्वनी उत्पन्न होती है उससे हमारी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुँच रहा है। भूमि प्रदूषण आज के समय की एक और नई समस्या है। खेतों से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए रासायनिक खादों का अधिकाधिक प्रयोग धरती को बंजर बना रहा है। यह प्रदूषण सभी प्राणियों के लिए हानिकारक है, यह हवा, पानी और धूल जैसे विभिन्न माध्यमों से मनुष्यों, जानवरों, पक्षियों, पेड़ों और पौधों को नुकसान पहुँचाता है। आज इसी प्रदूषण के कारण सभी प्राणियों का अस्तित्व खतरे में आ गया है। इसलिए प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को शीघ्रता से कार्य करना चाहिए। इसके लिए वनों की कटाई को रोकना और जल स्रोतों के प्रदूषण को नियंत्रित करना आवश्यक है। यदि मनुष्य प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर ले तो प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यदि नहीं, तो परिणाम अप्रत्याशित होंगे।

Long Essay on Pollution in Hindi प्रदूषण  पर निबंध (1500 शब्दों में)

  pollution essay in hindi – प्रदूषण पर निबंध.

In the post will discuss the major causes of Pollution, Pollution Meaning, effects, and measures to prevent pollution

Essay on Pollution in Hindi is an important topic for Class 7th,8th, 9th, 10th, 11th, and 12th. Here we have compiled important points on pollution Essay in Hindi which is a useful resource for school and college students.

Here are some Important Points for प्रदूषण पर निबंध i.e is covered in this Article

  • Essay on Pollution in Hindi
  • प्रस्तावना (Preface)
  • प्रदूषण का अर्थ (What is Pollution (Meaning))
  • प्रदूषण के कारण (Reason for Pollution)
  • प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Pollution)
  • प्रदूषण के परिणाम (Consequences of Pollution)
  • प्रदूषण को रोकने के उपाय (Steps to Reduce Pollution)
  • उप-संहार / सारांश

प्रदूषण पर निबंध – Essay on Pollution in Hindi

  • प्रदूषण का अर्थ है दोष युक्त,अपवित्र  एवं अशुद्ध | अपने नाम के स्वरूप  प्रदूषण न केवल मानव जाति  बल्कि  समस्त  प्राणियों के लिए हानिकारक है | यह बात आज का मानव भली -भाँति  जानता भी है और समझता भी है |
  • लेकिन यह ज्ञान केवल किताबों तक और बातों तक सीमित है , व्यावहारिक  रूप में मानव की प्रगति की चाहत और सुख सुविधाओं की वृद्धि की इच्छा  में उसके द्वारा किये गए नित नए प्रयोगों  ने इस प्रदूषण में दिन- प्रतिदिन वृद्धि की है |
  • इस  प्रदूषण की सीमा केवल  धरती  ही नहीं बल्कि संपूर्ण वातावरण (वायु , जल , ध्वनि) सम्मिलित है | इस विस्तार सीमा के कारण अब प्रदूषण केवल भूमि प्रदूषण न होकर वायु प्रदूषण , जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण भी है |

Top प्रस्तावना – Preface

  • यदि जल दूषित है तो जल प्रदूषण मानव के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |
  • वायु प्रदूषित है तो सांस  लेना ही दुर्भर हो जायेगा भाव कि जीवन ही खतरे में है | शुद्ध वायु प्राणो के लिए , श्वास प्रक्रिया  के लिए बहुत ही आवश्यक है।

इसी तरह मिट्टी हमारी मूल भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति  के लिए जरूरी है | खाने – पीने के लिए अनाज , शुद्ध हवाओं के लिए पेड़ पौधे  भी हमें इसी से मिलते हैं|  इसके बगैर हम प्राणी जगत और मानव जाती के विकास के बारे में सोच भी नहीं सकते | और यदि वातावरण में शोर अधिक मात्रा में है तो यह ध्वनि प्रदूषण है जो कि  मानसिक असंतुलन का कारण बनता है  |

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प्रदूषण का अर्थ – Meaning of Pollution

भूमि, वायु, जल, ध्वनि में पाए जाने वाले तत्व यदि संतुलित न हो तो असंतुलित होते है | और यह असंतुलन ही प्रदूषण है | इस असंतुलन से इस पर होने वाली फसलें , पेड़ ,आदि सभी प्रभावित होते हैं | इसके अतिरिक्त जो कचरा और कूड़ा करकट हम फेंकते हैं वह भी प्रदूषण का कारण है| अतः  हम कह सकते हैं कि – “पर्यावरण के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई अवांछित परिवर्तन जिसका प्रभाव मनुष्य एवं अन्य जीवों पर पड़े या पर्यावरण की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो प्रदूषण कहलाता है।”

प्रदूषण के कारण  – Reason For Pollution

  • बेकार पदार्थो की बढ़ती मात्रा और उचित  निपटान  के विकल्पों की कमी के कारण समस्या दिन प्रति  दिन बढ़ती जा रही है। कारखानों और घरों से बेकार उत्पादों को खुले स्थानों में रखा  और जलया  जाता है
  • जिससे  भूमि, वायु , जल , ध्वनि  प्रदूषित होते हैं| प्रदूषण विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण और प्राकृतिक कारणों के कारण भी होता है।
  • कीटनाशकों का  बढ़ता उपयोग, औद्योगिक और कृषि  के बेकार पदार्थो के निपटान के लिए विकल्पों की कमी, वनों की कटाई, बढ़ते शहरी करण, अम्लीय वर्षा और खनन इस प्रदूषण के मूल कारक  हैं।
  • ये सभी कारक कृषि गतिविधियों में बाधा डालते हैं और जानवरों और मनुष्यों में विभिन्न बीमारियों का कारण भी  बनते हैं। जनसंख्या वृद्धि भी   कारण है बढ़ते हुए प्रदूषण’ का |

प्रदूषण के स्त्रोत – Sources of Pollution

प्रदूषण के स्त्रोतों को  निम्न  श्रेणियों  में बाँटा जा सकता है  : 1.घरेलू बेकार पदार्थ,जमा  हुआ  पानी,कूलरो  मे पड|  पानी , पौधो मे जम|  पानी 2. रासायनिक पदार्थ जैसे – डिटर्जेंट्स, हाइड्रोजन, साबुन, औद्योगिक एवं खनन के बेकार पदार्थ 3. प्लास्टिक 4. गैसें जैसे- कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, अमोनिया आदि। 5. उर्वरक जैसे- यूरिया, पोटाश । 6.  गंदा पानी 7. पेस्टीसाइड्स जैसे- डी.डी.टी, कीटनाशी। 8. ध्वनि। 9. ऊष्मा। 10. जनसंख्या वृद्धि

प्रदूषण के परिणाम – Consequences of Pollution

  • आज के समय की मुख्य चिंता है बढ़ता हुआ प्रदूषण | कचरा मैदान के आसपास दुर्गंध युक्त  गंध के कारण सांस लेना दुर्भर होता है | और इसके आस पास का स्थान रहने लायक नहीं रहता | विभिन्न श्वास सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं | अपशिष्ट उत्पादों से छुटकारा पाने के लिए जब इन्हे जलाया जाता है तो वायु प्रदूषित होती है |
  •  अपशिष्ट  पदार्थों के सीधे संपर्क में आने से त्वचा सम्बन्धी रोग,  विषाक्त पदार्थ विषैले जीव उत्पन्न करते हैं जो की जानलेवा रोगों के कारण बनते हैं | जैसे कि  मच्छर, मख्खियाँ  इत्यादि | कृषि खराब होती है और खाने पीने की वस्तुएँ खाने के लायक नहीं रहती |
  • पीने   का जल जो कि अमृत माना जाता था वह भी रोगो का साधन बन जाता है | ध्वनि जो की संगीत पैदा करती थी शोर बन कर मानसिक असंतुलन पैदा करती है |धरती पर ग्रीन कवच भी बहुत कम लगभग तीन प्रतिशत ही बच है जो कि चिन्तनीय है |

प्रदूषण को रोकने के उपाय – Measures to Prevent pollution

दैनिक जीवन में कुछ छोटे बदलाव करके  इसे कम करने की दिशा में योगदान कर सकते हैं। 1.बायोडिग्रेडेबल उत्पादों का उपयोग करें। क्योंकि बायोडिग्रेडेबल कचरे का निपटान करना आसान है। 2.भोजन कीटनाशकों के उपयोग के बिना उगाया जाए, जैविक सब्जियां और फल उगाए जाए | 3.पॉली बैग और प्लास्टिक के बर्तनों और वस्तुओं के उपयोग से बचें। क्योंकि किसी भी रूप में प्लास्टिक का निपटान करना मुश्किल है। 5.कागज़ या कपड़े की थैलियों का उपयोग करें । 6. अलग-अलग डस्टबिन में गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग निपटाने से कचरा अलग हो जाता है। भारत सरकार ने पहले ही इस अभियान को शुरू कर दिया है और देश भर के विभिन्न शहरों में विभिन्न क्षेत्रों में कई हरे और नीले डस्टबिन लगाए गए हैं। 7.कागज़  उपयोग को सीमित करें। कागज़ बनाने के लिए प्रत्येक वर्ष कई पेड़ काटे जाते हैं। यह   प्रदूषण का एक कारण है। डिजिटल प्रयोग  अच्छा विकल्प  है। 8. पुन: उपयोग योग्य डस्टर और झाड़ू का उपयोग करें। 9.प्रदूषण  हानि पहुँचाता है अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के  इस बारे में जागरूक करें । 10.घरों का कचरा बाहर खुले में नहीं फेंकना चाहिए। 11.खनिज पदार्थ्   भी सावधानी  से प्रयोग करने चाहिए  ताकि  भविष्य के लिये भी प्रयोग किये ज। सके । 12. हमें वायु को भी कम दूषित करना चाहिए और अधिक से अधिक पेड पौधे  लगाने चाहिये  ताकि अम्लीय वर्षा को रोक।| ज। सके  । 13. यदि  हम बेहतर जीवन जीन| चाहते  हैं और वातवरन मे  शुध्ध्ता चाहते  हैं वनो को सरन्क्षित  करना  होगा  | 14.हमें ऐसी चीजों का इस्तेमाल करना चाहिए जिन्हें हम दोबारा से प्रयोग में ला सके। उपसंहार

उप-संहार / सारांश – Essay on Pollution in Hindi

प्रदूषण एक प्रकार का धीमा जहर है जो हवा, पानी, धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य वरन् जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी सड़ा-गलाकर नष्ट कर देता है। आज प्रदूषण के कारण ही  प्राणियों का अस्तित्व खतरे में है। इसी कारण बहुत से प्राणी, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, वन्य प्राणी विलुप्त हो गए हैं। यदि इसी तरह से प्रदूषण फैलता रहा तो जीवन बहुत ही कठिन हो जायेगा | न खाने को कुछ मिलेगा और सांस लेने के लिए शुद्ध हवा भी नहीं बचेगी | प्यास बुझाने के लिए पानी ढूंढने से नहीं मिलेगा | जीवन बहुत ही असंतुलित होगा | ऐसी परस्थितियो से बचने के लिए हमें पर्यावरण संरक्षण की और कदम बढ़ाने होंगे | जीवन आरामदायक बनाने की अपेक्षा उपयोगी बनाना होगा  कर्तव्यपरायणता की ओर कदम बढ़ने होंगे | विकास का  केवल  एक रास्ता शहर नही  गाँव  की  जीवन  शैली पर चलो प्रकृति से दूर नही , विपरीत नही बल्कि  इसके साथ्  हो  चलो जीवन आसान नही श्रमिक  और कृषक से हो चलो श्रमिक  और कृषक से हो चलो शुद्धता  जो चाहिये तो जीवन शैली बदल चलो ,प्र्दूषन को दूर कर प्रकृति से दूर नही, पास हो चलो, पास हो चलो |

प्रदूषण पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

इन सवालों के जवाब आपको प्रदूषण पर अपने निबंध में शामिल करने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु प्रदान करेंगे।

प्रदूषण वास्तव में क्या है? पर्यावरण में मौजूद संदूषण या रसायन, या पर्यावरण में उनका परिचय, जिसे प्रदूषण कहा जाता है। इन प्रदूषकों या पदार्थों की उपस्थिति या परिचय जीवित प्राणियों और प्राकृतिक दुनिया के लिए हानिकारक या असुविधाजनक हो सकता है।

पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न रूप क्या हैं? प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण ।

प्रदूषित वायु में योगदान करने वाले कारक क्या हैं? वायु प्रदूषण कई अलग-अलग कारकों का परिणाम है, जिसमें ऑटोमोबाइल और औद्योगिक गतिविधियों से उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन का जलना और जंगलों का विनाश शामिल है।

प्रदूषित जल के कुछ परिणाम क्या हैं? पानी का प्रदूषण जलीय जीवन के लिए हानिकारक हो सकता है, जो तब पारिस्थितिक तंत्र को परेशान कर सकता है, और जो पानी वे पीते हैं उसे दूषित करके लोगों के स्वास्थ्य को भी खतरे में डाल सकते हैं।

मृदा संदूषण वास्तव में क्या है? मिट्टी में जहरीले यौगिकों की उपस्थिति, जो पौधों, जानवरों और अंततः इन संसाधनों पर निर्भर मनुष्यों के लिए हानिकारक हो सकती है, को मृदा प्रदूषण कहा जाता है।

“ध्वनि प्रदूषण” से वास्तव में क्या अभिप्राय है? ध्वनि जो अत्यधिक, अवांछित, या परेशान करने वाली है जो मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ वन्यजीवों के स्वास्थ्य और प्राकृतिक पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालने की क्षमता रखती है, ध्वनि प्रदूषण कहलाती है।

औद्योगीकरण किन विशिष्ट तरीकों से प्रदूषण की समस्या को बढ़ाता है? वायु, जल और भूमि में हानिकारक रसायनों और अपशिष्ट उत्पादों का निर्वहन सबसे आम तरीकों में से एक है जिससे औद्योगीकरण प्रदूषण का कारण बनता है। “प्रकाश प्रदूषण” का वास्तव में क्या अर्थ है? “प्रकाश प्रदूषण” शब्द कृत्रिम प्रकाश की अधिकता या इसके गलत दिशा को संदर्भित करता है, दोनों के मनुष्यों के स्वास्थ्य के साथ-साथ वन्य जीवन और पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य पर हानिकारक परिणाम हो सकते हैं।

प्रदूषण कम करने के समग्र लक्ष्य में व्यक्ति कैसे योगदान दे सकते हैं? कचरे में कमी , ऊर्जा का संरक्षण , सार्वजनिक परिवहन या हाइब्रिड वाहन का उपयोग, और पारिस्थितिक रूप से अनुकूल उत्पादों को बढ़ावा देने के सभी तरीके हैं जिनमें व्यक्ति प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में योगदान दे सकते हैं।

प्रदूषण को रोकने और साफ करने में सरकार की क्या भूमिका है? प्रदूषण के स्तर को कम करने और प्रदूषण को रोकने के लक्ष्यों के साथ सरकार द्वारा कानूनों और विनियमों की स्थापना और पालन, प्रदूषण नियंत्रण के दो सबसे महत्वपूर्ण पहलू हैं।

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प्रदूषण पर निबंध 100, 150, 250 & 300 शब्दों में (10 lines Essay on Pollution in Hindi)

how to stop pollution in hindi essay

प्रदूषण पर निबंध (Pollution Essay in Hindi ) – प्रदूषण के प्रति जागरूक होना इन दिनों सभी छात्रों के लिए काफी अनिवार्य है। आने वाली पीढ़ियों के लिए दुनिया का एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए हर बच्चे को पता होना चाहिए कि मानवीय गतिविधियाँ पर्यावरण और प्रकृति पर कैसे प्रभाव छोड़ रही हैं। प्रदूषण पर निबंध (Pollution Essay in Hindi ) यह विषय काफी महत्वपूर्ण है। और, स्कूली बच्चों को ‘ प्रदूषण निबंध पर (Pollution Essay in Hindi )’ सहजता से एक दिलचस्प निबंध लिखना सीखना चाहिए। नीचे एक नज़र डालें। 

प्रदूषण निबंध 10 पंक्तियाँ (Pollution Essay 10 Lines in Hindi)

  • 1) प्रदूषण प्राकृतिक संसाधनों में कुछ अवांछित तत्वों को मिलाने की क्रिया है।
  • 2) प्रदूषण के मुख्य प्रकार वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और भूमि प्रदूषण हैं।
  • 3) प्रकृति के साथ-साथ मानवीय गतिविधियाँ, दोनों प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं।
  • 4) प्रदूषण के प्राकृतिक कारण बाढ़, जंगल की आग और ज्वालामुखी आदि हैं।
  • 5) प्रदूषण एक राष्ट्रीय नहीं बल्कि एक वैश्विक समस्या है।
  • 6) प्रदूषण को रोकने के लिए पुन: उपयोग, कम करना और पुनर्चक्रण सबसे अच्छे उपाय हैं।
  • 7) अम्ल वर्षा और ग्लोबल वार्मिंग प्रदूषण के परिणाम हैं।
  • 8) प्रदूषण हमेशा जानवरों और इंसानों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • 9) प्रदूषित हवा और पानी इंसानों और जानवरों में कई बीमारियों का कारण बनते हैं।
  • 10) हम पर्यावरण के अनुकूल संसाधनों और सौर पैनलों का उपयोग करके प्रदूषण को रोक सकते हैं।

प्रदूषण पर निबंध 100 शब्द (Pollution Essay 100 Words in Hindi)

प्रदूषण पर निबंध (Pollution Essay in Hindi ) प्रदूषण इन दिनों एक बड़ी समस्या बन गया है। तेजी से हो रहे औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण पर्यावरण जिसमें हवा, पानी और मिट्टी शामिल है, प्रदूषित हो गया है। वनों की कटाई और औद्योगीकरण के कारण, हवा अत्यधिक प्रदूषित हो रही है, और इससे ग्लोबल वार्मिंग हो रही है। आज सभी जल स्रोत अत्यधिक प्रदूषित हैं। कीटनाशकों और उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग ने मिट्टी को बुरी तरह प्रदूषित कर दिया है। पटाखों, लाउडस्पीकरों आदि का प्रयोग। हमारी सुनने की क्षमता को प्रभावित करता है प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। यह सिरदर्द, ब्रोंकाइटिस, हृदय की समस्याओं, फेफड़ों के कैंसर, हैजा, टाइफाइड, बहरापन आदि का कारण बनता है। प्रदूषण के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। हमें इस मुद्दे को गंभीरता और गंभीरता से लेना होगा।

प्रदूषण पर निबंध 150 शब्द (Pollution essay 150 Words in Hindi)

प्रदूषण पर निबंध (Pollution Essay in Hindi ) – यह एक बड़ी पर्यावरणीय समस्या है। जब पर्यावरण दूषित होता है तो प्रदूषण उत्पन्न होता है। पर्यावरण में तीन प्रमुख प्रकार के प्रदूषण हैं। मृदा प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण आदि।

प्रदूषण के कुछ प्रमुख कारण हैं, जैसे ईंधन वाहनों का अत्यधिक उपयोग, कृषि में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग।

प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य को बहुत बुरी तरह प्रभावित करता है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है। वायु प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारियां और फेफड़ों से जुड़ी अन्य समस्याएं होती हैं। जल प्रदूषण जल को प्रदूषित करता है। ध्वनि प्रदूषण से बीपी की समस्या और सुनने की समस्या होती है। यह तनाव का कारण भी बनता है। मृदा प्रदूषण से फसलों के उत्पादन में कमी आती है, हमें इसे रोकना चाहिए। उत्पादन को भी बनाए रखने के द्वारा। औद्योगिक कचरे का उचित उपचार, वर्षा जल की आपूर्ति का भंडारण, प्लास्टिक उत्पादों को कम करना और इलेक्ट्रॉनिक वाहनों का उपयोग करना।इस प्रकार के उपाय करके हम प्रदूषण पर भी नियंत्रण कर सकते हैं।

इनके बारे मे भी जाने

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प्रदूषण पर निबंध 250 शब्दों में – 300 शब्दों में (Essay on pollution in Hindi)

प्रदूषण पर निबंध (Pollution Essay in Hindi ) प्रदूषण कई अलग-अलग रूपों में होता है। यह पूरी दुनिया में एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा बन गया है। हवा, जमीन, मिट्टी, पानी आदि में कोई भी अप्रिय और अप्रिय परिवर्तन। प्रदूषण में योगदान देता है। ये सभी परिवर्तन रासायनिक, जैविक या भौतिक परिवर्तनों के रूप में हो सकते हैं। प्रदूषण फैलाने वाले माध्यम को प्रदूषक कहते हैं।

दुनिया में प्रदूषण को रोकने के लिए कई कानून बनाए गए हैं। भारत में पर्यावरण की सुरक्षा और उसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बनाया गया कानून पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 है।

आइए हम विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों पर विस्तार से एक नज़र डालें:

वायु प्रदुषण

जब पूरा वातावरण आर्थिक और औद्योगिक गतिविधियों के कारण निकलने वाली हानिकारक जहरीली गैसों से भर जाता है, तो इससे वायु और पूरा वातावरण प्रदूषित होता है। इससे वायु प्रदूषण होता है।

यह प्रदूषण का एक और प्रमुख रूप है जो प्रकृति के लिए बहुत विनाशकारी है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पानी के प्राकृतिक स्रोत दिन-ब-दिन कम होते जा रहे हैं और इसने पानी को एक दुर्लभ वस्तु बना दिया है। दुर्भाग्य से, इन महत्वपूर्ण समय में भी, ये शेष जल स्रोत कई स्रोतों (जैसे औद्योगिक अपशिष्ट, कचरा निपटान आदि) से अशुद्धियों से दूषित हो रहे हैं, जो उन्हें मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त बनाता है।

कचरा प्रदूषण

जब लोग अपशिष्ट निपटान के उचित तंत्र का पालन नहीं करते हैं, तो इसका परिणाम कचरे का संचय होता है। यह बदले में कचरा प्रदूषण का कारण बनता है। इस समस्या का समाधान करने का एकमात्र साधन यह सुनिश्चित करना है कि अपशिष्ट निपटान के लिए एक उचित प्रणाली मौजूद है जो पर्यावरण को दूषित नहीं करती है।

ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण के पीछे सामान्य कारण उद्योग, योजनाओं और अन्य स्रोतों से आने वाली ध्वनि है जो अनुमेय सीमा से अधिक तक पहुँचती है। स्वास्थ्य और शोर के बीच एक सीधा संबंध है जिसमें उच्च रक्तचाप, तनाव से संबंधित आवास, श्रवण हानि और भाषण हस्तक्षेप शामिल हैं।

Pollution Essay से सबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):

Q.1 प्रदूषण के प्रभाव क्या हैं.

A.1 प्रदूषण अनिवार्य रूप से मानव जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। यह हमारे द्वारा पीने वाले पानी से लेकर हवा में सांस लेने तक लगभग सभी चीजों को खराब कर देता है। यह स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाता है।

प्रश्न 2 प्रदूषण को कैसे कम किया जा सकता है?

उ.2 हमें प्रदूषण कम करने के लिए व्यक्तिगत कदम उठाने चाहिए। लोगों को चाहिए कि वे अपने कचरे को सोच समझकर विघटित करें, उन्हें अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। इसके अलावा, जो कुछ वे कर सकते हैं उसे हमेशा रीसायकल करना चाहिए और पृथ्वी को हरा-भरा बनाना चाहिए।

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  • प्रदूषण पर निबंध (Essay on Pollution in Hindi): हिंदी में प्रदूषण पर 200-500 शब्दों में निबंध

Updated On: September 02, 2024 06:32 pm IST

  • प्रदूषण पर निबंध हिंदी में 500+ शब्दों में (Long Essay …
  • प्रदूषण पर निबंध हिंदी में 250+ शब्दों में (Short Essay …

प्रदूषण पर निबंध 10 लाइन (Essay on Pollution 10 line)

प्रदूषण पर निबंध

प्रदूषण पर निबंध हिंदी में 500+ शब्दों में (Long Essay on pollution in Hindi)

प्रस्तावना (introduction), प्रदूषण पर निबंध (essay on pollution in hindi) - प्रदूषण की वर्तमान स्थिति.

