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अभिव्यक्ति की आजादी पर निबंध (Freedom of Speech Essay in Hindi)

अभिव्यक्ति की आजादी भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों में से एक है। दुनिया भर के कई देश अपने नागरिकों को उनके विचारों और सोच को साझा करने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी की अनुमति देते हैं। भारत सरकार और अन्य कई देश अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करते हैं। ऐसा विशेष रूप से जहाँ-जहाँ लोकतांत्रिक सरकार है उन देशों में है।

अभिव्यक्ति की आजादी पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Freedom of Speech in Hindi, Abhivyakti ki Azadi par Nibandh Hindi mein)

अभिव्यक्ति की आजादी पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

दुनिया भर के अधिकांश देशों के नागरिकों को दिए गए मूल अधिकारों में अभिव्यक्ति की आजादी शामिल है। यह अधिकार उन देशों में रहने वाले लोगों को कानून द्वारा दंडित होने के डर के बिना अपने मन की बात करने के लिए सक्षम बनाता है।

अभिव्यक्ति की आजादी की उत्पत्ति

अभिव्यक्ति की आजादी की अवधारणा बहुत पहले ही उत्पन्न हुई थी। इंग्लैंड के विधेयक अधिकार 1689 ने संवैधानिक अधिकार के रूप में अभिव्यक्ति की आजादी को अपनाया और यह अभी भी प्रभाव में है। 1789 में फ्रेंच क्रांति ने मनुष्य और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा को अपनाया। इसके साथ ही एक स्वतंत्र नतीजे के रूप में अभिव्यक्ति की आजादी की पुष्टि हुई। अनुच्छेद 11 में अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की घोषणा कहती है:

“सोच और विचारों का नि:शुल्क संचार मनुष्य के अधिकारों में सबसे अधिक मूल्यवान है। हर नागरिक तदनुसार स्वतंत्रता के साथ बोल सकता है, लिख सकता है तथा अपने शब्द छाप सकता है लेकिन इस स्वतंत्रता के दुरुपयोग के लिए भी वह उसी तरह जिम्मेदार होगा जैसा कि कानून द्वारा परिभाषित किया गया है”।

मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 1948 में अपनाई गई थी। इस घोषणा के तहत यह भी बताया गया है कि हर किसी को अपने विचारों और राय को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी अब अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मानवाधिकार कानून का एक हिस्सा बन गया हैं।

अभिव्यक्ति की आजादी – लोकतंत्र का आधार

एक लोकतांत्रिक सरकार अपने देश की सरकार को चुनने के अधिकार सहित अपने लोगों को विभिन्न अधिकार देती है। अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के आधार के रूप में जानी जाती है।

अगर निर्वाचित सरकार शुरू में स्थापित मानकों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर रही है और नागरिकों को इससे सम्बंधित मुद्दों पर अपनी राय देने का अधिकार नहीं है तो सरकार का चयन ही फायदेमंद नहीं है। यही कारण है कि लोकतांत्रिक राष्ट्रों में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार एक जरूरी अधिकार है। यह लोकतंत्र का आधार है।

अभिव्यक्ति की आजादी लोगों को अपने विचारों को साझा करने और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की शक्ति प्रदान करती है।

इसे यूट्यूब पर देखें : Abhivyakti ki Azadi par Nibandh

Abhivyakti ki Ajadi par Nibandh – निबंध 2 (400 शब्द)

अभिव्यक्ति की आजादी को मूल अधिकार माना जाता है। हर व्यक्ति को यह हक़ मिलना चाहिए। यह भारतीय संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को दिए गए सात मौलिक अधिकारों में से एक है। यह स्वतंत्रता के अधिकार का एक हिस्सा है जिसमें अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार, आंदोलन की स्वतंत्रता, निवास की स्वतंत्रता, किसी पेशे का अभ्यास करने का अधिकार, संघ या सहकारी समितियों के गठन की स्वतंत्रता, दोषसिद्धि अपराधों में बचाव का अधिकार और कुछ मामलों में गिरफ्तारी के खिलाफ संरक्षण के लिए।

अभिव्यक्ति की ज़रुरत क्यों है ?

नागरिकों के साथ-साथ राष्ट्र के भी पूरे विकास और प्रगति के लिए अभिव्यक्ति की आजादी आवश्यक है। जो व्यक्ति बोलता है या सुनता है उस पर प्रतिबंध लगाकर किसी व्यक्ति के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है। इससे परेशानी और असंतोष पैदा हो सकता है जिससे तनाव बढ़ जाता है। असंतोष से भरे लोगों की वजह से कोई भी राष्ट्र सही दिशा में कभी नहीं बढ़ सकता।

अभिव्यक्ति की आजादी चर्चाओं को निमंत्रण देती है जो समाज के विकास के लिए आवश्यक विचारों के आदान-प्रदान में मदद करती है। यह देश की राजनीतिक व्यवस्था के बारे में एक राय व्यक्त करने के लिए आवश्यक है। जब सरकार को यह पता चल जाता है कि उसके क़दमों पर निगरानी रखी जा रही है और इसे द्वारा उठाए जा रहे कदमों को चुनौती दी जा सकती है या आलोचना की जा सकती है तब सरकार और अधिक जिम्मेदारी से कार्य करती है।

अभिव्यक्ति की आजादी – दूसरे अधिकारों से संबंधित

अभिव्यक्ति की आजादी अन्य अधिकारों से निकटता से संबंधित है। यह मुख्य रूप से नागरिकों को दिए गए अन्य अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है। यह केवल तब होता है जब लोगों को स्वतंत्र रूप से अपने विचार व्यक्त करने और बोलने का अधिकार होता है तो वे गलत होने वाली किसी भी चीज के खिलाफ अपनी आवाज उठा सकते हैं। यह चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने की बजाए लोकतंत्र में सक्रिय भाग लेने के लिए सक्षम बनाती है। इस प्रकार वे दूसरे अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। जैसे बराबरी का अधिकार, धर्म के अधिकार की स्वतंत्रता, शोषण के खिलाफ अधिकार और गोपनीयता का अधिकार सिर्फ तभी जब उनके पास अभिव्यक्ति की आजादी और अभिव्यक्ति का अधिकार है।

यह उचित निर्णय के अधिकार से भी निकटता से संबंधित है। अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी एक व्यक्ति को एक मुकदमे के दौरान स्वतंत्र रूप से अपनी बात कहने में सक्षम बनाता है जो अत्यंत आवश्यक है।

अभिव्यक्ति की आजादी किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की शक्ति देती है। उन देशों की सरकारों को, जो सूचना का अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी पेश करती हैं, नागरिकों की सोच और विचारों का स्वागत करना तथा बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए।

निबंध 3 (500 शब्द)

अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी भारत के नागरिकों की गारंटी के मूल अधिकारों में से एक है। यह स्वतंत्रता के अधिकार के तहत आती है जो भारतीय संविधान में शामिल सात मौलिक अधिकारों में से एक है। अन्य अधिकारों में बराबरी का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, गोपनीयता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार और संवैधानिक उपाय के अधिकार शामिल हैं।

भारत में अभिव्यक्ति की आजादी

भारत का संविधान हर नागरिक को स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति प्रदान करता है हालांकि कुछ सीमाओं के साथ। इसका मतलब यह है कि लोग स्वतंत्र रूप से दूसरों के बारे में अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं साथ ही सरकार, राजनीतिक प्रणाली, नीतियों और नौकरशाही के प्रति भी। हालांकि नैतिक आधार, सुरक्षा और उत्तेजना पर अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित किया जा सकता है। भारतीय संविधान में स्वतंत्रता के अधिकार के तहत देश के नागरिकों के पास निम्नलिखित अधिकार हैं:

  • स्वतंत्रता से बोलने तथा अपनी राय और विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की आज़ादी।
  • किसी भी हथियार और गोला-बारूद के बिना शांति से इकट्ठे होने की स्वतंत्रता।
  • समूहों, यूनियनों और संघों के लिए स्वतंत्रता।
  • स्वतंत्र रूप से देश के किसी भी हिस्से में घूमने के लिए।
  • देश के किसी भी हिस्से में बसने के लिए स्वतंत्रता।
  • किसी पेशे का अभ्यास करने की स्वतंत्रता।
  • किसी भी तरह के व्यापार या उद्योग में शामिल होने की स्वतंत्रता बशर्ते वह गैरकानूनी ना हो।

भारत सही अर्थों में एक लोकतांत्रिक देश के रूप में जाना जाता है। यहां के लोगों को सूचना का अधिकार है और सरकार की गतिविधियों पर वे अपनी राय भी दे सकते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी मीडिया को उन सभी ख़बरों को साझा करने की शक्ति देती है जो देश में और साथ ही दुनिया भर में चल रही है। यह लोगों को अधिक जागरूक बनाती है और उन्हें दुनिया भर से नवीनतम घटनाओं के साथ जुड़ा हुआ रखती है।

अभिव्यक्ति की आजादी का कमज़ोर पहलू

जहाँ अभिव्यक्ति की आजादी एक व्यक्ति को अपनी राय और विचारों को साझा करने और अपने समाज और साथी नागरिकों की भलाई के लिए योगदान करने का मंच प्रदान करती है वही इसके साथ कई कमज़ोर पहलू भी जुड़े हुए हैं। बहुत से लोग इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हैं। वे सिर्फ अपने विचारों को व्यक्त नहीं करते बल्कि दूसरों पर भी उन्हें लागू करते हैं। वे गैरकानूनी गतिविधियां करने के लिए लोगों का समूह बनाते हैं। मीडिया अपने विचारों और राय को व्यक्त करने के लिए भी स्वतंत्र है। कभी-कभी उनके द्वारा साझा की जाने वाली जानकारी आम जनता में आतंक पैदा करती है। अलग-अलग सांप्रदायिक समूहों की गतिविधियों से संबंधित कुछ समाचारों ने भी अतीत में सांप्रदायिक दंगों को जन्म दिया है। इससे समाज की शांति और सद्भाव में बाधा आ गई है।

इंटरनेट ने अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी बढ़ा दी है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के आगमन ने इसे और आगे बढ़ाया है। लोग इन दिनों हर चीज़ पर और सब कुछ पर अपने विचार देने के लिए उत्सुक है चाहे उन्हें इसके बारे में ज्ञान हो या नहीं। वे बिना किसी की भावनाओं की कद्र करते हुए या उनके मान-सम्मान का लिहाज़ करते हुए नफरतपूर्ण टिप्पणियां लिखते हैं। यह निश्चित रूप से इस आजादी का दुरुपयोग कहा जा सकता है और इसे तुरंत बंद होना चाहिए।

प्रत्येक देश को अपने नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करनी चाहिए। हालांकि इसे पहले स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए ताकि यह व्यक्तियों के साथ-साथ समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद कर सके और यह सामान्य कार्य को बाधित ना करे।

निबंध 4 (600 शब्द)

अधिकांश देश अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी देते हैं ताकि वे अपने विचारों को साझा कर सकें और अलग-अलग मामलों पर अपनी राय दे सकें। यह एक व्यक्ति के साथ ही समाज के विकास के लिए आवश्यक माना जाता है। जहाँ अधिकतर देशों ने अपने नागरिकों को यह आजादी प्रदान की है वहीँ कई देशों ने इससे दूरी बना रखी है।

कई देश अभिव्यक्ति की आजादी देते हैं

न केवल भारत बल्कि दुनिया के कई देश अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार देते हैं। मानव अधिकारों की संयुक्त राष्ट्र सार्वभौमिक घोषणा वर्ष 1948 में शामिल कथन इस प्रकार है:

“प्रत्येक व्यक्ति को राय और अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है। इस अधिकार में हस्तक्षेप के बिना अपनी बात रखने की स्वतंत्रता और किसी भी मीडिया के माध्यम से सूचनाओं और विचारों को तलाशने और प्राप्त करने के लिए स्वतंत्रता शामिल है।”

दक्षिण अफ्रीका, सूडान, पाकिस्तान, ट्यूनीशिया, हांगकांग, ईरान, इज़राइल, मलेशिया, जापान, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, थाईलैंड, न्यूजीलैंड, यूरोप, डेनमार्क, फिनलैंड और चीन कुछ ऐसे देशों में से हैं जो अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति देने और अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करते हैं।

एक तरफ तो इन देशों ने अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार दिया है वही दूसरी तरफ ये अधिकार किस हद तक जनता और मीडिया को प्रदान किए गए है, यह हर देश के हिसाब से अलग-अलग है।

जिन देशों में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है

ऐसे कई देश हैं जो अपने नागरिकों को पूर्ण नियंत्रण बनाए रखने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार नहीं देते हैं। यहां इनमें से कुछ देशों पर एक नजर डाली गई है:

  • उत्तर कोरिया: यह देश अपने नागरिकों के साथ-साथ अपनी मीडिया को भी अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान नहीं करता है। इस प्रकार सरकार न केवल लोगों के विचारों और राय को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं देती बल्कि इसके नागरिकों की जानकारी भी रखती है।
  • सीरिया: सीरिया की सरकार अपने आतंकवाद के लिए जानी जाती है। यहां के लोग अपने मूल मानवीय अधिकार, जो स्वतंत्रता व अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति का अधिकार है, से वंचित हैं।
  • 3 . क्यूबा: क्यूबा एक और देश है जो अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान नहीं करता है। क्यूबा के नागरिकों को सरकार या किसी भी राजनीतिक दल की गतिविधियों पर कोई नकारात्मक टिप्पणी देने की अनुमति नहीं है। यहां पर सरकार ने इंटरनेट उपयोग पर भी प्रतिबंध लगा रखा है ताकि लोगों को इसके माध्यम से कुछ भी व्यक्त करने का मौका न मिले।
  • बेलारूस: यह एक ऐसा देश है जो बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान नहीं करता है। लोग अपनी राय बता नहीं सकते या सरकार के काम की आलोचना नहीं कर सकते। बेलारूस में सरकार या किसी राजनीतिक मंत्री की आलोचना करना कानूनन अपराध है।
  • ईरान: ईरान के नागरिकों को यह पता नहीं है कि अपनी राय व्यक्त करने और जनता के बीच अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से साझा करना कैसा होता है। कोई भी ईरानी नागरिक सार्वजनिक कानूनों या इस्लामी मानकों के खिलाफ किसी भी तरह का असंतोष व्यक्त नहीं कर सकता।
  • बर्माः बर्मा की सरकार का मत है कि अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी अनावश्यक है। नागरिकों से कहा जाता है कि वे अपने विचार या राय को व्यक्त न करें खासकर यदि वह किसी नेता या राजनीतिक दल के खिलाफ हैं। बर्मा में मीडिया का संचालन सरकार द्वारा किया जाता है।
  • लीबिया: इस देश के अधिकांश लोग यह नहीं जानते हैं कि अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी वास्तव में क्या है। लीबिया की सरकार अपने नागरिकों पर अत्याचार करने के लिए जानी जाती है। इंटरनेट के ज़माने में दुनिया भर के लोग किसी भी मामले पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन इस देश में नहीं। इंटरनेट पर सरकार की आलोचना के लिए लीबिया में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी एक मूल मानव अधिकार है जो प्रत्येक देश के नागरिकों को दी जानी चाहिए। यह देखना बहुत दुखदाई है कि किस प्रकार कुछ देशों की सरकार अपने नागरिकों को ये आवश्यक मानव अधिकार भी प्रदान नहीं करती है और अपने स्वयं के स्वार्थी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उनका दमन करती है।

Essay on Freedom of Speech in Hindi

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निबंध | Essay On Freedom Of Speech In Hindi

Essay On Freedom Of Speech In Hindi अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निबंध : हमारा भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं, हमारा संविधान नागरिकों को कई प्रकार के मौलिक अधिकार देता है जिनमें समानता, स्वतंत्रता, धार्मिक आजादी और अभिव्यक्ति की आजादी मुख्य हैं.

आज के निबंध में हम फ्रीडम ऑफ़ स्पीच क्या है इसके पक्ष विपक्ष में तर्क वितर्क आलोचना आदि बिन्दुओं को जानेगे.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निबंध Essay On Freedom Of Speech In Hindi

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निबंध | Essay On Freedom Of Speech In Hindi

नवजात शिशु का क्रन्दन बाहरी दुनियां के प्रति उसकी प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति हैं. अभिव्यक्ति की इच्छा किसी व्यक्ति की भावनाओं, कल्पनाओं एवं चिन्तन से प्रेरित हैं और अपनी अपनी क्षमता के अनुरूप होती हैं.

