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स्वामी विवेकानंद की जीवनी ~ Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

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शिकागो वक्तृता [ स्वामी विवेकानन्द,विश्व धर्म सभा, शिकागो ] | Swami Vivekananda's Complete Speech In Hindi At World's Parliament Of Religions, Chicago

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Nice post meri bhi blog hai http://www.hindihint.com is par bhi aap hindi me biography ke saath bhut kuch pad skte hai

Aapne sawami ji ke baare me bahut achhi jankari di hai.

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bhai ek baat bolna tha.... pura to wikipedia ko he chhaap diya uska bhin link dene bolte na.....

You have written a very good article. You have given very interesting information about Swami Vivekananda. Here you have explained all the facts very beautifully.

bahut achha lekh

Very good information about sawami vivekananda

सारगर्भित और ज्ञान से ओत-प्रोत जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !

Very nice information

It is very good biography on my idel Swami Vivekananda

अद्भुत ज्ञान के भंडार हैं स्वामी विवेकानंद जी

Very nice biography

Bahut achha likha hai aapne Swami ji ke bare main

swami ji 1 din me 700 page yaad kar lete the

Bhut hi shandar likha sir aapne bhut si bate nahi janta jo ab jan gya

Great 🙏🙏🙏🙏🙏 ❤❤❤❤❤❤❤❤

kashto se bhara jiban apne laskh or Hindu dharm ko bataye

Swami ji ka lekh pada bahut acchha laga

◦•●◉✿Great man✿◉●•◦

Swami vivekanand ji ko mera namaskar kitne vidvaan hai swami vivekanand ji

Thanku so much this information

संक्षिप्त में बहुमूल्य जानकारी।

आपको हमारे तरफ से बहुत धनबाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

बहुत-बहुत धन्यवाद भारत के इतिहास के सबसे बड़े व्यक्ति के जीवन के बारे में बताने के लिए।

if a real good we can talk to anyone that is vivakanand, my hero good is thru but vivakanand is master of everyone. his word to protact other befor himself , i real like

very nice sir

very informational and high quality article about Swami Vivekananda

आपने स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के बारे में अच्छी जानकारी दी है

I am able to write my project with it

Bahut hi sundar raha hai ye anubhav mere liye

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short biography of swami vivekananda in hindi

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक जीवनी

Swami Vivekananda Biography in Hindi

एक युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशों में बिखेरनें वाले स्वामी विवेकानंद साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड विव्दान थे। स्वामी विवेकानंद – Swami Vivekananda ने ‘योग’ , ‘राजयोग’ तथा ‘ज्ञानयोग’ जैसे ग्रंथों की रचना करके युवा जगत को एक नई राह दिखाई है जिसका प्रभाव जनमानस पर युगों-युगों तक छाया रहेगा। कन्याकुमारी में निर्मित उनका स्मारक आज भी स्वामी विवेकानंद  महानता की कहानी बताता है।

“संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है असंभव से भी आगे निकल जाना।“

ऐसी सोच वाले व्यक्तित्व थे Swami Vivekananda – स्वामी विवेकानंद। जिन्होनें अध्यात्मिक, धार्मिक ज्ञान के बल पर समस्त मानव जीवन को अपनी रचनाओं के माध्यम से सीख दी वे हमेशा कर्म पर भरोसा रखने वाले महापुरुष थे। Swami Vivekananda – स्वामी विवेकानंद का मानना था कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए तब तक कोशिश करते रहना चाहिए जब तक की लक्ष्य हासिल नहीं हो जाए।

तेजस्वी प्रतिभा वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद के विचार काफी प्रभावित करने वाले थे जिसे अगर कोई अपनी जिंदगी में लागू कर ले तो सफलता जरूर हासिल होती है – यही नहीं विवेकानंद जी ने अपने अध्यात्म से प्राप्त विचारों से भी लोगों को प्रेरित किया जिसमें से एक विचार इस प्रकार है –

‘उठो जागो, और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो’।।

स्वामी विवेकानंद ने अपने आध्यात्मिक चिंतन और दर्शन से न सिर्फ लोगों को प्रेरणा दी है बल्कि भारत को पूरे विश्व में गौरान्वित किया है।

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक जीवनी – Swami Vivekananda Biography in Hindi

Swami vivekananda

स्वामी विवेकानंद जी के बारेमें – Swami Vivekananda Information in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय – swami vivekananda history in hindi.

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे महापुरूष थे जिनके उच्च विचारों, अध्यात्मिक ज्ञान, सांस्कृतिक अनुभव से हर कोई प्रभावित है। जिन्होने हर किसी पर अपनी एक अदभुद छाप छोड़ी है। स्वामी विवेकानंद का जीवन हर किसी के जीवन में नई ऊर्जा भरता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। स्वामी विवेकानंद प्रतिभाशील महापुरुष थे जिन्हें वेदों का पूर्ण ज्ञान था। विवेकानंद जी दूरदर्शी सोच के व्यक्ति थे जिन्होनें न सिर्फ भारत के विकास के लिए काम किया बल्‍कि लोगों को जीवन जीने की कला भी सिखाई।

स्वामी विवेकानंद भारत में हिंदु धर्म को बढ़ाने में उनकी मुख्य भूमिका रही और भारत को औपनिवेशक बनाने में उनका मुख्य सहयोग रहा।

स्वामी विवेकानंद दयालु स्वभाव के व्यक्ति थे जो कि न सिर्फ मानव बल्कि जीव-जंतु को भी इस भावना से देखते थे। वे हमेशा भाई-चारा, प्रेम की शिक्षा देते थे उनका मानना था कि प्रेम, भाई-चारे और सदभाव से जिंदगी आसानी से काटी जा सकती है और जीवन के हर संघर्ष से आसानी से निपटा जा सकता है। वे आत्म सम्मान करने वाले व्यक्ति थे उनका मानना था कि –

जब तक आप स्वयं पर विश्वास नहीं करते, आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते ।।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचारों ने उनको महान पुरुष बनाया उनका अध्यात्म ज्ञान, धर्म, ऊर्जा, समाज, संस्कृति, देश प्रेम, परोपकार, सदाचार, आत्म सम्मान के समन्वय काफी मजबूत रहा वहीं ऐसा उदाहरण कम ही देखने को मिलता है इतने गुणों से धनी व्यक्ति ने भारत भूमि मे जन्म लेना भारत को पवित्र और गौरान्वित करना है।

स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी भारत में सफलता पूर्वक चल रहा है। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुवात “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों” के साथ करने के लिए जाना जाता है। जो शिकागो विश्व धर्म सम्मलेन में उन्होंने ने हिंदु धर्म की पहचान कराते हुए कहे थे।

स्वामी विवेकानन्द का शुरुआती जीवन – Life History of Swami Vivekananda – Full Details Story

Swami Vivekananda Date of Birth – महापुरुष स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति ने  कोलकाता में जन्म लेकर वहां की जन्मस्थली को पवित्र कर दिया। उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्ता था लेकिन बचपन में प्यार से सब उन्हें नरेन्द्र नाम से पुकारते थे।

स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कि उस समय कोलकाता हाईकोर्ट के प्रतिष्ठित और सफल वकील थी जिनकी वकालत के काफी चर्चा हुआ करती थी इसके साथ ही उनकी अंग्रेजी और फारसी भाषा में भी अच्छी पकड़ थी।

वहीं विवेकानंद जी की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो कि धार्मिक विचारों की महिला थी वे भी विलक्षण काफी प्रतिभावान महिला थी जिन्होनें धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। इसके साथ ही वे प्रतिभाशाली और बुद्धिमानी महिला थी जिन्हें अंग्रेजी भाषा की भी काफी अच्छी समझ थी।

वहीं अपनी मां की छत्रसाया का स्वामी विवेकानंद पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा वे घर में ही ध्यान में तल्लीन हो जाया करते थे इसके साथ ही उनहोनें अपनी मां से भी शिक्षा प्राप्त की थी। इसके साथ ही स्वामी विवेकानंद पर अपने माता-पिता के गुणों का गहरा प्रभाव पड़ा और उन्हें अपने जीवन में अपने घर से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।

स्वामी विवेकानंद के माता और पिता के अच्छे संस्कारो और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्चकोटि की सोच मिली।

कहा जाता है कि नरेन्द्र नाथ बचपन से ही नटखट और काफी तेज बुद्धि के व्यक्ति थे वे अपनी प्रतिभा के इतने प्रखर थे कि एक बार जो भी उनके नजर के सामने से गुजर जाता था वे कभी भूलते नहीं थे और दोबारा उन्हें कभी उस चीज को फिर से पढ़ने की जरूरत भी नहीं पढ़ती थी।

उनकी माता हमेशा कहती थी की, “मैंने शिवजी से एक पुत्र की प्रार्थना की थी, और उन्होंने तो मुझे एक शैतान ही दे दिया”।

युवा दिनों से ही उनमे आध्यात्मिकता के क्षेत्र में रूचि थी, वे हमेशा भगवान की तस्वीरों जैसे शिव, राम और सीता के सामने ध्यान लगाकर साधना करते थे। साधुओ और सन्यासियों की बाते उन्हें हमेशा प्रेरित करती रही।

वहीं आगे जाकर यही नरेन्द्र नाथ दुनियाभर में ध्यान, अध्यात्म, राष्ट्रवाद हिन्दू धर्म, और संस्कृति का वाहक बने और स्वामी विवेकानंद के नाम  से प्रसिद्ध हो गए।

स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा – Swami Vivekananda Education

  • जब नरेन्द्र नाथ 1871 में उनका ईश्वर चंद विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संसथान में एडमिशन कराया गया।
  • 1877 में जब बालक नरेन्द्र तीसरी कक्षा में थे जब उनकी पढ़ाई बाधित हो गई थी दरअसल उनके परिवार को किसी कारणवश अचानक रायपुर जाना पड़ा था।
  • 1879 में, उनके परिवार के कलकत्ता वापिस आ जाने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में फर्स्ट डिवीज़न लाने वाले वे पहले विद्यार्थी बने।
  • वे विभिन्न विषयो जैसे दर्शन शास्त्र, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञानं, कला और साहित्य के उत्सुक पाठक थे। हिंदु धर्मग्रंथो में भी उनकी बहोत रूचि थी जैसे वेद, उपनिषद, भगवत गीता , रामायण, महाभारत और पुराण। नरेंद्र भारतीय पारंपरिक संगीत में निपुण थे, और हमेशा शारीरिक योग, खेल और सभी गतिविधियों में सहभागी होते थे।
  • 1881 में उन्होनें ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की थी वहीं 1884 में उन्होनें कला विषय से ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी कर ली थी।
  • इसके बाद उन्होनें 1884 में अपनी बीए की परीक्षा अच्छी योग्यता से उत्तीर्ण थी और फिर उन्होनें वकालत की पढ़ाई भी की।
  • 1884 का समय जो कि स्वामी विवेकानंद के लिए बेहद दुखद था क्योंकि इस समय उन्होनें अपने पिता को खो दिया था। पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर अपने 9 भाईयो-बहनों की जिम्मेदारी आ गई लेकिन वे घबराए नहीं और हमेशा अपने दृढ़संकल्प में अडिग रहने वाले विवेकानंद जी ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।
  • 1889 में नरेन्द्र का परिवार वापस कोलकाता लौटा। बचपन से ही विवेकानंद प्रखर बुद्धि के थे जिसकी वजह से उन्हें एक बार फिर स्कूल में एडमिशन मिला। दूरदर्शी समझ और तेजस्वी होने की वजह से उन्होनें 3 साल का कोर्स एक साल में ही पूरा कर लिया।
  • स्वामी विवेकानंद की दर्शन, धर्म, इतिहास और समाजिक विज्ञान जैसे विषयों में काफी रूचि थी। वेद उपनिषद, रामायण , गीता और हिन्दू शास्त्र वे काफी उत्साह के साथ पढ़ते थे यही वजह है कि वे ग्रन्थों और शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता थे।
  • नरेंद्र ने David Hume, Immanuel Kant, Johann Gottlieb Fichte, Baruch Spinoza, Georg W.F. Hegel, Arthur Schopenhauer, Auguste Comte, John Stuart Mill और Charles Darwin के कामो का भी अभ्यास कर रखा था।
  • स्वामी विवेकानंद पढ़ाई में तो अव्वल रहते थे ही इसके अलावा वे शारीरिक व्यायाम, खेलों में भी हिस्सा लेते थे।
  • स्वामी विवेकानंद जी ने यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जेनेरल असेम्ब्ली इंस्टीटूशन में किया था।
  • स्वामी विवेकानंद को बंगाली भाषा की भी अच्छी समझ थी उन्होनें स्पेंसर की किताब एजुकेशन का बंगाली में अनुवाद किया आपको बता दें कि वे  हर्बट स्पेंसर की किताब से काफी प्रभावित थे। जब वे पश्चिमी दर्शन शास्त्रियों का अभ्यास कर रहे थे तब उन्होंने संस्कृत ग्रंथो और बंगाली साहित्यों को भी पढ़ा।
  • स्वामी विवेकानंद के प्रतिभा के चर्चे उनके बचपन से ही थे। उन्हें बचपन से ही अपने गुरुओं की प्रशंसा मिली है इसलिए उन्हें श्रुतिधर भी कहा गया है।

बालक नरेद्र अपने विद्यार्थी जीवन में जॉन स्टुअर्ट, हर्बर्ट स्पेंसर और ह्यूम के विचारों से  काफी प्रभावित थे उन्होनें इनके विचारों का गहनता से अध्ययन किया और अपने विचारों से लोगों में नई सोच का प्रवाह किया। इसी दौरान विवेकानंद जी का झुकाव ब्रह्म समाज के प्रति हुआ, सत्य जानने की जिज्ञासा से वे ब्रह्म समाज के नेता महर्षि देवेन्द्र नाथ ठाकुर के संपर्क में भी आए।

रामकृष्ण परमहंस के साथ विवेकानंद जी का रिश्ता – Ramakrishna Paramahamsa and Swami Vivekananda

Ramakrishna Paramahamsa and Swami Vivekananda

आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बड़ी जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे यही वजह है कि उन्होनें एक बार महर्षि देवेन्द्र नाथ से सवाल पूछा था कि ‘क्या आपने ईश्वर को देखा है?’ नरेन्द्र के इस सवाल से महर्षि आश्चर्य में पड़ गए थे और उन्होनें इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी जिसके बाद उन्होनें उनके अपना गुरु मान लिया और उन्हीं के बताए गए मार्ग पर आगे बढ़ते चले गए।

इस दौरान विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस से इतने प्रभावित हुए कि उनके मन में अपने गुरु के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और श्रद्धा बढ़ती चली गई। 1885 में रामकृष्ण परमहंस कैंसर से पीड़ित हो गए जिसके बाद विवेकानंद जी ने अपने गुरु की काफी सेवा भी की। इस तरह गुरु और शिष्य के बीच का रिश्ता मजबूत होता चला गया।

रामकृष्ण मठ की स्थापना – Establishment of Ramakrishna Math

इसके बाद रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई जिसके बाद नरेन्द्र ने वराहनगर में रामकृष्ण संघ की स्थापना की। हालांकि बाद में इसका नाम रामकृष्ण मठ कर दिया गया।

रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद नरेन्द्र नाथ ने ब्रह्मचर्य और त्याग का व्रत लिया और वे नरेन्द्र से स्वामी विवेकानन्द हो गए।

स्वामी विवेकानंद का भारत भ्रमण – Swami Vivekananda’s Travels in India

आपको बता दें कि महज 25 साल की उम्र में ही स्वामी विवेकानन्द ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए और इसके बाद वे पूरे भारत वर्ष की पैदल यात्रा के लिए निकल पड़े। अपनी पैदल यात्रा के दौरान अयोध्या, वाराणसी, आगरा, वृन्दावन, अलवर समेत कई जगहों पर पहुंचे।

इस यात्रा के दौरान वे राजाओं के महल में भी रुके और गरीब लोगों की झोपड़ी में भी रुके। पैदल यात्रा के दौरान उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों और उनसे संबंधित लोगों की जानकारी मिली। इस दौरान उन्हें जातिगत भेदभाव जैसी कुरोतियों का भी पता चला जिसे उन्होनें मिटाने की कोशिश भी की।

23 दिसम्बर 1892 को विवेकानंद कन्याकुमारी पहुंचे जहां वह 3 दिनों तक एक गंभीर समाधि में रहे। यहां से वापस लौटकर वे राजस्थान के आबू रोड में अपने गुरुभाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तुर्यानंद से मिले।

जिसमें उन्होनें अपनी भारत यात्रा के दौरान हुई वेदना प्रकट की और कहा कि उन्होनें इस यात्रा में देश की गरीबी और लोगों के दुखों को जाना है और वे ये सब देखकर बेहद  दुखी हैं। इसके बाद उन्होनें इन सब से मुक्ति के लिए अमेरिका जाने का फैसला लिया।

विवेकानंद जी के अमेरिका यात्रा के बाद उन्होनें दुनिया में भारत के प्रति सोच में बड़ा बदलाव किया था।

स्वामी जी की अमेरिका यात्रा और शिकागो भाषण (1893 – विश्व धर्म सम्मेलन) – Swami Vivekananda Chicago Speech

Swami Vivekananda Chicago Speech

1893 में विवेकानंद शिकागो पहुंचे जहां उन्होनें विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस दौरान एक जगह पर कई धर्मगुरुओ ने अपनी किताब रखी वहीं भारत के धर्म के वर्णन के लिए श्री मद भगवत गीता रखी गई थी जिसका खूब मजाक उड़ाया गया, लेकिन जब विवेकानंद में अपने अध्यात्म और ज्ञान से भरा भाषण की शुरुआत की तब सभागार तालियों से गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

स्वामी विवेकानंद के भाषण में जहां वैदिक दर्शन का ज्ञान था वहीं उसमें दुनिया में शांति से जीने का संदेश भी छुपा था, अपने भाषण में स्वामी जी ने कट्टरतावाद और सांप्रदायिकता पर जमकर प्रहार किया था।

उन्होनें इस दौरान भारत की एक नई छवि बनाई  इसके साथ ही वे लोकप्रिय होते चले गए।

स्वामी विवेकानंद के अध्यात्मिक कार्य – Complete Works of Swami Vivekananda

Swami Vivekananda Photo

धर्म संसद खत्म होने के बाद अगले 3 सालों तक स्वामी विवेकानंद अमेरिका में वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करते रहे। वहीं अमेरिका की प्रेस ने स्वामी विवेकानंद को ”Cylonic Monik from India” का नाम दिया था।

इसके बाद 2 साल उन्होनें शिकागो, न्यूयॉर्क, डेट्राइट और बोस्टन में लेक्चर दिए । वहीं 1894 में न्यूयॉर्क में उन्होनें वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।

आपको बता दें 1895 में उनके व्यस्तता का असर उनकी हेल्थ पर पड़ने लगा था जिसके बाद उन्होनें लेक्चर देने की बजाय योग से संबंधित कक्षाएं देने का निर्णय लिया था वहीं इस दौरान भगिनी निवेदिता उनकी शिष्य बनी जो कि उनकी प्रमुख शिष्यों में से एक थी।

वहीं 1896 में वे ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के मैक्स मूलर से मिले जिन्होनें स्वामी जी के गुरू रामकृष्ण परमहंस की जीवनी लिखी थी। इसके बाद 15 जनवरी 1897 को स्वामी विवेकानंद अमेरिका से श्रीलंका पहुंचे जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ इस समय वे काफी लोकप्रिय हो चुके थे और लोग उनकी प्रतिभा का लोहा मानते थे।

इसके बाद स्वामी जी रामेश्वरम पहुंचे और फिर वे कोलकाता चले गए जहां उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से भारी संख्या में लोग आते थे। आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद अपने भाषणों में हमेशा विकास का जिक्र करते थे।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना – Ramakrishna Mission Established

1 मई 1897 को स्वामी विवेकानंद कोलकाता वापस लौटे और उन्होनें रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य नए भारत के निर्माण के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और साफ-सफाई के क्षेत्र में कदम बढ़ाना था।

साहित्य, दर्शन और इतिहास के विद्धान स्वामी विवेकानंद ने अपनी प्रतिभा का सभी को कायल कर दिया था और अब वे नौजवानों के लिए आदर्श बन गए थे।

1898 में स्वामी जी ने Belur Math – बेलूर मठ की स्थापना की जिसने भारतीय जीवन दर्शन को एक नया आयाम प्रदान किया।

इसके अलावा भी स्वामी विवेकानंद जी ने अनय दो मठों की और स्थापना की।

स्वामी विवेकानंद की दूसरी विदेश यात्रा:

स्वामी विवेकानन्द अपनी दूसरी विदेश यात्रा पर 20 जून 1899 को अमेरिका चले गए। इस यात्रा में उन्होनें  कैलिफोर्निया में शांति आश्रम और संफ्रान्सिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांत सोसायटी की स्थापना की।

जुलाई 1900 में स्वामी जी पेरिस गए जहां वे ‘कांग्रेस ऑफ दी हिस्ट्री रीलिजंस’ में शामिल हुए। करीब 3 माह पेरिस में रहे इस दौरान उनके शिष्य भगिनी निवेदिता और स्वानी तरियानंद थे।

इसके बाद वे 1900 के आखिरी में भारत वापस लौट गए। इसके बाद भी उनकी यात्राएं जारी रहीं। 1901 में उन्होनें बोधगया और वाराणसी की तीर्थ यात्रा की। इस दौरान उनका स्वास्थय लगातार खराब होता चला जा रहा था। अस्थमा और डायबिटीज जैसी बीमारियों ने उन्हें घेर लिया था।

स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु – Swami Vivekananda Death

4 जुलाई 1902 को महज 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु हो गई। वहीं उनके शिष्यों की माने तो उन्होनें महा-समाधि ली थी। उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया की वे 40 साल से ज्यादा नहीं जियेंगे। वहीं इस महान पुरुषार्थ वाले महापुरूष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था।

स्वामी विवेकानंद के विचार – Swami Vivekananda Quotes

Swami Vivekananda Picture

अत्यंत प्रभावशाली और बुद्दिजीवी स्वामी विवेकानंद के विचारों से हर कोई प्रभावित होता था क्योंकि स्वामी जी के विचारों में हमेशा से ही राष्ट्रीयता शामिल रही है। उन्होनें हमेशा देशवासियों के विकास के लिए काम किया है वहीं उनके कई अनमोल विचारों को मानकर कोई भी मनुष्य अपना जीवन संवार सकता है।

स्वामी विवेकानंद जी मानते थे कि हर शख्स को अपनी जिंदगी में एक विचार या फिर संकल्प निश्चत करना चाहिए और अपनी पूरी जिंदगी उसी संकल्प के लिए न्यौछावर कर देना चाहिए, तभी आपको सफलता मिल सकेगी।

मानवता और राष्ट्र के लिए स्वामी विवेकानन्द का योगदान

विलक्षण प्रतिभा से धनी स्वामी विवेकानंद ने अपना प्रभाव हर किसी के जीवन में डाला और उन्होनें समस्त युवाओं में आत्मविश्वास का संचार किया जिससे युवाओं को न सिर्फ मार्गदर्शन मिला बल्कि उनका जीवन भी संवरा ।

वहीं स्वामी विवेकानंद जी के योगदान निम्नलिखित हैं –

पूरी दुनिया में संस्कृति का प्रचार-प्रसार

  • स्वामी विवेकानंद जी ने अपनी ज्ञान और दर्शन के माध्यम से लोगों में धर्म के प्रति नई और विस्तृत समझ विकसित की।
  • विवेकानंद भाईचारे और एकता को महत्व देते थे इसलिए उन्होनें हर इंसान के लिए नया और विस्तृत नजरिया रखने की सीख दी।
  • महापुरुष विवेकानंद ने सीख और आचरण के नए सिद्धांत स्थापित किए।
  • विवेकानंद जी ने पूर्व और पश्चिम देशों को आपस में जोड़ने में अपना अहम योगदान दिया।

भारतीय संस्कृति के महत्व को समझाने में निभाई अहम भूमिका

  • स्वामी विवेकानंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारत के साहित्य को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई।
  • स्वामी विवेकानंद ने लोगों को सांस्कृतिक भावनाओं के जरिए जोड़ने की कोशिश की।
  • विवेकानंद अपनी पैदल भारत यात्रा के दौरान जातिवाद को देखकर बेहद आहत हुए थे जिसके बाद उन्होनें इसे खत्म करने के लिए नीची जातियो के महत्व को समझाया और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का काम किया।
  • विवेकानंद जी ने भारतीय धार्मिक रचनाओं का सही अर्थ समझाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

हिन्दुत्व की महानता का वर्णन

  • दुनिया के सामने विवेकानंद जी ने हिंदुत्व के महत्व को समझाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • प्राचीन धार्मिक परम्पराओं पर नई सोच का समन्वय स्थापित किया।

स्वामी विवेकानंद जी की जयंती – Swami Vivekananda Jayanti

स्वामी विवेकानंद के जन्म तिथि 12 जनवरी को राष्‍ट्रीय युवा दिवस – National Youth Day के रूप में मनाई जाती है। विवेकानंद जी ऐसी महान शख्‍सियत थे जिनका हर किसी पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

स्वामी विवेकानंदजी के बारे मे महत्वपूर्ण एवं जाननेयोग्य तथ्य – Facts about Swami Vivekananda

  • बी.ए की डिग्री की शिक्षा करने के पश्चात भी स्वामी जी को नौकरी की तलाश मे भटकना पडा था, फिर भी सफलता हाथ ना आने के वजह से वो निराश होकर नास्तिक बन गये थे।
  • स्वामीजी उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस के बारे मे हमेशा संशयित वृत्ती रखते थे, और उनसे सवाल पूछते रहते थे। वे अपने गुरु का पीछा तब तक नही छोडते थे, जब तक के उनके शंका का समाधान नही होता था।
  • खेत्री के महाराजा अजित सिंह स्वामी विवेकानंद जी के माता को गुप्त रूप से आर्थिक सहायता के तौर पर १०० रुपये भेजते थे, जिनसे परिवार मे आर्थिक मदद हो जाती थी।
  • स्वामी विवेकानंद जी का जन्म दिवस १२ जनवरी भारत मे ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है।
  • अपनी माता से स्वामीजी बहूत ज्यादा प्रेम करते थे, और पुरे जीवन तक उन्होने माता की पूजा की।
  • पिता की मृत्यू के बाद स्वामीजी के घर काफी गरिबी आई थी, इसलिये स्वामीजी बहूत बार घरमे झूठ बोलते थे की उन्हे खाने के लिये बाहर से न्योता आया है, ताकी घरके अन्य सदस्य खाना खा सके।
  • स्वामीजी की बहन जोगेन्द्र्बाला ने आत्महत्या कर अपना जीवन समाप्त कर लिया था।
  • विश्व धर्म संमेलन शिकागो मे स्वामीजी ने भाषण की शुरुवात “मेरे अमेरिकी भाईयो और बहनो” इन शब्दो के उच्चारण से की थी, जिसने सबका दिल जित लिया था।
  • स्वामीजी के चरित्र मे इतनी सादगी थी की एक बार उन्होने १८९६ मे लंदन मे कचौरीया तक बनाई थी।
  • चिडीयो तथा जानवरो से स्वामीजी को अत्यंत प्यार था, उन्होने गाय,बंदर,बकरी और मोर तक पाल कर रखे थे।
  • स्वामीजी चाय पिने के अत्यंत शौकीन थे।
  • स्वामी जी को खिचडी खाना अत्यंत पसंद था।

स्वामी विवेकानंद की जिंदगी के रहस्य – Life and Philosophy of Swami Vivekananda or Swami Vivekananda Teachings

  • परोपकार:

स्वामी विवेकानंद जी का मानना था कि परोपकार की भावना समाज के उत्थान में मद्द करती है इसलिए सभी को इसमें अपना योगदान देना चाहिए। वे कहते थे कि ‘देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है’।

  • कर्तव्यनिष्ठा:

स्वामी विवेकानंद जी का मानना था कि जो भी करो पूरी शिद्दत से करो नहीं तो नहीं करो । वे खुद भी जो भी काम करते थे पूरी कर्तव्यनिष्ठा से करते थे और अपना पूरा ध्यान उसी काम में लगाते थे शायद इसी गुण ने उन्हें महान बनाया।

  • लक्ष्य का निर्धारण करना:

स्वामी विवेकानंद जी मानते थे कि सफलता पाने के लिए लक्ष्य का होना आवश्यक है क्योंकि एक निश्चित लक्ष्य के निर्धारण से ही आप अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं।

  • सादा जीवन:

स्वामी विवेकानंद जी सादा जीवन जीने में विश्वास रखते थे। वे भौतिक साधनो से दूर रहने पर जोर देते थे। उनका मानना था कि भौतिकवादी सोच और आनंद इंसान को लालची बनाती है।

  • डर का हिम्मत से सामना करो:

स्‍वामी विवेकानंद का मानना था कि डर से भागने के बजाए उसका सामना करना चाहिए। क्योंकि अगर इंसान हिम्मत हारकर पीछे हो जाता है तो निश्चचत ही असफलता हाथ लगती है वहीं जो इंसान इसका डटकर सामना करता है तो डर भी उससे डर जाता है।

एक नजर में स्वामी विवेकानंद की जानकारी –  Swami Vivekanand Ka Jeevan Parichay

1) कॉलेज में शिक्षा लेते समय वो ब्राम्हो समाज की तरफ आसक्त हुये थे। ब्राम्हो समाज के प्रभाव से वो मूर्तिपूजा और नास्तिकवाद इसके विरोध में थे। पर आगे 1882 में उनकी रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात हुई। ये घटना विवेकानंद के जीवन को पलटकर रखने वाली साबित हुयी।

योग साधना के मार्ग से मोक्ष प्राप्ति की जा सकती है, ऐसा विश्वास रामकृष्ण परमहंस इनका था। उनके इस विचार ने विवेकानंद पर बहोत बड़ा प्रभाव डाला। और वो रामकृष्ण के शिष्य बन गये।

2) 1886 में रामकुष्ण परमहंस का देहवसान हुवा।

3) 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में धर्म की विश्व परिषद थी। इस परिषद् को उपस्थित रहकर स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म की साईड बहोत प्रभाव से रखी। अपने भाषण की शुरुवात ‘प्रिय-भाई-बहन’ ऐसा करके उन्होंने अपनी बड़ी शैली में हिंदू धर्म की श्रेष्ठता और महानता दिखाई।

4) स्वामी विवेकानंद के प्रभावी व्यक्तिमत्व के कारण और उनकी विव्दत्ता के कारण अमेरिका के बहोत लोग उनको चाहने लगे। उनके चाहने वालो ने अमेरिका में जगह जगह ऊनके व्याख्यान किये।

विवेकानंद 2 साल अमेरिका में रहे। उन दो सालो में उन्होंने हिंदू धर्म का विश्वबंधुत्व का महान संदेश वहा के लोगों तक पहुचाया। उसके बाद स्वामी विवेकानंद इग्लंड गये। वहा की मार्गारेट नोबेल उनकी शिष्या बनी। आगे वो बहन निवेदीता के नाम से प्रसिध्द हुई।

5) 1897 में उन्होंने ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की। उसके साथ ही दुनिया में जगह जगह रामकृष्ण मिशन की शाखाये स्थापना की। दुनिया के सभी धर्म सत्य है और वो एकही ध्येय की तरफ जाने के अलग अलग रास्ते है। ऐसा रामकृष्ण मिशन की शिक्षा थी।

6) रामकृष्ण मिशन ने धर्म के साथ-साथ सामाजिक सुधार लानेपर विशेष प्रयत्न किये। इसके अलावा मिशन की तरफ से जगह-जगह अनाथाश्रम, अस्पताल, छात्रावास की स्थापना की गई।

7) अंधश्रध्दा, कर्मकांड और आत्यंतिक ग्रंथ प्रामान्य छोड़ो और विवेक बुद्धिसे धर्म का अभ्यास करो। इन्सान की सेवा यही सच्चा धर्म है। ऐसी शिक्षा उन्होंने भारतीयों को दी। उन्होंने जाती व्यवस्था पर हल्ला चढाया। उन्होंने मानवतावाद और विश्वबंधुत्व इस तत्व का पुरस्कार किया। हिंदू धर्म और संस्कृति इनका महत्व विवेकानंद ने इस दुनिया को समझाया।

स्वामी विवेकानंद केवल एक संत ही नहीं, एक महान दार्शनिक, एक महान देशभक्त, विचारक और लेखक भी थे। स्वामी विवेकानंद जातिवाद, और धार्मिक आडम्बरों का जमकर विरोध करते थे इसके साथ वे साहित्य, दर्शन के विद्धान थे जिन्होनें भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशो में भी फैलाई इसके साथ ही हिंदुत्व को भी बढ़ावा दिया उन्होनें अपनी रचनाओं का प्रभाव पूरे देश में डाला और सम्पूर्ण युवा जगत को नई राह दिखाई।

इस विषय पर अधिकतर बार पुछे गये सवाल – Quiz Questions on Swami Vivekananda

जवाब: नरेंद्र विश्वनाथ दत्त।

जवाब: १२ जनवरी १८६३ को स्वामी विवेकानंद जी का जन्म पश्चिम बंगाल के कलकत्ता शहर मे हुआ था।

जवाब: स्वामी विवेकानंद का जन्म दिन १२ जनवरी राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है।विवेकानंद युवाओ के प्रेरणास्थान थे तथा स्वामीजी को युवा वर्ग से बहूत उम्मीदे थी, इसिलिये उनके जन्मदिन को युवा दिवस के रूप मे देशभर मे मनाया जाता है।

जवाब: रामकृष्ण परमहंस।

जवाब: शिकागो (संयुक्त राज्य अमेरिका)।

जवाब: स्वामी विवेकानंद।

जवाब: ४ जुलाई १९०२ को स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यू हुई थी, जिसमे उनके शिष्यो द्वारा बताया गया की उन्होने महा समाधी ली थी।

जवाब: विवेकानंद रॉक मेमोरिअल।

जवाब: राज योग, कर्म योग, भक्ती योग, मेरे गुरु, अल्मोडा से कोलंबो तक दिये गये व्याख्यान इत्यादी।

96 thoughts on “स्वामी विवेकानंद की प्रेरक जीवनी”

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aap or simple shabdo mai explean kar sakatai hai

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हिंदीपथ - हिंदी भाषा का संसार

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जीवन-परिचय हिंदी में (Biography of Swami Vivekananda in Hindi) आपके सम्मुख प्रस्तुत करते हुए बहुत हर्ष का अनुभव हो रहा है। स्वामी जी की यह जीवनी “जगमगाते हीरे” नामक पुस्तक से ली गई है जिसके लेखक पंडित विद्याभास्कर शुक्ल हैं। पढ़ें यह लेख-

हिन्दीपथ.कॉम हिंदी पाठकों के लिए स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराने का यत्न पहले ही कर रहा है। इसी कड़ी में उनका जीवन परिचय भी प्रस्तुत किया जा रहा है।

हमें पूरी उम्मीद है कि स्वामी विवेकानन्द का यह जीवन परिचय (Swami Vivekananda information in Hindi) सभी पाठकों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होगा।

Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

महात्माओं का वास-स्थान ज्ञान है। मनुष्यों की जितनी ज्ञान-वृद्धि होती है, महात्माओं का जीवनकाल उतना ही बढ़ता जाता है। उन के जीवन काल की गणना मनुष्य शक्ति के बाहर है क्योंकि ज्ञान अनन्त है, अनन्त का पार कौन पा सकता है। महात्मा लोग एक देश में उत्पन्न होकर भी सभी देश अपने ही बना लेते हैं। सब समय उन के ही अनुकूल हो जाते हैं।

श्री स्वामी विवेकानंद ऐसे ही महापुरुषों में हैं।

स्वामी जी का जन्म 1863 ई० में कलकत्ता के समीपवर्ती सिमूलियां नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था। जिस समय विश्वनाथ दत्त बंगाल में “अटर्नी” हुए तभी उन के पिता ने संन्यासाश्रम में प्रवेश करके गृह त्याग कर दिया। उसी आनुवंशिक संस्कार के बीज स्वामी विवेकानंद के हृदय में भी जमे हुए थे जिन्होंने अवसर पाकर अपना स्वरूप संसार पर प्रकट किया।

स्वामी विवेकानंद का बचपन Childhood Of Swami Vivekananda In Hindi

स्वामी विवेकानंद का पैदाइशी नाम वीरेश्वर था परन्तु प्यार के कारण घर के लोग, अड़ोसी-पड़ोसी सब उनको “नरेन्द्र” कहते थे। नरेन्द्र सुडौल, गठीला शरीर, गौर-वर्ण, मनमोहक बड़ी-बड़ी आँखें और तेजस्वी मुख वाला होनहार बालक था। उसका चित्त पढ़ने में बहुत कम लगता था, दिन रात खेलना, अपने साथ के लड़कों को तंग करना, ख़ूब ऊधम मचाना–यही उसके विशेष प्रिय कार्य थे। कोई ऐसा दिन नहीं जाता था जिस दिन माता-पिता या गुरुजन को नरेंद्र की दस-पाँच शिकायतें सुनने को न मिलती हों। वह ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता था हँसोड़ और उपद्रवी होता जाता था। अपने सहपाठियों से मार-पीट करना, शिक्षकों से बहस-मुबाहसा करना उसका नित्य का काम था।

बुद्धि तीव्र थी, पढ़े हुए पाठ को याद कर लेना नरेन्द्र के लिए खेल था। सहपाठियों को वह उनके पढ़ने में सहायता दिया करता था। तंग किये जाने पर भी उसके सहपाठी, वाद-विवाद से खीझ जाने पर भी उसके शिक्षक, उससे द्वेष न मानकर प्रेम करते थे और उसको आदर की दृष्टि से देखते थे। नरेन्द्र को तत्त्वज्ञान संबन्धी पुस्तकों से विशेष प्रेम था। कोर्स की पुस्तकों में इतना आनन्द न आता था जितना तत्त्व-ज्ञान विषयक पुस्तकों में। एक बार तत्त्वज्ञान का एक आलोचनात्मक लेख लिखकर प्रसिद्ध पाश्चात्य-तत्त्ववेत्ता मीमांसक हर्बर्ट स्पेन्सर के पास भेजा था, उस लेख को देख कर हर्बर्ट साहब ने दाँतों तले अंगुली दबाई और नरेन्द्र को एक उत्तेजना-पूर्ण पत्र लिखते हुए लिखा–“आप अपना सतत उद्योग निरन्तर जारी रक्खें, बन्द न करें। हमें पूर्ण आशा है कि भविष्य में संसार आप से उपकृत होगा।” आगे चलकर सचमुच नरेंद्र ने अपने अदम्य उत्साह, अधिक परिश्रम, विचित्र बुद्धिमत्ता, अपूर्व स्वार्थ-त्याग और प्रेम-बल से संसार को अपना दास बना लिया।

नरेंद्र में सत्य को जानने की जिज्ञासा The Desire To Know The Truth In Narendra

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय पढ़ें तो ज्ञात होता है कि उनमें सत्य को लेकर हमेशा से प्रेम था। जब उन्होंने बांग्ला के साथ-साथ संस्कृत और अंग्रेज़ी में भी पूर्ण योग्यता प्राप्त कर ली, बी० ए० पास कर लिया, उसी समय उन्हें पितृ-वियोग सहना पड़ा। गृहस्थी का कुल भार नरेन्द्र के ही कंधों पर आ पड़ा। नौकरी में उनका चित्त न लगता था। दिनों-दिन सांसारिक झंझटों से निवृत्ति की प्रवृत्ति ही चित्त में बढ़ती जा रही थी। इधर माता जी उनके ब्याह के लिए प्रयत्न-शीला और व्याकुल हो रही थीं। उन्होने प्यारे पुत्र के लिए बहुत प्रयत्न किया कि वह विवाह कर ले पर नरेंद्र तो कामिनी-काञ्चन की तृण-तुल्य असारता का यथार्थ रूप पूर्ण तरह से समझ चुके थे। वे ब्रह्मचर्य पालन के कट्टर पक्षपाती थे और अपने को सदैव उसी स्वरूप में देखना चाहते थे। वे लन्दन से भेजे हुए अपने एक पत्र में लिखते हैं–

