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मानव अधिकार दिवस पर निबंध (Human Rights Day Essay in Hindi)

मानवाधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के उद्देश्य से दुनिया भर के कई देश 10 दिसंबर को मानव अधिकार दिवस मनाते हैं। यह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से प्रतिभागियों के साथ व्यापक रूप से मनाया जाता है। आज मैंने अपने पाठकों के लिए मानवाधिकार दिवस पर अलग-अलग शब्द संख्या में निन्मलिखित निबंध उपलब्ध कराये हैं जो आपको इस विषय के बारे में कई तरह की जानकारी प्राप्त करने में मदद करेंगे।

मानव अधिकार दिवस पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essay on Human Rights Day in Hindi, Manav Adhikar Divas par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (250 शब्द).

मानवाधिकार दिवस विश्व स्तर पर हर वर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है। यह संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर, 1948 को मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाने का जश्न मनाता है। तब से भारत सहित तमाम देश 10 दिसंबर को अपना राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाते हैं।

मानव अधिकार दिवस क्यों मनाया जाता है ?

मानव अधिकार दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना है। इन अधिकारों में शामिल हैं- किफायती, सामाजिक, मौलिक और वे अन्य अधिकार जो किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए दिए जाने चाहिए क्योंकि वह एक इंसान है।

इस दिन मनाये जाने वाले आयोजन लोगों को अपने स्वयं के मानवाधिकारों के प्रति जागरूक करने पर केंद्रित होते हैं। यह अधिकारियों के प्रति जिम्मेदारी की भावना लाने के साथ-साथ उन्हें किसी भी मानवाधिकार के उल्लंघन के लिए जवाबदेह बनाने का प्रयास भी करता है।

आयोजन का महत्व

अधिक से अधिक लोगों के शिक्षित होने और दुनिया की प्रगति के बावजूद; ऐसे अरबों लोग हैं जो किसी न किसी तरह से उत्पीड़ित और वंचित हैं। ऐसे कई लोग हैं जो हम में से अधिकांश के अधिकारों और विशेषाधिकारों का समान रूप से आनंद नहीं ले पाते हैं। कई अभी भी अपनी जाति, पंथ, धर्म, वित्तीय पृष्ठभूमि या जातीयता के आधार पर भेदभाव का सामना करते हैं। मानव अधिकार दिवस समाज में ऐसे लोगों की परेशानियों को संबोधित करता है और फिर उसे समाज में सभी से सामने लाने का प्रयास करता है।

मानवाधिकार दिवस एक महत्वपूर्ण घटना है और इसे न केवल सरकारी विभागों, बल्कि समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों द्वारा भी पूरी लगन के साथ मनाना चाहिए।

निबंध 2 (400 शब्द)

प्रति वर्ष 10 दिसंबर को विश्व स्तर पर मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है। यह 10 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स (यूडीएचआर) को अपनाने के स्मरणोत्सव का प्रतीक है।

इसके गठन के तीन साल बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 में ‘यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स’ को अपनाया था। यह एक इंसान के रूप में हर व्यक्ति के कानूनी अधिकारों के बारे में विस्तृत दस्तावेज है।

आधिकारिक मान्यता और मानव अधिकार दिवस को मनाने का निर्णय 1950 में महासभा के संकल्प संख्या 423(वी) में लिया गया था। तब से मानव अधिकार दिवस व्यापक रूप से सम्पूर्ण दुनिया भर में मनाया जाता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (भारत)

भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) 12 अक्टूबर, 1993 को गठित एक सार्वजनिक निकाय है। इसे भारत में मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन की जिम्मेदारी दी जाती है।

यह मानवाधिकारों के उल्लंघन की किसी भी रिपोर्ट को ध्यान में रखता है और संबंधित अधिकारियों से स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए भी अधिकृत है। यह मानव अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक नीतिगत उपायों और कानूनों के कार्यान्वयन की भी सिफारिश करता है।

भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी मानवाधिकार दिवस पर कार्यक्रमों के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

भारत में पालन

यह दिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, स्वयंसेवकों और अन्य सरकारी निकायों द्वारा पूरे भारत में मनाया जाता है। इसका मुख्य ध्यान मौलिक अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाना और किसी भी इंसान को दिए गए अधिकारों के बारे में अवगत कराना भी हैं।

एनएचआरसी का मुख्य कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है और इसलिए राजधानी शहर में किये जाने वाले कार्यक्रम बड़े और महत्वपूर्ण भी होते हैं। कार्यक्रमों में वरिष्ठ राजनेता और नौकरशाह आदि शामिल होते हैं। मानव अधिकारों पर उनके विचारों का आदान-प्रदान और इस संबंध में सरकार की पहल के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

बच्चों के लिए चित्रकला प्रतियोगिताओं, निबंध लेखन, जैसी कई प्रतियोगी प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। विषय का चयन कुछ इस तरह से किया जाता है ताकि मानव अधिकारों के बारे में बच्चों में जागरूकता फैलाई जा सके।

घटनाओं में भागीदारी केवल एनएचआरसी और राजनीतिक दलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समाज के सभी वर्गों और कई सरकारी विभागों के सदस्य भी काफी उत्साह के साथ इस दौरान होने वाले कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।

भारत एक ऐसा देश है जिसके मूल में मानव अधिकारों की अवधारणा है। इतिहास में, कभी भी भारत ने संस्कृति, धर्म या अन्य कारकों के आधार पर दूसरों को अपने अधीन करने की कोशिश नहीं की है। भारत के लोग मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प भी लेते हैं। मानवाधिकार वे मूल अधिकार हैं जो मानव को सिर्फ मनुष्य होने के साधारण कारण के लिए होना चाहिए।

निबंध 3 (600 शब्द)

पूरे विश्व में हर साल 10 दिसंबर को मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है। यह दिन मानवाधिकार मुद्दों को संबोधित करने के लिए है। सम्मेलनों, वाद-विवाद और चर्चाओं के साथ-साथ मानव अधिकारों की रक्षा करने वाले महत्वपूर्ण कानून भी प्रस्तावित और कार्यान्वित किए जाते हैं।

मानव अधिकार दिवस – इतिहास

मानव अधिकार दिवस 10 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाने की याद दिलाता है। 1950 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 423(वी) प्रस्ताव पारित किया था। इस संकल्प में, इसने सभी सदस्य राज्यों से 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया था। 1945 में अपनी स्थापना के बाद, यह पहली चीजों में से एक थी जो संयुक्त राष्ट्र ने अपनी स्थापना के बाद की थी।

मानवाधिकार दिवस के संकल्प को 48 राज्यों के पक्ष में अपनाया गया जबकि आठ राज्य इसके लिए अनुपस्थित रहे।

मानवाधिकार दिवस की शुरुआती टिप्पणियां एक सफलता थीं। इस दिन की लोकप्रियता का केवल इस तथ्य से पता लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र डाक विभाग द्वारा 1952 में बेचे गए मानवाधिकार स्मृति टिकटों के लिए 2 लाख अग्रिम आर्डर मिल गए थे।

आज भी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में, राजनीति, सामाजिक कार्यों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के प्रतिभागियों के साथ यह दिन मनाया जाता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य मानव अधिकारों पर चर्चा करना और लोगों को इसके बारे में जागरूक करना भी है।

समाज के गरीब और दबे-कुचले तबकों में मानवाधिकारों के उल्लंघन की आशंका अधिक रहती है। कई मानवाधिकार संगठन यह सुनिश्चित करने के लिए रचनात्मक संचालन योजनाओं का चार्ट तैयार करते हैं कि मानवाधिकारों के उल्लंघन के हर मुद्दे पर कैसे ध्यान दिया जाए।

विश्वभर की तिथियाँ

हालांकि 10 दिसंबर को पूरे विश्व में मानवाधिकार दिवस व्यापक रूप से मनाया जाता है; फिर भी कुछ ऐसे देश हैं जहाँ तारीखों में थोड़ा बदलाव है।

उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य में, एक मानवाधिकार सप्ताह मनाया जाता है, जो 9 दिसंबर से शुरू होता है। सप्ताह 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा जारी किए गए राष्ट्रपति के आदेश में घोषित किया गया था।

एक अन्य उदाहरण दक्षिण अफ्रीका का है, जहां मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर के बजाय 21 मार्च को मनाया जाता है। इस तारीख का चुनाव साल 1960 के शार्पविले नरसंहार और उसके पीड़ितों को याद करने के लिए चुना गया था। नरसंहार 21 मार्च, 1960 को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद शासन के खिलाफ विरोध के रूप में हुआ था।

मध्य प्रशांत महासागर में स्थित किरिबाती गणराज्य में 10 दिसम्बर के बजाय 11 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।

मानवाधिकार वे विशेषाधिकार हैं जो हर व्यक्ति को उसके प्रतिदिन के सामान्य जीवन के हिस्से के रूप में प्रदान किया जाना चाहिए। इन्हें उन मौलिक अधिकारों के रूप में समझा जा सकता है जिसका प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण रूप से हकदार है। संस्कृति, त्वचा का रंग, धर्म, या अन्य किसी भी चीज के आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। मानव अधिकार इस ग्रह पर सभी मनुष्यों के लिए समान रूप से लागू होते हैं।

अफसोस की बात है कि मानव अधिकारों के बारे में जागरूकता के बावजूद, दुनिया भर से मानव अधिकारों के उल्लंघन की कई घटनाएं भी सामने आती रहती हैं। उल्लंघन करने वालों में से अधिकांश समाज के गरीब और वंचित तबके से हैं। गरीबी और अशिक्षा जैसे कारक उन्हें दूसरों और अमीर व्यक्तियों की दया के लिए मजबूर करते हैं। इसलिए, इन मानवाधिकार उल्लंघनों के मुद्दे को उठाने के लिए “मानव अधिकार दिवस” जैसे दिन का पालन करना बेहद आवश्यक है और अधिक से अधिक लोगों को अपने अधिकारों और विशेषाधिकारों के बारे में जागरूक बनाने के लिए भी यह दिन काफी ज्यादा मायने रखता है।

मानव अधिकार दिवस जैसे विशेष दिन न सिर्फ व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं, बल्कि समाज को समान और निष्पक्ष बनाने में भी मदद करते हैं। हमें यह महसूस करना बहुत आवश्यक है कि मनुष्य के रूप में हमें एक-दूसरे के अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता है। अगर हम मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं तो हम एक समाज के रूप में विकसित होते हैं।

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मानवाधिकार पर निबंध | Essay On Human Rights in Hindi language

नमस्कार आज हम मानवाधिकार पर निबंध Essay On Human Rights in Hindi language पढ़ेगे. मानव के बेसिक राइट्स को ह्यूमन राईट कहा जाता है जो गौरवपूर्ण जीवन बिताने के लिए आवश्यक माने जाते हैं.

आज के निबंध में हम मानवाधिकार और मानवाधिकार आयोग के बारे में विस्तार से पढ़ेगे. उम्मीद करते है ह्यूमन राईट का यह निबंध आपको पसंद आएगा.

मानवाधिकार पर निबंध Essay On Human Rights in Hindi

मानवाधिकार पर निबंध | Essay On Human Rights in Hindi language

विश्व मानवाधिकार दिवस पर निबंध Essay on World Human Rights Day In Hindi

मानव अधिकार (Human Rights) वे मूलभूत अधिकार हैं, जिनका उपभोग करने के लिए प्रत्येक नागरिक अधिकृत हैं.

जीवन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार,  जीविकापार्जन का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार जैसे मूलभूत अधिकार मानव अधिकारों के अंतर्गत ही आते हैं.

विश्व के अधिकांश देशों में ये अधिकार संविधान द्वारा प्रदान किए गये हैं. भारत में भी संविधान के भाग तीन के अनुच्छेद 14 से लेकर 35 के द्वारा ये नागरिकों को विभिन्न प्रकार के अधिकार प्रदान किए गये हैं.

एमनेस्टी इंटरनेशनल मानव अधिकारों की रक्षा के लिए विश्व भर में सुनिश्चित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था (manav adhikar aayog) हैं, जिसका मुख्यालय लंदन में स्थित हैं.

मानव अधिकार क्या है (what are human rights)

वैसे तो मानव अधिकार अवधारणा का इतिहास काफी पुराना हैं, पर इसकी वर्तमान अवधारण दूसरे विश्वयुद्ध के विध्वस के बाद विकसित हुई.

वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकृत किया. मानव अधिकारों का उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों जैसे मनु स्मृति, हितोपदेश , पंचतंत्र तथा यूनानी दर्शन में भी मिलता हैं.

वर्ष 1215 में इंग्लैंड में जारी मैग्नाकार्टा में नागरिकों के अधिकार का उल्लेख था, उन सभी अधिकारों को मानव अधिकार की संज्ञा नही दी जा सकती थी.

वर्ष 1525 में जर्मनी के किसानों द्वारा प्रशासन से मांगे गये अधिकारों की बारह धाराओं को यूरोप में मानव अधिकारों का प्रथम दस्तावेज कहा जा सकता हैं.

मानव अधिकार के प्रकार व इतिहास (Human rights type and history)

1789 में फ़्रांस क्रांति से फ़्रांस की राष्ट्रीय सभा ने नागरिकों के अधिकारों की घोषणा की. जिसके कारण विश्व में समानता, बन्धुत्व व स्वतंत्रता के विचारों को बल मिला.

19 वी शताब्दी में ब्रिटेन और अमेरिका में दास प्रथा की समाप्ति के लिए कई कानून बने और 20 वीं शताब्दी आते आते मानव अधिकारों को लेकर विश्व में कई सामाजिक परिवर्तन हुए.

जिसमें बाल श्रम का विरोध प्रारम्भ हुआ एवं विभिन्न देशों में महिलाओं को चुनाव में मतदान का अधिकार मिलस. वर्ष 1864 में हुए जेनेवा समझौता से अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी सिद्धांतों को बल मिला तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकारों की मान्यता की बात हो गईं.

मानव अधिकार दिवस (human rights Day)

10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकार कर लिया. इसकी प्रस्तावना में कहा गया हैं,

चूंकि मानव अधिकार के प्रति उपेक्षा और घ्रणा के कारण हुए बर्बर कार्यों के कारण मनुष्य की आत्मा पर अत्याचार हुए हैं. अतः कानून नियम बनाकर मानव अधिकारों की रक्षा करना आवश्यक हैं.

इसके प्रथम अनुच्छेद में स्पष्ट उल्लेख हैं, कि सभी मानवों को गौरव और अधिकार के मामले में जन्मजात और स्वतन्त्रता और समानता प्राप्त हैं. उन्हें बुद्धि और अंतरात्मा की देन प्राप्त हैं और उन्हें परस्पर भाईचारे के साथ बर्ताव करना चाहिए.

इसके बाद के अनुच्छेद दो में कहा गया हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को घोषणा में सन्निहित सभी अधिकारों और आजादियों को प्राप्त करने का हक़ हैं.

इस मामले में जाति, वर्ण, लिंग, भाषा धर्म या राजनीति या अन्य विचार प्रणाली, किसी देश या समाज विशेष में जन्म सम्पति या किसी प्रकार की अन्य मर्यादा आदि के कारण किसी तरह का भेदभाव नही किया जाएगा.

मानवाधिकार के तहत किसी भी व्यक्ति को न तो शारीरिक यातना दी जाएगी न उनके प्रति निर्दयी, अमानुषिक या अपमानजनक व्यवहार अपनाया जाएगा. ऐसे ही कई महत्वपूर्ण व आवश्यक मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा कुल 30 अनुच्छेदों में की गई.

मानव अधिकार का महत्व व आवश्यकता (Importance and need of human rights)

इन मानव अधिकारों से सम्बन्धित यह घोषणा कोई कानून नही हैं और इसके कुछ अनुच्छेद वर्तमान तथा सामान्य रूप से मानी जाने वाली अवधारणाओं के प्रतिकूल हैं.

फिर भी इसके कुछ अनुच्छेद या तो कानून के सामान्य नियम हैं या मानवता की सामान्य धारणाएं हैं. इस घोषणा का अप्रत्यक्ष रूप से कानूनी प्रभाव हैं तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा एवं कुछ कानून ज्ञाताओं के मतानुसार यह संयुक्त राष्ट्र का कानून हैं.

भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन 23 दिसम्बर 1993 में किया गया. इस समय न्यायमूर्ति पूर्व चीफ जस्टिस एचएल दत्तू  इसके अध्यक्ष हैं.

यह आयोग किसी पीड़ित व्यक्ति या उसके ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मानव अधिकारों के अतिक्रमण या किसी लोक सेवक द्वारा इसके उल्लघन की अनदेखी करने के संबंध में याचिका प्रस्तुत कर सकता हैं.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और इसके कार्य

यह न्यायालय में मानव अधिकार से सम्बन्धित मामलों में दखल, कैदियों की दशा का अध्ययन तथा प्रकाशन, संचार माध्यमों, सेमीनार तथा अन्य माध्यमों के द्वारा समाज के सभी वर्गों में मानव अधिकार की शिक्षा का प्रचार करता हैं.

यह आयोग अभियोग या जांच के लिए आवश्यक सूचनाएं व दस्तावेज प्राप्त करने के लिए किसी भी संस्थान का दौरा कर सकता हैं.

या किसी संस्थान में प्रवेश कर सकता हैं. किसी शिकायत की जांच पूरी होने के बाद आयोग उचित कार्यवाही या अन्य उचित कार्यवाही की संस्तुति कर सकता हैं.

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अतिरिक्त भारत के 29 में से 23 राज्यों में मानव अधिकारों के मामलों की सुनवाई के लिए राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया हैं.

जनतंत्र की अवधारणा मानव मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने की बढ़ती हुई आवश्यकताओं से जुडी हुई हैं. इसके बिना एक व्यक्ति के लिए न तो व्यक्तित्व का विकास संभव हैं और न ही सुखी जीवन व्यतीत कर पाना. मानव अधिकार के अभाव में लोकतंत्र की कल्पना बेकार हैं.

अंतर्राष्ट्रीय संगठन ह्यूमन राइट्स वाच की 175 देशों में मानवाधिकार की स्थति का जायजा लेने वाली रिपोर्ट में भारत में मानव अधिकारों की स्थति के बारे में कहा गया हैं यहाँ महिलाओं बच्चों तथा आदिवासियों के मानव अधिकारों से जुडी समस्या अधिक हैं.

मानव अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना हैं, कि इसका मूल कारण सभी राज्यों में राज्य मानव अधिकार आयोग का न होना हैं. भारत में मानवाधिकार की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसके सभी राज्यों में मानव अधिकार आयोग का गठन अनिवार्य हैं.

मानव परिवारों में सभी सदस्यों को जन्मजात गौरव तथा सम्मान प्राप्त करने का अधिकार हैं जो ही विश्व शान्ति तथा न्याय व स्वतंत्रता की बुनियाद हैं. अतः सम्पूर्ण मानवता की रक्षा के लिए विश्व समुदाय को खुलकर मानव अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाना चाहिए.

मानव अधिकार आयोग पर निबंध | Essay On Human Rights Commission In Hindi

प्रिय साथियो आपका स्वागत है Essay On Human Rights Commission In Hindi में  हम आपके साथ मानव अधिकार आयोग पर निबंध  साझा कर रहे हैं.

कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 तक के बच्चों को मानवाधिकार आयोग भारत के कार्य पर निबंध टिप्पणी  पर सरल भाषा में  हिन्दी नि बंध (ह्यूमन राइट्स कमिशन एस्से)   को परीक्षा के लिहाज से याद कर लिख सकते हैं.

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति का विचार और उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हैं. इसके अंतर्गत बिना हस्तक्षेप के कोई राय रखना और किसी भी माध्यम के जरिये से तथा सीमाओं की परवाह न करके किसी की सूचना और धारणा का अन्वेषण, ग्रहण तथा प्रदान सम्मिलित हैं.

मानव अधिकार क्या है 

ये वे प्राकृतिक अधिकार हैं जिनका प्रत्येक नागरिक उपभोग कर सकता हैं. मानव अधिकारों के अंतर्गत जीवन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, जीविकापार्जन का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार आते हैं.

संसार का प्रत्येक लोकतांत्रिक देश अपने नागरिकों को ये अधिकार प्रदान करता हैं. भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 से 35 तक इन अधिकारों का प्रावधान किया गया हैं. विश्वस्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल हैं जिनका मुख्यालय लन्दन में हैं.

मानव अधिकार आयोग की आवश्यकता

भारत में मूल अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका के अलावा कुछ और सरंचनाओं का भी निर्माण किया गया हैं. इनमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति एवं जाति आयोग तथा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग प्रमुख हैं.

ये संस्थाएं क्रमशः अल्पसंख्यकों, महिलाओं, दलितों के अधिकारों तथा मानवाधिकारों की रक्षा करती हैं.

भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग व कार्य

मौलिक अधिकारों और अन्य अधिकारों की रक्षा के लिए वर्ष 2000 में भारत सरकार ने कानून द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया हैं.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में सर्वोच्च न्यायालय का एक पूर्व न्यायधीश, किसी उच्च न्यायालय का एक पूर्व न्यायधीश तथा मानवाधिकारों के सम्बन्ध में ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले दो और सदस्य होते हैं.

कार्यक्षेत्र

मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायते मिलने पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग स्वयं अपनी पहल या किसी पीड़ित व्यक्ति की याचिका पर जांच कर सकता हैं.

जेलों में बंदियों की स्थिति का अध्ययन कर सकता हैं. मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध कर सकता हैं. या शोध को प्रोत्साहन कर सकता हैं.

प्राप्त शिकायतों का स्वरूप

आयोग को प्रतिवर्ष हजारों शिकायतें मिलती हैं. इनमें से अधिकतर हिरासत में मृत्यु, हिरासत के दौरान बलात्कार, लोगों के गायब होने, पुलिस की ज्यादतियों, कार्यवाही न किये जाने पर, महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार आदि से सम्बन्धित होती हैं.

आयोग को स्वयं मुकदमा सुनने का अधिकार नहीं हैं. यह सरकार या न्यायालय को अपनी जांच के आधार पर मुकदमें चलाने की सिफारिश कर सकता हैं.

आयोग का दुरूपयोग

प्रत्येक व्यक्ति के मूल अधिकारों की रक्षा का पक्ष हर कोई लेता हैं. शक्तिशाली लोग, सत्ता या समूह किसी के अधिकारों का हनन न करे. यदि ऐसा हो तो वह आयोग की शरण में जा सकता हैं.

यह व्यवस्था निसंदेह मानवता की भलाई के लिए बनाई गई, मगर कई बार व्यक्ति विशेष या दल विशेष के प्रभावों के चलते मानव अधिकार आयोग ने निष्पक्षता से काम नहीं लिया हैं.

देश के समुदाय विशेष के किसी व्यक्ति की झूठी अपवाह या कश्मीर में सेना पर पत्थरबाजी करने वाले के अधिकारों की रक्षा के लिए ह्यूमन राईट कमिशन का कारवां बचाव में खड़ा हो जाता हैं.

मगर यही आयोग कैराना, सिख दंगे, कश्मीर विस्थापित लोगों के पुनर्वास अथवा उनके अधिकारों की बात नहीं करेगा. इसी दोगलेपन के चलते भारत में मानवाधिकार आयोग का प्रभाव शून्य ही नजर आता हैं.

  • बाल अधिकार पर निबंध
  • भारतीय संविधान पर निबंध
  • सूचना का अधिकार अधिनियम निबंध

उम्मीद करता हूँ दोस्तों मानवाधिकार पर निबंध Essay On Human Rights in Hindi language का यह निबंध आपको पसंद आया होगा.

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मानवाधिकार दिवस पर भाषण कैसे दें?, निबंध हिंदी में – कक्षा 3 से 10 के लिये | Speech on Human Rights Day Essay in Hindi

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मानवाधिकार दिवस पर भाषण कैसे दें? मानवाधिकार दिवस पर निबंध हिंदी में, मानवाधिकार दिवस कब और क्यों मनाया जाता है? (Speech on Human Right Day in hindi, Essay on Human Right Day)

मानवाधिकार दिवस पर निबंध हिंदी में – 10 दिसंबर को विश्व भर में मानवाधिकार दिवस (Human Rights Day) मनाया जाता है जो मानवता के मूल अधिकारों का प्रतीक है।

मानवाधिकार का तात्पर्य व्यक्ति के उन अधिकारों से है जो उनकी अवसर की समानता , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्ति की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ हो। व्यक्ति के इन्हीं मूल अधिकारों को मानवाधिकार कहते हैं।

मानव के इन्हीं अधिकारों की रक्षा करने के लिए और संसार के प्रत्येक व्यक्तियों को मानवता के मौलिक अधिकारों से परिचित कराने के लिए हर साल 10 दिसंबर का दिन मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।

मानवाधिकार दिवस के दिन देश विदेश में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिनके जरिए लोगों को मानवता के मौलिक अधिकार यानी कि मानवाधिकार से भली-भांति परिचित कराया जाता है और उन्हें बढ़ावा भी दिया जाता है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में और ऐसे कार्यक्रमों में मानवाधिकार पर निबंध लेखन (Essay On Human Rights Day In Hindi) और निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।

इसलिए आज हम आपके लिए मानवाधिकार दिवस पर एक ऐसा आर्टिकल लेकर आए हैं जिसके जरिए न केवल हम आपको हिंदी में मानवाधिकार दिवस पर निबंध (Hindi Essay On Human Rights Day) उपलब्ध कराएंगे बल्कि यह भी बताएंगे कि मानवाधिकार दिवस क्यों मनाया जाता है, मानवाधिकार दिवस का उद्देश्य और महत्व क्या है? तो चलिए शुरू करते हैं।

  • संविधान दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

विषय–सूची

मानवाधिकार दिवस पर निबंध (Human Rights Day Essay in Hindi)

मानवाधिकार मानव और अधिकार दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है जिसका तात्पर्य व्यक्ति के उन सभी मौलिक अधिकारों से है जो मानवता के लिए बेहद जरूरी हैं और मानव की परस्पर समानता , अभिव्यक्ति और जीवन जीने की स्वतंत्रता तथा प्रतिष्ठा को दर्शाते हैं।

मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर के दिन विश्व भर में मनाया जाता है जिसका प्रमुख उद्देश्य मानवाधिकारों का संरक्षण और संवर्धन है।

सन 1950 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ में विभिन्न देशों को 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाने के लिए आमंत्रित किया और आधिकारिक रूप से मानवाधिकार दिवस मनाने की घोषणा की ताकि मानवता के मौलिक अधिकारों का संरक्षण और संवर्धन किया जा सके।

मानवाधिकार दिवस पर निबंध | Speech-Essay-on-Human-Right-Day-in-hindi

मानवाधिकार दिवस का संक्षिप्त विवरण (Essay on Human Right Day in hindi)

मानवाधिकार दिवस क्यों मनाया जाता है?