अपनी भावना या मत को अभिव्यक्त करने की आकांक्षा कभी कभी इतनी मजबूत बन जाती हैं कि व्यक्ति अकेला होने पर भी खुद से बात करने लगता हैं, मगर अभिव्यक्ति की निर्दोषता और सदोषता का प्रश्न तभी उठता हैं, जब अभिव्यक्ति बातचीत का रूप लेती हैं व्यक्तियों के बीच या समूहों के बीच.

हमारे मौलिक अधिकारों में अभिव्यक्ति की आजादी का मौलिक अधिकार शामिल किया गया हैं. इसका सरल सा अर्थ यह है कि हम अपने हक हकूक के लिए आवाज उठा सकते हैं.

अपने खिलाफ हो रहे अन्याय का खुलकर प्रतिरोध कर सकते हैं. बोलने की आजादी का दायरा भी सिमित रखा गया हैं, हम केवल मर्यादा में बने रहकर ही आवाज उठा सकते हैं.

अभिव्यक्ति की आजादी की उत्पत्ति

अगर थोड़ा अतीत में झांके तो बोलने की आजादी की सबसे पहले मांग इंग्लैंड में की गई थी, तदोपरांत वहां वर्ष 1689 में मौलिक अधिकार के रूप में अभिव्यक्ति की आजादी को मान्यता मिली.

इस स्वतंत्रता के तहत सभी नागरिकों को अपने विचारों और भावनाओं को बिना शासकीय बंदिश के अभिव्यक्त करने की पूर्णरूपेण आजादी प्रदान की गई हैं.

यह अधिकार उसे लिखित मुद्रित रूप में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की आजादी देता हैं. अन्य मौलिक अधिकारों की भांति इसके उल्लंघन की स्थिति में व्यक्ति कोर्ट जा सकता हैं.

भारतीय संविधान के मूल अधिकारों में अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को सार्वभौमिक रूप से सर्वसहमति से स्वीकार किया गया था.

बोलने की आजादी की सीमाएं

वैसे तो प्रत्येक संवैधानिक अधिकार के साथ कुछ उपबन्ध बनाए गये हैं जो ये सीमा निर्धारित करते है कि किस हद तक उस अधिकार का उपयोग मर्यादापूर्ण हैं. देश के संविधान का अनुच्छेद 21 अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी देता हैं मगर कुछ युक्तियुक्त निर्बंधनों के साथ.

वो इस तरह की अगर एक इंसान की अभिव्यक्ति की आजादी का प्रभाव देश की एकता अखंडता और सम्प्रभुता को प्रभावित करने वाला हो तो अथवा सामाजिक सौहार्द, न्यायालय की अवमानना से जुड़ा हो तो उसे प्रतिबंधित किया गया हैं.

बोलने की आजादी के नाम पर किसी को गाली देने अथवा अपमानित करने की वकालत भारतीय संविधान नहीं करता हैं.

अभिव्यक्ति की आजादी जरूरत क्यों है?

मनुष्य अन्य सभी जीवों की तुलना में इसलिए श्रेष्ठ हैं क्योंकि उनके पास विचार करने की शक्ति हैं तथा वह अपने भावों को किसी भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करने में समक्ष हैं. समतामूलक समाज में यह आवश्यक हो जाता हैं कि प्रत्येक नागरिक को अपनी बात कहने का अधिकार हो.

राजशाही में इनकी अवहेलना की जाती थी, अत्याचार के खिलाफ बोलने वालों को डरा धमका कर चुप करा दिया जाता था. मगर आधुनिक लोकतांत्रिक समाज के समुचित विकास के लिए नागरिकों को सर्वांगीण विकास के मौके उपलब्ध कराने में अभिव्यक्ति की आजादी एक बड़ा पहलू हैं जो हर हालत में उपलब्ध होना ही चाहिए.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बदौलत ही दूसरों के विचारों को समझने उन पर चर्चा और आम सहमति बन सकती हैं, यही लोकतंत्र का बुनियादी आधार हैं.

राजनैतिक पार्टी हो या समाज जहाँ विभिन्नताएं है स्वभाविक हैं विचारों में भी अलग अलग राय हो सकती हैं अतः सभी को अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार दिए बिना समाज व देश की तरक्की नहीं की जा सकती.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग

अन्य संवैधानिक अधिकारों की तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के भी दुरूपयोग की पर्याप्त सम्भावनाएं रहती हैं. इसकी बड़ी वजह यह हैं कि बोलने की आजादी की सीमाएं न तो स्पष्ट परिभाषित है न इनके दुरूपयोग को रोकने के न कोई विशिष्ट प्रबंध हैं.

भारत में फ्रीडम ऑफ़ स्पीच और एक्सप्रेशन के नाम पर आए दिन देश द्रोही बाते आम हैं. हर दिन देश को तोड़ने वाली वाली बाते बड़े बड़े मंचों से केवल फ्रीडम के नाम से कही जाती हैं.

देश की सेना, प्रधानमंत्री, हिन्दू धर्म के बारे में आए दिन वैसे विवादित ब्यान दिए जाते हैं जिन्हें अधिकारों की चादर ओढकर छिपाने का छद्म व्यापार सभी के सामने हैं.

किसी भी समाज में नागरिकों के विचारों का दमन करना ठीक नहीं हैं. विचारों का खुला प्रवाह विकास की राह खोलता हैं. साथ ही किसी नागरिक को किस हद तक जाकर बोलने की आजादी होनी चाहिए, इन पर कठोर कानून बनाकर समुचित व्यवस्था बनाएं जाने की जरूरत हैं.

आज सोशल मिडिया अभिव्यक्ति का एक बड़ा माध्यम हैं. जहाँ पर अच्छे विचारों के साथ ही देश की एकता और सौहार्द को बिगाड़ने वाले भड़कीले भाषण भी देखने मिलते हैं.

समय आ गया हैं राष्ट्र को तोड़ने की नियत से कहे जाने वाले विचारों का दमन आवश्यक हैं साथ ही आम आदमी को राष्ट्रीय एकता, सुरक्षा, सम्प्रभुता के विषयों को छोडकर अन्य पर बोलने अपने विचार रखने की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए.

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essay on freedom of speech in hindi

यह लेख इंदौर इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ, इंदौर के छात्र Aditya Dubey ने लिखा है। इस लेख में लेखक ने भारत के संविधान के तहत परिभाषित अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन) की अवधारणा के साथ-साथ इसके महत्व और उन आधारों पर चर्चा की है जिन पर भारत सरकार द्वारा इसे प्रतिबंधित किया जा सकता है। इस लेख का अनुवाद Revati Magaonkar ने किया है।

Table of Contents

परिचय (इंट्रोडक्शन)

भाषण और अभिव्यक्ति (फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन) की स्वतंत्रता को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत परिभाषित किया गया है जिसमें कहा गया है कि भारत के सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। इस अनुच्छेद के पीछे का दर्शन भारत के संविधान की प्रस्तावना (प्रिएंबल) में दिया गया है- ‘जहां अपने सभी नागरिकों को उनके विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए एक गंभीर संकल्प किया जाता है। हालाँकि, इस अधिकार का प्रयोग भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत लगाए गए कुछ उद्देश्यों के लिए उचित प्रतिबंधों (संक्शन्स) के अधीन है।

essay on freedom of speech in hindi

भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुख्य तत्व क्या हैं (व्हाट आर द मैन एलीमेंट्स ऑफ़ स्पीच एंड एक्सप्रेशन)

ये वाक्/बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं:

  • यह अधिकार पूरी तरह से भारत के एक नागरिक के लिए उपलब्ध है, न कि अन्य देशों के व्यक्तियों यानी विदेशी नागरिकों के लिए।
  • अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत बोलने की स्वतंत्रता में किसी भी तरह के मुद्दे के बारे में अपने विचार और राय व्यक्त करने का अधिकार शामिल है और इसे किसी भी तरह के माध्यम से किया जा सकता है, जैसे मुंह के शब्दों से, लिखकर, छपाई द्वारा, चित्रांकन (पोर्ट्रेचर) के माध्यम से या किसी फिल्म के माध्यम से किया जा सकता है।
  • यह अधिकार सम्पूर्ण रूप से नहीं है क्योंकि यह भारत सरकार को ऐसे कानून बनाने की अनुमति देता है जो भारत की संप्रभुता और अखंडता (सोवर्गिनिटी एंड इंटिग्रिटी) या राज्य की सुरक्षा, या विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों (फ्रैंडली रिलेशन), शालीनता और नैतिकता (डीसेंसी एंड मोरालीटी) और अदालत की अवमानना (कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट), मानहानि और अपराध के लिए उकसाना यहां तक ​​कि सार्वजनिक व्यवस्था (पब्लिक आर्डर) से जुड़े मामलों में उचित प्रतिबंध लगा सकते हैं।  
  • किसी भी नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस तरह का प्रतिबंध राज्य की कार्रवाई से उतना ही लगाया जा सकता है जितना कि उसकी निष्क्रियता (इनेक्शन) से लगाया जा सकता है। इस प्रकार, यदि राज्य की ओर से अपने सभी नागरिकों को वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट) की गारंटी देने में विफलता पाई जाती है, तो यह भी अनुच्छेद 19 (1) (a) का उल्लंघन होगा।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कैसे महत्वपूर्ण है (हाउ इज फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन इज इंपॉर्टेंट)

भारत जैसे लोकतंत्र (डेमोक्रेटिक) में, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा (एक्रीडिटेशन) मुद्दों की स्वतंत्र चर्चा के द्वार खोलती है। भाषण की स्वतंत्रता पूरे देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मामलों पर जनमत के बनाने और प्रदर्शन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह अपने दायरे के भीतर, विचारों के प्रसार और आदान-प्रदान से संबंधित स्वतंत्रता, सूचना के प्रसार को सुनिश्चित करता है, जो बाद में, कुछ मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण (पॉइंट ऑफ व्यू) के साथ-साथ किसी की राय बनाने में मदद करता है और उन मामलों पर बहस को जन्म देता है जिनमें जनता शामिल होती है। जब तक अभिव्यक्ति राष्ट्रवाद, देशभक्ति और राष्ट्र प्रेम तक सीमित है, तब तक राष्ट्रीय ध्वज का उन भावनाओं की अभिव्यक्ति के रूप में उपयोग एक मौलिक अधिकार होगा।

भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका ने माना है और कहा है कि यह एक राय है कि किसी भी जानकारी को प्राप्त करने का अधिकार भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का एक और हिस्सा है और किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप (इंटरफेरेंस) के बिना किसी भी प्रकार की जानकारी को संप्रेषित (ट्रांसमिट) करने और प्राप्त करने का अधिकार एक महत्वपूर्ण है। इस अधिकार का पहलू ऐसा इसलिए है, क्योंकि कोई व्यक्ति पर्याप्त जानकारी प्राप्त किए बिना एक सूचित राय नहीं बना सकता है, या एक सूचित विकल्प (ऑप्शन) नहीं बना सकता है और सामाजिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक (कल्चरल) रूप से प्रभावी ढंग से भाग ले सकता है।

देश के किसी भी नागरिक को किसी भी प्रकार की सूचना प्रसारित करने के लिए प्रिंट माध्यम एक शक्तिशाली उपकरण है। इस प्रकार, संविधान के तहत किसी व्यक्ति के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की संतुष्टि के लिए मुद्रित सामग्री (प्रिंटेड मटेरियल) तक पहुंचना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि राज्य की ओर से वैकल्पिक सुलभ प्रारूपों (अल्टरनेटिव फॉर्मेट) में सामग्री के प्रिंट हानि वाले लोगों तक पहुंच को सक्षम करने के लिए विधायी प्रावधान (लेजिस्लेटिव प्रोविजन) करने में कोई विफलता पाई जाती है, तो यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित होगा और इस तरह की निष्क्रियता राज्य (इनएक्टिवीटी स्टेट ) संविधान (कंस्टीट्यूशन) के गलत स्थान पर गिर जाएगा। यह सुनिश्चित करना राज्य की ओर से एक दायित्व है कि कानून में पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं जो प्रिंट हानि वाले लोगों को सुलभ प्रारूपों में मुद्रित सामग्री तक पहुंचने में सक्षम बनाता है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत प्रेस की स्वतंत्रता की कोई अलग गारंटी नहीं है क्योंकि यह पहले से ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में शामिल है, जो देश के सभी नागरिकों को दी जाती है।

प्रेस की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है (व्हाट इज मींट बाय फ्रीडम ऑफ प्रेस)

भारत के संविधान में कहीं भी प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लेख नहीं है। हालाँकि, यह संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत निर्धारित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (हालांकि सीधे व्यक्त नहीं) के अर्थ के तहत एक अधिकार के रूप में मौजूद है। यदि लोकतंत्र का अर्थ यह है कि सरकार देश की जनता की है, जनता की है और जनता के लिए है, तो यह आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक को राष्ट्र की लोकतांत्रिक प्रक्रिया (डेमोक्रेटिक प्रोसेस) में सक्रिय रूप से भाग लेने का अधिकार हो। स्वतंत्र प्रेस के बिना कुछ मामलों पर मुक्त बहस और खुली चर्चा संभव नहीं है।

प्रेस की स्वतंत्रता में लोकतंत्र का एक स्तंभ शामिल है और वास्तव में यह लोकतांत्रिक संगठन की नींव पर बना हुआ है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई निर्णयों में यह माना गया है कि प्रेस की स्वतंत्रता भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक हिस्सा है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत कवर किया गया है, इसका कारण यह है कि प्रेस की स्वतंत्रता और कुछ नहीं बल्कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक पहलू है। इसलिए, यह ठीक ही समझा गया है कि प्रेस यह लोगों के विचारों को सभी तक पहुँचाने के लिए एक माध्यम माना जाता है और फिर भी इसे उन सीमाओं से जुड़े रहना पड़ता है जो संविधान द्वारा अनुच्छेद 19 (2) के तहत उन पर थोपी गई हैं।

मामला (केस)

इंडियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स (बॉम्बे) प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया.

इस मामले में यह देखने के बाद स्थापित किया गया था कि “प्रेस की स्वतंत्रता” शब्द का प्रयोग अनुच्छेद 19 के परिभाषा के तहत नहीं किया गया है, लेकिन यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के भीतर इसके सार के रूप में दिया गया है, और इसलिए, प्रेस की स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप (इंटर्फियरांस) नहीं हो सकता है जिसमें जनहित और सुरक्षा शामिल है। इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला गया कि किसी पत्रिका (मैगज़ीन) के सेंसरशिप को लागू करना या किसी समाचार पत्र को किसी भी मुद्दे के बारे में अपने विचारों को प्रकाशित करने से रोकना जिसमें जनहित शामिल है, ऐसा कृत्य प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध होगा।

वे कौन से आधार हैं जिन पर इस स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है (व्हाट आर द ग्राउंड्स ऑन व्हिच धिस फ्रीडम कैन बी रेस्ट्रिक्टेड)

ऐसे कई आधार हैं जिन पर राज्य द्वारा कुछ उचित प्रतिबंधों तक भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया जा सकता है। इस तरह के प्रतिबंधों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के खंड (क्लॉज) (2) के तहत परिभाषित किया गया है जो निम्नलिखित के तहत स्वतंत्र भाषण पर कुछ प्रतिबंध लगाता है:

  • राज्य की सुरक्षा
  • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
  • सार्वजनिक व्यवस्था
  • शालीनता और नैतिकता
  • न्यायालय की अवमानना
  • किसी अपराध के लिए उकसाना, और
  • भारत की संप्रभुता और अखंडता।

राज्य की सुरक्षा (सिक्युरिटी ऑफ़ स्टेट)

राज्य की सुरक्षा से जुड़े वर्गों में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ उचित प्रतिबंध (रिस्ट्रिक्शन) लगाए जा सकते हैं। ‘राज्य की सुरक्षा’ शब्द को ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ शब्द से अलग करने की आवश्यकता है क्योंकि वे समान हैं लेकिन उनकी तीव्रता (इंटेंसिटी) के मामले कई और भिन्न हैं। इसलिए, राज्य की सुरक्षा सार्वजनिक अव्यवस्था (पब्लिक डिसऑर्डर) के गंभीर रूपों को बताती है, इसका एक उदाहरण विद्रोह (रेबेलियन) हो सकता है, जैसे कि राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना, भले ही वह राज्य के एक हिस्से के खिलाफ हो, आदि।

केस : पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (एआईआर 1997 एससी 568)