प्रदूषण हमारे जीवन के उन प्रमुख विषयों में से एक है, जो इस समय हमारी पृथ्वी को व्यापक स्तर पर नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो लंबे समय से चर्चा व चिंता का विषय रहा है तथा 21वीं सदी में इसका हानिकारक प्रभाव बड़े पैमाने पर महसूस किया जा रहा है। हालांकि विभिन्न देशों की सरकारों ने इसके प्रभाव को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी इस समस्या के समाधान करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है।

इससे कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं में गड़बड़ी आती है। इतना ही नहीं, आज कई वनस्पतियां और जीव-जंतु या तो विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रदूषण की मात्रा में तेजी से वृद्धि के कारण पशु तेजी से न सिर्फ अपना घर खो रहे हैं, बल्कि जीवित रहने लायक प्रकृति को भी खो रहे हैं। प्रदूषण ने दुनिया भर के कई प्रमुख शहरों को प्रभावित किया है। इन प्रदूषित शहरों में से अधिकांश भारत में ही स्थित हैं। दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली, कानपुर, बामेंडा, मॉस्को, हेज़, चेरनोबिल, बीजिंग आदि शामिल हैं। हालांकि इन शहरों ने प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं, मगर फिर भी उन्हें अभी एक लंबा रास्ता तय करना है। इन स्थानों की वायु गुणवत्ता खराब है और भूमि तथा जल प्रदूषण में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है। अब समय आ गया है कि इन शहरों से प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए, यहाँ मौजूद प्रशासन एक ठोस रणनीति तैयार करके उसपर अमल करें।

प्रदूषण के कारण (Due to Pollution)

प्रदूषण होने के पीछे कई बड़े कारण हैं। ये वो कारण हैं जिसने प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या को जन्म दिया है। प्रदूषण ने प्रकृति और मानव जीवन में ज़हर के समान दूषित और जहरीले तत्वों को घोलकर हमें मौत के नज़दीक लाकर खड़ा कर दिया है। प्रदूषण के बड़े कारणों में निम्नलिखित कारण शामिल हैं, जैसे-

  • वनों को तेजी से काटना
  • कम वृक्षारोपण
  • बढ़ती जनसंख्या
  • बढ़ता औद्योगिकीकरण
  • प्रकृति के साथ छेड़छाड़
  • कारखाने, वाहन और मशीनें
  • वैज्ञानिक संसाधनों का अधिक उपयोग
  • कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग
  • तेजी से बढ़ता शहरीकरण
  • प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती खपत

ये सभी वो कारण हैं जिन्होंने प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। इनके अलावा न जाने और कितने ही ऐसे छोटे-बड़े कारण हैं जिनका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है। एक सबसे गंभीर कारण है और वो है देश की बढ़ती हुई जनसंख्या। ये वो कारण है जिसकी वजह से तेजी से पेड़ों की कटाई की जा रही है, औद्योगिकीकरण को और तेज़ किया जा रहा, मशीनों के प्रयोग में लगातार बढ़ोत्तरी की जा रही है, गांवों को धीरे-धीरे खत्म करके उन्हें शहर में बदला जा रहा है, लोग रोज़गार के लिए अपने गांवों को छोड़कर शहरों में जा रहे हैं, प्राकृतिक संसाधनों और खनिजों का उपयोग लोग असीमित मात्रा में कर रहे हैं जिस वजह से प्रदूषण का स्तर लगातर बढ़ता ही जा रहा है। पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए पेड़-पौधे सबसे अहम भूमिका अदा करते हैं लेकिन हम मानव जाति के लोग अपनी ज़रूरतों के लालच में इन्हें बढ़ी ही बेरहमी से खत्म कर रहे हैं।

प्रदूषण को रोकने में यूएनओ की भूमिका (UNO's role in Preventing Pollution)

संयुक्त राष्ट्र ने वायु प्रदूषण कम करने और सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के इरादे से  साझेदार संगठनों के साथ मिलकर सरकारों से ‘क्लीन एयर इनिशिएटिव’ से जुड़ने का आह्वान किया है। सितंबर में यूएन जलवायु शिखर वार्ता से पहले सरकारों से वायु की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने की अपील की गई है ताकि नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा हो सके और 2030 तक जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण नीतियों में एकरूपता लाई जा सके। सरकार हर स्तर पर ‘Clean Air Initiative’ या ‘स्वच्छ वायु पहल’ में शामिल हो सकती है और कार्रवाई के लिए संकल्प ले सकती है। उदाहरण के तौर पर:

वायु की गुणवत्ता और जलवायु परिवर्तन की नीतियों को लागू करने से ताकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता के लिए निर्धारित मानक हासिल किए जा सकें।

ई-मोबिलिटी और टिकाऊ मोबिलिटी नीतियों और कारर्वाई को लागू करने से ताकि सड़क परिवहन के ज़रिए होने वाले उत्सर्जन में कमी लाई जा सके।

प्रगति पर नज़र रखना, अनुभवों और बेस्ट तरीक़ों को एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के ज़रिए साझा करना।

प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए प्रमुख कदम (Steps taken to Curb Pollution)

बसों में परियायंत्र फिल्ट्रेशन इकाइयों (Pariyayantra Filtration Units) की स्थापना: एक प्रायोगिक अध्ययन के हिस्से के रूप में 30 बसों की छतों पर परियायंत्र फिल्ट्रेशन इकाइयों को इनस्टॉल किया गया।

यातायात चौराहों पर ‘WAYU’ वायु शोधन इकाइयाँ: दिल्ली के प्रमुख यातायात चौराहों पर रणनीतिक रूप से कुल 54 ‘WAYU’ वायु शोधन इकाइयाँ स्थापित की गई हैं।

परिवेशी वायु प्रदूषण में कमी के लिये आयनीकरण तकनीक: इस तकनीक का उद्देश्य आयनीकरण प्रक्रियाओं के माध्यम से प्रदूषकों को निष्प्रभावी करना है जिससे लक्षित क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

इलेक्ट्रिक वाहन (EV) स्वायत्त प्रौद्योगिकी में प्रगति: EV-आधारित स्वायत्त वाहनों पर केंद्रित एक स्वायत्त नेविगेशन फाउंडेशन की स्थापना DST अंतःविषयक साइबर-भौतिक प्रणालियों पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Interdisciplinary Cyber-Physical Systems- NM-ICPS) के तहत की गई थी।

प्रदूषण पर निबंध (Essay on pollution in Hindi)- प्रदूषण के प्रकार (Types of Pollution)

वायु प्रदूषण: वायु प्रदूषण मुख्य रूप से वाहनों से गैस के उत्सर्जन के कारण होता है। बेहद ही हानिकारक गैस कारखानों और उद्योगों में उप-उत्पाद के रूप में उत्पादित होती हैं, प्लास्टिक और पत्तियों जैसे जहरीले पदार्थों को खुले में जलाने से, वाहनों के एग्जॉस्ट से, रेफ्रीजरशन उद्योग में उपयोग किए जाने वाले सीएफ़सी से वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी होती है।

हाल के दशक में बेहतर आय की वजह से भारत में सड़कों पर वाहनों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी देखी गई है। ये सल्फर डाइऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों को फैलाने के लिए भी जिम्मेदार हैं। ये गैसें पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा को कम करने के लिए जिम्मेदार हैं। इनकी वजह से सांस लेने की कई समस्याएं, श्वसन रोग, कई प्रकार के कैंसर आदि जैसी बीमारियाँ तेजी से पनप रही हैं। ध्वनि प्रदूषण: वायु प्रदूषण में योगदान देने के अलावा, भारतीय सड़कों पर बड़ी संख्या में मौजूद वाहन, ध्वनि प्रदूषण में भी भरपूर योगदान देते हैं। यह उन लोगों के लिए खतरनाक है जो शहरी क्षेत्रों में या राजमार्गों के पास रहते हैं। यह लोगों में चिंता और तनाव जैसे संबंधित मुद्दों का कारण बनता है। ध्वनि प्रदूषण दो प्रकार से होता है- प्राकृतिक स्रोतों से तथा मानवीय क्रियाओं से। 1. प्राकृति स्रोतों से - बादलों की बिजली की गर्जन से, अधिक तेज वर्षा, आँधी, ओला, वृष्टि आदि से शोर गुल अधिक होता है। 2. मानवीय क्रियाओं द्वारा - शहरी क्षेत्रों में स्वचालित वाहनों, कारखानों, मिलों, रेलगाड़ी, वायुयान, लाउडस्पीकार, रेडियों, दूरदर्शन, बैडबाजा, धार्मिक पर्व, विवाह उत्साह, चुनाव अभियान, आन्दोलन कूलर, कुकर आदि से ध्वनि प्रदूषण होता है।

जल प्रदूषण: जल प्रदूषण आजकल मनुष्यों के सामने मौजूद सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। सीवेज अपशिष्ट, उद्योगों या कारखानों आदि के कचरे को सीधे नहरों, नदियों और समुद्रों जैसे जल निकायों में डाला जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप समुद्री जीव जंतुओं के आवास का नुकसान हो रहा है और जल निकायों में घुली ऑक्सीजन का स्तर भी घट रहा है। पीने योग्य पानी की कमी जल प्रदूषण का एक बड़ा दुष्प्रभाव है। लोग प्रदूषित पानी पीने को मजबूर हैं जिससे हैजा, डायरिया, पेचिश आदि रोग होने का खतरा बना रहता है।

भूमि प्रदूषण: भारतीय आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है। इस काम के लिए, किसान बहुत सारे शाकनाशी, उर्वरक, कवकनाशी और अन्य समान प्रकार के रासायनिक यौगिकों का उपयोग करते हैं। इनके इस्तेमाल से मिट्टी दूषित होती है और इससे मिट्टी आगे फसल उगाने लायक नहीं रह जाती। इसके अलावा, अगर अधिकारी जमीन पर पड़े औद्योगिक या घरेलू कचरे को डंप नहीं करते हैं, तो यह भी मिट्टी के प्रदूषण में बड़ा योगदान देता है। इसकी वजह से मच्छरों के प्रजनन में वृद्धि होती है, जो डेंगू जैसी कई जानलेवा बीमारियों का कारण बनता है। प्रकाश प्रदूषण: बढ़ती बिजली की जरुरत और काम के लिए बढ़ती प्रकाश की जरुरत भी प्रकाश प्रदुषण कारण है। बढ़ती गाड़ियों के कारण हाई वोल्ट के बल्ब का इस्तेमाल, किसी कार्यक्रम में जरुरत से ज्यादा डेकोरेशन करना, एक कमरे में अधिक बल्ब को लगाना आदि भी प्रदूषण के कारण है। रेडियोएक्टिव प्रदूषण: ठोस, तरल या गैसीय पदार्थ में जहाँ अनायास या अवांछनीय रेडियोधर्मी पदार्थ की उपस्थिति होती है, उसे रेडियोएक्टिव प्रदूषण कहते हैं। इसका प्रभाव पर्यावरण, जीव जन्तुओं और मनुष्यों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। थर्मल प्रदूषण: ओधोगिकी के कारण थर्मल प्रदूषण फैलता है। पेट्रोलियम रिफाइनरी, पेपर मील्स, शुगर मील्स, स्टील प्लांट्स जैसे ओधोगिकी पानी का इस्तेमाल करते हैं। या तो उस पानी को गर्म किया जाता है या उपकरणो को ठंडा करने केलिए इस्तेमाल किया जाता है। और फिर उस पानी को नदी में बहा दिया जाता है। इससे पानी की तापमान में वृद्धि होती है और पानी प्रदूषित होता है और इसमें थर्मल पावर प्लांट के कारण भी पानी प्रदूषित होता है। दृश्य प्रदूषण: दृश्य प्रदूषण मनुष्यों के देखने वाले क्षेत्रों में नकारात्मक बदलाव करने पर होते हैं। जैसे हरे भरे पेड़ पौधों को काट देना, मोबाइल आदि के टावर लगा देना। बिजली के खम्बे, सड़क आदि स्थानों में बिखरे कचरे आदि इस श्रेणी में आते हैं। यह एक तरह के बनावट के कारण भी होता है, जिसे बिना पर्यावरण आदि को देखे ही बना दिया जाता है। जैसे किसी स्थान पर केवल इमारत, मकान आदि का होना।

प्रदूषण पर निबंध (Pradushan Par Nibandh) - प्रदूषण पर प्रतिबंध लगाने के विभिन्न तरीके

  • वाहनों का प्रयोग सीमित करें: वाहन प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है। वाहनों का प्रयोग कम से कम करें। यदि संभव हो, तो उन्हें व्यक्तिगत उपयोग के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों से बदलने का प्रयास करें। आने-जाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग करें।
  • अपने आस-पास साफ-सफाई रखें: एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हम अपने घर के आस-पास के क्षेत्र को साफ-सुथरा रखें। हमें कचड़ा इधर-उधर फेंकने की बजाय कूड़ेदान में फेकना चाहिए।
  • पेड़ लगाएं: कई कारणों से पेड़ों की कटाई जैसे सड़कों का चौड़ीकरण, घर बनाना आदि के कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषण में वृद्धि हुई है। पौधे वातावरण में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड आदि जैसे हानिकारक गैसों को अवशोषित करते हैं। चूंकि वे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन छोड़ते हैं, इसलिए हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम अधिक से अधिक मात्रा में पेड़ लगाएं और उनकी देखभाल करें।
  • पटाखों का इस्तेमाल बंद करें: जब आप दशहरा, दिवाली या किसी अन्य अवसर पर त्योहार मनाते हैं, तो पटाखों का इस्तेमाल ना करें। यह ध्वनि, मिट्टी के साथ-साथ प्रकाश प्रदूषण का कारण बनता है। साथ ही इसका हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  • प्रदूषण को कम करने के लिए हमें अपने गांवों को बचाकर रखना होगा, वहाँ की हरियाली को खत्म होने से रोकना होगा और शुद्ध हवा और पानी को दूषित होने से बचाना होगा। इन छोटे-छोटे प्रयासों से ही हम प्रदूषण को खत्म करने के अपने सपने को पूरा कर सकेंगे।

निष्कर्ष (Conclusion)

उपरोक्त सभी बातों को पढ़कर हम निष्कर्ष के तौर पर यह कह सकते हैं कि पर्यावरण को दूषित होने से रोकने के लिए हमें मिलकर छोटे-छोटे प्रयास करने की ज़रूरत है, तभी देश में कोई बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। हमेशा किसी बड़े बदलाव की शुरुआत एक छोटे रूप में ही होती है। प्रकृति को कुदरत और ईश्वर दोनों ने ही मिलकर इस उम्मीद से रचा है कि हम मनुष्य उसके साथ बिना कुछ गलत किए उसकी हमेशा रक्षा करेंगे और उसकी शुद्धता, सुंदरता और नवीनता को बरकरार रखेंगे। इसलिए आइये मिलकर शुरुआत करें और पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में सहयोग करें।

प्रदूषण पर निबंध हिंदी में 250+ शब्दों में (Short Essay on pollution in Hindi)

प्रदूषण पर निबंध (Essay on pollution in Hindi)- हम सभी इस बात को लेकर चिंचित हैं कि हमारे देश में प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है। प्रदूषण की समस्या बड़े शहरों में ज़्यादा बढ़ गई है। शहरों में निवास कर रहे लोगों पर प्रदूषण इस कदर हावी हो चुका है कि अब वह उनके स्वास्थ्य को भी खराब करने लगा है। इसीलिए शहरो में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए अब वहाँ के लोगों में प्रदूषण के प्रति जागरूकता फैलाना बेहद ज़रूरी हो गया है। प्रदूषण से न सिर्फ मनुष्यों को बल्कि सभी प्राकृतिक चीज़ें जैसे पेड़-पौधे, जानवर, हवा, पानी, मिट्टी, खाने-पीने की चीज़ें आदि सभी को हानि पहुँच रही है। जो प्राकृतिक घटनाएँ, आपदाएँ, महामारियाँ आदि समय-समय पर अपना प्रकोप दिखाती हैं, उसके लिए भी प्रदूषण को ही जिम्मेदार ठहरना गलत नही होगा।

शहरों में प्रदूषण

वाहन परिवहन के कारण शहरों में प्रदूषण की दर गांवों की तुलना में अधिक है। कारखानों और उद्योगों के धुएं शहरों में स्वच्छ हवा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं और इसे सांस लेने के लायक नहीं बनाते हैं। बड़ी सीवेज प्रणाली से गंदे पानी, घरों से निकलने वाला कचरा, कारखानों और उद्योगों के उत्पादों द्वारा नदियों, झीलों और समुद्रों में पानी को विषाक्त और अम्लीय बना दिया जाता है।

गांवों में प्रदूषण

हालाँकि शहरों की तुलना में गाँवों में प्रदूषण की दर कम है, लेकिन तेजी से हो रहे शहरीकरण के परिणामस्वरूप गाँवों का स्वच्छ वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है। कीटनाशकों और उर्वरकों के परिवहन और उपयोग में वृद्धि ने गाँवों में हवा और मिट्टी की गुणवत्ता को अत्यधिक प्रभावित किया है। इसने भूजल के दूषित होने से विभिन्न बीमारियों को जन्म दिया है।

प्रदूषण की रोकथाम

शहरों और गांवों में प्रदूषण को केवल लोगों में सामाजिक जागरूकता बढ़ाने से रोका जा सकता है। प्रदूषण कम करने के लिए वाहन के उपयोग को कम करने, अधिक पेड़ लगाने, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को सीमित करने, औद्योगिक कचरे का उचित निपटान आदि जैसी पहल की जा सकती हैं। सरकार को हमारे ग्रह को प्रदूषण के खतरों से बचाने के लिए प्लास्टिक और पॉलिथीन के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए।

  • आजकल बढ़ती आधुनिकता के कारण प्रदूषण की मात्रा अत्यधिक बढ गई है।
  • पेड़-पौधों के काटे जाने से या नष्ट कर देने से स्वच्छ वायु नहीं मिल पाती जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
  • घर से निकलने वाले कूड़े कचरे को नदियों में बहा देने से भी जल प्रदूषण काफी ज्यादा बढ़ गया है।
  • जगह-जगह कूड़ा कचरा फेंकने से प्रकृति दूषित होती जा रही है।
  • बढ़ते प्रदूषण के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड जेैसी जहरीली गैसों की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है।
  • कारखानों के अधिक विकास के कारण वायु प्रदूषण की काफी मात्रा बढ़ गई है जिसके कारण आम लोग परेशान है।
  • बढ़ते प्रदूषण के कारण कई प्रकार की बीमारियां पैदा हो रही है जिनका इलाज कर पाना मुश्किल हो रहा है।
  • हमारे देश में रोजाना करोड़ों टन कूड़ा करकट निकलता है जो कि प्रदूषण का कारण बनता है।
  • जल प्रदूषण के कारण समुद्री जीवो पर भी प्रदूषण का प्रभाव देखने को मिल रहा है।
  • बढ़ते उद्योग धंधे नदियों में अपने दूषित जल को छोड़ते हैं जिससे जल प्रदूषण बढ़ रहा है।

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प्रदूषण पर निबंध – Essay on Pollution in Hindi

Essay on Pollution in Hindi : दोस्तों आज हमने प्रदूषण पर निबंध लिखा है. वर्तमान में प्रदूषण के कारण मानव जीवन और अन्य प्राणियों के जीवन पर बहुत अधिक बुरा प्रभाव पड़ा है. प्रदूषण के कारण असमय मृत्यु होना तो जैसे आम बात ही हो गई है.

इसलिए प्रदूषण को रोकना बहुत आवश्यक है सभी विद्यार्थियों को प्रदूषण के बारे में जानकारी होना आवश्यक है.

इसलिए Essay on Pollution कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए है. इस निबंध को हमने सभी कक्षा के विद्यार्थियों की सुविधा को देखते हुए अलग-अलग शब्द सीमा में लिखा है.

Essay on Pollution in Hindi

Get Some Essay on Pollution in Hindi under 100, 250, 500 and 2000 words

Short Essay on Pollution in Hindi 100 Words

प्रदूषण यह एक धीमा जहर है जो कि दिन-प्रतिदिन हमारे पर्यावरण और हमारे जीवन को नष्ट करता जा रहा है. प्रदूषण को मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण..

वायु प्रदूषण वाहनों से निकलने वाले धुए, कल कारखानों, उड़ती हुई धूल इत्यादि कारणों से होता है. ध्वनि प्रदूषण वाहनों के हॉर्न, मशीनों के चलने से और अन्य शोर उत्पन्न करने वाली वस्तुओं से होता है.

जल प्रदूषण नदियों और तालाबों में फैक्ट्रियों का अपशिष्ट पदार्थ और प्लास्टिक कचरा व अन्य वस्तुएं डालने से होता है.

अगर हमें पर दूसरों को कम करना है तो अधिक से अधिक मात्रा में पेड़ लगाने होंगे और लोगों को प्रदूषण के प्रति जागरूक करना होगा तभी जाकर हम अच्छे भविष्य की कामना कर सकते है.

Paragraph on Pollution in Hindi 250 Words

प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है यह सिर्फ हमारे देश की नहीं यह एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है जिसकी चपेट में पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव जंतु और अन्य निर्जीव पदार्थ भी आ गए है. इसका दुष्प्रभाव चारों ओर दिखाई दे रहा है.

प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ है कि प्रकृति का संतुलन खराब होना जीवन के लिए जरूरी चीजों का दूषित हो जाना जैसे स्वच्छ जल नहीं मिलना, स्वच्छ वायु नहीं मिलना और प्रदूषित माहौल का पैदा होना.

पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है और वातावरण में भी परिवर्तन आ रहा है कभी अत्यधिक वर्षा हो रही है तो कभी सूखा पड़ रहा है ऋतु परिवर्तन असमय हो रहा है जो की यह दर्शा रहा है कि भविष्य में कितनी बड़ी समस्या दस्तक दे रही है.

प्रदूषण के कारण तरह-तरह की विकराल बीमारियां जन्म ले रही है जिसे कैंसर, डायबिटीज, अस्थमा, हृदय की बीमारी इत्यादि के कारण मानव की आयु कम हो गई है.

यह भी पढ़ें – जनसंख्या वृद्धि पर निबंध – Essay on Population in Hindi

वर्तमान में हर घर में कोई ना कोई बीमार है और दवाईयां लेकर अपना जीवन यापन कर रहा है. प्रदूषण के कारण जीव जंतु में इसकी चपेट में आ गए हैं जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां तो विलुप्त हो चुकी है और कुछ विलुप्त होने की कगार पर है.

हमारे जीवन प्रणाली कुछ इस प्रकार की हो गई है कि हमें पैसों और तरक्की के अलावा कुछ और दिखाई नहीं दे रहा है.

हमें प्रदूषण को बढ़ने से रोकना होगा नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी पर जीवन का नामोनिशान नहीं होगा हमें प्रदूषण को कम करने के लिए सबसे पहले लोगों को जागरूक करना होगा.

किसी भी प्रकार के प्रदूषण को अगर कम करना है तो हमारा पहला कदम पेड़ों की कटाई रोकना होना चाहिए और जितना हो सके पेड़ लगाने होंगे.

Paryavaran Pradushanpar Nibandh 500 Words

प्रस्तावना –

वर्तमान में प्रदूषण ने बहुत ही विकराल रूप धारण कर लिया है. इसके कारण बड़े महानगरों में जीवन बहुत कठिन हो गया है यहां पर हर दिन कोई ना कोई नई बीमारी जन्म ले रही है.

प्रदूषण इतनी तेजी से फैल रहा है कि आजकल तो ऐसा लग रहा है कि यह हमारे जीवन का हिस्सा सा बन गया है. प्रदूषण के कारण केवल मनुष्य का ही जीवन प्रभावित नहीं हुआ है इसके कारण वन्य जीव जंतुओं और पृथ्वी के वातावरण में भी बदलाव आया है.

प्रदूषण के प्रकार –

प्रदूषण को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार मुख्यतः तीन भागों में बाटा गया है इसके अलावा भी बहुत प्रकार के प्रदूषण होते है –

वायु प्रदूषण – हवा में प्रदूषित कारको के मिश्रण के कारण वायु प्रदूषण होता है वायु प्रदूषण के मुख्य स्त्रोत मोटर वाहनों से निकलने वाला धुआं, कल कारखानों और चिमनीओं से निकलने वाला धुआं, धूल उड़ने से, वस्तुओं के सड़ने से उत्पन्न हुई दुर्गंध, पटाखों इत्यादि कारणों से वायु प्रदूषण फैलता है.

जल प्रदूषण – जल में कई प्रकार के हानिकारक केमिकल्स, जीवाणु इत्यादि मिलने के कारण जल प्रदूषण होता है जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत फैक्ट्री और कारखानों से निकलने वाला प्रदूषित जल का नदियों और तालाबों में मिलना, गटर लाइन को नदियों में छोड़ना, जल में प्लास्टिक और अन्य अपशिष्ट पदार्थ डालने के कारण जल प्रदूषण फैलता है.

ध्वनि प्रदूषण – सुनने की एक सीमा से अधिक तीखी और असहनीय आवाज ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में आता है. ध्वनि प्रदूषण का मुख्य स्रोत – लाउडस्पीकर, वाहनों का हॉर्न, मशीनों की आवाज, बादलों की गड़गड़ाहट इत्यादि है जिसके कारण ध्वनि प्रदूषण फैलता है.

प्रदूषण की रोकथाम के उपाय –

वायु प्रदूषण को रोकने के लिए नहीं अधिक मात्रा में पेड़ लगाने चाहिए साथ ही जहां पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है वहां पर रोक लगानी चाहिए. वायु प्रदूषण को फैलाने वाले उद्योग धंधों को नई तकनीक अपनानी चाहिए जिससे कम प्रदूषण हो.

जल प्रदूषण को कम करने के लिए हमें साफ सफाई की ओर अधिक ध्यान देना होगा हम नदियों तालाबों में ऐसे ही कचरा डाल देते है. जल प्रदूषण के लिए जो भी फैक्ट्रियां और कारखाने जिम्मेदार है उनको बंद कर देना चाहिए.

ध्वनि प्रदूषण अधिकतर मानव द्वारा ही किया जाता है इसलिए अगर हम स्वयं हॉर्न बजाना बंद कर दें और मशीनों की नियमित रूप से अगर देखभाल करें तो उन से आवाज नहीं आएगी और ध्वनि प्रदूषण में कमी आएगी.

उपसंहार –

हमारी पृथ्वी पर प्रदूषण जिस तरह से बढ़ रहा है आने वाले कुछ सालों में यह विनाश का रूप ले लेगा, अगर जल्द ही प्रदूषण को रोकने के लिए कुछ सख्त नियम नहीं बनाए गए तो हमारी पृथ्वी का पूरा वातावरण खराब हो जाएगा और हमारा जीवन संकट में पड़ सकता है.

अगर हमें प्रदूषण को कम करना है तो सर्वप्रथम हमें स्वयं को सुधारना होगा और लोगों को प्रदूषण के कारण हो रही हानियों के बारे में अवगत कराना होगा.

जब तक हमारे पूरे देश के लोग जागरुक नहीं होंगे तब तक किसी भी प्रकार के प्रदूषण को कम करना मुमकिन नहीं है.

Essay on Pollution in Hindi 2000 Words

रूपरेखा –

प्रदूषण आज भारत की ही नहीं संपूर्ण विश्व की समस्या है बढ़ते हुए प्रदूषण को देखकर सभी देश इससे चिंतित है. आज संसार की लगभग सभी वस्तुएं चाहे वह सजीव है या निर्जीव किसी न किसी रूप में प्रदूषित होती जा रही है.

जल, वायु, मृदा तथा संपूर्ण भूमंडल प्रदूषण की चपेट में आ गया है. आए दिन प्रदूषण के कारण कोई ना कोई समस्या या फिर नई बीमारियां उत्पन्न होती रहती है.

कारखानों से गैस रिसने, परमाणु संयंत्रों से रेडियोधर्मिता के बढ़ने, नदियों, तालाबों, समुद्रों में कारखानों और फैक्ट्रियों से निकले विषाक्त केमिकल्स और गंदे पानी के मिलने से पूरा वातावरण प्रदूषित हो रहा है.

आज हम सिर्फ अपनी प्रगति की ओर ध्यान दे रहे है लेकिन प्रकृति की जरा भी चिंता नहीं कर रहे है. विज्ञान ने आज बहुत तरक्की कर ली है लेकिन प्रदूषण को रोकने में आज भी सफल नहीं हो पाई है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व के सभी देशों को बार-बार चेतावनी दी जा रही है लेकिन फिर भी प्रदूषण के बढ़ने पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जा रही है.

हमारे भारत देश को तो जात-पात और आरक्षण से ही फुर्सत नहीं मिल रही है तो वह पर्यावरण के बारे में क्या सोचेगा.

प्रदूषण क्या है –

हमारे स्वच्छ वातावरण में किसी भी प्रकार की गंदगी का घूमना प्रदूषण की श्रेणी में आता है प्रदूषण कई प्रकार का होता है जैसे जल, हवा, ध्वनि, मृदा प्रमुख है.

इनमें से अगर कोई भी घटक प्रदूषित होता है तो उसका सीधा असर पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव जंतुओं, मनुष्यों और निर्जीव वस्तुओं पर बुरा असर पड़ता है.