“मुझे ऐसे मनुष्यों की आवश्यकता है जिनकी नसें लोहे की हों, ज्ञान-तन्तु फ़ौलाद के हों और अन्तःकरण वज्र के हों। क्षत्रियों का वीर्य और ब्राह्मणों का तेज जिनमें एकत्रित हुआ हो, मुझे ऐसे नरसिंह अपेक्षित हैं। ऐसे लाखों नहीं, करोड़ो बालक मेरी दृष्टि के सामने हैं, मेरी आकांक्षाओं को पूर्ण करने के अंकुर स्पष्टतः उनमें दिखलाई पड़ रहे हैं। परन्तु हा! उन सुन्दर बच्चों का बलिदान होगा। होमकुण्ड में उनकी पूर्णाहुति कर दी जायगी। विवाह के होमकुण्ड की धधकती हुई ज्वालायें चारों ओर से घेरे हुए खड़ी हैं। इन्हीं ज्वालाओं के कुण्ड में मेरे सुकुमार बच्चे निष्ठुरता-पूर्वक झोंक दिए जायंगे। हे दयालु! इस जलते हुए अन्तःकरण से निकलने वाले करुणोद्गार क्या तुम्हें नहीं सुनाई देते? यदि सत्य के लिए कम-से-कम ऐसे सौ सुभट भी संसार की विशाल रण-भूमि में उतर आयें तो कार्य पूर्ण हो जाय। प्रभो! तुम्हारी इच्छा होगी तो सब कुछ हो जायगा।”

बंगाल प्रान्त में उन दिनों “ब्रह्म समाज” सम्प्रदाय का प्रचार दिनों-दिन बढ़ रहा था, जिसके संस्थापक राजा राममोहन राय थे। नरेन्द्र पहले ब्रह्मो समाज में शामिल हुए। थोड़े ही दिनों के पश्चात उन्होंने जान लिया कि इस धर्म में कोई सार नहीं; केवल ऊपरी चमत्कार, आडम्बर मात्र है। अस्तु, अब वे ईसाई व मुहम्मदी तत्वों की ओर मुड़े; धर्मग्रन्थों का अनुशीलन प्रारम्भ किया, पर उनसे भी शान्ति प्राप्त न हुई। सनातन धर्म पर उन्हें श्रद्धा न थी। वे लकीर के फ़क़ीर न बनना चाहते थे तथापि अन्वेषण-दृष्टि से एक बार फिर सनातन धर्म के वेदान्त , उपनिषद, धर्म-शास्त्र का गहरी दृष्टि से अध्ययन प्रारम्भ किया।

जो शान्ति उन्हें पहले प्राप्त न हुई थी वही शान्ति वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन से अब प्राप्त होने लगी। शनैः-शनैः उनका दृढ़ निश्चय होता गया कि संसार में यदि कोई धर्म शान्ति दे सकता है तो वह एक सनातन हिन्दू धर्म है। संसार में इसी धर्म के प्रचार की आवश्यकता है। यही एक धर्म सदैव निर्बाध रूप से सर्वजीव हितकारी हो सकता है। नरेंद्र अब तक जिस भ्रम-जाल में फँसकर छटपटा रहे थे, हिन्दू शास्त्रों से वह जाल छिन्न-भिन्न हो गया। अपना कर्त्तव्य पथ उन्हें दृष्टि गोचर होने लगा। सद्गुरु कृपा की उत्कट अभिलाषा उत्पन्न हुई। इधर-उधर साधु-संग करना प्रारम्भ किया। कोई झूठ ही कह दे कि अमुक स्थान पर एक योगी महात्मा आए हुए हैं तो नरेन्द्र सब कार्य छोड़कर तत्काल ही वहाँ पहुँचते थे। कोई साधु-महात्मा मिलता तो उस से भाँति-भाँति के प्रश्न करके उसे घबराहट में डाल देते थे। इससे लोग उन्हें दुराग्रही, कपटी आदि नाना उपाधियों से विभूषित करने लगे थे। कोई-कोई महात्मा तो हठात् उन को परास्त करने की इच्छा से जाते और मुँह की खाकर लौट आते थे। परन्तु नरेन्द्र की तो गुरु-दर्शन की प्रबल अभिलाषा थी। गुरु मिलता कैसे न? “जाको जा पर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलहि न कछु सन्देहू।”

जब रामकृष्ण परमहंस से मिले स्वामी विवेकानंद When Vivekananda Met Ramakrishna Paramhamsa

उन्हीं दिनों एक पहुँचे हुए महात्मा श्री स्वामी रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता के समीप दक्षिणेश्वर नामक स्थान में रहते थे। वे स्वतः तो सदैव ब्रह्म-लीन रहते ही थे परन्तु जिज्ञासु को भी अपनी अमृतमयी वाणी से तृप्त कर देते थे। नरेंद्र के एक सम्बन्धी एक दिन नरेन्द्र को वहाँ चलने के लिए बाध्य करने लगे। “आप जाकर दर्शन करें। मेरे चलने से उनके प्रति आपकी श्रद्धा कम हो जायगी”, कहकर नरेन्द्र ने उन्हें टालना चाहा पर अन्त में उनके विशेषाग्रह से जाना ही निश्चय किया।

कुछ बातचीत होने के अनन्तर, “भगवन्, आपने ईश्वर सिद्ध तो कर दिया है परंतु कभी देखा भी है?” नरेन्द्र ने दिल्लगी भाव से पूछा। “हाँ, मैंने ईश्वर देखा है। तुम्हें भी दिखला सकता हूँ”, परमहंस ने गंभीर भाव से उत्तर दिया। थोड़े समय बाद उपस्थित लोगों के चले जाने पर परमहंस ने उनको समाधि लगा दी और नरेन्द्र को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो गई। नरेंद्र की चिरेप्सित अभिलाषा पूर्ण हुई। वे परमहंस रामकृष्ण के सच्चे शिष्य बन गए। कभी-कभी बड़ी-बड़ी सभाओं तक में नरेन्द्र, गुरु-स्मरण करते हुए उनके चरण में लीन हो जाते थे। एकबार जन समुदाय में गुरु के प्रति उनके उद्गार थे, “रामकृष्ण परमहंस मेरे हैं, मैं उनका हूँ। माता, पिता, गुरु, भ्राता, इष्टदेव, मन, आत्मा, प्राण, स्वामी–वे ही मेरे सब कुछ हैं। मेरे सद्गुण उनके हैं और दुर्गण मेरे हैं। मुझे उन्हीं के सहवास में शान्ति मिली है।”

यह भी पढ़ें – श्री रामकृष्ण परमहंस की जीवनी

नरेंद्र के सांसारिक बंधनों से मुक्त होने में बाधक थीं उनकी पुत्र-वत्सला माता। मातृ-भक्ति का उद्रेक संन्यास ग्रहण कर उन्हें अधिक दुःखी न करना चाहता था। परमहंस स्वामी रामकृष्ण महाराज के निर्वाण प्राप्त करने पर, माता से किसी प्रकार आज्ञा ले नरेन्द्र ने संन्यास ले ही लिया और संसार में गुरु-मत प्रचार तथा सनातन हिंदू धर्म को पुनर्जागृत करने का प्रण किया। अब से वे स्वामी विवेकानंद नाम से नए रूप में आविर्भूत हुए।

पैर में सादा देशी जूता, कमर में कौपीन, शरीर पर गेरुआ अंगरखा और सिर पर साफा धारण किया। क्या देश क्या विदेश सभी जगह वे एक ही वेश से घूमे; हाँ, सर्दी के कारण विदेश में बजाय सूती के ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे। उन के इस वेश से विदेश में प्रायः लोग उनकी खिल्ली उड़ाया करते थे।

एक बार अमेरिका में किसी पथ से होकर जा रहे थे तो एक सभ्य पुरुष ने छड़ी से उनका साफा दूर उछाल दिया।

“आप जैसे सभ्य पुरुष ने यह कष्ट क्यों उठाया?”, स्वामी जी ने पूछा। उसने कहा, “भला आपने यह विचित्र वेश क्यों धारण किया है?” “मैं बहुत दिनों से इस देश की सभ्यता की प्रशंसा सुनता था। इसी से इसको देखने की इच्छा से आया था।” स्वामी जी ने कहा, “यहाँ की सभ्यता का पहला पाठ आप ही ने मुझे पढ़ाया।”

स्वामी जी के कथन से वह बहुत लज्जित हुआ और क्षमा मांगते हुए घर की राह ली।

संन्यास लेने पर स्वामी विवेकानन्द ने एकान्तवास सेवन कर योगाभ्यास किया। विदेशों में भी वे जब तब एकान्त वास करते थे। अद्वैतवाद के प्रचारार्थ वे चीन, जापान गए। वहाँ से लौट कर भारत के इलाहाबाद, बनारस, पूना, मद्रास आदि नगरों में घूमे। समस्त मानव जाति के प्रति सब भेद-भावों को भुलाकर समान दृष्टि से धर्म प्रचार करना ही वे सर्वोपरि देश-सेवा समझते थे।

वे कहते थे–“अपने ज्ञान का उपयोग संसार को करने दो, अन्यों के सीखने योग्य गुणों को तुम सीखो। आकुण्ठित विचारों को हृदय में रखना मृत्यु का आह्वान है। जो दूसरों को स्वतंत्रता नहीं दे सकते, वे स्वयं स्वतंत्र होने योग्य नहीं।”

अमेरिका में स्वामी विवेकानंद Swami Vivekananda In America

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय बताता है कि एक बार वे रामेश्वर से मध्य भारत की ओर आ रहे थे। रास्ते में रामनाड़ के महन्त से भेंट हुई। महन्त ने स्वामी जी की विद्वत्ता पर मुग्ध होकर उनसे अमेरिका की सर्वधर्म परिषद में भारत के प्रतिनिधि स्वरूप जाकर हिन्दू धर्म प्रचार की प्रार्थना की। स्वामी जी तो तैयार ही थे, सहमत हो गए और मद्रास आदि में घूमकर कुछ चन्दा एकत्रित किया। विदेश का ख़र्च, थोड़ा चन्दा, अमेरिका पहुँचते-पहुँचते रुपया ख़त्म हो गया। कोई दूसरा पुरुष होता तो अवश्य घबड़ा जाता पर जिसकी चिन्ता ईश्वर को है उसे कैसा सोच। रास्ते में एक वृद्धा स्त्री से भेंट हो गई। वह स्वामी जी का विचित्र वेष देखकर “इस पूर्वीय जीव से कुछ विनोद ही होगा” विचारती हुई उन्हें अपने घर ले गई। परन्तु घर में विनोद के बदले तत्व-ज्ञान का उपदेश स्वामी जी के मुख से सुनकर वह स्तंभित हो गई। अल्प समय में ही अमेरिका के समाचार पत्रों में स्वामी जी की कीर्ति-कथा पढ़ी जाने लगी।

एक दिन एक अहम्मन्य तत्त्वज्ञानी स्वामी जी को परास्त करने की इच्छा से उनके पास आया परन्तु उनकी असाधारण विद्वत्ता और वक्तृत्त्व शक्ति पर मुग्ध होकर उसी समय उनका शिष्य हो गया। शिकागो की सर्वधर्म सभा में स्वामी जी जब आये हुए प्रतिनिधियों का अपनी रसमयी वाणी से स्वागत करते थे तो स्वामी जी के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा हो जाती थी।

परिषद में जिस दिन स्वामी जी का भाषण होने को था, सवेरे से हो शहर की दीवालों पर लगे हुए विज्ञापन आगन्तुकों को बतला रहे थे, “एक तेजस्वी विद्वान, अद्वितीय हिन्दू संन्यासी का व्याख्यान 4 बजे सुनकर अपने को तृप्त कीजिए।” सभा-भवन में तथा उसके चारों ओर इतनी ठसाठस भीड़ थी कि तिल रखने की जगह न थी।

यथा समय स्वामी जी व्यास-पीठ पर आ उपस्थित हुए। उनकी तेजस्वी और मनोहर मूर्ति देख कर द्रष्टाओं की आँखें चकाचौंध हो गईं। सब के तुमुल जय घोष के साथ “ओ३म् तत्सत्” का गीत गाते हुए स्वामी विवेकानन्द ने मनोमुग्धकारी भाषण शुरू किया और अनेक युक्ति तथा प्रमाणों से साबित कर दिया कि एक हिन्दू धर्म ही ऐसा सार्वभौम धर्म है जिसे मानव जाति स्वीकार कर सकती है।

अमेरिका के प्रसिद्ध पत्र अभिमान के साथ जय घोष करते हुए लिखने लगे–”गेरुआ वस्त्रधारी यह हिन्दू धर्मोपदेशक ईश्वर का उत्पन्न किया हुआ जन्मसिद्ध वक्ता है। ऐसे प्रतिभाशाली देश में मिशनरियों का भेजना मूर्खता है।”

गंगा की धवल धारा की तरह स्वामी जी की कीर्ति अमेरिका, इंग्लैण्ड आदि में फैल गई। न्यूयॉर्क में “रामकृष्ण मठ” नामक एक संघ स्थापित हुआ जिसमें अब तक वेद, वेदांत, ध्यान , धारणा , प्राणायाम आदि की शिक्षा दी जाती है।

अमेरिका जाने से पूर्व भारतीय जिनका नाम तक नहीं जानते थे, लौटने पर कोलम्बो (सीलोन) में उनके स्वागत के लिए दश सहस्र पुरुष एकत्रित हुए और स्वामी जी का ख़ूब स्वागत किया। रामनाड़ के महन्त ने हाथी-घोड़ों, गाजों-बाजों, ध्वजा पताकाओं, वाद्यों, रोशनी व अपार भीड़ के साथ उनका अपूर्व स्वागत किया और पाश्चात्त्य देशों में दिग्विजयी होने के कारण अपने यहाँ एक विजय-स्तम्भ स्थापित किया।

स्वामी विवेकानन्द का जीवन परिचय – भारत वापसी Swami Vivekananda Back In India

स्वदेश में स्वामी जी ने मद्रास, बंगाल, उत्तर भारत और बंबई आदि के भिन्न-भिन्न स्थानों में घूम-घूम कर बहुत से व्याख्यान दिए। कितने ही स्थानों में संस्थाएँ खोलीं जिनका मुख्य कार्य धर्म प्रचार और ग़रीबों की सेवा करना है।

सन् 1902 की 4 जुलाई को स्वामी जी ने नित्य की भाँति प्रातः कृत्य करने के पश्चात् योगाभ्यास किया। मध्याह्न में शिष्यों को पढ़ाया। संध्या समय मुमुक्षुओं से धर्म-चर्चा की, बाहर घूमने गए। पहर रात्रि गए तक बातचीत करते-करते सहसा कहने लगे, “आज मेरी श्री गुरु-चरण दर्शनों की इच्छा है। नाशमान शरीर में अमर आत्मा का कार्य कभी नहीं रुकता। देश की इच्छाओं को अब आप लोग पूर्ण करें, ईश्वर आपको सहायता दे।” इतना कहने के साथ ही वे अपने कक्ष में गए, “ॐ तत्सत्” कहते हुए अन्तिम श्वास छोड़ दी और परमात्मा में लीन हो गए।

स्वामी विवेकानंद के विचार Swami Vivekananda’s Message

स्वामी विवेकानंद जी बड़े संयत पुरुष थे। अपनी धुन के एक थे। दृढ़ निश्चयी थे। पास घड़ी न रखने पर भी सब कार्य उनके यथा समय ही होते थे। उनमें तीन प्रधान गुण थे–

  • देश, धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा
  • स्वार्थ त्याग पूर्वक अथक परिश्रम

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय दिखलाता है कि वे एक कर्मयोगी थे और कभी खाली बैठना तो जानते ही न थे। 12-14 घंटे अभ्यास करना उनका नित्य का कार्य था। उनका सिद्धान्त था कि खाली बैठने से मनुष्य काहिल हो जाता है। खाली बैठने से बेगार करना अच्छा।

एक दिन उनके एक आलसी नौकर ने आकर कहा, “महाराज, आप सब को मुक्ति की राह बतलाते हैं पर मुझे क्यों नहीं बतलाते जो दुनिया के झंझटों से छूट जाऊँ।” “ मुक्ति के लिये उद्योग की आवश्यकता है। यदि तुम कुछ न कर सको तो चोरी ही सीख लो।” स्वामी जी ने हँसकर कहा, “खाली बैठने से चोरी आदि सीखना अच्छा, क्योंकि उद्योग से ज्ञान होने पर बुरे कर्म छूट जाते हैं।”

वे अपने भारतीय मित्रों को प्रायः लिखा करते थे, “अब बार-बार यह कहने का समय नहीं कि हम ऐसे जगद्विजयी थे, उद्योगी थे, हम संसार के गुरु थे, हम सर्वोपरि थे। अब कैसे हो सो संसार को दिखला दो। अपने कर्तव्य पथ पर बढ़े चलना तुम्हारा कार्य है। यश तो पीछे-पीछे आप दौड़ता है। संसार का भार अपने ऊपर समझो, अपना भार ईश्वर पर छोड़ दो। अन्तःकरण की पवित्रता, धैर्य और दृढ़ निश्चय के साथ सतत उद्योग में निरत रहो। मरने का मोह त्याग दो। कष्टों का सामना करने की, संसार की भलाई करने की प्रतिज्ञा कर लो और उसका पालन करो। कहो कम, करो ज़्यादा। तभी सफल होगे।”

एक जगह स्वामी जी अपने एक मित्र के पत्र के उत्तर में लिखते हैं– “तुमने लिखा कि कलकत्ते की सभा में दस हज़ार मनुष्यों की भीड़ हुई। यह बड़े आनन्द की बात है। पर सभा में फ़ी (शुल्क) एक आना मांगने पर कितने आदमी बैठे दिखलाई पड़ते इसका भी अनुभव करना था। निरुद्योगियों की सभा में उद्योग की बात ज़हर मालूम होती है। जो कुछ भी करना है आचरण से सिद्ध करो, व्यवहार से सिद्ध करो। जब तुम्हारा आचरण और व्यवहार लोगों को हितकर मालूम होगा तो वे आप से आप तुम्हारा अनुकरण करने लगेंगे। हमारा कर्तव्य है कि लोगों को धार्मिक जीवन और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखावें। बस, निन्दा-स्तुति, सुख-दुःख का विचार छोड़कर उठो और कार्य आरम्भ करो।”

एक स्थान पर अपार जन समूह में स्वामी विवेकानंद का रथ खड़ा किया गया। वहीं स्वामी जी को उपदेश देना पड़ा। आपने कहा, “भगवान कृष्ण ने रथ में बैठकर गीता का उपदेश दिया था। आज वही सौभाग्य मुझे प्राप्त है। काम करना और उद्योग करना मनुष्य के हाथ में है। फल और यश ईश्वर के हाथ में है। मैं उस दिन अपने को धन्य समझूंगा जिस दिन आप लोगों का यह उत्साह कार्य रूप में परिणत होगा।”

स्वामी जी की वाणी में अद्भुत मधुरता और आकर्षण शक्ति थी। श्रोताओं पर उनके उपदेश का बिजली की तरह असर होता था। अपने उपदेश में वे किसी की बुराई करना तो जानते ही न थे फिर भी हिन्दू धर्म की ख़ूबी का सिक्का लोगों के हृदय में जमा देते थे। लोग मंत्रमुग्ध की भाँति उनके व्याख्यानों को सुनते थे। अंग्रेज़ी और संस्कृत पर उनका असाधारण अधिकार था। स्वामी जी का मत था, “उदार चरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम्।” मनुष्य जाति को वे समान दृष्टि से देखते थे। हिंदू संस्कृति पर उन्हें अभिमान था, उसका प्रचार और अध्यात्म ज्ञान का प्रचार उनके जीवन का लक्ष्य था। ब्रह्मचर्य की वे साक्षात् मूर्ति थे। देश सेवा, परोपकार, शिक्षा प्रसार उनके कार्यों के मुख्य अङ्ग थे। उनका जीवन संसार के लिए आदर्श था। कोई भी मनुष्य स्वामी विवेकानंद के उपदेशों के अनुसार चलकर अपना जीवन सफल बना सकता है।

हमें आशा है कि स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda in Hindi) जो यहाँ प्रस्तुत किया गया है आपके लिए उपयोगी साबित होगा। उनके सुविचार और अनमोल वचन हमें सदैव प्रेरणा देते रहेंगे। वे हमेशा मानते थे कि किसी राष्ट्र या व्यक्ति जब आत्म-विश्वास खो देता है तो वही उसकी मृत्यु का कारण सिद्ध होता है। उनका जीवन-परिचय न केवल हमें संबल देता है, बल्कि हमारे भीतर श्रद्धा और आत्म-विश्वास का संचार भी करता है। हिंदीपथ.कॉम पर हम न सिर्फ़ स्वामी विवेकानंद के बारे में सभी जानकारियाँ देंगे, बल्कि उनकी सभी किताबें भी जल्द-से-जल्द आप तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे। स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Ka Jeevan Parichay) यदि आपको भी कुछ करने तथा देश-सेवा के लिए प्रेरित करता हो, तो कृपया टिप्पणी करके अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

स्वामी विवेकानंद जी का संन्यास-पूर्व नाम “नरेन्द्रनाथ दत्त” था। बचपन में उनकी माँ प्यार से उन्हें “वीरेश्वर” भी कहकर पुकारती थीं।

स्वामी जी का जन्म 1863 ई० में कलकत्ता के समीपवर्ती सिमूलियां नामक ग्राम में हुआ था।

श्री रामकृष्ण परमहंस स्वामीजी के गुरु थे। उनके ही आदेश पर स्वामी विवेकानन्द ने असम्प्रज्ञात समाधि का मोह त्यागकर लोकसेवा और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार का मार्ग चुना।

स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन-काल में रामकृष्ण मिशन, रामकृष्ण मठ और अमेरिका में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की थी। इन संस्थाओं का उद्देश्य देश-विदेश में श्री रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों और वेदांत-ज्ञान का प्रचार करना था।

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  • राजयोग द्वितीय अध्याय – साधना के प्राथमिक सोपान
  • स्वामी विवेकानंद के शिक्षा पर विचार

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

6 thoughts on “ स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय ”

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Thank you, Krishnamurari Ji. Your support and encouragement really matter to us. Keep reading and guiding us.

Very Good Information For Swami Vivekanand

ऋषि प्रताप जी, हिंदीपथ पढ़ने और सराहने के लिए धन्यवाद। इसी तरह पढ़ते रहें और मार्गदर्शन करते रहें।

लेखक महोदय … सबसे पहले तो इतने महान व्यक्तित्व का विस्तृत जीवन परिचय अपनी मातृभाषा हिंदी में अपने पाठको के सम्मुख रखने के लिए आप बधाई के पात्र है .. इसके साथ – साथ सबसे अच्छी और उपयोगी बात है , लेख के अंत में प्रश्न और उत्तरों की श्रृंखला .. निसंदेह आपके प्रयास सराहनीय और अनुकरणीय है .. आशा है की आगे भी आप इसी तरह से भारत के महान व्यक्तित्वों से अपने पाठकों का परिचय करवाते रहेंगे .. और नई पीढ़ी को एक सकारात्मक सन्देश देते रहेंगे .. भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं .. धन्यवाद

इन प्रोत्साहनपूर्ण शब्दों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने अपनी साइट पर स्वामी विवेकानंद के बारे में जो जानकारी डाली है, वह भी बहुत सराहनीय प्रयास है। स्वामी जी का व्यक्तित्व और कृतित्व अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचे, यही हम सबका प्रयत्न है। इसी तरह स्वामी जी के विचार यहाँ पढ़ते रहें और हमारा मार्गदर्शन करते रहें।

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी – Swami Vivekanand Biography Hindi

आज हम इस आर्टिकल में स्वामी विवेकानंद की जीवनी – Swami Vivekanand Biography Hindi के बारे में बताने जा रहे हैं।

स्वामी विवेकानंद की जीवनी – Swami Vivekanand Biography Hindi

स्वामी विवेकानंद ऐसे सोच वाले व्यक्ति थे जिन्होंने अध्यात्मिक धार्मिक मानव जीवन को अपनी रचनाओं के माध्यम से सीख दी।

वे हमेशा ही कर्म में भरोसा रखते थे।

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि “अपने लक्ष्य को पाने के लिए कोशिश करते रहो कि जब तक तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य प्राप्त ना हो”.

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 कोलकाता में हुआ।

उनका पूरा नाम नरेंद्र नाथ विश्वनाथ दत था ।

उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत था ।

उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। ये 9 भाई बहन थे।

स्वामी विवेकानंद को घर में सभी नरेंद्र के नाम से पुकारते थे।

विवेकानंद के पिता कोलकाता हाई कोर्ट में प्रतिष्ठित और सफल वकील थे जिनके वकालत के काफी चर्चे हुआ करते थे।

उनकी अंग्रेजी और फारसी दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी।

स्वामी विवेकानंद के माता जो कि एक धार्मिक विचारों वाली महिला थी।

उन्हे धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत का अच्छा ज्ञान प्राप्त था। उनकी माता साथ ही एक प्रतिभाशाली और बुद्धिमान महिला भी थी।जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान था. अपने माता पिता की अच्छी परवरिश और संस्कारों के कारण अपने जीवन में उच्च कोटी की सोच मिली। उनका मानना था की – “अपने लक्ष्य को पाने के लिए कोशिश करते रहो कि जब तक तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य प्राप्त ना हो।”

  • 1871 में नरेंद्र नाथ जी का ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन संस्थान में एडमिशन कराया गया।
  • 1877 में नरेंद्र नाथ जी के परिवार को भी कारणवश रायपुर जाना पड़ा इसके कारण तीसरी कक्षा की पढ़ाई में बाधा पहुंची।
  • 1879 उनका परिवार कोलकाता वापस आ जाने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा प्रथम स्थान लाने लाने वाले विद्यार्थी बने।
  • नरेंद्र जी भारतीय पारंपरिक संगीत में निपुण से हमेशा शारीरिक योग , खेल और सभी गतिविधियों में भाग लेते थे। उनके हिंदू धर्म ग्रंथों में भी बहुत रूचि थे जैसे वेद, उपनिषद,भगवत गीता, रामायण, महाभारत और पुराण।
  • स्वामी विवेकानंद ने 1881 ललित कला के परीक्षा पुरी की वहीं से 1884 उन्होंने कला विषय से ग्रेजुएशन की डिग्री ली ।
  • 1884 मैं उन्होंने बीए की परीक्षा में अच्छे अंक लेकर पास हुए और फिर उन्होंने वकालत की पढ़ाई शुरू की।
  • 1884 मैं स्वामी विवेकानंद जी के पिता की मृत्यु हो गई थी । उसके बाद अपने 9 भाई बहनों की जिम्मेदारी उनके सिर पर आ चुकी थी लेकिन वह इससे घबराए नहीं अपनी अपने दृढ़ संकल्प पर बिक रहे और अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया ।
  • 1889 ने नरेंद्र जी का परिवार वापस कोलकाता लौट आया। अपनी तेज बुद्धि के कारण ने एक बार फिर स्कूल में एडमिशन मिला और उन्होने 3 साल का कोर्स 1 साल में ही पूरा किया।
  • स्वामी विवेकानंद जी की दर्शन, धर्म, इतिहास और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में काफी रुचि थी इसी कारण वे इन विषयो को बहुत उत्साह के साथ पढ़ते थे यही वजह थी कि वे ग्रंथ और शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता भी थे
  • यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जेनेरल असेंबली इंस्टीट्यूट में किया था।

स्वामी विवेकानंद जी की राम कृष्ण परमहंस जी से मुलाकात

स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही बड़े ही जिज्ञासा प्रवृत्ति वाले व्यक्ति थे।

जिसके चलते उन्होंने एक बार महर्षि देवेंद्रनाथ से सवाल पूछा “कि क्या आपने कभी ईश्वर को देखा है?” स्वामी जी के इस सवाल से महर्षि जी को आश्चर्य हुआ और उन्होंने स्वामी जी के जिज्ञासा को शांत करने के लिए रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी इसके बाद स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु मान लिया और उन्हीं के बताए मार्ग पर चलने लगे।विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें मन में अपने गुरु के प्रति कर्तव्य निष्ठा और श्रद्धा बढ़ती चली गई।

1885 रामकृष्ण परमहंस कैंसर से पीड़ित हो गए। जिसके बाद विवेकानंद जी ने अपने गुरु की सेवा की।

इसी तरह उनका रिश्ता और भी गहरा होता चला गया।

राम कृष्ण जी की मृत्यु के बाद नरेंद्र वरहानगर में रामकृष्ण संघ की स्थापना की।

बाद में इसे राम कृष्ण मठ का नाम दिया गया।

रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद नरेंद्र नाथ जी ने ब्रह्मचार्य त्याग का व्रत किया और वे नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद हो गए।

25 साल की उम्र में ही उन्होंने गेरुआ रंग धारण कर लिया था और इसके बाद वे भारत की पैदल यात्रा पर निकल पड़े। पैदल यात्रा के दौरान उन्होंने आगरा,अयोध्या, वाराणसी, वृंदावन, अलवर समेत कई जगहों पर गए।

यात्रा के दौरान उन्हें जातिगत भेदभाव जैसी कुरीतियों का पता चला उन्होंने उन्हे मिटाने की कोशिश भी की।

23 दिसंबर 1892 स्वामी स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी में 3 दिन तक गंभीर समाधि में रहे।

यहाँ से वापस लौटकर वे राजस्थान पहुंचे अपनेऔर गुरु भाई स्वामी ब्रह्मानंद और तुर्यानंद से मिले।

  • 30 वर्ष की उम्र में स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया।
  • गुरुदेव रवींद्र नाथ जी का कहना था कि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद जी को पढ़िए मैं आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे नकारात्मक भी नहीं।
  • लोगों को सांस्कृतिक भावनाओं के जरिए जोड़ने की कोशिश की।
  • जातिवाद से जुड़ी कुरीतियों को मिटाने की कोशिश की और नीची जातियों के महत्व को समझाया और उन्हें समाज के मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया।
  • स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय धार्मिक रचनाओं का सही अर्थ समझाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • स्वामी विवेकानंद जी ने दुनिया के सामने हिंदुत्व के महत्व को समझाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • विवेकानंद जी ने धार्मिक परंपराओं पर नई सोच का समन्वय स्थापित किया।

4 जुलाई, 1902 को 39 साल की उम्र में ही स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु हो गई।

लेकिन उनके शिष्यों की मानें तो स्वामी विवेकानंद जी ने महा-समाधि ली थी।

उन्होने अपनी भविष्यवाणी में कहा था कि वह 40 साल से ज्यादा जीवित नहीं रहेंगे।

इस महान पुरुष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था।

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Swami Vivekananda Biography in Hindi | विवेकानंद की जीवनी

Swami Vivekananda Biography in Hindi : स्वामी विवेकानंद को भारत में उनको सन्यासी का अमेरिका में उनका नाम पड़ा साइक्लॉनिक हिन्दू का टाटा समूह के पितामह ने उनसे शिक्षा का प्रचार प्रसार का ज्ञान लिया तो कर्म कान्डियो के लिए Swami Vivekananda बन के उभरे एक विद्रोही।

भारत में समाज सुधार की धर्म की, अध्यात्म की दर्शनशास्त्र की, प्रगतिशील विचारों की जब भी बात होगी तो स्वामी विवेकानंद –  Swami Vivekananda के बिना वो चर्चा हमेशा अधूरी रहेगी।

उनमे किस तरह का अनूठा Convention Power था स्वामी विवेकानंद में कि वह अपने मस्तिष्क पर कंट्रोल कर सकते थे और फिर कर सकते थे Multitasking।

Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद सबसे कहते थे, कि महिलाओं का सम्मान करते हैं और उनकी बेहतरी चाहते हैं उनकी हालत सुधारना चाहते हैं तो उनके लिए कुछ करिए नहीं बस उनको अलग छोड़ दीजिए

वह जो करना चाहे वह उन्हें करने का अवसर दीजिए वह पुरुषों से ज्यादा सक्षम है अपनी बेहतरी स्वयं कर सकती हैं महिलाएं भी स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से बेहद प्रभावित रहती थी।

Swami Vivekananda का नाम Cyclonic Hindu क्यों पड़ा

11 सितंबर 1893 में शिकागो मैं हुई विश्वधर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया यह वह भाषण था इस भाषण में उन्होंने सबसे पहले बोला “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों”  इस को सुनकर वह बैठे सभी लोगो ने खड़े होकर तालिया बजाई।

इस भाषण के बाद स्वामी विवेकानंद की ख्याति फैल गई जिसके बाद स्वामी विवेकानंद 3 साल तक अमेरिका में रहे अमेरिकी मीडिया ने उनका नाम Cyclonic Hindu Swami Vivekananda रख दिया।

स्वामी विवेकानंद ने ‘योग’, ‘राजयोग’ तथा ‘ज्ञानयोग’ जैसे ग्रंथों की रचना पूरे विश्व के युवाओं मैं एक नई अलख जगाई है उनका प्रमुख नारा भी युवाओं के लिए का युवाओं में दृढ़ इच्छा और विश्वास पैदा करने के लिए उन्होंने यह नारा दिया था।

“उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये !!”

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक जीवनी  (Swami Vivekananda Biography in Hindi)

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प्रारंभिक जीवन, जन्म और बचपन- (Swami Vivekananda life History)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकर सक्रांति के दिन 6:35 पर सूर्य उदय से पहले भारत के कोलकाता शहर में उनके पैतृक घर में होता है। स्वामी विवेकानंद का का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था और पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाई कोर्ट में प्रसिद्ध वकील थे। वह नए विचारों को मानने वाले आदमी थे।

और उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धर्म कर्म में मानने वाली गृहिणी थी। वह नरेंद्र नाथ को रामायण रामायण और महाभारत के किस्से कहानियां सुनाया करती थी इस कारण बचपन से ही नरेंद्र की हिंदू धर्म ग्रंथों मैं बहुत रुचि थी। नरेंद्र नाथ का पालन पोषण बहुत ही खुशहाली मैं हुआ क्योंकि उनका परिवार बहुत ही सुखी और संपन्न परिवार था।

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स्वामी विवेकानंद की मां ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि भगवान शिव आप मुझे एक प्यारा सा बेटा दीजिए, तब भुवनेश्वरी देवी के सपने में शिव भगवान आते हैं और उनको कहा कि तुम परेशान मत हो मैं आ रहा हूं और स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ।

Swami Vivekananda के परिवार में उनके दादा दुर्गाचरण दत्ता भी जो की संस्कृत और फारसी भाषा के बहुत बड़े विद्वान् थे। वह ईश्वर की साधना में मग्न रहते थे और एक दिन ऐसा आया कि उन्होंने 25 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया और एक सन्यासी के रूप में जीवन व्यतीत करने लगे।

नरेंद्र नाथ बचपन में बहुत ही शरारती और नटखट थे उनकी शरारतों के कारण सभी तंग रहते थे एक दिन की बात है नरेंद्र कुछ शरारत कर के भाग खड़े हुए उनकी बहन उनको पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ी, यह देखकर नरेंद्र घबरा गया और वह नाली के पास जाकर नाली का कीचड़ अपने ऊपर लगा लिया और फिर अपनी बहन से बोले अब पकड़कर दिखाओ मुझे, यह देखकर उनकी बहन आश्चर्यचकित रह गई और नरेंद्र को वह पकड़ नहीं पाई क्योंकि नरेंद्र कीचड़ में लिपटा हुआ था।

एक बार नरेंद्र नाथ अपने शहर में लगा मेला देखने गए तब नरेंद्र की उम्र सिर्फ 8 साल थी वह मेले में तरह तरह के रंग बिरंगे चीजें देखकर बहुत ही प्रसन्न हो गई और पूरे दिन मेले में घूमते रहे।

और जैसे ही शाम ढलने लगी घर जाने का समय हुआ तो स्वामी विवेकानंद दें एक दुकानदार से मिट्टी का शिवलिंग खरीद लिया इसके बाद उनके पास बहुत कम 4 आने वैसे ही बचे थे इसके बाद वह सोच रहे थे कि भी इन 4 आने को कहां खर्च करें तभी उनको एक छोटे बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी।

जब उन्होंने उस बच्चे से पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो तो बच्चे ने बहुत ही सैनी से आवाज में जवाब दिया कि वह अपने घर से कुछ पैसे लेकर आया था लेकिन मेले में कहीं गुम हो गए अगर वह खाली हाथ घर गया तो उसकी मां उसको बहुत मारेगी यह देख नरेंद्र के मन में दयालुता का भाव उमड़ा और उन्होंने अपने बचे हुए 4 आने उस बच्चे को दे दिए।

इस घटना से यह पता चलता है कि स्वामी जी बचपन से ही कितने दयालु स्वभाव के थे।

जब नरेंद्र की माता को इस बात का पता चला तो उनकी मां ने उनको गले से लगा लिया और कहा कि जीवन में सदैव ही ऐसे काम करते रहना।

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स्वामी विवेकानंद की शिक्षा – (Swami Vivekananda Education)

नरेंद्र की उम्र 8 साल थी तब उनका दाखिला ईश्वर चंद विद्यासागर मेट्रो मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट में करवाया गया, उनके पिताजी चाहते थे कि कि उनका बेटा अंग्रेजी पढ़े लेकिन बचपन से ही स्वामी विवेकानंद का मन वेदों की ओर था। 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज का एंट्रेंस एग्जाम दिया और परीक्षा को फर्स्ट डिवीजन से पास करने वाले पहले विद्यार्थी बने।

वे दर्शन शास्त्र, इतिहास, धर्म, सामाजिक ज्ञान, कला और साहित्य सभी विषयों के बड़े उत्सुक पाठक थे बहुत रुचि थी उनको इन सभी विषयों में बचपन से ही हिंदू धर्म ग्रंथों मैं उनकी बहुत रुचि थी और साथ ही उनको योग करना, खेलना बहुत पसंद था।

भारतीय अध्यात्म, भारतीय दर्शन और धर्म के साथ-साथ नरेंद्र की दिलचस्पी पश्चिमी जीवन और यूरोपीय इतिहास मैं भी बहुत रुचि थी इसलिए उन्होंने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टिटूशन (वर्तमान – स्कॉटिश चर्च कॉलेज) से किया था। उस जमाने के सभी वेस्टर्न राइटरस उन्होंने बहुत गहन अध्ययन किया था।

उन्होंने 1881 में ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली थी।

उस जमाने के जाने माने शिक्षा वेद और फ़लॉसफ़र William Hastie ने एक जगह लिखा है कि नरेंद्र बहुत होशियार है और मैंने दुनिया भर के विद्यार्थियों को देखा है और अलग-अलग यूनिवर्सिटीज में गया हूं लेकिन जब Philosophy (दर्शनशास्त्र) का सवाल आता है तो नरेंद्र के दिमाग और कुशलता के आगे मुझे कोई और स्टूडेंट नहीं दिखता।

रामकृष्ण के साथ – (Swami Vivekananda Teacher Ramakrushna)

नरेंद्र पढ़ने लिखने लिखने में बहुत ही अच्छे छात्र थे लेकिन उनका मन हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा था सांसारिक मोह माया के पीछे वह नहीं भागते थे लेकिन जब तक उनके पिताजी जिंदा थे स्वामी विवेकानंद का मन दीन-दुनिया से अलग नहीं हुआ था उनका मोह भंग नहीं हुआ था

वेदांत में योग में इन सब में उनकी दिलचस्पी तो पहले भी थी। लेकिन पिता की मृत्यु के बाद Swami Vivekananda का मन दीन- दुनिया से उठ गया।

एक दिन की बात है जब William Hastie धर्म और दर्शन पर व्याख्या कर रहे थे और उन्होंने देखा कि नरेंद्र नाथ आंखें बंद करके बैठे हुए हैं उन्होंने तुरंत नरेंद्र को कहा कि क्या तुम सो रहे हो, नरेंद्र ने तुरंत आंखें खोली और कहां जी नहीं William Hastie मैं कुछ सोच रहा था

Ramakrishna paramahamsa

William Hastie ने कहा किस विषय में सोच रहे हो तुम, तब नरेंद्र ने कहा क्या आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दोगे।

William Hastie ने कहा क्यों नहीं बोलो नरेंद्र क्या प्रश्न पूछना चाहते हो तुम।

नरेंद्र ने कहा क्या आपने कभी ईश्वर के दर्शन किए हैं

तब William Hastie ने कहा नरेंद्र नाथ तुमने बहुत ही कठिन प्रश्न पूछा है तुम इस प्रश्न के उत्तर के लिए गंभीर भी हो, निराश ना हो मैं तुम्हें एक ऐसे संत का नाम बताऊंगा जो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर सही प्रकार से दे सकते हैं यदि वास्तव में ही ईश्वर के दर्शन करना और सत्य की प्राप्ति ही तुम्हारा उद्देश्य है तो तुम दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस के पास चले जाओ, वही तुम्हें ईश्वर के विषय में बता देते हैं।

नरेंद्र को William Hastie की बात सही लगी और 1881 के अंत और 1882 में प्रारंभ में वह दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस से मिलने चले गए।

और वहां पहुंच कर उन्होंने वही प्रश्न रामकृष्ण परमहंस ने किया लेकिन रामकृष्ण परमहंस नए जब नरेंद्र को देखा तो वह उन्हें एकटक देखते ही रहे मानो जैसे वह दोनों एक दूसरे से पहले से ही परिचित थे।

फिर उन्होंने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा हां मैंने ईश्वर को देखा है ठीक वैसे ही जैसे तुम्हें देख रहा हूं यदि कोई सच्चे हृदय से ईश्वर को याद करता है तो वह अवश्य ईश्वर से मिल सकता है।इसके बाद रामकृष्ण परमहंस ने कहा की यदि तुम मेरे कहे अनुसार कार्य करो तो मैं तुम्हें भी ईश्वर के दर्शन करा सकता हूं।

रामकृष्ण की इन बातों का नरेंद्र पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। और वह उनकी ओर आकर्षित होने लगे। इसके बाद महेंद्र रामकृष्ण परमहंस के सच्चे शिष्य बन गए उन्होंने उनके विचारों को अपनाया और अपने जीवन में उतारा।

नरेंद्र के पिता विश्वनाथ दत्त की 1884 में अचानक मृत्यु हो गयी उसके बाद उनके घर की हालत इतनी खराब हो गयी कि उनके खाने के भी लाले पड़ गये। उनका परिवार अगर सुबह भोजन कर लेता तो शाम का पता नही होता था। कई कई बार तो वे 2-3 दिन तक भोजन नहीं करते थे। स्वामी विवेकानंद के पास पहनने को कपड़े भी नहीं थे।

विवेकानंद के दोस्त उन्हें खाने के लिए देते भी थे लेकिन वह यह बोल कर मना कर देते थे की उनका परिवार भूखा होगा। वह ईश्वर को कोसने लगे थे। फिर वह सब कुछ छोड़ छाड़ के अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास चले गए।

रामकृष्ण ने उनके परिवार के हालत की सुधार के लिए उनको मां काली की उपासना करने को कहा लेकिन विवेकानंद मूर्ति और धातु पूजा में नहीं मानते थे क्योंकि कॉलेज के दिनों में उनका ध्यान ब्रह्म समाज की ओर हो गया था। ब्रह्म समाज मूर्ति पूजा को नहीं मानता था इसलिए विवेकानंद ने भी मां काली की उपासना करने से मना कर दिया।

और विरोध करने लगे और रामकृष्ण का उपहास भी उड़ाया। लेकिन रामकृष्ण परमहंस यह सब शांति पूर्वक देखते रहे और नरेंद्र की शांत होने पर उन्होंने कहा कि ”सभी दृष्टिकोणों से सत्य जानने का प्रयास करे” ।

नरेंद्र को भी यह बात सही लगी तब उन्होंने मां काली की उपासना करना चालू कर दिया और अंत में उनको मां काली के दर्शन हुए उन्होंने मां काली से सब कुछ मांगा और जब वे ध्यान से बाहर आए तो रामकृष्ण ने कहा कि तुमने अपने प्यार के लिए सब कुछ मांग लिया।

तो नरेंद्र ने कहा मांग लिया तो रामकृष्ण ने कहा तुमने अपने परिवार के लिए धन मांगा कि नहीं…

फिर नरेंद्र ने उत्तर दिया कि नहीं वह तो मैं भूल गया..