यह मामला , देश में हो रहे टेलीफोन टैपिंग के लगातार मामलों के खिलाफ पीयूसीएल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी और इस प्रकार भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5(2) की वैधता को चुनौती दी गई। तब यह देखा गया कि “सार्वजनिक आपातकाल की घटना” और “सार्वजनिक सुरक्षा के हित में” धारा 5(2) के तहत दिए गए प्रावधानों (प्रोविजन) के आवेदन के लिए एक अनिवार्य शर्त है। यदि इन दोनों में से कोई भी शर्त मामले से अनुपस्थित है, तो भारत सरकार को इस धारा के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए, टेलीफोन टैपिंग अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन होगा जब तक कि यह अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के आधार पर नहीं आता है।

विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (फ्रैंडली रिलेशन विथ फोरेन स्टेटस्)

प्रतिबंध के लिए यह आधार 1951 के संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था। राज्य को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार है यदि यह अन्य राज्यों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों को नकारात्मक (नेगेटिव) रूप से प्रभावित कर रहा है।

सार्वजनिक व्यवस्था (पब्लिक ऑर्डर)

प्रतिबंध के लिए यह आधार संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 द्वारा भी जोड़ा गया था, यह रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (AIR 1950 SC 124) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से उत्पन्न स्थिति को पूरा करने के लिए किया गया था। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, सार्वजनिक व्यवस्था कानून, व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा से बहुत अलग है। ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ शब्द सार्वजनिक शांति, सार्वजनिक सुरक्षा और शांति की भावना को दर्शाता है। जो कुछ भी सार्वजनिक शांति को भंग करता है, बदले में, जनता को परेशान करता है। लेकिन सिर्फ सरकार की आलोचना (क्रिटिसिजम) से लोक व्यवस्था (पब्लिक ऑर्डर) भंग नहीं हो जाती। एक कानून जो किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को दुखाता है, उसे सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से वैध (वेलिड) और उचित प्रतिबंध माना गया है।

शालीनता और नैतिकता (डिसेंसी एंड मोरालिटी)

इन्हें भारतीय दंड संहिता 1860 (इंडियन पीनल कोड) की धारा 292 से 294 के तहत परिभाषित किया गया है, जो शालीनता और नैतिकता के आधार पर भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के उदाहरण बताता है, और यह अश्लील शब्दों (ऑब्सेंस वर्ड्स) की बिक्री या वितरण या प्रदर्शन (डिलीवरी ऑर डिस्प्ले) को प्रतिबंधित करता है।

न्यायालय की अवमानना (कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट)

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार किसी भी तरह से किसी व्यक्ति को अदालतों की अवमानना ​​करने की अनुमति नहीं देता है। अदालत की अवमानना ​​की अभिव्यक्ति को न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 2 के तहत परिभाषित किया गया है। ‘अदालत की अवमानना’ शब्द अधिनियम के तहत दीवानी अवमानना (सिविल कंटेंप्ट) ​​​​या आपराधिक अवमानना (क्रिमिनल कंटेंप्ट) ​​​​से संबंधित है।

मानहानि (डिफेमेशन)

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 का खंड (2) किसी भी व्यक्ति को ऐसा बयान देने से रोकता है जिससे समाज की नजर में दूसरे की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे। मानहानि भारत में एक गंभीर अपराध है और इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत परिभाषित किया गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अनिवार्य (मंडेटरी) रूप से पूर्ण नहीं है। इसका मतलब किसी अन्य व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने की आजादी नहीं है (जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है)। हालांकि ‘सत्य’ को मानहानि के खिलाफ बचाव माना जाता है, लेकिन बचाव तभी मदद करेगा जब ‘बयान (स्टेटमेंट) जनता की भलाई के लिए’ दिया गया हो और यह स्वतंत्र न्यायपालिका (इंडिपेंडेंट ज्यूडिशियरी) द्वारा मूल्यांकन (एवालूएशन) किए जाने वाले तथ्य (फैक्ट) का सवाल है।

अपराध के लिए उकसाना (इनसाइटमेंट टू एन ऑफेंस)

यह एक और आधार है जिसे 1951 के संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम द्वारा भी जोड़ा गया था। संविधान किसी व्यक्ति को ऐसा कोई भी बयान देने से रोकता है जो अन्य लोगों को अपराध करने के लिए उकसाता है या प्रोत्साहित करता है।

भारत की संप्रभुता और अखंडता (सोवर्गीनिटी एंड इंटिग्रिटी ऑफ़ इंडिया)

इस आधार को बाद में 1963 के संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था। इसका उद्देश्य केवल किसी को भी ऐसे बयान देने से रोकना या प्रतिबंधित करना है जो देश की अखंडता और संप्रभुता को सीधे चुनौती देते हैं।

निष्कर्ष (कंक्लूज़न)

भाषण के माध्यम से किसी की राय व्यक्त करना भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत मूल अधिकारों में से एक है और आधुनिक (मॉडर्न) संदर्भ में, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार केवल शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें लेखन के संदर्भ (रेफरेंस) में, या दृश्य-श्रव्य (ऑडियो विजुअल) के माध्यम से, या संचार (कम्युनिकेशन) के किसी अन्य तरीके के माध्यम से विचार उन लोगों का प्रसार भी शामिल है। इस अधिकार में प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार, सूचना का अधिकार आदि भी शामिल है। इसलिए इस लेख से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि एक लोकतांत्रिक राज्य के समुचित कार्य (प्रॉपर फंक्शनिंग) के लिए स्वतंत्रता की अवधारणा बहुत आवश्यक है।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत बताए गए “सार्वजनिक व्यवस्था के हित में” और “उचित प्रतिबंध” शब्दों का उपयोग यह इंगित (पॉइंट) करने के लिए किया जाता है कि इस धारा के तहत प्रदान किए गए अधिकार पूर्ण नहीं हैं और उन्हें अन्य लोगों की सुरक्षा राष्ट्र की और सार्वजनिक व्यवस्था और शालीनता बनाए रखने के लिए के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता है। 

essay on freedom of speech in hindi

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रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950), मोहनलाल बनाम पंजाब राज्य (2018) , महेश कुमार चौधरी बनाम झारखंड राज्य 2022, कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें.

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अभिव्यक्ति की आजादी पर निबंध

Essay On Freedom Of Speech In Hindi : आज का यह आर्टिकल जिसमे हम अभिव्यक्ति की आजादी पर निबंध के बारे में बात करने वाले है। अभिव्यक्ति की आजादी क्या होती है। इसके बारे में जानना जरुरी है। आज के आर्टिकल में Essay On Freedom Of Speech In Hindi के बारे में जानकारी मिलने वाली है।

Essay On Freedom Of Speech In Hindi

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अभिव्यक्ति की आजादी पर निबंध | Essay On Freedom Of Speech In Hindi

अभिव्यक्ति की आजादी पर निबंध (200 शब्द).

भारत सरकार द्वारा भारत के सभी नागरिकों को बोलने लिखने आदि का स्वतंत्र अधिकार दिया गया है। यदि कोई व्यक्ति अपने विचार व्यक्त करता है, चाहे वह सोशल मीडिया हो या कोई अन्य माध्यम हो, तो उसे हम उसकी अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के माध्यम से वह अपने विचार व्यक्त कर सकता है।

अभिव्यक्ति की आजादी से मतलब है, कि हम अपने विचारों को खुलकर दूसरों के सामने प्रकट कर सकते हैं, जिसमें हमें कोई भी रोका टोकी नहीं कर सकता है।

अभिव्यक्ति की आजादी की उत्पत्ति

अभिव्यक्ति की आजादी की उत्पत्ति सर्वप्रथम इंग्लैंड से मानी जाती है, क्योंकि वही पर सर्वप्रथम इस अधिकार को संविधानिक अधिकार घोषित किया गया था, जो कि  1689 में किया गया था। भारत में भी अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार सभी नागरिकों को प्राप्त है, जो कि मौलिक अधिकारों में सम्मिलित है।

मौलिक अधिकारों में सम्मिलित करने का मुख्य कारण है, कि वह अधिकार जो व्यक्ति के स्वयं के हो उस पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकता, जिससे कि किसी व्यक्ति को उसके बोलने का अधिकार वह लिखने का अधिकार कोई भी नहीं छीन सकता।

अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग

भारत जैसे देश में अनेक राजनेता आए दिन अभिव्यक्ति की आजादी का बहाना करके शब्दों की मान मर्यादा को लांग कर अपने विचार व्यक्त करते हैं, जिससे कि अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग होता है। दिल्ली विश्वविद्यालय में आए दिन ही अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर शब्दों की सीमा को लांग आ जाता है, जो कि आने वाली पीढ़ियों के लिए उचित नहीं होगा।

सोशल मीडिया पर हमने देखा है, कि लोग मुंह में जो आए वही लिख देते हैं और बोल देते हैं, जो कि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकारों का हनन है, लेकिन मानव अधिकारों की दुहाई देखकर उन्हें कुछ नहीं बोला जाता है।

अभिव्यक्ति की जरूरत क्यों है?

यदि अभिव्यक्ति की आजादी नहीं मिलती, तो कोई भी व्यक्ति अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के बारे में खुलकर नहीं बोल सकता, जिसके कारण वह घुट घुट कर मर सकता था और एक प्रगतिशील राष्ट्र के लिए अभिव्यक्ति की आजादी की बहुत ही जरूरत है, क्योंकि वहां के नागरिक उस सरकार के खिलाफ बोल सकते हैं जो सही ढंग से कार्य नहीं कर रही है।

अभिव्यक्ति की आजादी के माध्यम से सज्जन व्यक्ति अपने विचार प्रकट कर सकते हैं, जिससे कि लोगों को भी नए-नए विचार सुनने को मिले और राष्ट्र प्रगति करता रहे। अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के माध्यम से हम सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का भी स्वागत व विरोध कर सकते हैं, चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या सोशल मीडिया हो।

अभिव्यक्ति की आजादी हमें अन्याय के खिलाफ बोलने की आजादी प्रदान करती है, जिससे कि हम किसी भी अन्य के खिलाफ बोल सकते हैं। किसी भी देश के नागरिकों को हमेशा किसी नागरिक के विचारों का हमेशा स्वागत करना चाहिए और उसे हमेशा हौसला देना चाहिए जिससे कि हमारा देश एक प्रगति की ओर बढ़ सके।

अभिव्यक्ति की आजादी पर निबंध (600 शब्द)

अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार हमें हमारे मौलिक अधिकारों में दिया गया है। अभिव्यक्ति की आजादी से तात्पर्य है, कि जब कहीं अपने अधिकारों का हनन हो रहा हो, तो हम उसके खिलाफ आवाज उठा सकते हैं। लेकिन उसमें भी कुछ मान मर्यादा होती है। हम सीमा को लांग कर नहीं बोल सकते हैं, क्योंकि हमारे संविधान के खिलाफ है।

अभिव्यक्ति की आजादी की उत्पत्ति सर्वप्रथम इंग्लैंड में हुई थी। अभिव्यक्ति की आजादी को संवैधानिक  अधिकार के रूप में इंग्लैंड में सन 1689 को लागू किया गया था और इंग्लैंड में अभी भी यह लागू है। अभिव्यक्ति की आजादी में कहा जाता है, कि मनुष्य के सोच और विचार वह किसी के सामने भी प्रकट कर सकता है, उस पर कोई पाबंदी नहीं है। हर नागरिक यहां हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार स्वतंत्र होकर बोल सकता है। प्रिंट मीडिया को भी स्वतंत्र छापने का अधिकार अभिव्यक्ति के अधिकार के कारण ही मिला है।

यदि कोई व्यक्ति अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन करता है, तो वह सजा का हकदार होगा। उसमें कही भी कोई ढिलाई नहीं बरती जाएगी, यह भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है। अभिव्यक्ति की आजादी सार्वभौमिक घोषणा बन गई है, इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी राय व विचारों को सबके सामने प्रकट कर सकता है, लेकिन वह शब्दों की सीमा को नहीं लांग ना चाहिए।

अभिव्यक्ति की आजादी – लोकतंत्र का अधिकार

एक देश में वहां की लोकतांत्रिक सरकार अपने नागरिकों को विभिन्न अधिकार प्रदान करती है उनमें से एक अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार भी होता है।अगर चुनी गई सरकार शुरू में अपने मानकों पर खरी नहीं उतरती हैं तो वहां की जनता उस सरकार के खिलाफ आवाज उठा सकती है जो अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आती है।

अभिव्यक्ति की आजादी की जरूरत इसलिए पड़ती है क्योंकि केवल नागरिकों को ही नहीं हर देश को भी विकास की जरूरत होती है तो उसकी आवाज उस देश का नागरिक ही उठाता है इसलिए अभिव्यक्ति की आजादी का होना बहुत ही जरूरी है। हम किसी को डरा कर या धमका कर उसका मुंह बंद नहीं कर सकते हैं यदि ऐसा करेंगे तो देश के विकास में बाधा उत्पन्न होगी और देश आगे नहीं बढ़ सकेगा।

अभिव्यक्ति की आजादी के शब्द से ही चर्चाओं का दौर शुरू हो जाता है जिससे हम किसी भी विषय पर चर्चा कर सकते हैं और अपने विचार प्रकट कर सकते हैं।हम अपने देश की राजनीतिक व्यवस्था के बारे में भी चर्चा कर सकते हैं और खुलकर अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं जिस पर कोई पाबंदी नहीं है, जिससे कि उस देश की सरकार को यह पता चल जाता है कि हम जो भी कदम उठा रहे हैं उसका जनता को पता है हम गलत कदम उठा रहे हैं या सही कदम उठा रहे।यदि किसी देश की सरकार गलत कदम उठा रही तो हम अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का प्रयोग कर हम उसके खिलाफ बोल सकते हैं और अपने देश को सही दिशा में ले जा सकते हैं।

अभिव्यक्ति की आजादी के दुरुपयोग             

अभिव्यक्ति की आजादी के दुरुपयोग भी बहुत देखने को मिले हैं। भारत जैसे देश में जहां सांस्कृतिक सौहार्द हमेशा बना रहता है, उस देश में ऐसे गद्दार भी पैदा होते हैं, जो अपने ही देश के खिलाफ बोलने में संकोच नहीं करते हैं।

पिछले कुछ ही दिनों पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष ने अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा दिया था। उस पर कटाक्ष करते हुए भारत-तिब्बत सीमा पर तैनात, जवान भारत की जवान बेटी खुशबू चौहान ने उसे बहुत ही अच्छा उत्तर दिया था।

हर देश चाहे वह कोई सा भी देश हो अपने देश के नागरिकों को स्वतंत्र बोलने का अधिकार प्रदान करता है, लेकिन संविधान में संशोधन करके इसको स्पष्ट करना चाहिए। जिससे कि लोगों को समाज में परिवर्तन लाने में मदद कर सके और कोई भी सामान्य कार्य में कोई भी बाधा उत्पन्न नहीं हो।

अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकारी इसलिए दिया जाता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने विचार प्रकट कर सकता है, जो एक बहुत ही अच्छा विकल्प है।

आज के आर्टिकल में हमने अभिव्यक्ति की आजादी पर निबंध (Essay On Freedom Of Speech In Hindi) के बारे में बात की है। उम्मीद करता हु, कि इस आर्टिकल में दी गयी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। यदि किसी व्यक्ति को इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई सवाल है, तो वह हमें कमेंट में बता सकता है।

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Rahul Singh Tanwar

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निबंध

essay on freedom of speech in hindi

By विकास सिंह

essay on freedom of speech in hindi

बोलने की स्वतंत्रता भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों में से एक है। दुनिया भर के कई देश अपने नागरिकों को अपने विचारों और विचारों को साझा करने के लिए उन्हें बोलने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।

भारत सरकार और कई अन्य देश अपने नागरिकों को बोलने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। यह विशेष रूप से लोकतांत्रिक सरकार वाले देशों में ऐसा है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निबंध, essay on freedom of speech in hindi (200 शब्द)

फ्रीडम ऑफ स्पीच भारत के नागरिकों को प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों में से एक है। यह हमारे देश के नागरिकों को अपने विचारों को व्यक्त करने और स्वतंत्र रूप से अपनी राय साझा करने की अनुमति देता है। यह आम जनता के साथ-साथ मीडिया को किसी भी राजनीतिक गतिविधियों पर टिप्पणी करने की अनुमति देता है और यहां तक ​​कि वे अनुचित पाए जाने के खिलाफ असंतोष दिखाते हैं।

भारत की तरह ही कई अन्य देश भी अपने नागरिकों को स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं लेकिन कुछ सीमाओं के साथ। फ्रीडम ऑफ स्पीच पर लगाई गई पाबंदी अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। कई देश ऐसे भी हैं जो इस बुनियादी मानव अधिकार की अनुमति नहीं देते हैं।