प्रदूषण के प्रकार और दुष्प्रभाव –

जल प्रदूषण –

वर्तमान में जल प्रदूषण एक बड़ी समस्या है वर्तमान में हमारे सभी प्रमुख नदियां जैसे गंगा यमुना चंबल इत्यादि सभी गंदगी से अटी पड़ी है इनमें तरह-तरह का प्लास्टिक और अन्य कचरा पड़ा हुआ है.

कुछ स्थानों पर तो ऐसा लगता है कि नदी में जल की जगह कचरा बह रहा है, कुछ लोग अपनी नित्य क्रिया, कपड़े धोने, जानवरों को नहलाना भी नदियों के पास करते है जिसके कारण उनका जल दूषित हो जाता है.

इससे भी बड़ी चिंता का विषय यह है कि कल कारखानों और फैक्ट्रियों से निकला जहरीला और केमिकल युक्त पानी भी नदियों और तालाबों में छोड़ दिया जाता है.

एक ताजा आंकड़े के अनुसार हमारे देश में प्रदूषित जल पीने की वजह से प्रति घंटे लगभग 73 लोगों की मृत्यु हो जाती है और यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है.

जल प्रदूषण को बढ़ाने में हमारी सरकारें भी कम नहीं है क्योंकि गटर से निकलने वाला पानी अक्सर नदियों और समुद्रों में छोड़ दिया जाता है जिसके कारण पूरा जल प्रदूषित हो जाता है.

जो जल को जहरीला बना देता है जिसके कारण नदी में रहने वाले जीवों का जीवन संकट में पड़ जाता है और यही जहरीला जल हमें पीने को मिलता है जिसके कारण तरह-तरह की बीमारियां फैलती है.

वायु प्रदूषण –

वायु प्रदूषण चिंता का विषय है क्योंकि विश्व में सबसे विश्व में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषित शहरों की सूची में शीर्ष दश में हमारे देश के ही शहर आते है.

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे देश में वायु प्रदूषण किस तेजी से बढ़ रहा है. हमारे देश में हर साल वायु प्रदूषण की वजह से 12.4 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है और यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है.

वायु प्रदूषण सामान्यतः वाहनों से निकलने वाले धुएं, कल कारखानों और चिमनियो का धुँआ, कोयले का धुँआ, घरों से निकलने वाला धुआं, फसलों की पराली जलाने से निकला धुँआ इत्यादि वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण है.

वायु प्रदूषण का एक अन्य प्रमुख कारण यह भी है कि दिन प्रतिदिन पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है और शहरीकरण बढ़ रहा है जिसके कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है.

वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा कैंसर चर्म रोग आंखों में जलन हृदय संबंधी बीमारियां हो जाती है जिसके कारण मानव और अन्य जीव जंतुओं की असमय मृत्यु हो जाती है.

वायु प्रदूषण से हमारा वातावरण भी प्रभावित होता है पेड़ पौधे मुरझा जाते है जिसके कारण और अत्यधिक वायु प्रदूषण होने लग जाता है

ध्वनि प्रदूषण –

ध्वनि प्रदूषण लाउडस्पीकर, हॉर्न, वाहनों की खड़ खड़ाहट, मशीनों की आवाज, हवाई जहाज की आवाज, कंस्ट्रक्शन का कार्य, बादलों की गड़गड़ाहट इत्यादि कारणों से ध्वनि प्रदूषण होता है,

लेकिन ध्वनि प्रदूषण का मुख्य स्त्रोत मानव जनित कार्यों से ही होता है. मानव अगर सीमित ध्वनि से ज्यादा की आवाज में अधिक समय तक रहता है तो वह बहरा भी हो सकता है साथ ही वह अपना मानसिक संतुलन भी हो सकता है.

वर्तमान में लोग हर जगह शादियों, पार्टियों, किसी भी प्रकार के प्रचार में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करते हैं जो कि ध्वनि प्रदूषण को बहुत अधिक बढ़ा देता है.

ध्वनि प्रदूषण के कारण बच्चे और बूढों को अधिक परेशानी होती है. ध्वनि प्रदूषण जीव-जंतुओं की दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या को भी प्रभावित करता है.

मृदा प्रदूषण –

मृदा प्रदूषण का मुख्य कारण मानव के द्वारा किए गए कार्य ही हैं क्योंकि मानव अपनी थोड़े से लोभ के लिए प्रत्येक प्रकार के प्रदूषण को बढ़ावा देता है.

मानव फैक्ट्रियों और कल कारखानों से निकलने वाला अपशिष्ट पदार्थ या तो मृदा में गाड़ देते है या फिर ऐसे ही फेंक देते है जिसके कारण वहां की भूमि धीरे धीरे बंजर होने लग जाती है.

वर्तमान में प्लास्टिक के कारण बहुत अधिक मृदा प्रदूषण हो रहा है क्योंकि प्लास्टिक से हर वक्त जहरीले पदार्थ निकलते रहते है जो की पूरी भूमि को जहरीला बना देते है.

खेतों में इस्तेमाल होने वाली यूरिया खादो का उपयोग भी बहुत अधिक बढ़ गया है जिसके कारण भूमि प्रदूषित हो जाती है.

इन सब का असर मानव स्वास्थ्य पर ही होता है क्योंकि भूमि से उत्पन्न होने वाला अनाज और सब्जियों में जहरीले केमिकल्स मिल जाते है जिससे मानव स्वास्थ्य बिगड़ जाता है इसीलिए आज तरह-तरह की बीमारियां फैल रही है.

प्रकाश प्रदूषण –

दिन और रात प्राकृतिक क्रिया है अगर इनमें कोई बदलाव आता है तो वह पूरी प्रकृति को प्रभावित करता है. वर्तमान में विज्ञान की प्रगति के कारण बिजली का बहुत अधिक उपयोग हो रहा है.

और आजकल अधिक रोशनी वाली लाइटो का उपयोग किया जाता है जिसके कारण रात में भी दिन जैसा लगता है. बढ़ते हुए शहरीकरण के कारण रात में भी बहुत अधिक उजाला रहता है. जिसके कारण वन्य जीव जंतुओं को बहुत अधिक परेशानी होती है उनकी पूरी दिनचर्या इसके कारण बिगड़ जाती है. प्रकाश प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है इसके कारणों से पर्याप्त नींद नहीं मिल पाती है.

रेडियोधर्मिता प्रदूषण –

रेडियोएक्टिव विकिरणों से फैलने वाला प्रदूषण रेडियोधर्मिता प्रदूषण कहलाता है. यह प्रदूषण आंखों से दिखाई नहीं देता लेकिन स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक खतरनाक होता है.

इसके संपर्क में आने वाले व्यक्ति या अन्य कोई जीव जंतु कि कुछ ही समय में मृत्यु हो जाती है.

यह प्रदूषण सामान्यत है परमाणु बम, परमाणु बिजली घर से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ से होता है. यह प्रदूषण जहां भी फैलता है वहां पर जीवन का नामोनिशान मिट जाता है.

थर्मल प्रदूषण –

वर्तमान में थर्मल प्रदूषण बहुत अधिक तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि जैसे जैसे लोगों की जरूरत है बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे तरह-तरह की फैक्ट्रियां लग रही है जिनमें जल का उपयोग कई प्रकार के पदार्थों और अन्य वस्तुओं को ठंडा रखने में किया जाता है.

जिसके कारण वह जल बहुत अधिक गर्म हो जाता है और वह सीधा नदियों में छोड़ दिया जाता है जिसके कारण अचानक जल के तापमान में बदलाव हो जाता है. इससे नदियों में रहने वाले जीवो की मृत्यु हो जाती है.

प्रदूषण संतुलन के उपाय –

पेड़ लगाना –

हमारी पृथ्वी को अगर प्रदूषण से बचाना है तो हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे और जो भी लोग पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर रही है उन पर सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें रोकना होगा.

पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हमें ऑक्सीजन देते हैं अगर पेड़ ही नहीं होंगे तो हमें ऑक्सीजन नहीं मिलेगी और हमारा जीवन समाप्त हो जाएगा.

आज ही प्रण ले अपने हर जन्मदिन पर कम से कम एक पेड़ जरूर लगाएं.

प्लास्टिक का उपयोग बंद करना –

वर्तमान में हमारे जीवन के साथ प्लास्टिक कैसे जुड़ गया है जैसे जल और हवा हो, हर वस्तु में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है. प्लास्टिक से हजारों वर्षों तक जहरीले पदार्थ निकलते रहते है जो कि जल, वायु एवं पूरे वातावरण को प्रदूषित करता है.

हमें प्लास्टिक का उपयोग बंद करना होगा, सरकार भी प्लास्टिक पर पाबंदी लगा रही है लेकिन जब तक हम जागरूक नहीं होंगे तब तक प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता रहेगा.

कार पुलिंग को बढ़ावा दे –

वाहनों की संख्या बढ़ने के कारण ईंधन की खबर भी बहुत अधिक हो गई है और इसके कारण अधिक मात्रा में वायु प्रदूषण हो रहा है. आजकल हर व्यक्ति अपना वाहन लेकर चलता है जो कि वायु प्रदूषण की समस्या को और बढ़ा देता है.

अगर हम पब्लिक वाहनों का उपयोग करें और अगर एक ही ऑफिस में जाते हैं तो एक कार में ही बैठकर जाएंगे से ईंधन की बचत होगी और वायु प्रदूषण भी कम होगा.

ऊर्जा का सही इस्तेमाल करें –

हमें ऊर्जा का सही इस्तेमाल करना होगा बिना वजह ऊर्जा का उपयोग करने से हर प्रकार का प्रदूषण घटता है क्योंकि जितने भी प्रकार के हम इंजन देखते है उन्हें बनाने में बहुत प्रदूषण फैलता हैऔर अपशिष्ट पदार्थ भी निकलता है जो कि जहरीला होता है.

नदियों को साफ करें –

हम सबको मिलजुल कर नदियों तालाबों और समुद्रों को साफ करना होगा, क्योंकि वही से हमें पीने के लिए जल मिलता है और अन्य प्राणियों को भी जल मिलता है.

अगर यही जल जहरीला होने लगा तो तरह-तरह की बीमारियां फैल जाएंगी जो की महामारी का रूप भी ले सकती है इसलिए हमें कूड़ा करकट नदियों और तालाबों में नहीं डालना चाहिए.

वाहनों/मशीनों का रखरखाव पर ध्यान दें –

वाहनों और मशीनों का रखरखाव करना बहुत जरूरी है अगर इनका रखरखाव नहीं किया जाए तो इनसे बहुत अधिक मात्रा में ध्वनि प्रदूषण के साथ-साथ वायु प्रदूषण भी होता है.

हम कुछ रुपए बचाने के लिए अपने पर्यावरण को प्रदूषित कर देते है यह बहुत ही चिंता का विषय है इसलिए हमेशा समय समय पर वाहनों और मशीनों का रखरखाव जरूरी है.

यूरिया खाद का उपयोग कम करे –

किसानों द्वारा खेतों में अधिक पैदावार के लिए यूरिया खाद का उपयोग किया जा रहा है जो की फसल की पैदावार तो अच्छी कर देती है लेकिन भूमि को बंजर कर देती है और साथ ही उस फसल में भी कई प्रकार के जहरीले पदार्थ आ जाते है.

जो सीधे हमारे शरीर में जाते हैं और हमारा स्वास्थ्य बिगड़ जाता है इसलिए किसानों को यूरिया खाद का उपयोग कम करना चाहिए और प्राकृतिक खाद का उपयोग करना चाहिए.

कड़े नियम कानून बनाएं –

भारतीय सरकार ने प्रदूषण को रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं लेकिन उन कानूनों कि सही से पालना नहीं होने के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रदूषण को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों की पालना सही से हो रही है या नहीं.

भारतीय सरकार को प्रदूषण के खिलाफ और कड़े कानून बनाने चाहिए क्योंकि अगर प्रकृति ही नहीं रहेगी तो हम भी नहीं रहेंगे इसलिए पर्यावरण को बचाना बहुत जरूरी है.

प्रदूषण के प्रति जागरूकता फैलाएं –

हम सबको मिलजुल कर प्रदूषण के प्रति जागरुकता फैलाने होगी क्योंकि ज्यादातर पढ़े-लिखे लोग यह जानते हैं कि क्या करने से प्रदूषण फैलता है फिर भी वे इस और ध्यान नहीं देते और प्रदूषण फैलाते है.

हमें लोगों को समझाना होगा कि अगर हम यूं ही प्रदूषण फैलाते रहे तो आगे आने वाली पीढ़ी का जीवन मुश्किल में पड़ जाएगा. साथ ही प्रदूषण के कारण हमारा पूरा पर्यावरण भी नष्ट हो रहा है.

इसलिए हमें शहर शहर गांव गांव जाकर लघु नाटको और अन्य तरीकों से लोगों को प्रदूषण के बारे में बताना होगा तभी जाकर प्रदूषण को रोका जा सकता है.

हमारे देश में पर्यावरण प्रदूषण के निराकरण के लिए सरकार ने कई कदम उठाए है, हमारी सरकार ने मध्य प्रदेश में प्रदूषण संस्थान की स्थापना की है जोकि प्रत्येक वर्ष सरकार को प्रदूषण संबंधी जानकारियां देंगी.

जो भी व्यक्ति या संस्थान प्रदूषण बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है उन पर सख्त कार्यवाही की जा रही है. वर्तमान में छोटे छोटे शहरों में भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे है. साथ ही प्रत्येक वर्ष वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए अभियान चलाए जा रहे.

अगर हम सब भी पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए सहयोग करें तो वह दिन दूर नहीं जब पर्यावरण में संतुलन आ जाएगा और मानव जीवन के साथ साथ अन्य प्राणियों का जीवन भी खतरे से बाहर हो जाएगा.

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Updated May 28, 2024, 20:53 IST

Essay on Pollution

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प्रदूषण पर निबन्ध | Essay on pollution in Hindi | निबंध लेखन | Essay in Hindi | Hindi Nibandh

By: Amit Singh

Essay on pollution in hindi || प्रदूषण पर निबंध हिंदी में

प्रदूषण के प्राकृतिक कारण, प्रदूषण के मानवीय कारण, प्रदूषण के प्रकार, वायु प्रदूषण–, जल प्रदूषण–, भूमि प्रदूषण–, अन्य प्रदूषण –.

भारत के इतिहस में प्राचीन काल से ही धरती को मां समझा जाता रहा है। जो सदियों से अपने हरे-भरे मैदानों, बर्फ से ढ़के पहाड़ों, समुद्र की उफान मारती लहरों के लिए मशहूर है। हालांकि वर्तमान में धरती की यह खूबसूरती कई वजहों से खतरें में पड़ गयी है, जिसका एक प्रमुख कारण प्रदूषण भी है।

धरती पर उत्पन्न होने वाले कई हानिकारक तत्वों के कारण हवा और पानी प्रदूषित हो रहे हैं, जिसका असर प्रकृति सहित धरती पर रहने वाले जीवों पर देखा जा सकता है। अमूमन पृथ्वी पर प्रदूषित करने में कई प्राकृतिक और मानवीय कारण जिम्मेदार हैं।

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विवर्तनिक गतिविधि (tectonic activity), ज्वालामुखी विस्फोट(volcanic eruptions), भूस्खलन (landslides),  भूकंप जैसे कई प्रकृतिक आपदाओं के चलते पृथ्वी असंतुलित हो जाती है और नतीजतन कई हानिकारक तत्व हवा और पानी में मिलकर धरती के जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं। उदाहरण के लिए जहां ज्वालामुखी फटने से कार्बनडाई ऑक्साइड, कार्बनमोनो ऑक्साइड, सल्फरडाई ऑक्साइड और मीथेन जैसी हानिकारण गैसें हवा को प्रदूषित करतीं हैं, वहीं विवर्तनिक गतिविधि और भूकंप से होने वाले भस्खलन का मलबा नदियों के पानी को दूषित करता है।

मानवीय कारणों से होने वाले प्रदूषणों के लिए वाहन से निकलने वाले धुएं के रुप में विशैली गैसें, पराली जलाना, भारी मात्रा में प्लास्टिक का इस्तेमाल, बिजली उत्पादन के लिए कोयला जलाना और कारखानों से निकलने वाले पदार्थ जिम्मेदार हैं।

लिहाजा उपरोक्त कारणों के चलते प्रदूषण वर्तमान में एक वैश्विक समस्या बन गया है। यही नहीं बड़े शहरों में होने वाले प्रदूषण का असर दूर आर्किटक और अंटार्कटिक में भी देखा जा रहा हैं, जहां बर्फ काफी तेजी से पिघल रही है। एक अध्ययन के अनुसार प्रदूषण से बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग के चलते जहां एक ओर बर्फ तेजी से पिघल रही है, वहीं समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण आने वाले कुछ सालों में दुनिया की मशहूर शहर मसलन – लंदन, न्यूयॉर्क, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, मालदीव और इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता समुद्र में डूब जाएगी।

प्रदूषण पर निबन्ध | Essay on pollution in Hindi

आमतौर पर हवा में घुलने वाले हानिकारक पदार्थ आसानी से नजर नहीं आते हैं लेकिन खासकर सर्द मौसम में कोहरे में मिलने वाले इन प्रदूषकों को देखा जा सकता है। कोहरे और प्रदूषण के समीकरण को आम भाषा में धुंध कहा जाता है। जिससे न सिर्फ लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है बल्कि इससे स्वास्थय पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ता है।

वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा (सांस के मरीज), फेफड़ों में कैंसर, आंखों में जलन जैसी बिमारियां होती हैं। कई बार वायु प्रदूषण प्राकृतिक आपदा का भी रुप धारण कर लेता है। उदाहरण के लिए 1984 में होने वाले भोपाल गैस त्रासदी में एक फैक्ट्री से गैस लीक होने के चलते 8000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी थी, वहीं कई लोग गंभीर रुप से घायल भी हुए थे।

वहीं ज्वालामुखी विस्फोट भी वायु प्रदूषण में वृद्धि करता है। इस विस्फोट से निकलने वाली सल्फरडाई ऑक्साइड गैस कई बार जानलेवा साबित है। अप्रैल 2020 में इंडोनेशिया में स्थित एनाक क्राकातोआ (anak Krakatoa – child of Krakatoa) के विस्फोट के चलते जहां आस-पास रहने वाली जनसंख्या में कई गंभीर बिमारियां पाई गयीं वहीं महीनों तक सूर्य की रौशनी पूरी तरह से धरती पर न पहुंच पाने के कारण पर्यावरण को भी भारी नुकसान हुआ।

इसके अलावा वाहन से निकलने वाली गैसें भी बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण में वृद्धि करतीं हैं। देश की राजधानी दिल्ली इसका एक बड़ा उदाहरण है। जहां बड़ी तादाद में वाहन होने के कारण सर्दियों में धुंध एक आम समस्या बन जाती है। दिल्ली सरकार की ऑज-इवन योजना और क्नॉट प्लेस पर लगा स्मॉग टॉवर वायु प्रदूषण का ही परिणाम है। एक सर्वे के मुताबिक गंभीर वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में रहने वाले लोगों की उम्र 10 साल कम हो जाती है।

वहीं दिल्ली में स्थित कारखानों से निकलने वाला धुंआ भी खासा हानिकारक होता हैं। जिसका असर दिल्लीवासियों  के साथ-साथ आस-पास के कई शहरों में भी देखने को मिलता है। आगरा में ताजमहल के सफेद संगमरमर का पीला होना वायु प्रदूषण का ही अंजाम है।

यही नहीं वायु प्रदूषण सीधे तौर पर मानसून की हवाओं और बादलों के निर्माण को भी प्रभावित करता है, जिसके कारण हाल के दिनों में मानसून पैटर्न में काफी बदलाव देखा जाता सकता है।

जल ही जीवन है- जैसी पंक्तियां हम हमेशा से सुनते आए हैं। खासकर भारत में जहां जल और नदियों को पूजा जाता है, वहीं गंगा और गोदवरी जैसी नदियों को देश की लाइफलाइन माना जाता है। ऐसे में इस नदियों में होने वाला जल प्रदूषण देश के एक बड़ी जनसंख्या को नुकसान पहुंचाता है।

इसी कड़ी में पहाड़ी इलाकों में होने वालाभूस्खलन इस नदियों को प्रदूषित करने का अहम कारण है। 2013 में उत्तराखंड त्रासदी से लेकर 2021 में चमोली भूस्खलन तक ने गंगा और उसकी सहायक नदियों, जिनपर देश की 40 फीसदी आबादी निर्भर है, को भारी मात्रा में दूषित किया था। वहीं ग्लोबल वार्मिंग के चलते नदियों में बाढ़ जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है। असम में ब्रह्मपुत्रा की बाढ़ और केरल की बाढ़ त्रासदी इसका उदाहरण है।

नदियों में होने वाले प्रदूषण के अलावा कई जगहों पर इक्ठ्ठा पानी भी जल प्रदूषण के साथ-साथ अनगिनत बिमारियों को जन्म देता है। मलेरिया जल प्रदूषण से उत्पन्न होने वाली ऐसी ही एक भयानक बिमारी है, जिसके कारण हर साल कई लोगों की मौत हो जाती है।

वहीं पृथ्वी पर होने वाले इस जल प्रदूषण से समुद्र की सतह भी अछूती नहीं है। जहां एक तरफ समुद्र में जाने वाला प्लास्टिक और कचड़ा समुद्री जीव-जंतुओं के लिए जान का खतरा उत्पन्न कर रहा है, वहीं महासागर अम्लीकरण (ocean acidification) के चलते कोरल ब्लीचिंग जैसी घटनाएं आम हो गयीं हैं।

इसी कड़ी में हिंद महासागर और आर्किटिक महासागर में हुए ऑयल लीक की घटनाओं ने समुद्री जीवन को काफी नुकसान पंहुचाया है। वहीं तेजी से होता शहरीकरण ने भी जल प्रदूषण में खासा इजाफा किया है। उदाहरण के लिए राजधानी दिल्ली के कारखानों से निकलने वाला कचड़ा यमुना नदी के पानी को प्रदूषित कर ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देता है। नतजीतन यमुना का नाम देश की प्रदूषित नदियों की फेहरिस्त में शुमार हो गया है।

वायु और जल के अलावा भूमि प्रदूषण में भी मानवीय कारक अहम भूमिका निभाते हैं। जहां प्लास्टिक के जहरीले कैमिकल्स मिट्टी में मिल जाते हैं, तो वहीं फसलों में इस्तेमाल होने वाले पेस्टिसाइड और कैमिकल्स मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर देते हैं। जिसका प्रभाव सीधे तौर पर फसलों की उपज पर देखा जा सकता है।

वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और भूमि प्रदूषण के अलावाप्रकाश प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण भी पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ने का काम करते हैं। एक सर्वे के मुताबिक महानगरों में रात के समय अत्यंत लाइट जलने  कारण पेड़-पौधे सहित कई जीव-जंतुओं का शयन चक्र(sleeping cycle) प्रभावित हो रहा है।

हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 18 शहर एशिया में स्थित हैं, जिसमें से 13 सिर्फ भारत में हैं। वहीं राजधानी दिल्ला और चीन की राजधानी बीजिंग दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर हैं।

ऐसे में जाहिर है प्रदूषण की रोकथाम के लिए दुनियाभर की सरकारें प्रयासरत हैं। 2015 में फ्रांस की राजधानी पैरिस में हुआ पैरिस समझौता इसी का एक उदाहरण हैं, जिसमें प्रदूषण को कम करने के लिए ग्रीन ऊर्जा, सौर्य ऊर्जा और कार्बन न्यूट्रैलिटी जैसे लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, जिसके तहत स्थायी पर्यावरण (sutainable environment) की संकल्पना को अंजाम दिया जाएगा। महात्मा गांधी के शब्दों में – “पृथ्वी पर इतना कुछ है कि वह सभी की आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है, पर इतना नहीं है कि एक भी व्यक्ति के लालच को पूरा कर सके।“

सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay

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Pollution Problem And Solution Essay In Hindi

प्रदूषण की समस्या और समाधान पर लघु निबंध – Pollution Problem And Solution Essay In Hindi

प्रदूषण की समस्या और समाधान पर लघु निबंध – essay on pollution problem and solution in hindi.