रामकृष्ण ने कहा तुम फिर से ध्यान लगाओ और अपने परिवार के लिए धन मांगो।

नरेंद्र ने करीब 3 बार ध्यान लगाया लेकिन तीनों ही बार वह सब कुछ मांग लेते लेकिन अपने परिवार के लिए धन मांगना भूल जाते थे।

तब उनको एहसास हो गया कि धन और मोह माया उनके लिए नहीं बनी है इसके बाद उन्होंने रामकृष्ण परमहंस को गुरु मान लिया । और रामकृष्ण परमहंस ने भी उनको शिष्य बनाया और जितना भी ज्ञान उनको था वह पूरा ज्ञान नरेंद्र को दे दिया।

लेकिन कुछ वर्ष बाद रामकृष्ण परमहंस बीमार रहने लगे थे उन्हें पता चल गया था कि अब उनके जीवन के अधिक दिन नहीं रह गए हैं उन्हें पता चला कि उनको कैंसर हैं।इसलिए 1885 में रामकृष्ण परमहंस को इलाज के लिए कोलकाता जाना पड़ा लेकिन वह वहां पर ठीक नहीं हो पाये।

फिर नरेंद्र ने उनके अंतिम दिनों में उनकी सेवा की, रामकृष्ण ने अपने अंतिम दिनों में उन्हें सिखाया की मनुष्य की सेवा करना ही भगवान की सबसे बड़ी पूजा है। करीब 1 वर्ष के बाद 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई।  उन्होंने अपना जीवन गुरुदेव श्री रामकृष्ण को समर्पित कर दिया 25 साल की उम्र में नरेंद्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए यानी कि उन्होंने सन्यास ले लिया और निकल गए पूरे भारत की यात्रा पर।

श्री रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद नरेंद्र ही उनके उत्तराधिकारी बने वे केवल नाम के ही उत्तराधिकारी नहीं थे उन्होंने वैसा कार्य भी करके दिखाया। उन्होंने अपने गुरु के नाम पर रामकृष्ण परमहंस मिशन की स्थापना की गुरु के विचारों का पूरी दुनिया में विस्तार किया और देश की दीन दुखियों की सहायता की और अनेक कल्याणकारी योजनाएं भी चलाई।

स्वामी विवेकानंद ने अपने पत्र में लिखा था “मुझे ईश्वर में विश्वास है, मुझे मनुष्य में विश्वास है, मुझे दिन दुखियों की सहायता में विश्वास है और यही मेरा कर्तव्य है” ।

इसी दृढ़ निश्चय को लेकर उन्होंने भारत के अंतिम शहर कन्याकुमारी के समुंद्र में चट्टान थी वहां पर उन्होंने 2 दिन 2 रात तक अटूट ध्यान किया इसी ध्यान के दौरान उनके मन में अतीत और वर्तमान भारत के चित्र उभर आए जिस शिला पर स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था वह आज विवेकानंद स्मारक के रूप में प्रसिद्ध है आज भी लाखों लोग कन्याकुमारी में स्थित उस शीला के दर्शन करने आते हैं।

नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद नाम कैसे पड़ा (How did Narendra name Swami Vivekananda?)-

1893 जब नरेंद्र नाथ दत्त बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए एक सन्यासी के रूप में यात्रा करने लगे और वह पूरे भारत में जगह-जगह भ्रमण करने लगे थे इस बीच उनकी मुलाकात 4 जून 1891 को माउंट आबू में खेतड़ी के राजा अजीत सिंह से हुई।

नरेंद्र और अजीत सिंह की कुछ बात हुई नरेंद्र की ज्ञान की बातें सुनकर राजा अजीत सिंह बहुत खुश हुए। और उन्होंने नरेंद्र नाथ को अपने महल खेतड़ी में आने के लिए निमंत्रण दिया।

maharaja ajit singh and swami vivekananda

नरेंद्र ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया और 7 अगस्त 1891 को भारत का भ्रमण करते हुए खेतड़ी राजस्थान पहुंचे। वहां पर राजा अजीत सिंह ने उनका स्वागत किया और नरेंद्र वहां पर कुछ दिन रुके इस बीच राजा अजीत सिंह और नरेंद्र के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी।

तब राजा अजय सिंह ने नरेंद्र को पगड़ी बांधने का सुझाव दिया और राजस्थानी वेशभूषा पहनने को कहा इस बात पर नरेंद्र राजी हो गए और तभी से स्वामी विवेकानंद ने पगड़ी बांधना चालू किया था। यह देख कर राजा अजीत सिंह ने उनका नाम नरेंद्र से विवेकानंद रख दिया था जिसका मतलब “ समझदार ज्ञान का आनंद ” था।

विश्व धर्म सम्मेलन (World Religions Conference)-

विश्व धर्म सम्मेलन का दिन उनके लिए बहुत बड़ा साबित हुआ क्योंकि उस दिन के बाद उन्होंने पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त कर ली थी वह अब हर देश जाकर ज्ञान बांटने लगे थे लेकिन आपको हम उनके विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होने के पहले की बात बताते हैं।

Swami Vivekananda के पास विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ध्यान नहीं था इसलिए वह दोबारा अपने मित्र राजा अजीत सिंह से मिलने खेतड़ी गए वह 21 अप्रैल 1893 से 10 मई 1893 तक खेतड़ी में रहे। उन्होंने अजीत सिंह को बताया कि वह विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होना था चाहते हैं तो अजीत सिंह ने कहा कि आप धर्म सम्मेलन में शामिल हुई है धन की परवाह मत कीजिए वह सब बंदोबस्त कर दूंगा।

Swami Vivekananda at Parliame nt of Religions

बड़ी कठिनाइयों के बाद स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शहर शिकागो पहुंचे लेकिन वहां पहुंचने के बाद उनको पता चला कि विश्व धर्म सम्मेलन की तारीख आगे बढ़ा दी गई है इसलिए उनको बड़ी चिंता हुई क्योंकि उनके पास तो सिर्फ 4 से 5 दिन के खर्चे के लिए ही धनराशि थी और वह वापस भी नहीं लौट सकते थे इसलिए उन्होंने वही ठहरने का निर्णय लिया।

लेकिन शिकागो जैसे शहर में एक आम भारतीय संत का रहना बहुत ही मुश्किल था। फिर उनको वहीं के एक प्रोफेसर मिले वह उनको अपने घर लेकर गए और उनको अपने घर में रहने को कहा उन्होंने स्वामी विवेकानंद की बहुत सेवा की।

1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद का आयोजन हुआ स्वामी विवेकानंद वहां पहुंचे भारत के प्रतिनिधि के बतौर यह वह दौर था जब यूरोप और अमेरिका के लोग भारत वासियों को बहुत ही ही दृष्टि से देखते थे कुछ लोगों का मानना है कि उस धर्म परिषद में पहले यह भी तय नहीं हुआ था की विवेकानंद जी पर कोई भाषण देंगे।

क्योंकि विश्व धर्म सम्मेलन में अपने विचार प्रकट करने का कोई विधिवत निमंत्रण नहीं मिला था। जब गई पश्चिमी सभ्यता के लोग बोल चुके हैं उनका संबोधन हो चुका था तो कुछ अमेरिकी प्रोफेसर ने इस बात पर जोर दिया अब कुछ मौका पूर्व से आने वालों को भी दिया जाए।

तब सबका ध्यान गया गेरुआ वस्त्र पहने एक खूबसूरत भारतीय नौजवान पर जिसका नाम था स्वामी विवेकानंद , जब Swami Vivekananda ने खड़े होकर बोलना शुरू किया और जिस धारा प्रवाह अंग्रेजी में उन्होंने बहुत ही पुरजोर तरीके से अपनी बात रखी और

बोले “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” इतना सुनकर वहां के सभी लोगों ने करीब 2 मिनट तक खड़े होकर उनके लिए तालियां बजाई थी। क्योंकि स्वामी विवेकानंद जी एक ऐसे अलग व्यक्ति थे जिन्होंने रटे-रटाए धर्मों और ग्रंथों के अलावा कुछ नई बात कही थी।

विश्व कवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने कहा था कि अगर आपको भारत की संस्कृति धर्म और इतिहास के बारे में जानना है तो आपको स्वामी विवेकानंद का अध्ययन करना चाहिए।

मृत्यु – (Swami Vivekananda Death)

स्वामी विवेकानंद जी ने अपने अंतिम दिनों तक ध्यान करने की अपनी दिनचर्या को नहीं बदला वह रोज सुबह 2 से 3 घंटे ध्यान लगाते थे दमा और शुगर के साथ उन्हें कई शारीरिक बीमारियों ने घेर लिया था उन्होंने एक जगह लिखा भी कि “यह बीमारियां मुझे 40 वर्ष की आयु को पार नहीं करने देंगी” और उनकी यह वाणी सच भी हुई।

सत्येंद्र मजमूदार ने अपनी किताब विवेक चरित्र में लिखा है कि 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ थे । सुबह स्वामी जी ने अपने शिष्यों को बुलाया और अपने हाथों से सभी शिष्यों के पाव धोए।

शिष्यों ने कहा कि यह क्या कर रहे हैं Swami Vivekananda जी का उत्तर था कि Jesus Christ ने भी अपने शिष्यों के पाव धोए थे फिर सभी ने साथ बैठकर खाना खाया उसके बाद विवेकानंद जी ने कुछ आराम किया दोपहर 1:30 बजे सभी सभागार में इकट्ठे हुए और डेढ़ 2 घंटे तक काफी हंसी-मजाक चला शाम को विवेकानंद जी मठ में घूमकर अपने कमरे में वापस चले गए।

और दरवाजे और खिड़कियां बंद की और ध्यान में बैठ गए उसके बाद उन्होंने खिड़कियां खोली और बिस्तर पर लेट गए। और ओम का उच्चारण करते हुए उन्होंने प्राण त्यागे।

“संत विवेकानंद अमर तुम, अमर तुम्हारी पवन वाणी तुम्हें सदा ही शीश नवाते भारत के प्राणी प्राणी”

स्वामी विवेकानंद से सम्बंधित रोचक बाते (Swami Vivekananda life History in hindi )

1) स्वामी विवेकानंद 25 साल की उम्र में ही सन्यासी बन गए थे।

2) बचपन में स्वामी विवेकानंद बड़े शरारती और नटखट स्वभाव के थे।

3) 1881 के अंत और 1882 में प्रारंभ में वह दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस से मिलने गए थे।

4) 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई।

5) स्वामी विवेकानंद 1893 में बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए यात्रा की थी।

6) स्वामी विवेकानंद पहली बार राजा अजीत सिंह से 4 अगस्त 1891 को माउंट आबू में मिले थे।

7) 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद नहीं शिकागो शहर में विश्व धर्म सम्मेलन मैं अपना पहला भाषण दिया था।

8) स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन 12 जनवरी को अब पूरे भारतवर्ष में “युवा दिवस” के रुप में मनाया जाता है।

9) 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में अपने प्राण त्याग दिए।

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Swami Vivekananda Quotes in Hindi – स्वामी विवेकानंद के विचार

Swami Vivekananda Biography in Hindi आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके बताएंगे  अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके बताएं और शेयर करना ना भूले।

12 thoughts on “Swami Vivekananda Biography in Hindi | विवेकानंद की जीवनी”

This article will help me a lot.

Thank you Dilip Singh Sisodiya.

very nice Biography …Today we need just like Biography who show to our society and new generation…my new generation going to wrong side about RELIGION…

Thank you Devendra Nath Thakur for appreciation, keep visiting hindi yatra.

आपने स्वामी विवेकानंद के बारे में बहुत ही रोचक जानकारी दी है। आपने विवेकानंद के सभी विषय को बहुत खूबसूरती से समझाया है।

निरंजन सुबेदी, सराहना के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद ऐसे ही ही हिंदी यात्रा पर आते रहे

hame aise hi sant ki jaroorat hai jo hamari dharm ,sanskrit ka prachar prasar kare aur apne desh ki shiksha padhat hamare desh ke p.m. lagu kare.

Premnath Yadav ji aap ne shi bola, agar hum unke vicharo par chle toek acche samaj ka nirmaan kar sakte hai. Hindi yatra par aane ke liye ka bhut bhut dhanyawad.

Bahut hi gajab biography h

Thank you Mohammed Azam khan for appreciation.

स्वामी विवेकानंद 1828 में बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए यात्रा की थी।

ye Date Galat hai..har jagah. isko sudhar liya jaye

Raj Singh ji hame hmari galti batane ke liye Dhanyawad, hamne galti ko thik kar liya hai.

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Swami vivekananda biography in hindi

Swami vivekananda biography in hindi | स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

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नमस्ते दोस्तों स्वागत है आपका मेरे इस ब्लॉग पर।आज मैं आपको भारत के एक महान व्यक्ति की जीवनी के बारे मैं बताऊँगा। आपको जानकर खुशी होगी कि उनका जन्म भारत के कलकत्ता बंगाल मे हुआ था। जी हां दोस्तों आपने सही सोचा उनका नाम है स्वामी विवेकानंद जो भारत में बहुत लोकप्रिय है। आज हम इस लेख में देखेंगे Swami vivekananda biography in hindi . इस लेख को पूरा पढ़े जिससे आप Swami vivekananda जेसे आध्यात्मिक गुरु से रूबरू हो पाएंगे।

Table of Contents

General Information:- (Swami vivekananda biography in hindi)

स्वामी विवेकानंद जन्म और परिवार (swami vivekananda birth & family).

इनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था जिनको आज हम स्वामी विवेकानंद के नाम से जानते है। आज के इस गोर कलयुग मैं युवा पीढ़ी को अपना जीवन सफल बनाने के लिए उनको आविष्कार और नई विचारों की जरूरत रहती है। इसलिए हम आपके लिए स्वामी विवेकानंद जीकी जीवन की गाथा ले कर आये है। जिससे आप प्रेरित होंगे। इनका पूरा नाम नरेंद्रनाथ दत्त है।

आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जुलाई 1902 को हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का  नाम भुवनेश्वरी दत्त था। सन्यास धारण करने से पहले स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र दत्त था। नरेंद्र के पिता जी विश्वनाथ दत्त पाश्रात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे और वे अपने पुत्र को अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्रात्य सभ्यता के रास्ते पर चलाना चाहते थे। नरेंद्र के पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता के उच्च न्यायलय मे (Attorney-at-law) थे और उच्च न्यायलय में वकालत करते थे।

स्वामी विवेकानंद प्रारंभिक जीवन और बचपन (Swami vivekananda early life & childhood)

स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही सब बच्चों से अलग थे। इसलिए ही सायद उनको सब बच्चों से अलग तरह के सपने आते थे। एक बार जब स्वामी जी छोटे बच्चे थे तब उनको एक सपना आया था, उस सपने में उनको एक चमकता हुआ एक सुंदर गोला दिख रहा था। उस गोले से बहुत प्रकार की रोशनी की किरणें उन पर आ रहीं थीं। उस गोले का रंग और आकार धीरे धीरे बदल रहा था। एक समय के बाद वह गोला विस्फोट हो गया और वह फुट गया।

इस गोले मैं से सफेद किरण निकल रहीं थी। वो सफेद रोशनी स्वामी जी पर गिरने लगी। उस रोशनी ने स्वामी विवेकानंद को पूरी तरह अपने अंदर ढक लिया था। छोटी सी उम्र मैं स्वामी जी भिन्न भिन्न धर्मों के लिए जेसे की हिंदू-मुस्लिम और अमीर-गरीब, सफेद-काला रंग जेसे भेदभाव करने के लिए सवाल उठा ते थे।

एकबार जब स्वामी जी छोटे बच्चे थे तब उन्होंने अपने पिता से एक बार एक प्रश्न पूछा था कि आपने मेरे लिए क्या किया है। उनके पिता ने उनको आईना देखने के लिए कहा। उनके पिता जी ने कहा अपने आप को इस आइने मैं देखो, तुम खुद समझ जाओगे की मेने तुम्हारे लिए क्या-क्या किया है। फिर स्वामी जी ने एक बार अपने पिताजी से पूछा कि मुझको दुनिया के सामने अपनी केसी छबि रखनी चाहिए। पिताजी ने हस्ते हुए कहा बेटा कभी भी किसी चीज को देख के आश्चर्य चकित मत होना। यही कारण था कि स्वामी जी सब का आदर करते थे और किसी को भी चोट नहीं देते थे।

Maharana pratap biography in hindi

रामकृष्ण परमहंस से पहली मुलाकात (First meeting with Ramakrishna Paramhansa)

स्वामी विवेकानन्द बचपन से ही बुद्धिमान बच्चे थे और परमात्मा में वे बहुत मानते थे इनके पास बहोत आध्यात्मिक ज्ञान था इसीलिए ये पहले ब्रह्म समाज में गए परन्तु वहा इनका मन संतुस्ट ना हुआ और उसी समय वह अपने धार्मिक व आध्यात्मिक संशयो की निवारण हेतु अनेक लोगो से मिले लेकिन कही भी इनकी शंकाओ का समाधान ना मिला।

एक दिन स्वामी विवेकानंद के रिश्तेदार ने उनको रामकृष्ण परमहंस के बारे मैं बताया तब स्वामी विवेकानंद जी को उनमे रुचि होने लगी और उनसे मिलने की इच्छा हुई, तो उनके एक रिश्तेदार ने उनको रामकृष्ण परमहंस के पास ले गए।

रामकृष्ण परमहंस ने नरेंद्र को देखते ही एक प्रश्न पूछ कि लिया “क्या तुम धर्मं विषयक कुछ भजन गा सकते हो?” इसका उत्तर देते हुए नरेंद्र दत्त ने कहा कि हाँ, मैं धर्मं विषयक भजन गा सकता हूँ। फिर नरेंद्र ने कुछ भजन अपने मधुर स्वर से सुनाए। नरेंद्रनाथ के भजन सुन कर रामकृष्ण परमहंस बहुत ही ज्यादा खुश हो गए। तभी से नरेंद्र दत्त रामकृष्ण परमहंस सत्संग करने लग गए और उनके शिष्य बन गए।

नरेंद्र दत्त रामकृष्ण परमहंस के साथ रह कर दृढ़ अनुयायी बन गए थे। रामकृष्ण परमहंस का 16 अगस्त 1886 को वो परलोक सिधार गये। उसके बाद स्वामी विवेकानंद सन 1887 से 1892 तक अज्ञातवास मैं रहे। अज्ञातवास मैं रहने के बाद स्वामी विवेकानंद जीने वेदांत और हिंदी संस्कृति को प्रचलित करने के लिए योगदान देना चाहते थे। इसलिए स्वामी विवेकानंद एक बहुत बड़े ज्ञानी महा-पुरुष थे। स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन मैं कहीं सारे मंत्र दिए है। जो आपको सफल बनने के लिए आपके जीवन मैं बहुत काम आयेंगे। 

स्वामी विवेकानंद आध्यात्मिक जागृति (Swami Vivekananda Spiritual Awakening)

साल 1884 में, स्वामी विवेकानंद ने अपने पिता की मृत्यु के बाद खुद को काफी वित्तीय कठिनाई में पाया, क्योंकि उन्हें अपनी मां और उनके छोटे भाई-बहनों का समर्थन करना पड़ा था। स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस से अपने परिवार की वित्तीय भलाई के लिए देवी से प्रार्थना करने को कहा। रामकृष्ण परमहंस के सुझाव पर वे स्वयं मंदिर में प्रार्थना करने गए। लेकिन जैसे ही उन्होंने देवी का सामना किया, वे धन या संपति नहीं मांग सके, बल्कि “विवेक” और “बैराग्य” (एकांत) मांगे। उस दिन से नरेंद्रनाथ के पूर्ण आध्यात्मिक जागरण को चिह्नित किया गया था और वे एक तपस्वी जीवन शैली के लिए तैयार हो गए थे।

स्वामी विवेकानंद का जीवन बदलने वाला मंत्र (Swami vivekananda life changing mantra)

मंत्र 1:-  उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाये।

मंत्र 2:-  तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता नाही कोई तुम्हें सीखा सकता है, तुमको सब कुछ खुद अपने आत्मा से सीखना होगा।

मंत्र 3:- दुनिया मे खुद को कमजोर समझना, सबसे बड़ा पाप हैं।

मंत्र 4:- बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप होता हैं।

मंत्र 5:- सत्य को हम हज़ार तरीकों से बता सकते हैं, फिर भी वह सत्य ही रहेगा।

मंत्र 6:- विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।

मंत्र 7:- ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।

मंत्र 8:- शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।

मंत्र 9:- दिल और दिमाग के टकराव में हमेशा दिल की सुनो।

मंत्र 10:- किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये तो आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।

स्वामी विवेकानंद शिकागो धर्म परिषद (Swami vivekananda chicago dharma parishad)

दोस्तो 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो शहर मैं विश्व धर्म परिषद का कार्यक्रम होने वाला था। जिसमें आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद जी, उस कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

जेसे ही स्वामी विवेकानंद जी ने अपने मधुर स्वर और तेजस्वी वाणी से भाषण की शुरुआत की और कहा  “मेरे अमेरिकी भाईयो और बहनो”  वो शब्द सुनते ही पूरा सभाकक्ष तालियों की शोर से गूंज उठा, 5 मिनिट तक तालियां की गड़गड़ाहट सभाकक्ष मैं चलती रहीं इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण मैं भारतीय सनातन धर्म और वैदिक संस्कृति के विषय मैं अपने उच्चस्तरीय विचार प्रगट किए।

इस भाषण से न केवल अमेरिका ब्लकि विश्वभर मैं स्वामी विवेकानंद जी का सन्मान और गौरव बड़ गया था। स्वामी विवेकानंद जी के द्वारा यह भाषण इतिहास के पन्नों मैं अमर बन गया है। शिकागो धर्म परिषद के बाद स्वामी विवेकानंद 3 वर्षा तक कई देशों में प्रचार किया जेसे की अमेरीका और ब्रिटेन मैं शिक्षा का प्रचार करते रहे। 15 अगस्त 1897 को स्वामी विवेकानंद जी श्रीलंका पहुंचे वंहा पर उनका शानदार स्वागत हुआ था।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना (Foundation of Ramakrishna Mission)

स्वामी विवेकानंद साल 1897 में भारत वापिस लौट आए और उनका आम और शाही लोगों द्वारा समान रूप से उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया था। वह देश भर में व्याख्यानों की एक श्रृंखला के बाद कलकत्ता आए और 1 मई 1897 को कलकत्ता के पास बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन की स्थापना शुरू की थी। रामकृष्ण मिशन के लक्ष्य कर्म योग के आदर्शों पर आधारित थे और इसका मुख्य लक्ष्य देश के गरीब और जरूरतमंद लोगों की सेवा करना ही था।

रामकृष्ण मिशन ने विभिन्न प्रकार की सामाजिक सेवा की थी जैसे कि स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों की स्थापना और प्रबंधन, व्याख्यान, सेमिनार और कार्यशालाओं के माध्यम से वेदांत के व्यावहारिक सिद्धांतों का प्रसार और देश भर में राहत और पुनर्वास कार्य की शुरुआत की थी।

उनकी धार्मिक जागरूकता दैवीय अभिव्यक्ति पर श्री रामकृष्ण की आध्यात्मिक शिक्षाओं और अद्वैत वेदांत दर्शन के उनके व्यक्तिगत आंतरिककरण का मिश्रण था। उन्होंने निस्वार्थ कर्म, पूजा और आध्यात्मिक अनुशासन के माध्यम से आत्मा की दिव्यता प्राप्त करने के लिए खुद को निर्देशित किया था। स्वामी विवेकानंद के अनुसार अंतिम लक्ष्य आत्मा की स्वतंत्रता प्राप्त करना है और इसमें संपूर्ण धर्म शामिल है।

स्वामी विवेकानंद एक प्रमुख राष्ट्रवादी थे और अपने हमवतन लोगों के सामान्य कल्याण को ध्यान में रखते थे। उसने अपने हमवतन लोगों से आग्रह किया था कि “उठो, जागो, और तब तक मत रुको जब तक तुम लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाते।”

स्वामी विवेकानंद के जीवन की कहानी (Swami vivekananda life story in hindi)

जब स्वामी विवेकानंद के नाम का डंका विश्वभर में बज चुका था तब स्वामी विवेकानंद जी से प्रभावित होकर एक विदेशी महिला को, उनसे मिलने की इच्छा हुई और वो तुरंत स्वामी जी को मिलने चली आई। उस विदेशी महिला ने स्वामी विवेकानंद जी से कहा कि मैं आपसे प्रेम करती हूं और आपसे शादी करना चाहती हूँ। स्वामी जी ने इसका उत्तर देते हुए कहा की है देवी मैं तो ब्रह्मचारी पुरुष हूं, आपसे में केसे शादी कर सकता हूँ? 

Swami vivekananda biography in hindi

वह विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद जी से इसलिए शादी करना चाहती थी क्योंकि उनको भी स्वामी विवेकानंद के जेसा पुत्र चाहिए था और वो बड़ा होके विश्व में अपने ज्ञान और विचार को फेला सके और उसका नाम रोशन कर सके।

यह बात जब स्वामी विवेकानंद को पता चली तब उन्होंने उस विदेशी महिला को नमस्ते किया और कहा “है माँ लीजिए, आज से आप मेरी माँ है” स्वामी जी ने कहा आपको मेरे जेसा पुत्र भी मिल गया और मेरे ब्रह्मचारी नियम का पालन भी हो गया। यह सुनते ही वह विदेशी महिला स्वामी जी के चरणों पर आ गई। 

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (Swami vivekananda death)

स्वामी विवेकानंद सन 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ मैं पूजा अर्चना किया और उसके बाद योग किया। फिर उन्होंने अपने छात्रों को योग, वेद, धर्म और संस्कृति विषय के बारे मैं पढ़ाया। जब संध्याकाल का समय हुआ तब स्वामी विवेकानंद अपने कमरे मैं योग करने गए और उनके शिष्यों को उनकी शान्ति को भंग करने के लिए मना किया और वो अपने कमरे में चले गए। योग करते समय उनकी मृत्यु हो गई। मात्र 39 वर्ष की उम्र मैं स्वामी जी जेसे अदभुद और प्रेरणा पुंज आध्यात्मिक गुरु प्रभु से मिलन हो गया।

स्वामी विवेकानंद की किताबें (Swami vivekananda books)

स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन मैं बहुत सी अच्छी किताबे लिखी हुई है। जो आपको अपना जीवन आसान बनाने ने के लिए अवश्य पढ़नी चाहिए।

किताब 1:-  कर्मयोग 

किताब 2:-  स्वामी विवेकानंद उपदेश 

किताब 3:-  मेरा जीवन तथा ध्येय

किताब 4:-  जाग्रति का संदेश 

किताब 5:-  भारतीय नारी 

किताब 6:-  वर्तमान भारत 

किताब 7:-  जाती संस्कृति और समाजवाद

स्वामी विवेकानंद युवा दिवस (Swami vivekananda youth Day)

पूरे विश्व में स्वामी विवेकानंद जी ने हिंदू संस्कृति का प्रचार अपने तेजस्वी वाणी और आध्यात्मिक ज्ञान से किया और भारत का पूरे विश्व में डंका बजा दिया। इस तरह भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मक और बुद्धिवादी व्यक्ती माना और देश के युवा को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की याद मैं राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। 

स्वामी विवेकानंद की जीवनी के बारे में अज्ञात तथ्य (Unknown Facts About Swami vivekananda biography in hindi)

  • स्वामी विवेकानंद का पूर्व-मठवासी नाम नरेंद्र नाथ दत्ता था। वे योगियों के स्वभाव के साथ पैदा हुए थे और बहुत कम उम्र में ही ध्यान करते थे।
  • स्वामी विवेकानंद के पिता का बचपन में ही आकस्मिक निधन हो गया था। इससे उनके परिवार की आर्थिक रीढ़ टूट गई और पूरा परिवार गरीबी में धकेल दिया गया।
  • एक भिक्षु के रूप में दीक्षा लेने से पहले, नरेंद्रनाथ ने कई क्षेत्रों से दैवीय प्रभाव मांगा था। वह 1880 में ब्रह्म समाज के संस्थापक और रवींद्रनाथ टैगोर के पिता देबेंद्रनाथ टैगोर से मिले। जब उन्होंने टैगोर से पूछा कि क्या उन्होंने भगवान को देखा है, तो टैगोर ने जवाब दिया, “मेरे लड़के, आपके पास योगी की आंखें हैं”
  • स्वामी विवेकानंद वह व्यक्ति थे जिन्होंने वेदांत दर्शन को पश्चिम में ले लिया और हिंदू धर्म में भारी सुधार किया।
  • स्वामी विवेकानंद जी को खिचड़ी बहुत पसंद थी और यह उनके मठ में नियमित रूप से परोसा जाता था।
  • स्वामीजी ने हमेशा कहा था कि वह 40 वर्ष की आयु तक जीवित नहीं रहेंगे और 39 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।
  • जब शिक्षाविदों की बात आती है, नरेंद्र नाथ दत्ता अंक प्राप्त करने में महान नहीं थे। उन्होंने तीन विश्वविद्यालय परीक्षाएं दीं – प्रवेश परीक्षा, प्रथम कला मानक (एफए, जो बाद में इंटरमीडिएट कला या आईए बन गया) और कला स्नातक (बीए)। अंग्रेजी भाषा में उनके अंक प्रवेश स्तर पर 47 प्रतिशत, एफए में 46 प्रतिशत और बीए में 56 प्रतिशत थे।

Frequently Asked Question About Swami Vivekananda biography in hindi

स्वामी विवेकानंद कौन हैं.

स्वामी विवेकानंद एक साधु, हिंदू आध्यात्मिक नेता, समाज सुधारक और एक युवा नेता थे जो हर प्राणी के बीच समानता में विश्वास करते थे और उनकी शिक्षाएं और दर्शन उसी को दर्शाते हैं। एक धनी परिवार में पैदा होने के बावजूद उन्होंने ईश्वर को महसूस करने के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया और दुनिया को सिखाते हैं कि ईश्वर की सेवा करने का तरीका मानव जाति की मदद करना है। वह नेता जिसने किसी का पक्ष नहीं लिया और उसकी शिक्षाओं ने हमेशा मदद करने और हर एक की भलाई करने की बात कही।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब हुई थी?

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई थी।

स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ था?

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जुलाई 1902 को हुआ था।

स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम क्या है?

स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।

स्वामी विवेकानंद किस लिए जाने जाते हैं?

स्वामी विवेकानंद को 1893 की विश्व धर्म संसद में उनके अभूतपूर्व भाषण के लिए जाना जाता है जिसमें उन्होंने अमेरिका में हिंदू धर्म का परिचय दिया और धार्मिक सहिष्णुता का आह्वान किया।

आशा कर्ता हूं दोस्तों आपको Swami vivekananda biography in hindi को पढ़कर बहुत अच्छा लगा होगा और इससे कुछ सीखने को मिला होगा। अगर हो सके तो हमारी वेबसाइट Biographyindian.in को अपने दोस्तों और अपने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर शेयर करे और हमको Facebook पर फॉलो करे। धन्यवाद।

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swami vivekananda full biography in hindi

Swami Vivekananda Full Biography Hindi-स्वामी विवेकानंद की जीवनी

Written by- VicharKranti Editorial Team

Updated on- दिसम्बर 17, 2023

इस पोस्ट में हम बात करने वाले हैं अपनी प्रकांड विद्वता के बल पर भारतीय संस्कृति और भारतीय वैदिक वांगमय की आभा से पूरी दुनिया को आलोकित करने वाले महान ओजस्वी संत स्वामी विवेकानंद की । स्वामी विवेकानंद की जीवनी लिखने में हमारा उदेश्य उनकी पूरी जीवनयात्रा ( swami vivekananda full biography in hindi ) को संक्षिप्त में अपने जिज्ञासु पाठकों के लिए प्रस्तुत करना ही रहा है ।

स्वामी जी का संक्षिप्त परिचय

Topic Index

  • 1 स्वामी जी का संक्षिप्त परिचय
  • 2.1 स्वामी विवेकानंद का बचपन
  • 2.2 शिक्षा दीक्षा
  • 2.3 व्यक्तिगत जीवन में कठिनाई और रामकृष्ण परमहंस का सानिध्य
  • 2.4 निजी जीवन में दुख
  • 2.5 ब्रह्म समाज से संपर्क
  • 2.6 रामकृष्ण परमहंस से भेंट
  • 2.7 शिकागो विश्व धर्मसंसद
  • 2.8 अमेरिका में वैदिक शिक्षा का प्रचार
  • 2.9 इंग्लैंड और जर्मनी की यात्रा
  • 2.10 रामकृष्ण मिशन और बेलूर मठ की स्थापना
  • 2.11 स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु
  • 3.1 भारत में सामाजिक परिवर्तन का प्रयास
  • 3.2 रामकृष्ण देव से जुड़े कुछ प्रसंग
  • 4 स्वामी विवेकनद के प्रमुख वचन 

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ! जैसे उपनिषद के सूत्र वाक्यों एवं आध्यात्मिक चेतना धार्मिक ज्ञान और मानवीय करुणा से ओतप्रोत अपनी शिक्षाओं के द्वारा वह जीवन पर्यंत भारत भूमि और संपूर्ण विश्व समुदाय को नैराश्य भाव से विलग होकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक कर्म करने की शिक्षा देते रहे ।  

पराधीन भारत के युवाओं में उसकी महान सांस्कृतिक विरासत और परम्पराओं के प्रति आदर और श्रद्धा का बीजारोपन उन्होने सफलता पूर्वक किया । वे किसी भी बड़े परिवर्तन के लिए युवाओं के योगदान को महत्वपूर्ण मानते थे । युवाओं के भीतर उनके द्वारा प्रज्ज्वलित देश प्रेम और कर्मठता की चिंगारी ने अंततः इस देश की आजादी में भी बड़ा ही निर्णायक योगदान दिया है । 

आध्यात्मिकता से ओत प्रोत अपने क्रांतिकारी विचारों से उन्होने तत्कालीन समाज और विशेष रूप से युवाओं को झकझोर दिया । उनके संदेशों में ईश्वर के प्रति निष्ठा ,स्वयं में विश्वास , आपसी भाईचारा और कर्म करने की प्रेरणा ही मुख्य थे । 

अपने क्रांतिकारी विचारों से उन्होने इस समाज को युगांतकारी परिवर्तन का सूत्र दिया । आज के आधुनिक भारत के निर्माण में स्वामी विवेकानंद जी जैसे महान संतों का बहुत अधिक योगदान है इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता ।

अपने उदबोधनों से भारतीय युवा-चेतना को आंदोलित करने वाले महापुरुष के जन्म जयंती पर यह देश 12 जनवरी को युवा दिवस मानता है । मेरे मन में भी उनके जीवन और शिक्षाओं  के बारे में कुछ लिखने का विचार इसी दिन आया । यह लेख-swami vivekananda full biography in hindi स्वामी जी के प्रति हमारी श्रद्धांजलि है ।  

स्वामी विवेकानंद जी का सम्पूर्ण जीवन -Swami Vivekananda Full Biography Hindi

स्वामी विवेकानंद का बचपन.

स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था । बालक नरेंद्र का जन्म 12 जनवरी 1863 को सुर्योदय से ठीक पहले 6 बजकर 33 मिनट पर कलकत्ता में हुआ था । पिता विश्वनाथ दत्त हाईकोर्ट के ख्याति प्राप्त वकील थे । पिता कुछ हद तक अँग्रेज़ी लाइफ स्टाइल के शौकीन थे तो माता भुवनेशरी देवी धार्मिक प्रवृति की गृहिणी थी। जहां माता जी के कारण घर में पूजा-पाठ का वातावरण बना रहता तो वहीं पिता के कारण वे पश्चिमी बौद्धिकों के वैचारिक संपर्क में आ सके । 

शिक्षा दीक्षा

वर्ष 1871 में बालक नरेंद्र का नामांकन ईश्वरचंद विद्यासागर द्वारा स्थापित मेट्रोपोलिटन स्कूल में कारवाई गयी । किसी कारण से उनके पिता को 3 वर्षों के लिए (1877-1879 ) रायपुर जाना पड़ा तो साथ में नरेंद्र भी गए । 

फिर वापिस कोलकाता आकर उन्होने प्रेसीडेंसी कॉलेज से परीक्षा उतीर्ण की । वो उस वर्ष-1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज से प्रथम श्रेणी में परीक्षा उतीर्ण करने वाले एकमात्र विद्यार्थी थे ।उन्हें साहित्य इतिहास और दर्शन पढ़ने में अत्यंत आनंद आता था और बुद्धि इतनी तीक्ष्ण थी कि जिस चीज को एक बार पढ़ लिए फिर उसके लिए दोबारा किताब खोलने की जरूरत नहीं पड़ती थी ।  

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व्यक्तिगत जीवन में कठिनाई और रामकृष्ण परमहंस का सानिध्य

निजी जीवन में दुख.