10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा हुई थी जिसके अंतर्गत मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणापत्र को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा अपनाया और घोषित किया गया था।

वास्तविकता में मानवाधिकार दिवस मानव के मौलिक अधिकारों को सुरक्षा , संरक्षण और संवर्धन प्रदान करने का एक वैश्विक मापदंड है। मानवता के मौलिक अधिकारों से जुड़े होने के कारण 10 दिसंबर के इस विशेष दिन को विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाते हैं।

सन 1950 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने आधिकारिक रूप से हर साल 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाने की घोषणा की थी। साल 1950 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के संकल्प संख्या 423(वी) में प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाने का संकल्प लिया गया था। तब से मानवाधिकारों की रक्षा करने के लिए और उन्हें बढ़ावा देने के लिए विश्वभर में 10 दिसंबर का दिन मानवाधिकार दिवस के रुप में मनाया जाता है।

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मानवाधिकार दिवस का मुख्य उद्देश्य–

मानवाधिकार का मतलब मानव के अधिकारों से है जो मानवता के मौलिक मापदंड हैं। संसार के प्रत्येक इंसान को यह मानव अधिकार प्राप्त हैं। एक मानव होने के नाते हमारा भी यह कर्तव्य है कि हम दूसरों के मानवाधिकारों की रक्षा करें और साथ ही अपने मानवाधिकारों का हनन भी ना होने दें।

मानवाधिकार दिवस का मुख्य उद्देश्य मानव के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करना है, जिसे मानवाधिकार कहते हैं। अर्थात् मानवाधिकार दिवस मुख्य रूप से मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है।

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मानवाधिकार दिवस का महत्व–

मानव होने के नाते हर व्यक्ति के कुछ न कुछ कर्तव्य और अधिकार होते हैं। इन अधिकारों और कर्तव्यों का पालन करने के बाद ही संसार में मानवता की भावना विकसित होती है। जैसे संसार के हर जीव को जीवन जीने का अधिकार होता है ठीक वैसे ही मानव जाति के लिए जीवन जीने के अलावा भी बहुत से अधिकार और कर्तव्य होते हैं।

लेकिन संसार का हर व्यक्ति मानवाधिकार को नहीं समझ पाता और ना ही इसका पालन करता है यही कारण है कि मानवाधिकारों से अनभिज्ञ होने के कारण लोगों को भेदभाव, उत्पीड़न और अपमान का सामना करना पड़ता है।

अधिकार एक ऐसी चीज होती है जो विरासत या दान में नहीं मिलती बल्कि से लड़ कर लेना पड़ता है। मानवाधिकारों के बारे में भी यही राय है। लेकिन जब तक आप को मानवाधिकारों के बारे में जानकारी नहीं होगी तब तक आप अपने इन अधिकारों का लाभ नहीं उठा पाएंगे और सदैव भेदभाव ओर उत्पीड़न शिकार बनते रहेंगे।

इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व भर के विभिन्न देशों ने मिलकर 10 दिसंबर के विशेष दिन को विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाना शुरू किया है ताकि लोगों को उनके मानवाधिकारों से भली-भांति परिचित कराया जा सके और उनके मानवाधिकारों की रक्षा की जा सके।

हर मानव का मौलिक अधिकार होने के कारण मानवाधिकार के बारे में सभी को जानना चाहिए और अपने मानवाधिकारों का हनन नहीं होने देना चाहिए बल्कि दूसरों के मानवाधिकार की रक्षा भी करनी चाहिए। हमें एकजुट होकर संगठन अथवा व्यक्तिगत रूप से लोगों को मानवाधिकार के बारे में जानकारी प्रदान करनी चाहिए।

मानवाधिकारों के हनन को रोकने की पहल हमें खुद से करनी चाहिए जिस दिन हम दूसरों के मानवाधिकारों को समझकर उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्रदान करेंगे उस दिन हमारे लिए भी इन मानवाधिकारों के सभी द्वार खुल जाएंगे।

तो चलिए आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको कुछ प्रमुख मानव अधिकारों के बारे में बताते हैं जो संयुक्त राष्ट्र संघ और विभिन्न देशों की संविधानों द्वारा सुनिश्चित किए गए हैं।

आइये इन्हें भी जाने-

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मानवाधिकार दिवस पर भाषण (Speech on Human Rights Day in Hindi)

जैसा कि हम सब जानते हैं हर साल 10 दिसंबर को विश्व भर में मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। मानवाधिकार का मतलब होता है, ‘मानव का अधिकार’ मानवाधिकार ऐसे महत्त्वपूर्ण अधिकार होते हैं जो हमें अभिव्यक्ति की आजादी और अवसर की समानता प्रदान करते हैं।

आम लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए ही मानवाधिकार दिवस की शुरुआत हुई थी। दरअसल 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में सार्वभौमिक रूप से मानवाधिकारों की घोषणा की गई थी और इसे महासभा द्वारा अपनाया गया था।

इसी दिन विश्व भर में आम लोगों के मूल अधिकारों की सुरक्षा के लिए ही संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने सार्वभौमिक रूप से मानवाधिकारों का वैश्विक मापदंड तैयार किया था। इसीलिए 10 दिसंबर के इस विशेष दिन को यादगार बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने साल 1950 में संकल्प संख्या 423(V) के माध्यम से प्रतिवर्ष मानवाधिकारों के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए मानवाधिकार दिवस मनाने का संकल्प लिया।

और आज भी पूरी दुनिया के विभिन्न देश इस संकल्प को निभाते आ रहे हैं और अपने अपने देश की आम जनता को मानवाधिकारों के प्रति जागरूक कर रहे हैं ताकि उनके मानवाधिकारों की रक्षा और उनका संवर्धन हो सके।

जीवन का अधिकार भले ही ईश्वर प्रदान करता हो लेकिन इस जीवन को जीने के संपूर्ण अधिकार मानवाधिकारों की देन है। यही अधिकार हमें सामाजिक स्वतंत्रता आर्थिक उपलब्धि और राजनैतिक कार्यकारिणी के अवसर प्रदान करते हैं। अगर व्यक्ति से उसके इन्हीं अधिकारों को छीन लिया जाए तो आदमी जानवर के समान हो जाता है और दूसरों का बंधक बना रहता है।

मानवाधिकार हमें जीवन जीने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। मानवाधिकारों के चलते ही हर आम इंसान को आगे बढ़ने के लिए समान सुविधाएं और समान अवसर दिए जाते हैं ताकि किसी भी वर्ग का इंसान दूसरे वर्ग के इंसान से पिछड़ा न रहे। मानवाधिकार हमें अभिव्यक्ति की आजादी भी देते हैं ताकि हम किसी भी मंच पर किसी भी मुद्दे पर अपने विचारों अपनी भावनाओं को अपने तर्क के साथ रख सकें।

इसीलिए हम सब को एक साथ मिलकर लोगों को उनके मानवाधिकारों के प्रति जागरूक करना चाहिए और उन्हें बताना चाहिए की उनके अधिकार क्या क्या है। अधिकार एक ऐसी चीज है जो दान में नहीं मिलती इसे अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके लेना पड़ता है और जो ऐसा नहीं कर पाता उसे गुलामी की बेड़ियां जकड़ लेती हैं।

हमें सदैव दूसरों के मानवाधिकारों की रक्षा करनी चाहिए कभी भी किसी से लिंग जाति अथवा किसी अन्य आधार पर कोई भेद भाव नहीं करना चाहिए। दूसरों के मानवाधिकारों की रक्षा के साथ-साथ हमें अपने मानवाधिकारों की भी रक्षा करनी चाहिए और उनका हनन नहीं होने देना चाहिए।

कुछ प्रमुख मानवाधिकारों की सूची –

अवसर की समानता का अधिकार.

अवसर की समानता से तात्पर्य है कि संसार के प्रत्येक व्यक्ति को एक समान अवसर प्राप्त होने चाहिए। यानी कि किसी भी अवसर को प्राप्त करने के लिए सभी को एक समान मौका मिलना चाहिए।

जैसे कि आज भी भारतीय ग्रामीण समाज में कई जगहों पर महिलाओं को पुरुषों के समान तरक्की के अवसर उपलब्ध नहीं कराए जाते जिसके कारण वहां की महिलाएं पुरुषों की अपेक्षाकृत पिछड़ जाती हैं।

अवसर की समानता का मतलब यही होता है कि पुरुष हो या फिर महिला सभी के लिए एक समान अवसर होना चाहिए। किसी भी अवसर की उपलब्धि के लिए रंग जाति अथवा लिंग भेद नहीं होना चाहिए।

अभिव्यक्ति और विचार की स्वतंत्रता–

अभिव्यक्ति और विचार की स्वतंत्रता का तात्पर्य है कि संसार के प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी मुद्दे पर अपनी विचारधारा की अभिव्यक्ति करने का अधिकार है।

हम सब जानते हैं कि व्यक्तियों के विचारों और भावनाओं में काफी मतभेद होता है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि विरोधी विचारधाराओं द्वारा उनके उन विचारों और भावनाओं का दमन कर दिया जाए।

ऐसी स्थिति में अभिव्यक्ति और विचार की स्वतंत्रता व्यक्ति को हर मुद्दे पर अपनी विचारधारा की अभिव्यक्ति का अधिकार देती है।

दासता से मुक्ति अथवा स्वाधीनता का अधिकार –

स्वाधीनता का अर्थ होता है अपने अधीन होना। यानी कि स्वयं को अपने अनुसार नियंत्रित करना और स्वयं पर स्वयं का अधिकार होना।

समाज और संसार के हर व्यक्ति को दासता अथवा पराधीनता से मुक्ति और स्वाधीनता का अधिकार है। यानी कि हर व्यक्ति अपने विवेक से अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। अपना निर्णय लेने के लिए उसे किसी पराधीन नियंत्रण अथवा विचार धारा की आवश्यकता नहीं है।

  • इसके मानवाधिकारों की सूची में अलावा प्रत्येक व्यक्ति के कुछ आर्थिक राजनीतिक और सामाजिक अधिकार भी शामिल हैं। जैसे कि
  • सामाजिक सुरक्षा का अधिकार।
  • एक निश्चित कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार।
  • संगठन तथा नेतृत्व का अधिकार।

मानवाधिकार आयोग द्वारा राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे ही कई महत्वपूर्ण मानवाधिकार सुनिश्चित किए गए हैं जिनका  पालन करना अनिवार्य और हनन करना दंडनीय अपराध है। हमें भी अपने इन मानवाधिकारों पर अमल करना चाहिए और इनका सदुपयोग करना चाहिए।

तो दोस्तों आज इस आर्टिकल के जरिए हमने आपको विश्व मानवाधिकार दिवस पर निबंध (Essay On World Human Rights Day In Hindi) और विश्व मानवाधिकार दिवस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण विषयों जैसे कि मानवाधिकार दिवस क्यों मनाया जाता है? और इसका उद्देश्य तथा महत्व क्या है? आदि पर चर्चा की।

इसके अलावा हमने मानवाधिकार आयोग द्वारा उल्लिखित कुछ महत्वपूर्ण मानवाधिकारों के बारे में भी विस्तार से बताया। उम्मीद करते हैं आपको यह आर्टिकल बेहद पसंद आया होगा।

मानवाधिकार दिवस कब मनाया जाता है?

10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।

आम लोगों को उनके मानवाधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।

10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस क्यों मनाया जाता है?

क्योंकि 10 दिसंबर को ही संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कर इसे अपनाया था। इसीलिए 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।

हमारे मानवाधिकार कौन-कौन से हैं?

हमारे कुछ प्रमुख मानवाधिकार अवसर की समानता, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा स्वाधीनता का अधिकार है।

मानवाधिकार का उद्देश्य क्या है?

मानवाधिकारों का मुख्य उद्देश्य आम लोगों और नागरिकों सुरक्षा को सुनिश्चित करना तथा उन्हें एक समान अवसर प्रदान करना है।

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मानवाधिकार दिवस पर निबंध

Essay on Human Rights Day in Hindi: सभी मानव जीवन में मानवाधिकार सर्वोपरि होता है। मानवाधिकार सभी व्यक्ति को एक समान प्राप्त होने चाहिए। कोई भी मानव जात पात, रंग, लिंग किसी भी आधार पर एक दूसरे से ऊपर नीचे नहीं है। सभी एक समान है और सब को एक समान अधिकार है।

इसी तथ्यों को साबित करने के लिए सन 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 सितंबर को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस को मनाने की घोषणा की। तब से ही हर साल 10 सितंबर को सभी देशों में मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।

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इस दिन कई तरह के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, जिसकी अलग थीम रखे जाते हैं। इस साल मानवाधिकार दिवस की थीम ‘गरिमा, स्वतंत्रता और सभी के लिए न्याय’ रखी गई थी।

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मानव अधिकार दिवस पर निबंध (Essay on Human Rights Day in Hindi)

मानवाधिकार दिवस के दिन बच्चों को भी विद्यालय एवं कॉलेजों में निबंध लिखने के लिए दिया जाता है ताकि बच्चे भी मानवाधिकार दिवस से अवगत हो सके। इसीलिए आज के इस लेख में हमने 250 एवं 850 शब्दों में मानवाधिकार दिवस पर निबंध (manav adhikar diwas par nibandh) लेकर आए हैं। इस निबंध के जरिए आप मानवाधिकार दिवस मनाने के उद्देश्य, इसके महत्व और इसके इतिहास से अवगत हो पाएंगे।

विश्व मानवाधिकार दिवस पर निबंध (250 शब्द)

मानवाधिकार एक विशेष अधिकार है, जो हर एक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त है। किसी के साथ भी संस्कृति, धर्म, रंग, जाती या किसी भी अन्य चीज के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। मानवाधिकार को मौलिक अधिकार की तरह समझ सकते हैं, जो हर व्यक्ति को प्रति दिन के सामान्य जीवन के हिस्से के रूप में दिया गया है और हर व्यक्ति पूर्ण रूप से इसके लिए हकदार हैं।

मानवाधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से और मानव लोगों का अपने विशेषाधिकारो के प्रति जागरुक करने के उद्देश्य से हर साल 10 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। मानवअधिकार दिवस को मनाने की घोषणा सन 1948 में 10 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सार्वभौमिक रुप से किया गया था।

मानवाधिकार दिवस ना केवल नागरिकों को उनके स्वयं के अधिकार से परिचित कराता है बल्कि किसी और के मानवाधिकार के साथ उल्लंघन हो रहा है तो उसके प्रति का कदम लेने के लिए जवाब देह भी बनाता है। मानवाधिकार कोई कानून नहीं है, जो सरकार के द्वारा लागू होता है, सरकार द्वारा खत्म हो सकता है बल्कि मानवाधिकार तो व्यक्ति के जन्म लेते ही उसे मिल जाते हैं। मानवअधिकार के उल्लंघन होने पर हर एक व्यक्ति को उसके विरोध आवाज उठाने का अधिकार है।

आज भले ही दुनिया बहुत विकास कर रही है, शिक्षा की ओर अग्रसर हो रहे ही, प्रगति आ रही है, उसके बावजूद अभी भी ऐसे कई लोग हैं, जो अपने अधिकारों से परिचित नहीं है। जिसके कारण वे अन्य लोगों के द्वारा उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं, सुविधाओं से वंचित रह रहे हैं। मानवाधिकार दिवस ऐसे लोगों को उनके अधिकारों से परिचित कराता है, अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाता है।

जब लोगों को अपने अधिकारों के बारे में पता होगा तो वह किसी और के गुलाम नहीं बनेंगे, कोई और उनके ऊपर अन्याय नहीं कर पाएगा। खुद के अधिकार से अवगत होने पर व्यक्ति में आत्मविश्वास आता है, उसके अंदर भी हिम्मत आती है और वह भी अन्याय का सामना कर पाता है। इस तरह मानवाधिकार दिवस लोगों को उनके मौलिक अधिकारों के प्रति जागृत करता है।

Essay on Human Rights Day in Hindi

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मानवाधिकार दिवस पर निबंध (850 शब्द)

मानवाधिकार एक ऐसा विशेष अधिकार है, जो हर एक व्यक्ति को उसके जन्म से ही मिल जाता है। इस अधिकार की कोई पात्रता नहीं होती। जाती-पाती, पंथ, धर्म किसी भी आधार पर मानवाधिकार को नहीं आंका जा सकता। अमीर हो या गरीब हो उच्चे धर्म का हो या छोटे धर्म का हो सभी के पास समान मानवाधिकार है।

लेकिन दुःख की बात है कि दुनिया में ऐसे कई जगहों पर लोग धर्म पंथ, जाति, रंग इत्यादि के आधार पर मानवाधिकार से वंचित है। कई तरह के उत्पीड़न को सहते हैं, कई सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं, जो सुख सुविधाएं सरकार ने हर एक नागरिक के लिए बनाई है।

दुःख की बात है कि जिन लोगों को स्वयं के अधिकारों के बारे में पता नहीं होता, वह दूसरों अत्याचार को सहने के लिए मजबूर हो जाते हैं। समाज में ऐसे ही लोगों तक उनके मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय रूप से मानवाधिकार दिवस मनाने की घोषणा की।

सन 1950 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 423(वी) प्रस्ताव पारित करके सभी सदस्य राज्यों को 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाने के लिए आग्रह किया।

मानवअधिकार दिवस पर कार्यक्रम

भारत में भी मानवाधिकार दिवस के दिन बड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों में वरिष्ठ राजनेता और नौकरसाह शामिल होते हैं। इन कार्यक्रमों में मानवअधिकारों पर अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं और देश के हर एक नागरिकों को मानवअधिकार के प्रति जागृत करते हैं।

मानवाधिकार के दिन कार्यक्रम में भागीदारी केवल राजनीतिक दल और एनएचआरसी तक ही सीमित नहीं है बल्कि समाज के अन्य वर्ग और सरकारी विभागों के सदस्य भी भाग लेते हैं। सभी विद्यालयों में बच्चों को काला प्रतियोगिता निबंध लेखन जैसे कई तरह के प्रतियोगिताओं के जरिए बच्चों को मानवअधिकार से अवगत कराया जाता है।

अन्य देशो में भी मानवाधिकार दिवस के दिन कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मानवाधिकार से संबंधित लोग वाद विवाद, चर्चा करते हैं और एक दूसरे तक मानवअधिकार की जानकारी पहुंचाते हैं।

कुछ देशों में अलग-अलग तारीख को मनाया जाता है मानवाधिकार दिवस

वैसे तो संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाने की घोषणा की थी लेकिन कुछ ऐसे भी देश है, जहां पर अलग-अलग तारीख को मानवाधिकार दिवस मनाया जाते हैं। उदाहरण के लिए मध्य प्रशांत महासागर में स्थित किरीबाती गण राज्य में मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर के बजाय 11 दिसंबर को मनाते हैं।

वहीँ दक्षिण अफ्रीका में मानवाधिकार दिवस 21 मार्च को मनाया जाता है। बताया जाता है कि इस तारीख का चुनाव 1960 में हुए शार्पविले नरसंहार और उसके पीड़ितों को याद करने के उद्देश्य से चुना गया है। 21 मार्च 1960 को दक्षिण अफ्रीका में रंग के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करने के कारण विरोध उत्पन्न हुआ था, उस कारण भी 21 मार्च दक्षिण अफ्रीका में मानवाधिकार दिवस के रूप में प्रख्यात है।

संयुक्त राज्य में भी 1 दिन का मानवाधिकार नहीं मनाया जाता बल्कि इसके जगह पर मानवाधिकार का 1 सप्ताह मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत 9 दिसंबर से होती है। बताया जाता है कि मानवाधिकार सप्ताह की शुरुआत साल 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने घोषणा करके की थी।

मानवाधिकार दिवस का महत्व

जितना महत्व स्वतंत्रता का है, उतना ही महत्व मानवाधिकार का भी है। यदि मानवाधिकार ना हो तो स्वतंत्रता का भी कोई महत्व नहीं। एक गुलाम व्यक्ति किसी अन्य के हाथों की कठपुतली बन जाता है लेकिन किसी के मानवाधिकार का उल्लंघन करना भी किसी को गुलाम बनाने के बराबर ही होता है।

आज भी समाज में रंगभेद, जाती, पाती के आधार पर मानवाधिकार का उल्लंघन किया जाता है। समाज में कुछ ऊंचे पदों के लोग छोटे गरीब निस्सहाय लोगों को तुच्छ नजरिए से देखते हैं मानो सारे अधिकार केवल उन्हीं के हैं। मानवाधिकार कोई सरकार के द्वारा लागू किया गया कानून नहीं है कि कुछ निश्चित लोगों पर ही लागू हो।

मानवाधिकार तो व्यक्ति के मौलिक अधिकार है, जिसे बदला नहीं जा सकता। व्यक्ति अपने अधिकार के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है। लेकिन जरूरी है कि उसे अपने अधिकार के बारे में मालूम हो।

समाज में बहुत सारे लोग ऊंचे पदों पर विराजमान लोगों के द्वारा होने वाले अपने अधिकार का उल्लंघन सह लेते हैं। क्योंकि वे अपने अधिकारों से अवगत नहीं होते हैं, उन्हें अधिकारों का उल्लंघन करने के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए जागरूक नहीं किया गया होता है, जिस कारण वे चुपचाप उत्पीड़न सह लेते हैं।

लेकिन मानवाधिकार दिवस के जरिए समाज के उन लोगों तक जागरूकता फैलाई जाती है ताकि वे खुद के अधिकार के प्रति होने वाले उल्लंघन के विरुद्ध लड़ सके। जब वे अपने अधिकारों से अवगत होंगे तब अपने अधिकारों के लिए न्याय मांग पाएंगे।

हर साल मानवाधिकार दिवस मनाने का उद्देश्य यही होता है कि समाज में ऐसे लोगों को जागरूक करें जो हर दिन अपने अधिकारों का उल्लंघन होते हुए सह रहे हैं। मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे को उठाने के लिए मानवाधिकार दिवस जैसे दिन का पालन करना बेहद ही आवश्यक है।

अधिक से अधिक लोगों को मानवाधिकार के बारे में जानकारी देने, स्वयं के अधिकार का उल्लंघन के विरुद्ध आवाज उठाने के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से मानवाधिकार दिवस बहुत मायने रखता है।

मानवाधिकार दिवस ना केवल एक मानव के विशेष अधिकारों के प्रति उसे जागृत करता है बल्कि समाज को सम्मान और निष्पक्ष भी बनाता है। अगर हर कोई मानवाधिकारों का सम्मान करें तो ही समाज विकसित हो सकता है।

समाज केवल कुछ लोगों के विकसित होने से विकसित नहीं होता बल्कि समाज के हर एक लोगों का विकसित होना जरूरी है और यह तभी होगा जब हम सभी को एक नजरिए से देखेंगे।

हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख में 250 एवं 850 शब्दों में मानवाधिकार दिवस पर निबंध (human rights day essay in hindi) आपको पसंद आया होगा। इस लेख को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि मानवाधिकार दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिवस के बारे में लोगों को जानकारी मिले और वह भी मानवाधिकार का सम्मान करें।

  • मौलिक अधिकार पर निबंध
  • अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर निबंध
  • अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर निबंध

Rahul Singh Tanwar

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मानवाधिकार पर निबंध Essay on Human Rights in Hindi

मानवाधिकार पर निबंध Essay on Human Rights in Hindi

इस लेख में आप मानवाधिकार पर निबंध Essay on Human Rights in Hindi पढ़ेंगे। इसमें मानवाधिकार का अर्थ, इसके नियमों का गठन, प्रकार, उल्लंघन, महत्व, आवश्यकता, तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, के विषय में पूरी जानकारी दी गयी है।

पढ़ें: मानवाधिकार पर भाषण

Table of Content

हर वर्ष 10 दिसंबर को पूरी दुनिया में मनाया जाने वाला मानवाधिकार दिवस एक अहम दिन है। हर व्यक्ति का सपना होता है, उसे उसके अधिकार मिले, जिससे वो उपयोग करके अपना विकास कर सके।

इन अधिकारों में से एक अधिकार मानवाधिकार है। 1948 में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा आम व्यक्तियों के अधिकार को लेकर एक सूचना जारी की गयी, जो मानवों के अधिकारों के बारें में बताती है।

इसके ठीक दो वर्षो के पश्च्यात, 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस (World Human Rights Day) के रूप में घोषित कर दिया। आज हम बात करेंगे कि मानवाधिकार क्या है? और इसका क्या महत्व है? तो शुरू करते है –

मानवाधिकार का अर्थ Meaning of Human Rights in Hindi

अलग अलग लोगो ने इसके अलग अलग परिभाषा दी है –

“मानव अधिकार वे अधिकार है, जो प्रत्येक व्यक्ति को मानव होने के कारण प्राप्त हैं। इन अधिकारों का आधार मानव स्वभाव में निहित है।” – आर. जे. विसेट
“मानव अधिकार संसार के समस्त व्यक्ति को प्राप्त है, क्योंकि यह स्वयं मे मानवीय हैं, वे पैदा नही किये जा सकते, खरीद या संविदावादी प्रक्रियाओं से मुक्त होते है।” – डेविड. सेलबाई

मानवाधिकार से तात्पर्य व्यक्ति के उन अधिकारो से हैं जिनके बिना मानव अपने व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के बारे में सोच भी नही सकता, यह दो अधिकार हैं, जो एक मानव होने के नाते निश्चित रूप से मिलने चाहिए।

एक वाक्य में कहें तो मानवाधिकार हर व्यक्ति का नैसर्गिक या प्राकृतिक अधिकार है। इसके दायरे में जीवन, आज़ादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार आता है। मानवाधिकार शब्द को परिभाषित करने पर इसकी परिभाषा इस प्रकार है “ऐसे अधिकार जिसके बिना मनुष्य अधुरा है, और अपना सर्वागीण विकास करने में असमर्थ है, जैसे स्वतंत्रता , समानता, शिक्षा , रोजगार आदि”।

28 सितंबर, 1993 को मानवाधिकार का कानून अमल में लाया गया और 12 अक्टूबर 1993 को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया। यह मानवाधिकार दिवस हमें हमारे अधिकारों के बारे में अवगत कराता है कि हम सभी, समानता और स्वतंत्रता के हकदार हैं।

हमे कोई भी धर्म, कोई भी जाती, कोई भी इलाका, समाज अपने लिए चुनने कि आज़ादी है हमें स्वतंत्रता है अपने पसंद से किसी भी सरकार को चुन सकते हैं अपनी अभिव्यक्ति के लिए आजाद हैं  भोजन, नौकरी, विवाह, स्वास्थ्य जैसी अन्य कई अधिकारों का हर मनुष्य हकदार है।

ये अधिकार प्रायः ऐसे ‘आधारभूत अधिकार’ हैं जिन्हें प्रायः ‘न छीने जाने योग्य’ माना जाता है और यह भी माना जाता है कि ये अधिकार किसी व्यक्ति के जन्मजात अधिकार हैं। व्यक्ति के आयु, प्रजातीय मूल, निवास-स्थान, भाषा, धर्म, आदि का इन अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं होता। ये अधिकार सदा और सर्वत्र देय हैं तथा सबके लिए समान हैं।

मानवाधिकार के प्रकार Types of Human Rights in Hindi

नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक अधिकार जिसमें आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार भी मौजूद हैं। इन्हीं के आधार पर विभिन्न तरह के मानव अधिकारों का वर्गीकरण किया गया है।

नागरिक और राजनीतिक अधिकार

यह अधिकार व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले कार्यों के संबंध में सरकार की शक्ति को सीमित करता है। यह लोगों को सरकार की भागीदारी और कानूनों के निर्धारण में योगदान करने का मौका देता है।

सामाजिक अधिकार

व्यक्तियों के जीवन यापन के लिए सामाजिक अधिकार प्रदान किये गये है। सरकार अपने नागरिको का ध्यान रखने के उद्देश्य से प्रत्येक नागरिक को सामाजिक सुरक्षा का अधिकार देती है।

जीवन का अधिकार

पृथ्वी पर रहने वाले हर व्यक्ति को जीवन जीने का अधिकार है। यह अधिकार कानून द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को दिया जाता है। इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति को किसी के द्वारा नहीं मारे जाने का अधिकार शामिल है और कानून इसे सुरक्षा प्रदान करता है।

बोलने की स्वतंत्रता

देश में रहने वाले व्यक्ति को अपना विचार रखने की स्वतंत्रता है। वह अपनी राय लोगो तक पहुंचा सकता है। हर इंसान स्वतंत्र रूप से बोलने का अधिकारी है ।

समानता का अधिकार

देश में रहने वाले लोगो को समानता का अधिकार है। कोई भी अन्य व्यक्ति उसे नीचा नही दिखा सकता।

कानून के सामने व्यक्ति के रूप में मान्यता के अधिकार

हर व्यक्ति का एक अपना अस्तिव है और यह अधिकार कानून सभी को प्रदान करता है।

राष्ट्रीयता को बदलने की स्वतंत्रता का अधिकार

कानून द्वारा सभी को यह अधिकार दिया जाता है कि वो अपनी राष्ट्रीयता बदल सके।

विवाह और परिवार के अधिकार

किसी भी जाति, धर्म और समुदाय के व्यक्ति से विवाह करके अपना परिवार बढ़ाने का अधिकार शामिल है।

शिक्षा का अधिकार

देश के नागरिक को अधिकार दिया गया है, कि वो जिस शिक्षा को पाने का इच्छुक है पा सकता है, इसमें सरकार या कानून द्वारा किसी भी प्रकार कि रोक नही की जा सकती। यह अधिकार सिर्फ नागरिक को ही प्राप्त है।

खुद की संपत्ति रखने का अधिकार

नागरिक को यह अधिकार प्राप्त है कि वो जितनी चाहे संपत्ति एकत्रित कर सकता है, संपत्ति वैध तरीके से अर्जित की होने चाहिए। 

धर्म की स्वतंत्रता

हर देश में नागरिकों को स्वतंत्र रूप से किसी भी धर्मं को स्वीकारने और उसका पालन करने का अधिकार है। कानून द्वारा उसे किसी भी धर्मं का अनुसरण करने से नही रोका जा सकता।

न्याय का अधिकार

इस अधिकार के तहत हर व्यक्ति न्याय पाने का अधिकारी है।

यात्रा की स्वतंत्रता

देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश के किसी भी हिस्से में यात्रा करने , रहने, काम या अध्ययन करने का अधिकार है।

दासता से स्वतंत्रता

इस अधिकार के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की दासता से स्वतंत्रता का अधिकार है। जब तक ब्यक्ति स्वयं नही चाहता कोई व्यक्ति उसे दास नही बना सकता।

मानवाधिकार का उल्लंघन Human Right Violation

जहाँ एक और लोगो को अधिकार प्राप्त हैं, वहीँ दूसरी ओर इन अधिकारों का उल्लंघन भी देखने को मिलता है। लोगों द्वारा प्राप्त अधिकारों का दुरूपयोग किया जाता है जिस कारण मानव अधिकारों के दुरुपयोग की जांच करने एवं उसपर लगाम कसने के लिए संयुक्त राष्ट्र समिति की स्थापना की गई है।

इसके आलावा कई राष्ट्रीय संस्थान, गैर-सरकारी संगठन और सरकार भी यह सुनिश्चित करने के लिए इन पर नजर रखती हैं कि कहीं किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा हैं। इन संगठनो का कार्य मानव अधिकारों के बारे में लोगो को जागरूक करना होता है जिससे लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी प्राप्त हो और वो अपना विकास कर सकें।

मानवाधिकार का महत्व Importance of Human Right in Hindi

यदि व्यक्ति के जीवन में अधिकार न हो तो जीवन बहुत ही भयानक और जटिल हो जायेगा, क्योंकि इसके अभाव में लोग अन्य लोगो का शोषण करेंगे और सभी पर अत्याचार किये जा सकते है जिससे जीवन एक पशु की भांति हो जायेगा।

पूर्वकाल से ही सारे गणतांत्रिक राज्यों के नागरिकों को मानव अधिकार प्राप्त थे। आज भी कई तानाशाही और धार्मिक रुप से संचालित होने वाले देशों में सिर्फ अपने विचार व्यक्त कर देने पर या फिर कोई छोटी सी गलती कर देने पर किसी व्यक्ति को मृत्युदंड जैसी कठोर सजा सुना दी जाती है क्योंकि वहां मानव अधिकार नियम और कानून का आभाव है।

वहीँ दूसरी ओर लोकतांत्रिक देशों में मानव अधिकारों को काफी महत्व दिया जाता है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मानव अधिकार हमारे जीवन में कितना महत्व रखते है।

मानवाधिकार की आवश्यकता क्यों? What is the need of Human Rights?