“आज हमारा वायुमण्डल अत्यधिक दूषित हो चुका है, जिसकी वजह से मानव का जीवन खतरे में आ गया है। आज यूरोप के कई देशों में प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ गया है, जिसके कारण वहाँ कभी–कभी अम्ल–मिश्रित वर्षा होती है। ओस की बूंदों में भी अम्ल मिला रहता है। यदि समय रहते हुए हमने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो एक दिन विश्व में संकट छा जाएगा।”

–’खनन भारती से उद्धृत

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रदूषण की समस्या और समाधान पर लघु निबंध – Pradooshan Kee Samasya Aur Samaadhaan Par Laghu Nibandh

  • प्रदूषण का अर्थ,
  • विभिन्न प्रकार के प्रदूषण– (क) वायु–प्रदूषण, (ख) जल–प्रदूषण, (ग) रेडियोधर्मी प्रदूषण, (घ) ध्वनि–प्रदूषण, (ङ) रासायनिक प्रदूषण,
  • प्रदूषण पर नियन्त्रण,

प्रदूषण का अर्थ– प्रदूषण वायु, जल एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं में होनेवाला वह अवांछनीय परिवर्तन है, जो मनुष्य और उसके लिए लाभदायक दूसरे जन्तुओं, पौधों, औद्योगिक संस्थानों तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुंचाता है।

जीवधारी अपने विकास और व्यवस्थित जीवनक्रम के लिए एक सन्तुलित वातावरण पर निर्भर करते हैं। सन्तुलित वातावरण में प्रत्येक घटक एक निश्चित मात्रा में उपस्थित रहते हैं। कभी–कभी वातावरण में एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा कम अथवा अधिक हो जाया करती है या वातावरण में कुछ हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है। परिणामत: वातावरण दूषित हो जाता है, जो जीवधारियों के लिए किसी–न–किसी रूप में हानिकारक सिद्ध होता है। इसे ही प्रदूषण कहते हैं।

विभिन्न प्रकार के प्रदूषण–प्रदूषण की समस्या का जन्म जनसंख्या की वृद्धि के साथ–साथ हुआ है। विकासशील देशों में औद्योगिक एवं रासायनिक कचरे ने जल ही नहीं, वायु और पृथ्वी को भी प्रदूषित किया है। भारत जैसे देशों में तो घरेलू कचरे और गन्दे जल की निकासी का प्रश्न ही विकराल रूप से खड़ा हो गया है।

विकसित और विकासशील सभी देशों में विभिन्न प्रकार के प्रदूषण विद्यमान हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

(क) वायु–प्रदूषण–वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। जीवधारी अपनी क्रियाओं द्वारा वायुमण्डल में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का सन्तुलन बनाए रखते हैं। अपनी श्वसन प्रक्रिया द्वारा हम ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते रहते हैं।

हरे पौधे प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन निष्कासित करते रहते हैं। इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का सन्तुलन बना रहता है, किन्तु मानव अपनी अज्ञानता और आवश्यकता के नाम पर इस सन्तुलन को बिगाड़ता रहता है। इसे ही वायु–प्रदूषण कहते हैं।

वायु–प्रदूषण का मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वास सम्बन्धी बहुत–से रोग हो जाते हैं। इनमें फेफड़ों का कैंसर, दमा और फेफड़ों से सम्बन्धित दूसरे रोग सम्मिलित हैं। वायु में विकिरित अनेक धातुओं के कण भी बहुत–से रोग उत्पन्न करते हैं। सीसे के कण विशेष रूप से नाडीमण्डल सम्बन्धी रोग उत्पन्न करते हैं।

कैडमियम श्वसन–विष का कार्य करता है, जो रक्तदाब बढ़ाकर हृदय सम्बन्धी बहुत–से रोग उत्पन्न कर देता है। नाइट्रोजन ऑक्साइड से फेफड़ों, हृदय और आँखों के रोग हो जाते हैं। ओजोन नेत्र–रोग, खाँसी ए की दुःखन उत्पन्न करती है। इसी प्रकार प्रदूषित वायु एग्जीमा तथा मुँहासे आदि अनेक रोग उत्पन्न करती है।

(ख) जल–प्रदूषण–सभी जीवधारियों के लिए जल बहुत महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है। पौधे भी अपना भोजन जल के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं। जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्त्व, कार्बनिक–अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं। यदि जल में ये पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाते हैं तो जल प्रदूषित होकर हानिकारक हो जाता है।

केन्द्रीय जल– स्वास्थ्य इंजीनियरिंग अनुसन्धान संस्थान’ के अनुसार भारत में प्रति 1,00,000 व्यक्तियों में से 360 व्यक्तियों की मृत्यु आन्त्रशोथ (टायफाइड, पेचिश आदि) से होती है, जिसका कारण अशुद्ध जल है। शहरों में भी शत–प्रतिशत निवासियों के लिए स्वास्थ्यकर पेयजल का प्रबन्ध नहीं है।

देश के अनेक शहरों में पेयजल किसी निकटवर्ती नदी से लिया जाता है और प्रायः इसी नदी में शहर के मल–मूत्र और कचरे तथा कारखानों से निकलनेवाले अवशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित कर दिया जाता है, परिणामस्वरूप हमारे देश की अधिकांश नदियों का जल प्रदूषित होता जा रहा है।

(ग) रेडियोधर्मी प्रदूषण–परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों और परमाणु परीक्षण के फलस्वरूप जल, वायु तथा पृथ्वी का प्रदूषण निरन्तर बढ़ता जा रहा है। यह प्रदूषण आज की पीढ़ी के लिए ही नहीं, वरन् आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होगा। परमाणु विस्फोट के समय उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल की बाह्य परतों में प्रवेश कर जाते हैं, जहाँ पर वे ठण्डे होकर संघनित अवस्था में बूंदों का रूप ले लेते हैं और बहुत छोटे–छोटे धूल के कणों के रूप में वायु के झोंकों के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं।

द्वितीय महायुद्ध में नागासाकी तथा हिरोशिमा में हुए परमाणु बम के विस्फोट से बहुत–से मनुष्य अपंग हो गए थे। इतना ही नहीं, इस प्रकार के प्रभावित क्षेत्रों की भावी सन्तति भी अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो गईं।

(घ) ध्वनि–प्रदूषण–अनेक प्रकार के वाहन; जैसे मोटरकार, बस, जेट विमान, ट्रैक्टर, लाउडस्पीकर बाजे एवं कारखानों के सायरन व विभिन्न प्रकार की मशीनों आदि से ध्वनि–प्रदूषण उत्पन्न होता है। ध्वनि की तरंगें जीवधारियों की क्रियाओं को प्रभावित करती हैं।

अधिक तेज ध्वनि से मनुष्य के सुनने की शक्ति का ह्रास होता है और उसे ठीक प्रकार से नींद भी नहीं आती। यहाँ तक कि ध्वनि–प्रदूषण के प्रभावस्वरूप स्नायुतन्त्र पर कभी–कभी इतना दबाव पड़ जाता है कि पागलपन का रोग उत्पन्न हो जाता है।

(ङ) रासायनिक प्रदूषण–प्रायः कृषक अधिक पैदावार के लिए कीटनाशक, शाकनाशक और रोगनाशक दवाइयों तथा रसायनों का प्रयोग करते हैं। इनका स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। आधुनिक पेस्टीसाइड्स का अन्धाधुन्ध प्रयोग भी लाभ के स्थान पर हानि ही पहुँचा रहा है।

जब ये रसायन वर्षा के जल के साथ बहकर नदियों द्वारा सागर में पहुँच जाते हैं तो ये समुद्री जीव–जन्तुओं तथा वनस्पति पर घातक प्रभाव डालते हैं। इतना ही नहीं, किसी–न–किसी रूप में मानव–शरीर भी इनसे प्रभावित होता है।

प्रदूषण पर नियन्त्रण– पर्यावरण में होनेवाले प्रदूषण को रोकने व उसके समुचित संरक्षण के लिए विगत कुछ वर्षों से समस्त विश्व में एक नई चेतना उत्पन्न हुई है। औद्योगीकरण से पूर्व यह समस्या इतनी गम्भीर कभी नहीं हुई थी और न इस परिस्थिति की ओर वैज्ञानिकों व अन्य लोगों का उतना ध्यान ही गया था, किन्तु औद्योगीकरण और जनसंख्या दोनों ही की वृद्धि ने संसार के सामने प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न कर दी है।

प्रदूषण को रोकने के लिए व्यक्तिगत और सरकारी दोनों ही स्तरों पर प्रयास आवश्यक हैं। जल–प्रदूषण के निवारण एवं नियन्त्रण के लिए भारत सरकार ने सन् 1974 ई० से ‘जल–प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम’ लागू किया है।

इसके अन्तर्गत एक ‘केन्द्रीय बोर्ड’ व सभी प्रदेशों में ‘प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड’ गठित किए गए हैं। इन बोर्डों ने प्रदूषण नियन्त्रण की योजनाएँ तैयार की हैं तथा औद्योगिक कचरे के लिए भी मानक निर्धारित किए हैं।

उद्योगों के कारण उत्पन्न होनेवाले प्रदूषण को रोकने के लिए भारत सरकार ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय यह लिया है कि नए उद्योगों को लाइसेंसू दिए जाने से पूर्व उन्हें औद्योगिक कचरे के निस्तारण की समुचित व्यवस्था तथा पर्यावरण विशेषज्ञों से स्वीकृति भी प्राप्त करनी ग्री। इसी प्रकार उन्हें धुएँ तथा अन्य प्रदूषणों के समुचित ढंग से निष्कासन और उसकी व्यवस्था का भी दायित्व लेना होगा।

वनों की अनियन्त्रित कटाई को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए हैं। इस बात के प्रयास किए जा रहे हैं कि नए वनक्षेत्र बनाए जाएँ और जनसामान्य को वृक्षायण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। पर्यावरण के प्रति जागरूकता से ही हम आनेवाले समय में और अधिक अच्छा एवं स्वास्थ्यप्रद जीवन व्यतीत कर सकेंगे और आनेवाली पीढ़ी को प्रदूषण के अभिशाप से मुक्ति दिला सकेंगे।

उपसंहार– जैसे–जैसे मनुष्य आपदी वैज्ञानिक शक्तियों का विकास करता जा रहा है, प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। विकसित देशों द्वारा वातावरण का प्रदूषण सबसे अधिक बढ़ रहा है।

यह एक ऐसी समस्या है, जिसे किसी विशिष्ट क्षेत्र या राष्ट्र की सीमाओं में बाँधकर नहीं देखा जा सकता। यह विश्वव्यापी समस्या है, इसलिए सभी राष्ट्रों का संयुक्त प्रयास ही इस समस्या से मुक्ति पाने में सहायक हो सकता है।

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पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के उपाय | Environmental Pollution Control Measures

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प्रदूषण एक प्रकार का अत्यंत धीमा जहर है, जो हवा, पानी, धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसे रुग्ण बना देता है, वरन् जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी सड़ा-गलाकर नष्ट कर देता है। आज अर्थात् प्रदूषण के कारण ही विश्व में प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इसी कारण बहुत से प्राणी, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, वन्य प्राणी इस संसार से विलुप्त हो गए हैं, उनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। यही नहीं प्रदूषण अनेक भयानक बीमारियों को जन्म देता है।

प्रकृति में उपस्थित सभी प्रकार के जीवधारी अपनी वृद्धि, विकास तथा सुव्यवस्थित एवं सुचारू जीवन-चक्र को चलाते हैं। इसके लिए उन्हें ‘संतुलित वातावरण’ पर निर्भर रहना पड़ता है। वातावरण का एक निश्चित संगठन होता है तथा उसमें सभी प्रकार के जैविक एवं अजैविक पदार्थ एक निश्चित अनुपात में पाए जाते हैं। ऐसे वातावरण को ‘संतुलित वातावरण’ कहते हैं। कभी-कभी वातावरण में एक या अनेक घटकों की प्रतिशत मात्रा किसी कारणवश या तो कम हो जाती है अथवा बढ़ जाती है या वातावरण में अन्य हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है, जिसके कारण पर्यावरण प्रदूषण हो जाता है। यह प्रदूषित पर्यावरण जीवधारियों के लिए अत्यधिक हानिकारक होता है। यह हवा, पानी, मिट्टी, वायुमंडल आदि को प्रभावित करता है। इसे ही ‘पर्यावरण प्रदूषण’ कहते हैं। ‘इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण, वायु, जल एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विशेषताओं में होने वाला वह अवांछनीय परिवर्तन है, जो मानव एवं उसके लिए लाभकारी तथा अन्य जंतुओं, पेड़-पौधों, औद्योगिक तथा दूसरे कच्चे माल इत्यादि को किसी भी रूप में हानि पहुंचाता है।’ दूसरे शब्दों में, ‘पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों में होने वाला किसी भी प्रकार का परिवर्तन ‘पर्यावरण प्रदूषण’ कहलाता है।’ ‘प्रदूषण एक प्रकार का अत्यंत धीमा जहर है, जो हवा, पानी, धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर उसे रुग्ण बना देता है, वरन् जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी सड़ा-गलाकर नष्ट कर देता है। आज अर्थात् प्रदूषण के कारण ही विश्व में प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इसी कारण बहुत से प्राणी, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, वन्य प्राणी इस संसार से विलुप्त हो गए हैं, उनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। यही नहीं प्रदूषण अनेक भयानक बीमारियों को जन्म देता है। कैंसर, तपेदिक, रक्तचाप, शुगर, एंसीफिलायटिस, स्नोलिया, दमा, हैजा, मलेरिया, चर्मरोग, नेत्ररोग और स्वाइन फ्लू, जिससे सारा विश्व भयाक्रांत है, इसी प्रदूषण का प्रतिफल है। आज पूरा पर्यावरण बीमार है। हम आज बीमार पर्यावरण में जी रहे हैं। अर्थात् हम सब किसी-न-किसी बीमारी से ग्रसित हैं। आज सारे संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो बीमार न हो। प्रदूषण के कारण आज बहुत बड़ा संकट उपस्थित हो गया है। यूरोप के यंत्र-प्रधान देशों में तो वैज्ञानिकों ने बहुत पहले ही इसके विरुद्ध चेतावनी देनी शुरू कर दी थी, परंतु उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। फलतः आज सारा विश्व इसके कारण चिंतित है। सन् 1972 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, इस समस्या के निदान के लिए विश्व के अनेक देशों ने मिलकर विचार किया, जिसमें भारत भी सम्मिलित था। विज्ञान का उपयोग, प्रकृति का अंधाधुंध दोहन, अवैध खनन, गलत निर्माण तथा विनाशकारी पदार्थों के लिए किया जा रहा है। इससे वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है। प्रकृति और प्राणीमात्र का जीवन संकट में पड़ गया है। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले अनेक प्रमुख प्रदूषक हैं, इन पर चर्चा करने से पहले हम यह जान लें कि प्रदूषक पदार्थ किसे कहते हैं?

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प्रदूषक पदार्थ (pollutants).

प्रदूषण के लिए उत्तरदायी पदार्थों को प्रदूषक (Pollutants) पदार्थ कहते हैं। प्रदूषक वे पदार्थ हैं, जिन्हें मनुष्य बनाता है, उपयोग करता है और अंत में शेष भाग को या शेष सामग्री को जैवमंडल या पर्यावरण में फेंक देता है। इसके अंतर्गत रासायनिक पदार्थ धूल, अवसाद (Sediment) तथा ग्रिट (Grit) पदार्थ, जैविक घटक तथा उनके उत्पाद, भौतिक कारक जैसे ताप (Heat) आदि सम्मिलित हैं, जो पर्यावरण पर कुप्रभाव डालते हैं।

कोई ठोस, तरल या गैसीय पदार्थ, जो इतनी अधिक सांद्रता (Concentration) में उपस्थित हो कि पर्यावरण के लिए क्षतिपूर्ण कारक (Injurious) हो, प्रदूषक कहलाता है। जिन वस्तुओं का हम उपयोग कर एवं निर्माण पश्चात् शेष को फेंक देते हैं, अर्थात फेंके हुए अवशेष (Residue) प्रदूषक कहलाते हैं। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले प्रमुख पदार्थ हैं- 1. जमा हुए पदार्थ जैसे- धुआं, धूल, ग्रिट, घर आदि। 2. रासायनिक पदार्थ जैसे – डिटर्जेंट्स, आर्सीन्स, हाइड्रोजन, फ्लोराइड्स, फॉस्जीन आदि। 3. धातुएं जैसे- लोहा, पारा, जिंक, सीसा। 4. गैसें जैसे- कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, अमोनिया, क्लोरीन, फ्लोरीन आदि। 5. उर्वरक जैसे- यूरिया, पोटाश एवं अन्य। 6. वाहित मल जैसे- गंदा पानी। 7. पेस्टीसाइड्स जैसे- डी.डी.टी., कवकनाशी, कीटनाशी। 8. ध्वनि। 9. ऊष्मा। 10. रेडियोएक्टिव पदार्थ।

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प्रदूषकों के प्रकार (types of pollutants).

प्रदूषक मुख्य दो प्रकार के हैं। 1. अक्षयकारी प्रदूषक (Non-Degradable Pollutants)- इनके अंतर्गत वे प्रदूषक आते हैं, जो या तो अपघटित नहीं होते या प्रकृति में इनका निम्नीकरण (Degradation) बहुत धीमी गति से होता है। जैसे –एल्यूमीनियम, मरक्यूरिक लवण, लंबी श्रृंखला वाले फेनोसिक्स तथा D.D.T. आदि। 2. जैव निम्नीकरण या क्षयकारी योग्य प्रदूषक (Biodegradable Pollutants)- यह घरेलू उपार्जक पदार्थ होते हैं, जिनका विघटन प्रकृति में आसानी से हो जाता है। जब ये पदार्थ एकत्रित हो जाते हैं, तब अनेक समस्याएं उत्पन्न करते हैं।

प्रदूषण के प्रकार (Types of Pollutions)

प्रदूषण निम्न प्रकार के होते हैं- 1. वायु प्रदूषण, 2. जल प्रदूषण, 3. ध्वनि प्रदूषण, 4. मृदा प्रदूषण, 5 रेडियोधर्मी प्रदूषण, 6. तापीय प्रदूषण, 7. समुद्री प्रदूषण।

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1. वायु प्रदूषण (air pollution).

वायुमंडल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक निश्चित अनुपात में पाई जाती हैं। वायुमंडल में विभिन्न घटकों में मौलिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले अवांछनीय परिवर्तन, जो जैवमंडल को किसी-न-किसी रूप में दुष्प्रभावित करते हैं, संयुक्त रूप से वायु प्रदूषक कहलाते हैं तथा वायु के प्रदूषित होने की यह घटना वायु प्रदूषण कहलाती है। वायु प्रदूषण के कारण एवं स्रोत (Causes and Sources & Air Pollution) वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण तथा उसके स्रोत निम्नानुसार हैं- 1. स्वचालित वाहन एवं मशीनें (Automobiles and Machines)- स्वचालित वाहनों जैसे-मोटर, ट्रक, बस, विमान, ट्रैक्टर तथा अन्य प्रकार की अनेक मशीनों में डीजल, पेट्रोल, मिट्टी का तेल आदि के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, अदग्ध हाइड्रोकार्बन, सीसा व अन्य विषैली गैसें वायु में मिलकर उसे प्रदूषित करती हैं। विषैले वाहक निर्वात (Vehicular Exhausts) वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। 2. औद्योगिक कल-कारखानें (Industrial Factories)- कारखानों की चिमनियों से निकले धुएं में सीसा, पारा, जिंक, कॉपर, कैडमियम, आर्सेनिक एवं एस्बेस्टस आदि के सूक्ष्मकण तथा कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, हाइड्रोजन-फ्लोराइड जैसी गैसें होती हैं, जो जीवधारियों के लिए अत्यधिक हानिकारक होती हैं। पेट्रोलियम रिफाइनरी वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं, जिनमें SO2 (सल्फर डाइऑक्साइड) तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड (CO2) प्रमुख हैं। 3. धुआं एवं ग्रिट (Smoke and Grit)- ताप बिजलीघरों, कारखानों की चिमनियों एवं घरेलू ईंधन को जलाने से धुआं निकलता है। धुएं में अदग्ध कारखानों के सूक्ष्मकण, विषैली गैसें, जैसे- हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड होते हैं, जो विषैली होती हैं, जो कई प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं।

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4. धूल (Dust)- औद्योगिक इकाइयों से संबंधित खदानों जैसे-लौह अयस्क तथा कोयले के खदानों की धूल से पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा रोग उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल में उत्सर्जित विभिन्न प्रकार के प्रदूषक (Various Pollutants)- विभिन्न प्रकार के प्रमुख प्रदूषक जो अनेक क्षेत्रों से वायुमंडल में उत्सर्जित किए जाते हैं, उनमें निम्नलिखित प्रदूषक हैं- 1. कार्बन यौगिक (Carbon Compounds) – इसमें कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा कार्बन डाइऑक्साइड प्रमुख हैं। 2. सल्फर यौगिक (Sulpher Compounds)- ये सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), हाइड्रोजन (H2) तथा (H2SO4) आदि प्रमुख हैं। 3. नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen Oxides)- इसमें मुख्य रूप से नाइट्रोजन ऑक्साइड ही रहते हैं, जैसे- NO, NO2, or HNO3 4. ओजोन (O3) इसका स्तर मानव क्रियाओं द्वारा बढ़ सकता है। 5. फ्लोरो कार्बन (Fluoro Carbons)- ये गैसें विभिन्न उद्योगों द्वारा कीटनाशकों के छिड़काव द्वारा हवा में मिलते हैं। 6. हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbons) – यह मुखय् रूप से बेन्जीन, बेन्जीपायरीन आदि होते हैं, जो विभिन्न उद्योगों द्वारा एवं स्वचालित वाहनों द्वारा वायु में छोड़े जाते हैं। 7. धातुएं (Metals)- कुछ धातुएं, जैसे- सीसा, निकल, आर्सेनिक, बेरीलियम, टिन, बेनेडियन, टिटेनियम तथा कैडमियम के ठोस कण, द्रव की बूंदें या गैसें हवा में मिल जाते हैं। 8. प्रकाश, रासायनिक पदार्थ (Photo Chemical Produce)- यह स्वचालित वाहनों से उत्सर्जित होकर वायु में मिलते हैं। जैसे-धुआं (smog), PAN, PB2N आदि। 9. विशिष्ट पदार्थ (Particular Matter)- यह पदार्थ पॉवर प्लांट्स, स्टोन क्रशर्स तथा उद्योगों द्वार उड़ाए जाने वाली धूल, ग्रिट आदि होते हैं, जो वायु में मिल जाते हैं और प्रदूषित करते हैं। 10. टोक्सीकेंट्स (Toxicants)- यह रासायनिक पदार्थ अन्य वस्तुओं के साथ वायु में मिल जाते हैं और वायु को प्रदूषित कर देते हैं।

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वायु प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय (Controlling Measures of Air Pollution)- वायु प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए निम्नलिखित विधियां अपनाई जाती हैं- 1. मानव जनसंख्या वृद्धि को रोकने का प्रयास करना चाहिए। 2. नागरिकों या आम जनता को वायु प्रदूषण के कुप्रभावों का ज्ञान कराना चाहिए। 3. धुम्रपान पर नियंत्रण लगा देना चाहिए। 4. कारखानों के चिमनियों की ऊंचाई अधिक रखना चाहिए। 5. कारखानों के चिमनियों में फिल्टरों का उपयोग करना चाहिए। 6. मोटरकारों और स्वचालित वाहनों को ट्यूनिंग करवाना चाहिए ताकि अधजला धुआं बाहर नहीं निकल सकें। 7. अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए। 8. उद्योगों की स्थापना शहरों एवं गांवों से दूर करनी चाहिए। 9. अधिक धुआं देने वाले स्वचालितों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। 10. सरकार द्वारा प्रतिबंधात्मक कानून बनाकर उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।

2. जल प्रदूषण (Water Pollution)

जल ही जीवन है। जल है तो कल है। जल जीवधारियों के लिए प्रकृति में उपलब्ध सर्वाधिक महत्वपूर्ण यौगिक है। हमारे शरीर का लगभग 60 से 80 प्रतिशत भाग जल का बना होता है। हम इस जल को प्रकृति से शुद्ध रूप में प्राप्त करते हैं। आज विश्व की जनसंख्या में लगातार वृद्धि, औद्योगिक, शहरीकरण आदि के कारण शहरों एवं औद्योगिक इकाइयों द्वारा कई प्रकार के हानिकारक पदार्थ जल के साथ बहा दिए जाते हैं, जो नदी, नाले, झरने, तालाब, बांध, झील और समुद्र में पहुंचकर वहां पर उपस्थित जल को प्रदूषित कर देते हैं। इस प्रकार के भौतिक एवं रासायनिक संगठन में परिवर्तन हो जाता है और वह जीवधारियों के लिए अनुपयोगी हो जाता है। इसे ही जल प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत, कारण एवं प्रभाव (Main Sources Cause and Effects of Water Pollution)- जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत अधोभांति हैं- 1. वाहित मल (Domestic Water and Sewage)- हमारे घरों में बहुत से अपशिष्ट एवं अनुपयोगी पदार्थ होते हैं, जो जल में छोड़ दे जाते हैं, जैसे-मानव मल, कागज, डिटरजेंट्स, साबुन, कपड़ा एवं बर्तन धोया हुआ पानी आदि। ये भूमिगत नालियों द्वारा नदियों, झीलों और तालाबों में पहुंच जाते हैं, जिससे वहां का जल प्रदूषित हो जाता है, जो अनेक प्रकार के बीमारियों को जन्म देते हैं, जैसे- हैजा, टायफाइड, चर्मरोग आदि। इसके साथ-ही-साथ जलीय जीव भी रोग ग्रस्त होकर मर जाते हैं। जैसे-मछली, मगरमच्छ आदि। 2. औद्योगिक बहिस्रावी पदार्थ (Industrial Effluents)- औद्योगिक इकाइयों द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ, वार्निस, तेल, ग्रीस अम्ल आदि पदार्थ बहा दिए जाते हैं, जो नदी, तालाब, झील आदि में पहुंचकर वहां के जल को को प्रदूषित कर देते हैं। इनमें मुख्य प्रदूषक तेल ग्रीस, प्लास्टिक, प्लास्टीसाइजर्स, धात्विक अपशिष्ट, निलंबित ठोस, फीनोलस, टोक्सिंस, अम्ल, लवण, रंग, सायनाइड तथा डी.डी.टी. आदि हैं। कोयले की खानों से निकला H2SO4 भयंकर प्रदूषक होता है। साथ में अन्य धातुएं भी जल में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं, जैसे-तांबा, शीशा, सोडियम पारा आदि। 3. कृषि विसर्जित पदार्थ (Agricultural Discharge)- कृषि के लिए अनेक प्रकार के उर्वरक तथा कीटनाशक पदार्थों का उपयोग किया जाता है, जो जल में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं। 4. कार्बनिक पदार्थ एवं कीटनाशी (Organic Matter and Pesticides)- इसके अंतर्गत कीटनाशी (Pesticides) अनेक औद्योगिक अपशिष्ट, तेल अथवा अन्य कार्बनिक अपघटित पदार्थ आते हैं। ये जल में पहुंचकर विषैला प्रभाव डालते हैं। कीटनाशकों में डी.डी.टी. डीलड्रीन, वी.एच.सी., वी.सी.बी.एस. तथा बेंजिन यौगिक आदि हैं। ये भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम कर देते हैं तथा पौधों, पत्तियों, फलों, सब्जियों द्वारा मनुष्य तथा जानवर तक पहुंचकर भोजन द्वारा उनके शरीर में पहुंचते हैं तथा उन्हें रोगी बना देते हैं। 5. रासायनिक उद्योगों, ताप विद्युत-गृहों एवं नाभिकीय ऊर्जा केंद्रों के अपशिष्ट पदार्थ (Wastage)- इनमें से निकले हुए अपशिष्ट पदार्थ, अकार्बनिक रासायनिक पदार्थ, जल में मिलकर मानव के साथ-साथ जलीय जीवों को हानि पहुंचाते हैं। इसके अतिरिक्त ताप (Heat) रेडियोएक्टिव पदार्थ भी प्रमुख प्रदूषक होते हैं। थर्मल एवं न्यूक्लियर पॉवर स्टेशनों से छोड़े गए पानी नदी और झीलों में पहुंचकर जलीय जीवों एवं मनुष्यों को रोगी बनाते हैं। इसे ‘तापीय प्रदूषण’ (Thermal Pollution) कहते हैं।