स्वामी विवेकानंद का जीवन तमाम उतार चढ़ाव से होकर गुजरा है । जब वह सिर्फ 21 वर्ष के थे तो उनके पिता की मृत्यु हो गयी और सभी 9 भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी उनके कंधे पर आ गयी । व्यक्तिगत जीवन के झंझावातों ने उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न उठाने को मजबूर किया | वे ईश्वर के अस्तित्व के बारे में जानने को उत्सुक हुए और ऐसे गुरु की तलाश करने लगे जो उन्हें अस्तित्व और ईश्वर के बारे में सही से बता सके । इसी दरम्यान उनकी मुलाक़ात ब्रह्मा समाज के तत्कालीन नेता केशव चंद्र सेन और फिर देवेन्द्रनाथ ठाकुर  से हुई ।

ब्रह्म समाज से संपर्क

प्रेसीडेंसी कॉलेज में जब नरेंद्र का एमिशन हुआ था तो उससे पहले वो थोड़े पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंग गए थे । ब्रहमसमज जो उस समय कोलकाता के आसपास आधुनिक विचारों का प्रचार के नाम पर मूर्ति पूजा का विरोध कर रही थी और समाज में परोपकारिक कार्यों को बढ़ावा दे रही थी , से प्रभावित हो नरेंद्र भी उनसे जुड़ गए । फिर यहीं के केशवचन्द्र सेन और देवेन्द्रनाथ ठाकुर के द्वारा इनका संपर्क होता है अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से । केशवचंद्र सेन थोड़े ही दिन पहले रामकृष्ण देव के प्रभाव में अपने विचार बदल कर सामाजिक क्रांति से जुड़ गए थे । 

रामकृष्ण परमहंस से भेंट

स्वामी विवेकानंद के जीवन (swami vivekananda full biography in hindi) में रामकृष्ण परमहंस का निर्णायक योगदान है । इन्हीं लोगों के माध्यम से स्वामी विवेकानंद की मुलाक़ात रामकृष्ण परमहंस से हुई । रामकृष्ण ने आते ही इन्हें पहचान लिया और फिर रामकृष्ण परमहंस की कृपा से इन्हें आत्मसाक्षात्कार और देवदर्शन का सुयोग प्राप्त हुआ । इस आत्मसाक्षात्कार ने इन्हें पूरी तरह से बदल दिया । 

इसके बाद नरेंद्र जब तक रामकृष्ण परमहंस जिये, उनकी सेवा सुश्रुषा में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया । जब रामकृष्ण देव का देहावसान हुआ तो उसके पश्चात इन्होंने संपूर्ण भारत भू भाग की यात्रा की । अपनी इस यात्रा के दौरान अयोध्या, काशी ,वृंदावन सहित अन्य स्थानों का भ्रमण करते हुए स्वामी विवेकानंद ने भारत की गरीबी और जातिगत भेदभाव का दुखद अनुभव किया । 1892 में कन्याकुमारी में तीन दिनों तक समाधिस्थ रहे । 

शिकागो विश्व धर्मसंसद

स्वामी विवेकानंद ने अनुभव किया कि जब तक पश्चिम का भारत के प्रति विचार नहीं बदलेगा तब तक भारत भूमि की यथास्थिति में आमूलचूल परिवर्तन नहीं आएगा । भारत स्वतंत्र नहीं होगा । इसी कारण भारत में सामाजिक चेतना के जागरण को और अधिक ज़ोर देने के लिए उन्होने शिकागो में आयोजित होने वाले विश्व धर्म संसद में भाग लेने का निश्चय किया ।

अमेरिका में भाषण देने से पहले वहाँ की समृद्धि और भारत की गरीबी को देख कर बहुत रोये थे , बहुत दुखी हुए थे स्वामी विवेकानंद । वहाँ के आयोजकों द्वारा उपलब्ध करवाए गए सिर्फ दो मिनट की समयावधि में स्वामी विवेकानंद ने भारतीय ज्ञान परंपरा और वेदान्त दर्शन के मौलिक ज्ञान से भरे अपने उदबोधन में वहाँ उपस्थित जनसमूह को ऐसा आकृष्ट किया कि लोग उनके दीवाने हो गए । स्वामी जी अगले तीन साल तक पश्चिम में ही हिन्दू संस्कृति और धर्म का प्रचार प्रसार करते रहे ।  

अमेरिका में वैदिक शिक्षा का प्रचार

भारतीय वेदान्त ज्ञान परंपरा के प्रसार के लिए उन्होनें अपने पश्चिमी देशों के प्रवास के दौरान बहुत कार्य किया । 1894 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर में वेदान्त सोसायटी की स्थापना की । उसी यात्रा में उनकी भेंट शिष्य सिस्टर निवेदिता और मैक्स मूलर से भी हुई। यात्रा में स्वामी जी इंग्लैंड और जर्मनी भी गए ।

इंग्लैंड और जर्मनी की यात्रा

इंग्लैंड में उनकी भेंट मारग्रेट नोबल से हई जो बाद में चल कर सिस्टर निवेदिता कहलाईं । जर्मनी में उनकी मुलाक़ात मैक्स मूलर से हुई जिसमें मूलर साहब ने रामकृष्ण परमहंस पर पेपर लिखने की बात की । 

सिस्टर निवेदिता ने स्वामी जी के रहते और उनके अवसान के पश्चात भी भारतीय समाज के पुनर्जागरण के लिए बहुत काम किया । भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी उनका और उनके कार्यों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है । स्वामी विवेकानंद 15 जनवरी 1897 को वापिस श्रीलंका आए । तब तक स्वामी जी की कीर्ति काफी फैल चुकी थी । श्रीलंका में लोगों ने उनका भव्य और दिव्य स्वागत किया । स्वामी जी फिर रामेश्वरम होते हुए कोलकाता पहुंचे । 

रामकृष्ण मिशन और बेलूर मठ की स्थापना

भारत में समग्र सामाजिक क्रांति का सूत्रपात करने के लिए उन्होंने 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । जिसका उद्देश्य उन्होने उत्कृष्ट स्कूल ,कॉलेज एवं अस्पताल बनाने के साथ-साथ स्वच्छता के प्रति भारत में सामाजिक जागरूकता फैलाने को निर्धारित किया । 

1898 में बेलुर मठ की स्थापना की । तत्पश्चात स्वामी जी एक बार फिर से अमेरिका प्रवास के लिए 1899 में निकल पड़े । अपनी इस यात्रा के दरम्यान उन्होने सेंफ्रांसिस्को में शांति आश्रम और न्यूयार्क में वेदान्त सोसाइटी की स्थापना की । पुनः 1900 में भारत लौटे तत्पश्चात बोधगया की यात्रा की । 

स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु

अपनी कठिन दिनचर्या और अथक परिश्रम के कारण स्वामी विवेकानंद थोड़े बीमार भी रहने लगे थे । उन्हें अस्थमा और डायबटीज़ ने ग्रसित कर लिया था । परिणामस्वरूप 4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होने ध्यान करते हुए अपना शरीर त्याग कर दिया । जिसकी भविष्यवाणी उन्होनें पहले भी कई बार की थी कि वो 40 वर्ष से अधिक नहीं जिएंगे ।  

स्वामी जी रात्रि के लगभग 10 बजे अनंत समाधि को प्राप्त हुए । उस समय बारिश हो रही थी मानो आसमान भी ऐसी महान आत्मा के दुनिया से विदा होने का दुख प्रकट करते हुए आँसू बहा रहा हो । स्वामी विवेकानंद भले ही भारत भूमि और इस संसार को छोड़ कर चले गए हों लेकिन उनके विचार युगों-युगों तक पूरी मानवता का पथ आलोकित करती रहेगी । 

विवेकानंद की शिक्षा और विचार :

आगे हम स्वामी विवेकानंद की जीवनी (swami vivekananda full biography in hindi) में उनके कुछ प्रमुख शिक्षाओं और विचारों पर चर्चा कर रहें हैं । स्वामी विवेकानंद की सभी शिक्षाओं के मूल में मानव-मुक्ति और मानवीय जीवन की गरिमा की पहचान और स्वीकार्यता ही रही है । उन्होनें डर को सबसे खराब कहा है – उनका कहना था जो होना है वो हो के रहेगा फिर डरना कैसा ! 

स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएँ सभी मानव को निर्भीक होकर जीने और लक्ष्य प्राप्ति को सुनिश्चित करने हेतु कर्तव्यनिष्ठ और एकाग्र होकर पुरुषार्थ करने की प्रेरणा देती हैं । उनकी शिक्षाओं में परोपकार और सेवा का महत्वपूर्ण स्थान है । उन्होने दुखी मानवता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताया | सामाजिक भेदभाव को गलत बताते हुए उस पर कुठराघात किया । 

स्वामी विवेकानंद अपनी शिक्षाओं में वेदान्त की शिक्षा – वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवनतु सुखिनाह सर्वे संतु निरमाया “ की आत्मा निवास करती है । स्वामी जी दुनिया को एक गूढ संदेश दे गए कि इस संसार में सुखी और आनंदित जीवन जीने का एकमात्र उपाय यही है- कि हम दूसरे को वो जैसे हैं उन्हें उनके उसी रूप में स्वीकार करें । उन्हें अपने कुटुंब का हिस्सा और परिवार का अंग माने । दूसरे के अस्तित्व, आस्था और विचारों का सम्मान करके ही हम इस धरती पर जीवन की गति को अविरल और निर्मल बना सकते हैं । 

सबको साथ लेकर चलने की विचारधारा के कारण ही स्वामी विवेकानंद को लोगों ने सहर्ष अपनाया । दिनानुदिन उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गयी । पश्चिमी देशों के लोगों ने भी बड़ी संख्या में उनका शिष्यत्व ग्रहण किया । इस तरह भारतीय वैदिक शिक्षाओं का प्रभाव और प्रसार दोनों बढ़ा । विश्व का भारत के प्रति दृष्टिकोण और नज़रिया भी परिवर्तित हुआ । 

भारत में सामाजिक परिवर्तन का प्रयास

भारत में सामाजिक क्रांति को गति देने के लिए उन्होने हिमालय में अद्वैत आश्रम , और रामकृष्ण मिशन जैसे संस्थाओं का निर्माण करवाया । स्वयं भी सेवा के अनेकों प्रशंसनीय कार्य किए । ऐसे परम श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद जिनकी जन्म जयंती पर संपूर्ण भारत वर्ष युवा दिवस मनाता है को हमारा कोटि कोटि नमन है !

स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की गूढ आध्यात्मिक शिक्षा की ख्याति विश्व के विभिन्न कोणों में पहुँचाई । वे वेदान्त के मर्मज्ञ थे द्वैत और अद्वैत वेदान्त दोनों के ।  

मूर्ति पूजा से समाधि, सत चित आनंद की व्याख्या और भगवान शिव के डमरू की कॉस्मिक एनर्जी से तुलना इन सबकी संभवतया पहली बार व्याख्या स्वामी विवेकानंद ने ही की थी । प्रख्यात वैज्ञानिक निकोला टेसला ने फ्री एनर्जी के विषय में जानने के लिए स्वामी विवेकानंद से संवाद किया था ।

रामकृष्ण देव से जुड़े कुछ प्रसंग

बाल्यावस्था से ही स्वामी विवेकानंद को पशुओं से बहुत प्रेम था । उन्होने अपने घर को बहुत सारे पशु पक्षियों का आश्रयस्थल बना रखा था । स्वामी विवेकानंद को बाल्यावस्था से ही कुछ विचित्र प्रकार के सपने आते थे , इन सपनों में इन्हें अपने भविष्य के बारे में खयाल आते थे । 

रामकृष्ण परम हंस को एक बार सबसे पहले समाधिस्थ अवस्था में भगवान विष्णु ने कहा था कि मैं अवतार ले चुका हूँ मुझे ढूँढोगे नहीं ! विवेकानंद को पहली बार देख कर रामकृष्ण को घटना याद आ गयी – इस बच्चे का मुख मंडल उसी बालक के समान लग रहा है जिसे मैंने अपने ध्यान की अवस्था में देखा था ।

रामकृष्ण परम हंस को विवेकानंद से अत्यंत लगाव था परिणाम स्वरूप वो जब भी विवेकानंद को देखते समाधिस्थ हो जाते । स्वामी विवेकानंद ने उनका शिष्यत्व ग्रहण करने से पहले उनसे कई सारे शंका समाधान और वाद-विवाद किया । अंत में संतुष्ट हो जाने तथा साक्षात माँ काली के दर्शनोपरांत ही उन्होने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु माना । 

स्वामी विवेकानंद तथा उनके परिवार का जीवन पिता के देहावसान के बाद अत्यंत कठिन परिस्थितियों में गुजरा । उनका परिवार चूंकि परोपकारी परिवार था इसलिए अपने लिए बहुत कुछ बचा के नहीं रखा था । इसलिए जब परिवार पर असमय मुश्किल आई तो दाने-दाने को मोहताज हो गया था उनका परिवार ! सभी सगे-संबंधियों ने भी उन्हें तिरस्कृत कर दिया , मुश्किल समय पर किसी ने सहारा बन कर हाथ थामने की कोशिश नहीं की। 

आर्थिक तंगी के कारण पूरे परिवार के जीवन-मरण के प्रश्न पर स्वामी विवेकानंद ने स्वयं को धर्म अध्यात्म से दूर कर पारिवारिक कर्तव्यों के निर्वहन में समर्पित कर दिया लेकिन थोड़े दिनों बाद वापस लौट आए अपने मन की दुनियाँ में । गरीबी में जीवन जीने को लेकर उनका उनके गुरु से कई बार विवाद हुआ लेकिन अंत में जब वो गुरु के तर्क और अपने आत्मसाक्षात्कार से सहमत हुए तो फिर कभी धन की ओर मुड़ कर नहीं देखा । 

रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें ध्यान में माँ काली से वरदान मांगने को कहा – उन्होने धन को छोड़ कर सब कुछ मांगा । पुनः मांगने गए फिर वही हुआ सब कुछ मांगा माँ काली से सिवाए धन के । इस तरह इनका मोह भंग हुआ धन से और अपने जन्म और जीवन का उद्देश्य प्राप्त हुआ । जिसके बाद इनहोने अपने जीवन को जगत कल्याण और मानव सेवा में पूर्णतः समर्पित कर दिया । एक तरह से हम कह सकते हैं कि बालक नरेंद्र के विवेकानंद बनने में उनकी गरीबी और जीवन की कठिनाइयों का भी एक अहम स्थान था ।

स्वामी विवेकनद के प्रमुख वचन  

  • उठो जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको मत ।
  • स्वयं को जाने बिना ईश्वर को नहीं जाना जा सकता । 
  • अच्छे कर्म तो अच्छा गुरु मिलता है जीवन में । 

मित्र ! स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया को बदलने के लिए 1000 समर्पित लोगों की आवश्यकता बताई थी । वस्तुतः स्वामी विवेकानंद जैसे 1000 नहीं 100 लोग भी इस पूरी दुनिया को बदलने की क्षमता रखते हैं । अपने अल्प जीवनकाल में ही उन्होनें इस देश और संपूर्ण मानवता के लिए वो सबकुछ कर दिया जिससे आने वाली कई सदियों के लिए उनका नाम अमर हो गया । 

हमें पूरा विश्वास है कि हमारा यह लेख-स्वामी विवेकानंद की जीवनी (swami vivekananda full biography in hindi) आपको पसंद आया होगा । स्वामी जी के प्रति आपके विचार सहित इस पोस्ट की त्रुटियों पर आपकी सभी टिप्पणियों का नीचे कमेन्ट बॉक्स में स्वागत है … लिख कर जरूर भेजें ! इस लेख को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल्स पर शेयर भी करे क्योंकि Sharing is Caring !

अपना बहुमूल्य समय देकर लेख पढ़ने के लिए आभार ! आने वाला समय आपके जीवन में शुभ हो ! फिर मुलाकात होगी किसी नए आर्टिकल में ..

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स्वामी विवेकानंद एक हिंदू साधु (Monk) और दार्शनिक (Philosopher) थे। यह ऐसे इंसान थे जिन्होंने देश में ग़रीबी और भेद भाव को कम करा। इन्होंने जो भारत देश के लिए करा वो अविस्मरणीय है। आज भी यह करोड़ों भारतीयों के दिलों में बस्ते है और इनका जीवन बहुत ही प्रेरणा दायक है। आइये जानने स्वामी विवेकानंद के जीवन परिचय के बारे में | Swami Vivekananda biography in Hindi

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स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863, मकर संक्रांति के दिन बंगाल में हुआ था। इनके माता पिता ने बचपन में इनका नाम नरेंद्रनाथ (Narendranath) रखा था और सब इनको नरेन बुलाते थे।

बचपन से ही यह बहुत तेज और बाक़ी बच्चों से अलग थे। यह हमेशा पूछते थे की हिंदू-मुस्लिम में भेद भाव क्यों करा जाता है और इसकी प्रकार के अन्य प्रशन यह पूछा करते थे।

Swami Vivekananda family | स्वामी विवेकानंद का परिवार

विवेकानंद का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। इनका परिवार बहुत ही अच्छा था और सारे व्यक्ति पढ़े लिखे थे। परिवार के सभी लोग हमेशा सबकी मदद करते थे और बहुत सारे लोग इनके परिवार को जानते थे व पसंद भी करते थे।

विवेकानंद की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। यह एक धार्मिक महिला थी। विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता था और यह कलकत्ता हाई कोर्ट (High Court) में वकील थे।

Swami Vivekananda Education | स्वामी विवेकानंद की पढ़ाई

स्वामी विवेकानंद पढ़ाई में बहुत ही होशियार और बुद्धिमान थे। इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज (Scottish Church College), विद्यासागर कॉलेज (Vidyasagar College), कलकत्ता विश्वविद्यालय (University of Calcutta), प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय (Presidency University) से पढ़ाई की हुई है।

बुद्धिमान होने के कारण यह हमेशा प्रथम श्रेणी से पास होते। इन्हें किताबों से बहुत लगाओ था इसलिए यह हमेशा लाइब्रेरी की सारी किताबों को पड़ देते थे। समय के साथ-साथ इन्हें हर एक क्षेत्र का अच्छा ख़ासा ज्ञान हो गया था।

Swami Vivekananda Guru | स्वामी विवेकानंद के गुरु

स्वामी विवेकानंद को एक दिन सपना आता है जिसमें वो एक आमिर आदमी जिसके पास सारी सुख सुविधा होती है और वो एक साधु को भी देखते है जो प्रभु की भगती में लीन होता है। उस दिन यह साधु से बहुत प्रभावित होते है और विवेकानंद भी साधु बन्ने का फ़ेस्ला करते है।

लेकिन इनको कोई दिशा दिखाने वाला नही मिल रहाँ था जिसने भगवान को देखा हो। तो यह एक दिन राम कृष्णा (Ram krishna Paramahamsa) से दक्षिणेश्वर (Dikshineswar) मंदिर में मिलते है।

राम कृष्णा को विवेकानंद सबसे अलग लगते है और यह इन्हें अपना शिष्य बना लेते है और सिर्फ़ इनसे ही अपनी मन की बातों को बताते है। स्वामी विवेकानंद इन्हें अपना गुरु मान लेते है। ऐसा भी माना जाता है की श्री राम कृष्णा भगवान के ही अवतार थे।

इनके चले जाने के बाद विवेकानंद ने 23 साल की उम्र में मठ को सम्भाला और बाक़ी साधुओं को भी पूजा, ध्यान और पढ़ाई का ज्ञान दिया।

विवेकानंद चाहते थे कि बाक़ी साधुओं के पास भी सारी चीज़ों की जानकारी हो इसलिए विवेकानंद इन्हें बाक़ी देशों के राजनीतिक व्यवस्था और इतिहास के बारे के बारे में भी बताते थे। विवेकानंद ने इन्हें प्लांटों, एरिस्टोटल, बुद्धा और बाक़ी प्रशिद्ध इंसानो के बारे में भी बताते थे।

Swami Vivekananda parliament of religion | स्वामी विवेकानंद धर्म की संसद

स्वामी विवेकानंद भारत के कई हिस्सों में गए और समानता की भावना को फैलाया। लेकिन कुछ समय के बाद इन्हें अमेरिका में मौक़ा दिखा की वो वहाँ अपना प्रचार कर सकते है क्योंकि वहाँ धर्मों में भेद भाव नही है।

स्वामी जी ने 1893 में होने वाली धर्म की संसद (Parliament of Religion), जिसमें सारी दुनिया से हर एक धर्म के नेता आने वाले थे। उसमें विवेकानंद भारत की तरफ़ से गए थे और सभी इनके भाषण को सुन कर बहुत प्रसन्न हुए।

विवेकानंद चार साल अमेरिका में भी रहे और अमेरिका के न्यू यॉर्क (New York), बॉस्टन (Boston), वॉशिंटॉन (Washington) आदि शहरों में धर्म का प्रचार किया।

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Swami Vivekananda books | स्वामी विवेकानंद की किताबें

स्वामी जी ने अपने समय में अनेक प्रकार की किताबी लिखी जो आज भी हम सबके लिए बहुत मूल्य वान है। यह किताबे इनके जीवनकाल में प्रकाशित हुई थी।

  • कर्म योग (Karma Yoga )
  • राज योग (Raja Yoga)
  • वेदांत दर्शन (Vedanta Philosophy)
  • कोलंबो से अल्मोड़ा तक व्याख्यान (Lectures from Colombo to Almora )
  • बार्टमन भारती (Bartaman Bharat)
  • मेरे गुरु (My Master)
  • वेदांत दर्शन: ज्ञान योग पर व्याख्यान (Vedânta philosophy: On Jnâna Yoga)
  • ज्ञान योग (Jnana yoga)

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Swami Vivekananda Quotes in Hindi | स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन

“दिल और दिमाग के टकराव में, अपने दिल का अनुसरण करें”

“आपको अंदर से बाहर की ओर बढ़ना है। कोई आपको सिखा नहीं सकता, कोई आपको आध्यात्मिक नहीं बना सकता। आपकी अपनी आत्मा के अलावा कोई दूसरा शिक्षक नहीं है।”

“किसी की निंदा न करें: यदि आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ऐसा करें। यदि तुम नहीं कर सकते, तो अपने हाथ जोड़ो, अपने भाइयों को आशीर्वाद दो, और उन्हें अपने रास्ते जाने दो”

“एक समय में एक काम करो, और इसे करते समय बाकी सब को छोड़कर अपनी पूरी आत्मा को उसमें डाल दो।”

“हम वही काटते हैं जो हम बोते हैं। हम अपने भाग्य के विधाता स्वयं हैं। किसी और का दोष नहीं है, किसी की प्रशंसा नहीं है।”

“अगर मैं अपने अनंत दोषों के बावजूद खुद से प्यार करता हूं, तो मैं कुछ दोषों की झलक में किसी से कैसे नफरत कर सकता हूं।”

“हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।”

“यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।”

“जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं”

“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये।”

“जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।”

“चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो। स्वामी विवेकानंद के कोट्स”

“किसी का या किसी चीज का इंतजार न करें। आप जो कुछ भी कर सकते हैं वह करें, किसी पर भी अपनी आशा का निर्माण न करें”

“जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।”

Was Swami Vivekananda married ?

नहीं। अपने जीवन मे स्वामी जी ने शादी नहीं की वो हमेशा महिलाओ को अपनी माँ समान मानते थे इसलिए उन्होंने कभी शादी नहीं की और अपनी भक्ति मे लिन रहे।

Was Swami Vivekananda enlightened ?

स्वामी विवेकानंद enlighted है यह समाधि मे बहुत-बहुत देर तक चले जाते थे।

Does  Swami Vivekananda  believe in god ?

स्वामी जी भगवान मे विशवास रखते थे और यह भी माना गया है की वो भगवान को देख भी सकते थे।

Did  Swami Vivekananda  believe in astrology ?

स्वामी जी astrology मे विशवास नहीं रखते थे। उनका मानना था की यह सब एक कमजोर व्यक्ति के काम होते है।

Did  Swami Vivekananda  wrote any book ?

स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन मे अनेक किताबे लिखी और इनकी बहुत से किताबे तो इनकी मृत्यु के बाद छापी गई।

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda Biography In Hindi

Swami Vivekananda Biography in hindi

स्वामी विवेकानंद भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति थे. जिन्होंने संपूर्ण विश्व को भारत की संस्कृति, धर्म के मूल आधार और नैतिक मूल्यों से परिचय कराया. स्वामी जी वेद, साहित्य और इतिहास की विधा में निपुण थे. स्वामी विवेकानंद को सयुंक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में हिन्दू आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार प्रसार किया. उनका जन्म कलकत्ता के के उच्च कुलीन परिवार में हुआ था. उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था. युवावस्था में वह गुरु रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आये और उनका झुकाव सनातन धर्म की और बढ़ने लगा.

गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिलने के पहले वह एक आम इंसान की तरह अपना साधारण जीवन व्यतीत कर रहे थे. गुरूजी ने उनके अन्दर की ज्ञान की ज्योति जलाने का काम किया. उन्हें 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में दिए गए अपने भाषण के लिए जाना जाता हैं. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों” कहकर की थी. स्वामी विवेकानंद की अमेरिका यात्रा से पहले भारत को दासो और अज्ञान लोगों की जगह माना जाता था. स्वामी जी ने दुनिया को भारत के आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन कराये.

स्वामी विवेकानंद का जन्म और परिवार (Swami Vivekananda Birth and Family)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट में हुआ. स्वामी जी के बचपन का नाम नरेन्द्र दास दत्त था. वह कलकत्ता के एक उच्च कुलीन परिवार के सम्बन्ध रखते थे. इनके पिता विश्वनाथ दत्त एक नामी और सफल वकील थे. वह कलकत्ता में स्थित उच्च न्यायालय में अटॅार्नी-एट-लॉ (Attorney-at-law) के पद पर पदस्थ थे. माता भुवनेश्वरी देवी बुद्धिमान व धार्मिक प्रवृत्ति की थी. जिसके कारण उन्हें अपनी माँ से ही हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला.

स्वामी विवेकानंद का बचपन (Swami Vivekananda Childhood)

स्वामी जी आर्थिक रूप से संपन्न परिवार में पले और बढे. उनके पिता पाश्चात्य संस्कृति में विश्वास करते थे इसीलिए वह उन्हें अग्रेजी भाषा और शिक्षा का ज्ञान दिलवाना चाहते थे. उनका कभी भी अंग्रेजी शिक्षा में मन नहीं लगा. बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के बावजूद उनका शैक्षिक प्रदर्शन औसत था. उनको यूनिवर्सिटी एंट्रेंस लेवल पर 47 फीसदी, एफए में 46 फीसदी और बीए में 56 फीसदी अंक मिले थे.

माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थी वह नरेन्द्रनाथ (स्वामीजी के बचपन का नाम) के बाल्यकाल में रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाया करती थी. जिसके बाद उनकी आध्यात्मिकता के क्षेत्र में बढते चले गयी. कहानियाँ सुनते समय उनका मन हर्षौल्लास से भर उठता था.रामायण सुनते-सुनते बालक नरेन्द्र का सरल शिशुहृदय भक्तिरस से भऱ जाता था. वे अक्सर अपने घर में ही ध्यानमग्न हो जाया करते थे. एक बार वे अपने ही घर में ध्यान में इतने तल्लीन हो गए थे कि घर वालों ने उन्हें जोर-जोर से हिलाया तब कहीं जाकर उनका ध्यान टूटा.

स्वामी विवेकानंद का सफ़र (Swami Vivekananda Life Journey)

वह 25 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपना घर और परिवार को छोड़कर संन्यासी बनने का निर्धारण किया. विद्यार्थी जीवन में वे ब्रह्म समाज के नेता महर्षि देवेंद्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आये. स्वामी जी की जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने नरेन्द्र को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी.

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के पुजारी थे. परमहंस जी की कृपा से स्वामी जी को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ और वे परमहंस जी के प्रमुख शिष्य हो गए.

1885 में रामकृष्ण परमहंस जी की कैंसर के कारण मृत्यु हो गयी. उसके बाद स्वामी जी ने रामकृष्ण संघ की स्थापना की. आगे चलकर जिसका नाम रामकृष्ण मठ व रामकृष्ण मिशन हो गया.

Swami Vivekananda Biography In Hindi

शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन (Swami Vivekananda’s chicago Dharma Sammelan)

11 सितम्बर 1893 के दिन शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन होने वाला था. स्वामी जी उस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

जैसे ही धर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने अपनी ओजस्वी वाणी से भाषण की शुरुआत की और कहा “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों” वैसे ही सभागार तालियों की गडगडाहट से 5 मिनिट तक गूंजता रहा. इसके बाद स्वामी जी ने अपने भाषण में भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति के विषय में अपने विचार रखे. जिससे न केवल अमेरीका में बल्कि विश्व में स्वामीजी का आदर बढ़ गया.

स्वामी जी द्वारा दिया गया वह भाषत इतिहास के पन्नों में आज भी अमर है. धर्म संसद के बाद स्वामी जी तीन वर्षो तक अमेरिका और ब्रिटेन में वेदांत की शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते रहे. 15 अगस्त 1897 को स्वामी जी श्रीलंका पहुंचे, जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ.

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स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग (Swami Vivekananda Story in Hindi)

जब स्वामी जी की ख्याति पूरे विश्व में फैल चुकी थी. तब उनसे प्रभावित होकर एक विदेशी महिला उनसे मिलने आई. उस महिला ने स्वामी जी से कहा- “मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ.” स्वामी जी ने कहा- हे देवी मैं तो ब्रह्मचारी पुरुष हूँ, आपसे कैसे विवाह कर सकता हूँ? वह विदेशी महिला स्वामी जी से इसलिए विवाह करना चाहती थी ताकि उसे स्वामी जी जैसा पुत्र प्राप्त हो सके और वह बड़ा होकर दुनिया में अपने ज्ञान को फैला सके और नाम रोशन कर सके.

उन्होंने महिला को नमस्कार किया और कहा- “हे माँ, लीजिये आज से आप मेरी माँ हैं.” आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल गया और मेरे ब्रह्मचर्य का पालन भी हो जायेगा. यह सुनकर वह महिला स्वामी जी के चरणों में गिर गयी.

Swami Vivekananda Biography In Hindi

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (Swami Vivekananda Death)

4 जुलाई 1902 को स्वामी जी ने बेलूर मठ में पूजा अर्चना की और योग भी किया. उसके बाद वहां के छात्रों को योग, वेद और संस्कृत विषय के बारे में पढाया. संध्याकाल के समय स्वामी जी ने अपने कमरे में योग करने गए व अपने शिष्यों को शांति भंग करने लिए मना किया और योग करते समय उनकी मृत्यु हो गई.

मात्र 39 वर्ष की आयु में स्वामी जी जैसे प्रेरणा पुंज का प्रभु मिलन हो गया. स्वामी जी के जन्मदिवस को पूरे भारतवर्ष में “युवा दिवस“ के रूप में मनाया जाता हैं.

स्वामी जी के अनमोल विचार (Swami Vivekananda’s Quotes in Hindi)

  • ‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ. अपने मानव जन्म को सफल बनाओ और तब तक नहीं रूको जब तक लक्ष्य प्राप्त न कर लो’
  • हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिससे चरित्र निर्माण हो. मानसिक शक्ति का विकास हो. ज्ञान का विस्तार हो और जिससे हम खुद के पैरों पर खड़े होने में सक्षम बन जाएं.

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3 thoughts on “स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda Biography In Hindi”

बहुत बढ़िया लिखा है नीस , स्वामी विवेकानंद जी से जुडी रोचक जानकारियां जानने के लिए यहां किल्क करें।

very nice biography .. thanks for sharing

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भारत के महान फिलॉस्फर स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Swami Vivekananda Biography in Hindi

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भारत के सबसे महान तेजस्वी प्रतिभा वाले व्यक्ति स्वामी विवेकानंद जी ने अपने अध्यात्मिक, धार्मिक ज्ञान के मध्यम से समस्त मानव जाति को अपने रचना ज्ञान से सिख दी। जिन्होंने पूरी दुनिया को भारत के संस्कृति से अवगत करवाया। उनका कहना था की अपने लक्ष्य को पाने के लिए तब तक कोशिश करनी चाइए, जबतक आपको आपका लक्ष्य प्राप्त न हो। वे हमेशा कर्म पर विश्वाश करते थे, उनका कहना था की जो जैसा कर्म केरेंगे कल आपको वैसा ही फल मिलेगा। स्वामी विवेकानंद के विचार को जो वेक्ति जो फॉलो करेगा, उसे सफलता हासिल करने से कोई नही रोक सकता.

दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमान में से एक स्वामी विवेकानंद की जीवनी परिचय | Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद की जीवनी परिचय (Swami Vivekananda Biography in Hindi)

संक्षप्त परिचय, स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन(swami vivekananda biography in hind).

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकरसंक्रति के दिन कलकत्ता एक कायस्थ जाति के परिवार में हुए था। इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त को कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे और मां का नाम भुनेश्वरी देवी जो एक धार्मिक विचार की महिला थी, और हिंदू धर्म के प्रति कफि यास्था रखती थी। नरेंद्र को 9 भाई बहन थे। दादा जी का नाम दुर्गाचरण दत्त   फारसी और संस्कृत के विद्वान वक्ति थे। वे भी अपने घर परिवार को छोड़कर साधु बन गए।

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स्वामी विवेकानन्द जी का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था प्यार से लोग उन्हें नरेंद्र बुलाया करते थे। ये बचपन से अत्यंत कुशाग्र और दुधिमान के साथ बहुत नटखट भी थे। बचपन में अपने सहपाठियों के साथ बहुत किया करते थे, कभी-कभी मौका मिलने पर अधियापको से भी सरारत करने से नहीं चूकते थे।

उनकी मां धार्मिक विचार की महिला थी इसलिए उनके घर में नियमित रूप से पूजा पाठ होता रहता और साथ ही रामायण, गीता, महाभारत जैसे पुरानो की पढ़ होते रहता था। इस कारण से उन्हें बचपन से ही ईश्वर के प्रति जानने की इच्छा उनके मन में जागृत होने लगा। भगवान को जानने की उत्सुकता में माता पिता कुछ ऐसे सवाल पूछ देते की जानने के लिऐ उन्हे ब्रहमणो के यहा जाना परता। 1984 में उन्होंने अपने पिता जी साथ छूट गया और परिवार की सारी जिमेदार उन्ही पर आ गया

स्वामी विवेकानंद का शिक्षा( teachings of swami vivekananda)

स्वामी विवेकानन्द का प्रारम्भ शिक्षा उनके घर में ही हुआ। 1871 में 8 साल की उम्र में ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन सस्थान में नामांकन करवाए, जहां से उन्होंने स्कूल की पढ़ाई की। 1877 अपने परिवार के साथ रायपुर चले गए फिर एक साल बाद 1877 में अपने घर या गए। कलकत्ता के प्रसिडेंसी कॉलेज   के परवेश परीक्षा में प्रथम डिविजन से पास होने वाला एक मात्रछात्र थे। कॉलेज के समय स्कूल में हो रहे खेल कूद प्रतियोगिता में हमें भाग लेते थे।

उन्होंने दर्शनसास्त्र, धर्म, सामाजिक विज्ञान, इतिहास, काला और साहित्य जैसे विषयों की शिक्षा प्राप्त किए थे। 

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इसके अलाव वेद , उपनिषद, भागवत, गीता, रामायण , महाभारत और कई हिंदू सस्त्रो का गहन अधियान किए थे। उसके बाद भारतीय सस्ती संगीत का भी प्रशिक्षण ग्रहण किए। स्कांतिश चर्च कॉलेज असेंबली इस्टीट्यूशन से पश्चिमी तर्क , पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास अध्ययन किए। 1884 में उन्हे काला स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

1860 में उन्होंने स्पेंसर का किताब एजुकेशन को बंगाली में अनुवाद किए। उसके बाद उन्होंने 1984 में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। महासभा सस्थां के प्रधाना अध्यापक ने लिखा नरेंद्र सच में एक बहुत बुद्धिमान वेक्ति हैं।

मैने कई सारे अलग अलग जगहों   यात्रा किए है, पर उनके जैसा प्रतिभाशाली वेक्ति कभी नही देख यहां ताकि वे जर्मन विश्वविद्यालय के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं देखें। इसलिए उन्हें श्रुतिधर भी कहा जाता था। इसका अर्थ है विलक्षण स्मृति वाला व्यक्ति होता है।

  स्वामी विवेकानंद ने david Hume, lmmanuel Kant, Johann Gottlieb fichte, Baruch spinoza, Georg W.F. Hegel, arthu schopenhauer, aguste comte, John Stuart mill और चार्ल्स डार्विन के कामों का अभ्यास किए थे।

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस ( Swami Vivekananda and Ramakrishna Paramhansa)

स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से ही ईश्वर के प्रति जानने का जिज्ञासा था इसीलिए उन्होंने एक बार महा ऋषि देवेंद्र नाथ से उन्होंने एक सवाल पूछा ‘क्या आपने कभी भगवान को देखा है?’ उनके इस सवाल को सुनकर महर्षि देवेंद्र आश्चर्य में पड़ गए। उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दिए। उसके बाद स्वामी जी ने रामकृष्ण परमहंस को ही अपना गुरु बना लिए। उनके बताए सदमार्ग पर चलने लगे।

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विवेकानंद जी अपने गुरु से इतना प्रभावित हुए की उनके प्रति उनके मन में कर्तव्यनिष्ठा और श्रद्धा की भावना बढ़ती गई। 1885 में उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस कैंसर की बीमारी से ग्रसित थे।इसलिए उन्होंने उनके बहुत सेवा की और अंत में उनकी मृत्यु हो गई। इस तरह से गुरु और शिष्य के बीच में एक मजबूत रिश्ता बन चुका था।

रामकृष्ण मठ की स्थापना (Ramakrishna Math Establishment)

उसके बाद उन्होंने अपने ग्रुप रामकृष्ण परमहंस के मृत्यु के बाद उन्होंने 12 नगरों में रामकृष्ण संघ की स्थापना की बाद में इनका नाम रामकृष्ण संघ से बदलकर रामकृष्ण मठ कर दिया गया। रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद   मात्र 25 वर्ष के उम्र में उन्होंने अपना घर परिवार त्याग दिया और ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे और और गेरुआ वस्त्र धारण करने लगे। तभी से उनका नाम विवेकानंद स्वामी हो गया।

विवेकानंद स्वामी का भारत भ्रमण (Vivekananda Swami’s India tour)

स्वामी विवेकानन्द पूरे भारतवर्ष का भ्रमण पैदल यात्रा के दौरान काशी, प्रयाग, अयोध्या, बनारस, आगरा, वृंदावन इसके अलावा और कई जगह का भ्रमण किए। इस दौरान वे कई सारे राजा, गरीब, संत और ब्रहमणों के घर में ठहरे। इस यात्रा के दौरान कई सारे अलग अलग क्षेत्रों में जाति प्रथा और भेद भाव ज्यादा प्रचलित है। जाति प्रथा को हटाने के लिए बहुत कोशिश किए।

23 दिसंबर 1892 को भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी जा पहुंचे वहा पर उन्होंने तीन दिन तक समाधी में रहे। उसके बाद वे अपने गुरु भाई से मिलने के लिए राजस्थान के अबू रोड जा पहुंचे जहां अपने गुरु भाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तूर्यानंद से मिले। भारत की पूरी यात्रा देश की गरीबी और दुखी लोगो को देख कर इसेसे पुरे देश को मुक्त करने और दुनिया को भारत के प्रति सोच को बदलने का फैसला किया।

स्वामी विवेकानन्द अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन का भाषण (Swami Vivekananda’s speech at the World Conference of Religions of America)

1893 में स्वामी विवेकानन्द   भारत के ओर से अमेरिका के विश्व धर्म समेलन में हिस्सा लिए। इस धर्म समेलान में पूरी दुनिया के धर्म गुरु ने हिस्सा लिया था। इसमें में भाग लेने वाले सभी लोगो ने अपना धार्मिक किताब रखे और भारत के ओर से भागवत गीता को रखा गया। इस सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द जी को देख कर विदेश लोग काफी मजाक उड़ाते थे। पर उन्होंने कुछ भी नही बोले।

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जब वे मंच पर जाकर MY BROTHER’S AND SISTER’S OF AMERICA   से संबोधित कर भाषण देना शुरू केए। तब पूरा सभागार उन्हे तालियों की ग्रग्राहट से उनका स्वागत किया। अगले दिन अमेरिका के अखबारों उन्ही की चर्चा था।

एक पत्रकार ने लिखा था, वैसे तो धर्म सम्मेलन के सभी विद्वान ने बहुत अच्छी भाषण दी पर भारत के विद्वान ने पूरे अमेरिका का दिल जीत लिया। इसी तरह उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जिससे उस समय के नई लोकप्रिये छवि बनकर उभरे। और आज भी उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विद्वान माने जाते हैं।

स्वामी विवेकानंद का विश्व भ्रमन (Swami Vivekananda’s world tour)

धर्म सम्मेलन खत्म होने के बाद 3 साल तक अमेरिका में ही रह गए और वह हिंदू धर्म के वेदंग का प्रचार अमेरिका में अलग अलग जगहों पर जाकर किए। वही अमेरिका के प्रेस ने उन्हें   “ Cylonic Monik From India ” का नाम दिया था। उसके बाद   दो साल तक शिकागो, न्यूयॉर्क, डेट्रइट और बोस्टन   में उन्होंने लेकर दिए थे।

1894 को न्यूयॉर्क में वेदाँग सोसाइटी की स्थापना की। 1896 में अक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैक्स मूलर से हुआ जिन्होंने उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की आत्मकथा लिखे थे। 1879 में उन्होंने अमेरिका से श्रीलंका गए और वहां के लोगो ने उनका स्वागत खुलकर किया। उस समय वे काफी प्रचलित थे। वहां से रामेश्वरम चले गए और फिर 1 मई 1897 को अपना घर कोलकाता चले गए।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना(Establishment of Ramakrishna Mission)

1897 मैं स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जिसका उद्देश्य यह था कि नव भारत निर्माण के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और साफ सफाई के क्षेत्र में बढ़ावा देना। वेद , साहित्य , शास्त्रदर्शन और इतिहास के ज्ञानेश्वर स्वामी विवेकानंद ने अपनी विनोद प्रतिभा से सभी को अपनी ओर आकर्षित किया और उस समय के नौजवान लोगों के लिए एक आदर्श बने रहे थे।

1898 में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना जो अभी भी चल रही है इसके अलावा और 2 मठ की स्थापना की।

स्वामी विवेकानंद का दूसरा विश्व यात्रा (Swami Vivekananda’s Second World Tour)

20 जून 1899 को फिर अमेरिका गए और वहां कैलिफोर्निया में शांति आश्रम का निर्माण किए और फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की।

जुलाई 1900 में विवेकानंद जी पेरिस गए जहां उन्होंने कांग्रेस ऑफ द हिस्ट्री रिलेशंस में भाग लिए और करीब 3 महीने तक वहां रहे थे इस दौरान उनका 2 शिष्य वहां बन गया था भगिनी निवेदिता और स्वामी त्रियानंद

1900 के आखरी माह में स्वामी जी भारत लौट आए। इसके बाद उन्होंने फिर से भारत की यात्रा की बोधगया और बनारस यात्रा की। इस दौरान उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता जा रहा था, वे अस्थमा और डायबिटीज जैसी बीमारियों से ग्रसित थे।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (swami vivekananda death)

4 जुलाई 1992 को मात्र 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु हो गई। उनके शिष्य का में तो उन्होंने महासमाधि ली थी। आरोही इस महापुरुष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट के किनारे किया गया था।

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda Jayanti (विचार)

स्वामी विवेकानंद – जीवन परिचय, जयंती, विचार, शिक्षा पर विचार, गुरु कौन थे, शादी क्यों नहीं की, मृत्यु का कारण।

Swami Vivekananda Biography in Hindi स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

हमारा देश भारत सदियों से महापुरुषों की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है। इस पावन धरती पर, बहुत से ऐसे मनीषि पैदा हुए हैं। जिन्होंने अपने चिंतन व दर्शन से, न केवल भारत। बल्कि पूरी दुनिया को गौरवान्वित किया है। ऐसे ही एक व्यक्ति थे। जिन्हें पूरी दुनिया अनुसरण(follow) करती है। बहुत महान लोगों ने इनसे प्रेरणा ली है। जिनमें सुभाष चंद्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, महात्मा गांधी, महान वैज्ञानिक निकोला टेस्ला शामिल हैं।

ऐसे नामों बहुत लंबी कतार है। जिसमे हर किसी ने, इनसे प्रेरणा ली है। यही वह पहले इंसान थे। जिन्होंने हमारे वेदों की ताकत, हमारे उपनिषदों की ताकत को पूरी दुनिया में फैला दिया। पूरी दुनिया को, इसके आगे नतमस्तक होने के लिए मजबूर कर दिया। हिंदुत्व की ताकत को बताते हुए। पूरी दुनिया को एहसास करवा दिया कि हिंदुस्तान ही पूरे विश्व का जगतगुरु है। यह थे, हमारे परम पूज्य स्वामी विवेकानंद जी। इसी प्रकार जाने : वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की Biography , जिन्होंने कभी भी अपना शीश नही झुकाया।

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Swami Vivekananda – An Introduction

स्वामी विवेकानंद का बचपन childhood of swami vivekananda.