हम जिस समाज देश में रहते है वहां अधिकारों के बिना सभ्य समाज की कल्पना नही की जा सकती। मानवाधिकार की आवश्यकता क्यों है? हम निम्न बिन्दुओ में जानेंगे –

  • देश के नागरिको के भौतिक, आध्यात्मिक और नैतिक विकास के लिये मानवाधिक़ारों का होना अतिआवश्यक है। इनके आभाव में व्यक्ति अपने गुणों का विकास नही कर सकता।
  • देश के नागरिको के मानवाधिकार, राजा / शासको की सत्ता पर लगाम लगाते हैं, जिससे शासक वर्ग मनमाने तरीके से शासन न कर सके।
  • अन्य प्राणियों से मनुष्य जाति की अलग पहचान और श्रेष्ठता बनाये रखने के उद्देश से मानवाधिकार आवशयक है।
  • मनुष्य द्वारा बनाये गये विशेषाधिकार, भेदभाव तथा असमानता को समाप्त करने और समानता पर आधारित समाज की स्थापना के लिए मानवाधिकारों की रक्षा करना आवश्यक हैं।
  • सामाजिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए मानवाधिकार ज़रूर हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग National Human Rights Commission

यह एक स्वतंत्र वैधानिक संस्था है, जिसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्टूबर, 1993 को की गई थी। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

संविधान द्वारा आम नागरिक को प्रदान किये गये मानवाधिकारों जैसे – जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और समानता का अधिकार आदि की रक्षा करता है और उनके प्रहरी के रूप में कार्य करता है। ये अधिकार जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त हैं।

निष्कर्ष Conclusion

देश में रहने वाले हर व्यक्ति को मूल मानवाधिकारों का आनंद लेने का हक है। मानवाधिकार नागरिको को दिए जाने वाले मूल अधिकार है। यह सभी के लिए सामान है।

प्रत्येक देश किसी व्यक्ति की जाति, पंथ, रंग, लिंग, संस्कृति और आर्थिक या सामाजिक स्थिति को बिना बिचार के इन अधिकारों को प्रदान करता है। परन्तु कई बार ऐसा देखा गया है जिन लोगो को अधिकारों की रक्षा का कार्य सौपा जाता है, वही लोग अपने अधिकारों का दुरूपयोग करके मानव अधिकारों का दुरुपयोग करने लगते है।

अत: यह देश में सुनिश्चित किया जाना चाहिए देश के सभी नागरिको को अधिकारों की प्राप्ति हो सके और उलंघन की स्थिति में इसके खिलाफ खुद आवाज़ उठाने की जरूरत है। आशा करते हैं आपको मानवाधिकार पर निबंध Essay on Human Rights in Hindi पसंद आया होगा।

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विश्व मानवाधिकार दिवस पर निबंध | Essay on World Human Rights Day in Hindi

essay on human rights day in hindi

विश्व मानवाधिकार दिवस पर निबंध | Essay on World Human Rights Day in Hindi!

विश्व में सदियों तक मानवाधिकारों के बारे में कभी मोचा ही नहीं गया । भारतीय मनीषियों ने धार्मिक चर्चाएँ कीं, आंध्यात्म के बारे में चिंतन किया, दर्शन पर टीकाएँ कीं मगर इन सबके बीच मानव के मूलभूत अधिकारों तथा अन्य अधिकारों की बातें पूरी तरह छूट गईं ।

मनुष्यों के दु:खों का कारण व परिणाम चूँकि पूर्व जन्म से जोड़ा जाता रहा, अत: मानवाधिकारों की बात ही बेमानी थी । अन्य प्राचीन सभ्यताएँ मानवाधिकारों से कोसों दूर थीं, यूरोप में भी पुनर्जागरण के काल तक इसके बारे में कोई चिंता न थी ।

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गनीमत इतनी ही थी कि लोग अपने धर्मभीरुपन के कारण कई बार ऐसे कार्यों से बचते थे जिनसे मानवाधिकारों को चोट पहुँच सकती थी । जीवों पर दया, करुणा, परोपकार, धर्म-कर्म, पाप-पुण्य, कर्मफल आदि भावनाओं का प्राबल्य था जससे समाज के सदस्य कुछ हद तक मानवाधिकारों के हनन से बचे रहते थे ।

ADVERTISEMENTS:

स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में लोकमान्य तिलक का यह उद्‌घोष कि ”स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्‌ध अधिकार है” प्रत्यक्षतया नवीन यूरोपीय विचारों की प्रतिध्वनि कही जा सकती है । विश्व में परस्पर अनेक युद्‌ध हुए, इतिहास युद्‌ध की घटनाओं का बड़ा भारी पुलिंदा बन गया, साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद आदि सिद्‌धांत दम तोड़ने लगे, दो विश्व-युद्‌धों के दौरान जो कुछ घटा, इन सभी बातों ने मिलकर मानवाधिकारों को एक बड़ा मुद्‌दा बना दिया ।

पिछले दो-तीन सौ वर्षों में दुनिया में बड़ी संख्या में बुद्‌धिजीवियों, चिंतकों, समाजसुधारकों तथा नास्तिक विचारधारा के लोगों ने जन्म लिया । शिक्षा का दायरा बढ़ा और इसकी परिधि में आम लोग बड़ी संख्या में आने लगे जिसने सामाजिक जाति फैलाने का काम किया । पौराणिक बातों को बुद्‌धि के पलड़े पर तोला गया तब कहीं जाकर मानवाधिकारों के प्रति संकल्प की भावना से काम हुआ ।

समानता पर आधारित सामाजिक व्यवस्था लाने तथा शोषितों को उनका वाजिब हक दिलाने की कम्यूनिस्ट अवधारणा ने भी मानवाधिकारों के प्रति सम्मान करने का मार्ग प्रशस्त किया । विश्व के अनेक देशों में लोकतांत्रिक सरकारों के गठन से इस मार्ग के अवरोध दूर होने लगे क्योंकि सबों को न्याय मिल सके, लोगों को उन्नति के समान अवसर झप्त हों, यह लोकतंत्र का मूलमंत्र है ।

इस तरह जब दुनिया में शांति, स्थिरता, आत्मसम्मान आदि भावनाएँ प्रबल हुईं तो मानव के जायज अधिकारों के बारे में गंभीर चिंतन आरंभ हुआ । संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन के तात्कालिक एवं दीर्घकालिक उद्‌देश्यों को गंभीरता से देखें तो मानवाधिकारों को तय करना, उसकी रक्षा करना जैसी बातें उसी में से निकल कर आती हैं ।

संयुक्त राष्ट्र संघ का एक अंग मानवाधिकारों के प्रति समर्पित होकर काम कर रहा है, विभिन्न देशों की सरकारों ने अपने यहाँ मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाएँ गठित की हैं । पूरी दुनिया के लोग मानवाधिकारों के बारे में जागरूक हो सकें, लोग अपने व दूसरों के अधिकारों को जानें आदि उद्‌देश्यों की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देश हर वर्ष 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाते हैं ।

दुनिया में विभिन्न देशों की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मौद्रिक दशाएँ अलग- अलग हैं । लोग भौतिकता की दृष्टि से जितने आधुनिक हुए हैं उतने विचारों की दृष्टि से नहीं । यह विचार-संकीर्णता हमें लोगों के अधिकारों का सम्मान करने से रोकती है । स्त्रियों के प्रति सामूहिक भेद-भाव विभिन्न समाजों एवं राष्ट्रों में आज भी हो रहा है । तानाशाही कानूनों का प्रचलन समाप्त नहीं किया जा सका है, वर्ग संघर्ष और अनावश्यक रक्तपात का दौर जारी है ।

ऐसे में जहाँ लोगों के जीने का अधिकार भी खतरे में पड़ जाता है तो वहाँ अन्य मानवाधिकारों, जैसे- समानता, विचार अभिव्यक्ति, धार्मिक स्वतंत्रता आदि के बारे में बातें करना भी व्यर्थ है । बाल मजदूरी, महिलाओं का यौन शोषण, धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, जातिगत भेद-भाव, लूट-पाट, बलात्कार आदि सभी बातें मानवाधिकारों के खिलाफ जाती हैं ।

दंगे-फसाद, आतंक व दहशत पर आधारित सामाजिक व्यवस्था में हमारे मूलभूत अधिकारों का हनन सर्वाधिक होता है । सबल सरकारी तंत्र अपने निहत्थे नागरिकों का उत्पीड़न करता है, तो मानवाधिकारवादी फिर किससे गुहार करें । जब निर्धन और असहाय व्यक्ति को मामूली अपराध में वर्षों जेल में सड़ना पड़ता है तब मानवाधिकारों की बात बेमानी हो जाती है ।

युद्‌धबंदियों को जब अमानवीय यातनाएँ दी जाती हैं तो मानवधिकारों पर कुठारघात होता है । कानूनी दाँवपेचों में फँसकर रह जाने वाला हमारा न्यायतंत्र उचित समय पर न्याय नहीं कर पाता है तो इसका कुफल भी आम नागरिकों को ही भुगतना पड़ता है।

समस्या का एक और पहलू यह है कि लोग मानवाधिकारों की व्याख्या अपने-अपने ढंग से करते हैं । कई देशों में इसे लोगों के धार्मिक अधिकारों से जोड़कर अधिक देखा जाता है । कहीं-कहीं व्यक्तियों के अधिकार धार्मिक कानूनों की आड़ में कुचल दिए जाते हैं । जनसंख्या बहुल देशों में पुलिस तंत्र समाज के दबे-कुचलों पर अधिक कहर बरसाता है । बच्चों के अधिकार, अभिभवाकों द्‌वारा कम कर दिए जाते हैं ।

आधुनिक समाज से नैतिक भावनाओं का शनै: – शनै: लोप होना भी मानवाधिकारों के हनन के लिए जिम्मेदार तत्व बन गया है । धार्मिक कट्‌टरता, आतंकवाद जैसे कारक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं । विश्व मानवाधिकार दिवस हमें इन बातों पर चिंतन करने का एक अवसर प्रदान करता है ।

मानवाधिकारों के प्रति सम्मान केवल संयुक्त राष्ट्र संघ की चिंता का विषय नहीं है, विभिन्न सरकारों एवं वहाँ की आम जनता को भी इस संबंध में अपनी सक्रियता दिखानी होगी । एमनेस्टी इंटरनेशनल नामक संस्था मानवाधिकारों के मामले में प्रतिवर्ष अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करती है ।

इसकी आलोचनाओं का कुछ तो असर होता ही है । लेकिन जब हमारी आलोचना हो, तभी हम मानवाधिकारों के प्रति सजग हों, यह धारणा उचित नहीं है । विभिन्न राष्ट्रों को स्वयं अपने यहाँ की मानवाधिकारों की स्थिति की निरंतर समीक्षा करनी चाहिए तथा सुधारों के लिए तत्परता दिखानी चाहिए । हमें व्यक्तिगत स्तर पर अपनी जवाबदेही स्वीकार करनी ही होगी ।

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दा इंडियन वायर

मानव अधिकार पर निबंध

essay on human rights day in hindi

By विकास सिंह

human rights essay

मानवाधिकार (human rights) मूल रूप से वे अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के पास मनुष्य होने के कारण हैं। ये नगरपालिका से लेकर अंतर्राष्ट्रीय कानून तक कानूनी अधिकारों के रूप में संरक्षित हैं। मानवाधिकार सार्वभौमिक हैं। कह सकते है कि ये हर जगह और हर समय लागू होते हैं।

विषय-सूचि

मानव अधिकार पर निबंध, human rights essay in hindi (200 शब्द)

मानवाधिकार अधिकारों का एक समूह है जो हर मनुष्य को उसके लिंग, जाति, पंथ, धर्म, राष्ट्र, स्थान या आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना दिया जाता है। इन्हें नैतिक सिद्धांत कहा जाता है जो मानव व्यवहार के कुछ मानकों का वर्णन करते हैं। कानून द्वारा संरक्षित, ये अधिकार हर जगह और हर समय लागू होते हैं।

मूल मानवाधिकारों में जीवन का अधिकार, निष्पक्ष मुकदमे का अधिकार, सक्षम न्यायाधिकरण द्वारा उपाय करने का अधिकार, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, शांतिपूर्ण विधानसभा और संघ का अधिकार, विवाह और परिवार का अधिकार शामिल हैं, राष्ट्रीयता का अधिकार और इसे बदलने की स्वतंत्रता, बोलने की स्वतंत्रता, भेदभाव से आजादी, गुलामी से मुक्ति, विचार की स्वतंत्रता, विवेक और धर्म, आंदोलन की स्वतंत्रता, राय और सूचना का अधिकार, पर्याप्त जीवन स्तर और निजता के हस्तक्षेप से स्वतंत्रता का अधिकार आदि शामिल हैं।

जबकि इन अधिकारों को कानून द्वारा संरक्षित किया जाता है, इनमें से कई अभी भी विभिन्न कारणों से लोगों द्वारा उल्लंघन किए जाते हैं। इनमें से कुछ अधिकारों का राज्य द्वारा उल्लंघन भी किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की समितियों का गठन यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को इन मूल अधिकारों का आनंद मिले। इन अधिकारों की निगरानी और सुरक्षा के लिए विभिन्न देशों और कई गैर-सरकारी संगठनों की सरकारें भी बनाई गई हैं।

humanrights

मानव अधिकार पर निबंध, essay on human rights in hindi (300 शब्द)

मानवाधिकार मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के कुछ मानकों का वर्णन करते हैं। ये मौलिक अधिकार हैं जिनके कारण प्रत्येक व्यक्ति स्वाभाविक रूप से सिर्फ इसलिए हकदार है क्योंकि वह एक इंसान है। ये अधिकार कानून द्वारा संरक्षित हैं। यहाँ कुछ बुनियादी मानवाधिकारों पर एक नज़र डालते हैं:

जीवन का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जीने का अंतर्निहित अधिकार है। प्रत्येक मनुष्य को दूसरे व्यक्ति द्वारा न मारे जाने का अधिकार है।

फेयर ट्रायल का अधिकार निष्पक्ष अदालत द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। इसमें उचित समय के भीतर सुनवाई का अधिकार, सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार और वकील का अधिकार शामिल है।

विचार की स्वतंत्रता, विवेक और धर्म प्रत्येक व्यक्ति को विचार और विवेक की स्वतंत्रता है। उसे अपना धर्म चुनने की स्वतंत्रता भी है और वह इसे किसी भी समय बदलने के लिए स्वतंत्र है।

गुलामी से मुक्ति गुलामी और दास व्यापार निषिद्ध है। हालांकि, ये अभी भी दुनिया के कुछ हिस्सों में अवैध रूप से प्रचलित हैं।

यातना से मुक्ति अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अत्याचार निषिद्ध है। हर व्यक्ति को यातना से मुक्ति है।

अन्य सार्वभौमिक मानवाधिकार में स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार, बोलने की स्वतंत्रता, सक्षम न्यायाधिकरण द्वारा उपाय का अधिकार, भेदभाव से मुक्ति, राष्ट्रीयता का अधिकार और इसे बदलने की स्वतंत्रता, विवाह और परिवार का अधिकार, आंदोलन की स्वतंत्रता, अपनी संपत्ति का अधिकार शामिल हैं।

शिक्षा का अधिकार, शांतिपूर्ण विधानसभा और संघ का अधिकार, गोपनीयता, परिवार, घर और पत्राचार के साथ हस्तक्षेप से स्वतंत्रता, सरकार और मुक्त चुनाव में भाग लेने का अधिकार, राय और जानकारी का अधिकार, पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार और सामाजिक व्यवस्था का अधिकार जो इस दस्तावेज को प्रदर्शित करता है।

हालांकि कानून द्वारा संरक्षित, इनमें से कई अधिकारों का उल्लंघन लोगों द्वारा किया जाता है और यहां तक ​​कि राज्य द्वारा भी किया जाता है। हालांकि, मानव अधिकारों के उल्लंघन की निगरानी के लिए कई संगठन बनाए गए हैं। ये संगठन इन अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाते हैं।

भारत में मानवाधिकार पर निबंध, human rights in india essay in hindi (400 शब्द)

मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो इस पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति को केवल मनुष्य होने के कारण प्राप्त हैं। ये अधिकार सार्वभौमिक हैं और कानून द्वारा संरक्षित हैं। मानवाधिकार और स्वतंत्रता का विचार सदियों से मौजूद है। हालांकि, यह समय की अवधि में विकसित हुआ है। यहां मानवाधिकारों की अवधारणा पर एक विस्तृत नज़र है।

सार्वभौमिक मानव अधिकार:

मानवाधिकारों में मूल अधिकार शामिल हैं जो हर मनुष्य को उसकी जाति, पंथ, धर्म, लिंग या राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना दिए जाते हैं। यहाँ सार्वभौमिक मानव अधिकारों पर एक नज़र है:

  • जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा
  • समानता का अधिकार
  • सक्षम न्यायाधिकरण द्वारा हटाने का अधिकार
  • कानून से पहले एक व्यक्ति के रूप में मान्यता का अधिकार
  • भेदभाव से मुक्ति
  • गुलामी से मुक्ति
  • यातना से मुक्ति
  • मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और निर्वासन से मुक्ति
  • सिद्ध दोषी तक निर्दोष होने का अधिकार
  • निष्पक्ष जन सुनवाई का अधिकार
  • आंदोलन की स्वतंत्रता
  • गोपनीयता, परिवार, घर और पत्राचार के साथ हस्तक्षेप से स्वतंत्रता
  • उत्पीड़न से अन्य देशों में शरण का अधिकार
  • इसे बदलने के लिए राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता का अधिकार
  • विवाह और परिवार का अधिकार
  • शिक्षा का अधिकार
  • खुद की संपत्ति का अधिकार
  • शांतिपूर्ण विधानसभा और एसोसिएशन का अधिकार
  • सरकार और मुक्त चुनाव में भाग लेने का अधिकार
  • विश्वास और धर्म की स्वतंत्रता
  • राय और सूचना की स्वतंत्रता
  • पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार
  • समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार
  • सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
  • वांछनीय कार्य और व्यापार संघों में शामिल होने का अधिकार
  • आराम और आराम का अधिकार
  • सामाजिक व्यवस्था का अधिकार जो इस दस्तावेज़ को प्रस्तुत करता है
  • उपरोक्त अधिकारों में राज्य या व्यक्तिगत हस्तक्षेप से स्वतंत्रता
  • मानवाधिकारों का उल्लंघन

हालांकि मानव अधिकारों को विभिन्न कानूनों द्वारा संरक्षित किया जाता है, लेकिन फिर भी कई बार लोगों, समूहों और यहां तक ​​कि राज्य द्वारा इनका उल्लंघन किया जाता है। उदाहरण के लिए, अत्याचार से मुक्ति का अक्सर राज्य द्वारा पूछताछ के दौरान उल्लंघन किया जाता है।

इसी तरह, गुलामी से आजादी को एक बुनियादी मानव अधिकार कहा जाता है। हालाँकि, ग़ुलामी और गुलामों का व्यापार अभी भी अवैध रूप से जारी है। मानव अधिकार हनन की निगरानी के लिए कई संस्थानों का गठन किया गया है। सरकारें और कुछ गैर-सरकारी संगठन भी इन पर नज़र रखते हैं।

निष्कर्ष:

हर व्यक्ति बुनियादी मानवाधिकारों का आनंद लेने का हकदार है। कई बार, इनमें से कुछ अधिकारों का राज्य द्वारा खंडन या दुरुपयोग किया जाता है। सरकार कुछ गैर-सरकारी संगठनों की मदद से इन दुर्व्यवहारों की निगरानी के लिए उपाय कर रही है।

मानव अधिकार दिवस पर निबंध, human rights day essay in hindi (500 शब्द)

मानव अधिकारों को सार्वभौमिक अधिकार कहा जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने लिंग, जाति, पंथ, धर्म, संस्कृति, सामाजिक / आर्थिक स्थिति या स्थान की परवाह किए बिना हकदार है। ये मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के कुछ मानकों को दर्शाते हैं और कानून द्वारा संरक्षित हैं।

बुनियादी मानवाधिकार:

मानव अधिकारों को दो व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया गया है। ये नागरिक और राजनीतिक अधिकार हैं, और सामाजिक अधिकार जिनमें आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार भी शामिल हैं। यहाँ हर व्यक्ति को दिए गए बुनियादी मानवाधिकारों पर एक विस्तृत नज़र है:

जीवन का अधिकार: धरती पर हर इंसान को जीने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी के द्वारा नहीं मारे जाने का अधिकार है और यह अधिकार कानून द्वारा संरक्षित है। हालाँकि, यह अधिकार मृत्युदंड, आत्मरक्षा, गर्भपात, इच्छामृत्यु और युद्ध जैसे मुद्दों के अधीन है।

बोलने की स्वतंत्रता: प्रत्येक मनुष्य को स्वतंत्र रूप से बोलने और सार्वजनिक रूप से अपनी राय देने का अधिकार है। हालाँकि, यह अधिकार कुछ सीमाओं जैसे अश्लीलता, घोल और अपराध भड़काने के साथ आता है।

विचार की स्वतंत्रता, विवेक और धर्म: प्रत्येक राज्य अपने नागरिकों को स्वतंत्र रूप से सोचने और कर्तव्यनिष्ठ विश्वास बनाने का अधिकार देता है। एक व्यक्ति को यह भी अधिकार है कि वह अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन कर सकता है और किसी भी समय अपनी इच्छा के अनुसार इसे बदल सकता है।

फेयर ट्रायल का अधिकार: इस अधिकार के तहत प्रत्येक व्यक्ति को निष्पक्ष अदालत द्वारा निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है, उचित समय के भीतर सुनवाई का अधिकार, वकील का अधिकार, सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार और व्याख्या का अधिकार है।

यातना से मुक्ति: अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को यातना से मुक्ति का अधिकार है। यह 20 वीं शताब्दी के मध्य से निषिद्ध है।

आवागमन की स्वतंत्रता: इसका मतलब यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को उस राज्य के किसी भी हिस्से में यात्रा करने, रहने, काम करने या अध्ययन करने का अधिकार है, जिसमें वह रहता है।

गुलामी से मुक्ति:                                                                                                                 इस अधिकार के अनुसार, दासता और दास प्रथा हर रूप में निषिद्ध है। हालाँकि, दुर्भाग्य से ये बीमारियाँ अभी भी अवैध    रूप से चल रही हैं।

मानवाधिकारों का उल्लंघन:

जबकि प्रत्येक मनुष्य मानवाधिका  रों का हकदार है, इन अधिकारों का अक्सर उल्लंघन किया जाता है। इन अधिकारों का उल्लंघन तब होता है जब राज्य द्वारा कार्रवाई इन अधिकारों की उपेक्षा, इनकार या दुरुपयोग करती है।

संयुक्त राष्ट्र की समितियाँ मानवाधिकारों के हनन पर रोक लगाने के लिए गठित हैं। कई राष्ट्रीय संस्थान, गैर-सरकारी संगठन और सरकारें भी इनकी निगरानी करती हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि व्यक्तियों को उनके मूल अधिकारों से वंचित नहीं किया गया है।

ये संगठन मानव अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने की दिशा में काम करते हैं ताकि लोगों को उनके अधिकारों के बारे में अच्छी तरह से जानकारी हो। वे अमानवीय प्रथाओं के खिलाफ भी विरोध करते हैं। इन विरोधों ने कई बार कार्रवाई के लिए कॉल किया और अंततः स्थिति में सुधार हुआ।

मानवाधिकार प्रत्येक व्यक्ति को दिए गए मूल अधिकार हैं। सार्वभौमिक होने के लिए जाना जाता है, इन अधिकारों को कानून द्वारा संरक्षित किया जाता है। हालाँकि, दुर्भाग्य से कई बार इनका उल्लंघन राज्यों, व्यक्तियों या समूहों द्वारा किया जाता है। इन मूल अधिकारों से किसी व्यक्ति को वंचित करना लगभग अमानवीय है। यही कारण है कि इन अधिकारों की रक्षा के लिए कई संगठन स्थापित किए गए हैं।

मानव अधिकार पर निबंध, human rights essay in hindi (600 शब्द)

मानवाधिकारों को असंयमित अधिकार कहा जाता है कि पृथ्वी पर हर व्यक्ति सिर्फ इसलिए हकदार है क्योंकि वह एक इंसान है। ये अधिकार प्रत्येक मनुष्य में अपने लिंग, संस्कृति, धर्म, राष्ट्र, स्थान, जाति, पंथ या आर्थिक स्थिति के बावजूद निहित हैं। मानवाधिकारों का विचार मानव इतिहास में बहुत कुछ रहा है। हालाँकि, अवधारणा पहले के समय में भिन्न थी। यहाँ इस अवधारणा पर एक विस्तृत नज़र है।

मानव अधिकारों का वर्गीकरण:

मानव अधिकारों को मोटे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दो वर्गीकरणों में वर्गीकृत किया गया है: नागरिक और राजनीतिक अधिकार, और सामाजिक अधिकार जिसमें आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।

नागरिक और राजनीतिक अधिकार क्लासिक अधिकारों के रूप में भी जाना जाता है, ये व्यक्ति की स्वायत्तता को प्रभावित करने वाले कार्यों के संबंध में सरकार की शक्ति को सीमित करते हैं। यह लोगों को सरकार की भागीदारी और कानूनों के निर्धारण में योगदान करने का मौका देता है।

सामाजिक अधिकार ये अधिकार सरकार को मानव जीवन और विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियों को विकसित करने के लिए सकारात्मक और हस्तक्षेपकारी तरीके से कार्य करने का निर्देश देते हैं। प्रत्येक देश की सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने सभी नागरिकों की भलाई सुनिश्चित करे। प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा का अधिकार है।

बुनियादी मानवाधिकार

यहाँ हर व्यक्ति के लिए बुनियादी मानव अधिकारों पर एक नज़र है:

जीवन का अधिकार प्रत्येक मनुष्य को जीवन का अधिकार है। यह अधिकार कानून द्वारा संरक्षित है। प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति द्वारा मारे नहीं जाने के अधिकार का हकदार है। हालाँकि, यह अधिकार आत्मरक्षा, मृत्युदंड, गर्भपात, युद्ध और इच्छामृत्यु के मुद्दों के अधीन है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार, मृत्युदंड जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है।

विचार की स्वतंत्रता, विवेक और धर्म प्रत्येक व्यक्ति को विचार और विवेक की स्वतंत्रता है। वह स्वतंत्र रूप से सोच सकता है और ईमानदार विश्वासों को धारण कर सकता है। किसी व्यक्ति को किसी भी समय अपने धर्म को चुनने और बदलने की स्वतंत्रता है।

आवागमन की स्वतंत्रता इसका मतलब यह है कि किसी राज्य के नागरिक को उस राज्य के किसी भी हिस्से में यात्रा करने, निवास करने, काम करने या अध्ययन करने का अधिकार है। हालांकि, यह दूसरों के अधिकारों के सम्मान के भीतर होना चाहिए।

यातना से मुक्ति 20 वीं सदी के मध्य से अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अत्याचार प्रतिबंधित है। भले ही अत्याचार को अनैतिक माना जाता है, मानवाधिकारों के उल्लंघन की निगरानी करने वाले संगठन जो राज्यों को पूछताछ और सजा के लिए बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल करते हैं। कई व्यक्ति और समूह अलग-अलग कारणों से दूसरों पर अत्याचार भी करते हैं।

फेयर ट्रायल का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को एक सक्षम और निष्पक्ष अदालत द्वारा निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। इस अधिकार में उचित समय के भीतर सुनाई देने का अधिकार, सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार, वकील का अधिकार और व्याख्या का अधिकार भी शामिल है। इस अधिकार को विभिन्न क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार उपकरणों में परिभाषित किया गया है।

गुलामी से मुक्ति इस अधिकार के अनुसार, किसी को भी गुलामी में नहीं रखा जाएगा। गुलामी और दास प्रथा को सभी रूपों में निषिद्ध कहा जाता है। हालांकि, इस दास व्यापार के बावजूद दुनिया के कई हिस्सों में अभी भी जारी है। कई सामाजिक समूह इस मुद्दे पर अंकुश लगाने के लिए काम कर रहे हैं।

बोलने की स्वतंत्रता प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से बोलने और अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। इसे कभी-कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी कहा जाता है। हालाँकि, यह अधिकार किसी भी देश में पूर्ण रूप से नहीं दिया गया है। यह आमतौर पर कुछ सीमाओं के अधीन होता है जैसे कि अश्लीलता, मानहानि और हिंसा या अपराध के लिए उकसाना आदि।

मानवाधिकार, व्यक्तियों को उनके मानव होने के आधार पर दिए गए मूल अधिकार, लगभग सभी जगह समान हैं। प्रत्येक देश किसी व्यक्ति की जाति, पंथ, रंग, लिंग, संस्कृति और आर्थिक या सामाजिक स्थिति के बावजूद इन अधिकारों को प्राप्त करता है। हालाँकि, कई बार इनका उल्लंघन व्यक्तियों, समूहों या राज्य द्वारा किया जाता है। इसलिए, लोगों को मानव अधिकारों के किसी भी उल्लंघन के खिलाफ अपनी आवाज उठाने की आवश्यकता होती है।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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मानव अधिकार का इतिहास और वर्गीकरण

मानव प्रजाति का वर्गीकरण एक सामाजिक प्राणी के रूप में किया जाता है. इसलिए एक इंसान का दूसरे इंसान के प्रति कुछ नैतिक मर्यादाओं की अपेक्षा की जाती है. इसी मर्यादा को मानव अधिकार कहा जा सकता है. ये अधिकार किसी इंसान के उम्र, जाति, पंथ, लिंग, धर्म, नस्ल, निवास स्थान के आधार पर इंकार नहीं किया जा सकता है. इसे मानवता का स्वतः लागु नैतिक कानून भी कहा जा सकता है.

क्या है मानव अधिकार (What is Human Rights in Hindi)?