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जल प्रदूषण का नियंत्रण (Control of Water Pollution)- जल प्रदूषण पर निम्नलिखित उपायों से नियंत्रण किया जा सकता है- 1. वाहित मल को नदियों में छोड़ने के पूर्व कृत्रिम तालाबों में रासायनिक विधि द्वारा उपचारित करना चाहिए। 2. अपमार्जनों का कम-से-कम उपयोग होना चाहिए। केवल साबुन का उपयोग ठीक होता है। 3. कारखानों से निकले हुए अपशिष्ट पदार्थों को नदी, झील एवं तालाबों में नहीं डालना चाहिए। 4. घरेलू अपमार्जकों को आबादी वाले भागों से दूर जलाशयों मे डालना चाहिए। 5. जिन तालाबों का जल पीने का काम आता है, उसमें कपड़े, जानवर आदि नहीं धोने चाहिए। 6. नगरों व कस्बों के सीवेज में मल-मूत्र, कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ तथा जीवाणु होते हैं। इसे आबादी से दूर खुले स्थान में सीवेज को निकाला जा सकता है या फिर इसे सेप्टिक टैंक, ऑक्सीकरण ताल तथा फिल्टर बैड आदि काम में लाए जा सकते हैं। 7. बिजली या ताप गृहों से निकले हुए पानी को स्प्रे पाण्ड या अन्य स्थानों से ठंडा करके पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। वायु जल प्रदूषण नियंत्रण करने में संशोधन (Amendments in Air and Water Acts)- वायु प्रदूषण का निवारण तथा नियंत्रण एक्ट 1981 में संशोधन किया गया है। 1987 में क्रियान्वयन के दौरान आने वाले परेशानियों को हटाने के लिए कार्यान्वित करने वाले एजेंसियों को अधिक अधिकार देने तथा कानून तोड़ने वालों को सख्त जुर्माना लगाने की व्यवस्था की गई है। मुख्य बिंदु यह भी था कि वायु प्रदूषण को परिभाषा संशोधित करके इसे भी शामिल किया जाए। इसमें वायु प्रदूषण का निवारण तथा नियंत्रण संशोधन एक्ट 1987 भी है। जल प्रदूषण का निवारण तथा नियंत्रण एक्ट 1974 भी 1988 में संशोधित किया गया। महत्वपूर्ण संशोधन कर जल प्रदूषण के निवारण तथा नियंत्रण के लिए केंद्रीय/राज्य बोर्ड को पुनः नाम देना केंद्रीय/राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, क्योंकि बोर्ड वायु प्रदूषण से भी संबंध रखते हैं। बोर्ड को दोषपूर्ण संस्थाओं की जल तथा विद्युत आपूर्ति बंद या रोकने का अधिकार दिया गया। दोषियों के विरुद्ध बोर्ड ने 60 दिनों का नोटिस देने के पश्चात् नागरिक अपराधी केस दर्ज करा सकते हैं। उद्योग की स्थापना के समय भी व्यक्ति को बोर्ड से स्वीकृति लेनी होगी। इस प्रकार जल प्रदूषण का निवारण एवं नियंत्रण संशोधन एक्ट 1988 भी बना।

3. ध्वनि प्रदूषण (Sound Pollution)

इसे शोर प्रदूषण भी कहते हैं। अवांछित ध्वनि (Unwanted Sound) को शोर कहते हैं। आजकल वैज्ञानिक प्रगति के कारण मोटर गाड़ियों, स्वचालित वाहनों, लाउडस्पीकरों, टैक्टरों, कल-कारखानों एवं मशीनों का उपयोग काफी अधिक होने लगा है। ये सभी उपकरण एवं मशीनें काफी आवाज (शोर) करते उत्पन्न करती हैं। मनुष्य की श्रवण क्षमता 80 डेसिबल होती है। शोर की तीव्रता (Intensity of Noise)- शोर की तीव्रता का मापन डेसिबल की इकाई में किया जाता है। (1 डेसिबल- 1/10 बेल)। शोर ध्वनि का वह रूप होता है, जिसे हम सहन नहीं कर पाते। मनुष्य 0 डेसिबल तीव्रता की आवाज को सुनने में सक्षम होता है। 25 डेसिबल पर शांति का वातावरण होता है। 80 डेसिबल से अधिक शोर होने पर मनुष्य में अस्वस्थता आ जाती है या बेचैनी होने लगती है तथा 130-140 डेसिबल का शोर अत्यंत पीड़ादायक होता है। इससे अधिक शोर होने पर मनुष्य में बहरा होने का खतरा होता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण व्यक्ति अनिद्रा, सिरदर्द, थकान, हृदय रोग, रक्तचाप आदि का शिकार हो जाता है। किसी व्यक्ति के लगातार 8 घंटे तक 80-90 डेसिबल की ध्वनि में रहने से उसमें बहरापन शुरू हो जाता है। ध्वनि प्रदूषण के स्रोत (Sources of Noise Pollution)- ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करने वाले प्रमुख स्रोत निम्न हैं- 1. सभी स्वचालित वाहन जैसे-बस, ट्रक, स्कूटर, मोटर साइकिल, ट्रेन आदि। 2. स्वचालित कारखानें- इनमें काम करने वाले कर्मचारी ध्वनि प्रदूषण के शिकार हो जाते हैं। इनमें प्रमुख प्रदूषक-कपड़ा, इस्पात, स्कूटर, मोटर कार, सीमेंट बनाने के कारखाने आदि। 3. वायुयान, राकेट, हेलीकाप्टर, हवाई जहाज, जेट विमान आदि। इनकी उड़ान के समय अत्यधिक ध्वनि उत्पन्न होती है, जिससे जन-जीवन ध्वनि प्रदूषण के शिकार हो जाते हैं। 4. एटम बमों, डायनामाइटों, आतिशबाजी, पटाखे, बंदूकों के चलने एवं युद्ध के दौरान हुए विस्फोटों से ध्वनि प्रदूषण होता है। 5. लाउडस्पीकर, टेलीविजन, अन्य ध्वनि विस्तारक यंत्र भी ध्वनि प्रदूषण के स्रोत हैं। 6. स्वचालित वाहनों में विभिन्न प्रकार के हॉर्न।

7. आटा चक्की, कूलर, एक्जॉस्ट पंखे, राइस मील, मिक्सी, ग्राइंडर आदि भी ध्वनि प्रदूषण के स्रोत हैं।

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ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Noise Pollution)- ध्वनि प्रदूषण से हमारे शरीर मे निम्नलिखित प्रभाव दिखाई देते हैं-1. अधिक शोर के कारण सिरदर्द, थकान, अनिद्रा, श्रवण क्षमता में कमजोरी, चिड़चिड़ापन, उत्तेजना, आक्रोश आदि रोग उत्पन्न होने लगते हैं। 2. शोर प्रदूषण के कारण उपापचयी प्रक्रियाएं प्रभावी होती हैं। संवेदी एवं तंत्रिका तंत्र कमजोर हो जाता है। मस्तिष्क तनाव ग्रस्त हो जाता है तथा हृदय की धड़कन और रक्तचाप बढ़ जाता है। पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। 3. एड्रीनल हार्मोन का स्राव भी बढ़ जाता है। धमनियों में कोलेस्ट्रोल का जमाव होने लगता है। जनन क्षमता कम हो जाती है आदि। 4. अत्यधिक तेज ध्वनि से मकानों में दरार आने की संभावना बढ़ जाती है। ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण (Controlling of Noise Pollution)- ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय हैं- 1. लोगों मे ध्वनि प्रदूषण से होने वाले रोगों से परिचित करा उन्हें जागरूक बनाना चाहिए। 2. कम शोर करने वाले मशीनों-उपकरणों का निर्माण एवं उपयोग किए जाने पर बल देना चाहिए। 3. अधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाले मशीनों को ध्वनिरोधी कमरों में लगाना चाहिए तथा कर्मचारियों को ध्वनि अवशोषक तत्वों एवं कर्ण बंदकों का उपयोग करना चाहिए। 4. उद्योगों एवं कारखानों को शहरों या आबादी से दूर स्थापित करना चाहिए। 5. वाहनों में लगे हार्नों को तेज बजाने से रोका जाना चाहिए। 6. शहरों, औद्योगिक इकाइयों एवं सड़कों के किनारे वृक्षारोपण करना चाहिए। ये पौधे भी ध्वनि शोषक का कार्य करके ध्वनि प्रदूषण को कम करते हैं। 7. मशीनों का रख-रखाव सही ढंग से करना चाहिए।

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4. मृदा प्रदूषण (soil pollution).

मृदा पृथ्वी की सबसे ऊपरी उपजाऊ परत होती है, जिस पर पौधे उगते हैं। पौधों के लिए यह मृदा अत्यधिक आवश्यक होती है, क्योंकि पौधे मृदा से ही जल एवं खनिज लवणों का अवशोषक करते हैं। शहरीकरण, औद्योगीकरण एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण इनके अनुपयोगी पदार्थों ने मृदा को प्रदूषित कर दिया है। इनके कारण मृदा की उपजाऊ शक्ति कम होती जा रही है तथा उसमें रहने वाले जीव-जंतुओं पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। विभिन्न प्रकार के उर्वरक एवं कीटनाशक दवाइयां मृदा को प्रदूषित कर रहे हैं। मृदा प्रदूषण के प्रमुख स्रोत (Main Sources of Soil Pollution)- मृदा को प्रदूषित करने वाले प्रमुख स्रोत निम्नानुसार हैं- 1. घरेलू एवं औद्योगिक कूड़ा-करकट एवं अपशिष्ट पदार्थ। 2. उर्वरक, कीटनाशक दवाइयां, खरपतवारनाशक, अम्लीय जल वर्षा, खानों से प्राप्त जल आदि। 3. भारी धातुएं जैसे- कैडेमियम, जिंक, निकिल, आर्सेनिक कारखानों से मृदा में मिल जाते हैं। 4. अस्थियां, कागज, पोलीथिन, सड़ा-गला मांस, सड़ा हुआ भोजन, लोहा, लैंड, तांबा, पारा आदि भी मृदा को प्रदूषित करते हैं। 5. खेतों में मल-मूत्र त्यागने के कारम भी मृदा प्रदूषित हो जाती है। मृदा प्रदूषण पर नियंत्रण (Control Soil Pollution)- मृदा को प्रदूषित होने से बचाने के लिए हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिए- 1. मृत प्राणियों, घर के कूड़ा-करकट, गोबर आदि को दूर गड्ढे में डालकर ढक देना चाहिए। हमें चाहिए कि खेत आदि में शौच कार्य न करें। 2. मकान व भवन को सड़क से कुछ दूरी पर बनाना चाहिए। मृदा अपरदन को रोकने के लिए आस-पास घास एवं छोटे-छोटे पौधे लगाना चाहिए। घरों में साग-सब्जी को उपयोग करने के पहले धो लेना चाहिए। 3. गांवों में गोबर गैस संयंत्र अर्थात् गोबर द्वारा गैस बनाने को प्रोत्साहन देना चाहिए। इससे ईंधन के लिए गैस भी मिलेगी तथा गोबर खाद। 4. ठोस पदार्थ अर्थात् टिन, तांबा, लोहा, कांच आदि को मृदा में नहीं दबाना चाहिए।

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5. रेडियोंधर्मी प्रदूषण (radioactive pollution).

ऐसे विशेष गुण वाले तत्व जिन्हें आइसोटोप कहते हैं और रेडियोधर्मिता विकसित करते हैं, का वातावरण में फैल जाना, जिससे मानव जीव-जंतु, वनस्पतियों एवं अन्य पर्यावरणीय घटकों के हानि होने की संभावना रहती है, को नाभिकीय प्रदूषण या ‘रेडियोधर्मी प्रदूषण’ कहते हैं। रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत (Sources of Radioactive Pollution)- रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत को हम दो भागों में बांट सकते हैं- 1. प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources) – प्राकृतिक स्रोत के अंतर्गत निम्नलिखित स्रोत आते हैं- 1. आंतरिक किरणें, 2. पर्यावरण (जल, वायु एवं शैल), 3. जीव-जंतु (आंतरिक)। 2. मनुष्य निर्मित स्रोत (Man Made Sources) मानव निर्मित स्रोत के अंतर्गत निम्नलिखित स्रोत आते हैं- 1. रेडियो डायग्नोसिस (Radio Diagnosis) एवं रेडियोथेरेपिक (Radio Therepeutic) उपकरण, 2. नाभिकीय परीक्षण (Nuclear text) 3. नाभिकीय अपशिष्ट (Nuclear Waste) 4. नाभिकीय पदार्थों का अनुसंधान औषधि एवं उद्योग में उपयोग (Use of Radioactive Substances in Research, Medicine and Industry) रेडियोधर्मी प्रदूषण का प्रभाव- डॉ. रामन्ना (1988) भाभा अनुसंधान केंद्र ने कहा था कि आण्विक ऊर्जा का सदुपयोग किया जाए। ऊर्जा का दुरुपयोग नागासाकी और हिरोशिमा की घटनाएं हैं। रेडियोधर्मी प्रदूषण का प्रभाव तुरंत और दूरगामी होते हैं। तुरंत में तुरंत मृत्यु हो जाती है तथा दूरगामी में आनुवांशिक प्रभाव पड़ते हैं, जिससे असामान्य बच्चों का जन्म तथा विकलांगता होने की संभावना रहती है। इसके प्रभाव से हड्डी के कैंसर भी हो सकते हैं। इसका प्रभाव पेड़-पौधों तथा वनस्पतियों में भी पड़ता है। इसके साथ-ही-साथ समुद्री जीवों पर भी प्रभाव पड़ता है। रेडियोधर्मी प्रदूषण का नियंत्रण (Control of Radioactive Pollution)- रेडियोधर्मी प्रदूषण को रोकने के निम्नलिखित उपाय हैं- 1. परमाणु ऊर्जा उत्पादक यंत्रों की सुरक्षा करनी चाहिए। 2. परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। 3. गाय के गोबर से दीवारों पर पुताई करनी चाहिए। 4. गाय के दूध के उपयोग से रेडियोधर्मी प्रदूषण से बचा जा सकता है। 5. सरकारी संगठनों एवं गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से जनजागरण करना चाहिए। 6. वृक्षारोपण करके रेडियोधर्मिता के प्रभाव से बचा जा सकता है। 7. रेडियोधर्मी पदार्थों का रिसाव सीमा में हो तथा वातावरण में विकिरण की मात्रा कम करनी चाहिए।

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6. तापीय प्रदूषण (thermal pollution).

ऊर्जा के प्रमुख साधनों में एक ऊर्जा है ताप-ऊर्जा। ताप ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए सामान्यतः कोयले को जलाया जाता है, जिससे उत्पन्न ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल दिया जाता है। लेकिन इस प्रक्रिया में में जब कोयले को जलाया जाता है तो इससे बहुत-सी ऐसे गैसें निकलती हैं, जो वातावरण को प्रदूषित करती हैं। ये गैसें प्रमुख रूप से कार्बन मोनोऑक्साइड, फ्लाइऐश, सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा हाइड्रोकार्बन इत्यादि होते हैं, इनका सांद्रण वातावरण में बढ़ता है और प्रदूषण फैलाते हैं, इसे ही ताप प्रदूषण कहते हैं। ताप प्रदूषण हमारे वातावरण में उपयोग के पश्चात कुछ पदार्थों से ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिसके कारण पर्यावरण का ताप बढ़ जाता है, इसे ही तापीय प्रदूषण कहते हैं। ताप विद्युत संयंत्र सामान्यतः तापीय प्रदूषण के प्रमुख कारण होते हैं। विद्युत केंद्रों से कोयले की खपत से निकलने वाले प्रदूषण कारक पदार्थ- 1. कार्बन मोनोऑक्साइड- तापीय प्रदूषण के कारण कार्बन मोनोऑक्साइड वायुमंडल में पहुंचकर हानिकारक प्रभाव छोड़ता है, जिसके कारण हाइपोक्सिया (Hypoxia) नामक रोग उत्पन्न होता है। 2. हाइड्रोकार्बन- विभिन्न वाहकों में ईंधन के रूप में उपयोग किए जाने वाले सभी पदार्थों में हाइड्रोकार्बन होते हैं। इनके जलने से वातावरण में गर्म गैसें निकलती हैं, जिससे वातावरण का तापमान बढ़ जाता है। इसका प्रभाव त्वचा पर पड़ता है, जिससे त्वचा रोग एवं त्वचा कैंसर का भय रहता है। 3. प्लाई ऐश- औद्योगिक संस्थानों से निकली हुई गैसों के साथ जले हुए ईंधन इत्यादि के कण होते हैं, जो वायु में उड़ते रहते हैं, इन्हें प्लाई ऐश कहते हैं। ये गर्म होते हैं तथा वातावरण के तापमान को बढ़ा देते हैं, जिससे पेड़-पौधे वनस्पति आदि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 4. सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड- कोयले के जलने से सल्फर डाइऑक्साइड नामक गैस निकलती है। यह गैस कुल उत्सर्जित गैस का 75 प्रतिशत होती है। एक अनुमान के अनुसार पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 10 के पावर 9 मिलियन टन सल्फर डाइऑक्साइड वातावरण में पहुंचती है। हमारे देश में एन.टी.पी.सी. ने कोयले का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ाया है। सन् 1950 में 35 मिलियन मिट्रिक टन कोयला उपयोग होता था, जो 2000 में बढ़कर 240 मिलियन टन हो गया। सल्फर डाइऑक्साइड का प्रभाव आंखों एवं श्वसन तंत्र पर पड़ता है, इसके साथ-ही-साथ पुरातात्विक महत्व के अवशेषों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। 5. एल्डिहाइड्स- तापरहित विद्युत केंद्रों में नाइट्रोजन के ऑक्साइड का भी उत्सर्जन होता है, इनमें नाइट्रस ऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रमुख हैं। ये वातावरण को प्रभावित कर विभिन्न रोगों को जन्म देते हैं। प्रभाव- ताप प्रदूषण से पर्यावरण, पौधे जीव-जंतु की जैविक क्रियाएं, मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ताप प्रदूषण को रोकने के उपाय (Measures to Control of Thermel Pollution)- ताप प्रदूषण को रोकने के निम्न उपाय हैं- 1. तापशक्ति केंद्रों से निकलने वाले अनुपयोगी पदार्थों का समुचित उपयोग होना चाहिए। 2. तापशक्ति केंद्रों की गैसों का पुनः अन्य कार्यों में उपयोग होना चाहिए। 3. इन केंद्रों में कार्यरत कर्मचारियों को प्रदूषण की जानकारी देते हुए उससे बचने के उपाय बताना चाहिए। 4. वाहनों में उचित मापदंड के अनुसार ईंधन भरना चाहिए।

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7. समुद्रीय प्रदूषण (Marine Pollution)

पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग जल है। कुल जल का 97.25 प्रतिशत भाग समुद्र के रूप में पाया जाता है। इसमें 3.5 प्रतिशत घुलित पदार्थ पाए जाते हैं। परिभाषा- समुद्र में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे पदार्थों का मिलना, जिसके कारण हानिकारक प्रभाव उत्पन्न हो सके, जिससे मनुष्य जीव-जंतु पर संकट उत्पन्न हो और समुद्र की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़े तो इसे समुद्रीय प्रदूषण कहते हैं। नदियों द्वारा लाए गए अधिक मात्रा में वाहित मल, कूड़ा-कचरा, कृषिजन्य कचरा, भारी धातुएं, प्लास्टिक पदार्थ, पीड़कनाशी, रेडियोधर्मी पदार्थ, पेट्रोलियम पदार्थ इत्यादि के समुद्र में आने से समद्रीय वातावरण (Marine Atmospher) प्रदूषित हो जाता है, इसी को हम समुद्रीय प्रदूषण (Marine Pollution) कहते हैं। समुद्रीय प्रदूषण के स्रोत (Source of Marine Pollution)- समुद्रीय प्रदूषण के निम्नलिखित स्रोत हैं- 1. घरेलू अपशिष्ट- नदी, नालों के द्वारा घरेलू अपशिष्ट समुद्र तक पहुंच जाते हैं। 2. औद्योगिक बहिःस्राव- प्रायः सभी उद्योग कार्बनिक या अकार्बनिक पदार्थ, अनुपयोगी डिटरजेंट्स, पेट्रोलियम, कार्बोनेट्स, सायनाइड्स आर्सेनिक, कॉपर, फर्टीलाइजर आदि नदी में छोड़ दिए जाते हैं, जो समुद्र में पहुंच जाते हैं। 3. रेडियोधर्मी कचरा- जहां रेडियोधर्मी स्टेशन हैं, वहां के आस-पास के समुद्र में अनुपयोगी रेडियोधर्मी पदार्थ छोड़ दिए जाते हैं। 4. तेल प्रदूषक- कभी-कभी लापरवाहीवश तेलीय पदार्थ समुद्री रास्ते से ले जाते समय समुद्र तट में आ जाते हैं। कभी-कभी कारखानों से भी अनुपयोगी तेल समुद्र में डाल दिए जाते हैं। 5. कृषिजन्य कचरा- बहुत से कीटनाशक वर्षा के कारण खेतों से नदी में तथा नदी से समुद्र में आ जाते हैं। समुद्री प्रदूषण से होने वाले प्रभाव- समुद्री प्रदूषण से होने वाले प्रभाव निम्न प्रकार हैं- 1. समुद्री प्रदूषण से समुद्र के जीव-जंतु, समुद्रीय वनस्पतियां प्रभावित होती हैं। 2. कीटनाशकों के समुद्र में आ जाने से जलीय जंतु तथा उनके अंडे प्रभावित होते हैं। 3. तेल के कारण प्रकाश और ऑक्सीजन की कमी से जीव-जंतु, वनस्पतियों में बुरा असर पड़ता है। ऐसा अनुमान है कि 50000 से 200000 समुद्री जंतु तेल के कारण मर जाते हैं। समुद्रीय प्रदूषण की रोकथाम- समुद्री प्रदूषण की रोकथाम के निम्न उपाय हैं- 1. घरेलू अपशिष्ट, औद्योगिक बहिःस्राव, रेडियोधर्मी पदार्थ आदि को किसी भी प्रकार से समुद्र में नहीं जाना चाहिए। इनकी व्यवस्था पास ही किसी दूरी पर कर देनी चाहिए। 2. टैंकरों, पाइपलाइनों, तेल परिवहनों आदि से रिसाव को रोकना चाहिए. 3. कृषिजन्य कचरा जो रासायनिक पदार्थ होते हैं, उन्हें नदी के बहाव के पूर्व रोक देना चाहिए, ताकि वे समुद्र तक न पहुंच सकें। आदि। औद्योगिककरण, शहरीकरण अवैध खनन, विभिन्न स्वचालित वाहनों, कल-कारखानों, परमाणु परीक्षणों आदि के कारण आज पूरा पर्यावरण प्रदूषित हो गया है। इसका इतना बुरा प्रभाव पड़ा है कि संपूर्ण विश्व बीमार है। पर्यावरण की सुरक्षा आज की बड़ी समस्या है। इसे सुलझाना हम सब की जिम्मेदारी है। इसे हमें प्रथम प्राथमिकता प्रदान करना चाहिए तथा पर्यावरण की सुरक्षा में सहयोग देना चाहिए। “स्वच्छ पर्यावरण आज की जरूरत है, पर्यावरण निरोग तो हम निरोग।” राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक (सेवानिवृत्त) एम.ए. (अर्थशास्त्र, हिंदी), पी-एच.डी. (हिंदी), डी.लिट्. (विद्यासागर हिंदी) गनियारी, बिलासपुर (छ.ग.)

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दा इंडियन वायर

भूमि प्रदूषण पर निबंध, कारण और उपाय

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By विकास सिंह

land pollution essay in hindi

भूमि प्रदूषण (land pollution) इन दिनों एक बड़ी समस्या है, खासकर शहरी क्षेत्रों में। इस प्रकार के प्रदूषण के परिणाम अन्य प्रकार के प्रदूषण जैसे वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण से कम घातक नहीं हैं।

विषय-सूचि

भूमि प्रदूषण पर निबंध, very short essay on soil pollution in hindi (200 शब्द)

भूमि प्रदूषण पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है। यह बढ़ती आबादी के कारण दिन के साथ-साथ उद्योगों में वृद्धि के कारण बढ़ रहा है। जनसंख्या में वृद्धि और शहरीकरण वनों के विकास के कारण लोगों को समायोजित करने के लिए तीव्र गति से कटौती की जा रही है। जंगलों को औद्योगिक और आवासीय क्षेत्रों में बदल दिया जा रहा है। वनों की कटाई भूमि प्रदूषण का कारण बनती है क्योंकि यह मिट्टी की गुणवत्ता को कम करती है। जनसंख्या में वृद्धि ने घरेलू कचरे को भी जन्म दिया है जिससे भूमि प्रदूषण बढ़ता है।

उद्योगों की संख्या में वृद्धि ने औद्योगिक और रासायनिक अपशिष्ट को जोड़ा है। इस प्रकार का अपशिष्ट निपटान के लिए अत्यंत कठिन है और यह सबसे खराब प्रकार के भूमि प्रदूषण में योगदान देता है। खनन गतिविधियाँ भूमि को नुकसान पहुँचाती हैं और प्रदूषण का कारण बनती हैं। अपशिष्ट पदार्थ जो आसानी से नहीं निकलता है, समय के साथ सड़ जाता है और दुर्गंध पैदा करने लगता है। यह न केवल भूमि प्रदूषण का कारण बनता है, बल्कि वायु प्रदूषण में भी योगदान देता है और विभिन्न बीमारियों का कारण है।

भूमि प्रदूषण और विभिन्न प्रकार के प्रदूषण भारत में न केवल एक समस्या है बल्कि एक वैश्विक मुद्दा है। विभिन्न देशों की सरकार को इस मामले को गंभीरता से देखना चाहिए। इसे कम करने के लिए लोगों को अपने स्तर पर भी काम करना होगा।

भूमि प्रदूषण निबंध, essay on land pollution in hindi (300 शब्द)

प्रस्तावना:.