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 में मकर संक्रांति के दिन हुआ था। उनका जन्म कोलकाता शहर के, एक हिंदू बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ। वह 9 भाई-बहनों में से एक थे। उनके पिता विश्वनाथ दत्त, जो कोलकाता हाई कोर्ट में अटॉर्नी-एट-लॉ थे। वे उस समय के एक सफल व नामी अधिवक्ता (advocate) थे।

इसके साथ वह अंग्रेजी और फारसी के अच्छे जानकार भी थे। उन्हें सभी सुख सुविधाएं अच्छी लगती थी। उन पर पाश्चात्य सभ्यता का गहरा प्रभाव था। वह अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंग्रेजी शिक्षा देकर, पाश्चात्य सभ्यता के तौर तरीके पर चलाना चाहते थे।

ऐसा भी माना जाता है कि बचपन में उनकी माता भुवनेश्वरी देवी ने, उनका नाम वीरेश्वर रखा था। बाद में उनका नाम बदलकर नरेंद्र नाथ दत्त रखा गया। जिन्हें प्यार से नरेन भी पुकारा जाता था। इनकी माता धार्मिक प्रवृत्ति की एक विद्वान महिला थी। उन्हें भगवत गीता और रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों में पारंगत हासिल थी।

ऐसे में स्वाभाविक था। जहां घर में ही उन्हें पाश्चात्य अंग्रेजी भाषा का प्रारंभिक ज्ञान मिला। वही उन्हें अपनी मां से, हिंदू धर्म और संस्कृति को करीब से जानने और समझने का मौका मिला। अपनी मां का नरेंद्र पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा। वह घर में ही ईश्वर की भक्ति व ध्यान में खो जाया करते थे। नरेंद्र को बचपन से ही ईश्वर को जानने और उन्हें प्राप्त करने की लालसा थी। इसी प्रकार जाने : Bhagat Singh Biography – शहीद-ए-आजम भगत सिंह की अनसुनी Life Story।

स्वामी विवेकानंद पर बचपन का प्रभाव Influence of Childhood on Swami Vivekananda

 नरेंद्र सब बच्चों से अलग थे। इसलिए शायद उन्हें सपने भी अलग आते थे। एक बार उन्हें सपने में, एक चमकता हुआ गोला दिखाई दिया। जिसमें से बहुत रोशनी निकल रही थी। जिसका रंग लगातार बदलता ही जा रहा था। वह गोला धीरे-धीरे और बड़ा होता जा रहा था। एक स्थिति पर आकर वह फूट गया। फिर उससे निकलने वाली सफेद रोशनी, उनके ऊपर गिरने लगी।उस रोशनी ने उन्हें पूरी तरह से ढक लिया।

छोटी उम्र में ही, वह अलग-अलग religion जैसे हिंदू-मुस्लिम और अमीर-गरीब में भेदभाव करने के लिए सवाल उठाते थे। बचपन में एक बार, उन्होंने अपने पिता से पूछा। पिताजी, आपने मेरे लिए क्या किया है। उनके पिता ने उन्हें, दर्पण (mirror) देखने के लिए कहा। उन्होंने कहा, अपने आप को इस दर्पण में देखो। तुम समझ जाओगे कि मैंने तुम्हारे लिए क्या किया है।

फिर उन्होंने एक दिन पूछा कि पिताजी, मुझे अपनी कैसी छवि दुनिया के सामने रखना चाहिए। उनके पिता ने कहा- बेटा, कभी भी किसी चीज को देखकर surprise मत होना। यही कारण था कि नरेंद्र ने सीखा कि सबकी respect करनी चाहिए। किसी को hurt नहीं करना चाहिए। जब वे एक monk (साधु) बन गए। तब चाहे, वह किसी राजा के महल में जाए या फिर किसी गरीब के घर में। वह उनके साथ हमेशा एक जैसा व्यवहार करते थे। उन्हें अमीर गरीब से, कोई भी फर्क नहीं पड़ता था।

नरेंद्र जब छोटे थे। तब उन्हें एक दिन दो तरह के सपने आए। एक बहुत पढ़ा लिखा आदमी है। जिसके पास बहुत पैसा है। Society में उसका नाम, बहुत ऊंचा है। उसके पास एक बहुत सुंदर घर है। उसकी पत्नी और प्यारे-प्यारे बच्चे हैं। दूसरी तरफ एक monk हैं, जो एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते हैं। उन्हें simple life बहुत पसंद है। पैसा और दूसरी सुख सुविधाएं देने वाली चीजें, उन्हें खुश नहीं करती।

उनकी तो बस यही इच्छा थी कि वह भगवान को जाने। उनके और पास चले जाएं। नरेंद्र जानते थे कि वह इनमें से कुछ भी बन सकते थे। उन्होंने बहुत गहराई से सोचा। उन्हें यह एहसास हुआ कि वह एक monk की तरह ही जीना चाहते थे।

स्वामी विवेकानंद : ईश्वर की खोंज Swami Vivekananda : The Search for God

स्वामी विवेकानंद के पास, एक ही लक्ष्य था। उन्हें भगवान को देखना है। उन्हें अनुभव करना था। कि भगवान से मिलना कैसा लगता है। वह चाहते थे, कि कोई ऐसा  इंसान उन्हें रास्ता दिखाएं। जिन्होंने खुद भगवान को देखा हो। उन्होंने अपनी इस खोज में, ब्रह्म समाज को join किया।

एक दिन उन्होंने, इस group के leader से पूछा। क्या आपने भगवान को देखा है। इनकी बात सुनकर, देवेंद्रनाथ बहुत surprise हो गए। उन्होंने नरेंद्र का मन बहलाने के लिए कहा। बेटे तुम एक साधु के जैसे हो। तुम्हें और ज्यादा meditation करना चाहिए।

उनकी बात से नरेंद्र निराश हो गए। उन्हें लगा कि जैसा teacher वह चाहते हैं। वैसे वह नहीं है। उन्होंने बहुत सारे लोगों से पूछा, पता लगाया। लेकिन उन्हें जो चाहिए था। वह उन्हें नहीं मिल रहा था।

स्वामी विवेकानंद की रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात Swami Vivekananda – Meeting with Ramakrishna Paramhansa

 नरेंद्र दत्त ने रामकृष्ण के बारे में सुना।  जिनका मन इतना साफ था। जो इतनी गहराई से meditation करते थे। कि उन्होंने भगवान को महसूस किया था। नरेंद्र श्री रामकृष्ण से दक्षिणेश्वर मंदिर में मिले थे। वह नरेंद्र से मिलकर बहुत प्रभावित हुए। नरेंद्र ने उन्हें पूरे मन से भजन सुनाए।

रामकृष्ण समझ गए कि यह दूसरे बच्चों से अलग हैं। रामकृष्ण इस बात से बहुत खुश थे। उन्हें एक ऐसा student मिला। जिसके साथ, वह अपने विचारों को share कर सकते थे। रामकृष्ण को छोड़कर, अब तक किसी भी टीचर ने नहीं कहा था। कि उन्होंने भगवान को देखा है।

अब नरेंद्र को विश्वास हो गया। कि वह जिसे खोज रहे थे। वह मिल गए। नरेंद्र ने एक बार पूछा- मास्टर जी, क्या आपने भगवान को देखा है। इस पर रामकृष्ण ने कहा- हां, मैंने भगवान को देखा है। जैसे मैं तुम्हें देख पा रहा हूं। वैसे ही मैं भगवान को भी देख सकता हूं। भगवान को देखा जा सकता है। उनसे बातें की जा सकती हैं। लोग अपनी family, पैसा, property के लिए रोते हैं।

लेकिन भगवान की एक झलक देखने की इच्छा, किसी में नहीं है। कोई उन्हें देखने के लिए आंसू नहीं बहाता। अगर सच में, कोई उन्हें देखना चाहता है। तो वह उन्हें देख सकता है। यह सुनकर नरेंद्र के मन को, बहुत ज्यादा शांति मिली। इसी प्रकार जाने : कबीर दास का जीवन परिचय । चलिए खुद में कबीर को और कबीर में खुद को ढूंढते हैं।

रामकृष्ण परमहंस की म्र्त्यु व नरेंद्र दत्त का संघर्ष Death of Ramkrishna Paramahamsa and Struggle of Narendra Datta

16 अगस्त 1886 में रामकृष्ण परमहंस की, कैंसर से मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, सारे monk बेघर हो गए थे। नरेंद्र दत्त 23 साल के हो चुके थे। अब उनकी responsibility थी। कि वह सभी monk का ध्यान रखें। उन्हें शिक्षा दें। रामकृष्ण के एक follower ने किराए पर, एक घर देने का offer दिया। यहीं से, बारानगर मठ की शुरुआत हुई। नरेंद्र पूरे मन से सभी नए monk को पढ़ाने में लग गए। वह अपने कर्तव्य का  निर्वहन, पूरी निष्ठा से करते।

रामकृष्ण के सारे monk को, उनकी सिखाई बातों ने उन्हें एक साथ जोड़ कर रखा हुआ था। सभी साधु की तरह जीवन व्यतीत करते थे। वह पूरा दिन पूजा, पढ़ाई, meditation और भजन गाने में बिता देते थे। नरेंद्र चाहते थे कि उनके सभी monk को, हर चीज के बारे में पूरी knowledge हो। वह उनके साथ बहुत सारी बातें शेयर  करते। उनकी knowledge को बढ़ाते रहते। दुनिया के अलग-अलग जगहों की books पढ़कर सुनाते थे।

नरेंद्र उन्हें दूसरी countries की history और political system के बारे में बताते थे। उन्हे कर्म, योग व भक्ति के बारे में बताते। इसी कारण उनकी knowledge, हर area में बहुत अच्छी हो गई थी। नरेंद्र चाहते थे कि सभी monk, independent बनना सीखें। इसीलिए वह भारत की यात्रा पर निकल पड़े। उनके पास सिर्फ एक डंडा और एक कटोरा था। बस वो ऐसे ही चलते रहे। आगे बढ़ते रहें। इसी ने उन्हें एक simple monk से स्वामी विवेकानंद बना दिया। जिन पर आज हिंदुओं को इतना गर्व है।

स्वामी विवेकानंद की एक सन्यासी के रूप में भारत यात्राएं Swami Vivekananda – Travels in India as a Monk

वह सबसे पहले वाराणसी गए। जिसे भारत की सबसे पवित्र जगह माना जाता है। यह वही जगह है, जहां बुद्ध और शंकराचार्य जैसे संतों को भगवान से ज्ञान मिला। नरेंद्र को यहां पर आकर बहुत अच्छा लगा। मानो जैसे उनमें एक नई energy भर गई हो।

एक दिन, नरेंद्र वाराणसी में घूम रहे थे। तभी बंदरों की टोली ने, उन पर हमला कर दिया। नरेंद्र जितना तेज हो सकता था, भागने लगे। तभी वहां एक बूढ़े monk ने चिल्लाकर कहा- इनका सामना करो, इनका सामना करो। यह सुनकर नरेंद्र पीछे घूमे। पूरी हिम्मत करके, उन्होंने उन बंदरों को गुस्से से देखा। तभी सच में, बंदर डरकर भाग गए।

स्वामी जी ने यही पाठ, दूसरों को भी सिखाया। कि जीवन में आने वाली problems का सामना करना सीखना चाहिए। वह हमें चाहे जितना डरा रही हो। लेकिन हमें उससे भागना नहीं चाहिए। बल्कि पूरी हिम्मत से, उनका सामना करना चाहिए । वाराणसी से नरेंद्र अयोध्या चले गए। जो भगवान राम का घर है। वहां से लखनऊ गए।

जो मुस्लिम palaces और gardens के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इसके बाद, उन्होंने ताजमहल देखा। जिसकी सुंदरता देखकर, उनकी आंखों में आंसू आ गए। फिर वह वृंदावन में, भगवान कृष्ण की कहानी से बहुत inspire हुए। इतना लंबा सफर, नरेंद्र ने नंगे पैर व बिना पैसों के तय किया।

आगे कुछ समय तक वह नॉर्थ इंडिया में रहे। जो आर्यावर्त या आर्यन की पवित्र जगह थी। यही वह जगह है। जहां से India की spiritual tradition की शुरुआत हुई थी, हमें उपनिषद व वेद यही से मिले थे। Adventure ने उन्हें, North India से South India तक पहुँचा दिया था।

रामेश्वरम में स्वामी जी की मुलाकात राजा रघुनाथ से हुई। वह भी उनके शिष्य बन गए। वह रामनाथ ही थे। जिन्होंने स्वामी जी को अमेरिका में शिकागो जाने के लिए कहा। ताकि वह parliament of religion में Hindu religion के बारे में सबको बता सकें। राजा ने सारा खर्च उठाने का वादा किया।

पूरा भारत भ्रमण करके, वह और ज्यादा समझदार व जानकार हो गए थे। उन्हें भारत में रहने वाले लोगों की गरीबी और तकलीफ के बारे में भी पता चला। Caste system ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था।

उन्हें लगा कि भारत की गरीबी और तकलीफ को, Western countries के साथ share करना चाहिए। स्वामी जी को अमेरिका में,एक hope और opportunity  दिखाई दी। वहां कोई caste system नहीं था। Parliament of Religion एक बहुत ही अच्छा मौका था, भारत के लिए मदद मांगने का।

स्वामी जी से, उन्हें भारत का ancient knowledge और ज्ञान मिल सकता था। बदले में भारत, उनसे modern technology के बारे में जान सकता था। हैदराबाद में, स्वामी जी ने पहली बार लोगों के सामने lecture दिया। जिसका नाम उन्होंने, “My mission to the West” रखा। बहुत सारे लोग उन्हें सुनने के लिए आते थे। उनकी समझ और knowledge से बहुत प्रभावित होते थे। इसी प्रकार जाने : Prithviraj Chauhan Biography in Hindi । पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी व मृत्यु का पूरा सच।

स्वामी विवेकानंद : अमेरिका यात्रा और भाषण सार Swami Vivekananda: America Tour and Speech Summary

स्वामी जी समुद्री मार्ग से यात्रा कर रहे थे। उनकी मुलाकात कुछ interesting लोगों से हुई। उन्होंने हांगकांग और सिंगापुर के sea port देखें। वह चाइना और जापान के temple में भी गए। स्वामी जी ने शिकागो जाने के लिए Vancouver और Canada से train ली। अमेरिका के लोग स्वामी जी के गेरुए कपड़ों और पगड़ी को देखकर, हैरान थे। जब वह सड़को पर चलते थे। तो लोग उन्हें follow करने लगते थे।

सितम्बर,1893 में Parliament of religion खोला गया। यह एक मेले जैसा था। जब क्रिस्टोफर कोलंबस ने अमेरिका को खोजा था। तभी से इसे  celebrate किया जाने लगा। इसका उद्देश्य था, यह दिखाना कि western countries, Science और Technology में कितने आगे बढ़ गए है। चूँकि religion भी हमारी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसलिए उसे भी शामिल किया गया था।

उस हाल में करीब 7000 लोग पूरी दुनिया से जमा थे। हर religion के प्रतिनिधि थे। यह religion थे- Islam, Christianity, Buddhism, Zoroastrianism, Jainism, Judaism, Confucianism, Hinduism । हर एक leader को सामने आकर speech देनी थी। स्वामी जी बहुत nervous थे। उन्होंने कोई speech नहीं लिखी थी।

उनके बोलने की जब बारी आई। तो उनके पहले words थे। ‘Brothers and sisters of America’। जिसने वहां पर उपस्थित, सभी लोगों का दिल जीत लिया। उन्होंने खड़े होकर, उनके लिए तालियां बजाई। सबको लगा कि कोई अलग आया है। जिसने पूरे मन से ये कहा। जिनकी बातों में सच्चाई है।

वो सबसे यह कहना चाहते थे। हमें एक-दूसरे को accept करना सीखना होगा। हमें एक-दूसरे को समझने की और शांति बनाए रखने की जरूरत है। कोई हमसे अलग है, तो क्या हुआ। हमें सब की respect करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि कैसे भारत ने, पुराने समय में जोरास्ट्रियन और इजरायल के लोगों को सहारा दिया था। भारत में रहने की जगह दी थी।

वह समझा रहे थे कि अलग-अलग religion के लोग छोटी-छोटी नदी की तरह है। जो अलग तो हो सकते हैं। लेकिन सब के सब अंत में समुद्र में जाकर मिल जाते हैं। एक हो जाते हैं। वह समुद्र है- भगवान। उन्होंने अपने religion के बारे में ही बात नहीं की। बल्कि दुनिया के सारे religion के बारे में बताया। उनकी यही बात और सोचने का तरीका, भीड़ में उन्हें सबसे अलग बनाता था।

समय के साथ, दुनिया बहुत modern हो गई थी। इसी modern दुनिया से उन्होंने request की। हमें भेदभाव को खत्म करना होगा। हर जाति, रंग और caste को accept करना होगा। स्वामी जी ने कहा कि हम सब बिल्कुल एक जैसे हैं। इसलिए यह भेदभाव बंद होना चाहिए।

स्वामी जी की वह खास बात, जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी। वह यह थी कि उन्होंने कभी दूसरे religion की बुराई नहीं की। उन्होंने कभी भी एक religion को सही और बाकी सबको गलत नहीं ठहराया। उनका मानना था कि सब religion हमें भगवान तक ले जाने का रास्ता है। वो कहते थे कि किसी मकान के अंदर जाने के बहुत सारे दरवाजे हो सकते हैं।

Parliament के आखिरी दिन उन्होंने कहा कि parliament of religion ने यह साबित कर दिया है।  हर religion दान करने, मदद करने में विश्वास करता है। उन्होंने कहा कि अगर एक भी ऐसा Religious Leader है। जो अपने religion को ऊपर रखकर, दूसरों को दबाना चाहता है। तो मुझे उस पर दया आती है।

उन्होंने कहा कि जल्द ही हर religion का एक ही slogan होगा- शांति और प्रेम। तोड़फोड़ और विनाश नहीं। एक रात में ही स्वामी जी जैसे एक celebrity बन गए थे। लोग उनकी बातों को और उनकी सच्चाई को बहुत पसंद करते थे। पूरे शिकागो में, स्वामी जी के बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे। उनके फोटो के नीचे लिखा था- The Monk Vivekananda।

जो भी उनकी फोटो के सामने से गुजरता था। वहां पर रुक कर, सिर झुका कर जाता था। स्वामी जी ने New York, Boston और Cambridge में lecture दिए। हर जगह उन्होंने, दया और सबको स्वीकार करने वाली सोच, को बढ़ाने की कोशिश की।

स्वामी विवेकानंद की भारत वापसी Swami Vivekananda – Return to India

हजारों लोग port पर स्वामी जी के, वापस आने का इंतजार कर रहे थे। जब स्वामी जी की एक झलक दिखाई दी। तो वह सब बहुत खुश होकर, जमीन पर बैठ गए। स्वामी जी का Ceylon (Sri Lanka) के leader ने welcome किया। उनके लिए बड़ा जुलूस निकाला गया। एक Indian band ने, उनके लिए music बजाया। उनके ऊपर फूल बरसाए जा रहे थे। गुलाब जल और गंगाजल छिड़का जा रहा था। लोगों ने जो उनके लिए किया। उसे उन्होंने बड़े प्रेम से स्वीकार किया।

उन्होंने हिंदुओं को भगवान पर विश्वास करने और उनकी भक्ति करने के लिए, बहुत तारीफ की। लोग उनको, उनके ज्ञान और सोच के लिए पसंद करते थे। वह इन सबके लिए grateful थे। स्वामी जी पहले मद्रास गए। फिर कोलकाता। वह जहां भी जाते, लोग उनका स्वागत करने के लिए, उनका इंतजार करते थे। लोगों में उन्हें देखने और उनकी बातें सुनने की बड़ी इच्छा थी।

स्वामी जी ने नॉर्थ इंडिया के हर state में lecture दिया। वह अल्मोड़ा, जम्मू, लाहौर और भी बहुत सी जगह गए। सब जगह उन्होंने इसी बात पर जोर दिया। हर एक को खुद को एक अच्छा इंसान बनाना होगा। एक-एक करके सब अच्छे होते जाएंगे। तो पूरा देश और strong बन जाएगा।

उन्होंने कहा, आप जिंदगी के किसी भी रास्ते पर चलें। लेकिन खुद को एक अच्छा इंसान बनाएं। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, अपने अंदर प्यार, respect, हिम्मत और दूसरों की मदद करने की भावना, जैसी  qualities को develop करना। क्योंकि यह आपको बहुत strong बना देता है।

उन्होंने लोगों को संस्कृत भाषा को promote करने के लिए भी कहा। ताकि कहीं हिंदू religion खत्म ना हो जाए। स्वामी जी एकता को बढ़ावा देने के लिए, एक caste की दूसरे caste में शादी करने की बात भी करते थे। इसी प्रकार जाने :   Lal Bahadur Shastri Biography in Hindi । शास्त्री जी के जीवन के अंतिम पल का सच।

स्वामी विवेकानंद द्वारा रामकृष्ण मिशन की स्थापना Swami Vivekananda – Establishment of Ramakrishna Mission

स्वामी जी के western दोस्तों ने, एक नए मठ को बनाने में, उनकी मदद की। जिसका नाम बेलूर मठ रखा गया। यह रामकृष्ण के followers के लिए एक headquarter बन गया। हर रोज स्वामी जी से यहां लोग मिलने आते। उन्हें हजारों खत भी आते थे।  लोग भगवान को पाने में, उनकी मदद लेना चाहते थे। उनसे सीखना चाहते थे। अंत में स्वामी जी बेलूर मठ में रहने लगे।

उनका अस्थमा और खराब होता जा रहा था। डॉक्टर ने उन्हें सब काम छोड़ कर, retire होने के लिए कहा। इसीलिए स्वामी जी, अब ज्यादा समय मठ के अंदर ही रहते थे। कभी-कभी वह walk करने निकलते थे। कभी kitchen में जाकर देखते कि सब काम ठीक से चल रहा है। कभी monk के साथ भजन गाने लगते थे। स्वामी जी ने study करना जारी रखा। खुद को उसमें busy कर लिया। दिन प्रतिदिन उनका शरीर कमजोर होता जा रहा था। लेकिन उनका दिमाग, अभी भी बहुत कुशाग्र था।

स्वामी जी को Encyclopedia britannica बहुत पसंद आई। एक monk ने कहा कि इस किताब के सारे 25 वॉल्यूम को याद करना, बहुत मुश्किल है। पर स्वामी जी, तब तक 11वँ  वॉल्यूम शुरू कर चुके थे। उन्होंने monk से कहा कि वह जो 10 volume पढ़ चुके हैं। उनमें से वह कुछ भी पूछ सकता है। वह monk बहुत आश्चर्यचकित था कि स्वामी जी को सारे जवाब आते थे।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण Death of Swami Vivekananda

स्वामी जी को महसूस हो गया था। वह 40 की उम्र तक नहीं पहुंच पाएंगे। उनकी उम्र, उस समय 39 साल 5 महीने हो चुकी थी। उन्होंने पंचांग में, यह calculate करने के लिए देखा कि उनकी मृत्यु कब होने वाली है। स्वामी जी ने अपने सीनियर monk को बता दिया था कि वह अपना अंतिम संस्कार कहां चाहते है। वह उसी मठ के ग्राउंड में एक जगह थी।

शुक्रवार शाम 7:00 बजे घंटी बजी। पूजा का समय हो गया था। स्वामी जी अपने कमरे में पूजा और मेडिटेशन करने चले गए। उन्होंने अपने सेवक से कहा कि वह एक घंटे, अपने कमरे में रहेंगे। उन्हें कोई disturb ना करें। उसके बाद स्वामी जी ने, अपने सेवक को मदद के लिए बुलाया। सभी खिड़की व दरवाजों को खोला गया। ताकि शुद्ध हवा आ सके।

स्वामी जी बिस्तर पर लेट गए। उनके सेवक ने सोचा कि वह सो गए हैं। वह वैसे ही लेटे रहे और उनके चेहरे पर बहुत शांति थी। वह लंबी सांसे ले रहे थे। फिर उनके हाथ कांपने लगे। उनके नाक, आंख और मुंह से blood निकलने लगा।

योग पुस्तकों में बताया गया है कि एक महान और पवित्र संत की आत्मा सिर से बाहर निकलती है। जिसकी वजह से bleeding होती है। यह घटना रात 9:00 बजे हुई। डॉक्टरों ने इसका कारण apoplexy यानि अचानक सुनना बंद हो जाना बताया। लेकिन दूसरे monk समझ गए थे कि स्वामी जी ने जानबूझकर समाधि ले ली है। उन्होंने उनके शरीर को गेरुआ कपड़ा उड़ा दिया। चारों तरफ फूल बिछा दिए गए। उनका अंतिम संस्कार, अगले दिन उसी स्थान पर किया गया।

सभी monk को स्वामी जी की कही हुई बात याद आ रही थी। एक समय आएगा, जब मैं अपने शरीर को, एक पहने हुए कपड़े की तरह त्याग दूंगा। मगर यह मुझे काम करने से रोक नहीं पाएगा। मैं हमेशा लोगों को inspire करता रहूंगा। जब तक वह समझ नहीं जाते कि वह उस भगवान का ही एक part हैं। हो सकता है कि मैं बार-बार जन्म लूं ।

स्वामी विवेकानंद : महत्वपूर्ण तिथियाँ Swami Vivekananda – Important Dates

स्वामी विवेकानंद के विचार swami vivekananda quotes in hindi.

1.   “जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है, शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक। उसे जहर की तरह त्याग दो।”

2.   “सत्य को हजारो तरीको से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक तरीका सत्य ही होंगा।”

3.   “जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नही तो लोगो का विश्वास उठ जाता है।

4.   “जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है लेकिन जो भी रिश्ते हैं, उनमें जीवन का होना जरूरी है।”

5.   “शिक्षा का अर्थ है उस पूर्णता को व्यक्त करना जो सभी मनुष्यों में पहले से विद्यमान है।”

6.   “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।”

7.   “बल ही जीवन है और दुर्बलता मृत्यु।”

8.   “जब तक करोड़ों लोग भूखे और अज्ञानी रहेंगे, मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को विश्वासघाती मानूंगा जो उनकी कीमत पर शिक्षित हुआ है और उनकी ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता है।”

9.   “संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है, असंभव से भी आगे निकल जाना।”

10.   “सत्य को हजार तरीके से बताया जा सकता है फिर भी हर एक सत्य ही होगा।”

11.   “जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।”

उ० विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में स्वामी विवेकानंद हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व  किया। उन्होंने रामकृष्ण मिशन व वेदांत सोसाइटी की नींव रखी।

उ० उठो जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।

उ० स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि “स्वयं पर विश्वास और ईश्वर पर विश्वास, यही  महानता का रहस्य है।”

उ० स्वामी विवेकानंद ने 4 जुलाई 1902 में 39 वर्ष 5 महीने की उम्र में, समाधि ले ली थी।

उ० बेलूर मठ की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने की थी।

आपको इसे भी जानना चाहिए :

  • सनातन धर्म का अर्थ व उत्पत्ति । सनातन धर्म क्या है। Sanatan Dharm in Hindi।
  • Grit – The Power of Your Passion Book Summary in Hindi । ग्रिट का रहस्य क्या।
  • कैलाश पर्वत की कहानी, इतिहास व रहस्य । क्यों है कैलाश पर्वत अजेय।
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3 thoughts on “स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | swami vivekananda jayanti (विचार)”.

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स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) का जीवन परिचय – Biography

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय (Biography of Swami Vivekananda in Hindi)

Table of Contents

स्वामी विवेकानंद जीवनी (जीवनी), प्रेरक प्रसाद, अनमोल विचार हिंदी में (Swami Vivekananda’s Biography and inspirational story in Hindi)

स्वामी विवेकानंद भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति के जीवंत अवतार थे। जिन्होंने पूरे विश्व को भारत की संस्कृति, धर्म और नैतिक मूल्यों के मूल से परिचित कराया। स्वामी जी वेद, साहित्य और इतिहास की विधा में पारंगत थे।

पिछले लेख में, हमने महत्वपूर्ण विषय Dr. APJ अब्दुल कलाम का इतिहास व जीवन परिचय और Meesho App क्या है और इस से पैसे कैसे कमाए? सम्पूर्ण जानकारी ! के बारे में अच्छे से और सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कर चुके हैं।

स्वामी विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में हिंदू आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार किया। उनका जन्म कलकत्ता के एक हाई-प्रोफाइल परिवार में हुआ था। उनका असली नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।

छोटी उम्र में ही वे गुरु रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आ गए और सनातन धर्म के प्रति उनका झुकाव बढ़ने लगा।

गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिलने से पहले वे एक सामान्य इंसान की तरह अपना सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे थे। गुरुजी ने उनके भीतर ज्ञान का प्रकाश जलाने का काम किया।

उन्हें 1893 में शिकागो में आयोजित धर्मों की विश्व महासभा में अपने भाषण के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” कहकर की थी, स्वामी विवेकानंद की अमेरिका यात्रा से पहले, भारत को दासो का स्थान माना जाता था और अज्ञानी लोग। स्वामी जी ने दुनिया को भारत के आध्यात्मिक रूप से समृद्ध वेदांत का दर्शन कराया।

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स्वामी विवेकानंद का जन्म और परिवार (Birth and Family of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट में हुआ था। स्वामी जी के बचपन का नाम नरेंद्र दास दत्त था। वह कलकत्ता के एक हाई-प्रोफाइल कुलीन परिवार से थे। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक प्रसिद्ध और सफल वकील थे।

उन्होंने कलकत्ता में उच्च न्यायालय में अटॉर्नी-एट-लॉ का पद संभाला। माता भुवनेश्वरी देवी बुद्धिमान और धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। जिससे उन्हें अपनी मां से हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला।

स्वामी विवेकानंद का बचपन (The Childhood of Swami Vivekananda)

स्वामीजी एक आर्थिक रूप से संपन्न परिवार में पले-बढ़े। उनके पिता पश्चिमी संस्कृति में विश्वास करते थे, इसलिए वे उन्हें अंग्रेजी भाषा और शिक्षा का ज्ञान देना चाहते थे।

उनका कभी भी अंग्रेजी पढ़ाने का मन नहीं हुआ। बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के बावजूद उनका शैक्षिक प्रदर्शन औसत रहा। उन्होंने यूनिवर्सिटी एंट्रेंस लेवल पर 47 फीसदी, एफए में 46 फीसदी और बीए में 56 फीसदी अंक हासिल किए.

माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थीं जो नरेंद्रनाथ ( स्वामीजी के बचपन का नाम ) के बचपन में रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाती थीं। जिसके बाद उनकी आध्यात्मिकता क्षेत्र में बढ़ती चली गई।

कथा सुनते-सुनते उनका मन आनंद से भर गया। रामायण सुनते-सुनते नरेंद्र की सीधी-साधी संतान भक्ति से भर उठी। वे प्राय: अपने ही घर में तपस्वी हो जाते थे। एक बार वे अपने ही घर में ध्यान में इतने मग्न हो गए कि घरवालों ने उन्हें जोर से हिलाया, फिर कहीं जाकर उनका ध्यान भंग किया।

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स्वामी विवेकानंद का सफ़र (The Journey of Swami Vivekananda)

25 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर और परिवार छोड़कर संन्यासी बनने का फैसला किया। अपने छात्र जीवन में, वह ब्रह्म समाज के नेता महर्षि देवेंद्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आए। स्वामीजी की जिज्ञासा शांत करने के लिए उन्होंने नरेंद्र को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के पुजारी थे। परमहंस जी की कृपा से स्वामी जी को ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे परमहंस जी के प्रमुख शिष्य बन गए।

1885 में, रामकृष्ण परमहंस की कैंसर से मृत्यु हो गई। उसके बाद स्वामीजी ने रामकृष्ण संघ की स्थापना की, जिसे बाद में रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के नाम से जाना जाने लगा।

शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन (World Conference of the Religions in Chicago)

11 सितंबर, 1893 को शिकागो में धर्मों का विश्व सम्मेलन होना था। उस सम्मेलन में स्वामी जी भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

जैसे ही स्वामी जी ने धर्म सम्मेलन में अपनी शक्तिशाली आवाज के साथ अपना भाषण शुरू किया और कहा “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों”, 5 मिनट के लिए सभागार तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंज उठा।

इसके बाद स्वामी जी ने अपने भाषण में भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इससे न केवल अमेरिका बल्कि विश्व में स्वामीजी का सम्मान बढ़ा।

स्वामी जी द्वारा दिए गए मौखिक इतिहास के पन्नों में वे आज भी अमर हैं। धर्म संसद के बाद स्वामी जी ने तीन साल तक अमेरिका और ब्रिटेन में वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार किया। 15 अगस्त 1897 को स्वामीजी श्रीलंका पहुंचे, जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ।

स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग (Inspiring story of Swami Vivekananda)

जब स्वामीजी की ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई थी। तभी एक विदेशी महिला उनसे प्रभावित होकर उनसे मिलने आई। महिला ने स्वामी जी से कहा- “मैं तुमसे शादी करना चाहती हूं।”

स्वामी जी ने कहा- हे देवी, मैं एक ब्रह्मचारी हूं, मैं आपसे कैसे विवाह कर सकता हूं?

वह एक विदेशी महिला स्वामी जी से शादी करना चाहती थी ताकि उसे स्वामी जी जैसा बेटा मिल सके और वह बड़ा होकर दुनिया में अपना ज्ञान फैला सके और अपना नाम बना सके।

उसने स्त्री को नमस्कार किया और कहा, “माँ, आज से तुम मेरी माँ हो।” तुम्हें भी मेरे जैसा पुत्र मिला है और मेरा ब्रह्मचर्य चलेगा। यह सुनकर वह स्त्री स्वामीजी के चरणों में गिर पड़ी।

Dr. APJ अब्दुल कलाम का इतिहास व जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (death of swami vivekananda ).

4 जुलाई 1902 को स्वामी जी ने बेलूर मठ में पूजा-अर्चना की और योग भी किया।

उसके बाद वहां के छात्रों को योग, वेद और संस्कृत विषय पढ़ाया गया। शाम को स्वामी जी अपने कमरे में योग करने गए और अपने शिष्यों को शांति भंग करने से मना किया और योग करते हुए उनकी मृत्यु हो गई।

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39 वर्ष की आयु में स्वामी जी जैसे प्रेरणा के देवता का मेल हो गया। स्वामी के जन्मदिन को पूरे भारत में “ युवा दिवस “ (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल विचार हिंदी में (The Precious thoughts of Swami Vivekananda in Hindi)

1- “अपने जीवन में जोखिम उठाएं, यदि आप जीतते हैं, तो आप नेतृत्व कर सकते हैं! यदि आप हार जाते हैं, तो आप मार्गदर्शन कर सकते हैं!”