प्रत्येक व्यक्ति का गरिमा और महत्व होता है. किसी व्यक्ति के मानव अधिकारों को स्वीकारना और इसका सम्मान करने का तरीका ही उसके गरिमा और महत्व को मान्यता देना है. वास्तव में, मानव अधिकार समस्त मानव प्रजाति को उपलब्ध समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का समूह है. यह भय, उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्ति प्रदान करता है.

साथ ही, सरकार से भी मानव अधिकार के अनुरूप नागरिकों को सुविधाएं उपलब्ध करवाने की अपेक्षा की जाती है. लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा मानव अधिकारों को सुनिश्चित करने में मददगार है.

ये मानवाधिकार हर जगह के सभी लोगों के लिए समान रूप से प्राप्त होते है. पुरुषों और महिलाओं, युवा और बूढ़े, अमीर और गरीब, सवर्ण और शूद्र, गोरा या काला इत्यादि सभी को समान रूप से उपलब्ध होते है.

इसका उलंघन होने पर कोई भी व्यक्ति इसे लागू करने को तत्पर हो जाता है. कई बार इनका वर्णन संविधान में नहीं होता है, फिर भी सभ्य समाज के लोग इसे मानते है. आधुनिक युग में अत्याचार के खिलाफ अधिकार, धन कमाने और संपत्ति रखने का अधिकार, स्वच्छ वातावरण, बुनियादी सुविधा, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वतंत्र भाषण और आंदोलन का अधिकार इत्यादि इसके कुछ उदाहरण है.

वास्तव में, मानव अधिकार किसी भी इंसान के जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण होते है. साथ ही, लगभग पुरे दुनिया के लोगों में इन अधिकारों के प्रति समझ होती है और इसके उलंघन के खिलाफ एकजुट होते है. वस्तुतः, राजतंत्र के तानाशाही से लेकर लोकतंत्र के परोपकारी शासन तक संघर्ष का इतिहास को, मानव अधिकार को स्वीकार्यता दिलाने का इतिहास है.

इसके सार्वभौमिक स्वीकार्यता के कारण ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भी इसे स्वीकार किया गया है. इसे मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) में निहित किया गया है, जो 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था.

मानव अधिकार की परिभाषा (Definition of Human Rights in Hindi)?

विभिन्न विद्वानों ने मानव अधिकारों को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है. लेकिन अधिकाँश विद्वान् एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान पर किसी भी प्रकार का अत्याचार, उत्पीड़न और भेदभाव रोकने को मानव अधिकार के रूप में परिभाषित करने को एकमत है. इसे बुनियादी अधिकारों का समूह भी कहा जा सकता है, जो लोगों को मानव होने के कारण सार्वभौमिक रूप में प्राप्त होते है. एक सभ्य नागरिक समाज में इन अधिकारों का अनुपालन किया जाता है.

मानव अधिकार का अर्थ उस अधिकार से है जो इंसानों के जीवन जीने के लिए नैसर्गिक रूप से आवश्यक है. इसका उद्देश्य भेदभाव समाप्त कर समानता स्थापित करना होता है. जाति , धर्म, नस्ल या त्वचा के रंग के आधार पर भेदभाव भी मानव अधिकारों का उलंघन है. सरकारों से मानव अधिकार के रक्षा का उम्मीद किया जाता है. सभ्यता के विकास और कल्याणकारी राज्य के अवधारणा के साथ ही इसका विस्तार होता गया और कई नए पहलु इसमें शामिल किए गए है.

वास्तव में, “ मानव अधिकार उन अधिकारों का समूह हैं जो हरेक इंसान को प्राप्त होते है और यह कानून द्वारा लागू न होकर लोगों के पारस्परिक सहमति से लागू होता है. एक इंसान दूसरे के मानव अधिकार का सम्मान करते है और स्वीकार करते है, इस तरह यह स्वतःस्फूर्त लागू हो जाता है. लेकिन एक असभ्य, तानाशाही या क्रूर, शासन या समाज में मानव अधिकार की कोई गारंटी नहीं होती है और इसके उलंघन का खतरा बना रहता है. कई बार इसके विपरीत समाज या शासन में कुछ लोग मानव अधिकारों का उलंघन कर देते है, लेकिन इस स्थिति में पीड़ित को अदालत से उचित प्रक्रिया के अधीन न्याय प्राप्त करने का अधिकार होता है.”

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार,”मानवाधिकार सभी मनुष्यों में निहित अधिकार हैं, चाहे उनकी जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, जातीयता, भाषा, धर्म या कोई अन्य स्थिति कुछ भी हो. मानवाधिकारों में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति, राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम और शिक्षा का अधिकार और बहुत कुछ शामिल हैं. बिना किसी भेदभाव के हर कोई इन अधिकारों का हकदार है.”

मानवाधिकारों का उद्भव और इतिहास सारांश (Origin and History of Human Rights Summary)

मानव अधिकार कोई नया राजनैतिक संकल्पना नहीं है. इसका उद्भव आदिमानवों में मौजूद नैतिकता से हुआ माना जा सकता है. लेकिन इसे संहिताबद्ध करने का प्रयास उतना पुराना प्रतीत नहीं होता है, जितना आदिमानवों का इतिहास.

करीब 1760 ईसा पूर्व में बेबीलोन में राजा हम्मुराबी ने एक संहिता तैयार की. इतिहास में यह “हम्मूराबी की संहिता” कहा जाता है.यह एक प्रारंभिक कानूनी दस्तावेज है जो ‘राज्य में न्याय का शासन स्थापित करने और लोगों की भलाई को बढ़ावा देने’ का वादा करता है. इस संहिता को किसी शासक द्वारा मानव अधिकार को मान्यता देने का प्रथम उदाहरण कहा जा सकता है.

रोम, ग्रीक, चीन और भारत के प्राचीन सभ्यताओं में भी इसके उदाहरण मिलते है. बौद्ध, ईसाई, कन्फ्यूशियस, इस्लाम और यहूदी शिक्षाओं के केंद्र में भी मानव अधिकार है. नैतिकता, न्याय और गरिमा की अवधारणाएं इन समाजों में भी महत्वपूर्ण थे. कई समाजों के लिखित इतिहास मौजूद नहीं है. लेकिन मौखिक रूप से उनमें ये शिक्षाएं इन समाजों में आज भी प्रचलित है.

1215 में, अंग्रेजी सामंतों ने इंग्लैंड के राजा को मैग्ना कार्टा (महान चार्टर) पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया. इससे सामान्य नागरिकों को काफी कम लाभ प्राप्त हुए. लेकिन यह राजा की पूर्ण शक्ति पर बंदिशें लगाने वाला और प्रजा के प्रति जवाबदेह बनाने वाला पहला दस्तावेज़ था. इसमें नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के कुछ उपाय भी किए गए थे, जैसे की मुक़दमे का अधिकार.

मध्य काल के पुनर्जागरण और ज्ञानोदय ने मानव अधिकार के सोच को आकार देने में उल्लेखनीय भूमिका का निर्वहन किया. इस सोच में इसे ‘प्राकृतिक कानून’ माना गया, जो शासकों के कानून से ऊपर था. इसका मतलब यह था कि व्यक्तियों के पास कुछ अधिकार सिर्फ इसलिए थे क्योंकि वे इंसान थे.

आधुनिक मानव अधिकारों के सोच का सबसे महत्वपूर्ण विकास सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में हुए क्रांति ने निभाया. इसकी शुरुआत अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा (1776) से होती है. इसमें कुछ अधिकार, जैसे ‘जीवन, स्वतंत्रता और खुशी की खोज’, सभी लोगों के लिए मौलिक थे. इसी प्रकार, मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की फ्रांसीसी घोषणा (1789) ने अभिजात वर्ग के अधिकार को चुनौती दी और व्यक्तियों की ‘स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे’ को मान्यता दी.

इन आचरणों को संयुक्त राज्य अमेरिका के बिल ऑफ राइट्स (1791) में भी प्रतिध्वनित किया गया, जिसने भाषण, धर्म और प्रेस की स्वतंत्रता के साथ-साथ ‘शांतिपूर्ण’ सभा, निजी संपत्ति और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को मान्यता दी गई.

भारतीय परिपेक्ष्य में बौद्ध धर्म के शिक्षाएं मानव अधिकार का वकालत करती है. अपने इसी खासियत के वजह से बौद्ध धर्म भारतीय उपमहाद्वीप में प्रसिद्ध हो गया. यहाँ से यह चीन, श्रीलंका, म्यांमार समेत लगभग पुरे एशिया में फ़ैल गया. यह बौद्ध धर्म के व्यावहारिक नैतिक शिक्षाएं ही थे, जिन्हें आम से आम जनता भी समझ सकते थे और वे इसे सहर्ष स्वीकार करते गए. प्राचीन भारत में नैतिकता पर आधारित बौद्ध शिक्षाओं का संग्रह अतुलनीय है. इसी कारण गौतम बुद्ध को ‘एशिया का प्रकाश’ भी कहा जाता है.

उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की शुरुआत में सामाजिक प्रगति में निरंतर प्रगति देखी गई. उदाहरण के लिए, गुलामी का उन्मूलन, शिक्षा का व्यापक प्रावधान और राजनीतिक अधिकारों का विस्तार इत्यादि प्रयास मानव अधिकार के शुरूआती प्रयास थे. इन प्रगतियों के बावजूद, मानव अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय गतिविधि कमजोर रही. सामान्यतः राज्यों को अपने सीमाओं के भीतर कुछ भी करना का खुला छूट था. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मानव अधिकारों का उलंघन होने पर न तो हस्तक्षेप कर सकता था और न ही आलोचना या चिंता व्यक्त कर सकता था.

वस्तुतः सभी राज्य एक-दूसरे के सम्प्रभुता का सम्मान करते थे. सम्प्रभुता का आशय एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य के आंतरिक या बाहरी मामलों में हस्तक्षेप के निषेध से था. लगभग सभी देश परस्पर सम्प्रभुता को मान्यता देने को राजी थे. यूएन जैसे संस्थानों और तीव्र संचार सुविधाओं के अभाव में अत्याचार पर बंदिशों का अभाव था.

लेकिन, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर हुए अत्याचारों और मानवाधिकारों के उल्लंघन ने दुनिया भर में जनमत को प्रभावित किया. इसी वीभत्व कार्रवाई ने मानव अधिकारों को एक सार्वभौमिक चिंता (Universal Concern) का विषय बना दिया.

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद (After World War II)

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लाखों सैनिक और नागरिक मारे गए या अपंग हो गए. जर्मनी में नाजी शासन ने कुछ समूहों के लिए यातना गृह बनाए. इन यातना गृहों में यहूदी, कम्युनिस्ट, समलैंगिक और राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पर तरह-तरह के जुल्म किए गए. इनमें से कुछ लोगों को दास श्रमिक के रूप में इस्तेमाल किया गया था. कई अत्याचार सहन नहीं कर पाए और मृत्यु को प्राप्त हो गए. वहीं लाखों अन्य लोगों का सामूहिक हत्या कर दिया गया.

चीन और अन्य एशियाई देशों पर जापान ने कब्ज़ा किया था. जापानी सेना ने भी स्थानीय लोगों पर अमानवीय जुल्म किए थे. अपर्याप्त उपचार और भोजन के हजारों युद्धबंदियों को गुलाम श्रमिक के रूप में इस्तेमाल किया गया. इसलिए मानव अधिकारों का प्रचार और संरक्षण मित्र शक्तियों का मूल उद्देश्य बन गया. 1941 में, अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने दुनिया के लिए ‘चार स्वतंत्रताओं’ की घोषणा की.

युद्ध 1945 में समाप्त हुआ. इस युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु हथियारों के हमले ने लाखों लोगों को मार दिया था. कई अपंग भी हुए और कई जेनेटिक बिमारी का शिकार बन गए, जो पीढ़ी दर पीढ़ी अब भी कायम है. युद्ध से कई देश तबाह हो गए. लाखों लोग मारे गए या बेघर शरणार्थी बन गए.

इसलिए युद्ध समाप्त होने के तुरंत बाद विजिट राष्ट्रों ने एक नया संगठन बनाने का निर्णय लिया, जो आगे संघर्ष को रोकेगा और दुनिया में शांति कायम कर रहने के बेहतर स्थान बनाने में मदद करेगा. इसलिए 1945 में अंतरार्ष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए एक नया संगठन, संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) का स्थापना किया गया.

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना चार प्रमुख उद्देश्यों को पूरा करने के लिए की गई थी:

  • शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून के विकास को बढ़ावा देना
  • मानवाधिकारों का पालन सुनिश्चित करना

संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक दस्तावेज़ चार्टर में सदस्य देशों ने कहा कि वे कृतसंकल्पित है:

‘…मौलिक मानवाधिकारों में, मानव व्यक्ति की गरिमा और मूल्य में, पुरुषों और महिलाओं और बड़े और छोटे देशों के समान अधिकारों में विश्वास की पुष्टि करने के लिए… और बड़ी स्वतंत्रता में सामाजिक प्रगति और जीवन के बेहतर मानकों को बढ़ावा देने के लिए…’

मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के इस मजबूती ने इसे पिछले अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से बिलकुल अलग रूप दिया. संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का मानना था कि मानवाधिकारों की सुरक्षा से भविष्य में सभी के लिए स्वतंत्रता, न्याय और शांति सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.

मानव अधिकार के विकास का कालक्रम (Timeline of Human Rights’ Development)

बेबीलोन में राजा हम्मूराबी ने ‘हम्मूराबी की संहिता’ लागू किया.

528 ईसा पूर्व – 486 ईसा पूर्व

भारत में भगवान गौतम बुद्ध ने नैतिकता, जीवन के प्रति श्रद्धा, अहिंसा और सही आचरण का ज्ञान दिया.

500 ईसा पूर्व

कन्फ्यूशियस का शिक्षा ‘जेन’ या परोपकार और अन्य लोगों के प्रति सम्मान के आधार पर होने के कारण चीन में प्रसिद्ध हो जाता है.

27 ईसा पूर्व – 476 ई.

रोमन साम्राज्य ने प्राकृतिक कानून और नागरिकों के अधिकारों की अवधारणा विकसित की.

26 ई. – 33 ई.

फिलिस्तीन में ईसा मसीह नैतिकता, सहिष्णुता, न्याय, क्षमा और प्रेम का उपदेश देते हैं. ईसाई नया नियम ईश्वर के समक्ष समानता सिखाता है: ‘मसीह में स्वतंत्र रूप से न तो यहूदी है, न यूनानी, न गुलाम है, न पुरुष है और न ही महिला.’

613 – 632 ईस्वी

सऊदी अरब में, पैगंबर मोहम्मद कुरान में प्रकट समानता, न्याय और करुणा के सिद्धांतों लोगों को प्रदान करते है.

ब्रिटेन के राजा जॉन ने मैग्ना कार्टा पर हस्ताक्षर किया.

1583 – 1645

डच न्यायविद् ह्यूगो ग्रोटियस (Hugo Grotius) ने मानव जाति के भाईचारे और सभी लोगों के साथ उचित व्यवहार करने की आवश्यकता की बात करते हैं. इन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून के जन्म का श्रेय भी दिया जाता है.

इंग्लैंड की संसद में अधिकारों का विधेयक अपनाया जाता है. इसमें राजा की शक्ति को कम कर दिया जाता है. इस विधेयक में यातना और बिना मुकदमे के सजा से मुक्ति शामिल किया गया.

अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा में घोषणा की गई है कि ‘सभी मनुष्य समान बनाए गए हैं’ और कुछ अपरिहार्य अधिकारों से संपन्न हैं.

फ्रांस में नेशनल असेंबली ने मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की घोषणा को अपनाया गया, जो स्वतंत्रता, समानता, संपत्ति, सुरक्षा और उत्पीड़न के प्रतिरोध के अधिकारों की गारंटी देता है.

संयुक्त राज्य अमेरिका कांग्रेस ने जूरी द्वारा सुनवाई, अभिव्यक्ति, भाषण, विश्वास और सभा की स्वतंत्रता के अधिकार को शामिल करने के लिए अमेरिकी संविधान में संशोधन किया. इस तरह अमेरिका में अधिकारों के विधेयक को अपनाया गया.

ब्रिटिश संसद गुलामी उन्मूलन अधिनियम के माध्यम से गुलामी को समाप्त करती है.

संयुक्त राष्ट्र के गठन के दौरान ‘प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा और महत्व’ का पुष्टि किया गया.

संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अपनाया. 30 प्रकार के अधिकारों का घोषणा किया गया.

शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित ‘शरणार्थी कन्वेंशन’ को हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया गया. इसमें शरणार्थी कौन है और उनके संबंध में राज्यों के क्या अधिकार और कानूनी दायित्व हैं इत्यादि को परिभाषित किया गया था.

नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CERD) को हस्ताक्षर के लिए रखा गया. इसका उद्देश्य नस्लीय भेदभाव को खत्म करना और सभी जातियों के बीच समझ को बढ़ावा देना है.

नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR) और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICESCR) को अपनाया गया और हस्ताक्षर के लिए रखा गया.

महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW) को अपनाया गया और हस्ताक्षर के लिए रखा गया. इसे महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को रोकने और उनके अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए पेश किया गया था.

अत्याचार और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा के खिलाफ कन्वेंशन को अपनाया गया और हस्ताक्षर के लिए सदस्यों को प्रस्तुत किया गया.

बाल अधिकारों पर कन्वेंशन को अपनाया गया और हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया गया. इसी साल भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को लागू किया गया.

भारत ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का स्थापना किया. राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोग का स्थापना भी किया गया.

2006 में विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन को अपनाया गया और अगले साल (2007 में) हस्ताक्षर के लिए रखा गया.

मूलनिवासी के अधिकारों पर घोषणा को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाया गया.

संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकार शिक्षा और प्रशिक्षण पर संयुक्त राष्ट्र के घोषणा को अपनाया.

मानव अधिकार की पीढ़ियां (Generations of Human Rights)

1979 में स्ट्रासबर्ग में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान में चेक न्यायविद कारेल वासाक ( Czech jurist Karel Vasak) ने मानव अधिकारों को तीन पीढ़ियों में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया था. मानव अधिकार के पीढ़ी शब्द का इस्तेमाल उनहोंने नवंबर 1977 की शुरुआत में किया था. संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रथम दो पीढ़ियों को ही मानवधिकार के रूप में मान्यता दिया था. नए विभाजन के अवधारणा में उन्होंने तीसरे आयाम को जोड़ा. तकनीकी विकास के कारण आजकल चौथी पीढ़ी का भी वकालत किया जा रहा है. ये पीढ़ियां इस प्रकार है-

A. पहली पीढ़ी के अधिकार (First Generation Rights)

मानवाधिकारों की पहली पीढ़ी को नागरिक और राजनीतिक अधिकार के नाम से भी जाना जाता है. इसका विकास पश्चिमी समाज में 17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान हुआ. यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राजनैतिक भागीदारी पर केंद्रित है. इन्हें नीला अधिकार (Blue Rights) भी कहा जाता है. पहली पीढ़ी के अधिकारों में शामिल प्रमुख तत्व इस प्रकार है:

  • जीवन का अधिकार: जीवन का अधिकार सभी मानवाधिकारों में सबसे मौलिक है. इसका तात्पर्य यह है कि किसी को भी मनमाने ढंग से उसके जीवन से वंचित नहीं किया जाएगा.
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: यह अधिकार व्यक्तियों को सेंसरशिप या सरकारी प्रतिशोध के डर के बिना अपने सोच, विचारों और राय को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति देता है.
  • धर्म की स्वतंत्रता: इसका अर्थ लोगों को बिना किसी भेदभाव या उत्पीड़न के अपनी पसंद के किसी भी धर्म या पंथ का पालन करने का अधिकार से है.
  • निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार: यदि किसी अपराध का आरोप लगाया जाता है तो वह निष्पक्ष सुनवाई का हकदार होता है. इसमें कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार और दोषी साबित होने तक निर्दोष होने का अधिकार शामिल है.
  • सभा और संघ बनाने की स्वतंत्रता: लोगों को सरकारी हस्तक्षेप के बिना शांतिपूर्वक इकट्ठा होने और दूसरों के साथ मिलकर संगठन और समूह बनाने का अधिकार है.

इसके अलावा सम्पत्ति रखने का अधिकार और कानून के समक्ष समानता का अधिकार भी प्रथम पीढ़ी के अधिकार माने जाते है. इन मानवाधिकारों का उद्भव मैग्ना कार्टा के लागू होने के साथ हुआ. यह पुनर्जागरण काल के दौरान और भी विकसित हुआ. अमेरिकी-फ्रांसीसी क्रांतियों के बाद इसे लागू किया लगा और विश्व समुदाय में इसका प्रसार हो गया. इसके कारण राजाओं और सरकारों की शक्तियां सिमित हो गई और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था.

B. दूसरी पीढ़ी के अधिकार (Second Generation Rights)

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सरकारों द्वारा मानवाधिकारों का पहचान किया गया और उन्हें लागू किया जाने लगा. दूसरी पीढ़ी के अधिकारों को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के रूप में भी जाना जाता है, ये व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार और कल्याण पर ध्यान केंद्रित करते हैं. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी को आवश्यक संसाधनों और सेवाओं तक पहुंच प्राप्त हो. दूसरी पीढ़ी के अधिकारों के प्रमुख तत्वों में शामिल हैं.

  • शिक्षा का अधिकार : इसका आशय हर किसी को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देकर बौद्धिक और व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देने से है.
  • स्वास्थ्य का अधिकार : स्वास्थ्य के अधिकार में जनता तक स्वास्थ्य सेवाओं, स्वच्छ पानी और स्वच्छता तक पहुंच सुनिश्चित कर समग्र कल्याण को वास्तविक बनाना शामिल है.
  • काम का अधिकार : आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु व्यक्तियों को रोजगार और आजीविका कमाने का अधिकार इसमें शामिल है. रोजगार न्याय और मानवीय श्रम कानूनों पर आधारित होना चाहिए. जैसे काम के 8 घंटे और साप्ताहिक अवकाश, नियमित व सुचारु वेतन, सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन इत्यादि इसमें शामिल है.
  • आवास का अधिकार : हर किसी के पास आधुनिक सुविधाओं से लेस निजी आवास हो, जिससे वह सभ्य जीवन जी सकें.
  • सामाजिक सुरक्षा का अधिकार : व्यक्तियों के पास सामाजिक सुरक्षा जाल का जाल हो, जो उन्हें शोषण, भेदभाव और उत्पीड़न से बचा सके. यह उन्हें गरीबी और अभाव से बचाता है.

दूसरी पीढ़ी के अधिकार अक्सर 20वीं सदी के दौरान कई देशों में विकसित सामाजिक कल्याण के अवधारणा से जुड़े है. ये आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को दूर करने की दिशा में बदलाव को दर्शाते हैं. कई बार इन्हें लाल अधिकार भी कहा जाता है, जो इस अवधारणा पर टिका है कि संसाधनों पर सरकार का कब्जा होता है और सरकार को लोक-कल्याण से जुड़े कार्य करना चाहिए.

C. तीसरी पीढ़ी के अधिकार (Third Generation Rights)

तीसरी पीढ़ी के अधिकारों की अवधारणा 20वीं सदी के उत्तरार्ध में उभरी है. इन अधिकारों को सामूहिक या एकजुटता अधिकारों के रूप में भी जाना जाता है और सामूहिक व सामुदायिक कल्याण पर जोर इसकी विशेषता है. तीसरी पीढ़ी के अधिकारों के प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:

  • आत्मनिर्णय का अधिकार : यह अधिकार समुदायों और लोगों को अपने राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को निर्धारित करने की अनुमति देता है.
  • स्वस्थ वातावरण का अधिकार : व्यक्तियों और समुदायों को ऐसे वातावरण में रहने का अधिकार है जो उनके स्वास्थ्य के अनुकूल हो. स्वच्छ पर्यावरण और समुदायिक स्वास्थ्य इसका उदाहरण है.
  • शांति का अधिकार : यह अधिकार शांतिपूर्ण तरीकों से विवादों को सुलझाने पर जोर देने के साथ शांति के महत्व और संघर्षों की रोकथाम पर जोर देता है.
  • सांस्कृतिक पहचान का अधिकार : समुदायों को अपनी सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय पहचान को संरक्षित करने और बढ़ावा देने का अधिकार है. इसी के तहत लोग अपने विरासत को संरक्षित करते है और उनका विरासत तक पहुँच सुनिश्चित किया जाता है.
  • संचार का अधिकार : इसके तहत बिना किसी रोक के निर्बाध संचार और संपर्क का वकालत किया जाता है. इसी अधिकार के तहत मीडिया जगत पुरे विश्व में पत्रकारिता कर पाते है. इंटरनेट और अंतर्राष्ट्रीय फ़ोन कॉल की सुविधा भी इसी के तहत आता है.

तीसरी पीढ़ी के अधिकार अक्सर व्यापक वैश्विक संदर्भ से जुड़े हैं. यह उन मुद्दों को संबोधित करते हैं जो राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हैं. इसलिए इसे लागु करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है.

संक्षेप में, मानवाधिकारों की तीन पीढ़ियों की अवधारणा समय के साथ मानवाधिकार सिद्धांतों के विकास का प्रतिनिधित्व करती है. जबकि पहली पीढ़ी के अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ध्यान केंद्रित करते हैं. दूसरी पीढ़ी के अधिकार सामाजिक और आर्थिक कल्याण को संबोधित करते हैं. वहीं तीसरी पीढ़ी के अधिकार सामूहिक और वैश्विक मुद्दों पर जोर देते हैं.

ये अधिकार सामूहिक रूप से दुनिया भर में सभी व्यक्तियों और समुदायों के अधिकारों और सम्मान को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए एक रूपरेखा बनाते हैं. पहली पीढ़ी के अधिकार पूर्ण होने पर लोग दूसरे पीढ़ी के अधिकार का मांग करते है. वहीं दूसरे पीढ़ी के अधिकार प्राप्त हो जाने पर लोगों का प्रयत्न तीसरी पीढ़ी के अधिकार पर होता है.

बदलते परिवेश में कुछ लोग चौथे पीढ़ी के अधिकार का मांग भी कर रहे है. लेकिन इस पीढ़ी के अधिकारों में स्पष्टता का अभाव है. वस्तुतः ये अधिकार इंटरनेट क्रांति से जुड़े अधिकार प्रतीत होते है. इनमें डिजिटल पहुँच, निजी डिजिटल डाटा तक पहुँच और उसकी सुरक्षा जैसे मुद्दे शामिल है.

मानव अधिकारों का वर्गीकरण (Classification of Human Rights in Hindi)

अध्ययन की दृष्टि से नीचे मानव अधिकारों का वर्गीकरण चार प्रकार में किया गया है-

1. ‘शास्त्रीय’ और ‘सामाजिक’ अधिकार (Classical and Social Rights)

यह वर्गीकरण ‘शास्त्रीय’ और ‘सामाजिक’ अधिकारों के बीच अंतर का प्रयास है. ‘शास्त्रीय’ अधिकारों को अक्सर राज्य के गैर-हस्तक्षेप (नकारात्मक दायित्व) की आवश्यकता के रूप में देखा जाता है, जबकि ‘सामाजिक अधिकारों’ को राज्य के सक्रिय हस्तक्षेप (सकारात्मक दायित्वों) की आवश्यकता के रूप में देखा जाता है. दूसरे शब्दों में, शास्त्रीय अधिकार राज्य को कुछ कार्यों को करने से रोकती हैं, जबकि सामाजिक अधिकार सरकार को कुछ गारंटी प्रदान करने के लिए बाध्य करते हैं.

शास्त्रीय अधिकार को नकारात्मक अधिकारों के रूप में भी जाना जाता है. इसके उदाहरणों में बोलने की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता और निजी संपत्ति का अधिकार शामिल हैं. सरकार द्वारा इसमें हस्तक्षेप नहीं करने की उम्मीद की जाती है. दूसरी ओर, सामाजिक अधिकार ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्तियों के लिए कुछ लाभ या सुरक्षा की गारंटी देते हैं. ये अधिकार अक्सर सरकार द्वारा प्रदान किए जाते है. मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल का अधिकार और न्यूनतम जीवन स्तर का अधिकार सामाजिक अधिकारों के उदाहरण है.

इस तरह, शास्त्रीय अधिकार का उद्देश्य व्यक्तिगत स्वायत्तता की रक्षा करना होता है. जबकि सामाजिक अधिकार व्यक्तियों के पास सम्मानजनक जीवन जीने के लिए सरकारी उपायों पर केंद्रित है. दोनों प्रकार के अधिकारों को महत्वपूर्ण माना जाता है. लेकिन इनकी सापेक्ष प्राथमिकता और कार्यान्वयन राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ के आधार पर भिन्न हो सकते हैं.

संक्षेप में, ‘सामाजिक’ और ‘शास्त्रीय’ अधिकारों में विभाजनकारी अंतर अधिकारों के प्रत्येक सेट के तहत दायित्वों की प्रकृति को प्रतिबिंबित नहीं करता है.

2. नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार

(i) नागरिक आधिकार (civil rights).

‘नागरिक अधिकार’ का उल्लेख मानव अधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा (UNDHR) के पहले अठारह अनुच्छेदों में किया गया है. लगभग ये सभी “सिविल एंव राजनैतिक अधिकारों की अन्‍तराष्‍ट्रीय प्रसंविदा (ICCPR), 1966” में बाध्यकारी संधि मानदंडों के रूप में भी शामिल किए गए है.

ये अधिकार किसी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता और सुरक्षा के अधिकार से संबंधित है. इसके माध्यम से व्यक्ति के खिलाफ शारीरिक हिंसा, यातना और अमानवीय व्यवहार, मनमानी गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास किया गया है. इसमें अवैध हिरासत, निर्वासन, गुलामी और दासता, किसी की निजता और स्वामित्व के अधिकार में हस्तक्षेप, किसी की आवाजाही की स्वतंत्रता और विचार, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध का निषेध किया गया है.