ऐसे देशों में आम जनता और मीडिया सरकार द्वारा की जाने वाली गतिविधियों पर टिप्पणी करने से बचते हैं। सरकार, राजनीतिक दलों या मंत्रियों की आलोचना ऐसे देशों में दंडनीय अपराध है।

जबकि फ्रीडम ऑफ स्पीच समाज के समग्र विकास के लिए आवश्यक है लेकिन इसके कुछ नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं। लोगों को इसका इस्तेमाल दूसरों का अनादर करने या भड़काने के लिए नहीं करना चाहिए। मीडिया को भी जिम्मेदारी से काम करना चाहिए और भाषण की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।

मैं भारत में जन्म लेने के लिए भाग्यशाली हूं – एक ऐसा देश जो अपने नागरिकों का सम्मान करता है और उन्हें उनके विकास और विकास के लिए आवश्यक सभी अधिकार प्रदान करता है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निबंध, essay on freedom of speech in hindi (300 शब्द)

प्रस्तावना :.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दुनिया भर के अधिकांश देशों के नागरिकों को दिए गए मूल अधिकारों में से एक है। यह उन देशों में रहने वाले लोगों को कानून द्वारा दंडित किए जाने के डर के बिना अपने मन की बात कहने में सक्षम बनाता है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की उत्पत्ति:

बोलने की स्वतंत्रता की अवधारणा बहुत पहले उत्पन्न हुई थी। इंग्लैंड के बिल ऑफ राइट्स 1689 ने बोलने की स्वतंत्रता को एक संवैधानिक अधिकार के रूप में अपनाया और यह अभी भी प्रभावी है। 1789 में फ्रांसीसी क्रांति ने मनुष्य के अधिकारों और नागरिक की घोषणा को अपनाया। इसने आगे चलकर फ्रीडम ऑफ स्पीच को एक निर्विवाद अधिकार के रूप में पुष्टि की। अनुच्छेद 11 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की घोषणा:

“विचारों और भावों का मुक्त संचार मनुष्य के अधिकारों में से सबसे कीमती है। प्रत्येक नागरिक, स्वतंत्रता के अनुसार, बोल, लिख और प्रिंट कर सकता है, लेकिन इस स्वतंत्रता के ऐसे दुरुपयोग के लिए जिम्मेदार होगा जो कानून के रूप में परिभाषित किया जाएगा।

वर्ष 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में यह भी कहा गया है कि सभी को अपने विचारों और विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन ने अब अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मानवाधिकार कानून का एक हिस्सा बना लिया है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – लोकतंत्र का आधार:

एक लोकतांत्रिक सरकार अपने लोगों को अपने देश की सरकार का चुनाव करने का अधिकार सहित कई अधिकार देती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति को लोकतांत्रिक राष्ट्र का आधार बनाने के लिए जाना जाता है।

यदि सरकार को लगता है कि निर्वाचित सरकार उसके द्वारा शुरू किए गए मानकों के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर रही है तो उसे अपनी राय देने का अधिकार नहीं है। यही कारण है कि लोकतांत्रिक राष्ट्रों में बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार एक आवश्यक अधिकार है। यह लोकतंत्र का आधार बनता है।

निष्कर्ष:

बोलने की स्वतंत्रता लोगों को अपने विचारों को साझा करने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का अधिकार देती है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुच्छेद, paragraph on freedom of speech in hindi (400 शब्द)

बोलने की स्वतंत्रता को एक बुनियादी अधिकार माना जाता है जिसे हर व्यक्ति को पाने का अधिकार होना चाहिए। यह भारतीय संविधान द्वारा भारत के नागरिकों को दिए गए सात मौलिक अधिकारों में से एक है।

यह स्वतंत्रता के अधिकार का एक हिस्सा है जिसमें भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, आंदोलन की स्वतंत्रता, निवास की स्वतंत्रता, किसी भी पेशे का अभ्यास करने का अधिकार, संघों, सहकारी समितियों या सहकारी समितियों के गठन की स्वतंत्रता शामिल है।

क्यों जरूरी है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ?

किसी व्यक्ति के सर्वांगीण विकास और विकास के लिए और साथ ही एक राष्ट्र के रूप में बोलने की स्वतंत्रता आवश्यक है। किसी के बोलने या सुनने पर प्रतिबंध लगाने से व्यक्ति के विकास में बाधा आ सकती है। यह असुविधा और असंतोष भी पैदा कर सकता है जो तनाव की ओर जाता है। असंतोष से भरे लोगों से भरा राष्ट्र कभी सही दिशा में नहीं बढ़ सकता।

भाषण की स्वतंत्रता खुली चर्चा का रास्ता देती है जो विचारों के आदान-प्रदान में मदद करती है जो समाज के विकास के लिए आवश्यक है। देश की राजनीतिक प्रणाली के बारे में किसी की राय व्यक्त करना भी आवश्यक है। जब सरकार को पता है कि इसकी निगरानी की जा रही है और इसे उठाए जाने वाले कदमों के लिए चुनौती दी जा सकती है या इसकी आलोचना की जा सकती है, तो यह अधिक जिम्मेदारी से काम करता है।

बोलने की स्वतंत्रता – अन्य अधिकारों से निकटता से संबंधित

भाषण की स्वतंत्रता अन्य अधिकारों से निकटता से संबंधित है। यह मुख्य रूप से नागरिकों को दिए गए अन्य अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है। यह केवल तब होता है जब लोगों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने और बोलने का अधिकार होता है, वे किसी भी चीज के खिलाफ अपनी आवाज उठा सकते हैं जो गलत हो जाता है।

यह उन्हें चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने के बजाय लोकतंत्र में सक्रिय भाग लेने में सक्षम बनाता है। इसी तरह, वे अन्य अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं जैसे कि समानता का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार और गोपनीयता का अधिकार केवल तभी जब उनके पास स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो।

यह राइट टू फेयर ट्रायल से भी निकटता से संबंधित है। स्पीच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक व्यक्ति को परीक्षण के दौरान स्वतंत्र रूप से अपनी बात रखने में सक्षम बनाती है जो अत्यंत आवश्यक है।

बोलने की स्वतंत्रता किसी भी तरह के अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की शक्ति देती है। सूचना और राय और स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पेशकश करने वाले देशों की सरकारों को भी अपने नागरिकों की राय और विचारों का स्वागत करना चाहिए और परिवर्तन के लिए ग्रहणशील होना चाहिए।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लेख, article on freedom of speech in hindi (500 शब्द)

फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन भारत के नागरिकों के लिए गारंटीकृत मूल अधिकारों में से एक है। यह स्वतंत्रता के अधिकार के तहत आता है जो भारतीय संविधान में शामिल सात मौलिक अधिकारों में से एक है। अन्य अधिकारों में समानता का अधिकार, धर्म का स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, गोपनीयता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार और संवैधानिक उपचार का अधिकार शामिल हैं।

भारत में बोलने की स्वतंत्रता:

भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को कुछ प्रतिबंधों के साथ भाषण की स्वतंत्रता प्रदान करता है। इसका मतलब यह है कि लोग स्वतंत्र रूप से दूसरों के साथ-साथ सरकार, राजनीतिक व्यवस्था, नीतियों और नौकरशाही के बारे में अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। हालांकि, भाषण को नैतिक आधार, सुरक्षा और उकसावे पर प्रतिबंधित किया जा सकता है।

भारतीय संविधान में स्वतंत्रता के अधिकार के तहत, देश के नागरिकों के निम्नलिखित अधिकार हैं:

  • बोलने और विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की स्वतंत्रता
  • बिना किसी हथियार और गोला-बारूभावों द के शांतिपूर्वक इकट्ठा होने की स्वतंत्रता
  • समूहों, यूनियनों और संघों को बनाने की स्वतंत्रता
  • देश के किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित होने की स्वतंत्रता
  • देश के किसी भी हिस्से में बसने की आजादी
  • किसी भी पेशे का अभ्यास करने की स्वतंत्रता
  • किसी भी तरह के व्यवसाय या व्यापार में लिप्त होने की स्वतंत्रता, बशर्ते यह गैरकानूनी न हो।
  • भारत सच्चे अर्थों में एक लोकतांत्रिक देश के रूप में जाना जाता है। यहां के लोगों को सूचना का अधिकार है और सरकार की गतिविधियों पर भी अपनी राय दे सकते हैं।
  • फ्रीडम ऑफ स्पीच मीडिया को देश के साथ-साथ दुनिया भर में होने वाली सभी चीजों को साझा करने का अधिकार देता है।
  • यह लोगों को अधिक जागरूक बनाता है और उन्हें दुनिया भर की नवीनतम घटनाओं से अपडेट रखता है।

फ्रीडम ऑफ स्पीच के नुक्सान:

जबकि फ्रीडम ऑफ़ स्पीच एक व्यक्ति को अपने विचारों और विचारों को साझा करने की अनुमति देता है और अपने समाज और साथी नागरिकों की बेहतरी के लिए योगदान देता है, इसके कई नुकसान भी हैं। बहुत से लोग इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हैं।

वे न केवल अपने विचार व्यक्त करते हैं बल्कि उन्हें दूसरों पर भी थोपते हैं। वे लोगों को उकसाते हैं और गैरकानूनी गतिविधियों का संचालन करने के लिए समूह बनाते हैं। मीडिया भी अपने विचारों और विचारों को व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र है। कई बार, उनके द्वारा साझा की गई जानकारी आम जनता में घबराहट पैदा करती है।

कुछ ख़बरें जैसे कि विभिन्न सांप्रदायिक समूहों की गतिविधियों से संबंधित हैं, यहाँ तक कि अतीत में भी सांप्रदायिक दंगों को जन्म दिया है। इससे समाज की शांति और सद्भाव बाधित होता है।

इंटरनेट ने भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ाया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के आगमन ने इसे और अधिक बढ़ा दिया है। लोग इन दिनों किसी भी चीज और हर चीज पर अपने विचार देने के लिए उत्सुक हैं, चाहे उन्हें उसी के बारे में ज्ञान हो या न हो। यदि वे किसी की भावनाओं को आहत कर रहे हैं या किसी के व्यक्तिगत स्थान पर घुसपैठ कर रहे हैं, तो वे बिना परवाह किए घृणित टिप्पणियां लिखते हैं। इसे निश्चित रूप से इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग कहा जा सकता है और इसे रोका जाना चाहिए।

प्रत्येक देश को अपने नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करनी चाहिए। हालांकि, इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए ताकि यह केवल व्यक्तियों के साथ-साथ समाज में भी सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करे और उनके सामान्य कामकाज को बाधित न करे।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निबंध, essay on freedom of speech in hindi (600 शब्द)

भाषण की स्वतंत्रता अधिकांश देशों के नागरिकों को दी जाती है ताकि वे अपने विचारों को साझा करने और विभिन्न मामलों पर अपनी राय प्रदान करने में सक्षम हों। यह एक व्यक्ति के साथ-साथ समाज के विकास के लिए आवश्यक माना जाता है। जबकि अधिकांश देश अपने नागरिकों को यह स्वतंत्रता प्रदान करते हैं, लेकिन कई लोग इससे बचते हैं।

कई देश भाषण की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं:

भारत ही नहीं दुनिया भर के कई देश अपने नागरिकों को फ्रीडम ऑफ स्पीच और एक्सप्रेशन देते हैं। वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा शामिल है:

“हर किसी को राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है; इस अधिकार में हस्तक्षेप के बिना राय रखने और किसी भी मीडिया के माध्यम से जानकारी और विचारों को प्राप्त करने, प्राप्त करने और प्रदान करने और स्वतंत्रता की परवाह किए बिना स्वतंत्रता शामिल है ”।

दक्षिण अफ्रीका, सूडान, पाकिस्तान, ट्यूनीशिया, हांगकांग, ईरान, इजरायल, मलेशिया, जापान, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, थाईलैंड, न्यूजीलैंड, यूरोप, डेनमार्क, फिनलैंड और चीन गणराज्य में से कुछ हैं वे देश जो अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।

अब, जबकि इन देशों ने अपने नागरिकों को बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति का अधिकार दिया है, हालांकि यह अधिकार जिस हद तक आम जनता को दिया जाता है और मीडिया अलग-अलग देशों में होता है।

इन देशों में भाषण की स्वतंत्रता नहीं है:

ऐसे देश हैं जो पूर्ण नियंत्रण बनाए रखने के लिए अपने नागरिकों को फ्रीडम ऑफ स्पीच का अधिकार नहीं देते हैं। इन देशों में से कुछ पर एक नज़र है:

उत्तर कोरिया: देश अपने नागरिकों के साथ-साथ मीडिया को भी स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता है। इस प्रकार, सरकार न केवल विचारों और विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता रखती है, बल्कि अपने नागरिकों से भी जानकारी रखती है।

सीरिया: सीरिया की सरकार अपने अत्याचार के लिए जानी जाती है। यहां के लोग अपने मूल मानव अधिकार से वंचित हैं जो फ्रीडम ऑफ स्पीच और अभिव्यक्ति का अधिकार है।

क्यूबा: फिर भी एक और देश जो अपने नागरिकों को बोलने की स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता है। क्यूबा के नागरिकों को सरकार या किसी भी राजनीतिक दल की गतिविधियों पर कोई नकारात्मक टिप्पणी करने की अनुमति नहीं है। यहां की सरकार ने इंटरनेट के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया है ताकि लोगों को उसी के माध्यम से कुछ भी व्यक्त करने का मौका न मिले।

बेलारूस: यह एक और देश है जो स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता है। लोग अपनी राय नहीं दे सकते या सरकार के काम की आलोचना नहीं कर सकते। सरकार या किसी भी राजनीतिक मंत्री की आलोचना यहां एक आपराधिक अपराध है।

ईरान: ईरान के नागरिकों को इस बारे में जानकारी नहीं है कि अपनी राय व्यक्त करने और जनता में अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से साझा करने के लिए क्या है। सार्वजनिक कानूनों या इस्लामिक मानकों के खिलाफ कोई भी किसी भी प्रकार का असंतोष व्यक्त नहीं कर सकता है।

बर्मा: बर्मा की सरकार की राय है कि बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति अनावश्यक है। नागरिकों से कहा जाता है कि वे अपने विचारों या विचारों को व्यक्त न करें, खासकर यदि वे किसी नेता या राजनीतिक दल के खिलाफ हों। इस देश में मीडिया सरकार द्वारा चलाया जाता है।

लीबिया: इस देश में अधिकांश लोग यह भी नहीं जानते हैं कि वास्तव में अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्या है। लीबिया की सरकार अपने नागरिकों पर अत्याचार करने के लिए जानी जाती है। इंटरनेट के युग में, दुनिया भर के लोग इस देश में नहीं बल्कि किसी भी मामले पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। इंटरनेट पर सरकार की आलोचना करने के लिए देश में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

 निष्कर्ष:

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति एक बुनियादी मानवीय अधिकार है जो प्रत्येक देश के नागरिकों को दिया जाना चाहिए। यह देखकर दुख होता है कि कुछ देशों की सरकारें अपने नागरिकों को यह आवश्यक मानव अधिकार भी प्रदान नहीं करती हैं और अपने स्वार्थी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उन पर अत्याचार करती हैं।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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भारत में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता Freedom of Speech & Expression in India Hindi

आज हम बात करेंगे भारत में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता Freedom of Speech & Expression in India Hindi

पर हमारे हिंदुस्तान की खूबसूरती इसी बात में है कि इतनी भिन्नता के साथ भी अनेकता में एकता वाली बात है। यही सुंदरता है भारतीय होने की, पर सबसे मजेदार एवं रोचक बात यह है कि इतने अलग अलग प्रकार के लोगों के साथ जो बात सबसे ज्यादा उभर कर आती है, जो बात सबसे अहम है, वह है सब के विचार।

विचार दरअसल सोच है, सोच जो हमारे दिमाग में चलती रहती है, सोच से ही जीवन बिखरता है और बनता ।है अगर वहीं दूसरी ओर आपके विचार खराब होंगे घुटन और नकारात्मकता से भरे होंगे, तो कितना ही कुछ कर ले फिर भी जीवन में आप का कभी भला नहीं हो पाएगा, आप बस दुखों में ही डूबे रहेंगे।

आप अपने मन की बात बिना रोक-टोक अभिव्यक्त कर सकते हैं पूरी स्वतंत्रता है इस बात की!! परंतु कभी-कभी कुछ लोग इस स्वतंत्रता का गलत फायदा उठाने की कोशिश करते हैं और देश में अशांति फैलाने में जुटे रहते हैं। दरअसल होता क्या है कि विचारों की अभिव्यक्ति करने का भी एक अंदाज होता है एक तरीका होता है, विचारों को सही प्रकार सही ढंग से व्यक्त करना भी एक कला है।

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भारत के संविधान का अनुच्छेद-19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) |Article-19 (Freedom of Speech and Expression)

Article-19

आज हम लिखित अथवा मौखिक रूप से प्रकट की गयी अभियुक्त की स्वतंत्रता के सम्बन्ध मे सम्पूर्ण जानकारी आपके साथ साझा करेंगे। इसके अलावा किसी व्यक्ति को अपनी बात प्रकट करने की क्या स्वतंत्रता हमारे भारत के संविधान मे दिया गया है, यह भी जानकारी देंगे।  भाषण एवंम् अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression)  के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी इस लेख के माध्यम जानेंगें। किसी व्यक्ति को अपनी बात लिखित या मौखिक रूप से समाज के समक्ष रखने के कुछ नियम एवंम् सयंम होते है, जिसके तहत वह अपने कथन को समाज के प्रति रखा जा सकता है, जिसे हमारे संविधान मे  अनुच्छेद-19 (Article-19)  मे परिभाषित किया गया है।

संविधान के भाग 3 में  मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है ये अधिकार प्रत्येक नागरिक के विकास के लिए बेहद जरूरी है, Article-19 , को भी मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखा गया है। आज हम इस लेख में अनुच्छेद 19 में वर्णित विभिन्न प्रकार के मौलिक अधिकार के बारे में भी जानेंगे साथ ही, इनका क्या अर्थ होता है, यह स्पष्ट करेंगे। आखिर  आर्टिकल 19 क्या है। What is Article 19 (Freedom of Speech and Expression) in Hindi.