2- “शक्ति ही जीवन है; कमजोरी मौत है।”

3- “अनुभव ही हमारे पास एकमात्र शिक्षक है। हम जीवन भर बात और तर्क कर सकते हैं, लेकिन हम सत्य के एक शब्द को नहीं समझेंगे।”

4- “अगर आप खुद को मजबूत समझते हैं, तो आप मजबूत होंगे।”

5- “एक विचार लें, उस एक विचार को अपना जीवन बनाएं। इसके बारे में सोचें, इसके सपने देखें, उस विचार पर जिएं, मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, आपके शरीर के हर हिस्से को उस विचार से भरा होने दें, और हर दूसरे विचार को अकेला छोड़ दें। यही सफलता का मार्ग है।”

6- “खड़े हो जाओ, निर्भीक बनो, और दोष अपने कंधों पर लो। दूसरों पर कीचड़ उछालना मत; आप जिन सभी दोषों से पीड़ित हैं, उनके लिए आप एकमात्र और एकमात्र कारण हैं।”

7- “ध्यान मूर्खों को साधु बना सकता है लेकिन दुर्भाग्य से मूर्ख कभी ध्यान नहीं करते।”

8- “वह मनुष्य अमरत्व को प्राप्त हो गया है जो किसी भी भौतिक वस्तु से व्याकुल नहीं है।”

9- “आप जो कुछ भी विश्वास करते हैं, कि आप होंगे, यदि आप अपने आप को युगों का मानते हैं, तो आप कल होंगे।

आपको बाधित करने के लिए कुछ भी नहीं है।”

10- “आप भगवान पर तब तक विश्वास नहीं कर सकते जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते।”

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इस ट्यूटोरियल में, हमने आपको “ स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय हिंदी में (Biography of Swami Vivekananda in Hindi) ” के बारे में पूरी जानकारी दी है। यह ट्यूटोरियल आपके लिए उपयोगी होगा। आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट कर के जरूर बताइये और अपने सुझाव को हमारे साथ शेयर करें ।

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda Biography in Hindi (पृष्ठभूमि, इतिहास और मृत्यु)

Swami Vivekananda Biography

Swami Vivekananda Biography in Hindi- स्वामी विवेकानन्द एक ऐसा नाम है जिसे किसी भी प्रकार के परिचय की आवश्यकता नहीं है। वह एक प्रभावशाली व्यक्तित्व हैं जिन्होने पश्चिमी दुनिया को हिंदू धर्म के बारे में व्यापक जानकारी उपलब्ध करवाई थी। उन्होंने 1893 में शिकागो की धर्म संसद में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया जहां पर उनके द्वारा दिया गया भाषण विश्व प्रसिद्ध हुआ था।स्वामी विवेकानन्द की जयंती के उपलक्ष्य में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। स्वामी विवेकानन्द ने विश्व के कल्याण के लिए 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन स्थापना की थी, जिसकी शाखाएं दुनिया के कई देशों में हैं। स्वामी विवेकानंद के बारे में गुरुदेव रविंद्र ठाकुर ने कहा था यदि भारत को आप करीब से जाना चाहते हैं’ तो आप विवेकानंद के जीवन को पढ़िए। उनमें आपको सभी चीज केवल सकारात्मक ही मिलेंगे नकात्मक कुछ भी नहीं मिलेगा।

ऐसे में विवेकानंद के जीवन परिचय के बारे में जानने की  जिज्ञासा हर एक व्यक्ति  के मन में आ रही है इसलिए आज के लेख में स्वामी विवेकानन्द विकिपीडिया हिंदी में,स्वामी विवेकानन्द हिंदी में | Swami vivekananda in Hindi, स्वामी विवेकानन्द का परिचय | introduction of swami vivekananda, स्वामी विवेकानन्द का जीवन | life of swami Vivekananda, स्वामी विवेकानन्द का बचपन | Childhood of Swami Vivekananda, स्वामी विवेकानन्द शिक्षा | Swami Vivekanandaeducation,स्वामी विवेकानन्द इतिहास | Swami Vivekananda History, स्वामी विवेकानन्द पत्नी | Swami vivekananda Wife, स्वामी विवेकानन्द संगठनों की स्थापना | vivekananda organizations founded,books written by swami Vivekananda, स्वामी विवेकानन्द की मृत्यु संबंधित जानकारी प्रदान करेंगे इसलिए आप लोग इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े।                    

स्वामी विवेकानंद का जन्म (Swami Vivekanand Birth)

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था । उनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त था। उनके पिता हाईकोर्ट (High Court) के एक प्रसिध्द वकील (Lawyer) थे। नरेंद्र के पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता (western) के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। नरेंद्र की माता भुवनेश्वरी देवी जी धार्मिक विचारों की महिला थीं। उनका ज्यादातर समय भगवान शिवजी की आराधना में ही बीतता था। नरेंद्र बचपन से ही तीव्र बुध्दि के थे और उनके अंदर परमात्मा को पाने की लालसा काफी प्रबल थी। इसी वजह से वे पहले ‘ब्रह्रा समाज’ (Brahmo Samaj) में गए, लेकिन वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ। वे वेदांत और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रचलित करने के लिए जरूरी योगदान देना चाहते थे। 

स्वामी विवेकानन्द विकिपीडिया हिंदी में | Swami Vivekananda wikipedia in Hindi

दैवयोग से विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेंद्र पर आ गया। घर की स्थिति बहुत खराब थी। बहुत गरीब होने के बाबजूद भी नरेंद्र बड़े ही अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते थे और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते थे। स्वामी विवेकानंद अपना जीवन गुरुदेव श्रीरामकृष्ण को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की चिंता किए बिना, खुद भोजन की बिना चिंता के गुरू की सेवा में सतत संलग्न रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था।

Also Read: राष्ट्रीय युवा दिवस कब मनाया जाता है, कारण, थीम जाने

स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Swami Vivekananda Jivani

विवेकानंद बड़े स्वप्न द्रष्टा थे। उन्होंने एक नए समाज की कल्पना की थी। ऐसा समाज जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद नहीं रहे। विवेकानंद जी को युवकों से बड़ी आशा थी। आज के युवकों के लिए ही इस ओजस्वी सन्यासी का यह जीवन वृत्त लेखक उनके समकालीन समाज एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में उपस्थित करने का प्रयत्न किया है यह भी प्रयास रहा है कि इसमें विवेकानंद के सामाजिक दर्शन एवं उनके मानवीय रूप का प्रकाश पड़े। 

बचपन से ही नरेंद्र अत्यंत कुशाग्र बुध्दि के और नटखट थे। परिवार में आध्यात्मिक माहौल होने से उनके अंदर बचपन से ही आध्यात्म (spiritual) का बीज पड़ चुका था। उनके मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखाई देने लगी थी। वे कभी-कभी ऐसे प्रश्न पूछते कि माता-पिता और कथावाचक पंडित जी भी चक्कर में पड़ जाते थे। 

Also Read: स्वामी विवेकानंद का भाषण

स्वामी विवेकानन्द हिंदी में | Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानन्द हमारे देश के एक महान धार्मिक सुधारक थे। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था। उनके पिता बिस्वनाथ दत्ता एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी माँ भुवनेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। वह बहुत बुद्धिमान और असाधारण थे। आध्यात्मिक विचारों में उनकी गहरी रुचि थी। उन्होंने मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन से प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की। 1884 में  स्वामी विवेकानंद ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में ऑनर्स के साथ बीए की पढ़ाई को पूरा किया था। श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलना उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ वह रामकृष्ण के शिष्य बन गए और पैदल ही पूरे भारत का भ्रमण किया था।  स्वामी विवेकानंद पश्चिमी देशों में भारतीय हिंदू धर्म दर्शन का प्रचार और प्रसार भी किया था।

उन्होंने जाति व्यवस्था और छुआछूत का डटकर विरोध किया। 1893 में शिकागो में धार्मिक सम्मेलन में भाग लिया और दुनिया भर में मानवता का संदेश दिया। गरीबों को सामाजिक सेवा प्रदान करने के लिए उन्होंने 1897 में बेलूर मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। उन्होंने भारत में विभिन्न स्थानों पर कई अस्पताल, पुस्तकालय, स्कूल भी स्थापित किए। स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के युवाओं को प्रेरित किया। स्वामी विवेकानन्द की जयंती भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है।  स्वामीजी ने 4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली।  आज स्वामी विवेकानंद वाले इस संसार में नहीं है लेकिन उनकी स्मृति सदैव हमारे दिलों में जीवंत रहेगी

स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम

स्वामी जी के गुरू का नाम रामकृष्ण परमहंस (Ramkrishna Paramhans) था । एक बार किसी ने गुरुदेव की सेवा में निष्क्रियता दिखायी और घृणा से नाक-भौं सिकोड़ी। यह देखकर स्वामी जी क्रोधित हो गए थे। उस गुरू भाई को पाठ पढाते हुए स्वामी जी गुरू की प्रत्येक वस्तु से प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर फेंकते थे। गुरू के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे स्वयं के अस्तित्व को गुरूदेव के स्वरूप में विलीन कर सके।   

 स्वामी विवेकानंद क्यों प्रसिद्ध है?

25 वर्ष की आयु में नरेंद्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए। इसके बाद उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की । सन् 1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद हो रही थी। स्वामी विवेकानंद उसमें भारत के प्रतिनिधि बनकर पहुंचे। यूरोप और अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत कोशिश की कि स्वामी को परिषद में बोलने का मौका नहीं मिले। 

एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला, किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चौंक गए। अमेरिका में उनका बहुत स्वागत सत्कार हुआ। वहां स्वामी जी के भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। वे अमेरिका में तीन साल तक रहे और लोगों को तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे। उनकी बोलने की शैली और ज्ञान को देखते हुए वहां के मीडिया ने उन्हें ‘साइक्लॉनिक हिंदू नाम’ दिया। 

स्वामी विवेकानंद इतने घंटे करते थे ध्यान (Meditation)

स्वामी जी रोज ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर तीन घंटे ध्यान करते थे। इसके बाद वे अन्य रोजना के काम में व्यस्त होते और यात्रा पर निकलते । इसके बाद वे दोपहर और शाम को भी घंटों तक ध्यान में रहते थे। रात के वक्त उन्होंने तीन-चार घंटे तक ध्यान किया है। “आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बगैर विश्व अनाथ हो जाएगा।” वे वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरू थे। 

स्वामी विवेकानंद के सिध्दांत

स्वामी जी ने भारत में ब्रम्हा समाज, रामकृष्ण मिशन और मठों की स्थापना करके लोगों को आध्यात्म से जोड़ा। उनका एक ही सिध्दांत था कि भारत देश के युवा इस देश को काफी आगे ले जाएं। उन्होंने कहा था कि अगर मुझे सौ युवा मिल जाएं, जो पूरी तरह समर्पित हों तो वे भारत की तस्वीर बदल देंगे। शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास हो सके। शिक्षा से बच्चे के चरित्र का निर्माण और वह आत्मनिर्भर बने। उन्होंने कहा था कि धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा ना देकर आचरण और संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।

स्वामी विवेकानन्द का बचपन | Childhood of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानन्द का जन्म सन 1863 में 12 जनवरी के दिन हुआ था। उनका जन्म कोलकाता के बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानन्द को बचपन में इनकी माता भुवनेश्वरी देवी ने इनका नाम वीरेश्वर रखा था जो बाद में इनका नाम को बदलकर नरेंद्र नाथ दत्त रख दिया गया था। जिन्हें प्यार से नरेन भी पुकारा जाता था। उनकी माता धार्मिक प्रवृत्ति की एक विद्वान महिला थी। ऐसे में स्वाभाविक था कि उनके घर में ही अपने मां के द्वारा हिंदू धर्म और संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला। स्वामी विवेकानंद जी पर उनकी मां का इतना प्रभाव पड़ा कि वह घर में ही भगवान के भक्ति और ध्यान में खो जाया करते थे। स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से ही ईश्वर के बारे में जानने की काफी इच्छा थी। स्वामी विवेकानंद जी अन्य बच्चों से बिल्कुल ही अलग थे। छोटी उम्र में ही, वह अलग-अलग religion जैसे हिंदू-मुस्लिम और अमीर-गरीब में भेदभाव करने के लिए सवाल उठाते थे।जब स्वामी विवेकानन्द छोटे थे तो उन्हें दो तरह के सपने आए थे, एक बहुत पढ़ा लिखा आदमी है जिसके पास काफी धन संपत्ति है समाज में उसका नाम काफी प्रचलित है। एक सुंदर घर है और परिवार बच्चे हैं।जबकि दूसरे तरफ एक साधु है जो एक जगह से दूसरे जगह यात्रा करते रहता है उन्हें साधारण जीवन पसंद है पैसा एवं दूसरी सुख सुविधा देने वाली चीज उन्हें खुश नहीं करती है।

स्वामी विवेकानंद जी का इच्छा ताकि वह भगवान को जाने और उनके पास चले जाए। स्वामी विवेकानंद जी जानते थे कि इनमें से वह कुछ भी नहीं बन सकते हैं। इसलिए उन्होंने साधु का रूप धारण कर लिया।

Also Read: स्वामी विवेकानंद के विचार

स्वामी विवेकानन्द शिक्षा | Swami Vivekananda Education

  • स्वामी विवेकानन्द  को 1871 में ईश्वर चंद विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूट में भर्ती कराया गया था।
  • 1877 में जब स्वामी विवेकानन्द तीसरी कक्षा में थे तभी उनकी पढ़ाई बाधित हो गयी, दरअसल उनके परिवार को किसी कारणवश अचानक रायपुर जाना पड़ा।
  • 1879 में, अपने परिवार के कलकत्ता लौटने के बाद, वह प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त करने वाले पहले छात्र बने।
  • वह दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य जैसे विभिन्न विषयों के जिज्ञासु पाठक थे। उन्हें वेद, उपनिषद, भगवत गीता, रामायण, महाभारत और पुराण जैसे हिंदू धर्मग्रंथों में भी गहरी रुचि थी। नरेंद्र भारतीय पारंपरिक संगीत के विशेषज्ञ थे और हमेशा शारीरिक योग, खेल और सभी गतिविधियों में भाग लेते थे।
  • 1881 में उन्होंने ललित कला परीक्षा उत्तीर्ण की;1884 में उन्होंने कला से स्नातक की डिग्री पूरी की।
  • इसके बाद उन्होंने 1884 में अच्छी योग्यता के साथ बीए की परीक्षा पास की और फिर उन्होंने कानून की पढ़ाई की।
  • 1884 का समय, जो स्वामी विवेकानन्द के लिए बेहद दुखद था, क्योंकि इसी समय उन्होंने अपने पिता को खोया था। पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर अपने 9 भाई-बहनों की जिम्मेदारी आ गयी, लेकिन वे घबराये नहीं और अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहने वाले विवेकानन्द ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई।
  • 1889 में नरेंद्र का परिवार कोलकाता लौट आया। बचपन से ही विवेकानन्द कुशाग्र बुद्धि के थे, जिसके कारण उन्हें एक बार फिर स्कूल में प्रवेश मिल गया। दूरदर्शी समझ और कठोरता के कारण उन्होंने 3 साल का कोर्स एक साल में पूरा कर लिया।

स्वामी विवेकानन्द पत्नी | Swami Vivekananda Wife

स्वामी विवेकानन्द एक ब्रह्मचारी सन्यासी थे। क्योंकि जब यह  विदेश दौरे पर थे और भिन्न-भिन्न जगहों पर अपना व्‍याख्‍यान देने का कार्य करते थे इसी बीच के भाषण को सुनकर एक महिला काफी प्रभावित हुई और महिला उनके आप पास आकर उनसे बोली की मैं आपसे शादी करना चाहती हूं ताकि उसे भी उनकी तरह प्रतिभाशाली पुत्र प्राप्त हो। तब स्वामी विवेकानंद जी इनके बातों को सुनकर उन्हें कहा कि मैं एक संन्यासी हूं इस वजह से मैं शादी के बंधन में बंध नहीं सकता हूं। लेकिन मैं आपका पुत्र बनना स्वीकार कर सकता हूं ऐसा करने से नहीं मेरा सन्यास टूटेगा और आपको पुत्र की प्राप्ति हो जाएगा। महिला इनके बातों को सुनकर स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ी और बोली आप महान है। आप ईश्वर के ही एक रूप है जो किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होते हैं।

स्वामी विवेकानन्द संगठनों की स्थापना | Swami vivekananda Organizations Founded

मई 1897 को स्वामी विवेकानन्द कलकत्ता लौट आए और उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य नए भारत का निर्माण करने के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और स्वच्छता की ओर बढ़ना था।

साहित्य, दर्शन और इतिहास के रचयिता स्वामी विवेकानन्द ने अपनी प्रतिभा का लोहा सभी को मनवाया और अब वे युवाओं के लिए आदर्श बन गये।

1898 में स्वामी जी ने बेलूर मठ की स्थापना की – Belur Math जिसने भारतीय जीवन दर्शन को एक नया आयाम दिया।

इसके अलावा स्वामी विवेकानन्द जी ने दो अन्य मठों की स्थापना एवं स्थापना की।

स्वामी विवेकानन्द संगठनों की स्थापना | Books Written by Swami Vivekananda

पवित्र और दिव्य आत्मा स्वामी विवेकानन्द को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। वैश्विक गांव उन्हें एक हिंदू संत, एक योग गुरु, एक दार्शनिक, एक शिक्षक, एक लेखक और एक असाधारण वक्ता के रूप में जानता है। स्वामी विवेकानन्द की पुस्तकों की सूची नीचे दी गई है:-

  • ज्ञान योग: ज्ञान का योग 
  • कर्म योग: क्रिया का योग 
  • राजयोग: आंतरिक प्रकृति पर विजय 
  • माई मास्टर 
  • स्वामी विवेकानन्द स्वयं पर कोई उत्पाद नहीं मिला।
  • स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएँ 
  • ध्यान और उसकी विधियाँ 
  • द मास्टर एज़ आई सॉ हिम: द लाइफ़ ऑफ़ द स्वामी विवेकानन्द
  • विवेकानन्द 

स्वामी विवेकानन्द इतिहास | Swami Vivekananda History

महापुरुष स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। असाधारण प्रतिभा के धनी व्यक्ति का जन्म कोलकाता में हुआ था और उन्होंने अपनी जन्मभूमि को पवित्र बनाया था। उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, लेकिन बचपन में वे सभी को नरेंद्र के नाम से ही बुलाते थे।स्वामी विवेकानन्द के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो उस समय कलकत्ता उच्च न्यायालय के प्रतिष्ठित और सफल वकील थे जिनकी वकालत के साथ-साथ अंग्रेजी और फ़ारसी भाषाओं पर भी उनकी अच्छी पकड़ के चर्चे खूब होते थे।

विवेकानन्द की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, जो धार्मिक विचारों वाली महिला थीं, वह भी बहुत प्रतिभाशाली महिला थीं, जिन्होंने रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का महान ज्ञान प्राप्त किया था। साथ ही वह एक प्रतिभाशाली और बुद्धिमान महिला थीं जिन्हें अंग्रेजी भाषा की भी अच्छी समझ थी।वहीं स्वामी विवेकानन्द पर उनकी माँ का इतना गहरा प्रभाव था कि वह घर में ही ध्यान में लीन रहते थे और इसके साथ ही उन्होंने अपनी माँ से ही शिक्षा भी प्राप्त की थी। इसके साथ ही स्वामी विवेकानन्द पर उनके माता-पिता के गुणों का गहरा प्रभाव पड़ा और उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा अपने घर से ही मिली।

स्वामी विवेकानन्द के माता और पिता के अच्छे संस्कारों और अच्छी परवरिश के कारण स्वामीजी के जीवन को एक अच्छा आकार और उच्च स्तर की सोच मिली।ऐसा कहा जाता है कि नरेंद्रनाथ बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और बुद्धिमान व्यक्ति थे, वह अपनी प्रतिभा के इतने धनी थे कि एक बार जो व्यक्ति उनकी आंखों के सामने से गुजर जाता था वह उन्हें कभी नहीं भूलता था और दोबारा उन्हें वह काम नहीं करना पड़ता था। दोबारा। मुझे पढ़ने की जरूरत ही नहीं पड़ी

युवा दिनों से ही उनकी रुचि अध्यात्म के क्षेत्र में थी, वे हमेशा शिव, राम और सीता जैसे भगवान के चित्रों के सामने ध्यान का अभ्यास करते थे। ऋषि-मुनियों और सन्यासियों की कहानियाँ उन्हें सदैव प्रेरणा देती हैं। आगे चलकर यही नरेन्द्र नाथ पूरे विश्व में ध्यान, अध्यात्म, राष्ट्रवाद, हिन्दू धर्म और संस्कृति के वाहक बने और स्वामी विवेकानन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए।

स्वामी विवेकानन्द का परिचय | introduction of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानन्द का परिचय निम्न वाक्य द्वारा प्रस्तुत कर रहे हैं जिसे आप लोग ध्यानपूर्वक पढ़े:-

  • स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म कोलकाता के कायस्‍थ परिवार में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।
  • इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता जो एक पेशे से कोलकाता हाई कोर्ट के वकील थे और उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो धार्मिक विचारधारा वाली महिला थी।
  • स्वामी विवेकानन्द जी 1871 में 8 साल के उम्र में स्कूल गए थे। 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किए थे।
  • स्वामी विवेकानंद जी केवल 25 साल की उम्र में सांसारिक मोह माया को त्याग कर संयासी बन गए।
  • स्वामी विवेकानंद जी का मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से 1881 में कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर में हुआ था।
  • स्वामी विवेकानन्द जब रामकृष्ण परमहंस मिले तो एक सवाल किया था जो कई लोगों से कर चुके थे, क्या आपने भगवान को देखा है रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया कि हमने देखा है ‘मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं जितना तुम्हें’फर्क सिर्फ इतना है कि उन्हें में तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं।
  • अमेरिका में हुई धर्म संसद में जब स्वामी विवेकानन्द जी अमेरिका के भाइयों और बहनों संबोधन से भाषण शुरू किया तो 2 मिनट तक आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में तालियां बजती रही।
  • स्वामी विवेकानन्द 1 मई 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना किए थे। और गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना 9 दिसंबर 1898 में किए थे।
  • स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन के तारीख यानी 12 जनवरी को भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।
  • स्वामी विवेकानन्द केवल 39 साल की उम्र में 4 जुलाई 1902 को बेलूर स्थित रामकृष्‍ण मठ में ध्‍यानमग्‍न अवस्‍था में महासमाध‍ि धारण कर प्राण त्‍याग द‍िए।

स्वामी विवेकानन्द का जीवन | Life of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता एक कायस्थ परिवार में हुए था। इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त को कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे और मां का नाम भुनेश्वरी देवी जो एक धार्मिक विचार की महिला थी, और हिंदू धर्म के प्रति कफि आस्था रखती थी। नरेंद्र को 9 भाई बहन थे। दादा जी का नाम दुर्गाचरण दत्त फारसी और संस्कृत के विद्वान वक्ति थे। वे भी अपने घर परिवार को छोड़कर साधु बन गए। स्वामी विवेकानन्द जी का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था प्यार से लोग उन्हें नरेंद्र बुलाया करते थे। ये बचपन से अत्यंत कुशाग्र और बुद्धिमान के साथ बहुत नटखट भी थे। बचपन में अपने सहपाठियों के साथ मिलकर काफी शरारत किया करते थे, कभी-कभी मौका मिलने पर अधियापको से भी सरारत करने से नहीं चूकते थे।घर में नियमित रूप से पूजा पाठ होता रहता और साथ ही रामायण, गीता, महाभारत जैसे पुरानो की पढ़ होते रहता था। इस कारण से उन्हें बचपन से ही ईश्वर के प्रति जानने की इच्छा उनके मन में जागृत होने लगा। भगवान को जानने की उत्सुकता में माता पिता कुछ ऐसे सवाल पूछ देते की जानने के लिऐ उन्हे ब्रहमणो के यहा जाना पढ़ता था। 1984 में उनके पिता की मृत्यु के बाद  पिता जी साथ छूट गया और परिवार की सारी दायित्व उन्ही पर आ गया।

 स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन

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  • जब तक तुम अपने आप में विश्वास नहीं करोगे, तब तक भगवान में विश्वास नहीं कर सकते। 
  •  हम जो भी हैं हमारी सोच हमें बनाती है, इसलिए सावधानी से सोचें, शब्द व्दितीय हैं पर सोच                          रहती है और दूर तक यात्रा करती है। 
  • उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अपना लक्ष्य प्राप्त ना कर सको। 
  •  हम जितना बाहर आते हैं और जितना दूसरों का भला करते हैं, हमारा दिल उतना ही शुध्द होता है और उसमें उतना ही भगवान का निवास होता है। 
  • सच हजारों तरीके से कहा जा सकता है, तब भी उसका हर एक रूप सच ही है। 
  • संसार एक बहुत बड़ी व्यायामशाला है, जहां हम खुद को शक्तिशाली बनाने आते हैं।
  • बाहरी स्वभाव आंतरिक स्वभाव का बड़ा रूप है।
  • भगवान को अपने प्रिय की तरह पूजना चाहिए। 
  • ब्रम्हांड की सारी शक्तियां हमारी हैं। हम ही अपनी आंखों पर हाथ रखकर रोते हैं कि अंधकार है।

स्वामी विवेकानन्द की मृत्यु | Swami Vivekananda Death

4 जुलाई 1902 को, स्वामी विवेकानन्द की मृत्यु उस समय हो गई जब वे अन्य दिनों की तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे, अपने अनुयायियों को शिक्षा दे रहे थे और वैदिक विद्वानों के साथ शिक्षाओं पर चर्चा कर रहे थे। ध्यान करने और अंतिम सांस लेने के लिए रामकृष्ण मठ में अपने कमरे में गए, यह मठ उन्होंने अपने गुरु के सम्मान में बनाया था। उनके अनुयायियों का मानना ​​था कि मृत्यु का कारण उनके मस्तिष्क में रक्त वाहिका का टूटना था, जो तब होता है जब कोई व्यक्ति निर्वाण प्राप्त करता है, जो आध्यात्मिक ज्ञान का उच्चतम रूप है जब 7 वां चक्र यानी मुकुट चक्र जो सिर पर स्थित होता है, खुलता है और फिर लाभ प्राप्त करता है। ध्यान करते समय महा समाधि। उनकी मृत्यु का समय रात्रि 9:20 बजे था। उनका अंतिम संस्कार उनके गुरु के सामने गंगा के तट पर चंदन की चिता पर किया गया।

Conclusion:

उम्मीद करता हूं कि हमारे द्वारा लिखा गया आर्टिकल Swami  Vivekanand ka  Jivan Parichay आप लोगों को काफी पसंद आया होगा ऐसे में आप हमारे आर्टिकल संबंधित कोई प्रश्न एवं सुझाव है तो आप तो हमारे कमेंट बॉक्स में आकर अपने प्रश्नों को पूछ सकते हैं हम आपके प्रश्नों का जवाब जरूर देंगे।

FAQ’s Swami Vivekananda Biography in Hindi

Q. स्वामी विवेकानंद की उनके गुरू से पहली भेंट कब हुई थी .

Ans.  नवंबर 1881 में स्वामी विवेकानंद की उनके गुरू से पहली भेंट हुई थी

Q. स्वामी विवेकानंद ने प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान कहां दिया था ?

Ans.  सिकंदराबाद में स्वामी विवेकानंद ने प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान दिया था । 

Q. स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन शिकागों में पहला भाषण कब दिया ?

Ans.  11 सितंबर 1893 में स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन शिकागों में पहला भाषण दिया 

Q. स्वामी विवेकानंद के माता-पिता का नाम क्या था ?

Ans.  माता का नाम भुवनेश्वरी देवी और पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था।

Q.स्वामी विवेकानन्द किस लिये प्रसिद्ध थे?

Ans.स्वामी विवेकानन्द (1863-1902) द्वारा 1893 विश्व धर्म संसद के दौरान दिया गया सबसे प्रसिद्ध भाषण, जिसमें उन्होंने अमेरिका में हिंदू धर्म का परिचय दिया और धार्मिक सहिष्णुता और उग्रवाद को समाप्त करने की अपील की, यही बात उन्हें  प्रसिद्ध बनती हैं।

Q.विवेकानन्द ने भारत के लिए क्या किया?

Ans.विवेकानन्द ने धर्मार्थ, सामाजिक और शैक्षिक प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए भारत में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, साथ ही रामकृष्ण मठ की स्थापना की, जो भिक्षुओं और आम भक्तों को आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करता है।

Q विवेकानंद का नारा क्या है?

Ans. स्वामी विवेकानन्द का एक नारा है ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।

Q. विवेकानन्द की मृत्यु किससे हुई?

Ans.4 जुलाई, 1902 को स्वामी विवेकानन्द का अचानक निधन हो गया, जब वे ध्यान में थे।  उनके मस्तिष्क में रक्त वाहिका का टूटना मृत्यु का संभावित कारण बताया गया था।

Q.स्वामी विवेकानन्द के गुरु कौन थे?

Ans. रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानन्द के गुरु थे।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi)

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू संत और नेता थे, जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। हम उनके जन्मदिन पर प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं। वह आध्यात्मिक विचारों वाले अद्भूत बच्चे थे। इनकी शिक्षा अनियमित थी, लेकिन इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बीए की डिग्री पूरी की। श्री रामकृष्ण से मिलने के बाद इनका धार्मिक और संत का जीवन शुरु हुआ और उन्हें अपना गुरु बना लिया। इसके बाद इन्होंने वेदांत आन्दोलन का नेतृत्व किया और भारतीय हिन्दू धर्म के दर्शन से पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Long and Short Essay on Swami Vivekananda in Hindi, Swami Vivekananda par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (250 – 300 शब्द).

स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है। अपने महान कार्यों द्वारा उन्होंने पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलायी और विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

विश्वभर में ख्याति प्राप्त संत, स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। वह बचपन में नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे। इनकी जयंती को भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है। वह विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील, और भुवनेश्वरी देवी के आठ बच्चों में से एक थे। वह बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे और अपने संस्कृत के ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे।स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। वह बचपन से ही धार्मिक प्रकृति वाले थे और परमेश्वर की प्राप्ति के लिए काफी परेशान थे।

स्वामी विवेकानद का ह्रदय परिवर्तन

 एक दिन वह श्री रामकृष्णसे मिले, तब उनके अंदर श्री रामकृष्ण के आध्यात्मिक प्रभाव के कारण बदलाव आया। श्री रामकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने के बाद वह स्वामी विवेकानंद कहे जाने लगे।

वास्तव में स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरुभक्त भी थे क्योंकि तमाम प्रसिद्धि पाने के बाद भी उन्होंने सदैव अपने गुरु को याद रखा और रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए, अपने गुरु का नाम रोशन किया।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान तथा शब्दों द्वारा पूरे विश्व भर में हिंदु धर्म के विषय में लोगो का नजरिया बदलते हुए, लोगो को अध्यात्म तथा वेदांत से परिचित कराया। अपने इस भाषण में उन्होंने विश्व भर को भारत के अतिथि देवो भवः, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं, जो अपने जीवन के बाद भी लोगो को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं। यदि हम उनके बताये गये बातों पर अमल करें, तो हम समाज से हर तरह की कट्टरता और बुराई को दूर करने में सफल हो सकते हैं।

निबंध 2 (400 शब्द)

स्वामी विवेकानंद उन महान व्यक्तियों में से एक है, जिन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने का कार्य किया। अपने शिकागों भाषण द्वारा उन्होंने पूरे विश्व भर में हिंदुत्व के विषय में लोगो को जानकारी प्रदान की, इसके साथ ही उनका जीवन भी हम सबके लिए एक सीख है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता में शिमला पल्लै में 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जोकि कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करत थे और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के मुख्य अनुयायियों में से एक थे। इनका जन्म से नाम नरेन्द्र दत्त था, जो बाद में रामकृष्ण मिशन के संस्थापक बने।

वह भारतीय मूल के व्यक्ति थे, जिन्होंने वेदांत के हिन्दू दर्शन और योग को यूरोप व अमेरिका में परिचित कराया। उन्होंने आधुनिक भारत में हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित किया। उनके प्रेरणादायक भाषणों का अभी भी देश के युवाओं द्वारा अनुसरण किया जाता है। उन्होंने 1893 में शिकागो की विश्व धर्म महासभा में हिन्दू धर्म को परिचित कराया था।

स्वामी विवेकानंद अपने पिता के तर्कपूर्ण मस्तिष्क और माता के धार्मिक स्वभाव से प्रभावित थे। उन्होंने अपनी माता से आत्मनियंत्रण सीखा और बाद में ध्यान में विशेषज्ञ बन गए। उनका आत्म नियंत्रण वास्तव में आश्चर्यजनक था, जिसका प्रयोग करके वह आसानी से समाधी की स्थिति में प्रवेश कर सकते थे। उन्होंने युवा अवस्था में ही उल्लेखनीय नेतृत्व की गुणवत्ता का विकास किया।

वह युवा अवस्था में ब्रह्मसमाज से परिचित होने के बाद श्री रामकृष्ण के सम्पर्क में आए। वह अपने साधु-भाईयों के साथ बोरानगर मठ में रहने लगे। अपने बाद के जीवन में, उन्होंने भारत भ्रमण का निर्णय लिया और जगह-जगह घूमना शुरु कर दिया और त्रिरुवंतपुरम् पहुँच गए, जहाँ उन्होंने शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने का निर्णय किया।

कई स्थानों पर अपने प्रभावी भाषणों और व्याख्यानों को देने के बाद वह पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गए। उनकी मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई थी ऐसा माना जाता है कि, वह ध्यान करने के लिए अपने कक्ष में गए और किसी को भी व्यवधान न उत्पन्न करने के लिए कहा और ध्यान के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।

स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषणों द्वारा पूरे विश्व भर में भारत तथा हिंदु धर्म का नाम रोशन किया। वह एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनके जीवन से हम सदैव कुछ ना कुछ सीख ही सकते हैं। यहीं कारण है कि आज भी युवाओं में इतने लोकप्रिय बने हुए हैं।

निबंध 3 (500 शब्द)

एक समान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपने ज्ञान तथा तेज के बल पर विवेकानंद बने। अपने कार्यों द्वारा उन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने का कार्य किया। यहीं कारण है कि वह आज के समय में भी लोगो के प्रेरणास्त्रोत हैं।

भारत के महापुरुष – स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में मकर संक्रांति के त्योहार के अवसर पर, परंपरागत कायस्थ बंगाली परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त (नरेन्द्र या नरेन भी कहा जाता था) था। वह अपने माता-पिता (पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला थी) के 9 बच्चों में से एक थे। वह पिता के तर्कसंगत मन और माता के धार्मिक स्वभाव वाले वातावरण के अन्तर्गत सबसे प्रभावी व्यक्तित्व में विकसित हुए।

वह बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और हिन्दू भगवान की मूर्तियों (भगवान शिव, हनुमान आदि) के सामने ध्यान किया करते थे। वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और भिक्षुओं से प्रभावित थे। वह बचपन में बहुत शरारती थे और अपने माता-पिता के नियंत्रण से बाहर थे। वह अपनी माता के द्वारा भूत कहे जाते थे, उनके एक कथन के अनुसार, “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी और उन्होंने मुझे अपने भूतों में से एक भेज दिया।”

उन्हें 1871 (जब वह 8 साल के थे) में अध्ययन के लिए चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था और 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिल कराया गया। वह सामाजिक विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्म, कला और साहित्य जैसे विषयों में बहुत अच्छे थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत शास्त्रों और बंगाली साहित्य का अध्ययन किया।

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद के विचार

वह बहुत धार्मिक व्यक्ति थे हिन्दू शास्त्रों (वेद, रामायण, भगवत गीता, महाभारत, उपनिषद, पुराण आदि) में रुचि रखते थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल, शारीरिक व्यायाम और अन्य क्रियाओं में भी रुचि रखते थे। उन्हें विलियम हैस्टै (महासभा संस्था के प्राचार्य) के द्वारा “नरेंद्र वास्तव में एक प्रतिभाशाली है” कहा गया था।

वह हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साहित थे और हिन्दू धर्म के बारे में देश के अन्दर और बाहर दोनों जगह लोगों के बीच में नई सोच का निर्माण करने में सफल हुए। वह पश्चिम में ध्यान, योग, और आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक रास्तों को बढ़ावा देने में सफल हो गए। वह भारत के लोगों के लिए राष्ट्रवादी आदर्श थे।

उन्होंने राष्ट्रवादी विचारों के माध्यम से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित किया। भारत की आध्यात्मिक जागृति के लिए श्री अरबिंद ने उनकी प्रशंसा की थी। महान हिंदू सुधारक के रुप में, जिन्होंने हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया, महात्मा गाँधी ने भी उनकी प्रशंसा की। उनके विचारों ने लोगों को हिंदु धर्म का सही अर्थ समझाने का कार्य किया और वेदांतों और हिंदु अध्यात्म के प्रति पाश्चात्य जगत के नजरिये को भी बदला।

उनके इन्हीं कार्यों के लिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल) ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म तथा भारत को बचाया था। उन्हें सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा “आधुनिक भारत के निर्माता” कहा गया था। उनके प्रभावी लेखन ने बहुत से भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं; जैसे- नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, अरविंद घोष, बाघा जतिन, आदि को प्रेरित किया। ऐसा कहा जाता है कि 4 जुलाई सन् 1902 में उन्होंने बेलूर मठ में तीन घंटे ध्यान साधना करते हुए अपनें प्राणों को त्याग दिया।

अपने जीवन में तमाम विपत्तियों के बावजूद भी स्वामी विवेकानंद कभी सत्य के मार्ग से हटे नही और अपने जीवन भर लोगो को ज्ञान देने कार्य किया। अपने इन्हीं विचारों से उन्होंने पूरे विश्व को प्रभावित किया तथा भारत और हिंदुत्व का नाम रोशन करने का कार्य किया।

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Swami Vivekananda Essay in Hindi (स्वामी विवेकानंद पर निबंध) - 100, 200, 500 शब्दों में

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) - जब आध्यात्मिकता की बात की जाती है तो भारत का नाम आना सहज ही है। परंतु अध्यमिकता को विश्व-पटल पर ले जानें का श्रेय किसी को दिया जाता है, तो स्वामी विवेकानंद जी का नाम सबसे पहले आता है। विश्व में भारत की पहचान स्थापित करने का कार्य स्वामी विवेकानंद जी ने ही शुरू किया। यह उस समय की बात है जब भारत अक्रांताओं से पीड़ित था। औपनिवेशिक काल में भारत अपनी अस्मिता ढूँढने का प्रयास कर रहा था। यह ऐसे समय की बात है जब भारत को सांपों और सपेरो के देश के रूप में देखा जाता था। भारतियों को हीन दृष्टि से देखा जाता था। उस समय वास्तविक भारत को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने का कार्य स्वामी विवेकानंद जी ने किया।

Swami Vivekananda Essay in Hindi (स्वामी विवेकानंद पर निबंध) - 100, 200, 500 शब्दों में

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) : विवेकानंद जी के कुछ प्रेरणादायक उद्धरण

  • उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।

एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।

  • एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।

पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।

एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।

स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व के समक्ष भारत की बौद्धिक शक्ति को उजागर करने का प्रयास किया। स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय वेदान्त दर्शन, भारतीय परंपरा तथा सनातन धर्म के बारे में विश्व को जागरूक किया। हमारे देश के सामर्थ्य को दुनिया के सामने प्रकट करने में स्वामी विवेकानंद जी का बहुत बड़ा योगदान हैं। अक्सर छात्र विवेकानंद पर निबंध या विवेकानंद पर स्पीच(swami vivekananda speech in hindi) इंटरनेट पर सर्च करते रहते है। स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda essay in hindi) के माध्यम से आप स्वामी विवेकानंद जी के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे। इसके अलावा आप स्वामी विवेकानंद पर स्पीच (swami vivekananda speech in hindi) भी दें पाएंगे। अपनी जानकारी को समृद्ध करने के लिए स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda essay in hindi) को पूरा पढ़ें।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) : स्वामी विवेकानन्द के बारे में पैराग्राफ (paragraph about Swami Vivekananda)

विवेकानंद जी का जन्म कोलकाता के कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1863 को हुआ। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान से हुई। इसके बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन प्राप्त किया। स्वामी विवकानंद जी की स्कूली शिक्षा अनियमित थी लेकिन उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। इसके अलावा उन्होंने ललित कला परीक्षा भी उत्तीर्ण की। उनकी वास्तविक रुचि वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों, पुराणों आदि में हमेशा से ही थी। वह हमेशा से ही परमतत्व यानि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उत्साहित रहते थे। अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने के बाद उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया। सन्यास लेने के बाद विवेकानंद जी का नाम वर्ष 1893 में खेतड़ी राज्य के महाराजा अजित सिंह के नाम पर 'विवेकानंद' रखा गया।