‘बुनियादी अधिकार’ में आर्थिक और सामाजिक अधिकार शामिल हैं. लेकिन गोपनीयता और स्वामित्व की सुरक्षा जैसे अधिकार शामिल नहीं हैं. अखंडता का अधिकार और बुनियादी अधिकार में यही अंतर है. हालाँकि यह पूरी तरह से अखंडता का अधिकार से जुड़ा नहीं है. लेकिन कानून में समान व्यवहार और सुरक्षा का अधिकार निश्चित रूप से एक नागरिक अधिकार है. नागरिक अधिकार आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की प्राप्ति में आवश्यक है.

नागरिक अधिकारों के एक अन्य समूह को सामूहिक शब्द ‘उचित प्रक्रिया अधिकार’ के अंतर्गत संदर्भित किया जाता है. ये अन्य बातों के अलावा, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायाधिकरण द्वारा सार्वजनिक सुनवाई के अधिकार, ‘दोषी सिद्ध होने तक निर्दोषिता की धारणा’, दोहरे सजा से मुक्ति का सिद्धांत (ne bis in idem theory) और कानूनी सहायता तक पहुँच का अधिकार शामिल है.

(ii) राजनीतिक अधिकार (Political Rights)

राजनीतिक अधिकारों का वर्णन यूडीएचआर के अनुच्छेद 19 से 21 में है. यह आईसीसीपीआर में भी संहिताबद्ध हैं. इनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ और सभा की स्वतंत्रता, अपने देश की सरकार में भाग लेने का अधिकार और गुप्त मतदान द्वारा होने वाले वास्तविक आवधिक चुनावों में वोट देने और चुनाव में खड़े होने का अधिकार शामिल है.

(iii) आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार (Economic and social rights)

आर्थिक और सामाजिक अधिकार यूडीएचआर के अनुच्छेद 22 से 26 में सूचीबद्ध हैं. इसे विकसित रुपए में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICESCR), 1966 के अनुच्छेद 6 से 14 में बाध्यकारी संधि मानदंडों के रूप में स्थापित किया गया है. ये अधिकार समृद्धि और खुशहाली के लिए आवश्यक शर्तों से लैस है.

आर्थिक अधिकार में संपत्ति का अधिकार, काम करने का अधिकार, उचित वेतन का अधिकार, काम के घंटों की उचित सीमा और ट्रेड यूनियन अधिकार को संदर्भित किया गया है. सामाजिक अधिकार वे अधिकार हैं जो पर्याप्त जीवन स्तर के लिए आवश्यक है. इनमें स्वास्थ्य, आश्रय, भोजन, सामाजिक देखभाल और शिक्षा का अधिकार शामिल हैं.

(iv) सांस्कृतिक अधिकार (Cultural Rights)

यूडीएचआर के अनुच्छेद 27 और 28 में सांस्कृतिक अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया है. इसमें समुदाय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में स्वतंत्र रूप से भाग लेने का अधिकार, वैज्ञानिक उन्नति में हिस्सा लेने का अधिकार और किसी भी वैज्ञानिक, साहित्यिक या कलात्मक उत्पादन से उत्पन्न नैतिक और भौतिक हितों की सुरक्षा का अधिकार शामिल है. यह आईसीईएससीआर के अनुच्छेद 15 और आईसीसीपीआर के अनुच्छेद 27 में भी वर्णित है.

3. मौलिक एवं बुनियादी अधिकार (Fundamental and Basic Rights)

मौलिक अधिकारों का अर्थ जीवन के अधिकार और व्यक्ति की अनुल्लंघनीयता जैसे अधिकारों से है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा इससे सम्बद्ध व्यापक मानक विकसित किए गए हैं. ये मानक विशेष रूप से 1960 के दशक से कई सम्मेलनों, घोषणाओं और प्रस्तावों में निर्धारित किए गए हैं. ये पहले से ही मान्यता प्राप्त अधिकारों को नए नीति के माध्यम से मानव विकास के उद्देश्य की पूर्ति में मदद करते है.

लेकिन मानवाधिकारों की व्यापक परिभाषा से ‘मानवाधिकारों के उल्लंघन’ की धारणा को बढ़ावा मिल सकता है. इसलिए मानव अधिकारों को विभिन्न प्रकार में वर्गीकृत किया गया, जैसे- ‘प्राथमिक’, ‘आवश्यक’, ‘मूल’ और ‘मौलिक’ मानवाधिकार इत्यादि.

इस वर्गीकरण का एक अन्य दृष्टिकोण कई ‘बुनियादी अधिकारों’ को अलग करना है, जिन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीति में पूर्ण प्राथमिकता दी जानी चाहिए. इनमें वे सभी अधिकार शामिल हैं जो लोगों की प्राथमिक भौतिक और गैर-भौतिक आवश्यकताओं से संबंधित हैं. इनके बिना इंसानों के सम्मानजनक जीवन की कल्पना नहीं किया जा सकता है.

बुनियादी अधिकारों में -जीवन का अधिकार, न्यूनतम स्तर की सुरक्षा का अधिकार, व्यक्ति की अनुल्लंघनीयता, गुलामी, दासता और यातना से मुक्ति, स्वतंत्रता से गैरकानूनी वंचन पर रोक, भेदभाव और अन्य कार्य जो मानव गरिमा पर आघात करते हैं इत्यादि- शामिल हैं. इनमें विचार, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता के साथ-साथ उपयुक्त पोषण, कपड़े, आश्रय और चिकित्सा देखभाल और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण अन्य आवश्यक चीजों का अधिकार भी शामिल है.

इसमें ‘भागीदारी अधिकार’ का भी उल्लेख किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, चुनाव के माध्यम से सार्वजनिक जीवन में भाग लेने का अधिकार (जो एक राजनीतिक अधिकार भी है) या सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार इत्यादि. कई लोकतान्त्रिक राज्यों में भागीदारी अधिकारों को मौलिक अधिकारों की श्रेणी में रखा गया है. ये अधिकार सभी प्रकार के बुनियादी मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक पूर्व शर्तें है.

अधिकाँश देशों के संविधान में मौलिक मानव अधिकारों का गारंटी दिया गया है. सैद्धांतिक रूप से मौलिक अधिकारों को संवैधानिक प्रावधानों के माध्यम से सुरक्षित माना जाता है. इसका अभिव्यक्ति कई राज्यों की घोषणाओं में भी है. 1776 की वर्जीनिया घोषणा में कहा गया कि पुरुष स्वतंत्र और मुक्त हैं और उनके पास कुछ अंतर्निहित अधिकार हैं. मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की फ्रांसीसी घोषणा, 1789 में प्रावधान किपत्रकारिताया गया कि मनुष्य स्वतंत्र पैदा होते हैं और उन्हें समान अधिकार प्राप्त हैं. भारतीय संविधान भी देश के नागरिकों को छह मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है.

4. अन्य वर्गीकरण (Other Classifications)

(i) एकजुटता अधिकार (solidarity rights).

मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 के अनुच्छेद 28 के मुताबिक, प्रत्येक व्यक्ति ऐसी सामाजिक और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का हकदार है जिसमें उसे सभी अधिकार और स्वतंत्रताएं पूरी तरह से उपलब्ध हो. इस श्रेणी में सत्ता का अधिकार, धन के न्यायपूर्ण वितरण का अधिकार, आर्थिक और सामाजिक विकास का अधिकार, विकास की प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार और शांति का अधिकार शामिल हैं.

(ii) प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights)

मानव अधिकारों का इतिहास प्राचीन काल के प्राकृतिक कानून की दार्शनिक अवधारणाओं में निहित है. इसलिए इसे प्राकृतिक अधिकार भी कहा जाता है. प्लेटो मानक नैतिक आचार संहिता देने वाले पहले लेखकों में से एक थे. वहीं सिकंदर महान के गुरु अरस्तू का मानना था कि समय-समय पर समाज के सामने आने वाली विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों के अनुसार अधिकार बदलते रहते हैं.

चूँकि मानवाधिकार विश्व के प्रत्येक व्यक्ति पर सार्वभौमिक रूप से लागू होते हैं. इसलिए यह प्राकृतिक अधिकारों के समान है. प्राकृतिक अधिकार प्राकृतिक कानून से प्राप्त हुए हैं. इस सिद्धांत के अनुसार, कानून को नैतिक तर्क को प्रतिबिंब होना चाहिए. इसे व्यापक समाज द्वारा निर्धारित नैतिकता से मेल खाना चाहिए. दूसरी ओर, प्रत्यक्षवाद कहता है कि मानवाधिकार कानून द्वारा क़ानूनों और आदेशों के अधिनियमन का परिणाम हैं जो इसके साथ जुड़े विभिन्न प्रतिबंधों के साथ आते हैं.

(iii) नैतिक अधिकार (Moral Rights)

ये अधिकार किसी व्यक्ति के व्यावहारिक और नैतिक आचरण को निर्धारित करते हैं. ये नैतिक महत्वों को जाहिर करते है, जिन्हें संस्थागत अधिकारों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता है. एक इंसान का दूसरे इंसान के प्रति नैतिकता का भाव इसके मूल में है. यह दो व्यक्तियों और समुदाय में सम्मान, भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता, जीवन की सुरक्षा, समाज में शांति आदि जैसे नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देते हैं.

मानवाधिकार के सिद्धांत और घोषणाएं राज्य और लोगों पर नैतिक दायित्व भी डालते हैं कि वे अन्य लोगों के अधिकारों का उल्लंघन न करें. यदि ऐसा किया तो निर्धारित कानून के प्रावधानों के अनुसार दंडित किया जाएगा. यह प्रक्रिया समाज में नैतिकता को बढ़ावा देता है.

(iv) कानूनी अधिकार (Legal Rights)

ये अधिकार किसी देश की कानूनी व्यवस्था द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं. इन अधिकारों के दो आवश्यक तत्व हैं:

  • अधिकार का धारक, और
  • कर्तव्य से बंधा हुआ व्यक्ति.

यहाँ अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे से सहसंबद्ध है. किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति द्वारा कर्तव्य निर्वहन के बिना कोई अधिकार प्राप्त नहीं हो सकता है. कर्तव्य से बंधे व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह किसी अन्य व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन न करे. वास्तव में नागरिकों के मानवधिकारों का रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है.

मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 2 में कहा गया है कि विभिन्न उपायों और विधायी प्रावधानों के माध्यम से सभी मानवाधिकारों को बढ़ावा देना, सुरक्षा करना और लागू करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है. इसमें किसी भी राज्य की सरकार को ऐसे किसी भी कानून को पारित नहीं करने को कहा गया है जो लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करता हो.

मानवाधिकार के महत्व व विशेषताएं (Importance and Characteristics of HR)

  • मानवाधिकार प्रकृति में सार्वभौमिक हैं. मतलब ये प्रत्येक व्यक्ति को उसकी जाति, पंथ, नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता और जन्म स्थान से परे समान रूप से प्राप्त है.
  • ये अविभाज्य अधिकार हैं. ये प्राकृतिक अधिकार के विशेषता से लैस है, इसलिए किसी को इससे वंचित नहीं किया जा सकता है.
  • ये अविभाज्य और अन्योन्याश्रित अधिकार हैं. यदि कोई सरकार एक अधिकार देती है तो उसे अपने नागरिकों के अन्य अधिकारों की रक्षा भी करनी होगी. उदाहरण के लिए, अपने नागरिकों के जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार की रक्षा करना और उन्हें भोजन, आश्रय और स्वच्छ वातावरण प्रदान करना सरकार का कर्तव्य है.
  • वे प्रत्येक व्यक्ति में अंतर्निहित हैं और जन्म से ही उपलब्ध हैं.
  • यदि मनुष्य अपने मानव अधिकारों से परिचित नहीं है या वह अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं करता है तो भी ये नष्ट नहीं होते हैं. उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति को वकील से परामर्श लेने के अपने अधिकार के बारे में जानकारी नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसका अधिकार समाप्त हो गया है. इस परिस्तिथि में अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे उसे मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करें या उसे उसके अधिकार बताएं.
  • जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, मनमानी गिरफ्तारी और सजा के खिलाफ अधिकार आदि जैसे अधिकार व्यक्ति की गरिमा और व्यक्तित्व की रक्षा करते हैं.

मानवाधिकार के स्रोत (Sources of Human Rights in Hindi)

अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (international treaties).

दो या दो से अधिक राष्ट्रों के बीच बाध्यकारी संधियां मानव अधिकार के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं. मानव अधिकार पर यूरोपीय कन्वेंशन, अमेरिकी कन्वेंशन, अफ्रीकी चार्टर और लोगों के अधिकार इसके कुछ उदाहरण है.

अंतर्राष्ट्रीय रीति-रिवाज (International customs)

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में कई रिवाज बार-बार दोहराए गए. इसके कारण इन रीती-रिवाजों ने प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानून का दर्जा प्राप्त कर लिया है. इस प्रकार कूटनीतिक सहमति के बावजूद ये सभी राज्यों पर बाध्यकारी हैं. इनमें से कई अधिकार प्रथागत अंतरराष्ट्रीय कानून का हिस्सा हैं और इस प्रकार उन्हें मानव अधिकारों के स्रोत के रूप में जाना जाता है.

अंतर्राष्ट्रीय उपकरण (International Instruments)

मानव अधिकारों से संबंधित कई घोषणाएं, संकल्प और सिफारिशों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव अधिकारों के स्रोत के रूप में अपनाया गया है. मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948), तेहरान सम्मेलन (1968) और वियना सम्मेलन (1993) में अपनाई गई घोषणाएँ इनमें से कुछ उदाहरण है.

न्यायायिक निर्णय (Judicial Decisions)

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित विभिन्न विवादों और मुकदमों में निर्णय पारित कर क़ानूनी मिसालें स्थापित करती है. ये निर्णय मानव अधिकारों के एक अन्य महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करते है.

आधिकारिक दस्तावेज़ (Official Documents)

ह्यूमन राइट्स लॉ जर्नल, ह्यूमन राइट्स रिव्यू, यूरोपियन लॉ रिव्यू जैसे दस्तावेज़ और पत्रिकाएँ और संयुक्त राष्ट्र के तहत अन्य सामूहिक आधिकारिक कार्य मानवाधिकारों के स्रोत के रूप में काम करते हैं.

संयुक्त राष्ट्र और मानव अधिकार (United Nations and Human Rights)

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1948 में संरा के सदस्य देशों में सार्वभौमिक मानवाधिकारों की व्यापक सूची पर सहमति बनी. इसी साल 10 दिसंबर को महासभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UHDR) को अपना लिया. वर्तमान में इसमें 30 अनुच्छेद है. संक्षिप्त में इनका वर्णन इस प्रकार है-

  • अनुच्छेद 1 – समानता का अधिकार
  • अनुच्छेद 2 – भेदभाव से मुक्ति
  • अनुच्छेद 3 – जीवन, स्वतंत्रता, व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार
  • अनुच्छेद 4 – गुलामी से मुक्ति
  • अनुच्छेद 5 – यातना और अपमानजनक व्यवहार से मुक्ति
  • अनुच्छेद 6 – कानून के समक्ष एक व्यक्ति के रूप में मान्यता का अधिकार
  • अनुच्छेद 7 – कानून के समक्ष समानता का अधिकार
  • अनुच्छेद 8 – सक्षम न्यायाधिकरण द्वारा उपचार का अधिकार
  • अनुच्छेद 9 – मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और निर्वासन से मुक्ति
  • अनुच्छेद 10 – निष्पक्ष सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार
  • अनुच्छेद 11 – दोषी साबित होने तक निर्दोष माने जाने का अधिकार
  • अनुच्छेद 12 – गोपनीयता, परिवार, घर और पत्राचार में हस्तक्षेप से मुक्ति
  • अनुच्छेद 13 – देश के अंदर और बाहर स्वतंत्र आवागमन का अधिकार
  • अनुच्छेद 14 – उत्पीड़न से बचने के लिए अन्य देशों में शरण का अधिकार
  • अनुच्छेद 15 – राष्ट्रीयता का अधिकार और इसे बदलने की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद 16 – विवाह और परिवार का अधिकार
  • अनुच्छेद 17 – संपत्ति का स्वामित्व का अधिकार
  • अनुच्छेद 18 – विश्वास और धर्म की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद 19 – राय और सूचना की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद 20 – शांतिपूर्ण सभा और संघ का अधिकार
  • अनुच्छेद 21 – सरकार और स्वतंत्र चुनावों में भाग लेने का अधिकार
  • अनुच्छेद 22 – सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
  • अनुच्छेद 23 – वांछनीय कार्य और ट्रेड यूनियनों में शामिल होने का अधिकार
  • अनुच्छेद 24 – आराम और आराम का अधिकार
  • अनुच्छेद 25 – पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार
  • अनुच्छेद 26 – शिक्षा का अधिकार
  • अनुच्छेद 27 – समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार
  • अनुच्छेद 28 – सामाजिक व्यवस्था का अधिकार जो इस दस्तावेज़ को स्पष्ट करता है
  • अनुच्छेद 29 – स्वतंत्र और पूर्ण विकास के लिए आवश्यक सामुदायिक कर्तव्य
  • अनुच्छेद 30 – उपरोक्त अधिकारों में राज्य या व्यक्तिगत हस्तक्षेप से मुक्ति
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (United Nations Human Rights Council – UNHRC) का मुख्यालय जेनेवा में है. यह संरा महासभा के अधीन काम करता है. 10 दिसंबर 1948 को यूएन द्वारा मानवाधिकारों का सार्वभौमिक अपनाए जाने के उपलक्ष में, हरेक साल 10 दिसंबर को दुनिया ‘मानव अधिकार दिवस’ के रूप में मनाती है.

दिसंबर 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार को मजबूती प्रदान करने वाला दो अंतर्राष्ट्रीय संधियों को अपनाया:

  • आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (ICESCR) जिसकी निगरानी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की समिति द्वारा की जाती है.
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR ICCPR) जिसकी निगरानी मानवाधिकार समिति द्वारा की जाती है.

इन्हें अक्सर “ अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध ” के रूप में जाना जाता है. UDHR और इन दोनों प्रसंविदाओं को एक साथ मानवाधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय विधेयक के रूप में जाना जाता है.

मानवाधिकारों से संबंधित अन्य संधियाँ (Other Treaties related to Human Rights)

  • अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून (IHL) और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून अंतर्राष्ट्रीय कानून के पूरक निकाय हैं. ये कुछ समान उद्देश्यों को साझा करते हैं. यह कानून मानवीय कारणों से सशस्त्र संघर्ष के प्रभावों को सीमित करने की मांग करता है. यह उन लोगों की रक्षा करता है जो शत्रुता में शामिल नहीं होते हैं और युद्ध के साधनों एवं तरीकों को प्रतिबंधित करते हैं. इस कानून को युद्ध के कानून या सशस्त्र संघर्ष के कानून के रूप में भी जाना जाता है.
  • नरसंहार के अपराध की रोकथाम और सज़ा पर कन्वेंशन (वर्ष 1948)
  • नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर कन्वेंशन (वर्ष 1965)
  • महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (वर्ष 1979)
  • अत्याचार और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सज़ा के खिलाफ कन्वेंशन (वर्ष 1984)
  • बाल अधिकारों पर कन्वेंशन (वर्ष 1989)
  • सभी प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों के सदस्यों के अधिकारों के संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (वर्ष 1999)
  • जबरन अगुआ करने से सभी व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (वर्ष 2006)
  • विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन (2006)
  • वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) ने व्यापार और मानवाधिकारों पर मार्गदर्शक सिद्धांतों को अपनाया है.

भारत में मानव अधिकार (Human Rights in India)

भारतीय संविधान के भाग-III में वर्णित मौलिक अधिकार आधुनिक मानव अधिकारों के काफी करीब है. भारत ने आजादी के तुरंत बाद लागु संविधान के साथ ही इनका प्रावधान किया था. इनके उलंघन पर अदालत का शरण भी लिया जा सकता है. भारतीय नागरिक मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय जा सकते हैं. इसके अलावा अनुच्छेद 36 से 51 तक में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्व भारत को एक लोककल्याणकारी राज्य बनता है.

इसके अलावा 1990 के दशक में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने भारत पर मानव अधिकार संगठन स्थापित करने का दवाब बनाया. भारतीय जनमत भी इसके पक्ष में खड़ी होने लगी. विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखकर साल 1993 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) का स्थापना किया था.

मानव अधिकार आयोग द्वारा मामले का शिकायत दर्ज किया जाता है, उनपर जांच कर फैसला भी दिया जाता है. इसका पहला मकसद पीड़ित को त्वरित राहत पहुँचाना होता है. आयोग अपने निर्देशों के नाफरमानी के दशा में उच्च या सर्वोच्च न्यायालय भी जा सकता है.

भारत मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का हस्ताक्षरकर्त्ता है. साथ ही, भारत द्वारा ICESCR एवं ICCPR का पुष्टि किया गया है. भारत ने नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय, बाल अधिकारों पर अभिसमय और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर अभिसमय का पुष्टि भी किया है.

देश के कई अन्य सरकारी संस्थाएं भी मानव अधिकार के रक्षा में मददगार है-

मानव अधिकार की चुनौतियाँ (Threats to Human Rights in Hindi)

भारतीय संविधान द्वारा बाध्यकारी ढंग से लागू मौलिक अधिकार प्रकृति में राजनीतिक और नागरिक प्रकार के हैं. ये सरकार को नागरिकों के स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने से रोकता है. इसलिए इन्हें नकारात्मक अधिकार का रूप माना जाता है. संविधान में आर्थिक और सामाजिक प्रकृति के अधिकारों का वर्णन निति-निर्देशक तत्व में किया गया है, जो न्यायपालिका के परिधि से बाहर रखा गया है. ये सकारात्मक व्याख्या है और लोक-कल्याण के लिए अहम् है, जो आधुनिक मानव अधिकारों का हिस्सा है.

संवैधानिक प्रावधानों से इतर भारतीय समाज में कई प्रकार के कारक है, जो मानव अधिकारों के लक्ष्य प्राप्ति में बाधक है. ये इस प्रकार है-

1. आर्थिक कारक (Economic Factors)

भारतीय जनता में गरीबी एक बड़ी समस्या है. धन और भूमि का संकेंद्रण, सामंतवाद और उपनिवेशवाद आदि इसके ऐतिहासिक कारण है. भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण और उदारीकरण ने अमीरी और गरीबी में खाई को और भी चौड़ा कर दिया है. सरकार का स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे कल्याणकारी उपायों से पीछे हटने का प्रयास इसे और भी बढ़ावा दे रहा है. कमजोर वर्गों के साथ भेदभाव, अशिक्षा, भूख और कुपोषण, लाचारों पर रोजमर्रा की हिंसा आर्थिक असमानता को पाटने में एक बड़ी बाधा है.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 भारत के दयनीय स्थिति को बयां करते है. ऐसे विधायी उपायों को पारित करने के पीछे का उद्देश्य अत्यधिक गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोगों को सहायता प्रदान करना होता है.

2. सामाजिक परिस्थिति (Social Factors)

भारत एक जाति प्रधान देश है और जाति-व्यवस्था का जन्म हिंदू धर्म के अमानवीय पुस्तक मनुस्मृति में वर्णित चातुर्वर्ण्य व्यवस्था से हुआ है. इस व्यवस्था के कारण सदियों तक शूद्रों और दलितों को शिक्षा और संपत्ति के अधिकार से वंचित रखा गया. इन्हें कई अन्य अधिकारों, मंदिर जाने और द्विजों के कार्यक्रम में शामिल होने से निषेध कर दिया गया. इसके कारण भारत में शूद्रों और दलितों का सामजिक विकास थम सा गया. इसका आर्थिक प्रभाव भी हुआ.

जाति व्यवस्था में सबसे खराब स्थिति अछूतों (दलितों) का हुआ है. कई लोग इनके छाया को भी अपवित्र मानते थे. इसके कारण शूद्र और दलित वर्गों के उत्थान पर ऐतिहासिक रूप से नकारात्मक प्रभाव हुए. हालाँकि, भारतीय संविधान में कई प्रावधानों को शामिल कर जाति-व्यवथा के कुप्रभावों को जड़ से समाप्त करने का प्रयास किया गया है. लेकिन, समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी जाति-व्यवस्था और जातीय उत्पीड़न का नकारात्मक प्रभाव झेल रहा है. इन प्रभावों को समाप्त किए बिना मानव अधिकारों का गारंटी एक छलावा मात्रा है.

3. राजनीतिक कारक (Political Factors)

भारत में शूद्र और दलित जातियां बहुसंख्यक है. लेकिन ये जातियां संसाधन के अभाव में सत्ता के शीर्ष से कोसों दूर है. राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी राजनैतिक नेतृत्व के अभाव में इस समूह की बातें संसद की दहलीज पर नहीं पहुँच पाती है.

4. शिक्षा का स्तर (Level of Education)

भारत की एक बड़ी आबादी अशिक्षित या गुणवत्ताहीन शिक्षा से लैस हैं. अशिक्षितों को अक्सर अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं होता है. ऐसे में यह शोषण को बढ़ावा देता है और मानव अधिकारों के प्राप्ति में बाधा बन जाता है. हालाँकि भारत ने 6 से 14 वर्ष के उम्र के बच्चों के लिए शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य बनाकर मौलिक अधिकार में शामिल किया है. लेकिन, सरकारी विद्यालयों में दी जा रही शिक्षा निजी विद्यालयों के तुलना में काफी गुणवत्ताहीन है. इससे सरकारी विद्यालयों के अधिकाँश छात्र आधुनिक दौड़ के प्रतियोगिता से बाहर रह जाते है.

5. राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security)

राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरे के आशंका में कई बार मानवाधिकारों से समझौता किया जाता है. भारत में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन और अमेरिका का मैकार्थीवाद इस्त्यादी इसके उदाहरण है.

6. मुठभेड़ में हत्याएं (Murder in Encounter)

भारत के कश्मीर और उत्तर-पूर्वी राज्यों में भारी मात्रा मेंआंदोलन होते रहते है. इन स्थितियों में मदद के लिए पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों को बुलाया जाता है. विभिन्न पुलिस और सुरक्षा बलों पर मानवाधिकारों का उल्लंघन और फर्जी मुठभेड़ का आरोप लग्न मानव अधिकारों के उलंघन के श्रेणी में आता है. कई बार ये आरोप सही भी पाए गए है, जो चिंतनीय है.

आगे की राह (Conclusion)

संयक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित सार्वभौमिक मानव अधिकारों को कई देशों ने अपने संविधान में शामिल किया है. साथ ही सभी देशों ने अपने यहाँ मानवाधिकार आयोग का स्थापना किया है. इन्हें कोई भी व्यक्ति, संस्था या राज्य तोड़ नहीं सकता है. लेकिन यूएन का यह घोषणा मानव अधिकारों के लिए आदर्श संहिता मात्र है. जरुरत, समय व स्थान के अनुसार इसे और भी विस्तारित किया जा सकता है.

यूएन को विश्व का सबसे शक्तिशाली संगठन कहा जाता है. लेकिन यह दुनिया के कई मामलों को निपटने में विफल रहा है. जब भी कोई अतिशक्तिशाली राष्ट्र निर्बल राष्ट्रों पर जुल्म करता है तो, यूएन की शक्तियां बेबस नजर आती है. बात चाहे यूक्रेन पर रूस द्वारा आक्रमण का हो, अमेरिका द्वारा इराक़ पर हमला हो या फिर यहूदी बहुल इजराइल द्वारा फिलिस्तीन के मूलनिवासी अरबियों का नरसंहार हो, इन सभी मामलों में यूएन शांति कायम करने में नाकाम रहा है.

इससे पहले भी सदस्य राष्ट्रों द्वारा मानवाधिकार के व्यापक उलंघन के मामले सामने आए है. लेकिन यूएन शक्तिशाली या सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों के ताकत के सामने बेबस नजर आता है. इसलिए सुरक्षा परिषद् के व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिए. युद्ध के दौरान शांति कायम के लिए यूएन की सुरक्षा परिषद पर समाप्त किया जा सकता है. साथ ही, महासभा को स्थायी सुरक्षा परिषद से अधिक शक्तियां प्रदान कर भी युद्ध काल की त्रासदी को सिमित किया जा सकता है.

साथ ही, विभिन्न देशों में फैले भ्रष्टाचार, पूंजीवाद और तानाशाही शासन ने भी मानव अधिकारों के प्रावधानों को कमजोर किया है. इसलिए यूएन समेत तमाम क्षेत्रों में निरंतर सुधार का जरूरत है. पुराने कानूनों और प्रावधानों को परिस्थितियों की नवीनतम मांग के अनुसार संरेखित किया जाना चाहिए. साथ ही, प्रौद्योगिकी और विज्ञान में प्रगति के साथ नए परिवर्तनों को पूरा करने के लिए इन अधिकारों को संशोधित और परिष्कृत करने की आवश्यकता है.

“मानव अधिकार का इतिहास और वर्गीकरण” पर 1 विचार

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मानव अधिकार आधुनिक युग में एक व्यापक अवधारणा है. आज के समय में इंटरनेट और डिजिटल पहुँच का अधिकार, मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार जैसे मामलों को सरकार द्वारा हल किए जाने की उम्मीद की जाती है. वस्तुतः राज्य का स्वरुप लोक-कल्याणकारी होना जरुरी है.