भूमि प्रदूषण को सबसे खराब प्रकार के प्रदूषणों में से एक माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह विभिन्न अन्य प्रकार के प्रदूषणों के लिए रास्ता देता है, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता है।

भूमि प्रदूषण के कारण (causes of land pollution in hindi)

भूमि प्रदूषण विभिन्न कारणों से होता है; यहाँ प्रदूषण के विभिन्न कारणों पर एक नज़र है:

ठोस अवशेष:  घर, अस्पताल, स्कूल और बाजार जैसे प्लास्टिक कंटेनर, डिब्बे, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि पर उत्पन्न ठोस अपशिष्ट इसी श्रेणी में आते हैं। जबकि इनमें से कुछ बायोडिग्रेडेबल हैं और अन्य गैर-बायोडिग्रेडेबल हैं और निपटान के लिए कठिन हैं। यह गैर-बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट है जो बड़े भूमि प्रदूषण का कारण बनता है।

वनों की कटाई:  मानव की विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों को तीव्र गति से काटा जा रहा है। मिट्टी के लिए पेड़ आवश्यक हैं क्योंकि वे विभिन्न आवश्यक पोषक तत्वों को बनाए रखने में मदद करते हैं। खनन, शहरीकरण और अन्य कारणों से पेड़ों को काटना मिट्टी को नीचा दिखाता है और इसे एक प्रकार का भूमि प्रदूषण माना जाता है।

रसायन: रासायनिक अपशिष्ट का निपटान मुश्किल है। कीटनाशकों, कीटनाशकों और उर्वरकों से प्राप्त तरल और ठोस अपशिष्ट दोनों को या तो लैंडफिल या अन्य स्थानों पर फेंक दिया जाता है। यह मिट्टी को खराब करता है और भूमि प्रदूषण का एक और प्रकार बनाता है।

कृषि गतिविधियाँ:  फसलों की अधिक उपज सुनिश्चित करने के लिए किसानों द्वारा इन दिनों कई उच्च अंत कृषि तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। इन तकनीकों के अधिक उपयोग जैसे कि कीटनाशकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग जमीन पर टपकने का कारण बनता है और मिट्टी का क्षरण करता है। यहां उगाए गए फल और सब्जियां भी स्वस्थ नहीं मानी जाती हैं। इसे एक प्रकार का भूमि प्रदूषण माना जाता है।

निष्कर्ष:

भूमि प्रदूषण कई बीमारियों को जन्म दे रहा है और स्वस्थ जीवन जीना मुश्किल बना रहा है। सरकार को इसे नियंत्रित करने के लिए उपाय करने चाहिए और इस दिशा में हम जो भी कर सकते हैं उसमें हमें भी योगदान देना चाहिए।

जमीन प्रदूषण पर निबंध, land pollution essay in hindi (400 शब्द)

ठोस कचरे के कारण भूमि प्रदूषण होता है। अपशिष्ट उत्पादों की बढ़ती मात्रा और उचित अपशिष्ट निपटान विकल्पों की कमी के कारण समस्या दिन पर दिन बढ़ रही है। कारखानों और घरों से अपशिष्ट उत्पादों को खुले स्थानों में निपटाया जाता है जिससे मिट्टी प्रदूषण होता है।

जमीन प्रदूषण के परिणाम (effect of land pollution in hindi)

बढ़ता प्रदूषण चिंता का कारण है। यह पर्यावरण के साथ-साथ जीवित प्राणियों को भी अपूरणीय क्षति पहुंचा रहा है। भूमि प्रदूषण के विभिन्न हानिकारक परिणाम निम्नानुसार हैं:

कुछ दिनों के लिए एक क्षेत्र में जमा अपशिष्ट उत्पाद दूषित हो जाते हैं और दुर्गंध पैदा करते हैं। ऐसे क्षेत्रों से गुजरना इस वजह से बेहद मुश्किल हो सकता है। आस-पास के डंपिंग ग्राउंड वाले क्षेत्रों में रहना असंभव के बगल में लगता है। भूमि प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से लोगों को डर लगता है। इसके अलावा, इन क्षेत्रों से जो दुर्गंधयुक्त गंध आती है वह लगातार एक बड़ा नुक्सान है।

कचरा डंपिंग ग्राउंड के पास स्थित इलाकों में जमीन की कीमत तुलनात्मक रूप से कम है, क्योंकि इस क्षेत्र को रहने लायक नहीं माना जाता है। कम दरों के बावजूद, लोग यहां संपत्ति किराए पर लेना या खरीदना पसंद नहीं करते हैं। विषाक्त पदार्थ जो भूमि को दूषित करते हैं वे मनुष्यों के श्वसन तंत्र के साथ-साथ जानवरों को भी बाधित कर सकते हैं। यह विभिन्न श्वसन रोगों का कारण भी है जो मानव जाति के लिए घातक साबित हो रहे हैं।

लैंडफिल को अक्सर अपशिष्ट उत्पादों से छुटकारा पाने और भूमि प्रदूषण को कम करने के लिए जलाया जाता है। हालाँकि, इससे वायु प्रदूषण होता है जो पर्यावरण और जीवन के लिए उतना ही बुरा है। भूमि प्रदूषण त्वचा की एलर्जी और अन्य त्वचा की समस्याओं का कारण बन सकता है अगर लोग अपशिष्ट पदार्थों के सीधे संपर्क में आते हैं जो इसका कारण बनते हैं।

भूमि प्रदूषण भी विभिन्न प्रकार के कैंसर का एक कारण है। विषाक्त पदार्थों से भरी हुई भूमि मच्छरों, मक्खियों, चूहों, कृन्तकों और ऐसे अन्य प्राणियों के लिए एक प्रजनन भूमि है। इन छोटे जीवों के कारण संचरित रोग सभी को ज्ञात हैं। विभिन्न प्रकार के बुखार और बीमारियाँ इनकी वजह से बढ़ रही हैं।

कीटनाशकों और अन्य रसायनों के अधिक उपयोग के कारण होने वाला भूमि प्रदूषण कृषि भूमि को दूषित करता है। मिट्टी पर उगाई गई सब्जियां और फल जो दूषित हैं, विभिन्न प्रकार के रोगों का कारण बनते हैं।

इस तथ्य पर कोई संदेह नहीं है कि हमारे जीवन को और अधिक आरामदायक बनाने के प्रयास में हम पर्यावरण को बर्बाद कर रहे हैं। स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीने के लिए हमें मिट्टी प्रदूषण को कम करने की दिशा में काम करना चाहिए।

भूमि प्रदूषण पर निबंध, essay on land pollution in hindi (500 शब्द)

भूमि प्रदूषण विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण और प्राकृतिक कारकों के कारण भी होता है। भूमि प्रदूषण के कुछ कारणों में कीटनाशकों का उपयोग, औद्योगिक और कृषि अपशिष्टों के निपटान के लिए विकल्पों की कमी, वनों की कटाई, बढ़ते शहरीकरण, एसिड वर्षा और खनन शामिल हैं। ये सभी कारक मिट्टी को नीचा दिखाते हैं और कृषि गतिविधियों में बाधा डालते हैं। वे जानवरों और मनुष्यों में विभिन्न बीमारियों का कारण भी हैं।

भूमि प्रदूषण को रोकने के तरीके (land pollution prevention in hindi)

भूमि प्रदूषण हर समय बढ़ रहा है और इसलिए इसके हानिकारक परिणाम हैं। जबकि सरकार और अन्य संगठन इसे नीचे लाने के लिए अपने स्तर पर काम कर रहे हैं, आप अपने दैनिक जीवन में कुछ छोटे बदलाव करके भी इसे कम करने की दिशा में योगदान कर सकते हैं। यहां कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे आप भूमि प्रदूषण पर लगाम लगा सकते हैं:

जहां भी संभव हो, गैर-बायोडिग्रेडेबल उत्पादों के बजाय बायोडिग्रेडेबल उत्पादों का उपयोग करें। ऐसा इसलिए है क्योंकि बायोडिग्रेडेबल कचरे का निपटान करना आसान है। भोजन है जो कीटनाशकों के उपयोग के बिना उगाया जाता है। इस तरह के खाद्य उत्पादों को कीटनाशक या उर्वरक मुक्त चिह्नित किया जाता है ताकि आप दूसरों से आसानी से अलग कर सकें। यह किसानों को कीटनाशकों के उपयोग से बचने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

यदि आपके पास जगह है तो घर पर जैविक सब्जियां और फल उगाने के लिए यह एक अच्छा विचार है। इन दिनों पैकेजिंग पर बहुत सारे कागज, रिबन और अन्य सामग्री बर्बाद हो जाती है। यह उन उत्पादों के लिए जाने का सुझाव दिया गया है जिनकी पैकेजिंग बहुत कम है।

पॉली बैग के उपयोग से बचें। सरकार ने कई राज्यों में इन बैगों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है, हालांकि लोग अभी भी इनका उपयोग करते हैं। पॉली बैग का निपटान करना मुश्किल है और भूमि प्रदूषण में बहुत योगदान देता है। यह भी सुझाव दिया जाता है कि प्लास्टिक के बर्तनों और अन्य प्लास्टिक वस्तुओं का उपयोग न करें। ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी भी रूप में प्लास्टिक का निपटान करना मुश्किल है।

जब आप खरीदारी के लिए जाएं तो कागज या कपड़े की थैलियों का उपयोग करें। ऐसा करने की सलाह दी जाती है क्योंकि ये पुन: प्रयोज्य होते हैं। कपड़े के थैले कागज के किनारों पर एक धार होते हैं क्योंकि इन्हें कई बार धोया और पुन: उपयोग किया जा सकता है।

दो अलग-अलग डस्टबिन में गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग निपटाने से कचरा अलग हो जाता है। भारत सरकार ने पहले ही इस अभियान को शुरू कर दिया है और अपशिष्ट उत्पादों के अलगाव के लिए हरे और नीले डस्टबिन वितरित किए हैं। देश भर के विभिन्न शहरों में विभिन्न क्षेत्रों में कई हरे और नीले डस्टबिन लगाए गए हैं।

कागज बर्बाद मत करो; इसके उपयोग को सीमित करें। जहां भी संभव हो इसका उपयोग करने से बचें। कागज बनाने के लिए प्रत्येक वर्ष कई पेड़ काटे जाते हैं। पेड़ों का कटना भी भूमि प्रदूषण का एक कारण है। डिजिटल जाना एक अच्छा विचार है।

पेपर वाइप्स या टिश्यू के बजाय कपड़े या पुन: उपयोग योग्य डस्टर और झाड़ू का उपयोग करें। केवल इन सभी का आप ही अभ्यास न करें, बल्कि अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ साझा करके इन विचारों के बारे में जागरूकता फैलाएं।

भूमि प्रदूषण, प्रदूषण के अन्य विभिन्न रूपों की तरह, पर्यावरण के लिए खतरा है। यह पृथ्वी पर जीवन की गुणवत्ता को नीचा दिखा रहा है। यह समय है जब हम सभी को हाथ मिलाना चाहिए और उसी को कम करने की दिशा में अपना योगदान देना चाहिए।

भूमि प्रदूषण पर निबंध, land pollution essay in hindi (600 शब्द)

यह ठीक ही कहा गया है, “एक देश जो अपनी मिट्टी को नष्ट करता है वह खुद को नष्ट कर लेता है”। भूमि प्रदूषण का जीवों के साथ-साथ पर्यावरण पर भी समग्र रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह बीमारियों की बढ़ती संख्या के मुख्य कारणों में से एक है।

भूमि प्रदूषण के कारण (land pollution causes in hindi)

भूमि प्रदूषण विभिन्न कारकों के कारण होता है। ये कारक प्राकृतिक और साथ ही मनुष्य द्वारा प्रेरित दोनों हैं। यहाँ विभिन्न कारणों के लिए एक नज़र है:

औद्योगिक कूड़ा: भूमि प्रदूषण का एक सबसे बड़ा कारण औद्योगिक कचरा है। भारी मात्रा में उत्पन्न होने वाले औद्योगिक कचरे के निपटान के लिए उचित विकल्पों की कमी से भूमि प्रदूषण होता है। रासायनिक और जहरीले कचरे को बड़े डंपिंग ग्राउंड में फेंक दिया जाता है जो मच्छरों, मक्खियों, चूहों और कृन्तकों का प्रजनन करते हैं। यह विभिन्न बीमारियों के साथ-साथ वायु प्रदूषण को भी रास्ता देता है।

खनिज:  खनिजों और धातुओं के निष्कर्षण के लिए खनन आवश्यक है जो विभिन्न उत्पादों के लिए दिन-प्रतिदिन उपयोग किए जाते हैं। यह पेड़ों और पौधों के बड़े पैमाने पर विनाश का कारण बनता है और भूमि का क्षरण करता है। मिट्टी की खुदाई और खनन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए भारी मशीनरी का उपयोग भूमि प्रदूषण का कारण बनता है।

कीटनाशक:  जबकि बढ़ती फसलों के लिए कीटनाशकों का उपयोग करना आवश्यक है और ऐसा करना ठीक है लेकिन फिर भी इसका अधिक उपयोग हानिकारक हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पौधों की वृद्धि में बाधा उत्पन्न करने वाले जीवों को मारने के अलावा ये औषधीय स्प्रे उन सूक्ष्मजीवों को भी मारते हैं जो पौधों की वृद्धि के लिए उपयोगी होते हैं।

इसके अलावा, कीटनाशकों और अन्य रासायनिक उत्पादों के उपयोग से मिट्टी दूषित हो जाती है और यह ख़राब हो जाती है। यह भूमि प्रदूषण का कारण बनता है और यह स्थान अब कृषि के लायक नहीं रह गया है।

पेड़ों की कटाई: हम सभी जानते हैं कि वृक्ष जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जो पारिस्थितिक संतुलन बनाने के लिए आवश्यक है। वे मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और मिट्टी के वातन को बढ़ाने में भी मदद करते हैं। हालांकि, दुर्भाग्य से जंगलों को तेज गति से काटा जा रहा है।

यह मिट्टी को सीधे सूर्य के प्रकाश के लिए उजागर करता है जो कई मायनों में हानिकारक है। यह सभी पानी को निकालकर भूमि को बंजर बना देता है और मिट्टी के लिए उपयोगी सूक्ष्मजीवों को भी मार देता है। मिट्टी को होने वाले नुकसान को भूमि प्रदूषण के रूप में गिना जाता है।

अम्ल वर्षा:  वातावरण में मौजूद रासायनिक प्रदूषकों के कारण होने वाली अम्लीय वर्षा भी काफी हद तक मिट्टी का क्षय करती है और भूमि प्रदूषण का कारण बनती है। यह भूमिगत जल को भी दूषित करता है।

अपशिष्ट उत्पादों का अलगाव

जैसा कि ऊपर कहा गया है कि औद्योगिक कचरे और घरेलू कचरे को ठीक से निपटाने के लिए भूमि प्रदूषण के सबसे खराब प्रकार के विकल्प हैं। हम भूमि प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव को कम कर सकते हैं यदि हम उनके प्रकार के आधार पर अपशिष्ट उत्पादों को अलग करते हैं। इन्हें तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है – जैविक, पुन: प्रयोज्य और पुन: उपयोग योग्य अपशिष्ट।

यह ज्यादातर मैन्युअल रूप से किया जाता है। हालाँकि, यह एक थकाऊ काम है। हम सूखे कचरे को गीले कचरे से अलग करके अपना योगदान दे सकते हैं। इस प्रकार के कचरे के लिए अलग-अलग डस्टबिन रखने और तदनुसार उन्हें निपटाने का सुझाव दिया गया है।

हाल ही में, मोदी सरकार ने हरे डस्टबिन में गीले कचरे और नीले डस्टबिन में सूखे कचरे के निपटान के लिए एक अभियान चलाया। पूरे भारत में दिल्ली, चंडीगढ़ और अन्य कई शहरों में हजारों हरे और नीले डस्टबिन वितरित किए गए। अपशिष्ट पृथक्करण प्रक्रिया को आसान बनाने के उद्देश्य से कई अन्य को विभिन्न क्षेत्रों में लगाया गया था।

हम अक्सर शिकायत करते हैं कि सरकार भूमि प्रदूषण को कम करने के लिए उचित उपाय नहीं कर रही है। लेकिन क्या हम अपना समान कम करने के लिए कर रहे हैं? नहीं! इसके विपरीत हम इसे केवल जानबूझकर या अनजाने में जोड़ रहे हैं। यह उच्च समय है जब हमें व्यक्तिगत स्तर पर जो भी प्रयास किया जा सकता है, उसे प्रदूषण स्तर को कम करने के लिए हमें अपने कर्तव्य के रूप में लेना चाहिए।

इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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भूमि/जमीन प्रदूषण का निवारण है “शास्वत यौगिक खेती।

సో ఫుగ్

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जल प्रदूषण क्या है कारण प्रभाव एवं रोकने के उपाय | Water Pollution in Hindi

जल प्रदूषण क्या है कारण प्रभाव एवं रोकने के उपाय Water Pollution in Hindi: जलाशय, मीठे जल के बड़े तालाब, झीले तथा नदियाँ मानव व जन्तुओं के लिए पेयजल के मुख्य स्रोत है.

अधिकांश कस्बें, बड़े शहर व औद्योगिक नगर भी इन्ही जल स्रोतों के निकटवर्ती क्षेत्रों में बसे हुए है. घरेलू अपशिष्ट एवं औद्योगिक अपशिष्ट इन्ही जल स्रोतों में प्रवाहित किया जाता है.

जिससे बड़ी मात्रा जल प्रदूषण होता है. जल प्रदूषण विकास शील तथा विकसित राष्ट्रों के लिए एक समस्या बन गईं है.

वाटर पोल्यूशन  क्या है, इनके कारण प्रभाव तथा जल प्रदूषण को रोकने के लिए किन उपायों को अपनाना चाहिए, इसकी चर्चा इस लेख में करेगे.

जल प्रदूषण क्या है कारण प्रभाव रोकने के उपाय Water Pollution in Hindi

जल प्रदूषण क्या है कारण प्रभाव एवं रोकने के उपाय | Water Pollution in Hindi

इन जल स्रोतो का प्रदूषण विभिन्न प्रदूषकों जैसे वाहित मल (Sewage) , कार्बनिक अपमार्जकों (detergents), जल में विलयित पीडकनाशी व कीटनाशी औद्योगिक द्रव अपशिष्ट में घुले कार्बनिक व अकार्बनिक रसायनों, हानिकारक सूक्ष्मजीवों , नदी नालों के साथ बहकर आने वाले मृदा अवसाद (soil sediment) के कारण जल प्रदूषण होता है.

जल प्रदूषण क्या है अर्थ एवं परिभाषा (What is water pollution Meaning & Definition in hindi)

जीवमंडल में जीवों के शरीर के सम्पूर्ण भार का दो तिहाई या 66 प्रतिशत भाग जल ही होता है. मानव रक्त में 79%, मस्तिष्क में 80%, हड्डियों में 10 प्रतिशत जल की मात्रा निहित होती है. जल समस्त जैविक कारकों के शरीर के भागों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.

प्राकृतिक जल में किसी भी अवांछित बाह्य पदार्थ की उपस्थिति जिससे जल की गुणवत्ता में कमी आती हो, जल प्रदूषण कहलाता है. सिंचाई या पीने के लिए जो पानी उपलब्ध है वह मनुष्य की विकृत जीवन पद्धति के कारण प्रदूषित होता जा रहा है.

सिंचाई में कीटनाशकों का उपयोग, उद्योगों द्वारा दूषित पानी को जल स्रोतों में छोड़ा जाना, तेजाबी वर्षा, शहरों के सीवरेज के पानी को नदियों एवं झीलों में छोड़ा जाना. खनिजों का पानी में घुला होना जल प्रदूषण के मुख्य कारण है.

जल प्रदूषित होने से मनुष्य केवल रोगग्रस्त ही नही होते बल्कि भूमि की उत्पादकता में गिरावट भी आती है. जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत निम्नलिखित है.

  • घरेलू अपमार्जक
  • औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ
  • कीटनाशकों का उपयोग
  • ताप एवं आणविक बिजलीघर आदि के प्रयोग से निकलने वाला प्रदूषित जल आदि. जलीय प्रदूषण से जलीय पौधों व जन्तुओं की वृद्धि रुकने व इनकी म्रत्यु हो जाने के साथ साथ भूमि की सतह पर जल अवरोधी सतह बन जाने से भूमिगत जल के स्तर में कमी आती है. उद्योगों से निकलने वाले दूषित जल को उपचारित कर उद्योगों में पुनः कम में लाया जाना चाहिए.

जल प्रदूषण के कारण (Cause of Water Pollution in Hindi)

प्रदूषित जल के प्राकृतिक व मानव जनित दो प्रकार के कारण होते है.-

जल प्रदूषण प्राकृतिक स्रोत (Natural sources of water pollution)-

  • जल प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोतों के अंतर्गत जन्तुओं के मल पदार्थ, पादपो व जन्तुओं के अवशेष, ह्यूमरस, विभिन्न प्रकार के खनिजों की खानों से निकलकर जल में सम्मिश्रण, भू क्षरण इत्यादि सम्मिलित है.
  • बहते हुए पानी में कई बार धातुओं जैसे आर्सेनिक, सीसा (लेड), केडमियम, पारा इत्यादि की मात्रा अधिक हो जाती है. तो ऐसा जल जहरीला हो जाता है.

मानव जनित स्रोतों से जल प्रदूषण (Water Pollution from Human Generated Sources)

  • घर से निकलने वाले कचरे में सड़े फल, तरकारियों के छिलके, कूड़ा करकट, गंदा साबुन व अपमार्जक युक्त प्रमुख है. घरेलू अपशिष्ट पदार्थ मलिन बहिस्राव को मलिन जल कहते है.
  • जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ पानी अधिक खर्च होने लगा तथा कल कारखानों में भी पानी की मांग तेजी से बढ़ी. वस्त्र उद्योग, कागज, रसायन उद्योगों में पानी की खपत ज्यादा होती है व प्रयोग के बाद हल प्रदूषित होता है. इस प्रकार औद्योगिकिकरण की प्रगति के साथ साथ प्रदूषित जल की मात्रा भी बढती है.
  • जल में कणीय पदार्थ अत्यंत सूक्ष्म अघुलनशील पदार्थ, कोलायडी व सूक्ष्मजीव होते है. घरों से निकलने वाली गंदगी में रसोईघरों, स्नानघरों व शौचालयों से निकलने वाली गंदगी प्रदूषकों के रूप में उपस्थित रहती है.
  • कई बार नाइट्रोजन व फास्फोरस की मात्रा अधिक होने पर समुद्र में शैवालों की संख्या अधिक बढ़ जाती है जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगता है. जल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने से वह हड्डियों के रोग उत्पन्न करता है.
  • घरों व उद्योगों से निकले प्रदूषित जल को नदियों व नालों में छोड़ दिया जाता है. आज जल प्रदूषण इतना बढ़ चुका है, कि नदियाँ प्रदूषित जल लेकर समुद्रों में इसे मिलाकर प्रदूषित करती जा रही है.

जल प्रदूषण के मुख्य कारण (water pollution causes and effects)

वाहित मल (sewage as water pollution in hindi).

यह अधिकांश कार्बनिक पदार्थ होते है. जो सूक्ष्मजीवों द्वारा CO2 व जल में ऑक्सीकृत कर दिए जाते है. अतः जल स्रोतों में वाहित मल का अनुपात कम है तो जल प्रदूषित नहीं हो पाएगा.

लेकिन यदि झील या नदी में अधिक वाहित मल को विसर्जित किया है तो सूक्ष्मजीवों की आबादी बहुत बढ़ जाएगी और उनकी श्वसन क्रिया में जल में घुलित ऑक्सीजन समाप्त हो जाएगी तथा उसी अनुपात में जल में CO2 की मात्रा बढ़ जाएगी.

CO2 के अभाव में मछलियाँ व अन्य जलीय जन्तु व पौधें मर जाएगे और नदी या झील एक बदबूदार जलाशय बन जाएगा. एक इकाई आयतन जल में निर्धारित समय में O2 के उपयोग की मात्रा ज्ञात करके कार्बनिक प्रदूषकों की मात्रा का अनुमान लगा देते है, इस प्रकार के मापन को जैव रासायनिक आवश्यक ऑक्सीजन (BIOLOGICAL OXYGEN DEMAND BOD) कहते है.

चमड़े के कारखानों, पशु वधशालाओं, यात्री जहाजों व नौकाओं द्वारा विसर्जित वाहित मल में अनेक संक्रामक जीवाणु होते है. जो मानव व जन्तुओं के कई रोगों जैसे (हैजा, टायफाइड, पीलिया) के कारक है. वाहित मल जलीय जीवों के पोषक है और जलाशयों को अधिक उर्वर या सुपोषी (EUTROPHIC) बनाते है.

सुपोषकों से शैवालों की वृद्धि तेजी से होती है और अल्प काल में ही जलाशय, झील, नदी आदि शैवालों की सघन फूली हुई वृद्धि से भर जाती है. इसे शैवाल ब्लूम (ALGAL LOOM) कहते है.

शैवालों के मरने से इनका जीवाणुओं द्वारा अपघटन भी होता है, जिससे जल में O2 की मात्रा कम हो जाती है. साथ ही साथ जल प्रदूषण बढ़ता जाता है. ऐसी अवायवीय परिस्थतियों में अनेक जलीय पौधें व मछलियाँ मर जाती है.

विभिन्न उद्योगों द्वारा द्रव अपशिष्ट विसर्जन (Fluid waste excretion by various industries)

विभिन्न उद्योगों जैसे पेट्रो रसायन, उर्वरक तेल शोधन, औषधि रेशे, रबर, प्लास्टिक आदि के कारखानों से निकला द्रव अपशिष्ट नदियों के लिए गंभीर प्रदूषक है.

इन कारखानों से निकलने वाले अपशिष्टों में अनेक विषाक्त रसायन व अम्ल घुले रहते है, ये जल को दूषित करते है तथा भूमि में रिसकर भूमितल के जल को भी प्रदूषित करते है.

इन द्रव अपशिष्टों के कारण झीलों के जल का प्रदूषण हो जाता है. इनमें रहने वाले पेड़ पौधे मर जाते है. जन्तुओं तथा मनुष्यों द्वारा इस जल को पीने से अनेक गम्भीर रोग हो जाते है.

ये विषाक्त पदार्थ एक जीव से दूसरे जीव में खाद्य श्रंखला द्वारा स्थानातरित हो जाते है. रसायन उद्योग व पारा, द्रव अपशिष्टों के रूप में नदियों और फिर समुद्री जल में पहुच जाता है. स्वचालित नौकाओं के विरेचन से भी पारा व सीसा होता है और जल में मिलता रहता है.

यह अत्यंत विषाक्त मिथाइल पारा बनाता है जो जलीय जन्तुओं के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है. जल का दूसरा धातु प्रदूषक सीसा (lead) है.

यह सीसा खनन व स्वचालित जलवाहक रेचकों द्वारा जल में पहुचता है तथा जन्तुओं में खाद्य श्रंखला द्वारा पहुचकर विषाक्त प्रभाव दिखाता है.

जल प्रदूषक के रूप में रासायनिक उर्वरक (Chemical fertilizer as a water pollution In Hindi)

कृषि उत्पादन में वृद्धि करने हेतु रासायनिक उर्वरकों जैसे यूरिया, पोटाश, डाइमोनियम फास्फेट आदि का उपयोग किया जाता है. ये उर्वरक जल के साथ बहकर जलाशयों में आ जाते है. इस कारण शैवाल ब्लूम (algal bloom) बनते है.

जल प्रदूषण के रूप में पीडकनाशी व कीटनाशक (Pidicidal and pesticide in the form of water pollution In Hindi)

फसल के रोगाणुओं व कीटों का नाश करने हेतु पीड़कनाशीयों व कीटनाशकों का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है. पीड़क नाशक ddt का उपयोग कृषि में नाशक जीवों को नष्ट करने व मच्छरों का नाश करने में किया जाता है. इसका अधिक उपयोग अब एक गंभीर मृदा एवं जल प्रदूषण का कारण बन गया है.

ये सभी अविघनीय कार्बिनिक यौगिक है. इसके लगातार उपयोग से मृदा व जल में इनकी सांद्रता बढती जाती है. ये रसायन जैविक आवर्धन (biological magnification) भी प्रदर्शित करते है.