आर्टिकल-19 मे प्रत्येक व्यक्ति अपनी लिखित एवंम् मौखिक बात रखने के लिये भारत के संविधान मे अधिकारों को परिभाषित किया गया है। भाषण एवंम् अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार होता है। यह अधिकार आम नागरिक एवंम् पत्रकारिता/प्रेस के विचारो को प्रकट करने की स्वतंत्रता पर भी आधारित है।

आर्टिकल 19 क्या है ? (What is Article 19 )

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान किया गया है, किंतु अभियक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार निरपेक्ष नहीं है इस पर युक्तियुक्त निर्बंधन हैं। भारत की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता पर खतरे की स्थिति में, वैदेशिक संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव की स्थिति में, न्यायालय की अवमानना की स्थिति में इस अधिकार को बाधित किया जा सकता है। भारत के सभी नागरिकों को विचार करने, भाषण देने और अपने व अन्य व्यक्तियों के विचारों के प्रचार की स्वतंत्रता प्राप्त है। प्रेस/पत्रकारिता भी विचारों के प्रचार का एक साधन ही है इसलिये अनुच्छेद 19 में प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) या बोलने की स्वतंत्रता (freedom of speech) किसी व्यक्ति या समुदाय द्वारा अपने मत और विचार को बिना प्रतिशोध, अभिवेचन या दंड के डर के प्रकट कर पाने की स्थिति होती है। इस स्वतंत्रता को सरकारें, जनसंचार कम्पनियाँ, और अन्य संस्थाएँ बाधित कर सकती हैं। इसलिये यह अधिकार प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार माना गया है। अनुच्छेद 19 में प्रयुक्त ‘अभिव्यक्ति’ शब्द इसके क्षेत्र को बहुत विस्तृत कर देता है। विचारों के व्यक्त करने के जितने भी माध्यम हैं जैसे लिखित अथवा मौखिक वे अभिव्यक्ति, पदावली के अन्तर्गत आ जाते हैं। इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतन्त्रता भी सम्मिलित है। विचारों का स्वतन्त्र प्रसारण ही इस स्वतन्त्रता का मुख्य उद्देश्य है। यह भाषण द्वारा या समाचार-पत्रों द्वारा किया जा सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हे संप्रेषित(Communicate) कर सके। इस प्रकार इनमें संकेतों, अंकों, चिह्नों तथा ऐसी ही अन्य क्रियाओं द्वारा किसी व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति सम्मिलित है।

संविधान के  अनुच्छेद 19 में 6 तरह की स्वतंत्रताओं का उल्लेख  है जो निम्न है – संविधान के अनुच्छेद 19 में 6 तरह की स्वतंत्रताओं के बारे में एक एक करके हम देखने का प्रयास करते हैं।

क्रम सं0अनुच्छेदस्वंत्रतता
119(A)बोलने की आजादी
219(B)सभा की आजादी
319(C)संघ बनाने की आजादी
419(D)पूरे देश मेँ आने जाने की आजादी
519(E)पूरे देश मेँ बसने की/रहने की आजादी
619(G)कोई भी व्यापार एवं जीविका की आजादी

अनुच्छेद-19 ( Indian Constitution Article 19) 

“Protection of certain rights regarding freedom of speech, etc”– All citizens shall have the right- (a) to freedom of speech and expression; (b) to assemble peaceably and without arms; (c) to form associations or unions 2[or co-operative societies]; (d) to move freely throughout the territory of India; (e) to reside and settle in any part of the territory of India; 3[and] (g) to practise any profession, or to carry on any occupation, trade or business. “भाषण की स्वतंत्रता आदि के संबंध में कतिपय अधिकारों का संरक्षण”- सभी नागरिकों को अधिकार होगा- (क) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए; (ख) शांतिपूर्वक और हथियारों के बिना इकट्ठा होने के लिए; (ग) संघों या यूनियनों 2 [या सहकारी समितियों] बनाने के लिए; (घ) भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करने के लिए; (ड़) भारत के क्षेत्र के किसी भी हिस्से में रहने और बसने के लिए; 3 [और] (छ) कोई व्यवसाय करना, या कोई उपजीविका, व्यापार या व्यापार करना।

अनुच्छेद-19(A) | बोलने की आजादी (freedom of speech)

भारत के संविधान मे   आर्टिकल 19(A) में भारत के सभी नागरिकों को विचार करने, भाषण देने  और अपने व अन्य व्यक्तियों के विचारों के  प्रचार की स्वतंत्रता (freedom of speech and expression)  प्राप्त है। प्रेस भी अपने विचारों के प्रचार का एक साधन होने के कारण Article-19(A) में प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है लेकिन नागरिकों को विचार और अभिव्यक्ति की यह स्वतंत्रता असीमित रूप से प्राप्त नहीं है ।

भारत के संविधान मे प्रत्येक व्यक्ति को बोलने का अधिकार जन्मजात दिया गया है यदि प्रत्येक व्यक्ति को बोलना बंद कर दिया गया तो हमारी आवाज़ और हमारे विचार सीमित हो जाएंगे। इसलिए  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(A) के अंदर हमें बोलने की स्वतंत्रता दी गई है और इसे लागू भी किया गया है , यह हमारा मौलिक अधिकार है अतः यदि कोई व्यक्ति किसी के बोलने पर पाबंधी अथवा अपनी बात रखने पर एतराज करता है, तो हम न्यायालय भी जा सकते हैं ।

अनुच्छेद-19(B) | सभा की आजादी (freedom of assembly)

भारत के संविधान मे   आर्टिकल 19(B) में व्यक्तियों के द्वारा अपने विचारों के प्रचार के लिए शांतिपूर्वक और बिना किन्हीं शस्त्रों के सभा या सम्मलेन करने का अधिकार  प्रदान किया गया है और व्यक्तियों द्वारा जुलूस या प्रदर्शन का आयोजन भी किया जा सकता है। यहाँ भी यह  स्वतंत्रता (assemble peacefully and without arms) असीमित नहीं  है और राज्य के द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा के हित में व्यक्ति की इस स्वतंत्रता को सीमित किया जा सकता है।

भारत के संविधान मे प्रत्येक व्यक्ति को सभा बनाने/सभा मे उपस्थित होने की आजादी है, प्रत्येक व्यक्ति को शांतिपूर्वक और बिना किन्हीं शस्त्रों के सभा या सम्मलेन बनाने या उपस्थित होने की आजादी दिया गया है। इसलिए  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(B) के अंदर सभा बनाने या उपस्थित होने की स्वतंत्रता दी गई है और इसे लागू भी किया गया है , यह हमारा मौलिक अधिकार है अतः यदि कोई व्यक्ति किसी को सभा बनाने या उपस्थित होने पर एतराज करता है, तो हम न्यायालय भी जा सकते हैं ।

अनुच्छेद-19(C) | संघ बनाने की आजादी (freedom of association)

भारत के संविधान मे   आर्टिकल 19(C) मे सभी नागरिकों को समुदायों और संघों के निर्माण की स्वतंत्रता प्रदान की गई है परन्तु यह स्वतंत्रता भी उन प्रतिबंधों के अधीन है, जिन्हें राज्य साधारण जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए लगाता है। इस स्वतंत्रता की आड़ में व्यक्ति ऐसे समुदायों का निर्माण नहीं कर सकता जो षड्यंत्र करें अथवा सार्वजनिक शान्ति और व्यवस्था को भंग करें।

भारत के संविधान मे प्रत्येक व्यक्ति को संघ बनाने या उपस्थित होने की आजादी है, प्रत्येक व्यक्ति को सार्वजनिक शांति और बिना किसी षणयंत्र के अथवा किसी आम नागरिक को कोई परेशानी को ध्यान मे रखते हुये ऐसे संघ बनाने या उपस्थित होने की आजादी दी गयी है। इसलिए  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(C) के अंदर संघ बनाने या उपस्थित होने की स्वतंत्रता दी गई है और इसे लागू भी किया गया है , यह हमारा मौलिक अधिकार है अतः यदि कोई व्यक्ति किसी को संघ बनाने या उपस्थित होने पर एतराज करता है, तो हम न्यायालय भी जा सकते हैं ।

अनुच्छेद-19(D) | पूरे देश मे आने-जाने की आजादी (freedom of movement throughout the country)

भारत के संविधान मे   आर्टिकल 19(D) भारत के सभी नागरिक बिना किसी प्रतिबंध या विशेष अधिकार-पत्र के सम्पूर्ण भारतीय क्षेत्र में कही भी घूम सकते हैं।

भारत के संविधान मे प्रत्येक व्यक्ति को पूरे भारत देश मे आने-जाने की आजादी है, प्रत्येक व्यक्ति को किसी गैर-इरादे (भागने के उद्देश्य निहित न हो) अथवा किसी आम नागरिक को किसी परेशानी को ध्यान मे रखते हुये ऐसे भारत के किसी भी राज्य मे घूमने की आजादी दी गयी है। इसलिए  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(D) के अंदर पूरे भारत देश मे घूमने की आजादी की स्वतंत्रता दी गई है और इसे लागू भी किया गया है , यह हमारा मौलिक अधिकार है अतः यदि कोई व्यक्ति किसी को भारत के किसी राज्य मे आने-जाने पर एतराज करता है, तो हम न्यायालय भी जा सकते हैं ।

अनुच्छेद-19(E) | पूरे देश मेँ बसने की/रहने की आजादी (Freedom to settle/reside throughout the country)

भारत के संविधान मे   आर्टिकल 19(E) भारत के प्रत्येक नागरिक को भारत में कहीं भी रहने या बस जाने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। भ्रमण और निवास के सम्बन्ध में यह व्यवस्था संविधान द्वारा अपनाई गई इकहरी नागरिकता के अनुरूप है, भ्रमण और निवास की इस स्वतंत्रता पर भी राज्य सामान्य जनता के हित और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के हितों में यक्ति-युक्त  प्रतिबंध लगा सकता है।

भारत के संविधान मे प्रत्येक व्यक्ति को पूरे भारत देश मे बसने या रहने की आजादी है, प्रत्येक व्यक्ति को किसी गैर-इरादे (भागने के उद्देश्य निहित न हो) अथवा किसी आम नागरिक को किसी परेशानी को ध्यान मे रखते हुये ऐसे भारत के किसी भी राज्य मे बसने या रहने की आजादी दी गयी है। इसलिए  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(E) के अंदर पूरे भारत देश मे बसने या रहने की आजादी की स्वतंत्रता दी गई है और इसे लागू भी किया गया है , यह हमारा मौलिक अधिकार है अतः यदि कोई व्यक्ति किसी को भारत के किसी राज्य मे बसने या रहने पर एतराज करता है, तो हम न्यायालय भी जा सकते हैं ।

अनुच्छेद-19(G) | कोई भी व्यापार एवं जीविका की आजादी (Freedom of any trade and livelihood)

भारत के संविधान मे   आर्टिकल 19(G) भारत में सभी नागरिकों को इस बात की स्वतंत्रता है कि वे अपनी आजीविका के लिए कोई भी पेशा, व्यापार या कारोबार कर सकते हैं | राज्य साधारणतया व्यक्ति को न तो कोई विशेष नौकरी, व्यापार या व्यवसाय करने के लिए बाध्य करेगा और न ही उसके इस प्रकार के कार्य में बाधा डालेगा. किन्तु इस सबंध में भी राज्य को यह अधिकार प्राप्त है कि वह कुछ व्यवसायों के सम्बन्ध में आवश्यक योग्यताएं निर्धारित कर सकता है अथवा किसी कारोबार या उद्योग को पूर्ण अथवा आंशिक रूप से अपने हाथ में ले सकता है।

भारत के संविधान मे प्रत्येक व्यक्ति को पूरे भारत देश मे कोई भी नौकरी, व्यापार करके जीविका चलाने की आजादी है, बशर्ते किसी गैर-कानूनी तरीके व्यापार से नही। प्रत्येक व्यक्ति को नौकरी, व्यापार करके जीविका चलाने की आजादी है। इसलिए  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(G) के अंदर पूरे भारत देश मे कोई भी नौकरी, व्यापार एवं किसी प्रकार से जीविका अर्जित करने की स्वतंत्रता दी गई है और इसे लागू भी किया गया है , यह हमारा मौलिक अधिकार है अतः यदि कोई व्यक्ति किसी को भारत के किसी राज्य मे कोई भी नौकरी, व्यापार एवं अन्य कोई जीविका अर्जित करने पर एतराज करता है, तो हम न्यायालय भी जा सकते हैं ।

नोट- भारत के संविधान के भाग 3 मे मौलिक अधिकारो मे अनुच्छेद-19 भी, प्रत्येक व्यक्ति का एक जन्मसिद्ध अधिकार है, लेकिन जो कोई व्यक्ति इस अधिकार का अनुचित लाभ उठाता है जैसे- भारत की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता पर खतरा जैसे स्थिति मे, वैदेशिक संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव की स्थिति में, न्यायालय की अवमानना की स्थिति में उपरोक्त अधिकारों को बाधित करता है अथवा अपने शब्दों से किसी को ठेस पहुचाता है, जो गैर-कानूनी होता है, तो ऐसी दशा मे वह व्यक्ति दोषी माना जायेगा।

इसे भी पढ़े–

अनुच्छेद-21 (Article-21) | निजता का अधिकार | Right to Privacy भारत के संविधान का अनुच्छेद-22 | Article-22 | गिरफ्तारी के खिलाफ संरक्षण | Protection Against Arrest

हमारा प्रयास  अनुच्छेद-19 (Article-19) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression)  की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।

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भारतीय राजनीति

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भारत में प्रेस की स्वतंत्रता

  • 12 Oct 2023
  • 22 min read
  • सामान्य अध्ययन-II
  • मौलिक अधिकार
  • भारतीय संविधान
  • सूचना का अधिकार
  • पारदर्शिता और जवाबदेहिता
  • सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

यह एडिटोरियल 10/10/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The silence around the state’s seizure of India’s press” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि भारत किस प्रकार एक संक्रामक आपातकाल के साथ-साथ डिजिटल तानाशाही के एक चिह्नित चरण से गुज़र रहा है। इस संदर्भ में उच्च न्यायपालिका द्वारा कथित रूप से किसी निर्णायक कार्रवाई की अनिच्छा के विषय पर भी विचार किया गया है।

पत्रकारों की सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र कार्य योजना

में भारत का प्रदर्शन, प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाली संस्थाएँ, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की  चुनौतियां, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के उपाय।

एक स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र की रक्षा करने और एक पारदर्शी एवं जवाबदेह सरकार को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालाँकि, ऑनलाइन पोर्टल न्यूज़क्लिक (NewsClick) से संबद्ध पत्रकारों के विरुद्ध हाल की कार्रवाइयों (जहाँ छापे, जब्ती और गिरफ्तारी जैसी कार्रवाइयाँ की गईं) ने भारत में डिजिटल डेटा की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