सन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी विवेकानंद जी ने भारत भ्रमण तथा विश्व यात्रा करना आरंभ कर दिया। स्वामी विवेकानंद जी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पैदल भ्रमण के बाद जापान, चीन कनाडा की यात्रा करते हुए 1893 में अमेरिका के शिकागो पहुंचे। जहां उन्होंने धर्म सभा को संबोधित किया और अपना विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया। इस भाषण की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

स्वामी विवेकानंद जी ने सबसे पहले अमेरिका के लोगो को बहन तथा भाई कहकर संबोधित किया।

स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय समाज को सहिष्णु तथा सार्वभौम स्वीकृत करने वाला बताया।

उन्होंने भारत को वास्तव में सभी धर्मो का सम्मान करने वाला बताया।

उनके अनुसार भारत उन सभी लोगो को शरण देता है, जो दुनिया के दूसरे भागों में शोषित किए गए है।

उन्होंने एक श्लोक- ‘रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥’ की चर्चा करते हुए कहा कि इसका तात्पर्य है कि जैसे विभिन्न नदियां अलग-अलग मार्गों के माध्यम से यात्रा करती हुई अंत में समुद्र में जाकर मिलती है। उसी प्रकार अलग-अलग धर्मों का अनुसरण करते हुए व्यक्ति अंत में ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है। ये धर्म बेशक अलग-अलग लगते है परंतु अंत में ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग हैं।

स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनके वीभत्स वंशजों ने इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज किया हैं। इनके कारण पृथ्वी कई बार रक्त से लाल हो चुकी है। यदि ये न होते तो मानव विकास अपने चरमोत्कर्ष पर होता और न जानें कितनी सभ्यताएं जो इनकी हठधर्मिता की बलि चढ़ गई, आज जीवित होती।

इस भाषण से देश-विदेश में उनकी ख्याति हुई। बहुत से लोग उनके अनुयायी बन गए। उन्होंने भारतीय तत्व-ज्ञान का प्रसार किया। उनकी भाषण-शैली के कारण अमेरिका के समाचार पत्रों ने उन्हें 'साइक्लॉनिक हिन्दू' का नाम प्रदान किया। उनका मानना था कि "अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा।"

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) : विवेकानंद जी की शिक्षा तथा योगदान

विवेकानंद जी का योगदान भारतीय समाज के उद्धार के लिए अविश्वसनीय है। उन्होंनें देश के सर्वांगीण विकास के लिए हमेशा प्रयास किए। भारत के बारे में वास्तविक ज्ञान का प्रसार करने का श्रेय विवेकानंद जी को ही जाता है। उन्होंने अमेरिकी मंच से भारतीय दर्शन को पहचान दिलवाई। उन्होंने ही विश्व को अध्यात्म का मार्ग दिखाया। विवेकानंद जी ने 1 मई 1897 रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसका परम उद्देश्य वेदान्त दर्शन का प्रचार करना है तथा मानव सेवा और परोपकार करना है।

विवेकानंद जी ने शिक्षा और चरित्र निर्माण पर बल दिया है। वें मैकाले द्वारा प्रस्तावित उस समय की शिक्षा प्रणाली के विरोधी थे। क्योंकि इस शिक्षा प्रणाली के माध्यम से केवल बाबुओं का ही जन्म होता। इस शिक्षा प्रणाली के माध्यम से छात्रों के विकास में बाधा आनी तय थी। विवेकानंद जी चाहते थे की देश के युवाओं का सर्वांगीण विकास हो। वें छात्रों की व्यवहारिक शिक्षा पर अधिक बल देते थे। वें चाहते थे कि देश का युवा आत्म-निर्भर बने।

स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्तित्व का निर्माण और व्यवहारिक जानकारी प्राप्त करने से है। यदि किसी व्यक्ति में इन दोनों ही तत्वों कि कमी है तो ऐसी शिक्षा किस काम की। यदि व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपना सर्वांगीण विकास करने मे असमर्थ है तो ऐसी शिक्षा निराधार है। विवेकानंद जी के अनुसार "हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का गठन हो, मन का बल बढ़े, बुद्धि का विकास हो और व्यक्ति स्वावलम्बी बने।" उनके अनुसार 'शिक्षा से तात्पर्य मनुष्य की अंतरात्मा पूर्णता की अभिव्यक्ति से है।'

युवाओं के प्रति इन विचारों के कारण भारत सरकार ने विवेकानंद जी की जयंती पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का निर्णय लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 1984 को 'राष्ट्रीय युवा वर्ष' के रूप में घोषित किया गया। भारत सरकार ने इसकी महत्ता पर विचार करते हुए 12 जनवरी जो कि विवेकानंद जी की जयंती भी है, को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। स्वामी विवेकानंद जी युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत रहें हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव कल्याण तथा सेवा में समर्पित किया है। उनकी गुरु भक्ति भी हमेशा से ही प्रेरणादायक रही है। इन गुणों को आत्मसात कर आज का युवा श्रेष्ठ युवा बन सकता है।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami vivekananda essay in hindi): विवेकानंद जी के युवाओं के लिए कुछ प्रेरणादायक अनमोल वचन इस प्रकार हैं:

  • खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।

सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।

विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।

शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।

जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।

जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था - चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda essay in hindi): आज के युग में विवेकानंद जी के विचारों की प्रासांगिकता

आज के युग में विवेकानंद जी के विचार बहुत अधिक प्रासांगिक है। यदि आप इनका अनुसरण करते है तो यह आपके चरित्र निर्माण से लेकर आपके पूरे व्यक्तित्व को परिवर्तित कर देंगे। स्वामी विवेकानंद जी हमेशा से ही प्रेरणा का स्त्रोत रहें हैं। उनका जीवन-चरित्र अपने आप में प्रेरणादायक है। जीवन संघर्ष का नाम है। स्वामी विवेकानंद जी ने स्वयं भी बहुत अधिक संघर्ष किया परंतु वें अपने जीवन की कठिनाइयों में तटस्थ रहें और कभी भी सत्य, ज्ञान, सेवा तथा परोपकार का मार्ग नहीं छोड़ा। आज उनके विचार हमारे बीच एक ज्योति का काम कर रहें है। इनके विचारों से प्रेरणा तो मिलती ही है साथ ही संघर्ष करने की शक्ति भी प्राप्त होती है। आज आप और हम उनके विचारों को आत्मसात कर अपनी समस्याओं, कठियाइयों तथा संघर्ष पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

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महत्वपूर्ण प्रश्न :

स्वामी विवेकानंद के बारे में स्पीच (swami vivekanand ke bare mein speech) कैसे दें?

स्वामी विवेकानंद के बारे में स्पीच या भाषण देने से पहले विवेकानंद के बारे में लेख पढ़ें। इस लेख में उनकी जीवनी और विचार दिए हुए है। इसके आधार पर एक भाषण तैयार करें जिसमें उनका जीवन परिचय, उनके कार्य, उनके प्रमुख योगदान, उनकी प्रेरणादायक बातों का जिक्र करें। स्वामी विवेकानंद के बारे में स्पीच देने के लिए इस लेख की मदद ले सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद के बारे में (about swami vivekananda in hindi) और स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (swami vivekananda ji ka jivan parichay) कैसे लिखें?

स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखने के लिए उनके जीवन परिचय से शुरुआत करें और उनके कार्यों की चर्चा करें। इसके लिए इस लेख की सहायता ले सकते हैं और इस प्रकार से लिख सकते हैं-

विवेकानंद जी का जन्म पश्चिम बंगाल के कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1863 को हुआ। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान से हुई। उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। उनकी वास्तविक रुचि वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों, पुराणों आदि में हमेशा से ही थी। अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने के बाद उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया। स्वामी विवेकानंद जी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पैदल भ्रमण के बाद जापान, चीन कनाडा की यात्रा करते हुए 1893 में अमेरिका के शिकागो पहुंचे। जहां उन्होंने धर्म सभा को संबोधित किया और अपना विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया।

उन्होंने अमेरिकी मंच से भारतीय दर्शन को पहचान दिलवाई। विवेकानंद जी ने 1 मई 1897 रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसका परम उद्देश्य वेदान्त दर्शन का प्रचार करना है तथा मानव सेवा और परोपकार करना है। विवेकानंद जी ने शिक्षा और चरित्र निर्माण पर बल दिया है। विवेकानंद जी चाहते थे की देश के युवाओं का सर्वांगीण विकास हो। वें छात्रों की व्यवहारिक शिक्षा पर अधिक बल देते थे। वें चाहते थे कि देश का युवा आत्मनिर्भर बने।

स्वामी विवेकानन्द का मूल नाम क्या था? (what was the original name of swami vivekananda?)

विवेकानंद जी का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने के बाद उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया। सन्यास लेने के बाद विवेकानंद जी का नाम वर्ष 1893 में खेतड़ी राज्य के महाराजा अजित सिंह के नाम पर 'विवेकानंद' रखा गया।

राष्ट्रीय युवा दिवस कब मनाया जाता है? (rashtriy yuva divas kab manaya jata hai)

हर साल देश में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इसी दिन स्वामी विवेकानंद की जयंती भी होती है। 1984 में भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। 1985 से हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इस दिन को युवा दिवस के रूप में मनाकर स्वामी विवेकानंद के विचारों और आदर्शों को बढ़ावा देना है।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (swami vivekanand nibandh) कैसे लिखें?

स्वामी विवेकानंद जी पर निबंध लिखना बेहद ही कठिन कार्य है क्योंकि उनका व्यक्तित्व अपने आप में बेहद ही विशाल है। छात्र स्वामी विवेकानंद जी पर निबंध लिखने पर असमंजस की स्थिति में पढ़ जाते हैं कि उनके व्यक्तिव की किस विशेषता को अपने निबंध में स्थान दें। ऐसे में छात्र careers360 के इस निबंध का अनुसरण कर सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद के प्रमुख कार्य कौन से थे?

स्वामी विवेकानंद अपने जीवन में बेहद महत्वपूर्ण कार्य किए है। जिसमें से भारत की अस्मिता को विश्व पटल पर रखना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की तथा भारत में जन-कल्याण तथा जागरूकता के क्षेत्र में बहुत काम किया।

स्वामी विवेकानंद का परिचय कैसे दें?

स्वामी विवेकानंद जी को किसी भी परिचय की आवश्यकता नहीं है। स्वामी विवेकानंद देश को विश्व स्तर पहचान दिलवाने वाले महान व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद जी पर निबंध के माध्यम से आप उनके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Frequently Asked Question (FAQs)

स्वामी विवेकानंद जी के सिद्धांत को प्रतिपादित करते कुछ उद्धरण इस प्रकार हैं:

स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व को सत्य, ज्ञान, सेवा तथा परोपकार का उपदेश दिया।  

Explore Career Options (By Industry)

  • Construction
  • Entertainment
  • Manufacturing
  • Information Technology

Data Administrator

Database professionals use software to store and organise data such as financial information, and customer shipping records. Individuals who opt for a career as data administrators ensure that data is available for users and secured from unauthorised sales. DB administrators may work in various types of industries. It may involve computer systems design, service firms, insurance companies, banks and hospitals.

Bio Medical Engineer

The field of biomedical engineering opens up a universe of expert chances. An Individual in the biomedical engineering career path work in the field of engineering as well as medicine, in order to find out solutions to common problems of the two fields. The biomedical engineering job opportunities are to collaborate with doctors and researchers to develop medical systems, equipment, or devices that can solve clinical problems. Here we will be discussing jobs after biomedical engineering, how to get a job in biomedical engineering, biomedical engineering scope, and salary. 

Ethical Hacker

A career as ethical hacker involves various challenges and provides lucrative opportunities in the digital era where every giant business and startup owns its cyberspace on the world wide web. Individuals in the ethical hacker career path try to find the vulnerabilities in the cyber system to get its authority. If he or she succeeds in it then he or she gets its illegal authority. Individuals in the ethical hacker career path then steal information or delete the file that could affect the business, functioning, or services of the organization.

GIS officer work on various GIS software to conduct a study and gather spatial and non-spatial information. GIS experts update the GIS data and maintain it. The databases include aerial or satellite imagery, latitudinal and longitudinal coordinates, and manually digitized images of maps. In a career as GIS expert, one is responsible for creating online and mobile maps.

Data Analyst

The invention of the database has given fresh breath to the people involved in the data analytics career path. Analysis refers to splitting up a whole into its individual components for individual analysis. Data analysis is a method through which raw data are processed and transformed into information that would be beneficial for user strategic thinking.

Data are collected and examined to respond to questions, evaluate hypotheses or contradict theories. It is a tool for analyzing, transforming, modeling, and arranging data with useful knowledge, to assist in decision-making and methods, encompassing various strategies, and is used in different fields of business, research, and social science.

Geothermal Engineer

Individuals who opt for a career as geothermal engineers are the professionals involved in the processing of geothermal energy. The responsibilities of geothermal engineers may vary depending on the workplace location. Those who work in fields design facilities to process and distribute geothermal energy. They oversee the functioning of machinery used in the field.

Database Architect

If you are intrigued by the programming world and are interested in developing communications networks then a career as database architect may be a good option for you. Data architect roles and responsibilities include building design models for data communication networks. Wide Area Networks (WANs), local area networks (LANs), and intranets are included in the database networks. It is expected that database architects will have in-depth knowledge of a company's business to develop a network to fulfil the requirements of the organisation. Stay tuned as we look at the larger picture and give you more information on what is db architecture, why you should pursue database architecture, what to expect from such a degree and what your job opportunities will be after graduation. Here, we will be discussing how to become a data architect. Students can visit NIT Trichy , IIT Kharagpur , JMI New Delhi . 

Remote Sensing Technician

Individuals who opt for a career as a remote sensing technician possess unique personalities. Remote sensing analysts seem to be rational human beings, they are strong, independent, persistent, sincere, realistic and resourceful. Some of them are analytical as well, which means they are intelligent, introspective and inquisitive. 

Remote sensing scientists use remote sensing technology to support scientists in fields such as community planning, flight planning or the management of natural resources. Analysing data collected from aircraft, satellites or ground-based platforms using statistical analysis software, image analysis software or Geographic Information Systems (GIS) is a significant part of their work. Do you want to learn how to become remote sensing technician? There's no need to be concerned; we've devised a simple remote sensing technician career path for you. Scroll through the pages and read.

Budget Analyst

Budget analysis, in a nutshell, entails thoroughly analyzing the details of a financial budget. The budget analysis aims to better understand and manage revenue. Budget analysts assist in the achievement of financial targets, the preservation of profitability, and the pursuit of long-term growth for a business. Budget analysts generally have a bachelor's degree in accounting, finance, economics, or a closely related field. Knowledge of Financial Management is of prime importance in this career.

Underwriter

An underwriter is a person who assesses and evaluates the risk of insurance in his or her field like mortgage, loan, health policy, investment, and so on and so forth. The underwriter career path does involve risks as analysing the risks means finding out if there is a way for the insurance underwriter jobs to recover the money from its clients. If the risk turns out to be too much for the company then in the future it is an underwriter who will be held accountable for it. Therefore, one must carry out his or her job with a lot of attention and diligence.

Finance Executive

Product manager.

A Product Manager is a professional responsible for product planning and marketing. He or she manages the product throughout the Product Life Cycle, gathering and prioritising the product. A product manager job description includes defining the product vision and working closely with team members of other departments to deliver winning products.  

Operations Manager

Individuals in the operations manager jobs are responsible for ensuring the efficiency of each department to acquire its optimal goal. They plan the use of resources and distribution of materials. The operations manager's job description includes managing budgets, negotiating contracts, and performing administrative tasks.

Stock Analyst

Individuals who opt for a career as a stock analyst examine the company's investments makes decisions and keep track of financial securities. The nature of such investments will differ from one business to the next. Individuals in the stock analyst career use data mining to forecast a company's profits and revenues, advise clients on whether to buy or sell, participate in seminars, and discussing financial matters with executives and evaluate annual reports.

A Researcher is a professional who is responsible for collecting data and information by reviewing the literature and conducting experiments and surveys. He or she uses various methodological processes to provide accurate data and information that is utilised by academicians and other industry professionals. Here, we will discuss what is a researcher, the researcher's salary, types of researchers.

Welding Engineer

Welding Engineer Job Description: A Welding Engineer work involves managing welding projects and supervising welding teams. He or she is responsible for reviewing welding procedures, processes and documentation. A career as Welding Engineer involves conducting failure analyses and causes on welding issues. 

Transportation Planner

A career as Transportation Planner requires technical application of science and technology in engineering, particularly the concepts, equipment and technologies involved in the production of products and services. In fields like land use, infrastructure review, ecological standards and street design, he or she considers issues of health, environment and performance. A Transportation Planner assigns resources for implementing and designing programmes. He or she is responsible for assessing needs, preparing plans and forecasts and compliance with regulations.

Environmental Engineer

Individuals who opt for a career as an environmental engineer are construction professionals who utilise the skills and knowledge of biology, soil science, chemistry and the concept of engineering to design and develop projects that serve as solutions to various environmental problems. 

Safety Manager

A Safety Manager is a professional responsible for employee’s safety at work. He or she plans, implements and oversees the company’s employee safety. A Safety Manager ensures compliance and adherence to Occupational Health and Safety (OHS) guidelines.

Conservation Architect

A Conservation Architect is a professional responsible for conserving and restoring buildings or monuments having a historic value. He or she applies techniques to document and stabilise the object’s state without any further damage. A Conservation Architect restores the monuments and heritage buildings to bring them back to their original state.

Structural Engineer

A Structural Engineer designs buildings, bridges, and other related structures. He or she analyzes the structures and makes sure the structures are strong enough to be used by the people. A career as a Structural Engineer requires working in the construction process. It comes under the civil engineering discipline. A Structure Engineer creates structural models with the help of computer-aided design software. 

Highway Engineer

Highway Engineer Job Description:  A Highway Engineer is a civil engineer who specialises in planning and building thousands of miles of roads that support connectivity and allow transportation across the country. He or she ensures that traffic management schemes are effectively planned concerning economic sustainability and successful implementation.

Field Surveyor

Are you searching for a Field Surveyor Job Description? A Field Surveyor is a professional responsible for conducting field surveys for various places or geographical conditions. He or she collects the required data and information as per the instructions given by senior officials. 

Orthotist and Prosthetist

Orthotists and Prosthetists are professionals who provide aid to patients with disabilities. They fix them to artificial limbs (prosthetics) and help them to regain stability. There are times when people lose their limbs in an accident. In some other occasions, they are born without a limb or orthopaedic impairment. Orthotists and prosthetists play a crucial role in their lives with fixing them to assistive devices and provide mobility.

Pathologist

A career in pathology in India is filled with several responsibilities as it is a medical branch and affects human lives. The demand for pathologists has been increasing over the past few years as people are getting more aware of different diseases. Not only that, but an increase in population and lifestyle changes have also contributed to the increase in a pathologist’s demand. The pathology careers provide an extremely huge number of opportunities and if you want to be a part of the medical field you can consider being a pathologist. If you want to know more about a career in pathology in India then continue reading this article.

Veterinary Doctor

Speech therapist, gynaecologist.

Gynaecology can be defined as the study of the female body. The job outlook for gynaecology is excellent since there is evergreen demand for one because of their responsibility of dealing with not only women’s health but also fertility and pregnancy issues. Although most women prefer to have a women obstetrician gynaecologist as their doctor, men also explore a career as a gynaecologist and there are ample amounts of male doctors in the field who are gynaecologists and aid women during delivery and childbirth. 

Audiologist

The audiologist career involves audiology professionals who are responsible to treat hearing loss and proactively preventing the relevant damage. Individuals who opt for a career as an audiologist use various testing strategies with the aim to determine if someone has a normal sensitivity to sounds or not. After the identification of hearing loss, a hearing doctor is required to determine which sections of the hearing are affected, to what extent they are affected, and where the wound causing the hearing loss is found. As soon as the hearing loss is identified, the patients are provided with recommendations for interventions and rehabilitation such as hearing aids, cochlear implants, and appropriate medical referrals. While audiology is a branch of science that studies and researches hearing, balance, and related disorders.

An oncologist is a specialised doctor responsible for providing medical care to patients diagnosed with cancer. He or she uses several therapies to control the cancer and its effect on the human body such as chemotherapy, immunotherapy, radiation therapy and biopsy. An oncologist designs a treatment plan based on a pathology report after diagnosing the type of cancer and where it is spreading inside the body.

Are you searching for an ‘Anatomist job description’? An Anatomist is a research professional who applies the laws of biological science to determine the ability of bodies of various living organisms including animals and humans to regenerate the damaged or destroyed organs. If you want to know what does an anatomist do, then read the entire article, where we will answer all your questions.

For an individual who opts for a career as an actor, the primary responsibility is to completely speak to the character he or she is playing and to persuade the crowd that the character is genuine by connecting with them and bringing them into the story. This applies to significant roles and littler parts, as all roles join to make an effective creation. Here in this article, we will discuss how to become an actor in India, actor exams, actor salary in India, and actor jobs. 

Individuals who opt for a career as acrobats create and direct original routines for themselves, in addition to developing interpretations of existing routines. The work of circus acrobats can be seen in a variety of performance settings, including circus, reality shows, sports events like the Olympics, movies and commercials. Individuals who opt for a career as acrobats must be prepared to face rejections and intermittent periods of work. The creativity of acrobats may extend to other aspects of the performance. For example, acrobats in the circus may work with gym trainers, celebrities or collaborate with other professionals to enhance such performance elements as costume and or maybe at the teaching end of the career.

Video Game Designer

Career as a video game designer is filled with excitement as well as responsibilities. A video game designer is someone who is involved in the process of creating a game from day one. He or she is responsible for fulfilling duties like designing the character of the game, the several levels involved, plot, art and similar other elements. Individuals who opt for a career as a video game designer may also write the codes for the game using different programming languages.

Depending on the video game designer job description and experience they may also have to lead a team and do the early testing of the game in order to suggest changes and find loopholes.

Radio Jockey

Radio Jockey is an exciting, promising career and a great challenge for music lovers. If you are really interested in a career as radio jockey, then it is very important for an RJ to have an automatic, fun, and friendly personality. If you want to get a job done in this field, a strong command of the language and a good voice are always good things. Apart from this, in order to be a good radio jockey, you will also listen to good radio jockeys so that you can understand their style and later make your own by practicing.

A career as radio jockey has a lot to offer to deserving candidates. If you want to know more about a career as radio jockey, and how to become a radio jockey then continue reading the article.

Choreographer

The word “choreography" actually comes from Greek words that mean “dance writing." Individuals who opt for a career as a choreographer create and direct original dances, in addition to developing interpretations of existing dances. A Choreographer dances and utilises his or her creativity in other aspects of dance performance. For example, he or she may work with the music director to select music or collaborate with other famous choreographers to enhance such performance elements as lighting, costume and set design.

Social Media Manager

A career as social media manager involves implementing the company’s or brand’s marketing plan across all social media channels. Social media managers help in building or improving a brand’s or a company’s website traffic, build brand awareness, create and implement marketing and brand strategy. Social media managers are key to important social communication as well.

Photographer

Photography is considered both a science and an art, an artistic means of expression in which the camera replaces the pen. In a career as a photographer, an individual is hired to capture the moments of public and private events, such as press conferences or weddings, or may also work inside a studio, where people go to get their picture clicked. Photography is divided into many streams each generating numerous career opportunities in photography. With the boom in advertising, media, and the fashion industry, photography has emerged as a lucrative and thrilling career option for many Indian youths.

An individual who is pursuing a career as a producer is responsible for managing the business aspects of production. They are involved in each aspect of production from its inception to deception. Famous movie producers review the script, recommend changes and visualise the story. 

They are responsible for overseeing the finance involved in the project and distributing the film for broadcasting on various platforms. A career as a producer is quite fulfilling as well as exhaustive in terms of playing different roles in order for a production to be successful. Famous movie producers are responsible for hiring creative and technical personnel on contract basis.

Copy Writer

In a career as a copywriter, one has to consult with the client and understand the brief well. A career as a copywriter has a lot to offer to deserving candidates. Several new mediums of advertising are opening therefore making it a lucrative career choice. Students can pursue various copywriter courses such as Journalism , Advertising , Marketing Management . Here, we have discussed how to become a freelance copywriter, copywriter career path, how to become a copywriter in India, and copywriting career outlook. 

In a career as a vlogger, one generally works for himself or herself. However, once an individual has gained viewership there are several brands and companies that approach them for paid collaboration. It is one of those fields where an individual can earn well while following his or her passion. 

Ever since internet costs got reduced the viewership for these types of content has increased on a large scale. Therefore, a career as a vlogger has a lot to offer. If you want to know more about the Vlogger eligibility, roles and responsibilities then continue reading the article. 

For publishing books, newspapers, magazines and digital material, editorial and commercial strategies are set by publishers. Individuals in publishing career paths make choices about the markets their businesses will reach and the type of content that their audience will be served. Individuals in book publisher careers collaborate with editorial staff, designers, authors, and freelance contributors who develop and manage the creation of content.

Careers in journalism are filled with excitement as well as responsibilities. One cannot afford to miss out on the details. As it is the small details that provide insights into a story. Depending on those insights a journalist goes about writing a news article. A journalism career can be stressful at times but if you are someone who is passionate about it then it is the right choice for you. If you want to know more about the media field and journalist career then continue reading this article.

Individuals in the editor career path is an unsung hero of the news industry who polishes the language of the news stories provided by stringers, reporters, copywriters and content writers and also news agencies. Individuals who opt for a career as an editor make it more persuasive, concise and clear for readers. In this article, we will discuss the details of the editor's career path such as how to become an editor in India, editor salary in India and editor skills and qualities.

Individuals who opt for a career as a reporter may often be at work on national holidays and festivities. He or she pitches various story ideas and covers news stories in risky situations. Students can pursue a BMC (Bachelor of Mass Communication) , B.M.M. (Bachelor of Mass Media) , or  MAJMC (MA in Journalism and Mass Communication) to become a reporter. While we sit at home reporters travel to locations to collect information that carries a news value.  

Corporate Executive

Are you searching for a Corporate Executive job description? A Corporate Executive role comes with administrative duties. He or she provides support to the leadership of the organisation. A Corporate Executive fulfils the business purpose and ensures its financial stability. In this article, we are going to discuss how to become corporate executive.

Multimedia Specialist

A multimedia specialist is a media professional who creates, audio, videos, graphic image files, computer animations for multimedia applications. He or she is responsible for planning, producing, and maintaining websites and applications. 

Quality Controller

A quality controller plays a crucial role in an organisation. He or she is responsible for performing quality checks on manufactured products. He or she identifies the defects in a product and rejects the product. 

A quality controller records detailed information about products with defects and sends it to the supervisor or plant manager to take necessary actions to improve the production process.

Production Manager

A QA Lead is in charge of the QA Team. The role of QA Lead comes with the responsibility of assessing services and products in order to determine that he or she meets the quality standards. He or she develops, implements and manages test plans. 

Process Development Engineer

The Process Development Engineers design, implement, manufacture, mine, and other production systems using technical knowledge and expertise in the industry. They use computer modeling software to test technologies and machinery. An individual who is opting career as Process Development Engineer is responsible for developing cost-effective and efficient processes. They also monitor the production process and ensure it functions smoothly and efficiently.

AWS Solution Architect

An AWS Solution Architect is someone who specializes in developing and implementing cloud computing systems. He or she has a good understanding of the various aspects of cloud computing and can confidently deploy and manage their systems. He or she troubleshoots the issues and evaluates the risk from the third party. 

Azure Administrator

An Azure Administrator is a professional responsible for implementing, monitoring, and maintaining Azure Solutions. He or she manages cloud infrastructure service instances and various cloud servers as well as sets up public and private cloud systems. 

Computer Programmer

Careers in computer programming primarily refer to the systematic act of writing code and moreover include wider computer science areas. The word 'programmer' or 'coder' has entered into practice with the growing number of newly self-taught tech enthusiasts. Computer programming careers involve the use of designs created by software developers and engineers and transforming them into commands that can be implemented by computers. These commands result in regular usage of social media sites, word-processing applications and browsers.

Information Security Manager

Individuals in the information security manager career path involves in overseeing and controlling all aspects of computer security. The IT security manager job description includes planning and carrying out security measures to protect the business data and information from corruption, theft, unauthorised access, and deliberate attack 

ITSM Manager

Automation test engineer.

An Automation Test Engineer job involves executing automated test scripts. He or she identifies the project’s problems and troubleshoots them. The role involves documenting the defect using management tools. He or she works with the application team in order to resolve any issues arising during the testing process. 

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय |Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद की जीवनी,जन्म, गुरु का नाम, पत्नी का नाम,पिता का नाम,स्वामी विवेकानंद क्यों प्रसिद्ध है?,स्वामी विवेकानंद कितने घंटे ध्यान करते थे?,स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन 

Table of Contents

स्वामी विवेकानंद एक हिंदू भिक्षु थे और भारत के सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेताओं में से एक थे। वह सिर्फ एक आध्यात्मिक दिमाग से अधिक था; वह एक विपुल विचारक, महान वक्ता और भावुक देशभक्त थे। स्वामी विवेकानंद गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। स्वामी विवेकानंद के जीवन न कई लोगों को प्रेरणा दी है। वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत ” मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों ” के साथ करने के लिए जाना जाता है ।  उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।स्वामी विवेकानंद के दिखाएं मार्ग पर चल कर कई लोगों ने अपने जीवन को एक नई दिशा दी है। इस लेख के जरिए हम आपको स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय  ( Swami Vivekananda Biography in Hindi ) के जीवन परिचय के बारे में बताएंगे।इस लेख को अंत तक पढ़े।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय  ( Swami Vivekanand Short biography In Hindi)

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन(swami vivekananda biography in hindi).

स्वामी विवेकानंद  का जन्म (swami vivekananda jayanti) 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था । उनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त था। उनके पिता हाईकोर्ट (High Court) के एक प्रसिध्द वकील  थे। नरेंद्र के पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त को कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे और मां का नाम भुनेश्वरी देवी जो एक धार्मिक विचार की महिला थी, और हिंदू धर्म के प्रति कफि यास्था रखती थी। नरेंद्र को 9 भाई बहन थे। दादा जी का नाम दुर्गाचरण दत्त  फारसी और संस्कृत के विद्वान वक्ति थे। वे भी अपने घर परिवार को छोड़कर साधु बन गए।

स्वामी विवेकानन्द जी का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था प्यार से लोग उन्हें नरेंद्र बुलाया करते थे। ये बचपन से अत्यंत कुशाग्र और दुधिमान के साथ बहुत नटखट भी थे। बचपन में अपने सहपाठियों के साथ बहुत किया करते थे,   कभी-कभी मौका मिलने पर अधियापको से भी सरारत करने से नहीं चूकते थे। भगवान को जानने की उत्सुकता में माता पिता कुछ ऐसे सवाल पूछ देते की जानने के लिऐ उन्हे ब्रहमणो के यहा जाना परता। 1984 में उन्होंने अपने पिता जी साथ छूट गया और परिवार की सारी जिमेदार उन्ही पर आ गया घर की स्थिति बहुत खराब थी। बहुत गरीब होने के बाबजूद भी नरेंद्र बड़े ही अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते थे और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते थे। स्वामी विवेकानंद अपना जीवन गुरुदेव श्रीरामकृष्ण को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की चिंता किए बिना, खुद भोजन की बिना चिंता के गुरू की सेवा में सतत संलग्न रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था।

स्वामी विवेकानंद का शिक्षा(teachings of swami vivekananda)

स्वामी विवेकानन्द का प्रारम्भ शिक्षा उनके घर में ही हुआ।  1871  में  8  साल की उम्र में ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन सस्थान में नामांकन करवाए, जहां से उन्होंने स्कूल की पढ़ाई की।  1877  अपने परिवार के साथ रायपुर चले गए फिर एक साल बाद 1877 में अपने घर या गए। कलकत्ता के प्रसिडेंसी कॉलेज  के परवेश परीक्षा में प्रथम डिविजन से पास होने वाला एक मात्रछात्र थे। कॉलेज के समय स्कूल में हो रहे खेल कूद प्रतियोगिता में हमें भाग लेते थे। उन्होंने दर्शनसास्त्र, धर्म, सामाजिक विज्ञान, इतिहास, काला और साहित्य जैसे विषयों की शिक्षा प्राप्त किए थे।

इसके अलाव वेद ,  उपनिषद, भागवत, गीता, रामायण ,  महाभारत और कई हिंदू सस्त्रो का गहन अधियान किए थे। उसके बाद भारतीय सस्ती संगीत का भी प्रशिक्षण ग्रहण किए।   स्कांतिश चर्च कॉलेज असेंबली इस्टीट्यूशन से पश्चिमी तर्क ,  पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास अध्ययन किए। 1884 में उन्हे काला स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 1860 में उन्होंने स्पेंसर का किताब एजुकेशन को बंगाली में अनुवाद किए। उसके बाद उन्होंने 1984 में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। महासभा सस्थां के प्रधाना अध्यापक ने लिखा नरेंद्र सच में एक बहुत बुद्धिमान वेक्ति हैं।

मैने कई सारे अलग अलग जगहों  यात्रा किए है, पर उनके जैसा प्रतिभाशाली वेक्ति कभी नही देख यहां ताकि वे जर्मन विश्वविद्यालय के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं देखें। इसलिए उन्हें श्रुतिधर भी कहा जाता था। इसका अर्थ है विलक्षण स्मृति वाला व्यक्ति होता है। स्वामी विवेकानंद ने david Hume, lmmanuel Kant, Johann Gottlieb fichte, Baruch spinoza, Georg W.F. Hegel, arthu schopenhauer, aguste comte, John Stuart mill  और चार्ल्स डार्विन के कामों का अभ्यास किए थे।

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस ( Swami Vivekananda and Ramakrishna Paramhansa)

स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से ही ईश्वर के प्रति जानने का जिज्ञासा था इसीलिए उन्होंने एक बार महा ऋषि देवेंद्र नाथ से उन्होंने एक सवाल पूछा ‘क्या आपने कभी भगवान को देखा है?’ उनके इस सवाल को सुनकर महर्षि देवेंद्र आश्चर्य में पड़ गए। उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दिए। उसके बाद स्वामी जी ने रामकृष्ण परमहंस को ही अपना गुरु बना लिए।  उनके बताए सदमार्ग पर चलने लगे।

विवेकानंद जी अपने गुरु से इतना प्रभावित हुए की उनके प्रति उनके मन में कर्तव्यनिष्ठा और   श्रद्धा की भावना बढ़ती गई।  1885 में उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस कैंसर की बीमारी से ग्रसित थे।इसलिए उन्होंने उनके बहुत सेवा की और अंत में उनकी मृत्यु हो गई। इस तरह से गुरु और शिष्य के बीच में एक मजबूत रिश्ता बन चुका था।

रामकृष्ण मठ की स्थापना (Ramakrishna Math Establishment)

उसके बाद उन्होंने अपने ग्रुप रामकृष्ण परमहंस के मृत्यु के बाद उन्होंने  12  नगरों में रामकृष्ण संघ की स्थापना की बाद में इनका नाम रामकृष्ण संघ से बदलकर रामकृष्ण मठ कर दिया गया। रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद  मात्र  25  वर्ष के उम्र में उन्होंने अपना घर परिवार त्याग दिया और ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे और और गेरुआ वस्त्र धारण करने लगे। तभी से उनका नाम विवेकानंद स्वामी हो गया।

स्वामी विवेकानंद इतने घंटे करते थे ध्यान (meditation)

स्वामी जी रोज ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर तीन घंटे ध्यान करते थे। इसके बाद वे अन्य रोजना के काम में व्यस्त होते और यात्रा पर निकलते । इसके बाद वे दोपहर और शाम को भी घंटों तक ध्यान में रहते थे। रात के वक्त उन्होंने तीन-चार घंटे तक ध्यान किया है। “आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बगैर विश्व अनाथ हो जाएगा।” वे वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरू थे।

Swami Vivekananda biography in hindi

स्वामी विवेकानंद के सिध्दांत

स्वामी जी ने भारत में ब्रम्हा समाज,  रामकृष्ण मिशन  और मठों की स्थापना करके लोगों को आध्यात्म से जोड़ा। उनका एक ही सिध्दांत था कि भारत देश के युवा इस देश को काफी आगे ले जाएं। उन्होंने कहा था कि अगर मुझे सौ युवा मिल जाएं, जो पूरी तरह समर्पित हों तो वे भारत की तस्वीर बदल देंगे। शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास हो सके। शिक्षा से बच्चे के चरित्र का निर्माण और वह आत्मनिर्भर बने। उन्होंने कहा था कि धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा ना देकर आचरण और संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।

स्वामी विवेकानंद के नाम से यूनिवर्सिटीज की लिंक नीचे दी है

  • Swami Vivekanand University Sagar
  • Swami Vivekanand Subharti University
  • chhattisgarh swami vivekanand technical university
  • ( swami vivekanand subharti university course admissions)

स्वामी विवेकानंद जयंती ( swami Vivekananda Jayanti )

स्वामी विवेकानंद बहुत ही ज्यादा बुद्धिमान और प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे उनके स्वभाव और देश के लिए हमेशा अच्छे कामों के कारण उन्होंने सभी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। इसी के कारण सभी युवाओं की नजरों में स्वामी विवेकानंद एक आदर्श के रूप में बन गए थे। 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में  देश में मनाया जाता है और वह कहते हैं कि व्यक्ति योग और साधना से जीवन में सब कुछ पा सकता है।

विवेकानंद स्वामी का भारत भ्रमण (Vivekananda Swami’s India tour)

स्वामी विवेकानन्द पूरे भारतवर्ष का भ्रमण पैदल यात्रा के दौरान काशी, प्रयाग, अयोध्या, बनारस, आगरा, वृंदावन इसके अलावा और कई जगह का भ्रमण किए। इस दौरान वे कई सारे राजा, गरीब, संत और ब्रहमणों के घर में ठहरे। इस यात्रा के दौरान कई सारे अलग अलग क्षेत्रों में जाति प्रथा और भेद भाव ज्यादा प्रचलित है। जाति प्रथा को हटाने के लिए बहुत कोशिश किए।

23   दिसंबर  1892  को भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी जा पहुंचे वहा पर उन्होंने तीन दिन तक समाधी में रहे। उसके बाद वे अपने गुरु भाई से मिलने के लिए राजस्थान के अबू रोड जा पहुंचे जहां अपने गुरु भाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तूर्यानंद से मिले। भारत की पूरी यात्रा देश की गरीबी और दुखी लोगो को देख कर इसेसे पुरे देश को मुक्त करने और दुनिया को भारत के प्रति सोच को बदलने का फैसला किया।

यह भी पढ़े : डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम का संपूर्ण जीवन परिचय

रामकृष्ण मिशन की स्थापना(Establishment of Ramakrishna Mission)

1897  मैं स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जिसका उद्देश्य यह था कि नव भारत निर्माण के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और साफ सफाई के क्षेत्र में बढ़ावा देना। वेद ,  साहित्य ,  शास्त्रदर्शन और इतिहास के ज्ञानेश्वर स्वामी विवेकानंद ने अपनी विनोद प्रतिभा से सभी को अपनी ओर आकर्षित किया और उस समय के नौजवान लोगों के लिए एक आदर्श बने रहे थे। 1898  में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना जो अभी भी चल रही है इसके अलावा और 2 मठ की स्थापना की।

स्वामी विवेकानन्द अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन का भाषण (Swami Vivekananda’s speech at the World Conference of Religions of America)

1893   में स्वामी विवेकानन्द  भारत के ओर से अमेरिका के विश्व धर्म समेलन में हिस्सा लिए।  इस धर्म समेलान में पूरी दुनिया के धर्म गुरु ने हिस्सा लिया था। इसमें में भाग लेने वाले सभी लोगो ने अपना धार्मिक किताब रखे और भारत के ओर से भागवत गीता को रखा गया। इस सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द जी को देख कर विदेश लोग काफी मजाक उड़ाते थे। पर उन्होंने कुछ भी नही बोले।

जब वे मंच पर जाकर  MY BROTHER’S AND SISTER’S OF AMERICA   से संबोधित कर भाषण देना शुरू केए। तब पूरा सभागार उन्हे तालियों   की ग्रग्राहट से उनका स्वागत किया। अगले दिन अमेरिका के अखबारों उन्ही की चर्चा था।

एक पत्रकार ने लिखा था, वैसे तो धर्म सम्मेलन के सभी विद्वान ने बहुत अच्छी भाषण दी पर भारत के विद्वान ने पूरे अमेरिका का दिल जीत लिया। इसी तरह उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जिससे उस समय के नई लोकप्रिये छवि बनकर उभरे। और आज भी उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विद्वान माने जाते हैं।

स्वामी विवेकानंद का विश्व भ्रमन (Swami Vivekananda’s world tour)

धर्म सम्मेलन खत्म होने के बाद  3  साल तक   अमेरिका में ही रह गए और वह हिंदू धर्म के वेदंग का प्रचार अमेरिका में अलग अलग जगहों पर जाकर किए। वही अमेरिका के प्रेस ने उन्हें  “ Cylonic Monik From India”  का नाम दिया था। उसके बाद    दो साल तक शिकागो, न्यूयॉर्क, डेट्रइट और बोस्टन    में उन्होंने लेकर दिए थे।

1894  को न्यूयॉर्क में वेदाँग सोसाइटी की स्थापना की। 1896 में अक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैक्स मूलर से हुआ जिन्होंने उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की आत्मकथा लिखे थे। 1879 में उन्होंने अमेरिका से श्रीलंका गए और वहां के लोगो ने उनका स्वागत खुलकर किया। उस समय वे काफी प्रचलित थे। वहां से रामेश्वरम चले गए और फिर 1 मई 1897 को अपना घर कोलकाता चले गए।

यह भी पढ़े : भगत सिंह का जीवन परिचय 

स्वामी विवेकानंद का दूसरा विश्व यात्रा (Swami Vivekananda’s Second World Tour)

20 जून 1899 को फिर अमेरिका गए और वहां कैलिफोर्निया में शांति आश्रम का निर्माण किए और फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की। जुलाई  1900  में विवेकानंद जी पेरिस गए जहां उन्होंने कांग्रेस ऑफ द हिस्ट्री रिलेशंस में भाग लिए और करीब 3 महीने तक वहां रहे थे इस दौरान उनका 2 शिष्य वहां बन गया था भगिनी निवेदिता और स्वामी त्रियानंद 1900  के आखरी माह में स्वामी जी भारत लौट आए। इसके बाद उन्होंने फिर से भारत की यात्रा की बोधगया और बनारस यात्रा की। इस दौरान उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता जा रहा था, वे अस्थमा और डायबिटीज जैसी बीमारियों से ग्रसित थे।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (swami vivekananda death)

4 जुलाई 1992 को मात्र 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु हो गई। उनके शिष्य का में तो उन्होंने महासमाधि ली थी। आरोही इस महापुरुष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट के किनारे किया गया था।

Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन ( swami vivekananda quotes)

  • जब तक तुम अपने आप में विश्वास नहीं करोगे, तब तक भगवान में विश्वास नहीं कर सकते।
  •  हम जो भी हैं हमारी सोच हमें बनाती है, इसलिए सावधानी से सोचें, शब्द व्दितीय हैं पर सोच                              रहती है और दूर तक यात्रा करती है।
  • उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अपना लक्ष्य प्राप्त ना कर सको।
  •  हम जितना बाहर आते हैं और जितना दूसरों का भला करते हैं, हमारा दिल उतना ही शुध्द होता है और उसमें उतना ही भगवान का निवास होता है।
  • सच हजारों तरीके से कहा जा सकता है, तब भी उसका हर एक रूप सच ही है।
  • संसार एक बहुत बड़ी व्यायामशाला है, जहां हम खुद को शक्तिशाली बनाने आते हैं।
  • बाहरी स्वभाव आंतरिक स्वभाव का बड़ा रूप है।
  • भगवान को अपने प्रिय की तरह पूजना चाहिए।
  • ब्रम्हांड की सारी शक्तियां हमारी हैं। हम ही अपनी आंखों पर हाथ रखकर रोते हैं कि अंधकार है।

स्वामी विवेकानंद का योगदान ( swami vivekananda ka yogdan )

अपने जीवन काल में स्वामी विवेकानंद ने जो भी कार्य किए और योगदान दिया इन्हें हम तीन भागों में बांट सकते हैं।

  • भारत के प्रति योगदान।
  • हिंदुत्व के प्रति योगदान।
  • वैश्विक संस्कृति के प्रति योगदान।

महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

Swami Vivekananda Biography in Hindi |

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय वीडियो के स्वरूप में नीचे दिया गया है

दोस्तो मैं उम्मीद करता हूं की आपको “ स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda Biography in Hindi ” जीवनी आपको पसंद आया होगा,अगर आपको मेरा आर्टिकल पसंद आया हो तो आप अपने दोस्तो और सोशल मीडिया पर शेयर करे ताकि लोगो को भी यह जानकारी मिल सके, और आपको स्वामी विवेकानंद की जीवनी की जानकारी कैसा लगा कॉमेंट में जरूर बताएं। धन्यवाद!