इन हानिकारक रसायनों की सांद्रता उतरोतर पोषकस्तरों में बढ़ती जाती है. जब पादप शरीर में ddt की सांद्रता बढ़ती जाती है तब इन पर निर्भर शाकाहारी कीटों मछलियों द्वारा इन पादपों का भक्षण, इन उपभोक्ताओं में ddt की सांद्रता को और अधिक बढ़ा देते है.

इसी क्रम में खाद्य श्रंखला के अंतिम मासाहारी उपभोक्ताओं में DDT की सांद्र्ट्स की वृद्धि होना हानिप्रद हो जाता है. मानव द्वारा मच्छलियों को खाने से उनका स्वास्थ्य गम्भीर रूप से प्रभावित होता है.

प्रदूषित जल पीने योग्य नही होता है. इसमें प्राय एक विशिष्ट प्रकार की दुर्गन्ध आती है. यह नहाने धोने के लिए उपयुक्त नही होता है. इसमें अनेक रोगों (टाइफाइड, हैजा व पीलिया ) के रोगाणु होते है. ये प्रदूषित जल पीने से रोग फैलते है.

सागरीय जल का प्रदूषण (Pollution of sea water)

सागरीय जल का प्रदूषण निम्न कारणों से होता है.

  • सागर के तटवर्ती भागो में नगरीय एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों से अपशिष्ट जल, मलजल, कचरा तथा विषाक्त रसायनों का विसर्जन.
  • ठोस अपशिष्ट पदार्थों खासकर प्लास्टिक की वस्तुओं का सागरों में निस्तरण.
  • तेल वाहक जलयानों से भारी मात्रा में खनिज तेल का रिसाव तथा अपतट सागरीय तेल कुंपो से निसंतत प्रदूषण. खनिज तेल के रिसाव से सागरीय जल की सतह पर तेल की परत (oil slicks) बन जाती है. जो सागरीय जीवों को नष्ट कर देती है.
  • भारी धात्विक पदार्थों यथा सीसा, तांबा, जस्ता, क्रोमियम व निकल आदि का वायुमंडलीय मार्ग से सागरों में पहुचना. जलयानों तथा नाभिकीय शस्त्रों के परीक्षण से निकलकर सागरों में पहुचना आदि.

सागरीय जल प्रदूषण को रोकने के उपाय ( Can Do To Reduce Water Pollution)

सागरीय जल को विश्व समुदाय की ओर से प्रदूषण मुक्त रखने के लिए प्रभावी उपाय जरुरी है. यदि प्रदूषकों के सागरों में विसर्जन एवं निस्तारण पर पूर्ण रोक संभव नही है तो कम से कम उसकी न्यूनतम मात्रा तो निर्धारित होनी चाहिए.

इस सन्दर्भ में कई कानून भी बनाए गये है. यथा उच्च सागर के कानून, महाद्वीपीय मग्न तट कानून आदि. लेकिन ये कानून पर्याप्त नही है.

गहरे सागरों के विदोहन, सागरों के सामरिक और सैनिक उपयोग, वैज्ञानिक शोध आदि से सम्बन्धित कानून तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है. सागरीय जैविक प्रक्रिया के अध्ययन के लिए गहन एवं व्यापक पारिस्थतिकीय शोध की अति आवश्यकता है.

जल प्रदूषण का प्रभाव (impact of water pollution on human health)

  • पारे द्वारा प्रदूषित जल के उपयोग से मिनिमाटा रोग हो जाता है.
  • पेयजल में नाइट्रेड की अत्यधिक मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. तथा इससे नवजात शिशुओं की म्रत्यु भी हो जाती है. नाइट्रेड के कारण ब्लू बेबी सिंड्रोम नामक बीमारी हो जाती है.
  • पेयजल में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा से दांतों में विकृति आ जाती है.
  • जल में आर्सेनिक होने से ब्लैकफुट बीमारी हो जाती है. आर्सेनिक से डायरिया, पेरिफेरल, फेफड़े व त्वचा का कैंसर हो जाता है.
  • प्रदूषित जल से मानव की खाद्य श्रंखला प्रभावित होती है.
  • मछुआरों की आजीविका व स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.

जल प्रदूषण पर नियंत्रण, रोकने के उपाय (Control over water pollution in hindi)

निम्नलिखित उपाय जल प्रदूषण के नियंत्रण हेतु कारगर हो सकते है.

  • मानव समुदाय को जल प्रदूषण के विभिन्न पक्षों के विषय में चेतना तथा जन जागरण कराना होगा तथा जल प्रदूषण का सही बोध कराना होगा.
  • आम जनता को जल प्रदूषण एवं उससे उत्पन्न कुप्रभावों के बारे में शिक्षित करना होगा.
  • आम जनता को घरेलू अपशिष्ट प्रबन्धन में दक्ष करना होगा.
  • औद्योगिक प्रतिष्ठान हेतु स्पष्ट नियम बनाए जाए, जिससे वें कारखानों से निकले अपशिष्टों को बिना शोधित किये नदियों, झीलों या तालाबों में विसर्जित ना करे.
  • नगरपालिकाओं के लिए सीवर शोधन सयंत्रों की स्थापना कराई जानी चाहिए तथा सम्बन्धित सरकार को प्रदूषण नियंत्रण की योजनाओं के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन के लिए आवश्यक धन तथा अन्य साधन प्रदान किये जाएं.
  • नियमों एवं कानूनों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए. तथा इनके उल्लघन करने पर कठोर सजा एवं अर्थ दंड मिलना चाहिए.

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10 मोटिवेशनल किताबें जो आपको ज़रूर पढ़नी चाहिएं

पर्यावरण बचाने के 10 प्रैक्टिकल तरीके | world environment day – 5th june.

Last Updated: June 9, 2024 By Gopal Mishra 35 Comments

How To Save Environment in Hindi

पर्यावरण बचाने के 10 प्रैक्टिकल तरीके.

हाल ही में हम Indians ने एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया है जो अन्य किसी भी देश के लिए तोड़ना लगभग असम्भव है. और वो रिकॉर्ड है दुनिया के 14 सबसे polluted शहर बनाने का.

rummy gold

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Friends, आपको बताने की ज़रुरत नहीं कि ये पृथ्वी..ये हवा.. ये पानी और ये पर्यावरण हमारे लिए कितना ज़रूरी है और आप ये भी जानते हैं कि हम human beings ने इन्हें कितना नुक्सान पहुंचाया है और पहुंचा रहे हैं… इसलिए आज मैं इस बारे में बात नहीं करूँगा. मैं बात करूँगा ACTION लेने के बारे में.

ये भी पढ़ें:  5 जून विश्व पर्यावरण दिवस | हमेशा के लिए सोने से पहले जाग जाओ!

इस पर्यावरण दिवस पर कुछ न कुछ ऐसा करिए और continuously करते रहिये जो हमारे environment को बचाने में काम आये. और इस काम को आसान बनाने के लिए आज मैं AchhiKhabar.Com पर आपके साथ ऐसे ही कुछ environment friendly practical ideas शेयर कर रहा हूँ जिन्हें आप बिना किसी ख़ास मेहनत के अपनी routine life का हिस्सा बना सकते हैं.

Rummy Perfect

May be, इनमे से कुछ आप पहले से follow कर रहे होंगे… अच्छा है, but अगर आप यहाँ से कुछ ले पाएं और अपनी life का हिस्सा बना पाएं तो बहुत अच्छा होगा.

So let’s see the list:

How To Save Environment in Hindi

1. आधा किलोमीटर तक की राउंड ट्रिप पैदल या साइकिल से तय करें:

बहुत से लोग 100 कदम चलने के लिए भी पट्रोल फूंकते हैं…please don’t do it. एक Thumb Rule बनाइये –

अगर आना जाना मिला कर 1/2 km के अन्दर है तो मैं पैदल या साइकल जाऊँगा / जाउंगी.

ऐसा करने से पर्यावरण के साथ-साथ आपकी हेल्थ भी अच्छी हो जायेगी. 🙂

2. RO का waste water वेस्ट न होने दें:

Typically RO में जब 4 litre पानी डाला जाता है तब वो 1 लीटर पीने योग्य पानी देता है. यानी एक के लिए तीन बर्बाद. थोडा सा effort करके आप इस पानी को बचा सकते हैं और इसे-

  • पौधों में डालने घर की सफाई करने
  • इत्यादि के काम ला सकते हैं.

ये इतना मुश्किल भी नहीं है, मैं खुद RO से निकलने वाला पानी बचाता हूँ. इन पिक्चर्स को देखिये:

paryavaran bachane ke tareeke

3. कमरे से निकलते समय lights, fans, AC off कर दें:

ये तो स्कूल डेज से ही सिखाया जा रहा है, बहुत लोग follow भी करते हैं, पर अभी भी बहुत से लोग नहीं करते. So, if you don’t, plz follow it.

4. वाश बेसिन का फ्लो कम कर दें:

ये एक बेहद आसान और प्रैक्टिकल तरीका है पानी बचाने का.वाश बेसिन के नीचे भी पानी कण्ट्रोल करने के लिए एक टैप लगी होती है, अकसर वो पूरी खुली होती है, अगर आप उसे थोड़ा सा घुमा देंगे तो पानी का फ्लो अपने आप कुछ कम हो जाएगा और काफी पानी बर्बाद होने से बच पायेगा।

  • ज़रूर पढें:  पर्यावरण की महत्ता बताते 30 कथन

5. अपनी कार / बाइक / स्कूटी में शौपिंग बैग्स रखें:

क्या आप जानते हैं –

World Environment Day Facts in Hindi

प्लास्टिक को ना कहिये.. खुद से ना कहिये… सरकारी नियम और प्लास्टिक पे बैन का इंतज़ार मत करिए…अपनी गाड़ी में शौपिंग बैग्स, (preferably made of jute) रखिये, ख़ास तौर पर सब्जियां और किराने का सामन लेते समय. और इस बार (2018) पर्यावरण दिवस की थीम भी है “beat plastic pollution”. इसलिए आज से ये आदत डालने का बहुत अच्छा दिन है.

How To Save Environment From Pollution in Hindi

6. उतना खाना लीजिये जितना खा सकते हैं:.

क्या आप जानते हैं?

अन्न की बर्बादी सिर्फ अन्न की नहीं होती…उसके साथ करोड़ों लीटर पानी, तेल और उर्जा भी बर्बाद हो जाती है. घर हो या बाहर…पैसे का हो या फ्री का… खाना उतना ही लें जितना आसानी से ख़त्म कर सकें. खासतौर से restaurants में जाकर कम आर्डर करने में शर्म महसूस नहीं करें…शर्म सिर्फ खाना बर्बाद करने में आनी चाहिए.

7. इस बात को समझिये- पैसा आपका है लेकिन संसाधन समाज के हैं:

जब जमर्नी में रतन टाटा के कुछ दोस्त अपनी प्लेट्स में खाना छोड़ कर उठे तो restaurant में बैठे कुछ जर्मन्स ने विरोध किया और पुलिस बुला ली.

दोस्तों ने कहा हमने इसे पैसे दिए हैं.

तब पुलिस कर्मी ने उन पर 50 यूरो का फाइन लगाते हुए कहा –

पैसा आपका है लेकिन संसाधन समाज के हैं।

इस बात को आप भी गाँठ बाँध लीजिये… पैसा आपको किसी natural resource को वेस्ट करने का अधिकार नहीं देता. आपका पैसा आपको बिजली, पानी, खाना बर्बाद करने का अधिकार नहीं देता. (पूरा incident यहाँ पढ़िए )

8. Use and throw नहीं use and reuse करें

  • नयी पेन लेने की जगह उसकी रिफिल बदलवाएं
  • थोड़ी से खारबी के कारण जूते-कपड़े डंप करने की जगह मोची-दर्जी के पास जाएं
  • पुराने क्लास की कॉपीयां के सादे पन्ने प्रयोग करें

ज़रूर पढ़ें: हम क्या उगाते हैं, जब हम पेड़ लगाते हैं? | Hindi Poem on Trees

9. Sachin Tendulkar की तरह नहाएं

सचिन बाथ टब में या झरने से नहीं नहाते, वे बस 1 बाल्टी पानी से नहाते हैं. सचिन के लिए आपने बहुत तालियाँ बजायीं हैं, एक बाल्टी पानी से नहाने की आदत डालकर कर उन्हें भी आपके लिए तालियाँ बजाने का मौका दें.

  • Must Read: पानी की बर्बादी रोकने के 18 तरीके जिनपर आपने ध्यान नहीं दिया

10. बच्चों में Environment Friendly आदत डालें

हमने जो गलतियाँ कीं वो हमारे बच्चे ना करें इसके लिए ज़रूरी है कि हम शुरू से उन्हें पर्यावरण और उसके महत्त्व के बारे में बताएँ. हम उन्हें सिखाएं कि –

  • नहाने या brush करते समय पानी वेस्ट नहीं करना है.
  • Bed room हो या क्लास रूम, बाहर निकलते समय लाइट्स / फैन्स ऑफ करने हैं.
  • प्लास्टिक को ना कहना है.
  • जहाँ साइकिल से जा सकते हैं वहां मोटरसाइकिल से नहीं जाना है… जहाँ मोटरसाइकिल से जा सकते हैं वहां कार से नहीं जाना है.
  • घर का कूड़ा सड़क पर न फेंकना है न जलाना है.

दोस्तों, अंत में बस इतना याद रखियेगा कि-

Environment Quotes in Hindi

“हमें यह ग्रह हमारे पूर्वजों से उत्तराधिकार में नहीं मिला, ये हमें अपने बच्चों से उधार में मिला है.”

Let us build a greener tomorrow..let us care for our environment.

Gopal Mishra

  • 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस | हमेशा के लिए सोने से पहले जाग जाओ!
  • प्रकृति की विशेषता बताते 38 अनमोल विचार
  • पृथ्वी दिवस कथन व नारे
  • 5 चीँजे जो हम प्रकृति से सीख सकते है
  • प्रकृति से लें प्रेरणा
  • क्यों करें वृक्षारोपण? 10 कारण

Do you have some more ideas on  “ How To Save Environment in Hindi ”. Please share your comments.

Note: आप इस लेख को  पर्यावरण संरक्षण पर निबंध /  how to save the environment essay in Hindi के लिए प्रयोग कर सकते हैं.

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June 6, 2024 at 3:19 pm

Aapko is topic par koi new post publish karni chahiye, aapki new post se insan ke vichar badalenge.

June 8, 2023 at 7:40 am

Paryavaran bachane ke aur bhi kai tarike hai aapko unka thoda – thoda jikra jarur karna chahiye.

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June 5, 2023 at 1:18 pm

great artical

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July 1, 2022 at 10:26 pm

Wow! What a writer. You just inspired me Thanks a lot

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how to stop pollution in hindi essay

प्रदूषण पर निबंध / Essay on Pollution in Hindi

how to stop pollution in hindi essay

प्रदूषण पर निबंध / Essay on Pollution in Hindi!

प्रदूषण आज की दुनिया की एक गंभीर समस्या है । प्रकृति और पर्यावरण के प्रेमियों के लिए यह भारी चिंता का विषय बन गया है । इसकी चपेट में मानव-समुदाय ही नहीं, समस्त जीव-समुदाय आ गया है । इसके दुष्प्रभाव चारों ओर दिखाई दे रहे हैं ।

प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ है-गंदगी । वह गंदगी जो हमारे चारों ओर फैल गई है और जिसकी गिरफ्त में पृथ्वी के सभी निवासी हैं उसे प्रदूषण कहा जाता है । प्रदूषण को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण । ये तीनों ही प्रकार के प्रदूषण मानव के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं।

वायु और जल प्रकृति-प्रदत्त जीवनदायी वस्तुएँ हैं । जीवों की उत्पत्ति और जीवन को बनाए रखने में इन दोनों वस्तुओं का बहुत बड़ा हाथ है । वायु में जहाँ सभी जीवधारी साँस लेते हैं वहीं जल को पीने के काम में लाते हैं । लेकिन ये दोनों ही वस्तुएं आजकल बहुत गंदी हो गई हैं ।

वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण इसमें अनेक प्रकार की अशुद्ध गैसों का मिल जाना है । वायु में मानवीय गतिविधियों के कारण कार्बन डायऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसे प्रदूषित तत्व भारी मात्रा में मिलते जा रहे हैं । जल में नगरों का कूड़ा-कचरा रासायनिक पदार्थों से युक्त गंदा पानी प्रवाहित किया जाता रहा है । इससे जल के भंडार; जैसे-तालाब, नदियाँ,झीलें और समुद्र का जल निरंतर प्रदूषित हो रहा है ।

ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है – बढ़ती आबादी के कारण निरंतर होनेवाला शोरगुल । घर के बरतनों की खट-पट, मशीनों की खट-पट और वाद्‌य-यंत्रों की झन-झन दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है । वाहनों का शोर, उपकरणों की चीख और चारों दिशाओं से आनेवाली विभिन्न प्रकार की आवाजें ध्वनि प्रदूषण को जन्म दे रही हैं । महानगरों में तो ध्वनि-प्रदूषण अपनी ऊँचाई पर है ।

ADVERTISEMENTS:

प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में विचार करें तो ये बड़े गंभीर नजर आते हैं । प्रदूषित वायु में साँस लेने से फेफड़ों और श्वास-संबंधी अनेक रोग उत्पन्न होते हैं । प्रदूषित जल पीने से पेट संबंधी रोग फैलते हैं । गंदा जल, जल में निवास करने वाले जीवों के लिए भी बहुत हानिकारक होता है । ध्वनि प्रदूषण मानसिक तनाव उत्पन्न करता है । इससे बहरापन, चिंता, अशांति जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है ।

आधुनिक वैज्ञानिक युग में प्रदूषण को पूरी तरह समाप्त करना टेढ़ी खीर हो गई है । अनेक प्रकार के सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास अब तक नाकाफी सिद्ध हुए हैं । अत: स्पष्ट है कि जब तक जन-समूह निजी स्तर पर इस कार्य में सक्रिय भागीदारी नहीं करता, तब तक इस समस्या से निबटना असंभव है । हरेक को चाहिए कि वे आस-पास कूड़े का ढेर व गंदगी इकट्‌ठा न होने दें ।

जलाशयों में प्रदूषित जल का शुद्धिकरण होना चाहिए । कोयला तथा पेट्रोलियम पदार्थों का प्रयोग घटा कर सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, बायो गैस, सी.एन.जी, एल.पी.जी, जल-विद्‌युत जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों का अधिकाधिक दोहन करना चाहिए । हमें जंगलों को कटने से बचाना चाहिए तथा रिहायशी क्षेत्रों में नए पेड़ लगाने चाहिए । इन सभी उपायों को अपनाने से वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण को घटाने में काफी मदद मिलेगी ।

ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए कुछ ठोस एवं सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है । रेडियो, टी.वी. , ध्वनि विस्तारक यंत्रों आदि को कम आवाज में बजाना चाहिए । लाउडस्पीकरों के आम उपयोग को प्रतिबंधित कर देना चाहिए । वाहनों में हल्के आवाज वाले ध्वनि-संकेतकों का प्रयोग करना चाहिए । घरेलू उपकरणों को इस तरह प्रयोग में लाना चाहिए जिससे कम से कम ध्वनि उत्पन्न हो ।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रदूषण को कम करने का एकमात्र उपाय सामाजिक जागरूकता है । प्रचार माध्यमों के द्वारा इस संबंध में लोगों तक संदेश पहुँचाने की आवश्यकता है । सामूहिक प्रयास से ही प्रदूषण की विश्वव्यापी समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है ।

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प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध (Plastic Pollution Essay in Hindi)

प्लास्टिक प्रदूषण हमारे पर्यावरण को काफी तेजी से नुकसान पहुंचा रहा है। प्लास्टिक पदार्थो से उत्पन्न कचरे का निस्तारण काफी कठिन होता है और पृथ्वी पर प्रदूषण में भी इसका काफी अहम योगदान है, जिससे यह एक वैश्विक चिंता का विषय बन गया है। प्लास्टिक बैगों, बर्तनो और फर्नीचर के बढ़ते इस्तेमाल के वजह से प्लास्टिक के कचरे में काफी वृद्धि हुई है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण जैसी भीषण समस्या उत्पन्न हो गयी है। यह वह समय है जब हमे इस समस्या पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए, इसके समाधान के लिये प्रयास शुरु करने होंगे।

प्लास्टिक प्रदूषण पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Plastic Pollution in Hindi, Plastic Pradushan par Nibandh Hindi mein)

निबंध – 1 (300 शब्द).

प्लास्टिक प्रदूषण प्लास्टिक के कचरे से उत्पन्न होता है, आज के समय में यह विकराल रुप धारण कर चुका है और दिन-प्रतिदिन यह बढ़ता ही जा रहा है। यह हमारे इस खुबसूरत ग्रह पे भी कई प्रकार के नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिससे यह जनजीवन के लिये एक गंभीर संकट बन गया है, यही कारण है कि आज प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक चिंता का विषय बना हुआ है।

प्लास्टिक प्रदूषण को कैसे रोके

इन दो उपायो का अपने दैनिक जीवन में अपनाकर हम प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने में महात्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।

  • उपयोग ना करके/ अन्य विकल्पो को अपनाकर

प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिये सबसे महात्वपूर्ण कदम यह है कि हमें प्लास्टिक के उपयोग से बचना चाहिये।

क्योंकि अब हम इनके उपयोग के आदि हो चुके है तथा यह काफी सस्ते भी है, इसलिये हम इनके उपयोग को पूरी तरह से बंद नही कर सकते है। हालांकि हम उन प्लास्टिक उत्पादो के उपयोग को आसानी से बंद कर सकते है, जिनके इको-फ्रैंडली विकल्प उपलब्ध है। जैसे कि उदहारण के लिये , बाजार से सामान खरीदते समय हम प्लास्टिक बैग के जगह हम जूट, कपड़े या पेपर से बने बैगों का इस्तेमाल कर सकते है। ठीक इसी तरह पार्टियो और उत्सवो के दौरान हम प्लास्टिक के बर्तन और अन्य सामानो का उपयोग के जगह हम स्टील, कागज, थर्माकोल या अन्य उत्पादो से वस्तुओ का उपयोग कर सकते है, जिनका आसानी से पुनरुपयोग और निस्तारण किया जा सके।

यदि आप प्लास्टिक बैगों और प्लास्टिक से बने अन्य वस्तुओ का उपयोग नही बंद कर सकते तो कम से कम उन्हे फेंकने से पहले जितनी बार भी हो सके उनका पुनरुपयोग करे। प्लास्टिक बैगों और सामानो का उपयोग करके उन्हे फेंक देना लगभग हमारी आदत सा बन चुका है, जबकि यदि हम चाहे तो फेंकने से पहले हम इनका पुनरुपयोग कर सकते है, इस लिये यह काफी आवश्यक है कि हम फेंकने से पहले इनका पुनरुपयोग करे। इस प्रकार से हम प्लास्टिक कचरे को कम करने में और प्लास्टिक प्रदूषण के रोकथाम में अपनी महात्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।

निष्कर्ष यह वह समय है जब हमें एक साथ मिलकर प्लास्टिक प्रदूषण जैसे इस भयावह दानव का सामना करने की आवश्यकता है। अगर हम सभी इन बताये गये उपयो को अपना ले तो हम प्लास्टिक प्रदूषण के स्तर को कम करके आसानी से इसपर काबू पा सकते है।

निबंध – 2 (400 शब्द)

आज के समय में प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण के लिये एक गंभीर संकट बन गया है और आने वाले समय में यह और भी ज्यादे भयावह होने वाला है। इस प्रदूषण के कई कारण है तथा इसके नकरात्मक प्रभावो की संख्या उससे भी ज्यादे है।

प्लास्टिक प्रदूषण के कारण

1.किफायती और उपयोग में आसान प्लास्टिक सबसे ज्यादे इस्तेमाल किये जाने वाले पदार्थो में से एक है इससे डब्बे, बैग, फर्नीचर और अन्य कई उत्पाद बनाये जाते है क्योंकि किफायती होने के साथ इन्हे किसी भी आकार में ढाला जा सकता है। प्लास्टिक के वस्तुओं के बढ़ते उपयोग के कारण ही प्लास्टिक प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है।

2.नान-बायोग्रेडबल

प्लास्टिक से उत्पन्न कचरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि प्लास्टिक एक नान- बायोडिग्रेडबल पदार्थ है इसलिये यह जल और भूमि में विघटित नही होता है। यह वातावरण में सैकेड़ो वर्षो तक बना रहता है, जिससे यह भूमि, जल और वायु प्रदूषण का कारण बनता है

3.प्लास्टिक क्षय होता है परंतु विघटित नही होता है

प्लास्टिक बैग और प्लास्टिक से बने अन्य उत्पाद छोटे-छोटे टुकड़ो में टूट जाते है तथा मिट्टी और पानी के स्त्रोतो में मिल जाते है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है।

प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभाव              

इन बताये गये तरीको से प्लास्टिक प्रदूषण हमारे पर्यावरण और पृथ्वी के जनजीवन पर प्रभाव डालता है।

1.जल को प्रदूषित करता है

प्लास्टिक से उत्पन्न कचरा पानी के स्त्रोतो जैसे कि, नदियो, समुद्रो तथा महासागरो में मिल जाता है और इन्हे बुरे तरीके से प्रभावित करता है। यही पानी हमारे उपयोग के लिये हम तक पहुंचाया जाता है, इससे कोई भी फर्क नही पड़ता कि हम इन्हे कितना भी छाने यह उपने वास्तविक अवस्था में कभी वापस नही आ सकता और इस पानी के उपयोग से हमारे स्वास्थ्य पर भी नकरात्मक प्रभाव पड़ता है।

2.भूमि को प्रदूषित करता है

भारी मात्रा में प्लास्टिक से उत्पन्न होने वाले कचरे का लैंडफिलो में निस्तारण किया जाता है। इसके अलावा हवा द्वारा उड़ा लिये जाने पर प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े एक स्थान से उड़कर दूसरे स्थान पर पहुंचा दिये जाते है और प्लास्टिक के यह टुकड़े हानिकारक रसायन उत्पन्न करते है जोकि मिट्टी के गुण तथा  उर्वरकता को नष्ट कर देता है। यह पेड़-पौधो के वृद्धि को भी प्रभावित करता है, इसके अलावा बेकार पड़े हुए प्लास्टिक से मच्छर और अन्य तरह के कीड़े उत्पन्न होते है जो कई तरह की बिमारिया फैलाते है।

3. समुद्री जीवन के लिये खतरा

प्लास्टिक बैग और अन्य प्लास्टिक कचरे जोकि नदियो और समुद्रो में पहुंच जाते है। उसे समुद्री जीवो द्वारा भ्रमवश अपना भोजन समझकर खा लिया जाता है, जिससे वह बिमार पड़ जाते है।

4.पशुओ के लिये हानिकारक

ज्यादेतर छुट्टा पशुओं द्वारा कचरे में फेका गया खाना खाया जाता है। वह प्लास्टिक बैगों को अपने खाने के साथ खा लेते है, जो उनके आंतो में फंस जाता है, जिससे अंत में या तो उनकी मृत्यु हो जाती है या फिर उनके अंदर कई गंभीर बिमारीयां उत्पन्न कर देता है।