डिजिटल क्रांति के बीच भारत को डिजिटल तानाशाही या स्वेच्छाचारिता (digital authoritarianism) के खतरे का सामना करना पड़ रहा है। इस महत्त्वपूर्ण मोड़ पर, भारत को देश में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये राजनीतिक कार्रवाई और न्यायिक दृढ़ संकल्प दोनों की आवश्यकता है।

‘प्रेस की स्वतंत्रता’ का अभिप्राय:

प्रेस की स्वतंत्रता (Press Freedom) एक मौलिक सिद्धांत है जो पत्रकारों और मीडिया संगठनों को सेंसरशिप या सरकारी हस्तक्षेप के बिना कार्य करने की अनुमति देता है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) का मुख्य घटक है और एक लोकतांत्रिक समाज के लिये आवश्यक है।

प्रेस की स्वतंत्रता में निम्नलिखित प्रमुख पहलू शामिल हैं:

  • सेंसरशिप से स्वतंत्रता: पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स को सरकार द्वारा अधिरोपित किसी सेंसरशिप के बिना समाचार और सूचना प्रकाशन या प्रसारण में सक्षम होना चाहिये।
  • सूचना तक पहुँच: एक स्वतंत्र प्रेस की सार्वजनिक हित से जुड़े मामलों की जाँच करने और रिपोर्ट करने के लिये सूचना एवं स्रोतों तक पहुँच होनी चाहिये।
  • संपादकीय स्वतंत्रता: संपादकीय स्वतंत्रता यह सुनिश्चित करती है कि समाचार रिपोर्टिंग तथ्यों पर आधारित हो और बाह्य हितों से प्रभावित न हो।
  • स्रोतों की सुरक्षा: पत्रकारों को अपने स्रोतों (sources) की सुरक्षा करने में सक्षम होना चाहिये ताकि किसी मामले को उजागर करने वालों (whistleblowers) और मुखबिरों (informants) को जोखिम या प्रतिशोध के भय के बिना सूचना के साथ आगे आने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
  • बहुलवाद और विविधता: एक स्वतंत्र प्रेस को विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण और मतों को शामिल करना चाहिये, जिससे समाज में खुली बहस और चर्चा की अनुमति मिल सके।
  • जवाबदेही: मीडिया को सत्ता में बैठे लोगों के कार्यों एवं निर्णयों की जाँच और रिपोर्टिंग करने के माध्यम से उन्हें जवाबदेह बनाना चाहिये।

संवैधानिक पृष्ठभूमि:

  • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights) के अनुच्छेद 19 में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है; इस अधिकार में बिना किसी हस्तक्षेप के मत प्रकट करने तथा किसी भी मीडिया के माध्यम से और सीमाओं की परवाह किये बिना सूचना एवं विचार की मांग करने, प्राप्त करने और प्रदान करने की स्वतंत्रता शामिल है।
  • हालाँकि, राष्ट्र और इसकी अखंडता की रक्षा के लिये अनुच्छेद 19(2) में कुछ प्रतिबंध भी लागू किये गए हैं।

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति :

(World Press Freedom Index) पत्रकारों को उपलब्ध स्वतंत्रता के स्तर के अनुसार देशों और क्षेत्रों की रैंकिंग करता है। ’ द्वारा वर्ष 2002 से हर साल प्रकाशित किया जाता रहा है। का उपयोग करके किया जाता है: राजनीतिक संदर्भ, विधिक ढाँचा, आर्थिक संदर्भ, सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ और सुरक्षा। में से देशों की सूची में रखा गया। वर्ष में भारत की रैंक थी।

भारत के लिये स्वतंत्र प्रेस का क्या महत्त्व है?

  • लोकतंत्र और जवाबदेही: पत्रकार सरकारी कार्यों, नीतियों और निर्णयों की जाँच एवं रिपोर्टिंग करते हैं; इस प्रकार अधिकारियों को उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराते हैं।
  • सूचना का प्रसार: यह नागरिकों को वर्तमान घटनाक्रमों, सरकारी गतिविधियों और सामाजिक मुद्दों के बारे में सूचित बने रहने में मदद करता है, जिससे वे सूचित निर्णय लेने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भागीदारी कर सकने में सक्षम होते हैं।
  • सत्ता पर अंकुश: एक स्वतंत्र प्रेस सरकार और अन्य शक्तिशाली संस्थाओं द्वारा सत्ता के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने का कार्य करता है। यह भ्रष्टाचार, मानवाधिकारों के हनन और अन्य गलत कृत्यों को उजागर करने में मदद करता है, जिससे सत्ता में बैठे लोगों के लिये दंडमुक्ति (impunity) के साथ कार्य करना कठिन हो जाता है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: एक स्वतंत्र प्रेस सरकारी कार्यकरण और निर्णयन प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। यह उन गुप्त एजेंडों, हितों के टकराव और अन्य कारकों को उजागर करने में मदद करता है जो सरकारी कार्यकरणों को प्रभावित कर सकते हैं।
  • विविध विचारों को अवसर: भारत अनेक भाषाओं, संस्कृतियों और दृष्टिकोणों वाला एक विविध देश है। एक स्वतंत्र प्रेस विविध आवाज़ों एवं दृष्टिकोणों के लिये मंच प्रदान करता है, जिससे सुनिश्चित होता है कि विभिन्न समुदायों की चिंताओं को सुना जा रहा है।
  • मूल अधिकारों का संरक्षण: एक स्वतंत्र प्रेस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और जानने के अधिकार सहित मूल अधिकारों का संरक्षक होता है। यह व्यक्तियों और समूहों के अधिकारों का  पक्षसमर्थन कर इन अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्थिति: वैश्विक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता से प्रभावित होती है। प्रेस की स्वतंत्रता को कायम रखना लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ती है।

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये कौन-से संस्थान ज़िम्मेदार हैं?

  • भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India- PCI): भारतीय प्रेस परिषद प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के तहत स्थापित एक सांविधिक निकाय है। यह प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारिता के नैतिक मानकों की रक्षा करने तथा उसे बढ़ावा देने के लिये एक प्रहरी के रूप में कार्य करती है।
  • सूचना और प्रसारण मंत्रालय : सूचना और प्रसारण मंत्रालय एक सरकारी निकाय है जो भारत में मीडिया क्षेत्र से संबंधित नीतियों एवं दिशानिर्देश के निर्माण के लिये ज़िम्मेदार है।
  • न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) : NBDA एक स्व-नियामक निकाय है जो भारत में निजी टेलीविजन न्यूज़ और समसामयिक मामलों के प्रसारकों का प्रतिनिधित्व करता है। यह टेलीविजन समाचार चैनलों के लिये आचार संहिता एवं मानकों का निर्माण और उनका प्रवर्तन करता है। 
  • एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया: यह भारत के प्रमुख समाचार पत्रों और समाचार पत्रिकाओं के संपादकों का एक स्वैच्छिक संघ है। यह प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने और पत्रकारों के अधिकारों एवं ज़िम्मेदारियों से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • वर्ष 1950 में रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य   मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि प्रेस की स्वतंत्रता सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए आधारभूत है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संगठन: रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Reporters Without Borders) और कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (Committee to Protect Journalists) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की निगरानी करते हैं और वैश्विक मंच पर उल्लंघनों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं।

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ 

  • विधिक और नियामक बाधाएँ: भारत में ऐसे कानून मौजूद हैं जिनका उपयोग प्रेस की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिये किया जा सकता है, जैसे मानहानि कानून, राजद्रोह कानून और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विभिन्न कानून। इन कानूनों का इस्तेमाल कई बार पत्रकारों और मीडिया संगठनों को डराने-धमकाने के लिये किया सरकारी हस्तक्षेप: जाता है।
  •  मीडिया आउटलेट्स की संपादकीय स्वतंत्रता में सरकारी हस्तक्षेप के उदाहरण सामने आते रहे हैं। सरकारें मीडिया संगठनों को पुरस्कृत या दंडित करने के लिये विज्ञापन बजट का उपयोग एक साधन के रूप में कर सकती हैं, जो फिर उनकी रिपोर्टिंग को प्रभावित कर सकता है।
  • धमकी और हिंसा: भारत में भ्रष्टाचार, संगठित अपराध या सांप्रदायिक तनाव जैसे संवेदनशील मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने में पत्रकारों को धमकी और हिंसा का सामना करना पड़ता है। कुछ पत्रकारों पर कार्य के दौरान हमला किये जाने या उनकी हत्या कर दिए जाने जैसे मामले भी सामने आते रहे हैं।
  • सेल्फ-सेंसरशिप: विभिन्न स्रोतों से प्रतिशोध या दबाव के भय के कारण, पत्रकार और मीडिया आउटलेट सेल्फ-सेंसरशिप में संलग्न होने, कुछ विषयों पर रिपोर्टिंग से परहेज करने या रिपोर्टिंग के लिये सतर्क रुख अपनाने के लिये मजबूर हो सकते हैं।
  • स्वामित्व और नियंत्रण: भारत में मीडिया का स्वामित्व प्रायः कुछ शक्तिशाली संस्थाओं के हाथों में केंद्रित रहा है, जो संपादकीय निर्णयों को प्रभावित कर सकता है और मीडिया परिदृश्य में आवाज़ों की विविधता को सीमित कर सकता है।
  • मानहानि के मुकदमे: भारत में पत्रकारों और मीडिया संगठनों को प्रायः मानहानि के मुकदमों से निशाना बनाया जाता है, जो समय लेने वाला और आर्थिक रूप से बोझपूर्ण सिद्ध हो सकता है।

भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रेस सुनिश्चित करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • मानहानि और राजद्रोह कानून जैसे कुछ कानूनों में सुधार किया जाना चाहिये जिनका दुरुपयोग प्रेस की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिये किया जा सकता है।
  • प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन से जुड़े मामलों में त्वरित और निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • स्वतंत्र मीडिया नियामक निकायों की स्थापना की जाए जिनके सदस्य समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हों, जहाँ यह सुनिश्चित किया जाए कि वे सरकारी नियंत्रण और राजनीतिक प्रभाव से मुक्त हैं।
  • ऐसे कानून अधिनियमित और प्रवर्तित किये जाएँ जो पत्रकारों को ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों माध्यमों में उत्पीड़न, हिंसा और धमकियों से बचाएँ।
  • सार्वजनिक हित में मीडिया को जानकारी प्रदान करने वाले सूचनादाताओं/मुखबिरों की सुरक्षा के लिये तंत्र स्थापित किया जाए।
  • पारदर्शिता को बढ़ावा देने और पत्रकारों को सरकारी सूचना तक अभिगम्यता में सक्षम बनाने के लिये सूचना की स्वतंत्रता या सूचना की अभिगम्यता संबंधी सुदृढ़ कानून बनाए जाएँ।
  • मीडिया एकाग्रता और हितों के टकराव को रोकने के लिये मीडिया स्वामित्व में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया जाए।
  • सार्वजनिक प्रसारण संस्थानों की सरकारी नियंत्रण और प्रभाव से स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए।
  • सार्वजनिक प्रसारणकर्ताओं की निगरानी के लिये योग्य एवं निष्पक्ष बोर्ड की नियुक्ति करें और सुनिश्चित करें कि उनका वित्तपोषण सुरक्षित एवं निष्पक्ष हो।
  • मीडिया संगठनों को एक नैतिकता संहिता का पालन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाए जो सटीकता, निष्पक्षता एवं संतुलित रिपोर्टिंग पर बल देती हो।
  • उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिये पत्रकारों के पेशेवर विकास एवं प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया जाए।
  • लोकतांत्रिक समाज में स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रेस के महत्त्व के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाई जाए।
  • प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने एवं सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी करने के लिये यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता समूहों जैसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग बढ़ाया जाए।
  • पत्रकारों की सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र कार्य योजना (UN Plan of Action on the Safety of Journalists) का उद्देश्य पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के लिये एक स्वतंत्र एवं सुरक्षित माहौल का निर्माण करना है।

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के मुद्दे को संबोधित करने के लिये विभिन्न हितधारकों की ओर से ठोस प्रयास की आवश्यकता होगी, जहाँ एक लोकतांत्रिक समाज में स्वतंत्र प्रेस के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये साझा प्रतिबद्धता प्रकट की जाए। यह एक जटिल चुनौती है जिस पर निरंतर ध्यान देने और कार्रवाई करने की आवश्यकता है ताकि देश में एक जीवंत एवं स्वतंत्र मीडिया वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।

अभ्यास प्रश्न: भारत में प्रेस की स्वतंत्रता से संबद्ध प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये। देश में एक निष्पक्ष एवं स्वतंत्र प्रेस की सुरक्षा और संवर्द्धन के लिये उपाय सुझाइये।

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिये राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध

essay on freedom of speech in hindi

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सरोजिनी नायडू पर निबंध (Sarojini Naidu Essay in Hindi) - 100, 200, 500 शब्द

English Icon

सरोजिनी नायडू को "नाइटिंगेल ऑफ इंडिया" या "भारत कोकिला" के नाम से जाना जाता है। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाली प्रमुख महिलाओं में से एक हैं। इस दौरान एक राजनीतिक कार्यकर्ता और प्रतिभाशाली कवयित्री के रूप में उन्होंने अपनी पहचान स्थापित की। भारतीय महिलाओं की मुक्ति में उनके महत्वपूर्ण योगदान के कारण उन्हें प्रसिद्धि प्राप्त हुई। यहाँ सरोजिनी नायडू पर निबंध के कुछ उदाहरण दिए गए हैं। छात्र इसके माध्यम से परीक्षा में सरोजिनी नायडू पर हिंदी में निबंध लिख सकते है।

सरोजिनी नायडू पर निबंध (Sarojini Naidu Essay in Hindi) : सरोजिनी नायडू पर 100 शब्दों का निबंध (100 Words Essay on Sarojini Naidu)

सरोजिनी नायडू पर निबंध (sarojini naidu essay in hindi) : सरोजिनी नायडू पर 200 शब्दों का निबंध (200 words essay on sarojini naidu), सरोजिनी नायडू पर निबंध (sarojini naidu essay in hindi) : सरोजिनी नायडू पर 500 शब्दों का निबंध (500 words essay on sarojini naidu).