स्वामी विवेकानंद क्यों प्रसिद्ध थे?

विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में स्वामी विवेकानंद हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व  किया। उन्होंने रामकृष्ण मिशन व वेदांत सोसाइटी की नींव रखी।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब और कैसे हुई?

स्वामी विवेकानंद ने 4 जुलाई 1902 में 39 वर्ष 5 महीने की उम्र में, समाधि ले ली थी।

बेलूर मठ की स्थापना किसने की थी?

बेलूर मठ की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने की थी।

स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ?

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ।

स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम क्या है?

स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम नरेंद्रनाथ दत्त है।

स्वामी विवेकानंद ने कहां तक की शिक्षा प्राप्त?

स्वामी विवेकानंद ने बेचलर ऑफ आर्ट की शिक्षा प्राप्त की है।

2 thoughts on “स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय |Swami Vivekananda Biography in Hindi”

धन्यवाद ऐसा ब्लॉग लिखने के लिए,आपका ये ब्लॉग बहुत ही अच्छा या प्रेरणादायक है इसे हमे अच्छी बातें सीखने को मिलती है, आपके शब्दों ने मेरा मनोबल बढ़ा दिया है। आपका अनुभव सहजता से सिखने को प्रेरित करता है। आपकी बातें मुझे सोचने पर मजबूर करती हैं और मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): 200 और 500+ शब्दों में निबंध लिखना सीखें

Updated On: January 11, 2024 01:10 pm IST

  • स्वामी विवेकानंद पर निबंध 200 शब्दों में (Essay on Swami …
  • स्वामी विवेकानंद पर निबंध 500+ शब्दों में (Essay on Swami …
  • 10 लाइनों में स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami …

स्वामी विवेकानंद पर निबंध

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है। स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू संत और नेता थे, जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। हम उनके जन्मदिन पर प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं। वह आध्यात्मिक विचारों वाले अद्भूत बच्चे थे। इनकी शिक्षा अनियमित थी, लेकिन इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की। श्री रामकृष्ण से मिलने के बाद इनका धार्मिक और संत का जीवन शुरु हुआ और उन्हें अपना गुरु बना लिया। इसके बाद इन्होंने वेदांत आन्दोलन का नेतृत्व किया और भारतीय हिन्दू धर्म के दर्शन से पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 200 शब्दों में (Essay on Swami Vivekananda in Hindi in 200 words)

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): स्वामी विवेकानंद जी उन महान व्यक्तियों में से एक है, जिन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन किया। अपने शिकागों भाषण द्वारा उन्होंने पूरे विश्व भर में हिंदुत्व के विषय में लोगो को जानकारी प्रदान की, इसके साथ ही उनका जीवन भी हम सबके लिए एक सीख है। स्वामी विवेकानंद जी ने महान कार्यों द्वारा पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलायी और विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। वह बचपन में नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे। इनकी जयंती को भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है। वह विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील, और भुवनेश्वरी देवी के आठ बच्चों में से एक थे। वह बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे और अपने संस्कृत के ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे। स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। वह बचपन से ही धार्मिक प्रकृति वाले थे और परमेश्वर की प्राप्ति के लिए काफी परेशान थे। स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और हिन्दू भगवान की मूर्तियों (भगवान शिव, हनुमान आदि) के सामने ध्यान किया करते थे। वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और भिक्षुओं से प्रभावित थे। वह बचपन में बहुत शरारती थे और अपने माता-पिता के नियंत्रण से बाहर थे। वह अपनी माता के द्वारा भूत कहे जाते थे, उनके एक कथन के अनुसार, “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी और उन्होंने मुझे अपने भूतों में से एक भेज दिया।” स्वामी विवेकानंद जी का 1871 (जब वह 8 साल के थे) में अध्ययन के लिए चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था और 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन कराया गया। वह सामाजिक विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्म, कला और साहित्य जैसे विषयों में बहुत अच्छे थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत शास्त्रों और बंगाली साहित्य का अध्ययन किया।

स्वामी विवेकानंद का योगदान

उन्होंने अपने छोटे से जीवनकाल में ऐसे-ऐसे कार्य किये थे कि जिससे हमारे देश की अनेकों पीढ़ियों का मार्गदर्शन हो सकता है। उनके जीवन में सबसे प्रसिद्ध घटना शिकागो की थी। वह घटना अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन की थी, जहाँ वह हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जहाँ उनके भाषण की शुरुआत ने ही वहाँ की पूरी जनता का मन जीत लिया था।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 500+ शब्दों में (Essay on Swami Vivekananda in Hindi in 500+ words)

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): स्वामी विवेकानंद एक समान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपने ज्ञान तथा तेज के बल पर वे विवेकानंद बने। अपने कार्यों द्वारा उन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन किया। यहीं कारण है कि वह आज के समय में भी लोगो के प्रेरणास्त्रोत हैं।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय 

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में कोलकत्ता शहर में एक हाईकोर्ट के वकील के यहाँ हुआ।उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनके गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। स्वामी विवेकानंद जी का अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेन्द्र के पिता और उनकी माँ के धार्मिक, प्रगतिशील व तर्कसंगत रवैया ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में सहायता की। बचपन से ही नरेन्द्र अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे। कभी भी शरारत करने से नहीं चूकते थे फिर चाहे वे उनके साथी के साथ हो या फिर मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गये। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी।

स्वामी विवेकानंद का योगदान एंव महत्व

स्वामी विवेकानद का ह्रदय परिवर्तन.

एक दिन वह श्री रामकृष्णसे मिले, तब उनके अंदर श्री रामकृष्ण के आध्यात्मिक प्रभाव के कारण बदलाव आया। श्री रामकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने के बाद वह स्वामी विवेकानंद कहे जाने लगे। वास्तव में स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरुभक्त भी थे क्योंकि तमाम प्रसिद्धि पाने के बाद भी उन्होंने सदैव अपने गुरु को याद रखा और रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए, अपने गुरु का नाम रोशन किया।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान तथा शब्दों द्वारा पूरे विश्व भर में हिंदु धर्म के विषय में लोगो का नजरिया बदलते हुए, लोगो को अध्यात्म तथा वेदांत से परिचित कराया। अपने इस भाषण में उन्होंने विश्व भर को भारत के अतिथि देवो भवः, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं, जो अपने जीवन के बाद भी लोगो को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं। यदि हम उनके बताये गये बातों पर अमल करें, तो हम समाज से हर तरह की कट्टरता और बुराई को दूर करने में सफल हो सकते हैं।

10 लाइनों में स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in 10 lines)

  • स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम नरेन्द्रनाथ विश्वनाथ दत्त है, नरेन्द्रनाथ यह उनका जन्म नाम है।
  • स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था।
  • स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस के दिन को राष्ट्रीय युवा दिन के रूप में मनाया जाता है।
  • स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और वह पेशे से हाई कोर्ट के वकील थे।
  • स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था।
  • स्वामी विवेकानंद ने कॉलेज में इतिहास, दर्शन, साहित्य जैसे विषयो का अध्ययन किया था और बी. ए. के परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हो गये थे।
  • स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है।
  • स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे।
  • जब स्वामी विवेकानंद शिकागो में भाषण देने गए थे तो उन्होंने सभी को “मेरे अमेरिका के बहनो और भाइयो” कह कर संबोधित किया था, जिस वजह से वहां उपस्थित सभी का दिल उन्होंने जित लिया।
  • स्वामी विवेकानंद जी ने 4 जुलाई 1902 को अपने शरीर का त्याग किया था।

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Swami vivekananda stories in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी की कहानियां – Swami vivekananda stories in hindi

Swami Vivekananda is one of the finest men ever born in India. He is admired by all. Today we will read best Swami Vivekananda stories in Hindi with moral values written.

युवा प्रेरणा स्रोत, जिज्ञासा, संकल्प शक्ति आदि से परिपूर्ण श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद जी के जीवन काल की कुछ महत्वपूर्ण कहानियां इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं।

कुछ कहानियां उनके जीवन की घटनाओं पर आधारित है, तो कुछ जन श्रुति के आधार पर।यह लेख स्वामी विवेकानंद जी के ज्ञान, व्यक्तित्व और चरित्र तथा उनके कुशाग्र बुद्धिमता का परिचय कराने वाला है।

Table of Contents

स्वामी विवेकानंद जी की कहानियां

युवा सदैव स्वामी जी को अपना प्रेरणा स्रोत मानते हैं। इस कहानी को व्यक्तिगत प्रेरणा लेते हुए अपने जीवन मे अहम बदलाव ला सकते हैं।

स्वामी जी सदैव पावर हाउस के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनकी संकल्प शक्ति और जिज्ञासा तथा खोज की प्रवृत्ति आज भी मानव को प्रेरित करती है। उनका अटल विश्वास था जब तक अपने कार्य को प्राप्त न कर लो तब तक आराम करना व्यर्थ है।

1. स्वामी विवेकानंद की परीक्षा

विवेकानंद अपने गुरु से विशेष लगाव रखते थे। जब उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हुई उसके पश्चात उन्होंने अपने गुरु के कार्यों को आगे बढ़ाने उनकी शिक्षा उनके आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लेते हुए विदेश जाने का निश्चय किया। वह आशीर्वाद और विदाई लेने अपनी माता के पास पहुंचे। माँ को अपने गुरु के उद्देश्यों को बताया।

मां ने अपने पुत्र तत्काल आदेश नहीं दिया। वह दुविधा में थी कि वह अपने पुत्र को विदेश भेजे या नहीं?

वह चुपचाप अपने कार्यों में लग गई, जब वह सब्जी बनाने की तैयारी कर रही थी तब उन्होंने विवेकानंद से चाकू मांगा। विवेकानंद उस चाकू को लेकर आते हैं और मां को बड़े ही सावधानी से देते हैं। मां उसके इस व्यवहार से अति प्रसन्न होती है और मुस्कुराते हुए आशीर्वाद के साथ अपने गुरु के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए कहती है।

विवेकानंद जी को आश्चर्य होता है वह उनकी प्रसन्नता और इस कृत्य पर प्रश्न करते हैं आखिर उन्होंने पुत्र को विदेश भेजने के लिए कैसे निश्चय किया? तब उनकी मां ने बताया तुमने मुझे जिस प्रकार चाकू दिया चाकू की धार तुमने अपनी और पकड़ा और उसका हत्था मुझे सावधानी से थमाया, इससे यह निश्चित होता है कि तुम स्वयं कष्ट सहकर भी दूसरों की भलाई की सोचते हो। तुम किसी का अहित नहीं कर सकते हो, तुम अपने गुरु के कार्यों को कठिनाई सहकर भी आगे बढ़ा सकते हो।

मां की इस परीक्षा के आगे स्वामी विवेकानंद नतमस्तक हुए और मां शारदा से आशीर्वाद लेकर वह जन कल्याण के लिए गुरु के कार्यों के लिए मां से विदा लेकर घर से निकल गए।

2. शिक्षा से समाज सेवा

( swami vivekananda stories in hindi on education ).

एक समय की बात है स्वामी विवेकानंद अपने आश्रम में वेदों का पाठ कर रहे थे, तभी उनके पास चार ब्राह्मण आए वह बड़े व्याकुल थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह किसी प्रश्न का हल ढूंढने के लिए परिश्रम कर रहे हैं।

चारों ब्राह्मण ने स्वामी जी को प्रणाम किया और कहा – स्वामी जी! हम बड़ी दुविधा में हैं , आपसे अपने समस्या का हल जानना चाहते हैं। हमारी जिज्ञासाओं को शांत करें

स्वामी जी ने आश्वासन दिया और जानना चाहा

कैसी जिज्ञासा ? कैसा प्रश्न है आपका ? ब्राह्मण बोले महात्मा हम चारों ने वेद – वेदांतों की शिक्षा ग्रहण की है। हम सभी समाज में अलग-अलग दिशाओं में घूम कर समाज को अपने ज्ञान से सुखी, संपन्न और समृद्ध देखना चाहते हैं।

इसके लिए हमारा मार्गदर्शन करें !

स्वामी जी के मुख पर हल्की सी मुस्कान आई और उन्होंने ब्राह्मण देवताओं को कहा –

है ब्राह्मण! आप सभी यह सब लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं, इसके लिए आपको मिलकर समाज में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना होगा।

ब्राह्मण देवता शिक्षा से हमारा लक्ष्य कैसे प्राप्त हो सकता है ? स्वामी जी जिस प्रकार बगीचे में पौधे को लगाकर बाग को सुंदर बनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षा के द्वारा समाज का उत्थान संभव है।

शिक्षा व्यक्ति में समझ पैदा करती है , उन्हें जीवन के लिए समृद्ध बनाती है। साधनों से संपन्न होने में शिक्षा मदद करती है, सभी अभाव को दूर करने का मार्ग शिक्षा दिखाती है। यह सभी प्राप्त होने पर व्यक्ति स्वयं समृद्ध हो जाता है।

ब्राह्मण देवता को अब स्वामी विवेकानंद जी का विचार बड़े ही अच्छे ढंग से समझ आ चुका था।

अब उन्होंने मिलकर प्रण लिया वह अपने शिक्षा का प्रचार – प्रसार समाज में करेंगे यही उनकी समाज सेवा होगी।

3. फ्रांसीसी विद्वान का घमंड चूर

( swami vivekananda stories in hindi on arrogance ).

यह उन दिनों की बात है जब स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका के शिकागो शहर में अपना ऐतिहासिक भाषण देने गए हुए थे। अपने भाषण को सफलतापूर्वक पूरे विश्व के पटल पर रख कर, अन्य देशों का भ्रमण करने निकले।

इसी क्रम में वह फ्रांसीसी प्रसिद्ध विद्वान के घर अतिथि हुए।

स्वामी विवेकानंद ने उस विद्वान का आतिथ्य स्वीकार किया और उनके घर पहुंचे।

स्वामी जी का स्वागत घर में सम्मानजनक हुआ। स्वामी जी के रुचि अनुसार भोजन की व्यवस्था थी। विदेश में इस प्रकार का भोजन मिलना सौभाग्य की बात थी।

भोजन के उपरांत वेद-वेदांत और धर्म की बड़ी-बड़ी रचनाओं पर शास्त्रार्थ आरंभ हुआ।

शास्त्रार्थ जिस कमरे में हो रहा था, वहां एक मेज पर लगभग डेढ़ हजार पृष्ठ की एक धार्मिक पुस्तक रखी हुई थी।

स्वामी जी ने उस पुस्तक को देखते हुए कहा –  यह क्या है ?

मैं इसका अध्ययन करना चाहता हूं। फ्रांसीसी विद्वान आश्चर्यचकित हो गया।

उसने कहा स्वामी जी कहा यह दूसरे भाषा की पुस्तक है, आप तो भाषा को जानते भी नहीं है।

आप इतने पृष्ठों का अध्ययन कैसे कर सकेंगे?

मैं इसका अध्ययन स्वयं एक महीने से कर रहा हूं !

स्वामी जी – यह आप मुझ पर छोड़ दीजिए एक घंटे के भीतर में आपको अध्ययन करके लौटा दूंगा।

फ्रांसीसी विद्वान को अब क्रोध आने लगा, स्वामी जी इस प्रकार का मजाक मेरे साथ क्यों कर रहे हैं ?

किंतु स्वामी जी ने विश्वास दिलाया, इस पर फ्रांसीसी विद्वान ने मनमाने ढंग से वह पुःतक स्वामी जी को सौंप दिया।

स्वामी जी उस पुस्तक को अपने दोनों हाथों में रखकर एक घंटे के लिए योग साधना में बैठ गए।

जैसे ही एक घंटा बीता होगा , फ्रांसीसी विद्वान उस कमरे में आ गया।

स्वामी जी क्या आपने पुस्तक का अध्ययन कर लिया

हां अवश्य !

आप कैसा मजाक कर रहे हैं ?

मैं इस पुस्तक को एक महीने से अध्ययन कर रहा हूं।

अभी आधा भी अध्ययन नहीं कर पाया हूं, और आप कहते हैं आपने अध्ययन कर लिया।

स्वामी जी आप मजाक कर रहे हैं!

नहीं तुम किसी भी पृष्ठ को खोल कर मुझसे जानकारी ले सकते हो!

उस विद्वान ने ऐसा ही किया।

पृष्ठ संख्या बत्तीस बोलने पर स्वामी जी ने उस पृष्ठ पर लिखा प्रत्येक शब्द अक्षरसः कह सुनाया।

फ्रांसीसी विद्वान के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी।

वह स्वामी जी के चरणों में गिर गया। उस विद्वान ने स्वामी जैसा व्यक्ति आज से पूर्व नहीं देखा था।

उसे यकीन हो गया था, यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है।

Swami vivekananda stories in Hindi

4. सन्यासी जीवन

( swami vivekananda stories in hindi with moral values ).

स्वामी विवेकानंद ने अल्प आयु में सन्यास धारण कर लिया था। उन्होंने गृहस्ती छोड़कर नर सेवा से नारायण सेवा का संकल्प लिया था। समाज कल्याण और उनके उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते थे। वेद-वेदांत, धर्म आदि के महत्व को जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए वह संघर्षरत थे।

एक समय की बात है स्वामी जी को अपने आश्रम लौटना था। वह तांगे से उतरकर वृक्ष की छांव में बैठ गए। वृक्ष के नीचे बैठे-बैठे काफी समय हो गया। कुछ समय बाद वहां से सभी लोग चले गए , फिर भी स्वामी जी वहां यथास्थिति बैठे रहे।

एक सज्जन स्वामी जी को काफी देर से देख रहा था। उसके मन में जिज्ञासा हुई, चलकर हाल पूछा जाए। स्वामी जी के पास पहुंच कर शिष्टाचार से प्रणाम कर, उनका हालचाल जाना। स्वामी जी ने बात बात में सज्जन व्यक्ति को बताया उनके पास आगे की यात्रा करने की राशि नहीं है, इसलिए वह यहां विश्राम करने को रुक गए।

सज्जन व्यक्ति के पूछने पर स्वामी जी ने बताया उन्होंने कल से कुछ खाया पिया भी नहीं है । वह व्यक्ति स्वामी जी को अपने घर ले गया, घर में उनका खूब आदर-सत्कार हुआ।

सज्जन व्यक्ति के पूछने पर कि उनके थैले में क्या है ?

स्वामी जी ने बताया एक गीता की पुस्तक और एक बाइबल है।

व्यक्ति को आश्चर्य हुआ।  दो धर्म की पुस्तकें उनके थैले में एक साथ कैसे ?

स्वामी जी ने बताया अपने धर्म में संप्रदाय-पंथ आदि का कोई दुराग्रह नहीं है। हमें किसी भी माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति हो , वह मार्ग कोई भी हो सकता है।

व्यक्ति ने प्रश्न किया सन्यास जीवन में किसकी आवश्यकता अधिक होती है। इस पर स्वामी जी ने कहा सन्यास जीवन में स्वयं की होती है, उसके अतिरिक्त किसी और की नहीं।

जो सदाचरण करता है, उससे बढ़कर कोई और सन्यासी नहीं हो सकता।

5. ईश्वर की पहचान विवेक से करें

यह उन दिनों की बात है जब स्वामी विवेकानंद अपने परम पूज्य गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ घूम-घूम कर जनकल्याण की सीख दे रहे थे, मानवीय संवेदना की स्थापना कर रहे थे। वह अपना प्रवचन गांव-कस्बे और समाज में दे रहे थे। उसी दौरान परमहंस जी ने एक प्रवचन दिया जिसमें काफी भीड़ आई हुई थी।

गुरु परमहंस ने ईश्वर को सर्वत्र बताया, चाहे वह निर्जीव हो या सजीव ईश्वर सर्वत्र विराजमान रहते हैं।

उनके प्रवचन से प्रभावित एक भावुक व्यक्ति ईश्वर को सर्वत्र देखने लगा। पत्थर, पौधे, जीव-जंतु सभी में उसे ईश्वर के दर्शन होने लगे। एक समय की बात है, जब वह पुनः गुरु परमहंस से मिलने के लिए जंगल के रास्ते आ रहा था तभी रास्ते में एक हाथी मिला। हाथी पर महावत सवार था वह दूर से आदमी को कहता रहा हट जाओ, वरना हाथी नुकसान पहुंचा सकता है। किंतु उस पर गुरु का इतना प्रभाव था वह हाथी में ईश्वर को देख रहा था।

Maha purush ki Kahani

वह हाथ जोड़कर हाथी के समक्ष खड़ा हो गया, हाथी ने उसे अपने सूंड में लपेटा और बड़े जोर से पटका। वह चोट इतनी दर्दनाक थी कि वह मूर्छित होकर वही लेट गया। आंख खुली तो सामने गुरु परमहंस अपने शिष्यों के साथ खड़े थे।

गुरु के पूछने पर उस व्यक्ति ने बताया उसे हाथी में ईश्वर दिख रहे थे इसलिए वह हाथ जोड़कर वहां खड़ा हो गया। उनसे भयभीत नहीं हुआ। इस पर गुरु चुप हुए तभी उनके शिष्य विवेकानंद नहीं बताया आपको हाथी में ईश्वर नजर आया किंतु महावत में ईश्वर नजर नहीं आया? जो आपकी रक्षा करने के लिए आपको बार-बार प्रेरित कर रहा था। वह सामने से हट जाओ कहता रहा, किंतु आपने ईश्वर के इशारे को नहीं समझा। ईश्वर की पहचान अपने विवेक से भी की जाती है।

स्वामी विवेकानंद की बात सुनकर वह व्यक्ति धन्य हुआ और अपने नादानी में किए हुए कार्य को समझ गया।

6 धैर्य की कमी

अपने शिष्यों के साथ स्वामी जी धार्मिक चर्चा के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान जाया करते थे। उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी, उनसे कथा सुनने और शास्त्रार्थ करने के लिए लोग समय निकालकर कई दिनों की यात्रा तय करके आते थे। ऐसी ही एक धर्म चर्चा के लिए स्वामी जी को दूर गांव जाना था, उनके साथ उनके शिष्यों की टोली भी हुआ करती थी जो छोटे-छोटे गांव में जाकर ईश्वर और मानव के आधारभूत सिद्धांतों को बताया करते थे।

एक दिन जब स्वामी जी ज्ञान चर्चा के लिए जा रहे थे तब उनके शिष्य भी उनके साथ थे रास्ते में उनके शिष्यों ने छोटे-छोटे गड्ढे देखें जो संभवत कुएं के आकार के थे। शिष्यों को वह गड्ढे अचंभित कर रहे थे, उनमें से एक शिष्य ने स्वामी जी से इन गड्ढों का रहस्य जानना चाहा। इसपर स्वामी जी ने बताया यह गड्ढे किसी जल्दबाजी में कार्य करने वाले व्यक्ति ने खोदे है, जिसमें धैर्य की कमी कूट-कूट कर थी।  उस व्यक्ति में परिश्रम करने की क्षमता तो थी, किंतु धैर्य की कमी से वह अपने कार्य को सफल नहीं कर पाता। शिष्यों के अनुरोध पर स्वामी जी ने विस्तार से इसका रहस्य बताया।

जो व्यक्ति कुआं खोद रहा था उसमें धैर्य की अपार कमी थी। वह परिश्रम कर एक गड्ढे को ठीक से खोदता तो पानी उसी स्थान पर मिल जाता, किंतु उसमें धैर्य की कमी होने के कारण वह सैकड़ों गड्ढे खोदता रहा, फिर भी उसे पानी नहीं मिला शिष्यों ने गुरु के उपदेश को अपने दिलो-दिमाग में धारण किया और हर्षित मन से आगे की ज्ञान चर्चा के लिए चल पड़े।

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Final Words

I hope Swami Vivekananda stories in Hindi with moral values must be like by you. Please comment below your thoughts about it in the comment section.

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ऐसे कुछ ही विद्वान होते हैं जो अपने जीवन को जन कल्याण के लिए समर्पित करते हैं, उनमें से एक स्वामी विवेकानंद थे। जिन्होंने अपने राष्ट्र और संस्कृति के उत्थान के लिए आजीवन प्रयत्न किया। उनके ऊर्जा और राष्ट्रभक्ति को देखते हुए युवा विशेष रूप से प्रेरित हुए आज उन्हें अपना आदर्श मानते हैं और उनसे अपने जीवन के उद्देश्यों को समझने का प्रयत्न करते हैं।

स्वामी जी ने बेहद ही कम आयु में वह कार्य किया जो बेहद ही कम देखने को मिलते हैं। स्वामी जी बौद्धिक रूप से जितने मजबूत थे उतने ही शारीरिक रूप से मजबूत थे वह युवाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत रहने के लिए प्रेरित करते थे क्योंकि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है इसलिए वह अध्यात्म और भौतिक के संगम थे। उन्होंने समाज में फैली हुई बुराई तथा कुप्रथा को दूर करने के लिए समाज के बीच रहकर कार्य किया।

आशा है उपरोक्त लेख आपको पसंद आया हो अपने सुझाव विचार कमेंट बॉक्स में लिखें।

4 thoughts on “स्वामी विवेकानंद जी की कहानियां – Swami vivekananda stories in hindi”

This post on Swami Vivekananda is really a great article and a great read for me. Thank you for writing such article

Swami Vivekananda Hindi stories impressed me and all should students learned this story in free time

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1Hindi

स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi

इस लेख में आप स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi पढ़ेंगे। जिसमें आप उनका जन्म, प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा, महान कार्य तथा मृत्यु के विषय में पढ़ेंगे।

स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू सन्यासी थे जो श्री रामकृष्ण के प्रत्यक्ष शिष्य थे। उन्हें भगवान का रूप माना जाता है। विवेकनद जी का भारतीय योग और पश्चिम में वेदांत दर्शन के ज्ञान को बांटने का बहुत ही अहम योगदान है। वर्ष 1893 में उन्होंने शिकागो में विश्व धर्म संसद के उद्घाटन में एक बहुत ही शक्तिशाली भाषण दिया जिसमें उन्होंने विश्व के सभी धर्मों में एकता का मुद्दा उठाया।

Table of Content

विवेकानंद ने पारंपरिक ध्यान का दर्शन दिलाया और निस्वार्थ सेवा को समझाया जिसे कर्म योग कहा जाता है। विवेकनद ने भारतीय महिलाओं के लिए मुक्ति और बुरे और बुरे जाती व्यवस्था को अंत करने का वकालत किया।

भारतीय लोगों और भारत देश का आत्मविश्वास बढाने में उनका बहुत ही अहम हाथ रहा और बाद मैं बहुत सारे राष्ट्रवादी नेताओं ने यह भी बताया की वे विवेकनद जी के सुविचारों और व्यक्तित्व से बहुत ही प्रेरित थे।

विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन Early life of Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 कलकत्ता, बंगाल, ब्रिटिश भारत मैं एक परम्परानिष्ठ हिन्दू परिवार में हुआ था। उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। एक बच्चे के रूप में भी विवेकानंद में असीम उर्जा था और वह जीवन के कई पहलुओं से मोहित हो गए थे।

उन्होंने इश्वर चन्द्र विद्यासागर मेट्रोपोलीटैंट इंस्टीट्यूशन से अपनी पश्चिमी शिक्षा प्राप्त की। पढाई में वह अच्छी तरह से पश्चिमी और पूर्वी दर्शनशास्त्र में निपुण हो गये। उनके शिक्षक यह टिप्पणी किया करते थे की विवेकानंद में एक विलक्षण स्मृति और जबरदस्त बौद्धिक क्षमता थी।

स्वामी विवेकानंद बहुत बुद्धिमान थे और वे पूर्व – पश्चिमी दोनों प्रकार के साहित्य में निपूर्ण थे। विवेकानंद विशेष रूप से पश्चिम के तर्कसंगत तरीके को पसंद करते थे जिसके कारण धार्मिक अंधविश्वासियों को निराशा भी हुई। इस चीज के कारण स्वामी विवेकानंद ब्राह्मो समाज से जुड़े।

ब्राह्मो समाज एक आधुनिक हिन्दू अन्दोलत था जिसमें उससे जुड़े लोगों ने भारतीय समाज और जीवन को पुनर्जीवित करने की मांग की और अध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ावा दिया। उन्होंने चित्र और मूर्ति पूजा जा विरोध किया।

हालाकिं ब्राह्मो समाज की समजदारी विवेकानंद को उतना आध्यात्मिकता नहीं दे सका। बहुत ही छोटी उम्र से हीउनके जीवन में अध्यात्मिक अनुभवों की शुरुवात हो गयी थी और 18 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने मन में “भगवान के दर्शन” पाने का एक भारी इच्छा बना लिया था।

श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद Ramakrishna Paramahansa and Swami Vivekananda

शुरुवात में कई बातों में रामकृष्ण परमहंस जी के विचार विवेकनंद से अलग थे। रामकृष्ण परमहंस जी एक अशिक्षित और साधारण ग्रामीण व्यक्ति थे जिन्होंने एक स्थानीय काली मंदिर में एक पद को लिया और वहां रहते थे तब भी उनके साधारण रूप में भी एक अत्याधुनिक अध्यात्मिक तेज़ दीखता था।

वे अपने मंदिर के माता काली के समक्ष तीव्र साधना करते थे और रामकृष्ण जी ने ना सिर्फ हिन्दू रसम रिवाज़ का पालन किया बल्कि सभी मुख्य धर्मों के आध्यात्मिक पथ को भी अपनाया। उनका यह मानना था कि सभी धर्मों का एक ही लक्ष्य है वो है एकता के साथ अनंत की खोज।

विवेकानंद के अध्यात्मिक शक्ति के विषय में रामकृष्ण को जल्द यह पता चल गया और जल्द ही उनका ध्यान विवेकानंद के ऊपर हुआ जो पहले रामकृष्ण के विचारों को सही तरीके से समझ नहीं पाते थे। विवेकानंद शुरुवात में रामकृष्ण के विचारों का विश्वास भी नहीं करते थे और उनके उपदेशों को बार-बार पूछते थे और उनकी शिक्षा के प्रति बहस भी करते थे।

हलाकि बाद में श्री रामकृष्ण परमहंस जी के सकारात्मक विचारों ने विवेकानंद के हृदय को पिघला दिया और वो भी रामकृष्ण से उत्पन्न होने वाले वास्तविक आध्यात्मिकता का अनुभव करने लगे। लगभग 5वर्षों के अवधि के लिए, विवेकनद को सीधे मास्टर श्री रामकृष्ण जी से सिखने का मौका मिला। उनसे शिक्षा लेने के बाद स्वामी विवेकानंद को चेतना और समाधी के गहरे स्थिति का अनुभव हुआ।

विवेकानंद ने अपने गुरु से जीवन भर इस प्रकार के निर्वाण के परमानंद का अनुभव प्रदान करने के लिए पुछा। परन्तु श्री रामकृष्ण का उत्तर आया – मेरे लड़के, मुझे लगता है तुम्हारा जन्म कुछ बहुत बड़ा ही करने के लिए हुआ है।

रामकृष्ण के मृत्यु के बाद, अन्य शिष्यों ने विवेकानंद को उनका नेतृत्व करने के लिए कहा ताकि वे भी रामकृष्ण जी के अध्यात्मिक  विचारों से अवगत हो सकें। हलाकि विवेकानंद के लिए व्यक्तिगत मुक्ति काफी नहीं था उनका ध्यान तो गरीब, भूखे लोगों की और था। विवेकानंद जी का कहना था मात्र मानवता से ही इश्वर या भगवान् को पाया जा सकता है।

कई वर्षों के तप और ध्यान के पश्चात् स्वामी विवेकानंद ने भारत के कई पवित्र स्थानों का भ्रमण करना शुरू कर दिया। उसके बाद वे अमेरिका – विश्व धर्म संसद, सन्यासी का भेस धारण कर गेरुआ वस्त्र पहन कर गए।

विश्व धर्म संसद में विवेकानंद का भाषण Vivekananda Speech– World Parliament of Religions.

स्वामी विवेकानंद ने साल 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद के उद्घाटन में एक बहुत ही शक्तिशाली भाषण दिया जिसमें उन्होंने विश्व के सभी धर्मों में एकता का मुद्दा उठाया।

उद्घाटन समारोह में विवेकानंद आखरी के कुछ भाषण देने वालों में से एक थे।  उनसे पहले भाषण देने वाले व्यक्ति ने अपने स्वयं के धर्म का अच्छाई और विशेष चीजों के बारे में बताया परन्तु स्वामी विवेकानंद ने सभी दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि उनका दृष्टिकोण मात्र  इश्वर के समक्ष सभी धर्मों की एकता है।

. ( see Speech to Parliament )

उन्होंने अपना भाषण कुछ इन शब्दों में शुरू किया –

Sisters and Brothers of America, It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us. I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world; . . .

स्वामी विवेकानंद हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए चीन गए थे। लेकिन विवेकानंद ने अपने धर्म को बड़ा और अच्छा दिखाने का कोई कोशिश नहीं किया बल्कि उन्होंने वहां विश्व धर्म सद्भाव और मानवता के प्रति आध्यात्मिकता भाव को व्यक्त किया।

The New York Herald ने विवेकानंद के विषय में कहा –

He is undoubtedly the greatest figure in the Parliament of Religions. After hearing him we feel how foolish it is to send missionaries to this learned nation. निश्चित रूप से वो धर्म संसद में सबसे ज़बरदस्त व्यक्ति थे। उन्हें सुनने के बाद हम यह एहसास कर सकते हैं कि यह कितना मुर्खता है की हम अपने धर्म-प्रचारक इतने शिक्षित देश में भेजते हैं।

अमरीका में विवेकानंद ने अपने कुछ करीबी शिष्यों को ट्रेनिंग भी देना शुरू किया ताकि वे वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार कर सकें। उन्होंने अपने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अमरीका और ब्रिटेन दोनों जगह छोटे सेंटर शुरू कर दिए। विवेकानंद को ब्रिटेन में भी कुछ ऐसे लोग मिले जो वेदांत की शिक्षा को लेने में इच्छुक हुए।

मिस मार्गरेट नोबल उन्ही में से एक ध्यान देने वाला नाम था जिसका नाम बाद में मिस निवेदिता पड़ा। वह आयरलैंड की रहनेवाली थी जो विवेकनद की एक शिष्या थी। उन्होंने आपना पूरा जीवन भारतीय लोगो के लिए समर्पण कर दिया। पश्चिमी देशों में कुछ वर्ष समय बिताने के बाद विवेकानंद भारत वापस आगए। सभी लोगों ने उनका उत्साहपूर्ण स्वागत किया।

भारत लौटने के बाद स्वामी विवेकानंद ने भारत में अपने मठों का पुनर्गठन किया और अपने वेदान्तिक सिधान्तों के सच्चाई का उपदेश देना शुरू कर दिया। उन्होंने निःस्वार्थ सेवा के फायदों के बारे में भी बताया।

मृत्यु Death

4 जुलाई , 1902, बेलूर, भारत में 39 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद निधन हो गया। पर अपने इस जीवन के छोटे अवधि में भी वो बहुत कुछ सिखा कर गए जो आज तक पूरे विश्व को याद है। इसी कारण स्वामी विवेकानंद जी को आधुनिक भारत के संरक्षक संत का नाम दिया गया।

4 thoughts on “स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi”

He is real hero of world

Yes he Is a real hero of world

very nice, bhut hi badiya trike se btaya aapne thanks

You have written a very good article. You have given very interesting information about Swami Vivekananda. Here you have explained all the facts very beautifully.

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