प्लास्टिक प्रदूषण विश्व भर के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। हमारे द्वारा की जाने वाली लापरवाहियो के कारण यह और भी बढ़ता जा रहा है। यह वह समय है जब हमे इसके समाधान के लिये कठोर फैसले लेने की आवश्यकता है।

Essay on Plastic Pollution in Hindi

निबंध – 3 (500 शब्द)

प्लास्टिक प्रदूषण पूरे विश्व के लिए एक चिंताजनक विषय बन गया है। कई सारे देशो के सरकारो द्वारा इस मुद्दे को लेकर प्लास्टिक बैगों पर प्रतिबंध जैसे कड़े फैसले लिये जा रहे है। इसके बाद भी इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब हम सभी इस समस्या को लेकर जागरुक हो और इसे रोकने में अपना योगदान दे।

सरकार द्वारा कड़े फैसले लेने की आवश्यकता

यह वह समय है जब सरकार द्वारा इस समस्या से लड़ने के लिये कड़े फैसले लेने की आवश्यकता है। यह कुछ जरुरी कदम है जिनका आवश्यक रुप से पालन किया जाना चाहिए।

  • प्लास्टिक उत्पादन पर नियंत्रण करके

प्लास्टिक वस्तुओं के बढ़ते मांग के कारण, विश्व भर में प्लास्टिक का उत्पादन बढ़ता जा रहा है। सरकार को अब किसी नयी संस्था को प्लास्टिक उत्पादन की मंजूरी नही देनी चाहिये, जिससे प्लास्टिक के उत्पादन को नियंत्रित किया जा सके।

  • प्लास्टिक के वस्तुओ पर प्रतिबंध

कई देशो के सरकारो द्वारा प्लास्टिक बैग के उपयोग प्रतिबंधित कर दिया गया है क्योंकि इनके द्वारा ही सबसे ज्यादे मात्रा में प्लास्टिक प्रदूषण फैलाया जाता है। हालांकि भारत जैसे कुछ देशो में इन प्रतिबंधो को सही ढंग से लागू नही किया गया है। इसके लिये सरकार को प्लास्टिक बैग के उपयोग को रोकने के लिये कड़े फैसले लेने की आवश्यकता है।

  • जागरुकता फैलाकर

इसके साथ ही लोगो में प्लास्टिक कचरे के पर्यावरण पर नकरात्मक प्रभाव को लेकर लोगो में जागरुकता फैलाने की भी आवश्यकता है। यह कार्य टेलीविजन और रेडियो विज्ञापनो, होर्डिगों तथा सोशल मीडीया के माध्यमों से आसानी से किया जा सकता है।

  • प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के कुछ अन्य आसान उपाय

यहा प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के कुछ अन्य उपाय आसान बताये गये, जिनको अपनाकर प्लास्टिक प्रदूषण को कम करके वातावरण को स्वच्छ रखा जा सकता है।

  • प्लास्टिक बैगों का उपयोग ना करके

पलास्टिक बैग टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ो में विभक्त होकर पानी के स्रोतों में मिल जाता है जिससे यह मिट्टी में मिलकर पेड़-पौधो की वृद्धि पर भी नकरात्मक प्रभाव डालता है। इसके साथ ही यह जलीय जीवन पर भी हानिकारक प्रभाव डालता है। ज्यादेतर यह बैग किराने का सामान लाने के लिए उपयोग किये जाते है यदि हम चाहे तो आसानी से इनका उपयोग बंद करके पुनरुपयोग होने वाले कपड़े के बैगों को अपना सकते है।

  • बोतलबंद पानी का उपयोग बंद करके

बोतलबंद पानी प्लास्टिक के बोतलो और ग्लासो में आता है। यह खराब पानी के बोतल और ग्लास, प्लास्टिक प्रदूषण में अहम भूमिका निभाते है। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है कि हम बोतलबंद पानी को खरीदना बंद कर दे और इसके बजाय अपने खुद के पानी के बोतलो का इस्तेमाल करे।

  • बाहर का खाना मंगाना बंद करके

ज्यादेतर बाहर का खाना प्लास्टिक के डिब्बो में पैक करके दिया जाता है, जोकि प्लास्टिक से उत्पन्न होने वाले कचरे का कारण बनता है। इसलिये रेस्तरां से खाना मंगाने के जगह हमें घर का बना हुआ भोजन करना चाहिये, जोकि हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनो के लिये ही अच्छा है।

बहुत सारी रिसायकलिंग कंपनियां इस्तेमाल किये हुए प्लास्टिक के डिब्बे, बोतल, और अन्य चीजे लेती है, तो इन्हे फेंकने के बजाय हमें इन चीजो को इन रीसायकलिंग कंपनियो को दे देना चाहिये।

  • किराने का सामान थोक में खरीदकर

किराने के छोटे-छोटे कई पैकेटो को खरीदने से अच्छा है कि हम एक बड़ा पैकेट खरीद ले क्योकि ज्यादेतर यह चीजे प्लास्टिक के छोटे-छोटे पन्नीयो या डिब्बो में पैक होते है, इस तरीके को अपनाकर भी हम प्लास्टिक के कचरे में कमी ला सकते है।

प्लास्टिक से उत्पन्न होने वाले कचरे का निस्तारण और इसकी बढ़ती मात्रा एक चुनौती बनते जा रही है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण जैसी समस्या ने इतना भयावह रुप धारण कर लिया है। इन दिये गये कुछ आसाना और दिर्घकालिक उपायो से हम प्लास्टिक प्रदूषण के स्तर को कम करने में अपनी सराहनीय भूमिका निभा सकते है।

निबंध 4 (600 शब्द)

प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रही है। शोधों से पता चला है कि पिछले दो दशको में प्लास्टिक का उपयोग काफी तेजी से बढ़ा है। प्लास्टिक इस्तेमाल करने में काफी आसान और किफायती भी होता है यही वजह है कि लोगो के बीच प्लास्टिक से बने उत्पाद इतने लोकप्रिय है। लोगो की बढ़ती मांगो को देखते हुए प्लास्टिक के उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। जितना ज्यादे प्लास्टिक इस्तेमाल होता है, इससे उतना ज्यादे कचरा भी इकठ्ठा होता है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण जैसी खतरनाक समस्या उत्पन्न हो जाती है। यह जनजीवन पर संकट बढ़ाने के साथ ही कई तरह के बीमारीयो को भी जन्म देता है।

प्लास्टिक उत्पादनः उपयोगी संसाधनो का दोहन

प्लास्टिक के निस्तारण के साथ-साथ ही इसका उत्पादन भी उतनी ही गंभीर समस्या है। प्लास्टिक के निर्माण में कई तरह के जीवाश्म ईंधनो जैसे की तेल और पेट्रोलियम आदि का उपयोग किया जाता है। यह जीवाश्म ईंधन गैर-नवकरणीय संसाधन होते है और इन्हे प्राप्त करना भी काफी कठिन होता है, इन जीवाश्म ईंधनो को निकालने में काफी निवेश और संसाधनो की आवश्यकता होती है और यदि हम इसी तरह प्लास्टिक उत्पादन में इनका उपयोग करते रहेगे तो वह दिन दूर नही है जब ये समाप्त हो जायेगे, जिससे हमारे बाकी के जरुरी काम भी ठप पड़ जायेंगे।

समुद्री जीवनः प्लास्टिक प्रदूषण से सबसे बुरी तरह से प्रभावित

प्लास्टिक बैग और अन्य प्लास्टिक के कण हवा तथा पानी द्वारा समुद्रो, महासागरो और अन्य पानी के स्रोतों में मिला दिये जाते है। वह लोग जो पिकनिक और कैपिंग के लिये जाते है, उनके द्वारा भी प्लास्टिक बोतलो और पैकटो के द्वारा प्लास्टिक प्रदूषण फैलाया जाता है।

यह सब नदीयों और समुद्रों में पहुंच जाता है, जिससे समुद्री जीवो के लिये एक गंभीर संकट उत्पन्न हो जाता है, क्योकि निरीह जीवो द्वारा इन प्लास्टिको को अपना भोजन समझकर खा लिया जाता है। जिससे मछलियों, कछुओं और अन्य समुद्री जीवो के स्वास्थ्य पर गंभीर संकट उत्पन्न हो जाता है। प्रतिवर्ष कई समुद्री जीव प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या इस से अपनी जान गवा बैठते है और शोधकर्ताओं का दावा है कि आने वाले समय में इस संख्या में और इजाफा होने वाला है।

प्लास्टिक प्रदूषणः मानव और पशुओं के लिये एक खतरा

समुद्री जीवो की तरह ही, छुट्टा पशुओ द्वारा भी कूड़े में इधर-उधर बिखरे प्लास्टिक को भोजन समझकर खा लिया जाता है। कई बार इन पशुओं द्वारा काफी ज्यादे मात्रा में प्लास्टिक में खा लिया जाता है जोकि उनके आंतो में फंस जाता है, जिससे की उनकी मृत्यु हो जाती है। प्लास्टिक का कचरा समय बितने के साथ ही और भी ज्यादे खराब होता जाता है, जिससे यह मच्छर, मख्खियों, और दुसरे किड़ो के पनपने लिये एक अच्छा निवास स्थान बन जाता है, जोकि विभिन्न प्रकार के बिमारियों का कारण बनती है।

प्लास्टिक से उत्पन्न हुआ कचरा हमारे नदियों तथा पानी पीने के अन्य स्रोतों को भी दूषित कर रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण हमारे पीने के पानी की गुणवत्ता दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है, जिसेस इस पानी को पीने के कारण कई सारी बिमारीयां उत्पन्न हो रही है।

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिये सामूहिक प्रयास

प्लास्टिक पदार्थो का निस्तारण करना काफी चुनौतिपूर्ण कार्य है। जब प्लास्टिक का कचरा लैंडफिलो या पानी के स्रोतों में पहुंच जाता है तब यह एक गंभीर संकट बन जाता है। लकड़ी और कागज की तरह हम इसका दहन करके भी इसे समाप्त नही कर सकते। क्योंकि प्लास्टिक के दहन से इससे कई सारी हानिकारक गैसे उत्पन्न होती है, जोकि पृथ्वी के वातावरण और जनजीवन के लिये काफी हानिकारक हैं। इस वजह से प्लास्टिक वायु, जल तथा भूमि तीनो तरह के प्रदूषण फैलाता है।

हम चाहे जितना भी प्रयास कर ले परन्तु प्लास्टिक उत्पादो के उपयोग को पूर्ण रुप से बंद नही कर सकते पर हम चाहे तो निश्चित रुप से इसके उपयोग को कम जरुर कर सकते है। प्लास्टिक से बने कई उत्पाद जैसे कि प्लास्टिक बैग, डिब्बे, ग्लास, बोतल, आदि की जगह हम आसनी से पर्यावरण के अनुकूल अन्य उत्पादो जैसे कि कपड़े, पेपर बैग, स्टील से बने बर्तनो और अन्य चीजो का उपयोग कर सकते है।

प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करना मात्र सरकार की जिम्मेदारी नही है और वास्तव में अकेले सरकार इस विषय में कुछ कर भी नही सकती है। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है कि प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने में हम भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे।

पिछले कुछ दशको में प्लास्टिक प्रदूषण का स्तर काफी तेजी से बढ़ा है, जोकि एक गंभीर चिंता का विषय है। हमारे द्वारा प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग को रोककर ही इस भयावह समस्या पर काबू पाया जा सकता है। हममे से हर एक व्यक्ति को इस समस्या के निवारण के लिये आगे आना होगा। और इसे रोकने में अपना बहूमुल्य योगदान देना होगा।

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Essay on Plastic Pollution: छात्रों और बच्चों के लिए प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध

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  • Updated on  
  • जून 26, 2024

Essay on Plastic Pollution

आज के दौर में प्लास्टिक हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। खरीदारी से लेकर भोजन तक, हर जगह प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। लेकिन क्या आप जानते है कि प्लास्टिक में मौजूद रसायन हमारे वातावरण और स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है और इसका अत्यधिक उपयोग प्लास्टिक प्रदूषण का मुख्य कारण बनता है जो हमारे ग्रह, वन्यजीवों और मानव स्वास्थ्य को कई तरह से नुकसान पहुंचा रहा है। यह प्रदूषण आज के दौर में सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक है। ऐसे में लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के लिए तरह तरह के अभियान चलाये जाते हैं। वहीं कई बार प्रतियोगी परीक्षाओं में विद्यार्थियों को प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध लिखने को दिया जाता है। इस ब्लॉग में आपको 100, 200 और 500 शब्दों में प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध (Essay on Plastic Pollution in Hindi) के कुछ सैम्पल्स दिए गए हैं।

This Blog Includes:

प्लास्टिक प्रदूषण क्या होता है, प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध 100 शब्दों में, प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध 200 शब्दों में, प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध 500 शब्दों में, प्लास्टिक प्रदूषण पर स्लोगन, प्लास्टिक प्रदूषण से जुड़े कुछ फैक्ट्स.

प्लास्टिक प्रदूषण एक पर्यावरणीय समस्या है जो प्लास्टिक के उपयोग के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। प्लास्टिक एक अविश्वसनीय औद्योगिक उत्पाद है जो बहुत सारे उपयोगों के लिए इस्तेमाल होता है, जैसे कि खाद्य संचार, वस्त्रों, इलेक्ट्रॉनिक्स, औषधि पैकेजिंग, आदि। प्लास्टिक की बढ़ती मांग के कारण, इसका उत्पादन और उपयोग भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है। प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का उपयोग करने के बाद उसे कचरे के रूप में भूमि पर या जल स्रोतों में फेंकना और इस प्लास्टिक कचरे का इकठ्ठा होना ही प्लास्टिक प्रदूषण कहलाता है।

छात्र 100 शब्दों में प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध (Essay on Plastic Pollution in Hindi) ऐसे लिख सकते हैं – 

प्लास्टिक प्रदूषण, आज दुनिया के सामने सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक है। प्लास्टिक प्रदूषण, हमारे ग्रह, वन्यजीवों और मानव स्वास्थ्य को कई तरह से नुकसान पहुंचा रहा है और दमा, पलमोनेरी कैंसर (फेफड़ों के द्वारा जहरीली गैसों में साँस लेने के कारण होता है), लिवर इन्फेक्शन, गुर्दे की बीमारी, बर्थ डिसॉर्डर, गर्भावस्था संबंधित विकार, हार्मोनल विकार जैसी कई बिमारियों का कारण बनता है। अब सवाल आता है कि प्लास्टिक प्रदूषण को कैसे रोकें? इसके लिए हम व्यग्तिगत स्तर पर प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद कर सकते हैं। इसकी जगह हम विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके साथ ही हम रीयूज़ की आदत अपने दैनिक जीवन में शामिल कर सकते हैं। प्लास्टिक बैग फेंकने से पहले जितनी बार भी हो सके उनका पुनरुपयोग कर सकते हैं। इस प्रकार हम प्लास्टिक कचरे को कम करने में और प्लास्टिक प्रदूषण के रोकथाम में अपनी महात्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

छात्र 200 शब्दों में प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध (Essay on Plastic Pollution in Hindi) ऐसे लिख सकते हैं – 

प्लास्टिक प्रदूषण प्लास्टिक के कचरे से उत्पन्न होता है। प्लास्टिक एक नॉन- बायोडिग्रेडेबल पदार्थ है जो सैंकड़ो वर्षों तक पृथ्वी पर रहकर वातावरण को नुक्सान पहुंचाता है। आज के समय में यह विकराल रुप धारण कर चुका है और दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।

प्लास्टिक एक लीच की तरह पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। मनुष्य प्लास्टिक पर इस तरीके से निर्भर हो गए है कि वह चाहकर भी प्लास्टिक को छोड़ नहीं पा रहे है। सूरज की रोशनी, हवा और समुद्री लहर की बजह से प्लास्टिक कचरा छोटे छोटे कणों का आकर ले लेता है। फिर यह हमारे पर्यावरण के वायु मंडल, जल स्रोत आदि में रह जाता है। इन मइक्रोप्लास्टिक का आकर बहुत ही छोटा होता है, जिसके कारण यह हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है, चाहे वो साँस लेते समय हो या फिर पानी के माध्यम से हो।

माइक्रोप्लास्टिक जल स्त्रोतों से हमारे घर तक पहुंचाए जाने वाले पेयजल प्रणालियों में और हवा में प्रवेश करते\। जाने अनजाने में इन मइक्रोप्लास्टिक का सेवन हम इंसान भी कर रहें हैं, जिसके कारण हम बीमार भी पड़ सकते हैं और हमे गंभीर बिमारियों का सामना भी करना पड़ सकता है।

दुनिया भर में प्रदूषण की समस्या में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है। इसमें भी प्लास्टिक एक समस्या है जो सबसे अधिक चिंताजनक है क्योंकि यह एक ऐसा पदार्थ होता है जिसे नष्ट होने में काफी समय लगता है। केवल इतना ही नहीं इसके कारण पानी से लेकर हवा और भूमि सभी प्रदूषित होते हैं। हमें प्लास्टिक रिसाइकिलंग के बारे में गंभीरता से सोचना होगा और व्यक्तिगत रूप से भी अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह करना पड़ेगा, तभी हमारी पृथ्वी सुरक्षित रहेगी। स्पष्ट रूप से हमें इस दिशा में और अधिक गंभीरता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है।

यह भी देखें – प्रदूषण पर निबंध

छात्र 500 शब्दों में प्लास्टिक प्रदूषण पर निबंध (Essay on Plastic Pollution in Hindi) ऐसे लिख सकते हैं – 

प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का जमीन या जल में इकट्ठा होना प्लास्टिक प्रदूषण कहलाता है। प्लास्टिक प्रदूषण कई तरीकों से हो सकता है। एक तरफ, प्लास्टिक के उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली कचरे के धातुओं के उपयोग में परिवर्तन के कारण और दूसरी ओर, उपयोगिताओं के बाद नष्ट होने पर प्लास्टिक अप्रचलित हो जाता है। इन अप्रचलित प्लास्टिक आवागमनों के कारण यह प्रदूषण पानीमार्ग के माध्यम से नदियों, समुद्रों, झीलों और अन्य जल निकायों में पहुंचता है। यह प्रदूषण मानव स्वास्थ्य, जीवन पशुओं, मार्गनिर्देशक प्रणी, और जलीय प्रदेशों आदि के लिए हानिकारक होता है। 

प्लास्टिक प्रदूषण कई कारणों से होता है। प्लास्टिक सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला पदार्थ है। यह किफायती होने के साथ इन्हे किसी भी आकार में ढाला जा सकता है। प्लास्टिक के वस्तुओं के बढ़ते उपयोग के कारण ही प्लास्टिक प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है। प्लास्टिक एक नान- बायोडिग्रेडबल पदार्थ है। इससे उत्पन्न कचरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यह जल और भूमि में विघटित नहीं होता है। यह वातावरण में सैकेड़ो वर्षो तक बना रहता है, जिससे यह भूमि, जल और वायु प्रदूषण का कारण बनता है। प्लास्टिक बैग और प्लास्टिक से बने अन्य उत्पाद छोटे-छोटे टुकड़ो में टूट जाते हैं। यह मिट्टी और पानी के स्त्रोतो में मिल जाते है। परिणामस्वरूप, प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है।

प्लास्टिक अन्य जीवन रूपों को प्रभावित कर सकता है। जल में प्लास्टिक के पड़ जाने से जलजीवन, मत्स्य, और अन्य जलीय प्राणियों को नुकसान पहुंच सकता है। जब प्लास्टिक कचरा जल निकायों में पहुंचता है, तो यह जलमार्गों को प्रदूषित करता है। प्लास्टिक कचरे की वजह से नदियों, समुद्रों और झीलों का पानी गंदा हो जाता है, जिससे जलजीवन और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण वनस्पतियों और महत्वपूर्ण प्राणियों को नुकसान पहुंचता है। प्लास्टिक के टुकड़े, छोटे उपकरण और प्लास्टिक वगैरह के साथ जंगली जानवरों के गले बंध सकते हैं या उनके पांव में फंस सकते हैं, जिससे उन्हें खाने-पीने और आकारीय गतिविधियों में समस्याएं हो सकती हैं। प्लास्टिक के उपयोग से उत्पन्न होने वाले केमिकल्स और विषाणुओं के कारण, मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पडता है। सांस लेने या प्लास्टिक उत्पादों के संपर्क में आने के कारण स्वास्थ्य समस्याएं जैसे एलर्जी, श्वसन संबंधी समस्याएं, हार्मोनल असंतुलन, कैंसर आदि हो सकता हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए हमें व्यक्तिगत स्तर पर पहल करने की ज़रूरत है। प्लास्टिक के उपयोग को कम करना, प्लास्टिक से बेहतर निपटारा, विकल्प उत्पादों का उपयोग, जनसंचार के माध्यम से जागरूकता फैलाना , वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी उन्नति से प्लास्टिक के विकास को कम करना, प्रदूषण नियंत्रण नीतियों को सख्ती से लागू करना , सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर बैन आदि से हम प्लास्टिक प्रदूषण को कम कर सकते हैं।

यह भी देखें – सिंगल यूज प्लास्टिक पर पोस्टर

प्लास्टिक प्रदूषण पर कुछ बेस्ट स्लोगन्स कुछ इस प्रकार हैं –

  • प्लास्टिक न सड़ती है, न गलती है सिर्फ़ सदियों तक प्रदूषण करती है 

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  • नई पीढ़ी न करेगी माफ़ जब पर्यावरण का होगा नाश  
  • पेपर बैग का करें इस्तेमाल प्रदूषण में करें न योगदान 
  • घर से थैला खुद ले जाएं पॉलिथीन को न अपनाएं 
  • सिंगल यूज़ प्लास्टिक को न कहें पर्यावरण संरक्षण को हाँ कहें 
  • बीमारी और मौत से बचें प्लास्टिक प्रदूषण की गंभीरता को समझें 

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  • पॉलिथीन का व्यापार न करें लालच में पृथ्वी बीमार न करें 
  • पॉलिथीन से सबको बचाना है जूट और कपड़ा विकल्प बनाना है 
  • पॉलिथीन का करें न उपयोग फैलाती है यह जानलेवा रोग 

प्लास्टिक प्रदूषण से जुड़े कुछ फैक्ट्स निम्नलिखत हैं –

  • विश्व में प्रति वर्ष 400 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है।
  • अमेरिका हर साल 42 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन करता है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है
  • हर साल 8 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक महासागरों में प्रवेश करता है। 
  • महासागरीय प्लास्टिक प्रदूषण 2040 तक 29 मिलियन मीट्रिक टन तक बढ़ने की राह पर है 
  • हर साल प्लास्टिक में फंसने से 100,000 जानवर मर जाते हैं। 
  • मनुष्य हर सप्ताह 5 ग्राम प्लास्टिक निगलता है। 
  • प्लास्टिक 2030 तक अमेरिका में कोयले की तुलना में अधिक GHG उत्सर्जन रिलीज़ करेगा
  • COVID-19 ने महासागर में 25,900 टन प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ा दिया है। 
  • औसतन, प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग सिर्फ 25 मिनट के लिए किया जाता है। 
  • एक प्लास्टिक को गलने में कम से कम 100 से 500 साल लगते हैं। 
  • आए दिन समुद्र में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण के कारण समुद्री जीवों की जान पर भी खतरा मंडरा रहा है और वो लुप्त होने की कगार पर हैं। 

प्लास्टिक प्रदूषण से कैंसर, दमा, दिमाग सम्बन्धी बीमारियाँ हो सकती हैं। 

माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं जिनकी लंबाई 5 मिलीमीटर से कम होती है। समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बन चुका है।

हर साल अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक बैग फ्री दिवस 3 जुलाई को मनाया जाता है।

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Essay on Pollution for Students and Children

500+ words essay on pollution.

Pollution is a term which even kids are aware of these days. It has become so common that almost everyone acknowledges the fact that pollution is rising continuously. The term ‘pollution’ means the manifestation of any unsolicited foreign substance in something. When we talk about pollution on earth, we refer to the contamination that is happening of the natural resources by various pollutants . All this is mainly caused by human activities which harm the environment in ways more than one. Therefore, an urgent need has arisen to tackle this issue straightaway. That is to say, pollution is damaging our earth severely and we need to realize its effects and prevent this damage. In this essay on pollution, we will see what are the effects of pollution and how to reduce it.

essay on pollution

Effects of Pollution

Pollution affects the quality of life more than one can imagine. It works in mysterious ways, sometimes which cannot be seen by the naked eye. However, it is very much present in the environment. For instance, you might not be able to see the natural gases present in the air, but they are still there. Similarly, the pollutants which are messing up the air and increasing the levels of carbon dioxide is very dangerous for humans. Increased level of carbon dioxide will lead to global warming .

Further, the water is polluted in the name of industrial development, religious practices and more will cause a shortage of drinking water. Without water, human life is not possible. Moreover, the way waste is dumped on the land eventually ends up in the soil and turns toxic. If land pollution keeps on happening at this rate, we won’t have fertile soil to grow our crops on. Therefore, serious measures must be taken to reduce pollution to the core.

Get English Important Questions here

Types of Pollution

  • Air Pollution
  • Water Pollution
  • Soil Pollution

How to Reduce Pollution?

After learning the harmful effects of pollution, one must get on the task of preventing or reducing pollution as soon as possible. To reduce air pollution, people should take public transport or carpool to reduce vehicular smoke. While it may be hard, avoiding firecrackers at festivals and celebrations can also cut down on air and noise pollution. Above all, we must adopt the habit of recycling. All the used plastic ends up in the oceans and land, which pollutes them.

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So, remember to not dispose of them off after use, rather reuse them as long as you can. We must also encourage everyone to plant more trees which will absorb the harmful gases and make the air cleaner. When talking on a bigger level, the government must limit the usage of fertilizers to maintain the soil’s fertility. In addition, industries must be banned from dumping their waste into oceans and rivers, causing water pollution.

To sum it up, all types of pollution is hazardous and comes with grave consequences. Everyone must take a step towards change ranging from individuals to the industries. As tackling this problem calls for a joint effort, so we must join hands now. Moreover, the innocent lives of animals are being lost because of such human activities. So, all of us must take a stand and become a voice for the unheard in order to make this earth pollution-free.

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FAQs on Pollution

Q.1 What are the effects of pollution?

A.1 Pollution essentially affects the quality of human life. It degrades almost everything from the water we drink to the air we breathe. It damages the natural resources needed for a healthy life.

Q.2 How can one reduce pollution?

A.2 We must take individual steps to reduce pollution. People should decompose their waster mindfully, they should plant more trees. Further, one must always recycle what they can and make the earth greener.

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