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मानवाधिकार दिवस पर निबंध | Essay On Human Rights Day in Hindi | 10 Lines On Human Rights Day in Hindi

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Updated on: March 30, 2024

Essay on Human Rights Day in Hindi :   इस लेख में हमने  मानवाधिकार दिवस के बारे में जानकारी प्रदान की है। यहाँ पर दी गई जानकारी बच्चों से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं के तैयारी करने वाले छात्रों के लिए उपयोगी साबित होगी।

  मानवाधिकार दिवस पर 10 पंक्तियाँ : वे अधिकार जिनका प्रत्येक व्यक्ति को हक है, मानवाधिकार कहलाते हैं। मानवाधिकार दिवस की तारीख उसी दिन के रूप में चुनी गई थी जब संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) को अपनाया और घोषित किया था। इस दिन, मानव अधिकार के मुद्दों से निपटने के लिए कई बैठकें, सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियां आयोजित की जाती हैं।

कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठन जहां मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, वहां मानवाधिकार देने में सक्रिय रूप से काम करते हैं। हर साल मानवाधिकार दिवस की एक अलग थीम होती है। ये विषय मानव अधिकारों के संबंध में उस वर्ष प्राप्त करने के लिए संगठनों और व्यक्तियों के लिए एक लक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।

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  • 4 मानवाधिकार दिवस पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
  • 5 इन्हें भी पढ़ें:-

बच्चों के लिए मानवाधिकार दिवस पर 10 पंक्तियाँ

ये पंक्तियाँ कक्षा 1, 2, 3, 4 और 5 . के छात्रों के लिए सहायक है।

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार दिवस प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है।
  • संयुक्त राष्ट्र ने 1948 में मानवाधिकार दिवस के ही दिन वैश्विक उद्घोषणा के संबंध में अग्रणी और प्रमुख उपलब्धियां हासिल कीं।
  • जिस दिन संयुक्त राष्ट्र ने 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अपनाया, उस दिन को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • हर साल मानवाधिकार दिवस के अवसर पर कई कदम उठाए जाते हैं।
  • व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों को मानवाधिकारों को बनाए रखना और उनकी रक्षा करनी चाहिए।
  • मौलिक मानवाधिकारों के लिए खड़े होने की पवित्र प्रथा इस दुनिया को एक बेहतर रहने की जगह बनाएगी।
  • परिवर्तन लाने की दिशा में युवा सक्रिय रूप से संलग्न हैं; इसलिए मानवाधिकार दिवस में उनकी भागीदारी महत्वपूर्ण है।
  • कम उम्र से ही मानवाधिकारों के बारे में पढ़ाना बुद्धिमानी है ताकि दुनिया एक बेहतर कल देख सके।
  • सभी के लिए सतत विकास प्राप्त करने के लिए मानवाधिकार दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  • मानवाधिकारों ने केंद्रीय महत्व दिया है कि संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां ​​​​काम करने का प्रयास करती हैं।

स्कूली बच्चों के लिए मानवाधिकार दिवस पर 10 पंक्तियाँ

ये पंक्तियाँ कक्षा 6, 7 और 8 के छात्रों के लिए सहायक है।

  • हर साल 10 दिसंबर को विश्व स्तर पर मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
  • मानवाधिकार दिवस पर, एक अलग राष्ट्रीयता, लिंग, धर्म, जाति, रंग, नस्ल, भाषा आदि के लोगों को उनके मूल अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाता है।
  • मानवाधिकार दिवस पर मानवाधिकारों के पैरोकारों और रक्षकों को सशक्त और स्वीकार किया जाता है।
  • लोग बुनियादी मानवाधिकारों के हकदार हैं क्योंकि यह किसी भी रूप में गैर-भेदभावपूर्ण है, और किसी को भी उस अधिकार से बाहर नहीं किया गया है।
  • हालाँकि, दुविधा बनी हुई है, भले ही हर इंसान मौलिक मानवाधिकारों का हकदार हो, लेकिन हर कोई इसे समान रूप से अनुभव नहीं करता है।
  • मानवाधिकार दिवस पर, कई प्रतिष्ठित पुरस्कार समारोह आयोजित किए जाते हैं जो मानवीय कार्यों को मान्यता देते हैं।
  • मानवाधिकारों में सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक गरीबी है।
  • सतत विकास की दिशा में काम करने वाले लोगों के प्रयासों को तेज करने के लिए मानवाधिकार दिवस का अवलोकन और उत्सव आवश्यक है।
  • अल्पसंख्यक समूहों, महिलाओं, विकलांग लोगों, गरीबों और अन्य लोगों को समान अधिकारों का अनुभव करने की कमी है, जिन्हें इसके लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
  • मानवाधिकार दिवस पर शामिल होने वाले युवा एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने में वैश्विक दर्शकों की आवाज को बुलंद करेंगे।

उच्च कक्षा के छात्रों के लिए मानवाधिकार दिवस पर 10 पंक्तियाँ

ये पंक्तियाँ कक्षा 9, 10, 11, 12 और प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्रों के लिए सहायक है।

  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हर साल 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाता है और मनाता है।
  • मानवाधिकार दिवस 1948 के उस दिन को मनाने के लिए मनाया जाता है जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यूडीएचआर (मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा) की घोषणा की थी।
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाई गई 1948 की घोषणा से मानवाधिकारों का अंतर्राष्ट्रीय मानक अत्यधिक प्रभावित हुआ है।
  • हालाँकि, मानवाधिकार दिवस की औपचारिक रूप से स्थापना 4 दिसंबर 1950 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्यों और अन्य इच्छुक संगठनों द्वारा की गई थी।
  • संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अधिकार अधिकारी मानवाधिकार दिवस के वार्षिक अवलोकन के प्रयासों का समन्वय करते हैं जिन्हें मानवाधिकार के लिए उच्चायुक्त और उनके कार्यालय कहा जाता है।
  • मानवाधिकार दिवस की तारीख में बदलाव दक्षिण अफ्रीका में देखा जाता है, जहां इसे सालाना 21 मार्च को मनाया जाता है।
  • दक्षिण अफ्रीका का मानवाधिकार दिवस उसी दिन मनाया जाता है जब 1960 में शार्पविले नरसंहार हुआ था।
  • नेल्सन मंडेला को लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाने वाले पहले नेता होने का जश्न मनाने के लिए, दक्षिण अफ्रीका का मानवाधिकार दिवस एक राष्ट्रीय अवकाश है।
  • किरिबाती गणराज्य हर साल 11 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाता है।
  • मानवाधिकार दिवस पर, दुनिया भर में लोग उन कार्यक्रमों, बैठकों और अभियानों में भाग लेते हैं जो विभिन्न माध्यमों से लोगों को मानवाधिकारों के बारे में जागरूक करते हैं।

मानवाधिकार दिवस पर निबंध | Essay On Human Rights Day in Hindi | 10 Lines On Human Rights Day in Hindi

मानवाधिकार दिवस पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. संयुक्त राष्ट्र द्वारा यूडीएचआर को कब अपनाया गया था?

उत्तर: 10 दिसंबर 1948

प्रश्न 2. प्रत्येक व्यक्ति के बुनियादी मानवाधिकारों को क्या सुनिश्चित करता है?

उत्तर: कानून, नगरपालिका, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय।

प्रश्न 3. 1948 में मानवाधिकार आयोग में कितने सदस्य थे?

उत्तर: 18 सदस्य। वे अलग-अलग सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते थे।

प्रश्न 4. यूडीएचआर मसौदा समिति के अध्यक्ष का नाम बताइए।

उत्तर: एलेनोर रूजवेल्ट।

इन्हें भी पढ़ें:-

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Human Rights Essay in Hindi- मानव अधिकारों पर निबंध

In this article, we are providing information about Human Rights in Hindi- Human Rights Essay in Hindi Language. मानव अधिकारों पर निबंध / Essay on Manav Adhikar in Hindi.

मानवाधिकार वह अधिकार है जिसका हक प्रत्येक मनुष्य को है। इसकें अंतर्गत मनुष्य के जीवन जीने की स्वतंत्रता, समानता आदि आते हैं। यह हर व्यक्ति के मुलभूत अधिकार है और भारक के सविंधान के भाग 3 में मौलिक अधिकार के नाम से प्रतिष्ठित हैं और यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय है। मानव संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए है और यह परिवर्तन योग्य है। इसके अंतर्गत मनुष्य को प्रदुषण रहित वातावरण में रहने, भोजन का और काम करने का अधिकार हैं। हर व्यक्ति को अपने अधिकारों का प्रयोग सुचारू रूप से करना चाहिए और उनकी सुरक्षा करनी चाहिए।

मानव अधिकारों के तहत हमें बोलने, लिखने , शिक्षा ग्रहण करने, किसी भी विषय वस्तु की जानकारी प्राप्त करने, कार्य करने आदि का अधिकार मिला है। यह हमें समानता का अधिकार भी देता है जिसके तहत कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के साथ धर्म जाति और लिंग आदि के नाम पर भेदभाव नहीं कर सकता है। यह अधिकार हर स्थान पर और हर समय लागू होते हैं। यह हमें अपने विचार प्रकट करने की आजादी देते हैं और हम किसी भी सरकारी या निशुल्क चुनाव में भी भाग ले सकते हैं। यह हमें किसी भी धर्म को अपनाने की आजादी देते है और साथ ही हम अपनी संपत्ति स्वयं अपने पास रख सकते हैं। यह हमें दुसरे स्थान पर जाने और रहने का भी अधिकार प्रदान करते हैं। मानव अधिकारों के अंतर्गत हमारे सामाजिक से लेकर राजनैतिक अधिकार तक आते हैं। इसी के तहत कोई व्यक्ति अपनी राष्ट्रीयता भी बदल सकता है और कोई भी किसी का गुलाम नहीं है और किसी पर कोई भी अत्याचार नहीं किया जा सकता है।

मानव अधिकारों को सरकार द्वारा सुरक्षित किया गया है। इसके लिए कुछ संयुक्त राष्ट्र संगठन और गैर सरकारी आयोग भी बनाए गए है जो कि इन अधिकारों की सुरक्षा करते है और सुनिश्चित करते हैं कि हर व्यक्ति को उसका अधिकार प्राप्त हो। इतना सब कुछ होने के बावजुद भी आम लोगों और सरकार के द्वारा मानव अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है। आज भी लिंग जात और धर्म के अधिकार पर लोग भेदभाव करते हैं जिसे रोकना आवश्यक है अन्यथा देश विकास नहीं कर सकेगा। अपने अधिकारों का सही तरीके से प्रयोग करना और उनकी सुरक्षा करना हम सबका कर्तव्य है। हमें चाहिए कि जब भी हमारे अधिकारों का हनन हो हम उसके खिलाफ आवाज उठाए।

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मानवाधिकार संरक्षण की आवश्यकता पर निबंध | Human Rights Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Manav Adhikar in Hindi

By: savita mittal

मानवाधिकार संरक्षण की आवश्यकता पर निबंध | Human Rights Essay in Hindi

मानवाधिकार का इतिहास, मानवाधिकारों के सार्वभौम घोषणा-पत्र की कुछ विशेषताएँ, भारत में मानवाधिकार आयोग, वैश्विक एवं भारतीय परिदृश्य में मानवाधिकार की तस्वीर, मानवाधिकार पर निबंध | essay on human rights in hindi | manav adhikar par nibandh hindi mein video.

विकास के आरम्भिक दौर में मानव को अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं था। उस समय जो बलशाली होते थे ये जाने-अनजाने में दूसरों के अधिकारों का हनन करते थे। धीरे-धीरे शिक्षा और सभ्यता के विकास के साथ-साथ मानव का मन-मस्तिष्क भी परिष्कृत होता गया और अधिकार बोध के साथ-साथ उनमें अधिकारों को प्राप्त करने की इच्छा भी जाग्रत हुई। तब मानव ने अपनी बुद्धि एवं विवेक से ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धान्त गढ़ा। अब वह दूसरों की खुशी मैं खुश होना और दूसरों के दुःख में दुःखी होना सीख चुका है। दूसरों की पीड़ा से व्यथित होकर नजीर बनारसी कह उठते है कि-

“हर तबाही मुझे अपनी ही नजर आती है कोई रोता है उदासी मेरे घर छाती है।’

मानवाधिकार से अभिप्राय “मौलिक अधिकार एवं स्वतन्त्रता से है जिसके सभी मानव प्राणी हकदार हैं। अधिकारों एवं स्वतन्त्रताओं के उदाहरण के रूप में जिनकी गणना की जाती है, उनमें राजनैतिक एवं नागरिक अधिकार सम्मिलित हैं जैसे कि जीवन और स्वतन्त्र रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और कानून के समक्ष समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ-ही-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार, काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार”। भारतीय संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद-14 से लेकर 35 के द्वारा नागरिकों को विभिन्न प्रकार के अधिकार दिए गए हैं। एमनेस्टी इण्टरनेशनल मानवाधिकारों की रक्षा को विश्वभर में सुनिश्चित करने वाली एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसका मुख्यालय लन्दन में है।

वैसे तो मानवाधिकारों की अवधारणा का इतिहास बहुत पुराना है, पर इसकी वर्तमान अवधारणा द्वितीय विश्वयुद्ध के. विध्वंस के परिणामस्वरूप तब विकसित हुई, जब वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकार किया। मानवाधिकारों का उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रन्थों, जैसे-‘मनुस्मृति’, ‘हितोपदेश’, ”पंचतन्त्र’ तथा ‘प्राचीन यूनानी दर्शन’ आदि में भी मिलता है। यद्यपि 1215 ई. में इंग्लैण्ड में जारी किए गए मैग्नाकार्टा में नागरिकों के अधिकार का उल्लेख था, पर उन अधिकारों को मानवाधिकार की संज्ञा नहीं दी जा सकती थी।

1525 ई. में जर्मनी के किसानों द्वारा प्रशासन से मांगे गए अधिकारों की 12 धाराओं को यूरोप में मानवाधिकारों का प्रथम दस्तावेज कहा जा सकता है। 1789 ई. में फ्रांस की राज्य क्रान्ति के परिणामस्वरूप वहाँ की राष्ट्रीय सभा ने नागरिकों के अधिकारों की घोषणा की। फलस्वरूप विश्व में समानता, उदारता एवं बन्धुत्व के विचारों को बल मिला।

19वीं शताब्दी में ब्रिटेन एवं अमेरिका में दास प्रथा की समाप्ति के लिए कई कानून बने और 20वीं शताब्दी के आते-आते मानवाधिकारों को लेकर कई विश्वव्यापी सामाजिक परिवर्तन भी हुए, जिसके अन्तर्गत बाल श्रम का विरोध प्रारम्भ हुआ एवं विभिन्न देशों में महिलाओं को चुनाव में मतदान का अधिकार मिला। 1864 ई. में हुए जेनेवा समझौते से अन्तर्राष्ट्रीय मानवतावादी सिद्धान्तों को बल मिला एवं संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की मान्यता की बात की गई।

Human Rights Essay in Hindi

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10 दिसम्बर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की। इस प्रस्तावना में कहा गया है “चोक मानवाधिकारों के प्रति उपेक्षा और घृणा के फलस्वरूप हुए बर्बर कार्यों के कारण मनुष्य की आत्मा पर अत्याचार हुए। अतः कानून द्वारा नियम बनाकर मानवाधिकारों की रक्षा करना अनिवार्य है। इसके प्रथम अनुच्छेद में स्पष्ट उल्लेख है कि सभी मनुष्यों को गौरव और अधिकारों के मामले में जन्मजात स्वतन्त्रता और समान प्राप्त है। उन्हें बुद्धि और अन्तरात्मा की देन प्राप्त है और उन्हें परस्पर भाईचारे के भाव से व्यवहार करना चाहिए।”

इसके बाद अनुच्छेद-2 में कहा गया है कि “प्रत्येक व्यक्ति को इस घोषणा में सन्निहित स्वतन्त्रता और सभी 1 प्रभुसता अधिकारों को प्राप्त करने का हक है और इस मामले में जाति, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीति या अन्य विचार प्रणाली किसी देश या समाज विशेष में जन्म, सम्पत्ति या किसी प्रकार की अन्य मर्यादा आदि के कारण भेदभाव नहीं जाएगा। इसके अतिरिक्त, चाहे कोई देश या प्रदेश स्वतन्त्र हो, संरक्षित हो या स्वशासन रहित हो अथवा परिमित ! वाला हो, उस देश या प्रदेश की राजनीतिक, क्षेत्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति के आधार पर वहाँ के निवासियों के प्रति कई भेदभाव नहीं किया जाएगा।” अनुच्छेद 3 में वर्णित है कि “प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वाधीनता और वैयक्तिक सुरक्षा का अधिकार है।”

अनुच्छेद-4 के अनुसार, “किसी को भी गुलामी या दासता की हालत में नहीं रखा जाएगा, गुलामी प्रथा और गुलामों का व्यापार अपने सभी रूपों में निषिद्ध होगा।” अनुच्छेद-5 में कहा गया है कि “किसी को न तो शारीरिक यातना दी जाएगी और न ही किसी के प्रति निर्दय, अमानुषिक या अपमानजनक व्यवहार अपनाया जाएगा।” ऐसे ही कई आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा इसके कुल 30 अनुच्छेदों में की गई है।

मानवाधिकारों से सम्बन्धित यह घोषणा कोई कानून नहीं है। इसके कुछ अनुच्छेद वर्तमान तथा सामान्य रूप से मानी जाने वाली अवधारणाओं के प्रतिकूल है। फिर भी इसके कुछ अनुच्छेद या तो कानून के सामान्य नियम है या मानवता की सामान्य धारणाएँ हैं। इस घोषणा का अप्रत्यक्ष रूप से कानूनी प्रभाव है तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा एवं कुछ कानून के ज्ञाताओं से यह संयुक्त राष्ट्र का कानून है।

भारतीय संविधान और मानवाधिकार भारतीय संविधान ‘वी द पीपुल’ की अवधारणा पर आधारित है, जिसे पूरी दुनिया में एक नम्य एवं लचीले संविधान के रूप में देखा जाता है। भारतीय संविधान के लागू होने के पश्चात् सार्वभौम घोषणा-पत्र के अधिकांश अधिकारों को इसके दो भागों ‘मौलिक अधिकार’ और राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों’ में शामिल किया गया है, जो मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के लगभग सभी पहलुओं को अपने आप में समेटे हुए है। 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-12 से 35 तक में मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया है। इसमें समानता का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार, शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल हैं।

जबकि संविधान के अनुच्छेद-36 से 51 तक राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों को शामिल किया गया है। इसमें सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, काम प्राप्त करने का अधिकार, रोजगार चुनने की स्वतन्त्रता, बेरोजगारी के खिलाफ काम की सुरक्षा और कार्य के लिए सुविधाजनक परिस्थितियों, समान कार्य के लिए समान वेतन, मानवीय गरिमा का सम्मान, आराम और अवकाश का अधिकार, समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में निर्बाध हिस्सेदारी का अधिकार, लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना, समान न्याय और मुफ्त कानूनी सलाह की प्राप्ति और राज्य द्वारा पालन की जाने वाली नीति के सिद्धान्तो को शामिल किया गया है।

अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भारत सरकार ने संविधान के अंगीकृत होने के बाद से अब तक कुल मिलाकर 104 संशोधन किए हैं। इसी शृंखला में मानवाधिकार अधिनियम, 1993 भी आता है।

भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन 12 अक्टूबर, 1993 को किया गया। यह आयोग किसी पीड़ित व्यक्ति या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मानवाधिकारों के अतिक्रमण या किसी लोक सेवक द्वारा इस प्रकार के • उल्लंघन की अनदेखी करने के सम्बन्ध में प्रस्तुत याचिका की जाँच करता है। यह न्यायालय में मानवाधिकार से सम्बन्धित मामलों में हस्तक्षेप, कैदियों की दशा का अध्ययन और उचित संस्तुति, मानवाधिकार से जुड़ी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों या अन्य प्रपत्रों का अध्ययन तथा प्रकाशन, संचार माध्यमों, सेमिनार या अन्य साधनों द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों में मानवाधिकारों की शिक्षा का प्रसार करता है।

यह आयोग अभियोग या जाँच के लिए आवश्यक सूचनाएँ व दस्तावेज प्राप्त करने के लिए किसी संस्थान का दौरा कह सकता है या किसी संस्थान में प्रवेश कर सकता है। किसी शिकायत की जाँच पूरी होने के बाद आयोग उचित कार्रवाई या उसकी संस्तुति कर सकता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अतिरिक्त भारत के कई प्रान्तों में मानवाधिकारों से सम्बन्धित मामलों की सुनवाई के लिए राज्य मानवाधिकार आयोगों का भी गठन किया गया है।

पूरे विश्व में मानवाधिकार हेतु जागृति फैलाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1950 में 10 दिसम्बर को ‘मानवाधिकार दिवस’ घोषित किया। इसका उद्देश्य दुनिया भर के लोगों का ध्यान मानवाधिकार की ओर आकर्षित करना था, ताकि प्रत्येक देश और समुदाय में सभी को एक समान दृष्टि से देखा जाए। 20 दिसम्बर, 1993 को संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकार मामलों की देखभाल के लिए एक आयुक्त की नियुक्ति की। इसके अतिरिक्त मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अनेक बहुत से तन्त्र विकसित हो चुके हैं, जो बड़ी कुशलता के साथ अपना कार्य कर रहे हैं, किन्तु आज भी मानवाधिकार की तस्वीर कुछ और है।

मानवाधिकार के सन्दर्भ में तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून’ की एक पंक्ति स्मरणीय है कि हाल ही में हमने नरसंहार और अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों तथा मानवीय कानूनों के अनेक अन्य हृदय विदारक तथा व्यापक उल्लंघन देखे हैं।” बान की-मून का यह वक्तव्य खुद मानब अधिकार की सच्चाई को प्रकट करता है।

दुनिया के आज बहुत से देशों में हो रहे युद्धों पर विचार करें तो युद्ध का संकट मानब अधिकारों के लिए और त्रासद रूप में सामने आया है। अमेरिका में 9/11 के आतंकी हमले ने पूरे पश्चिमी जगत को हिला दिया और अब आईएसआईएस ने पूरी दुनिया में नए तरीके से आतंकवाद के रास्ते मानव अधिकारों के कुचलने की आहट दी है। इसके साथ-ही-साथ भूमण्डलीकरण के इस दौर में मानवाधिकारों की रक्षा में खाई पैदा हो रही है।

इस खाई को तभी भरा जा सकता है जब अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को नियमों के दायरे में लाया जा सके, सरकार जो विदेश में मानवाधिकारों के हनन के लिए जिम्मेदार हैं, विश्व भर में सक्रिय निजी तत्त्व और अन्तर्राष्ट्रीय संगठन सब पर नजर रखनी होगी। अब तक ऐसा सम्भव नहीं है, इसलिए मानवाधिकार हनन के शिकार लोग अपने अधिकारों के लिए अदालतों में नहीं जा सकते और कोई मुआवजा भी नहीं पा सकते।

विश्व के हर हिस्से में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, राजनीतिज्ञों और समाजशास्त्रियों ने इस बीच निजी तत्त्वों द्वारा भी मानवाधिकारों के पालन और इसकी रक्षा की मांग करनी शुरू कर दी है। अनेक एन जी ओ अभियान चलाकर मानवाधिकारों के हनन को बड़े पैमाने पर जनमत के माध्यम से सामने ला रहे हैं।

भारत देश के विशाल आकार और विविधता, विकासशील तथा सम्प्रभुता सम्पन्न धर्म-निरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणतन्त्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा तथा पूर्व में औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरूप भारत में मानवाधिकार की परिस्थिति एक प्रकार से जटिल हो गई है। 

भारतीय संविधान के अन्तर्गत धर्म की स्वतन्त्रता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। इन्हीं स्वतन्त्रताओं का लाभ उठाते हुए आए दिन साम्प्रदायिक दंगे होते रहते हैं। इससे किसी एक धर्म के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होता वरन् उन सभी लोगों के मानवाधिकार प्रभावित होते हैं, जो इस घटना के शिकार होते हैं तथा जिनका इस घटना से कोई सम्बन्ध नहीं होता; जैसे मासूम बच्चे, गरीब, पुरुष-महिलाएँ, वृद्धजन इत्यादि।

भारत के कुछ राज्यों में अफस्पा कानून हटाए जाने का प्रमुख कारण सैन्य बलों को दिए गए विशेषाधिकारों का दुरूपयोग था। उदाहरणस्वरूप, बिना वारण्ट किसी के घर की तलाशी लेना, किसी असंदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी बारट के गिरफ्तार करना, यदि कोई व्यक्ति फानून का उल्लंघन करता है, अशान्ति फैलाता है, तो उसे प्रताड़ित करना, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करना इत्यादि खबरें अकसर चर्चा का विषय रहती थी। अतः यहाँ यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि स्वतन्त्रता के इतने वर्षों बाद भी भारत में मानवाधिकार पल-पल किसी-न-किसी तरह की प्रताड़ना का दंश झेल रहा है। 

मानवाधिकारों के संरक्षण की जरूरत और उसके क्रियान्वयन के उपाय उपर्युक्त स्थितियों के सन्दर्भ में, आज मानवाधिकार एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसको समग्रता में अर्थात् स्थानीय राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सभी स्तरों पर देखना है। मानवाधिकारों के संरक्षण की जरूरत न केवल आज है वरन् भविष्य में भी इसकी जरूरत पड़ती रहेगी, क्योंकि यह मनुष्य की गरिमा, सुरक्षा और जीवन की बुनियादी माँग है। पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून के शब्दों में-“अगर कहें तो मानवाधिकारों का संबर्द्धन संयुक्त राष्ट्र का एक मूल उद्देश्य है और वह अपनी स्थापना के समय से ही इस दिशा में अग्रसर है।”

आज आवश्यकता इस बात की है कि राज्य अपनी जिम्मेदारी को समझें और सम्पूर्ण मानव समाज अपने अधिकारी के साथ दूसरे के अधिकारों की रक्षा को अपना कर्तव्य समझे, क्योंकि मानवाधिकारों का संरक्षण एवं संवर्द्धन किसी एक की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है। एक बार तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने ‘मानवाधिकार दिवस’ पर अपने सन्देश में कहा था कि हर वर्ष 10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।

वर्ष 2013 के नारे ‘मानवाधिकार 365’ में यह सोच शामिल की गई है कि प्रत्येक दिन मानवाधिकार दिवस है। मानव अधिकारों के संरक्षण में युवाओं की भूमिका को महत्त्वपूर्ण बताया गया है। अतः मानवाधिकार दिवस, 2019 का विषय था- “मानव अधिकारों के लिए युवा स्थायी।” यह सार्वभौम घोषणा इस बुनियादी सोच का प्रतीक है कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक जगह सदैव सभी मानवाधिकारों को हासिल करने का अधिकार है, मानव अधिकार हममें से हर एक के हैं और हमें ऐसे विश्व के समुदाय में बाँधते हैं, जिसके आदर्श और मूल्य एक समान हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा, “मैं देश की सरकारों से आग्रह करता हूँ कि वे वर्ष में हर दिन मानवाधिकारों को संरक्षण देने का अपना दायित्व निभाएँ।” यह तभी सम्भव है जब सभी संकल्पनाएँ “सर्वे भवन्तु सुखिनः” में विश्वास करें और उसे आचरण में शामिल करें। क्रियान्वयन सम्बन्धी उपाय राज्य की अपनी सम्प्रभुता में निहित हैं। आज जरूरत इस बात की हैं कि राज्य के इरादे पक्के हो और सभी के अधिकारों की सुरक्षा व प्रतिष्ठा के लिए उपयुक्त व्यवस्था करें।

जनतन्त्र की अवधारणा मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने की बढ़ती हुई आवश्यकताओं से जुड़ी है। इसके बिना न तो व्यक्तित्व का विकास सम्भव है और न ही सुखी जीवन व्यतीत कर पाना। मानवाधिकार के अभाव में जनतन्त्र की कल्पना निरर्थक है। अन्तर्राष्ट्रीय संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की 175 देशों में मानवाधिकार की स्थिति की जाँच पड़ताल वाली एक रिपोर्ट में भारत के बारे में कहा गया है कि यहाँ महिलाओं, बच्चों एवं आदिवासियों के मानवाधिकार से जुड़ी समस्याएं ज्यादा है।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसका मूल कारण सभी प्रान्तों में मानवाधिकार आयोग का न होना है। अतः भारत में मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसके सभी प्रान्तों में मानवाधिकार आयोग का गठन अनिवार्य है। मानव परिवारों के सभी सदस्यों के जन्मजात गौरव, सम्मान तथा अविच्छिन्न अधिकार की स्वीकृति ही विश्व शान्ति, न्याय और स्वतन्त्रता की बुनियाद है। अतः सम्पूर्ण मानवता की रक्षा के लिए विश्व समुदाय को खुलकर मानवाधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। हमें कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ की इस पंक्ति को सर्वदा याद रखना चाहिए “जो जीवन में दूसरों के प्रति न अपने अधिकार मानता है और न कर्तव्य, वह पशु समान है।”

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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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विश्व मानवाधिकार दिवस पर निबंध | Human Rights Day Essay in Hindi (कक्षा-3 से 10 के लिए)

Human Rights Day essay

Human Rights Day Essay in Hindi: मानव अधिकार दिवस प्रत्येक साल 10 दिसंबर को मनाया जाता है। मानवाधिकार दिवस के द्वारा दुनिया में लोगों को अधिकार के प्रति जागरूक किया जाता है। ताकि लोग अपने अधिकार के बारे में जान सके मानवाधिकार दिवस की शुरुआत 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के द्वारा किया गया था तभी से दुनिया में 10 दिसंबर ह्यूमन राइट्स के रूप में मनाया जाता है। Human Rights मौलिक प्राकृतिक अधिकार हैं जिनसे जाति, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि के आधार पर मनुष्य को वंचित या उत्पीड़ित नहीं किया जा सकता है |

यही वजह है कि 10 सितंबर पूरी दुनिया में वुमन राइट्स डे के रूप में मनाया जाता है | ऐसे में अगर आप एक छात्र हैं और ह्यूमन राइट्स के ऊपर निबंध लिखना चाहते हैं लेकिन आपको समझ में नहीं आ रहा है कि आप किस प्रकार मानव अधिकार दिवस के ऊपर एक बेहतरीन निबंध लिख सकते हैं तो आज के आर्टिकल में हम आपको Human Rights Day Essay in Hindi कैसे लिखेंगे उससे संबंधित जानकारी आपसे हम आसान भाषा में शेयर करेंगे आप हमारे आर्टिकल पर बनी रहिएगा चलिए जानते हैं:-

Human Rights Day Essay 2023- Overview

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Human Rights Day Essay in Hindi

परिचय : मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर को पूरे विश्व भर में हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है इस दिन हर एक देश के प्रतिनिधि और मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले जितने भी संगठन है I उन्हें आमंत्रित किया जाता है I ताकि लोगों के द्वारा जानकारी हासिल की जा सके कि मानवाधिकार के क्षेत्र में और क्या नया हमें करना चाहिए ताकि मानव के अधिकार को और भी मजबूत और सशक्त किया जा सके इस दिन विभिन्न प्रकार के लोग एक जगह सम्मिलित होकर इस महा उत्सव को काफी उत्साह के साथ मनाते हैं I

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मानवाधिकार दिवस क्यों मनाया जाता है?