सरोजिनी नायडू पर हिंदी में अनुच्छेद (Paragraph on Sarojini Naidu in hindi)

सरोजिनी नायडू पर हिंदी में जानकारी (Sarojini Naidu information in hindi) - 13 फरवरी, 1879 को भारत के हैदराबाद में एक बंगाली परिवार ने सरोजिनी नायडू का दुनिया में स्वागत किया। उन्होंने कम उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने कैम्ब्रिज में किंग्स कॉलेज और गिर्टन दोनों में पाठ्यक्रमों में दाखिला लेकर अपनी शिक्षा पूर्ण की। जब वह एक बच्ची थी, तो कुछ भारतीय परिवारों ने अपनी बेटियों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। हालाँकि, सरोजिनी नायडू के परिवार ने लगातार उदार मूल्यों का समर्थन किया। वह न्याय की लड़ाई में विरोध की प्रभावशीलता पर विश्वास करते हुए बड़ी हुईं। भारत की कोकिला, जैसा कि सरोजिनी नायडू को कहा जाता है, कविता में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें यह नाम प्रदान किया गया। उनकी कविता, जो कल्पना में ज्वलंत थी, ने अलगाव, प्रेम और मृत्यु जैसे कई विषयों को शामिल किया।

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सरोजिनी नायडू की जीवनी हिंदी में (Sarojini naidu biography in hindi) -भारत की कोकिला

सरोजिनी नायडू एक प्रसिद्ध कवयित्री और भारतीय राजनीतिक कार्यकर्ता दोनों ही थीं। उन्होंने नमक सत्याग्रह और स्वतंत्रता के लिए भारत की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसी गतिविधियों का भी नेतृत्व किया। उन्होंने महिलाओं और नागरिक अधिकारों की हमेशा वकालत की। उन्होंने अपनी उत्कृष्ट कविताओं के लिए मोनिकर "भारत कोकिला," या "नाइटिंगेल ऑफ इंडिया", अर्जित किया। महात्मा गांधी ने उन्हें कविता की काव्यात्मक सुंदरता, ज्वलंत कल्पना और विभिन्न रंगों के कारण यह नाम दिया। द बर्ड ऑफ टाइम: सॉन्ग्स ऑफ लाइफ, डेथ एंड द स्प्रिंग, उनकी कविताओं का एक संग्रह, साल 1912 में जारी किया गया था।

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मेरी प्रेरणा

सरोजिनी नायडू ने भारत में स्वतंत्रता संग्राम में एक असाधारण और अद्वितीय योगदान दिया। उन्होंने मुझे बहुत प्रेरित किया। इतिहास और पुस्तकों में उनके बारे में जानकर मुझे बहुत प्रेरणा मिली। मैंने हमेशा उनके जैसा बनने और अपने देश के लिए सकारात्मक योगदान देने की आकांक्षा की है। स्वतंत्रता संग्राम के चरम पर, उन्होंने देश भर के युवाओं को प्रेरणा स्रोत के रूप में काम किया, और वह अब भी कइयों की प्रेरणा स्रोत हैं।

सरोजिनी नायडू की कविताएं, कहानियां और साहित्य के अन्य रूप अपने पीछे एक छाप छोड़ जाते हैं, जिससे मुझे हमेशा उनके जैसा बनने की प्रेरणा मिलती है। एकीकरण की उनकी अवधारणा ने एकता की नींव रखी। भारत की कोकिला हमेशा सभी उम्र के लोगों के लिए एक प्रशंसा के रूप में काम करेगी।

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शिक्षा और प्रारंभिक जीवन (Education and Early Life)

13 फरवरी, 1879 को सरोजिनी नायडू का जन्म हैदराबाद, आंध्र प्रदेश, भारत में हुआ था। उनके पिता, अघोरी नाथ चट्टोपाध्याय, एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से विज्ञान इंजीनियर के रूप में स्नातक थे। चूंकि वह एक छोटी बच्ची थी, उन्होंने असाधारण प्रतिभा का सबूत दिखाया था। उन्हें "भारत कोकिला" के रूप में जाना जाने लगा। उन्होंने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा पास की और अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए किंग्स कॉलेज लंदन और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गिर्टन कॉलेज में दाखिला लिया।

वह उन चुनिंदा लोगों में से एक थीं जिन्होंने अपनी जाति के बाहर शादी की। स्वतंत्रता से पहले, भारत में अंतर-जातीय विवाह असामान्य थे, लेकिन सरोजिनी नायडू ने 19 साल की उम्र में परंपरा की अवहेलना की और पंडित गोविंद राजुलू नायडू से विवाह किया।

सरोजिनी नायडू की कृतियाँ

सरोजिनी नायडू ने लिखना तब शुरू किया जब वह काफी छोटी थीं। स्कूल में रहते हुए ही उन्होंने फारसी नाटक महेर मुनीर लिखा और हैदराबाद के निज़ाम ने भी इसकी प्रशंसा की थी। उनका पहला कविता संग्रह द गोल्डन थ्रेसहोल्ड साल 1905 में जारी हुआ था। उनकी कविताओं की श्रृंखला आज भी पहचानी जाती है। उन्होंने बच्चों के लिए कविताएँ और अधिक आलोचनात्मक कविताएँ लिखी हैं जो देशभक्ति, त्रासदी और रोमांस जैसे विषयों का पता लगाती हैं।

साथ ही कई सांसदों ने उनके काम की तारीफ की। उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता, हैदराबाद के बाज़ारों में, द बर्ड ऑफ़ टाइम: सांग्स ऑफ़ लाइफ, डेथ, एंड द स्प्रिंग में पाई जा सकती है, जिसे उन्होंने साल 1912 में प्रकाशित किया था। इस कविता को इसकी शानदार कल्पना के लिए आलोचकों से उच्च मान्यता प्राप्त हुई। उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी ने उनके संग्रह ‘द फेदर ऑफ द डॉन’ को उनके लिए एक श्रद्धांजलि के रूप में प्रकाशित किया।

सरोजिनी नायडू का योगदान

साल 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद, सरोजिनी नायडू भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गईं। उन्होंने साल 1915 और 1918 के बीच भारत में कई यात्राएँ कीं, राष्ट्रवाद और सामाजिक कल्याण के लिए चर्चा की तथा लोगों को प्रेरित किया। भारतीय महिला संघ की स्थापना 1917 में सरोजिनी नायडू की सहायता से की गई थी।

वह साल 1920 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित सत्याग्रह आंदोलन में शामिल हुईं। उन्हें साल 1930 के नमक मार्च में कई अन्य प्रसिद्ध नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ भाग लेने के लिए हिरासत में लिया गया था।

वह भारत छोड़ो और सविनय अवज्ञा आंदोलनों का नेतृत्व करने वाली प्रमुख नेताओं में से एक थीं। कई बार हिरासत में लिए जाने के बावजूद वह भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने अभियान में लगी रहीं। वह भारत की पहली महिला गवर्नर बनीं जब उन्हें संयुक्त प्रांत का नेतृत्व करने के लिए चुना गया जब भारत ने अंततः उस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया।

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मेरी देशभक्ति

सरोजिनी नायडू ने भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में अपने लेखन के माध्यम से एक जबरदस्त तथा अद्वितीय योगदान दिया। उन्होंने मुझमें देशभक्ति की भावना जगाई। उनके माध्यम से मुझे समझ आया कि देशभक्त होना कितना जरूरी है और देश के प्रति निष्ठा होना कितना जरूरी है। वह हमेशा मेरी आदर्श और मेरी प्रेरणा रहेंगी।

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पूरा देश और मैं हमेशा उनका ऋणी रहेंगे। मैं उनकी और उनकी कविताओं की ओर देखूंगा और कुछ ऐसा करूंगा जिस पर मेरा देश गर्व करेगा जैसा कि उन पर करता है। सभी महिलाएं सरोजिनी नायडू से प्रेरणा लेती रहती हैं। उन्होंने एक महिला के रूप में जो कुछ भी करने की ठान ली थी, उसे पूरा किया और कभी किसी चीज को कमजोरी नहीं बनने दिया। उन्होंने महिलाओं को साधन दिया और एक मानक स्थापित किया जिसका आज भी पालन किया जाता है।

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Essay On Freedom Struggle Of India In Hindi In 500+ Words

Essay On Freedom Struggle Of India In Hindi

हेलो फ्रेंड, इस पोस्ट “ Essay On Freedom Struggle Of India In Hindi In 500+ Words “ में, हम एक निबंध के रूप में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे। तो…

चलिए शुरू करते हैं…

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का भारत के इतिहास में बहुत महत्व है।

देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए पूरे भारत की जनता ने बहुत संघर्ष किया।

आजादी की खातिर हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन की चिंता किए बिना हंसते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

अगर उस समय देशवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज नहीं उठाई होती तो शायद आज भी देश अंग्रेजों का गुलाम होता।

The Arrival Of British In India | भारत में अंग्रेजों का आगमन

प्रारंभ में ब्रिटिश, ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से व्यापार करने के उद्देश्य से वर्ष 1600 में भारत आए।

रेशम, चाय और कपास के व्यापार की आड़ में उसने भारत में अराजकता फैलानी शुरू कर दी और धीरे-धीरे देश को अपना गुलाम बना लिया।

और उसके बाद, अंग्रेजों ने पूरे देश का शासन अपने हाथों में ले लिया और भारतीयों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया।

और इससे धीरे-धीरे देश में आजादी की मांग उठने लगी।

The Revolt Of 1857 | 1857 का विद्रोह

अंग्रेजों की तानाशाही से तंग आकर देशवासियों ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का निर्णय लिया। और वर्ष 1857 में पहला स्वतंत्रता संग्राम एक भारतीय सैनिक मंगल पांडे ने शुरू किया था।

यह संघर्ष ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक महान घटना थी। यह संघर्ष आकस्मिक नहीं था बल्कि पूरी सदी के असंतोष का परिणाम था।

1857 का विद्रोह जो मेरठ में सैन्य कर्मियों के विद्रोह के साथ शुरू हुआ, जल्द ही पूरे भारत में फैल गया और ब्रिटिश शासन के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया।

इस संघर्ष में सैनिकों के साथ-साथ आम नागरिकों, देश की बड़ी रियासतों ने भी हिस्सा लिया। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के खिलाफ एक शानदार युद्ध लड़ा और अपनी सेना का नेतृत्व किया।

भारत के हिंदू, मुस्लिम, सिख और अन्य सभी बहादुर सपूतों ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और देश से ब्रिटिश शासन को हटाने का संकल्प लिया।

इस क्रांति को 1 वर्ष के भीतर ब्रिटिश शासन द्वारा नियंत्रित किया गया था जो 10 मई 1857 को मेरठ में शुरू हुआ और 20 जून 1858 को ग्वालियर में समाप्त हुआ।

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Indian Freedom Struggle During 1857-1947 | 1857-1947 के दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

1857 की क्रांति के कारण ब्रिटिश शासन धीरे-धीरे लड़खड़ाने लगा।

एक के बाद एक अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलन शुरू किए गए।

उस दौरान कई ऐसे आंदोलन हुए जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई।

सविनय अवज्ञा आंदोलन भी नमक पर ब्रिटिश एकाधिकार के खिलाफ शुरू किए गए इन प्रमुख आंदोलनों में से एक था।

इसकी शुरुआत 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुई थी, जिसकी शुरुआत गांधी जी के प्रसिद्ध दांडी मार्च से हुई थी।

इस बीच, भगत सिंह को सिर्फ 23 साल की उम्र में अंग्रेजों ने फांसी दे दी। लाला लाजपत राय की मृत्यु ने भगत सिंह को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

भगत सिंह ने इसका बदला अधिकारी जॉन सैंडर्स की हत्या करके लिया और उन पर लाहौर षडयंत्र का मुकदमा भी चलाया गया।

और 23 मार्च 1931 की रात को भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी पर लटका दिया गया था। इसके बाद 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ।

इस आंदोलन ने भारत के लोगों को आशा की किरण दिखाई, लेकिन कठिन संघर्षों के बावजूद यह आंदोलन इतना सफल नहीं रहा। लेकिन इसने ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दीं।

इसी तरह सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, चंद्रशेखर आजाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू आदि जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को स्वतंत्र बनाने के लिए बहुत संघर्ष किया।

जल्द ही ब्रिटिश शासकों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और भारत छोड़ने का फैसला किया और भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली।

इस तरह भारतीय सैनिकों के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानियों के कड़े संघर्ष के बाद देश को आजादी मिली। और आज़ादी के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी।

Conclusion | निष्कर्ष  (Essay On Freedom Struggle Of India In Hindi)

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास बहुत विशाल है। रॉलेट एक्ट, साइमन कमीशन, जलियांवाला बाग हत्याकांड आदि जैसी कई ऐसी घटनाएं जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वतंत्रता संग्राम से हम सभी को भी प्रेरणा लेनी चाहिए और देश के प्रति समर्पण की भावना हमेशा अपने मन में रखनी चाहिए।

इस पोस्ट “ Essay On Freedom Struggle Of India In Hindi In 500+ Words “, को पढ़ने के लिए धन्यवाद।

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मेरे लिए स्वतंत्रता का अर्थ पर निबन्ध | Essay on What Freedom Means to Me in Hindi

essay on freedom of speech in hindi

मेरे लिए स्वतंत्रता का अर्थ पर निबन्ध | Essay on What Freedom Means to Me in Hindi!

स्वतंत्रता शब्द का अर्थ विभिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न होता है । एक भूखे व्यक्ति के लिए भोजन का प्रत्येक निवाला भूख से मुक्ति का साधन है । नामीबिया के एक अफ्रीकी व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता का अर्थ जातीय आधार पर प्रभुत्व से छुटकारा है । दार्शनिक रूसो के अनुसार आम सहमति का अर्थ ही स्वतंत्रता है । उम्रकैदी के लिए जेल से रिहाई की वास्तविक स्वतंत्रता है । असाध्य और सराहनीय बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के लिए मृत्यु ही स्वतंत्रता का एकमात्र उपाय है । मेरे लिए स्वतंत्रता का अर्थ इन सब से भिन्न है ।

ADVERTISEMENTS:

स्वतंत्रता की मान्य परिभाषा ‘प्रतिबंधों की अनुपस्थिति’ है । मैं भी इस पर विश्वास करता हूँ । जीवन के कई क्षेत्रों में, जो दूसरों को सीधे प्रभावित नहीं करते, मैं उनमें अपनी मर्जी से जीना चाहता हूँ । जैसे भोजन, वस्त्र, रुचि और अभिरुचियाँ आदि, मेरे जीवन के व्यक्तिगत पहलू जैसे शिक्षा, व्यवसाय अथवा विवाह । निस्संदेह इन सब पर मैं अपने परिवारजनों से सलाह लूँगा लेकिन पसंद अंतत: मेरी ही होगी ।

शिक्षा प्राप्ति के बाद जब मैंने एक विस्तृत संसार में कदम रखा तो मैंने पाया कि नीति ही जीवन के राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक पक्षों से जुड़ी वास्तविक स्वतंत्रता प्रदान करती है ।

मैं विश्व के विशालतम प्रजातांत्रिक देश का नागरिक होने के नाते अत्यंत खुश हूँ । यहाँ प्रत्येक नागरिक को राजनैतिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकार प्राप्त हैं । मैं इतनी आर्थिक स्वतंत्रता तो चाहूँगा ही कि ईमानदारी से किए गए काम के बदले में दो जून रोटी मिले ।

एक व्यक्ति का भोजन दूसरे के लिए विष नहीं बनना चाहिए अर्थात एक व्यक्ति के अधिकार दूसरे व्यक्ति के अधिकारों में बाधक नहीं होने चाहिए । यह व्यवस्था तभी संभव है, जबकि स्वतंत्रता अनुशासन से समन्वित हो । यदि विद्यार्थी नकल मारने की स्वतंत्रता, राजनैतिक दल अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु आम जीवन में अव्यवस्था फैलाने, अपराधी प्रवृति के लोग अपनी असामाजिक गतिविधियों की स्वतंत्रता की माँग करने लगें, तो कोई भी स्वतंत्रता प्राप्ति में सफल नहीं हो सकता है ।

इसलिए अनुशासन कायम रखने के लिए कई प्रकार के क़ानूनों, नियमों और शर्तों की आवश्यकता होती है । मैं ऊपर से आरोपित अनुशासन की अपेक्षा आत्म अनुशासन युक्त स्वतंत्रता को पसंद करता हूँ ।

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One of the fundamental rights of the citizens of India is ‘Freedom of Speech’. This is allowed to the citizens by a lot of countries to empower the citizens to share their own thoughts and views. This freedom of speech essay is for students of class 5 and above. The language used in this essay is plain and simple for a better understanding of the students. This freedom of speech essay example will help the students write a paragraph on freedom of speech in their own words easily.

Long Essay on Freedom of Speech

The phrase “Freedom of Speech” has been misinterpreted by some individuals who either do not actually understand the meaning of the phrase completely or have a totally different agenda in mind altogether. Every democratic country gives its citizens this freedom. The same is guaranteed by the Constitution of India too. Irrespective of your gender, religion, caste, or creed, you are guaranteed that freedom as an Indian. The values of democracy in a country are defined by this guaranteed fundamental freedom. The freedom to practice any religion, the freedom to express opinions and disagreeing viewpoints without hurting the sentiments or causing violence is what India is essentially made up of.

Indians stand out for their secularism and for spreading democratic values across the world. Thus, to save and celebrate democracy, enforcing freedom of speech in India becomes a necessity. Freedom of speech is not only about the fundamental rights, it’s also a fundamental duty to be done by every citizen rightfully so as to save the essence of democracy.

In developed democracies like the US, UK, Germany or France, we see a “freedom of speech” that is different from what we see in authoritarian countries like China, Malaysia or Syria and failed democratic countries like Pakistan or Rwanda. These governance systems failed because they lacked freedom of speech. Freedom of press gives us a yardstick to gauge the freedom of speech in a country. A healthy, liberal and strong democracy is reflected by a strong media presence in a country, since they are supposed to be the voice of the common people. A democracy that has a stomach for criticisms and disagreements is taken in a positive way. 

Some governments get very hostile when faced with any form of criticism and so they try to oppress any voices that might stand against them. This becomes a dangerous model of governance for any country. For example, India has more than hundred and thirty crores of population now and we can be sure that every individual will not have the same thought process and same views and opinions about one thing. A true democracy is made by the difference of opinions and the respect people have for each other in the team that is responsible for making the policies.

Before making a choice, all aspects and angles of the topic should be taken into consideration. A good democracy will involve all the people - supporters and critics alike, before formulating a policy, but a bad one will sideline its critics, and force authoritarian and unilateral policies upon all of the citizens.

Sedition law, a British-era law, was a weapon that was used in India to stifle criticism and curb freedom of speech during the pre-independence era. Through section 124A of Indian Penal Code, the law states that if a person with his words, written or spoken, brings hatred, contempt or excites tension towards a government or an individual can be fined or jailed or fined and jailed both. This law was used by the Britishers to stifle the freedom fighters. Today it is being used by the political parties to silence criticism and as a result is harming the democratic values of the nation. 