मानव अधिकार दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों की रक्षा करना और साथ में बढ़ावा देना इसके अलावा मानव के जितने भी बुनियादी अधिकार है उनकी रक्षा करना मानव अधिकार के अंतर्गत आता है यही वजह है कि 10 दिसंबर को पूरे विश्व में मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है I इस दिन प्रत्येक मानव को जागरूक करने का भी काम किया जाता है ताकि हर एक इंसान जान सके कि उसके अधिकार क्या-क्या हैं ताकि कोई भी व्यक्ति उनके अधिकारों का हनन ना कर सके I

विश्व मानवाधिकार दिवस पर निबंध हिंदी में

पूरी दुनिया में मानव के अधिकारों का संरक्षण और उनकी रक्षा अच्छी तरह से हो सके इस बात को ध्यान रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1948 में विश्व मानव अधिकार आयोग का गठन किया जिसके बाद से ही 10 दिसंबर को पूरे विश्व भर में विश्व मानव अधिकार दिवस मनाने की आधिकारिक घोषणा की गई तब से लेकर अब तक यह परंपरा कायम है और आगे भी कायम रहेगी I

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (भारत)

भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन भारत में 12 अक्टूबर 1993 में किया गया था इसका प्रमुख काम भारत में मानव अधिकारों की रक्षा करना है और अगर कोई व्यक्ति मानव अधिकारों का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसके खिलाफ में रिपोर्ट लिखने का काम भी करता है ताकि उसके ऊपर कार्रवाई की जा सके भारत का मानव अधिकार आयोग भी मानव अधिकार दिवस के दिन मानव अधिकार संगठन में सम्मिलित होता है ताकि भारत वहां पर अपने देश में मानवाधिकार के क्षेत्र में काम कैसा हो रहा है उसकी पूरी रिपोर्ट और रूपरेखा वहां पर प्रस्तुत कर सके  I भारत का मानव अधिकार आयोग का हेड क्वार्टर नई दिल्ली में है और राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस के दिन विभिन्न प्रकार के नौकरशाह और बड़े-बड़े मंत्री गणित में सम्मिलित होकर अपनी विचारधारा रखते हैं ताकि भारत में किसी भी व्यक्ति का मानवाधिकार का हनन ना हो सके

मानवाधिकार क्या हैं? (What is Human Rights)

मानव अधिकार वे मूल अधिकार हैं, जो इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति के पास हैं। मानवाधिकार मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता हैं। इसके अंतर्गत व्यक्ति को अपने मुताबिक जीने का हक है इसके अलावा व्यक्ति का धर्म भाषा और उसकी जाति का हनन कोई भी दूसरा व्यक्ति नहीं कर सकता है क्योंकि उसे इस प्रकार के अधिकार जन्म से ही मिले हैं इन सभी चीजों को मानवाधिकार के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है I आसान शब्दों में समझें तो मानवाधिकार मनुष्य को जोड़ने वाला वह अधिकार है जिसके अंतर्गत प्रत्येक मनुष्य को सामान्य जीवन जीने का हक है बिना किसी भेदभाव के I

मानवाधिकार दिवस पर निबंध (500 शब्दों में)

मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा घोषित किया गया तब से अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है I मानवाधिकार अंतर्गत पुरुष महिला सभी को एक समान अधिकार है ना कोई छोटा ना कोई बड़ा I मानवाधिकार का प्रमुख उद्देश्य विश्व में व्याप्त यौन उत्पीड़न बलात्कार महिलाओं जातिभेद, बाल शोषण, बाल मजदूरी, भेदभाव, लूटपाट जैसी समस्याओं को समाप्त करना है I

मानवाधिकार के प्रकार (Type Of Human Rights Day)

मानवाधिकार प्रत्येक देश अपने नागरिक को संविधान के मुताबिक देता है मानवाधिकार निम्नलिखित प्रकार के होते हैं जिसका विवरण हम आपको नीचे बिंदु अनुसार देंगे आइए जानते हैं:-

  • विश्वास एवं धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
  • भेदभाव से आजादी का अधिकार
  • सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
  • अभिव्यक्ति की आजादी
  • कानूनी सहायता लेने का अधिकार
  • जीवन और आजाद रहने का अधिकार
  • संस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार
  • शिक्षा का अधिकार
  • भोजन का अधिकार
  • काम करने का अधिकार
  • बराबरी एवं सम्मान का अधिकार
  • स्त्री-पुरुष को समान अधिकार है
  • शोषण से रक्षा का अधिकार
  • समानता का अधिकार

मानवाधिकार दिवस का महत्त्व (Importance of Human Rights Day)

मानव अधिकार को सम्मान देने के उद्देश्य मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है जैसा कि आप जानते हैं कि ईश्वर ने कभी भी छोटे बड़े का भेदभाव नहीं किया लेकिन हम मनुष्य छोटे बड़े का भेदभाव करते हैं और साथ में दूसरे मनुष्य से नफरत करते हैं इन सब कुरीतियों को दूर करने के लिए मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है ताकि प्रत्येक मनुष्य को जागरुक किया जा सके इस पृथ्वी पर व्याप्त सभी मनुष्य एक समान है ना कोई छोटा ना कोई बड़ा और एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य का सम्मान करना चाहिए ना कि उनके अधिकारों का हनन यही वजह है कि मानव अधिकार दिवस के द्वारा प्रत्येक नागरिक को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा रहा है ताकि कोई भी व्यक्ति उनके अधिकारों हनन ना कर सके इसके अलावा प्रत्येक मनुष्य अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म का पालन करने की अनुमति देती है। इसके अलावा इसका मतलब यह भी है कि कोई भी स्वतंत्र रूप से सोच सकता है।

लेकिन दिन प्रतिदिन दुनिया भर से मानव अधिकारों के उल्लंघन की कई घटनाएं हमारे सामने आती है जहां पर गरीब लोगों के अधिकारों का हनन अमीर लोगों के द्वारा काफी अधिक मात्रा में किया जाता है यही वजह है कि गरीब लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है ताकि गरीबों को उनके अधिकार क्या है उसके बारे में जागरूक किया जा सके |

Human Right Theme 2023 in Hindi

2023 मानवाधिकार दिवस की थीम (Human Rights Day Theme 2023 in Hindi) “ सभी के लिए स्वतंत्रता, समानता और न्याय ” (Freedom, Equality and Justice for All) है।

मानवाधिकार दिवस का उत्सव (Celebration of Human Rights Day)

मानवाधिकार दिवस पुरे विश्व में जोरों शोरों से मनाया जाता है।  करोड़ों की संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके अधिकारों का हनन रोज होता है यही वजह है कि प्रत्येक साल मानवाधिकार दिवस मनाकर उन लोगों को जागरुक करने का काम किया जाता है मानव अधिकार दिवस के दिन सरकारी संस्थानों स्कूल और कॉलेजों में विभिन्न प्रकार के प्रतियोगिता जैसे चित्र  निबंध नाटक लेखन भाषण आयोजित किए जाते हैं ताकि छात्र उसमें सम्मिलित होकर मानवाधिकार दिवस के ऊपर अपनी विचारधारा को रख सके और साथ में दूसरे लोगों को भी जागरूक करने का काम करते हैं I जो छात्र मानवाधिकार दिवस के दिन आयोजित प्रतियोगिता में अच्छा प्रदर्शन करते हैं उन्हें पुरस्कृत भी किया जाता है I

FAQ’s Human Rights Day Essay in Hindi

Q. मानवाधिकार दिवस कब मनाया जाता है.

Ans. 10 दिसंबर को पूरे विश्व में मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है I

Q.10 दिसंबर को क्या मनाया जाता है?

Ans विश्व मानवाधिकार दिवस 10 दिसंबर को मनाया जाता है I

Q. भारत में मानवाधिकार आयोग का गठन कब हुआ?

Ans. भारत में मानवाधिकार आयोग का गठन 10 अक्टूबर 1993 में हुआ था I

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मानवाधिकार पर निबंध

Essay on Human Rights in Hindi

मानवाधिकार पर निबंध : Essay on Human Rights in Hindi :- आज के इस लेख में हमनें ‘मानवाधिकार पर निबंध’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है। यदि आप मानवाधिकार पर निबंध से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

मानवाधिकार पर निबंध : Essay on Human Rights in Hindi

प्रस्तावना :-

मानवाधिकार वह अधिकार होते है, जो मनुष्य को पैदा होते ही प्राप्त हो जाते है। यें सार्वभौमिक अधिकार होते है, जो कि प्रत्येक मनुष्य को प्राप्त होते है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, लिंग का ही क्यों न हो।

इसमें मनुष्य को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए है, जिससे वह अपना जीवन स्वतंत्रतापूर्वक रूप से जी सके। यें अधिकार उन्हें कानून द्वारा दिए गए है।

यें मनुष्य के लिए बुनियादी अधिकार होते है, जो उसे बिना किसी भेदभाव के दिए जाते है। यें प्रत्येक मनुष्य के अधिकार है, जिसे संविधान के द्वारा प्रत्येक मनुष्य को प्रदान किये गए है।

मौलिक अधिकार :-

मौलिक अधिकार मानवाधिकार होते है, जो प्रत्येक मनुष्य को दिए जाते है। सभी मानवाधिकार निम्नलिखित है:-

  • समानता का अधिकार :- इस देश में प्रत्येक व्यक्ति को समानता अर्थात समान व्यवहार का अधिकार प्राप्त है। अर्थात चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो, उसके साथ समान व्यवहार ही किया जाएगा। उसे भी सामाजिक व कानूनी रूप से समानता दी जाएगी। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत भारत के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार दिया गया है, जिसका प्रयोग वह कभी भी कर सकते है।
  • स्वतंत्रता का अधिकार :- प्रत्येक मनुष्य को स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है अर्थात वह अपना जीवन स्वतंत्रतापूर्वक रूप से जी सकता है। स्वतंत्रता के अधिकार में व्यक्ति को बोलने व अपने अनुसार कार्य करने का अधिकार है। वह व्यक्ति देश में किसी भी जगह पर जा सकता है और वहाँ जाकर निवास भी कर सकता है। वह किसी भी प्रकार का संघ बना सकता है, लेकिन वह संघ देश-विरोधी नहीं होना चाहिए। भारत के संविधान में अनुच्छेद 19 से 22 तक के मौलिक अधिकारों में प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। इस अधिकार से व्यक्ति बिना किसी डर के किसी के समक्ष भी अपनी बात रख सकता है, भारतीय संविधान उस व्यक्ति को इस बात का अधिकार प्रदान करता है।
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार :- व्यक्ति को शोषण के ख़िलाफ़ अधिकार दिया गया है अर्थात यदि व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का शोषण किया जाता है, तो व्यक्ति को इसके खिलाफ अपनी आवाज उठा सकता है। बच्चों से कारखाने या खनन के कार्य करवाना, जिनमें किसी भी प्रकार का जोखिम हो, तो उसे अपराध माना जाएगा। व्यक्ति अपने साथ होने वाले किसी भी शोषण के खिलाफ न्याय की मांग कर सकता है, भारतीय संविधान उसे यह अधिकार देता है। भारतीय संविधान 23 व 24 के मौलिक अधिकारों में भारत के नागरिकों को शोषण के खिलाफ अधिकार दिया गया है, ताकि वह इसके खिलाफ आवाज उठा सके।
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार :- इसके अंतर्गत भारत के नागरिक किसी भी धर्म को मानकर उसका प्रचार-प्रसार कर सकते है। वह अपने धर्म के संस्थानों की स्थापना भी कर सकते है। वह अपने धर्म के अनुसार अपना जीवन जी सकते है और उसे अपने घार्मिक कार्यों को करने से कोई नहीं रोक सकता है। लेकिन, शिक्षण संस्थानों में धार्मिक शिक्षा देना अपराध है। विद्यार्थियों को किसी भी धर्म को चुननें के लिए आप बाध्य नहीं कर सकते है।
  • शिक्षा का अधिकार :- प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। व्यक्ति किसी भी जाति, धर्म, भाषा, वेशभूषा व संस्कृति का क्यों न हो, उसे शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। उसे कोई भी सरकार शैक्षणिक संस्था जाने से रोक नहीं सकती है। किसी भी व्यक्ति को यदि शिक्षा प्राप्त करने से रोका जाता है, तो इसे अपराध माना जाएगा। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 29 व 30 के मौलिक अधिकारों में भारत के प्रत्येक व्यक्ति को संस्कृति व शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
  • संवैधानिक अधिकार :- इसके अंतर्गत मौलिक अधिकारों को परिवर्तित करने के लिए भारत के नागरिक उच्च न्यायालय में आवेदन कर सकते है। यह अधिकार सभी मौलिक अधिकारों में सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। इसे संविधान की आत्मा व ह्रदय भी कहा जाता है। इसे भारत के संविधान 32 के अंतर्गत रखा गया है। जिसके अंतर्गत नागरिक कभी भी अधिकारों को परिवर्तित कर सकता है।

मानवाधिकार का महत्व :-

यें मानवाधिकार मनुष्य के लिए काफी महत्व रखते है। यें अधिकार ही आज हमें इस देश में स्वतंत्रता प्रदान करते है, जिन्हें हमनें भारतीय संविधान से प्राप्त किया है। इन अधिकारों की बदौलत हम आज बिना डर के अपनी बात रख सकते है।

आज ये अधिकार ही है, जिनसे हम किसी भी शोषण के खिलाफ आवाज उठा सकते है और न्यायालय में जाकर न्याय मांग सकते है। इस देश में प्रत्येक व्यक्ति धार्मिक रूप से स्वतंत्र है और अपने अनुसार किसी भी धर्म का पालन कर सकता है और अपने अनुसार जीवन जी सकता है।

यें अधिकार ही है, जो हमें आज अपनी इच्छानुसार किसी भी क्षेत्र में निवास करने का अधिकार देता है। आज हम सभी बिना भेदभाव के शिक्षा प्राप्त कर सकते है। यें अधिकार ही हमें एक लोकतान्त्रिक देश बनाते है, यदि यें अधिकार मनुष्य को प्राप्त न हो, तो वह एक कैदी की तरह ही है।

मानव अधिकार की शुरुआत :-

भारत में मानववाधिकार की शुरुआत 28 सितम्बर 1993 में की गई थी और 12 अक्टूबर 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया था। जिससे सभी लोग अपना जीवन स्वतंत्रतापूर्वक रूप से जी सके।

मानवाधिकारों का गठन मानव को उनके अधिकार देने के लिए किया गया था, ताकि सभी लोग स्वतंत्रतापूर्वक रूप से अपना जीवन जी सके और किसी भी शोषण का शिकार न हो। मनुष्य ने हमेशा ही अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी है।

10 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। यें अधिकार हमारे जीवन का मूल है, जिनसे हम स्वयं को आज इतना सुरक्षित महसूस करते है। पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकारों की घोषणा 10 दिसम्बर 1950 को की थी।

मानवाधिकार दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना है, ताकि लोग अपने अधिकारों को जान सके और उनका प्रयोग कर सके।

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।

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Human rights hindi essay मानव अधिकारों पर निबंध हिंदी में.

Read Human Rights Hindi Essay हिंदी में मानव अधिकारों पर निबंध। Check out Human Rights Hindi Essay (Essay on Manav Adhikar in Hindi). What is human rights? Today we are going to explain how to write an essay on human rights in Hindi. Now students can take a useful example to write human rights Hindi essay in a better way. Human right Hindi essay is asked in most exams nowadays starting from 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12.

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Human Rights Hindi Essay

मानव अधिकारों पर निबंध.

जन्म से ही इंसान प्रतिष्ठा और अधिकारों के समान जन्म लेते हैं। सही मायनो में मानवाधिकार वे अधिकार हैं जोकि इस पृथ्वी पर हर व्यक्ति केवल एक इंसान होने के कारण ही प्राप्त हुए हैं और इन अधिकारों को कानून द्वारा संरक्षित भी किया गया है। अमेरिका में यह घोषित किया गया है कि “सभी पुरुषों समान रूप से बनाए गए हैं, उनके द्वारा कुछ असहनीय अधिकारों के साथ निर्मित किए गए हैं …।” इसी प्रकार, भारतीय संविधान ने जाति, पंथ, धर्म, रंग, लिंग या राष्ट्रीयता के बावजूद सभी नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित किया है और इन्हें सुनिश्चित किया है। ये मूलभूत अधिकार, जिसे आमतौर पर मानवाधिकार के रूप में जाना जाता है, को दुनिया के मूल अधिकारों के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसके साथ हर व्यक्ति का जन्म होता है।

कानून द्वारा संरक्षित ये अधिकार हर जगह और हर समय लागू होते हैं। मानवाधिकारों की मान्यता में “मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा 10 दिसंबर 1948 को हुई थी। यह घोषणा मानव अधिकारों का मूल साधन है। इस घोषणा के बावजूद कि इस घोषणा में कोई कानूनी बाध्यकारी और प्राधिकरण नहीं है, यह मानव अधिकारों पर सभी कानूनों का मूलभूत रूप है। मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कानून तैयार करने की आवश्यकता अब पूरी दुनिया में महसूस की जा रही है। सामाजिक विचारकों के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के समापन के बाद मानव अधिकार के मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं।

मानव अधिकारों का वर्गीकरण

  • निजी अधिकार (जीवन के अधिकार, व्यक्तिगत सम्मान, स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार)
  • राजनीतिक अधिकार (भाषण और मीडिया की स्वतंत्रता, सूचना अधिकार, संघ के अधिकार, सार्वजनिक आयोजनों का अधिकार, सरकार में शामिल होने का अधिकार, सरकार से अपील करने का अधिकार, निजी संपत्ति के अधिकार, श्रमिक स्वतंत्रता, उद्यमी गतिविधि का अधिकार, स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल के अधिकार, आवास के अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, शिक्षा का अधिकार)
  • आर्थिक मानवाधिकार (निजी संपत्ति का अधिकार, वारिस का अधिकार)
  • सामाजिक मानवाधिकार (सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, आवास का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार)
  • सांस्कृतिक मानवाधिकार (साहित्य, कलात्मक, वैज्ञानिक, तकनीकी इत्यादि: मानव गतिविधि के सभी क्षेत्रों में रचनात्मकता की स्वतंत्रता के अधिकार, शिक्षा का अधिकार, सांस्कृतिक मूल्यों तक पहुंच, समाज के सांस्कृतिक जीवन में मुफ्त भागीदारी, वैज्ञानिक प्रगति के लाभों का आनंद लेने का अधिकार, साथ ही साथ शिक्षण की स्वतंत्रता। एक रचनात्मक गतिविधि उत्पाद के रूप में बौद्धिक संपदा कानून द्वारा संरक्षित है।)

हर व्यक्ति को अपने मूल मानवाधिकारों का आनंद लेने का मौलिक हक है। इन अधिकारों में से कुछ का सरकार द्वारा दुरूपयोग किया जाता है। इसी कारन सरकार कुछ गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर इन मानवाधिकारों के दुरुपयोगों पर नजर रखने के लिए उपाय तलाश रही है।

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मानवाधिकार दिवस पर निबंध

Photo of Sachin Sajwan

Essay on Human Rights Day in Hindi : प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है. संपूर्ण विश्व में 10 दिसंबर का दिन मानव अधिकारों को बढ़ावा देने और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित है

क्या आप मानवाधिकार दिवस पर निबंध लिखना चाहते हैं तो इस पोस्ट में आपको छोटे और बडे दोनों निबंध बताए गए हैं. विद्यार्थियों के लिए यह पोस्ट काफी उपयोगी है. तो आइए पढ़ते हैं

मानवाधिकार दिवस पर निबंध 400 शब्दों में

मानवाधिकार दिवस पर निबंध

विश्व मानवाधिकार दिवस हर वर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर 1948 को सार्वभौमिक मानव अधिकार घोषणा पत्र को आधिकारिक मान्यता दी गई

जिसमें भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को खुद विशेष अधिकार दिए गए. भारत सहित तमाम देश 10 दिसंबर को अपना राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस मनाते हैं

मानवाधिकार दिवस मनाने का उद्देश्य

इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति के मानव अधिकारों की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना है. एक बेहतर कल के लिए मानवाधिकारों को जानना अत्यंत आवश्यक है. मानवाधिकार दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिसका उद्देश्य मनुष्य का सतत विकास है

मानवाधिकार दिवस मनाने का महत्व

मानव अधिकार वे विशेष अधिकार है जो हर व्यक्ति को उसके प्रतिदिन के सामान्य जीवन के हिस्से के रूप में प्रदान किये जाते है. इन्हें उन मौलिक अधिकारों के रूप में समझा जा सकता है जिसका प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण रूप से हकदार है

मानव अधिकार महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि यह अधिकार सभी मनुष्यों पर समान रूप से लागू होते हैं. किसी के साथ भी संस्कृति, धर्म, जाति, रंग या अन्य किसी भी चीज के आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है. मानवाधिकार दिवस अधिक से अधिक लोगों को अपने विशेषाधिकारों के बारे में जागरूक बनाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है

अंततः हम कह सकते हैं कि मानवाधिकार दिवस एक नैतिक सिद्धांत या प्राकृतिक कानून है जो इस बात पर जोर देता है कि सभी मनुष्यों का मौलिक अधिकारों पर समान रूप से हक हो

मनुष्य के रूप में हमें एक-दूसरे के अधिकारों की रक्षा जरूर करनी चाहिए. एक विकसित समाज के लिए हमें अपने मानव अधिकारों का सम्मान करना अत्यंत आवश्यक है तभी राष्ट्र विकास के पथ पर अग्रसर हो सकता है

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मानवाधिकार दिवस पर निबंध 800 शब्दों में

Essay on Human Rights Day in Hindi

मानव के रूप में मनुष्य के क्या अधिकार हों और किस सीमा तक किसी रूप में उनकी पूर्ति शासन की ओर से हो इस सम्बन्ध में मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही विवाद चला आ रहा है

सामान्यत: मानव के मौलिक अधिकारों में जीवन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, जीविका का अधिकार, वैचारिक स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतंत्र रूप से धार्मिक विश्वास का अधिकार आदि पर चर्चा की जाती है. मानव अधिकार एक विशिष्ट अधिकार है

मानवाधिकार दिवस का इतिहास

मानव अधिकार के प्रसंग में सर्वाधिक प्रसिद्ध अभिलेखों के रूप में हम सन् 1215 ई० के इंग्लैंड के मैग्नाकार्टा अभिलेख, सन् 1628 ई० के अधिकार याचिका पत्र, सन् 1679 ई० के बंदी प्रत्यक्षीकरण अधिनियम, सन् 1689 ई० के अधिकार, सन् 1789 ई० में फ्रांस की प्रसिद्ध मानव अधिकार घोषणा तथा सन् 1779 ई० की अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा को ले सकते हैं

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकार की बात सन् 1945 ई० में संयुक्त राष्ट्र में उठी सन् 1946 ई० में “मानव अधिकार आयोग” का गठन किया गया आयोग की सिफारिशों के आधार पर 10 दिसंबर 1948 ई० को संयुक्त राष्ट्र ने एक घोषणा-पत्र जारी किया

इसे अब ‘ मानव अधिकारों का घोषणा-पत्र ‘ के नाम से जाना जाता है. सन् 1950 ई० में संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिवर्ष 10 दिसंबर के दिन को मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाने को घोषणा की

मानव अधिकार की आवश्यकता

लोकतंत्र की अवधारणा मानव अधिकारों को सुनिश्चित करने की बढ़ती हुई आवश्यकता के साथ स्पष्ट रूप से जुड़ी हुई है. इसके अभाव में न तो कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और न ही सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है

मानव अधिकारों की सुरक्षा के अभाव में जनतंत्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. एक तानाशाही के अंतर्गत मूल मानव अधिकारों तथा स्वतंत्रता का लोप हो जाता है. सैनिक एवं प्रतिक्रियावादी शासकों द्वारा मानवीय अधिकारों के दुरुपयोग ने ही जनसाधारण में एक नवीन जागृति उत्पन्न की

जहाँ कहीं भी मानव अधिकारों को नकारा गया है वहीं अन्याय, क्रूरता तथा अत्याचार का नग्न तांडव देखा गया है, मानवता बुरी तरह से अपमानित हुई है और जनमानस की दशा निरंतर बिगड़ती गई है

मानव अधिकार के उद्देश्य

संयुक्त राष्ट्र के विधान के अनुच्छेद 3 में कहा गया है कि उसका एक उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय रूप ही अंतर्राष्ट्रीय समस्या के समाधान तथा जाति, लिंग, भाषा या धर्म के सब प्रकार के भेदभाव के बिना मानव अधिकारों, मौलिक अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं के संवदधन व प्रोत्साहन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की प्राप्ति करना होगा

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र की ‘आर्थिक सामाजिक परिषद्’ ने सन् 1946 ई० में मानव अधिकार आयोग की स्थापना की थी. आयोग की संस्तुति के आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने जो मानवाधिकार घोषणा-पत्र जारी किया और उसमें जिन मानवाधिकारों की चर्चा की गई, उन्हें मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने सन् 1965, 1976 तथा 1985 ई० में तीन विभिन्न संविदा-पत्र जारी किए

विश्व में सर्वत्र इस दृष्टि से सजगता दिखाई देती है कि संपूर्ण मानवता को अधिकार सुलभ होने चाहिए, लेकिन व्यवहार में स्थिति संतोषजनक नहीं है. आज विश्व के कई देशों में मानव अधिकारों का हनन किया जा रहा है

भारत में मानवाधिकार

युक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र के अनुरूप ही भारत ने भी राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार आयोग की नियुक्ति की है तथा इसके साथ-साथ राज्यों में भी मानव अधिकार आयोग की स्थापना की है, जिससे कि मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो सके

इस दृष्टि से भारत में 44वें गणतंत्र वर्ष में संसद द्वारा ‘मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993, 1994 का अधिनियम संख्या 10, 8 जनवरी, 1994 ई० पारित किया गया जिसका उद्देश्य मानवाधिकारों के अधिक अक्षय संरक्षण के लिए तथा उससे संबद्ध कर उसे आनुषंगिक मामलों के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग तथा मानवाधिकार न्यायालयों के गठन हेतु विविध प्रकार के प्रावधान करना है

इस अधिनियम की धारा 2 में मानवाधिकार की परिभाषा दी गई है. मानवाधिकारों में अंतर्राष्ट्रीय अभिसमयों में समाहित एवं भारतीय संविधान द्वारा प्रत्याभूत जीवन, स्वतंत्रता, समानता और वैयक्तिक गरिमा से संबद्ध अधिकारों को सम्मिलित किया गया है

इसका मूललक्ष्य मानव जीवन और उसकी गरिमा को सुरक्षा प्रदान करना है. इस अधिनियम में 8 अध्याय हैं अध्याय 1 में अधिनियम की प्रारंभिक जानकारी तथा विभिन्न शब्दों की परिभाषाएँ दी गई हैं अध्याय 2 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के गठन, अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति, उनकी पदावधि उनके द्वारा कार्यों का निर्वहन करना तथा उनकी सेवा श्तों आदि का विस्तृत उल्लेख है

अध्याय 4 में शिकायतों की जाँच की प्रक्रिया और जाँच के बाद उठाए जाने वाले कदमों का उल्लेख है. अध्याय 5 राज्य मानवाधिकार आयोग से सम्बन्धित है. अध्याय 6 में मानवाधिकार न्यायालयों के प्रावधान का उल्लेख है. अध्याय 7 वित्त, लेखा एवं लेखा परीक्षा से सम्बन्धित है

अंतिम अर्थात् अध्याय 8 ‘विविध’ शीर्षकवाला है जिसमें मानवाधिकार आयोग का कार्यक्षेत्र, केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा नियम बनाने की शक्तियों आदि का उल्लेख किया गया है

मानवाधिकारों की वास्तविक स्थिति

इसमें संदेह नहीं है कि मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, संयुक्त राष्ट्र की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है. परंतु जहाँ तक मानवाधिकारों की सुरक्षा का प्रश्न है यह घोषणा कोरा आदर्शवाद ही सिद्ध हुई है. इसको व्यवहार में लाने में अब भी पर्याप्त कठिनाइयाँ बनी हुई हैं

मानव अधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा-पत्र पर अनेक राष्ट्रों ने हस्ताक्षर तो कर दिए हैं, परंतु उनको व्यावहारिक बनाने के लिए अभी तक उनका अनुमोदन नहीं किया है. जिन राष्ट्रों ने उनका अनुमोदन भी कर दिया है, उन्हें भी अधिकारों को लागू करने के लिए बाध्य करने का कोई प्रावधान नहीं है.

वास्तव में ये अधिकार तो मात्र नैतिकता के मानदंड हैं, जिन्हें स्वीकार करना पूर्ण रूप से राज्य की इच्छा पर निर्भर करता है. यदि कोई राज्य इस घोषणा-पत्र की व्यवस्था के विपरीत आचरण करता है तो उसे इन अधिकारों को अपने नागरिकों को प्रदान करने के लिए किसी भी रूप में हस्तक्षेप करके बाध्य नही किया जा सकता

यह व्यवस्था तो अवश्य है कि यदि कोई राज्य मानवाधिकारों का भीषण दमन करता है तो उसकी महासभा में भत्त्सना की जा सकती हैं और उसके विरुद्ध आर्थिक व राजनैतिक बहिष्कार की नीति अपनाई जा सकती है, परंतु यह व्यवस्था भी अधिक कारगर सिद्ध नहीं हुई है

विश्व के सभ्य देश भी अपने यहाँ मानवीय अधिकारों को सुरक्षा देने में विफल रहे. अविकसित देशों की तो बात ही क्या है, आज भी कुछ सभ्य देश ऐसे है जहाँ की सरकारें अपने नागरिकों को इन अधिकारों से वंचित रखे हुए हैं ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट (1922) में कहा गया है कि विश्व के 120 देशों में मानवीय अधिकारों का हनन हो रहा है

बोस्निया, गिनी, दक्षिण अफ्रीका, इथियोपिया आदि देशों में आज भी नागरिकों के साथ पशुवत् व्यवहार किया जा रहा है. मुस्लिम राष्ट्रों में आज भी अमानुषिक दंड दिए जाने का प्रावधान है. राजनैतिक बंदियों के साथ जेलों में जो अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है, वह वर्णनातीत ही है

संक्षेप में इतना कहना ही पर्याप्त है कि आज मानवता की दुहाई देकर विभिन्न देशों की सरकारे मानवाधिकारों का खुलकर उल्लंघन कर रही हैं. फिर भी “मानवाधिकार का अंतर्राष्ट्रीय संघ” तथा “एमनेस्टी इंटरनेशनल” जैसे गैर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन मानवाधिकारों की सुरक्षा में सतत प्रयत्नशील हैं

भारत हमेशा से मानव अधिकारों के प्रति सजग रहा है. वह विश्वमंच पर मानव अधिकारों का समर्थन करता रहा है. मानव अधिकारों का हनन तथा उनका उल्लंघन विश्व के समक्ष एक गंभीर समस्या बनी हुई है. यह आधुनिक सभ्यता पर लगा एक दाग है यदि मानव अधिकारों के उल्लंघन को नहीं रोका गया तो निश्चित ही यह मानवता के विनारा का कारण बनेगा

FAQ’s – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

मानवाधिकार दिवस कब मनाया जाता है.

दुनिया भर में मानव अधिकार दिवस प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है

मानवाधिकार दिवस क्यों मनाया जाता है ?

मानवाधिकार दिवस मानव अधिकारों की रक्षा, बढ़ावा और जागरूकता के लिए मनाया जाता है

  • राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर निबंध
  • राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर निबंध
  • म हिला सशक्तिकरण पर निबंध

संक्षेप में

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essay on human rights day in hindi

मानव अधिकार पर निबंध – Essay on Human Rights in Hindi

Essay on Human Rights in Hindi

मानव अधिकार के तहत मनुष्य को वे सभी अधिकार दिए जाते हैं, जिनकी उन्हें जीवन जीने के लिए जरूरत पड़ती है। मानव अधिकारों का सीधा संबंध, किसी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता, प्रतिष्ठा आदि से होता है। मानव अधिकार नैतिक सिंद्धांत के रुप में भी जाने जाते हैं, जो हर व्यक्ति के व्यवहार एवं प्रतिष्ठा को दर्शाते हैं।

इसके साथ ही यह अधिकार कानून द्धारा सुरक्षित अधिकार है और सार्वभौमिक हैं, जो कि हर समय हर जगह लागू होते हैं। मानव अधिकारों की खास बात यह होती है कि यह हर मनुष्य के लिए एक सामान होते हैं, क्योंकि इन्हें जाति, धर्म, लिंग, पंथ, स्थान, राष्ट्र आदि की फिक्र किए हुए सभी व्यक्ति को सामान रुप से दिया जाता है।

वहीं मानव अधिकारों के प्रति विद्यार्थियों को जागरूक करने के उद्देश्य से एवं उनके लेखन कौशल में सुधार करने के लिए स्कूल में आयोजित प्रतियोगी परिक्षाओं अथवा निबंध लेखन प्रतियोगिताओं में इस विषय पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है, इसलिए आज हम आपसे अपने इस आर्टिकल में इस पर निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जो के इस प्रकार है –

Essay on Human Rights in Hindi

मानव अधिकार के तहत व्यक्ति को जीवन जीने के लिए वे सारे अधिकार दिए जाते हैं, जो कि उनके व्यवहार को दर्शाता है।

नैतिक सिद्धांत वाले मानव अधिकार को व्यक्ति को किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता दी जाती है, इसके साथ ही मानव अधिकार के तहत व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार, भेदभाव से स्वतंत्रता, समानता का अधिकार, निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, नागरिक अधिकार, राजनीतिक अधिकार आदि दिए जाते हैं।

मानव अधिकार दिवस कब और कैसे मनाया जाता है – Human Rights Day

सफल जिंदगी का निर्वहन करने के लिए मनुष्यों को कुछ अधिकार दिए गए हैं, जिससे मनुष्य के जीवन, सामाजिक प्रतिष्ठा, स्वतंत्रता, समानता आदि सीधे तौर पर जुड़े हुई हैं, और इन्हीं अधिकारों को मानवीय अधिकारों के रुप में भी जाना जाता है।

इसके साथ ही आपको बता दें कि 28 सितंबर, 1993 को भारत में मानव अधिकार कानून को अमल में लाया गया था, लेकिन 12 अक्टूबर साल 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया था।

जबकि सुंयक्त राष्ट्र महासभा द्धारा 10 दिसंबर, 1948 को घोषणा पत्र को मान्यता दी गई थी, इसलिए हर साल 10 दिसंबर को मानव अधिकार दिवस के रुप में मनाया जाता है, इससे लोगों को अपने अधिकारों की शक्ति समझने में मद्द मिलती है।

मानव अधिकार दिवस पर लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और इसके महत्व को समझाने के उदेश्य से कई तरह के सांस्कृतिक, राजनीतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। प्रदर्शनी लगाई जाती है। इसके अलावा वाद-विवाद प्रतियोगिताएं भी आयोजित करवाई जाती है, जिसमें मानव अधिकार के विषय पर खुलकर चर्चा होती है।

मानव अधिकार दिवस पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में सरकारी अथवा प्राइवेट दोनों संगठन के लोग बढ़चढ़ अपनी भागदारी निभाते हैं। मानव अधिकार दिवस को मनाने का मुख्य मकसद लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना एवं समाज से गरीबी को पूरी तरह हटाना है।

मानवाधिकारों का उल्लंघन:

मानव अधिकार सार्वभौविक है, जिन्हें अलग-अलग कानून द्धारा सुरक्षित रखा गया है, लेकिन सरकार के मंत्रियों, व्यक्ति के ग्रुप एवं कई लोगों के द्धारा इन अधिकारों की अवहेलना की जाती है।

उदाहरण के तौर पर जब पुलिस मजरिम या आरोपी से पूछताछ करती है तो रोक लगाने के बाबजूद भी मारपीट करती है, जिसके तहत यातना की आजादी का उल्लंघन किया जाता है।

इसी प्रकार बेटियों को अभी भी पूर्ण रुप से परिवार द्धारा स्वतंत्रता नहीं दी गई है। इसके अलावा गुलामी और दास प्रथा का आज भी अवैध तरीके से चलाई हैं, कई बच्चों को गुलाम बनाकर बाल श्रमिक की तरह उनसे काम करवाया जाता है, जिससे मानव अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।

वहीं मानव अधिकारों का पालन नहीं करने वालों पर शिकंजा कसने के लिए कई तरह की सरकारी और निजी संगठनों का गठन किया गया है, जो अपने-अपने स्तर पर इसके खिलाफ जांच करते हैं।

मानव अधिकार के प्रकार – Types of Human Rights

मानव अधिकार, समस्त प्राणियों को उनके जीवन जीने के लिए सामान रुप से दिए गए हैं। यह निर्विवाद अधिकार होते हैं,जो कि जाति, धर्म, लिंग, पंथ,राष्ट्रीयता आदि की परवाह किए बिना हर व्यक्ति को दिए जाते है। मानव अधिकारों का हर व्यक्ति स्वाभाविक रुप से हकदार होता है। वहीं कुछ बुनियादी एवं सार्वभौमिक मानवअधिकार इस प्रकार हैं –

• जीवन का अधिकार

इस पृश्वी पर रहने वाले समस्त प्राणी को जीवित रहने का अधिकार है, वहीं अगर किसी व्यक्ति द्धारा किसी की हत्या की जाती है तो उसे कानूनन, फांसी अथवा मृत्यु दंड तक की सजा देने का प्रावधान है।

• निजी सुरक्षा का अधिकार

सार्वभौमिक मानव अधिकार के तहत सभी व्यक्ति को निजी सुरक्षा का अधिकार दिया गया है, इसके तहत सभी व्यक्ति को खुद की सुरक्षा कैसे करना है, इसके बारे में पता होना चाहिए।

• निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार

अगर कोई व्यक्ति गलत तरीके से किसी आरोप में फंस जाता है तो उसके लिए निष्पक्ष अदालत द्धारा, निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। इसके तहत एक निश्चित समय अवधि के दौरान कोर्ट में सुनवाई होती है, और अंतरिम फैसला जज के हाथों में होता है।

• बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार

मानव अधिकार के तहत हर व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का अधिकार है । वह किसी भी मुद्दे पर खुलकर चर्चा करने के लिए स्वतंत्र है, हांलाकि इस अधिकार के तहत इस बात को ध्यान रखना जरूरी है कि आपके वाक से किसी दूसरे व्यक्ति की भावना एवं चरित्रता का हनन न हो। बोलने के अधिकार की कुछ सीमा तय की गई हैं, जिसमें अश्लीलता, भड़काऊं बातें, दंगे भड़काना आदि हैं।

• व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार

सभी लोगों की सुरक्षा को लेकर हर देश की सीमा में सैनिक तैनात होते हैं, जो किसी होने वाले हमला और किसी भी अनैतिक गतिविधि को रोकने का काम करते हैं।

• खुद की संपत्ति रखने का अधिकार

मानवाधिकार के तहत हर नागरिक को अपनी संपत्ति रखने का अधिकार है। व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कहीं भी प्रॉपर्टी खऱीद सकता है एवं बेच सकता है, हालांकि इसके भी कुछ नियम हैं।

• अत्याचार से स्वतंत्रता का अधिकार

अंतराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत हर नागरिक को किसी भी तरह के अत्चायार से स्वतंत्रता का अधिकार है।

• गुलामी से स्वतंत्रता का अधिकार

मानव अधिकार के तहत हर नागरिक को गुलामी से आजादी का अधिकार दिया गया है। हालांकि, अभी भी कई स्थानों पर लोग गुलाम प्रथा लागू है।

• शिक्षा का अधिकार

हर नागरिक को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार दिया गया है, प्रत्येक नागरिक किसी भी उम्र में शिक्षा लेने के लिए स्वतंत्र है।

• विवाह और परिवार का अधिकार

हर व्यस्क नागरिक को अपनी इच्छानुसार विवाह करने की स्वतंत्रता प्राप्त है, और अपनी फैमिली बढ़ाने का अधिकार प्राप्त है। हालांकि बाल विवाह करने पर प्रतिबंध है।

• अपराध सिद्द न होने पर निर्दोष माने जाने का अधिकार

मानव अधिकार के तहत किसी भी नागरिक पर अगर किसी अपराध में संल्गन होने का आरोप है तो उसे मुजरिम साबित नहीं किया जा सकता है, वह अपराध साबित नहीं होने तक बेकसूर माना जाता है।

• मनमानी गिरफ्तारी और निर्वासन से स्वतंत्रता का अधिकार

मानव अधिकार के तहत किसी भी व्यक्ति को मनमानी तरीके से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है,इसके लिए पहले व्यक्ति का सबूतों के आधार पर कोर्ट द्धारा दोषी होना जरूरी होता है।

• शांतिपूर्ण विधानसभा और संघ का अधिकार

मानव अधिकार के तहत शांतिपूर्ण तरीके से विधानसभा का गठन करने का अधिकार भी दिया गया है और संघ को बनाने का अधिकार प्राप्त है।

• राष्टीयता और इसे बदलने की स्वतंत्रता का अधिकार

मानव अधिकार के तहत कोई भी शख्स किसी भी देश की राष्ट्रीयता प्राप्त करने का हकदार है, हालांकि इसके लिए कुछ नियम-कानून है, जिन पर अमल करने की आवश्यकता है।

• भाषण देने की अथवा भाषण सुनने की स्वतंत्रता

मौलिक अधिकार के तहत दी गई अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के तहत किसी भी नागरिक को किसी भी मुद्दे पर अपने विचार रखने की स्वतंत्रता प्राप्त है।

• भेदभाव से स्वतंत्रता

मानव अधिकार के तहत सभी नागरिकों को जाति, धर्म, लिंग, पंथ, राष्ट्रीयता आदि के फिक्र किए बिना एक सामान अधिकार दिए गए हैं।

• विचारधारा की स्वतंत्रता

दुनिया के सभी नागरिकों को सोचने की पूरी आजादी दी गई है, हर शख्स अपने बुद्धि, विवेक के अनुसार किसी भी विषय पर सोचने के लिए पूर्ण रुप से स्वतंत्र है।

• संघ और सूचना का अधिकार

मानव अधिकारों के तहत सूचना का अधिकार महत्पूर्ण है, इसके तहत कोई भी व्यक्ति दुनिया के किसी भी कोने में घटित घटना आदि की जानकारी देने के लिए स्वतंत्र है, हालांकि, रेप जैसे मामलों में पीडि़त की पहचान नहीं बताई जाती है, क्योंकि इससे पीडि़त की भावना और उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा पर ठेस पहुंच सकती है।

• धर्म, विश्वास और आंदोलन की स्वतंत्रता का अधिकार

दुनिया के हर शख्स को अपने इच्छा और पसंद के अनुसार किसी भी धर्म का पालन करने की आजादी दी गई है। इसके अलावा एक धर्म अपनाने के बाद, इसे बदलने का भी अधिकार प्राप्त है।

• अवकाश और रेस्ट करने की आजादी

मानव अधिकार के तहत हर व्यक्ति को विश्राम करने की स्वतंत्रता हैं, अपने सामर्थ्य के मुताबिक व्यक्ति अपनी मनमर्जी से काम कर सकता है।

• सामाजिक सुरक्षा का अधिकार

मानव अधिकार के तहत हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई है।

• सही तरीके से जीने का अधिकार

सार्वभौमिक मानव अधिकार के तहत प्रत्येक नागरिक को जिंदगी जीने का अधिकार प्राप्त है

• सक्षम न्यायाधिकरण स्वतंत्रता का अधिकार

मानव अधिकार के तहत सक्षम न्यायाधिकरण स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है।

• समाज,समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में हिस्सा लेने का अधिकार

मानव अधिकार के तहत हर व्यक्ति को सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने का अधिकार प्राप्त है।

इस प्रकार हमारे भारत देश में प्रत्येक व्यक्ति को कई प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है और यह उसके मानव अधिकार है।

मानव अधिकार के तहत ही व्यक्ति को सही तरीके से अपना जीवन यापन करने में मद्द मिलती है, इसलिए इन अधिकारों के महत्व को समझना चाहिए और इनका उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही हर नागरिक को मानव अधिकारों की अवहेलना के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए।

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Human Rights in Hindi: जानिए क्या हैं मानवाधिकार और यह क्यों इतने आवश्यक हैं?

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  • Updated on  
  • दिसम्बर 9, 2023

Human Rights in Hindi

मानवाधिकार इंसान के लिए बहुत महत्व रखते हैं। प्रत्येक मानव के पास अपने अधिकार हैं। मानवाधिकार अगर न हों तो इंसान की हालत ऐसी हो जाएगी जैसे जल बिन मछली। जैसे इंसान को सांस लेना बेहद ज़रूरी है वैसे ही मानवाधिकार का होना उतना ही ज़रूरी है। मानवाधिकार से मानव को अपनी शक्ति का परिचय होता है, वह हर अत्याचार पर अपने अधिकारों का उपयोग कर सकता है. भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को भारत में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मनाया जाता है। यह आपके लिए जानना अत्यंत ज़रूरी है कि मानवाधिकार क्यों इतने ज़रूरी हैं, तो चलिए, आपको देंगे हम संपूर्ण जानकारी  – Human Rights in Hindi के बारे में।

This Blog Includes:

मानवाधिकार क्या होते हैं, क्यों ज़रूरी हैं मानव अधिकार, मानवाधिकार के उद्देश्य क्या होते हैं, मानव अधिकार के प्रकार कितने होते हैं, मानव अधिकार इन चीज़ों की करते हैं सुरक्षा, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (nhrc), nhrc की संरचना, मानव अधिकार में nhrc के कार्य और शक्तियाँ जानिए, nhrc की सीमाएं क्या होती हैं, मानव अधिकार के समर्थन में करियर बनाने के लिए भारत की टॉप यूनिवर्सिटीज, मानव अधिकार में जॉब प्रोफाइल्स, भारत में मानव अधिकार में जॉब प्रोफाइल्स.

मानवाधिकार (Human Rights in Hindi) एक वह ताकत है जो आपको अपने अधिकार के बारे में बताते हैं। आपको इन्हें जानना बेहद ज़रूरी है। यह आपके लिए एक अनमोल उपहार ही तरह हैं। चलिए, जानते हैं-

  • संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार, यह अधिकार जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किए बिना सभी को प्राप्त हैं।
  • मानवाधिकारों में मुख्यतः जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और काम एवं शिक्षा का अधिकार, आदि शामिल हैं।
  • कोई भी व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के इन अधिकारों को प्राप्त करने का हक़दार होता है।
  • मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्टूबर, 1993 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) की स्थापना की गई।

क्यों ज़रूरी हैं व्यक्ति के जीवन में मानव अधिकार, जानिए Human Rights in Hindi की लिस्ट में, जो इस प्रकार हैं:

  • शारीरिक स्वतंत्रता के लिए
  • गिरफ्तारी व अन्य बेवजह रोककर रखने के प्रविर्ती में मुक्ति के लिए
  • मनुष्य के आत्म सम्मान को बचाकर रखने के लिए 
  • मनुष्य के मौलिक अधिकारों को बचके रखने के लिए 
  • जीवन स्तर को उच्च बनाने के लिए 
  • अधिकारों के कब्ज़े को रोकने के लिए 
  • राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय गौरव एवं शांति बनाने के लिए 
  • मानव के सर्वागीण विकाश के लिए
  • न्याय के रक्षा के लिए

नौकरशाही पर रोक लगाना, मानव अधिकारों के हनन को रोकना तथा लोक सेवक द्वारा उनका शोषण करने में अंकुश लगाना। मानवाधिकार की सुरक्षा के बिना सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आज़ादी खोखली है, मानवाधिकार की लड़ाई हम सभी की लड़ाई है। विश्वभर में नस्ल, धर्म, जाति के नाम मानव द्वारा मानव का शोषण हो रहा है। अत्याचार को रोकना एक बेहद ज़रूरी कार्य है। हमारे देश में स्वतंत्रता के बाद धर्म और जाति के नाम पर भारतवासियों को विभाजित करने का प्रयास किया जा रहा है। आदमी का रंग कैसा भी हो, हिन्दू हो या मुस्लमान, सिख हो या ईसाई, हिंदी बोले या कोई अन्य भाषा, सभी केवल इंसान हैं और संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित मानवाधिकारों को प्राप्त करने का अधिकार हैं।

मानव अधिकार के प्रकार नीचे दिए गए हैं-

  • गुलामी से मुक्ति
  • कठोर, असभ्य माहौल अथवा सजा से मुक्ति
  • लॉ के सामने बराबरी
  • प्रभावशाली न्यायिक उपचार का अधिकार
  • आवागमन तथा निवास स्थान चुनने की स्वतंत्रता
  • शादी के बाद घर बसाने
  • विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  • निष्पक्ष मुकदमें का अधिकार

Human Rights in Hindi में आपको निम्नलिखित चीज़ों की लिस्ट दी जा रही है जिसके लिए Human Rights दुनिया भर में आवाज़ उठाने के लिए जाने जाते हैं।

  • सभी गरीब बच्चों, महिला, बुजुर्ग व विक्लांग व्यक्तियों के लिऐ समान शिक्षा, मुफ्त  स्वास्थ्य जांच कैम्प लगाना और दवाईयां तथा उपकरण उपलब्ध कराना।
  • सामाजिक बुराई के खिलाफ पहल करना और बुलंद आवाज उठाना तथा पीड़ितों को बुराई से छुटकारा दिलाना।
  • बाल व बंधुआ मजदूरी के अत्याचार से मुक्ति दिलाना।
  • बच्चों, महिलाओं तथा बुजुर्गो की रक्षा के लिए काम करना।
  • समाज के लिए योगदान करने वाली हस्तियों को समय-समय पर पुरूस्कृत करके  उनका सम्मान करना।
  • समाज व हर वर्ग के लोगो के साथ मिलकर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करना।
  • जनता तथा पुलिस के बीच में सहयोग का पुल बनाना तथा पीड़ितों को न्याय दिलाना।
  • नए शिक्षा संस्थान, अस्पताल व अनाथ आश्रम खोलना और अन्य आश्रमों की देख-रेख करना।
  • भ्रूण हत्या पर हर सम्भव रोक लगाना व उनके खिलाफ आवाज उठाना।
  • हर वर्ग के कमज़ोर व्यक्ति को समाज में न्याय दिलाना।

भारत ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन और राज्य मानवाधिकार आयोगों के गठन की व्यवस्था करके मानवाधिकारों के उल्लंघनों से निपटने हेतु एक मंच प्रदान किया है। Human Rights in Hindi

  • भारत में मानवाधिकारों की रक्षा के संदर्भ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग देश की सर्वोच्च संस्था के साथ-साथ मानवाधिकारों का लोकपाल भी है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश इसके अध्यक्ष होते हैं। यह राष्ट्रीय मानवाधिकारों के वैश्विक गठबंधन का हिस्सा है। साथ ही यह राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के एशिया पेसिफ़िक फोरम का संस्थापक सदस्य भी है। NHRC को मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्द्धन का अधिकार प्राप्त है।
  • मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम,1993 की धारा 12(ज) में NHRC समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानवाधिकार साक्षरता का प्रसार करेगा और प्रकाशनों, मीडिया, सेमिनारों तथा अन्य उपलब्ध साधनों के ज़रिये इन अधिकारों का संरक्षण करने के लिये उपलब्ध सुरक्षोपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाएगा।
  • इस आयोग ने देश में आम नागरिकों, बच्चों, महिलाओं, वृद्धजनों के मानवाधिकारों, LGBT समुदाय के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिये समय-समय पर अपनी सिफ़ारिशें सरकार तक पहुँचाई हैं और सरकार ने कई सिफारिशों पर अमल करते हुए संविधान में उपयुक्त संशोधन भी किए हैं।
  • NHRC एक बहु-सदस्यीय संस्था है जिसमें एक अध्यक्ष सहित 7 सदस्य होते हैं।
  • यह ज़रूरी है कि 7 सदस्यों में कम-से-कम 3 पदेन (Ex-officio) सदस्य हों।
  • अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय कमेटी की सिफारिशों के आधार पर की जाती है।
  • अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्षों या 70 वर्ष की उम्र, जो भी पहले हो, तक होता है।
  • इन्हें केवल तभी हटाया जा सकता है जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की जाँच में उन पर दुराचार या असमर्थता के आरोप सिद्ध हो जाएं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास कुछ ऐसी शक्तियां हैं जिन्हें कोई भी रोकने की हिम्मत नहीं कर सकता। यह कार्य और शक्तियां आम लोगों के लिए ही हैं। आइए, बताते हैं –  

  • मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित कोई मामला यदि NHRC के संज्ञान में आता है, तो NHRC को उसकी जाँच करने का अधिकार है।
  • इसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित सभी न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
  • आयोग किसी भी जेल का दौरा कर सकता है और जेल में बंद कैदियों की स्थिति का निरीक्षण एवं उसमे सुधार के लिये सुझाव दे सकता है।
  • NHRC संविधान या किसी अन्य कानून द्वारा मानवाधिकारों को बचाने के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों की समीक्षा कर सकता है और उनमें बदलावों की सिफारिश भी कर सकता है।
  • NHRC मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य भी करता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (Human Rights in Hindi) की अपनी भी कुछ सीमाएं हैं, जिनके आगे वह ज्यादा कुछ नहीं कर सकते । बताते हैं उनकी सीमाओं के बारे में –

  • NHRC के पास जाँच करने के लिये कोई भी विशेष तंत्र नहीं है। अधिकतर मामलों में यह संबंधित सरकार को मामले की जाँच करने का आदेश देता है।
  • पीड़ित पक्ष को व्यावहारिक न्याय देने में असमर्थ होने के कारण भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने इसे ‘India’s teasing illusion’ की संज्ञा दी है।
  • NHRC के पास किसी भी मामले के संबंध में मात्र सिफारिश करने का ही अधिकार है, वह किसी को निर्णय लागू करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता।
  • कई बार धन की अपर्याप्ता भी NHRC के कार्य में बाधा डालती है।

Human Rights India में करियर के लिए यूनिवर्सिटीज की लिस्ट दी जा रही है, जिसके बारे में आपको पता होना चाहिए। Human Rights in Hindi में इस प्रकार है यह लिस्ट।

डिग्री कोर्स

डिप्लोमा कोर्स

सर्टिफिकेट कोर्स

निम्नलिखित List में आपको विदेश में Human Rights में Career के बारे में बताया जा रहा है, जिसमें आप अपना Career बना सकते हैं। Human Rights in Hindi में नज़र डालते हैं इस लिस्ट पर-

  • ह्यूमन राइट्स लॉयर
  • ह्यूमन राइट्स कंपैनर
  • ह्यूमन राइट्स एडुकेटर
  • ह्यूमन राइट्स रिसर्चर
  • ह्यूमन राइट्स एडवोकेसी ऑफिसर
  • ह्यूमन राइट्स एक्टिविज़्म कोर्डिनेटर
  • ह्यूमन राइट्स वेब कंटेंट मैनेजर
  • ह्यूमन राइट्स असिस्टेंट
  • ह्यूमन राइट्स प्रोग्राम ऑफिसर
  • ह्यूमन राइट्स ग्रांट राइटर
  • ह्यूमन राइट्स कम्युनिकेशन्स ऑफिसर
  • ह्यूमन राइट्स फंडरेजिंग स्पेशलिस्ट
  • ह्यूमन राइट्स पॉलिसी एनालिस्ट
  • ह्यूमन राइट्स M&E ऑफिसर
  • ह्यूमन राइट्स स्टेटिस्टीशियन
  • ह्यूमन राइट्स एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर
  • ह्यूमन राइट्स डिजिटल कंटेंट ऑफिसर
  • ह्यूमन राइट्स रिसर्च असिस्टेंट
  • ह्यूमन राइट्स इंटरप्रेटर/ट्रांसलेटर
  • ह्यूमन राइट्स पॉलिसी स्पेशलिस्ट
  • ह्यूमन राइट्स लीगल ऑफिसर
  • ह्यूमन राइट्स कंसलटेंट
  • नॉन प्रॉफिट अकाउंटेंट
  • इनफार्मेशन सिस्टम्स ऑफिसर
  • पोलिटिकल अफेयर्स ऑफिसर
  • आउटरीच & इंगेजमेंट ऑफिसर
  • फील्ड सिक्योरिटी ऑफिसर
  • फाइनेंस ऑफिसर
  • कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी स्पेशलिस्ट
  • GIS स्पेशलिस्ट

निम्नलिखित आपको भारत में मानव अधिकार में करियर के बारे में बताया जा रहा है, जिसमें आप अपना करियर बना सकते हैं। Human Rights in Hindi में नज़र डालते हैं इस लिस्ट पर-

  • ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट
  • ह्यूमन राइट्स डिफेंडर
  • ह्यूमन राइट्स एनालिस्ट
  • ह्यूमन राइट्स प्रोफेशनल
  • ह्यूमन राइट्स प्रोग्रामर
  • ह्यूमन राइट्स अधिवक्ता
  • ह्यूमन राइट्स वर्कर
  • ह्यूमन राइट्स टीचर
  • ह्यूमन राइट्स फंडरेजर
  • ह्यूमन राइट्स मैनेजर

मानवाधिकार एक वह ताकत है जो आपको अपने अधिकार के बारे में बताते हैं।

भारत में मानव अधिकार 12 अक्टूबर 1993 को लागू हुए थे।

मानव अधिकार में कुल 36 अनुच्छेद हैं।

हमें आशा है कि Human Rights in Hindi से जुड़ा यह ब्लॉग आपको ज़रूर मानवाधिकारों के बारे में जानकारी देगा है। ऐसे और अन्य तरह के ब्लॉग्स पढ़ने के लिए बने रहिए Leverage Edu के साथ।

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देवांग मैत्रे

स्टडी अब्रॉड फील्ड के हिंदी एडिटर देवांग मैत्रे को कंटेंट और एडिटिंग में आधिकारिक तौर पर 6 वर्षों से ऊपर का अनुभव है। वह पूर्व में पोलिटिकल एडिटर-रणनीतिकार, एसोसिएट प्रोड्यूसर और कंटेंट राइटर रह चुके हैं। पत्रकारिता से अलग इन्हें अन्य क्षेत्रों में भी काम करने का अनुभव है। देवांग को काम से अलग आप नियो-नोयर फिल्म्स, सीरीज व ट्विटर पर गंभीर चिंतन करते हुए ढूंढ सकते हैं।

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