Many laws in India also protect the people in rightfully exercising their freedom of expression but the implementation of these laws is proving to be a challenge. Freedom of speech cannot be absolute. In the name of freedom of speech, hatred, tensions, bigotry and violence too cannot be caused in the society. It will then become ironically wrong to allow freedom of speech in the first place. Freedom of speech and expression should not become the reason for chaos and anarchy in a nation. Freedom of speech was stifled when article 370 got revoked in Kashmir. Not that the government was trying to go against the democratic values, but they had to prevent the spread of fake news, terrorism or any type of communal tensions in those areas.

Short Essay on Freedom of Speech

Freedom of speech allows the people of our country to express themselves, and share their ideas, views and opinions openly. As a result, the public and the media can comment on any political activity and also express their dissent towards anything they think is not appropriate.

Various other countries too provide freedom of speech to their citizens but they have certain limitations. Different countries have different restrictions on their freedom of speech. Some countries also do not allow this fundamental right at all and the best example being North Korea. There, the media or the public are not allowed to speak against the government. It becomes a punishable offence to criticize the government or the ministers or the political parties.

Key Highlights of the Essay - Freedom of Speech

Every democratic country gives its citizens the Freedom of Speech so as to enable the citizens to freely express their individual views, ideas and concerns. The freedom to be able to practice any religion, to be able to express individual secularism and for spreading democratic values across the world. In order to be able to save and to celebrate democracy, enforcing freedom of speech in India Is essential. Freedom of speech  about fundamental rights is also a fundamental duty of citizens in order to save the essence of democracy.  In a country, a healthy, liberal and strong democracy is always  reflected and can be seen through a strong media presence, as the media are the voice of the common people.  When faced with any form of criticism, we see some governments get very hostile,  and they  try to oppress  and stop any kind of  voices that might go against them. This is not favorable for any country. 

A good democracy involves all the people - all their various  supporters and critics alike, before they begin formulating any policies. India had the Sedition law, a British-era law that is used to stifle criticism and curb freedom of speech during the pre-independence era. The section 124A of Indian Penal Code, this law of sedition stated that if a person with his words, written or spoken, brings hatred, contempt or excites tension towards a government or an individual, then he can be fined or jailed or both. Using  freedom of speech, people spread hatred, unnecessary tensions, bigotry and some amount of violence too in the society. Ironically  in such cases, it will be wrong to allow freedom of speech. The reasons for chaos and anarchy in a nation should not be due to  Freedom of speech and expression. This law was stifled when article 370 got revoked in Kashmir, in order to prevent the spread of fake news, terrorism or any type of communal tensions in those areas.

Freedom of speech gives people of our country, the freedom to express themselves, to be able to share their ideas, views and opinions openly, where the public and the media can express and comment on any political activities and can also be able to express their dissent towards anything they think is not appropriate. Different countries have different restrictions on their freedom of speech. And it is not proper to comment on that .In Fact, there are some countries which does not allow this fundamental right , for example, North Korea where neither the media nor the public have any right to speak against or even for the government and it is a punishable offense to openly criticize the government or the or anyone in particular.

While freedom of speech lets the society grow it could have certain negative outcomes. It should not be used to disrespect or instigate others. The media too should not misuse it. We, the people of this nation, should act responsibly towards utilizing its freedom of speech and expression. Lucky we are to be citizens of India. It’s a nation that respects all its citizens and gives them the rights needed for their development and growth.

A fundamental right of every citizen of India, the  ‘Freedom of Speech’ allows citizens to share their individual thoughts and views.

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FAQs on Essay on Freedom of Speech in English Free PDF download

1. Mention five lines for Freedom of Speech Essay?

i) A fundamental right that is guaranteed to citizens of a country to be able to express their opinions and points of view without any kind of censorship.

ii) A democracy’s health depends on the extent of freedom of expression of all its citizens.

iii) Freedom of speech is never absolute in nature.

iv) New Zealand, USA or UK rank  high in terms of freedom of speech by its citizens.

v) A fundamental right in the Indian constitution is the Freedom of Speech and Expression.

2. Explain Freedom of Speech?

A fundamental right of every citizen of India, Freedom Of Speech allows every citizen the freedom and the right to express all their views, concerns, ideas and issues relating to anything about their country. Freedom of Speech is never actual in nature  and has its limits too. It cannot be used for any kind of illegal purposes.The health of a democracy depends on the extent of freedom of expression of its citizens.

3. What happens when there is no Freedom of Speech?

A country will become a police and military state with no democratic and humanitarian values in it if there is no freedom of speech. Freedom of Speech is a fundamental right for all citizens, and a failure to not being able to express one’s ideas, beliefs, and thoughts will result in a non authoritarian and non democratic country.  Failure to have freedom of speech in a country would mean that the rulers or the governments of those countries have no respect for its citizens.

4. Where can we get study material related to essay writing ?

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5. Why should students choose Vedantu for an essay on the topic 'Freedom of Speech’?

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6. What is Freedom of Speech?

Freedom of speech is the ability to express our opinions without any fear.

7. Which country allows the highest level of Freedom of Speech to its citizens?

The USA is at the highest with a score of 5.73.

8. Is Freedom of Speech absolute?

No, freedom of speech cannot be absolute. It has limitations.

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Essay on importance of freedom in hindi

       स्वतंत्रता एक ऐसी स्थिति है जिसमें लोगों को बाहरी प्रतिबंधों के बिना बोलने, करने और अपने सुख को प्राप्त करने का अवसर मिलता है। स्वतंत्रता हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उससे हमें अपने नए विचार, रचनात्मक कला, उत्पादन और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने का मौका मिलता है।

      हमारी स्वतंत्रता हमें अत्यंत प्रिय है। यह आज़ादी की लड़ाई के फलस्वरूप हमें प्राप्त हुई है। अनेक भारतीयों ने अपना सुख एवं जीवन त्याग कर हमें यह भेंट दी है। स्वतन्त्र भारत में हम अपने देश की प्रगति के लिए कार्य कर सकते हैं जो अंग्रेजों के अधीन रहकर करना संभव नहीं था।

      स्वतंत्रता एक ऐसी स्थिति है जिसमें लोगों को बाहरी प्रतिबंधों के बिना बोलने, करने और अपने सुख को प्राप्त करने का अवसर मिलता है। स्वतंत्रता हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उससे हमें अपने नए विचार, रचनात्मक कला, उत्पादन और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने का मौका मिलता है।

     हमारी स्वतंत्रता हमें अत्यंत प्रिय है। यह आज़ादी की लड़ाई के फलस्वरूप हमें प्राप्त हुई है। अनेक भारतीयों ने अपना सुख एवं जीवन त्याग कर हमें यह भेंट दी है। स्वतन्त्र भारत में हम अपने देश की प्रगति के लिए कार्य कर सकते हैं जो अंग्रेजों के अधीन रहकर करना संभव नहीं था।

      स्वतंत्र होने के कारण हमलोग अपने नए संविधान को गठित कर सके। इसी के कारण हम नागरिकों के अधिकार प्राप्त करने में सफल हुए हैं। समाज में सुधार और सबके लिए सुविधायें उपलब्ध हो पाई है। प्रजातंत्र में लोग देश के शासन के लिए सही व्यक्तियों का चुनाव कर सकते हैं और अपने कार्य सिद्ध करवा सकते हैं। इसलिए स्वतंत्रता का हमारे लिए बहुत महत्व है।

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Essay on Freedom of Speech in English for Students

essay on freedom of speech in hindi

  • Updated on  
  • Jun 1, 2024

Essay on Freedom of Speech

Article 19 of the Indian Constitution grants freedom of speech and expression to every citizen. This freedom guarantees us to express our thoughts, and opinions and share experiences. This freedom is not only related to an individual but to the media, political parties, and government also. As a student, you must know all about your fundamental rights and how to exercise them. Today, we will discuss an essay on freedom of speech and how it can be exercised.

Short Essay on Freedom of Speech

Freedom of speech is one of the constitutional rights of our democratic country. This right states, ‘ The concept of free speech has been practised by writers and artists since ancient times, but it was first introduced into the legal system in 1689.  IT is not just a fundamental right but an essential factor normal functioning of democracy. 

It emphasises free speech, expression of opinions and the right of minorities to be heard.  Apart from the democratic approach, it also promotes self-expression which is necessary for an individual’s dignity. Despite its importance, this right has several challenges like hate speech and misinformation, which can even lead to violence. The social media platform provides a large platform for the misuse of this freedom.

‘Hence, it is important to tackle these challenges by promoting free speech and ensuring social safety. By upholding the value of this fundamental right, we can ensure a safe and free society.
Thank you!’

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Long Essay on Freedom of Speech

Freedom of speech is a fundamental right under Article 19 of the Indian Constitution. This right is mandatory for an equal and free society where everyone has the freedom to express themselves. The freedom of speech states, ‘

The concept of freedom of speech goes back to ancient times when many of our writers displayed the freedom of their opinions and viewpoints through their writings. The foundation of freedom of speech in the modern legal system was introduced in the United States Constitution which states, “Congress shall make no law… abridging the freedom of speech, or of the press.” Another article of the United Declaration of Human Rights states,

Free speech is more than just a right. It is an essential component for the normal functioning of society. For a democratic country, the citizens must be well-informed and able to express their opinions on several issues. Free speech ensures that leaders are held accountable and the voices of minorities are heard. Apart from the democratic approach, free speech also promotes self-expression. It allows an individual to express their opinions, ideas, viewpoints, and perspectives to others. The ability to express freely gives a sense of empowerment and a will to live with dignity.

Despite its importance, free speech faces several challenges in the modern world. One of the challenges is the misuse of this freedom. People associate this right with the freedom to say anything that comes to their mind. This gives rise to hate speech and the spread of misinformation. Social media has given these types of challenges a big platform to raise. The power of hate speech cannot be underestimated since it can instigate violence and undermine public trust.

It is very important to balance freedom of speech while protecting society. Many countries have implemented laws against hate speech and misinformation, but the fundamental difficulty is defining what is and is not acceptable in the context of free speech. Through all this, it is very important to understand that freedom of speech is a fundamental right; it is not absolute. This right needs to be balanced with other societal values like equality, security, and other moral values. It is much more important that hate speech doesn’t harm any marginalized group, based on religion, gender or sexual orientation.

We all must learn to respect and value others’ freedom of speech. Understanding the sensitivity of this right is what makes it more essential for a healthy democracy. Getting educated about this topic while balancing its freedom is necessary for exercising this rightfully respectful discourse. BY upholding the principle of this fundamental right in the context of modern times, we can ensure that freedom of speech serves as a pillar of a free society.

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A.1 Freedom of speech is one of the constitutional rights of our democracy. The freedom of speech states, “All citizens shall have the right to freedom of speech and expression.”

A.2 The concept of freedom of speech goes back to ancient times when many of our writers and artists displayed the freedom of their opinions and viewpoints through their writings or artworks.

A.3 Right to Speech faces several challenges in the modern world. One of the challenges is the misuse of this freedom. People associate this right with the freedom to say anything that comes to their mind. This gives rise to hate speech and the spreading of misinformation. The power of hate speech cannot be underestimated since it can instigate violence and undermine public trust.

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Bhumika Sharma

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I thank the Charles Veillon Foundation for honoring me with the 2023 European Essay Award. It may not be immediately apparent how delighted I am to receive it. It’s even possible that I am gloating. What makes me happiest is that it is a prize for literature. Not for peace. Not for culture or cultural freedom, but for literature. For writing. And for writing the kind of essays that I write and have written for the past 25 years.

They have mapped, step by step, India’s descent (although some see it as an ascent) into first majoritarianism and then full-blown fascism. Yes, we continue to have elections, and for that reason, in order to secure a reliable constituency, the ruling Bhartiya Janata Party’s message of Hindu supremacism has relentlessly been disseminated to a population of 1.4 billion people. Consequently, elections are a season of murder, lynching and dog-whistling – the most dangerous time for India’s minorities, Muslims and Christians in particular.

It is no longer just our leaders we must fear, but a whole section of the population. The banality of evil, the normalisation of evil is now manifest in our streets, in our classrooms, in very many public spaces. The mainstream press, the hundreds of 24-hour news channels have been harnessed to the cause of fascist majoritarianism. India’s Constitution has been effectively set aside. The Indian Penal Code is being rewritten. If the current regime wins a majority in 2024, it is very likely that we will see a new Constitution.

It is very likely that the process of what is called “delimitation” – a reordering of constituencies – or gerrymandering as it is known in the US, will take place, giving more parliamentary seats to those Hindi-speaking states in North India where the BJP has a base. This will cause great resentment in the southern states and has the potential to balkanise India. Even in the unlikely event of an electoral defeat, the supremacist poison runs deep and has compromised every public institution that is meant to oversee checks and balances. Right now, there are virtually none, except a weakened and undermined Supreme Court.

Let me thank you once again for this very prestigious prize and for the recognition of my work –although I must tell you that a lifetime achievement award makes a person feel old. I’ll have to stop pretending that I’m not. It’s a great irony in some ways to receive a prize for 25 years of writing warning about the direction in which we were headed – that was not heeded, but instead often mocked and criticised by liberals and those who considered themselves “progressive” too.

But now the time for warning is over. We are in a different phase of history. As a writer, I can only hope that my writing will bear witness to this very dark chapter that is unfolding in my country’s life. And hopefully, the work of others like myself lives on, it will be known that not all of us agreed with what was happening.

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The Hindenburg Report accuses the Adani Group of engaging in a “brazen stock manipulation and accounting fraud scheme”, which – through the use of offshore shell entities – artificially overvalued its key listed companies and inflated the net worth of its chairman. According to the report, seven of Adani’s listed companies are overvalued by more than 85%. Modi and Adani have known each other for decades. Their friendship was consolidated after the 2002 Gujarat pogrom.

At the time, much of India, including corporate India recoiled in horror at the open slaughter and mass rape of Muslims that was staged on the streets of Gujarat’s towns and villages by vigilante Hindu mobs seeking “revenge”. Gautam Adani stood by Modi. With a small group of Gujarati industrialists he set up a new platform of businessmen. They denounced Modi’s critics and supported him as he launched a new political career as “Hindu Hriday Samrat”, the Emperor of Hindu Hearts. So was born what is known as the Gujarat Model of “development”: violent Hindu nationalism underwritten by serious corporate money.

In 2014, after three terms as chief minister of Gujarat, Modi was elected prime minister of India. He flew to his swearing-in ceremony in Delhi in a private jet with Adani’s name emblazoned across the body of the aircraft. In the nine years of Modi’s tenure, Adani became the world’s richest man. His wealth grew from $8 billion to $137 billion. In 2022 alone, he made $72 billion, which is more than the combined earnings of the world’s next nine billionaires put together. The Adani Group now controls a dozen shipping ports that account for the movement of 30% of India’s freight, seven airports that handle 23% of India’s airline passengers, and warehouses that collectively hold 30% of India’s grain. It owns and operates power plants that are the biggest generators of the country’s private electricity.

Yes, Gautam Adani is one of the world’s richest men, but if you look at their roll-out during elections, the BJP is not just India’s, but perhaps even the world’s richest political party. In 2016 the BJP introduced the scheme of electoral bonds to allow corporations to fund political parties without their identities being made public. It has become the party with by far the largest share of corporate funding. It looks very much as though the twin towers have a common basement.

Just as Adani stood by Modi in his time of need, the Modi government has stood by Adani and has refused to answer a single question raised by members of the opposition in Parliament, going so far as to expunge their speeches from the parliament record.

While the BJP and Adani accumulated their fortunes, in a damning report Oxfam said that the top 10% of the Indian population holds 77% of the total national wealth. Seventy three per cent of the wealth generated in 2017 went to the richest 1%, while 670 million Indians who comprise the poorest half of the population saw only a 1% increase in their wealth. While India is recognised as an economic power with a huge market, most of its population lives in crushing poverty.

Millions live on subsistence rations delivered in packets with Modi’s face printed on them. India is a very rich country with very poor people. One of the most unequal societies in the world. For its pains, Oxfam India has been raided too. And Amnesty International and a host of other troublesome NGOs in India have been harassed into shutting down.

None of this has made any difference whatsoever to the leaders of Western democracies. Within days of the Hindenburg-BBC moment, after “warm and productive” meetings, Prime Minister Modi, President Joe Biden and President Emmanuel Macron announced that India would be buying 470 Boeing and Airbus aircraft. Biden said the deal would create over million American jobs. The Airbus will be powered by Rolls Royce engines. “For the UK’s thriving aerospace sector,” PM Rishi Sunak said, “the sky is the limit.”

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